Wednesday, 31 January 2018

जन्मदेने वाली स्त्री अपवित्र और उससे जन्म लेने वाला पुरुष पवित्र कैसे?

स्री की कोंख में 9 महिना मुफ्त खाने वाला 
पोषण लेने वाला पुरुष बच्चा बाहर आते ही पवित्र बन जाता है और जन्म देने वाली स्री अपवित्र 
धर्मगुरु पंडिट पादरी मौलाना पवित्र होते है लेकिन उनकी माता नही
जिनके प्रवेस करने से धर्मस्थल दूषित होता है 
लानत है ऐसी धर्म की सामाजिक व्यवस्था पर 😌 
माँ जग जननी की जय हो

सतयुग की वापसी

जब स्वधर्म से अनभिज्ञ हो मोह की निंद्रा में स्वार्थ केंद्रित हो सोते है तो कलियुग होता है,

जब कर्तव्य पर मोह भारी पड़ता है और ऊंघते हुए स्वधर्म की उपेक्षा द्वापर है।

स्वधर्म का ज्ञान हो और सो नहीं रहे लेकिन प्रवचन में है आचरण में नहीं उतरा तो त्रेता है।

लेकिन जब स्वधर्म का ज्ञान है आत्मतत्व के लिए बोध है, और सत्य धर्म आचरण में है, अनवरत स्वधर्म पालन चैतन्य अवस्था में हो रहा है। तो यही सतयुग है।

इसलिए गुरुदेव कहते हैं- स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। शिक्षण शब्दों से नहीं बल्कि आचरण से दें।

सतयुग की वापसी वही कर सकेगा, जो सतयुग के लिए पहले स्वयं को बदल सकेगा। स्वयं में देवत्व जगा सकेगा।


http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Satayug_Ki_Vapasi_Hindi

युगसाहित्य विस्तार की ओर बढ़ते सृजन सैनिकों के क़दम

*युगसाहित्य विस्तार की ओर बढ़ते सृजन सैनिकों के क़दम*

ज्ञानामृत बांटने वाले, टूटे मन और बिखरते रिश्तों की मरहम पट्टी कर लोक पीड़ा-युगपीड़ा हरने वाले, दृष्टिकोण और सम्वेदना की दवा बांटने वाले, साहित्य स्टॉल, झोला पुस्तकालय, स्वयं को युगऋषि का ज्ञान रथ बना चलने वाले,गुरुदेव के हृदय में बसने वाले भाइयों एवं बहनों, गुरु के लिए जीवन समर्पित करने वाले, मान-अपमान की गुरुकार्य हेतु परवाह न करने वाले भाइयों एवं बहनों,

हे आत्मीय दिल्ली एनसीआर(दिल्ली,नोएडा,गाज़ियाबाद, फ़रीदाबाद, ग्रेटरनोएडा) के भाइयों बहनों,

जैसा की श्रद्धेय ने गुरुग्राम में शक्तिपीठ की योजना बनते वक्त बोला था कि गुरुग्राम एक *प्रज्ञा विस्तार केंद्र बनेगा* उस अमृत कथन के सत्य होने की पृष्ठभूमि आप सभी के सहयोग से तैयार हो गयी है। गायत्री शक्तिपीठ गुरुग्राम में ही साहित्य संग्रह मथुरा से मंगा के किया जाएगा, फ़िर गुरुग्राम का ही ज्ञान रथ प्रत्येक सप्ताह डिलीवरी घर घर करेगा।

👉🏽आपके घर तक साहित्य *फ़्री होम डिलीवरी के साथ* और साथ ही *50%* डिस्काउंट के साथ पहुँचेगा। आपका समय-श्रम और धन की बचत होगी।

👉🏽इस हेतु सभी अंशदानी आत्मीय भाई-बहनों से अनुरोध है कि  प्रत्येक महीने की संकल्पित राशि महीने की 5 तारीख़ तक ऑनलाईन युगसाहित्य विस्तार ट्रस्ट मथुरा में जमा कर स्क्रीन शॉट और विवरण मुझे whatsapp(9810893335)या ईमेल(sweta.awgp@gmail.com) पर कर दें।
👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻👇🏻
BANK NAME-I.O.B.BANK,
BRANCH NAME-YUG NIRMAN YOJANA  TRUST MATHURA,
A/C -144102000002021,
A/C NAME- YUG NIRMAN YOJANA  VISTAR TRUST, MATHURA
I.F.S.CODE NO.- IOBA0001441,

रिमार्क/कमेंट में *दिल्ली एनसीआर(Delhi NCR) डालना न भूलें, साथ ही स्क्रीनशॉट मुझे जरूर भेज दें।
☝🏻☝🏻☝🏻☝🏻☝🏻☝🏻☝🏻☝🏻

👉🏽साहित्य खरीदने वाले आत्मीय कार्यकर्ता आत्मीय भाई-बहनों से अनुरोध है कि अपनी पसंद के और जन सम्पर्क के दौरान ज्यादा विक्रय होने वाले साहित्य की लिस्ट मुझे प्रत्येक माह की 6 तारीख तक ईमेल(sweta.awgp@gmail.com) कर दें|

👉🏽 साहित्य कम से कम दो हज़ार का और ज्यादा से ज्यादा 30 हज़ार तक एक बार में एक कार्यकर्ता आर्डर कर सकता है। (क्यूंकि दो हज़ार साहित्य 50% डिस्काउंट में एक हज़ार का और 30 हज़ार का साहित्य 50% डिस्काउंट के साथ 15 हज़ार रुपये में मिलेगा।

👉🏽 जॉब न करने वाली महिलाओं और पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए एक ऑफर है, यदि वो पहली बार साहित्य स्टॉल और झोला पुस्तकालय शुरू करने जा रहे हैं, तो उन्हें 2 हज़ार रुपये का साहित्य सिर्फ एक बार लोन पर मिल जाएगा, जिसे वो आसान किस्तों में चुका सकेंगे, साथ ही एक 550 रुपये का स्टैंडिंग फ्लैक्स फ्री मिलेगा।

🙏🏻युगऋषि एक हैं, मिशन एक है, हमारा सद्गुरु एक है, और एक ही लक्ष्य है युगनिर्माण🙏🏻 सबका साथ होगा तो सबका विकास होगा, साहित्य विस्तार और गुरूदेव के इस प्रिय कार्य मे तेज़ी आएगी।

ये योजना अभी वसन्त पंचमी 2019 तक है, सभी अंशदानियो और दिल्ली एनसीआर के साहित्य खरीदने वाले कार्यकर्ताओं की पुनः सहमति के बाद यह तय किया जाएगा कि *2026 शक्ति संरक्षण-मातृ पुरश्चरण* और *माँ भगवती के जन्म शताब्दी* तक इसे चलाना है या नहीं।

🙏🏻सभी अपने सुझाव और मार्गदर्शन देते रहिए, गुरुदेव की सेवा का सौभाग्य हम सबको मिलता रहे यही प्रार्थना है🙏🏻

जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति

*जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति*

सावधान! ज़रा ठहरो,
इस जीवन में,
किस लिए व किस प्रकार चल रहे हो,
इसे तनिक गहराई से विचारो,
गहन विचार मंथन से,
निज जीवन उद्देश्य-लक्ष्य का मक्खन निकालो।

जब मात्र पैर चलते हैं,
इसे भटकना कहते हैं,
जब पैर के साथ बुद्धि चल रही है,
इसे प्रवास कहते हैं,
जब पैर-बुद्धि के साथ हृदय चल रहा हो,
उसे ही सुखद जीवन यात्रा कहते हैं।

लक्ष्यविहीन भटकने में,
मात्र पैरों से चलना काफ़ी है,
पेट-प्रजनन हेतु कमाने में,
मात्र पैर के साथ,
बुद्धि का चलना काफ़ी है।

लेकिन जीवन लक्ष्य की प्राप्ति हेतु,
हृदय में जुनून और मन में लगन जरूरी है,
पैर और बुद्धि के साथ,
हृदय का सामंजस्य जरूरी है।

पैरों में सामर्थ्य हो,
बुद्धि में समझदारी हो,
हृदय में लक्ष्य को हर हालत में पाने की,
अटूट चाहत हो,

तो ही मन में लगन उपजती है,
और जिगर में साहस की गंगा बहती है,
बड़ी बड़ी बाधाओं को पार करने हेतु,
बुद्धि चलती रहती  है।

जीवनलक्ष्य से प्रेम हो तो,
दृष्टिकोण साफ़ रहता है,
जीवन लक्ष्य पर मन,
गिद्ध दृष्टि रखता है।

आध्यात्मिक लक्ष्य और संसारिक लक्ष्य,
दोनों से मिलकर जीवन लक्ष्य बनता है,
जो इस गूढ़ बात को समझता है,
वही सर्वत्र सफ़ल और आन्नदित रहता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जीवन लक्ष्य ढूंढने और विचार मंथन में सहायता हेतु ऑनलाइन फ्री पुस्तक - *जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति पढें*

http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Jivan_Lakshy_Aur_Usaki_Prapti_Hindi

http://literature.awgp.org/book/jivan_lakhsay_aur_usaki_prapti/v1
*युवा अभ्युदय आयोजन क्यूँ ज़रूरी है?*

1- अप्रैल - 2018, स्थान- सिविल लाइन, न्यू दिल्ली

भारत एक युवा देश है, लेकिन यौवन कितने प्रतिशत साक्षर है? और कितने प्रतिशत सार्थक है? इस बात पर निर्भर करेगी भारत की तरक़्क़ी।

स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, विभिन्न कोचिंग संस्थान में सब जगह मैथ में समकोण, न्यूनकोण इत्यादि पढ़ाया जाएगा लेकिन कहीं भी किसी शैक्षणिक संस्थान में साक्षरता के साथ जीवन की सार्थकता हेतु निम्न पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाये जाते:-

1- दृष्टिकोण(Attitude)
2- सोचने की कला(Art of thinking)
3- बोलने की कला(Art of speaking)
4- सुनने की कला(Art of listening)
5- मानसिक संतुलन, मन प्रबंधन (Mind Management)
6- जीवन प्रबंधन (Life Management, Art of living)
7- देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी (Responsibilities & Duties for nation)

इत्यादि महत्त्वपूर्ण दिशा धारा न मिलने के कारण युवा भटक जाता है। उपरोक्त जीवन को सार्थकता प्रदान करने वाली जीवन विद्या युवाओं को सिखाने और उन्हें सही दिशा देने हेतु यह प्रोग्राम आयोजित किया जा रहा है। युवा अभ्युदय वास्तव में यौवन के सदुपयोग हेतु सही दृष्टिकोण विकसित करने हेतु आयोजित किया जा रहा है।

इस प्रोग्राम में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने, यह महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी उठाने श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और गायत्री परिवार के प्रमुख आ रहे हैं।

इस प्रोग्राम की सफलता हेतु अंशदान-समयदान कर सहयोग प्रदान करके पुण्य परमार्थ के भागीदार बनिये।

युवा अभ्युदय

*युवा अभ्युदय आयोजन क्यूँ ज़रूरी है?*

1- अप्रैल - 2018, स्थान- सिविल लाइन, न्यू दिल्ली

भारत एक युवा देश है, लेकिन यौवन कितने प्रतिशत साक्षर है? और कितने प्रतिशत सार्थक है? इस बात पर निर्भर करेगी भारत की तरक़्क़ी।

स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, विभिन्न कोचिंग संस्थान में सब जगह मैथ में समकोण, न्यूनकोण इत्यादि पढ़ाया जाएगा लेकिन कहीं भी किसी शैक्षणिक संस्थान में साक्षरता के साथ जीवन की सार्थकता हेतु निम्न पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाये जाते:-

1- दृष्टिकोण(Attitude)
2- सोचने की कला(Art of thinking)
3- बोलने की कला(Art of speaking)
4- सुनने की कला(Art of listening)
5- मानसिक संतुलन, मन प्रबंधन (Mind Management)
6- जीवन प्रबंधन (Life Management, Art of living)
7- देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी (Responsibilities & Duties for nation)

इत्यादि महत्त्वपूर्ण दिशा धारा न मिलने के कारण युवा भटक जाता है। उपरोक्त जीवन को सार्थकता प्रदान करने वाली जीवन विद्या युवाओं को सिखाने और उन्हें सही दिशा देने हेतु यह प्रोग्राम आयोजित किया जा रहा है। युवा अभ्युदय वास्तव में यौवन के सदुपयोग हेतु सही दृष्टिकोण विकसित करने हेतु आयोजित किया जा रहा है।

इस प्रोग्राम में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने, यह महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी उठाने श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पण्ड्या, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और गायत्री परिवार के प्रमुख आ रहे हैं।

इस प्रोग्राम की सफलता हेतु अंशदान-समयदान कर सहयोग प्रदान करके पुण्य परमार्थ के भागीदार बनिये।

चन्द्रग्रहण के दिन दान अनेक गुना फलित होता है

*चन्द्रग्रहण के दिन दान अनेक गुना फलित होता है*

युगसाहित्य के लिए संकल्पित दान ऑनलाइन मथुरा में जमा कर दें, और स्क्रीनशॉट मुझे भेज दें;-

7 फरवरी को युग्सहित्य खरीदने का मथुरा में ऑर्डर प्लेस करेंगें।

अभी तक पुनीत भैया(5000), डॉली दी(1000), गुंजन जी , फरीदाबाद(200), गुंजन जी नोएडा(500), मनीषा सिन्हा दी और दिनेशशर्मा भैया ने भी ट्रांसफर का कन्फर्म किया है।

BANK NAME-I.O.B.BANK,
BRANCH NAME-YUG NIRMAN YOJANA  TRUST MATHURA,
A/C -144102000002021,
A/C NAME- YUG NIRMAN YOJANA  VISTAR TRUST, MATHURA
I.F.S.CODE NO.- IOBA0001441,

इस चन्द्रग्रहण के शुभ अक्षय दान के अवसर पर 25,000 रुपये संकल्प के साथ  युगसाहित्य के लिए हम स्वयं दान करेंगे।

गुरुकृपा से फरवरी में साहित्य की होमडेलीवरी 50% के साथ ज्ञान यज्ञ सृजन सैनिकों के लिए शुरू हो जाएगी । मिनिमम आर्डर 1000 रुपये का होगा जिसमें 2000 का सहित्य दिया जायेगा।

*जेलों में कैदियों के आत्मोद्धार हेतु मन्त्रलेखन हेतु भी संकल्पित 100 मन्त्र लेखन पुस्तिका के लिए दान का संकल्प ले उपरोक्त अकाउंट में ट्रांसफर कर स्क्रीनशॉट सहित सूचित करें- sweta.awgp@gmail.com*

युगसाहित्य को जन जन तक पहुंचाना पुनीत कार्य है। आज ही शुभ संकल्प लें।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Tuesday, 30 January 2018

चन्द्रग्रहण में गायत्री मन्त्र जप, लेखन और ध्यान के लाभ


✨ चन्द्रग्रहण में गायत्री मन्त्र जप, लेखन और ध्यान के लाभ✨

👉 31-Jan-2018 बुधवार भारत में ग्रहण का समय : भूभाग में ग्रहण प्रारम्भ - शाम 5:55 PM, समाप्त - रात 8:41 PM तक ।

वेध (सूतक) – सुबह 8-15 AM से चालु है । अशक्त, वृद्ध, बालक, गर्भिणी तथा रोगी के लिए सुबह 12 बजे से वेध (सूतक) चालु है ।

👉चंद्रग्रहण के सन्दर्भ मे आध्यात्मिक दृष्टिकोण :-

🙏 भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं : ‘सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है । यदि गंगा घाट पर या गंगा-जल पास में रख के मौन मानसिक गायत्री जप और गायत्री मन्त्र लेखन हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड गुना फलदायी होता है ।’    

👉 ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है । मौन मानसिक गायत्री मन्त्र जप ग्रहण के समय करने से सिद्ध होता है और ग्रहण के कुप्रभाव से घर परिवार की रक्षा करता है। स्थूल पूजन भगवान को स्पर्श करके, या कोई भी स्थूल क्रिया यज्ञ, चंदन पुष्प इत्यादि नहीं चढ़ाना चाहिए, न ही ईश्वर की प्रतिमा का स्पर्श करना चाहिए| जप भी मौन मानसिक होता है| किन्तु बिना मंत्र उच्चारण किये मन में जपते हुए  मंत्र लेखन किया जा सकता है |     

👉 ‘देवी भागवत’ में आता है : ‘सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करनेवाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक ‘अरुन्तुद’ नरक में वास करता है । फिर वह उदर-रोग से पीड़ित मनुष्य होता है । फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है ।

👉 ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए ।        
           
👉ग्रहण के बाद स्नान अवश्य करना चाहिए और तुलसी औ गंगा जल पूरे घर में छिड़कना चाहिए।
    
👉 ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है ।

👉ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए ।

👉ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीडा, स्त्री-प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढी होता है । गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए ।

👉चंद्रग्रहण के सन्दर्भ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण:--

👉वहीँ वैज्ञानिकों कि राय में चन्द्र ग्रहण का लग्न एक सामान्य खगोलिक घटना है..और इसका किसी भी तरह मानव जीवन पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता…कोई खास आँखों पर भी इसका प्रभाव नहीं पड़ता है, और ना ही कोई खास रेडियेशन का दुष्प्रभाव ही चन्द्र ग्रहण के दौरान पड़ता है..चन्द्र ग्रहण का सिर्फ चुम्बकीय प्रभाव ही पड़ता है कुछ कम्पन और विकिरण स्वीकार किया है…चन्द्र ग्रहण के बारे में जानकारों ने बताया कि चाँद बीच में आता है.यानि कि सूरज चंद्रमा और पृथ्वी के बीच में आता है..इस वजह से चन्द्र ग्रहण होता है |


उपरोक्त जानकारी विभिन्न पुस्तकोँ और वेबसाइट के आधार पर दी गयी है। कोई यदि कोई असहमत है तो अपना मत रख सकता है।

पांच चरणों मे स्वयं की चिकित्सा पद्धति

*पांच चरणों मे स्वयं की चिकित्सा पद्धति(मन्त्र उपचार और ध्यान, सूर्योपासना, यग्योपैथी, तुलसी चिकित्सा, पुस्तक - "तत्सवितुर्वरेण्यं" का स्वाध्याय)*

*सूर्य विज्ञान और सूर्योपासना रोगनिवारण हेतु का एक प्रयोग जो मैंने प्रज्ञा शुक्ला दी के कहने पर किया था*, आप भी किसी भी चर्म रोग या शारीरिक या मानसिक रोग से मुक्ति हेतु कर सकते हैं:-

*रोग* - दोनों हाथों में न जाने किस चीज़ के कारण नंन्हे नन्हे दाने निकल आये थे। साबुन सर्फ़ या नमक लगने पर पीड़ा देते थे। चम्मच से भोजन करना पड़ता था।  गांव के डॉक्टर ने ऐलर्जी बताई थी,दवा से आराम नहीं मिल रहा था।

*रविवार* -  पांच रविवार साधना का संकल्प लिया, पूरे दिन श्वेत वस्त्र पहना, सफेद चीज़े जैसे दूध छाछ दही, सफ़ेद फ़ल जैसे केला खाया, रात को एक वक्त अन्नाहार में सफ़ेद चावल और दूध से खाया। किसी भी अन्य रंग का प्रयोग नहीं किया। यह साधना पीले वस्त्र से की जा सकती है , पिला रंग का आहार बनाने हेतु हल्दी प्रयोग में लें।

सुबह स्नान के बाद श्वेत या पीले वस्त्र पहन के सूर्योदय से पूर्व छत पर, कम्बल का आसन लेकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। दस माला गायत्री की और एक माला सूर्य गायत्री की और एक माला महामृत्युंजय की जपें। सूर्य की प्रथम किरण को अपने पुरे शरीर पर पड़ने दें। भावना करें सूर्य भगवान चिकित्सक हैं और हम मरीज़। उनसे रोग मुक्ति हेतु प्रार्थना कर रहे हैं और वो हमें रोग मुक्त कर रहे हैं। मन्त्र के बाद सूर्य को अर्घ्य दें।

यदि यज्ञ अवश्य करें, 24 गायत्री मंत्र, 5 सूर्य गायत्री मंत्र और 5 महामृत्युंजय मंत्र की आहुति दें। हमने यज्ञ में शांतिकुंज की हवन सामग्री और गाय के घी का ही उपयोग किया था।

यज्ञ के पश्चात तुलसी माता और सूर्य से प्रार्थना करें कि मां हमें यह बीमारी है इसकी दवा बना दीजिये। हम कल सोमवार की सुबह आपसे दवा लेने आएंगे। सूर्य भगवान से प्रार्थना कीजिये कि अपनी दवा भी मां तुलसी को दे दें, जिससे कल हम उनसे दवा ले लें।

सोमवार की सुबह , स्नान करके मां तुलसी से दवा की प्रार्थना करें। फ़िर कुछ पत्ते तुलसी दल के तोड़ लें।

दो से तीन पत्ता सुबह, शाम और दोपहर पानी से गटक लें। और कुछ पत्तो को मसल के हाथों में और रोग की जगह लगा लें।

ठीक तो जल्दी हो जाएंगे लेकिन, संकल्पानुसार 5 रविवार सूर्योपासना और सोमवार को दवा खाने का क्रम बनाये रखना होगा।

हमने तो एलोपैथी बन्द कर दी थी। लेकिन यदि आप चाहें तो जारी रख सकते है उपचार के दौरान।

इस पद्धति से चर्म रोग और मानसिक अवसाद आसानी से पांच लेयर ट्रीटमेंट - गायत्री मंत्र उपचार और ध्यान, सूर्योपासना, यग्योपैथी और तुलसी चिकित्सा,  पुस्तक - "तत्सवितुर्वरेण्यं" का स्वाध्याय से होती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मां, मुझ अजन्मी को जन्म लेने दो, पापा मुझे गर्भ में मत मारो

*मां, मुझ अजन्मी को जन्म लेने दो, पापा मुझे गर्भ में मत मारो*
😭😭😭😭😭😭😭
मां, मैं तुम सी एक नारी हूँ,
क्या ये खता भारी है,
इसलिए मुझे गर्भ में ही मारने की,
चल रही तैयारी है।

मां,मुझे भी जन्म लेने दो,
मां, मुझे भी संसार देखने दो,
पापा, मुझे भी जन्म लेने दो,
पापा, मुझे भी संसार देखने दो।

क्या स्त्री के बिना,
जीवन सृष्टि हो सकती है?
क्या स्त्री के बिना,
किसी की घर गृहस्थी बस सकती है?

मां, मेरी हत्या मत करो,
पापा, इस डॉक्टर को रोक लो,
मुझे दर्द हो रहा है,
मेरा रक्त भीतर बह रहा है।

मेरे टुकड़े टुकड़े ये डॉक्टर,
कसाई बनके कर रहा है,
मां अब बेहोश है,
और पिता मेरी हत्या होते देख रहा है।

मुझसे मेरा शरीर छीन लिया,
मुझे भटकती आत्मा बना के छोड़ दिया,
मेरा अस्तित्व मुझसे छीन लिया,
एक बेटी को उसके माता-पिता ने,
गर्भ में ही मार दिया।😭😭

कोई जेल न होगी,
कोई सज़ा संसार न देगा,
लेकिन वो ऊपर वाला,
तुम्हारे कर्मों का,
तुमसे जरूर हिसाब लेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

कन्या भ्रूण हत्या कारण और निवारण

*कन्या भ्रूण हत्या कारण और निवारण*

कॉलेज में फाइनल ईयर की एनुअल पार्टी की तैयारी चल रही थी। कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु कुछ प्ले और कुछ डांस फाइनल करने थे।

लेटेस्ट फिल्मी गाने और प्ले गूगल पर ढूंढे जा रहे थे।

*रवि* -जल्दी करो, तुम लोग प्ले और डांस की थीम पहले फाइनल करो फ़िर उसके हिसाब से सर्च करो।

*तृप्ति* - हां, सही कहा इस बार कुछ अलग करते हैं।

*ईषना* - क्यूँ न हम वर्तमान ज्वलन्त समस्या पर कुछ करें? कन्या भ्रूण हत्या। अरे यार...

मां जन्म देने के लिए सबको चाहिए..
पत्नी घर सम्हालने के लिए सबको चाहिए..
बहू वंश बढ़ाने के लिए सबको चाहिए...
बहन और बुआ राखी बांधने के लिए सबको चाहिए...
लेकिन बेटी किसी को नहीँ चाहिए...
पोती किसी को नहीँ चाहिए....

जब बेटी जन्मेगी ही नहीं...
 तो बहू बेटे के लिए किसी को मिलेगी नहीं....


*ऋत्विज* - हम सहमत है, चलो कन्या भ्रूण हत्या पर ही प्ले करते हैं। क्या हुआ रवि तुम्हारी आंखे नम क्यूँ हो गयी?

*रवि* - मेरे बड़े भैया और भाभी ने कुछ दिन पहले ही कन्या भ्रूण हत्या की है। उनकी एक बेटी पहले से है, दूसरी बार लड़के की चाहत थी।

(ओह, सब एक साथ बिफ़र पड़े)

*ईषना* - रवि तुमने समझाया नहीं?

*रवि* - मैंने और मेरी छोटी बहन रश्मि दोनों ने रोकने की कोशिश की  थी, तो घरवाले बोले अभी तुम्हारी बहन कुँवारी है, उसके दहेज़ का ही इंतज़ाम भारी पड़ रहा है। फ़िर एक और तो पहले से ही है। एक और नया बोझ नहीं ले सकता।

(रवि की बहन रश्मि भी बोल पड़ी जो वहीं खड़ी थी)

*रश्मि* - अरे यार, हम लड़कियों को क्या जीने का अधिकार नहीं। दहेज़ औऱ ख़र्चीली शादी के कारण लड़कियों को सब बोझ समझते हैं।

*ईषना* - हां यह तो हैं ही कन्याभ्रूण हत्या की जड़ है, लेकिन  एक और कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य कारण है लड़कियों की सुरक्षा का अतिरिक्त इंतज़ाम।

*रवि* - बताओ करें तो क्या करें? कैसे अजन्मी कन्याओं की गर्भ में हत्या रोकें? सरकार के इतने प्रतिबन्ध के बाद भी डॉक्टर मौत के सौदागर बन लिंग जाँच कर रहे हैं। सुपारी कीलर बन गर्भ में ही हत्या कर रहे हैं। जब माता-पिता-डॉक्टर ही हत्यारे हों तो गर्भ में भी लड़की सुरक्षित नहीं।

*ईषना* - इस समस्या से निपटने के लिये हम युवाओं को ही कुछ करना होगा। हममें से प्रत्येक लड़की को आत्मनिर्भर बनना होगा और स्वाभिमान के साथ आने वाली जनरेशन के लिए उदाहरण बनना होगा। दहेज लोभी से शादी न करने का संकल्प लेना होगा।

*रश्मि* - मैं यह संकल्प लेती हूँ कुछ  बनूँगी और स्वाभिमान के साथ सादगी से बिन दहेज़ विवाह करूंगी।

(सभी ताली बजाते है)

*रवि* - हम सभी लड़कों को दहेज न लेने का संकल्प लेना होगा, और लड़कियों को सामाजिक सुरक्षा मिले यह प्रयास करना होगा।

*ईषना* - साथ में हम सब को मिलकर दहेज़ प्रथा और ख़र्चीली शादी का विरोध करना होगा। आओ संकल्प लें हम सब सादगी से अपने अपने विवाह बिन दहेज के करेंगे। साथ ही घर परिवार और आसपड़ोस में दहेज़ प्रथा और ख़र्चीली शादी का विरोध करेंगे।

(सब मोमबत्ती को मशाल बनाकर यह संकल्प लेते है )

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

नारी का स्वाभिमान जगाना है

देश की आधी आबादी,
नारी है,
फिर भी अज्ञानता अभी भी,
कुछ पर भारी है,

कुछ प्रतिशत ही,
जाग्रत नारी हैं,
अधितर पर अभी भी,
पुरूष समाज ही भारी है।

सुप्तावस्था में पड़ी है कुछ नारी चेतना,
मोह में भटक रही है ये ईश्वर की श्रेष्ठ रचना,
स्वयं के अस्तित्व से हैं अंजान,
पुरूष को ही समझती हैं सर्वशक्तिमान।

कुछ तो चुपचाप सब सहती हैं,
किसी से कुछ नहीं कहती हैं
हर दर्द किस्मत समझ के सहती हैं,
क्यूंकि लड़की जन्म को अभिशाप समझती हैं।

जनजागृति और स्वाध्याय-सत्संग से,
इनकी चेतना जगाना होगा,
इन्हें स्वाभिमान के साथ,
जीवन जीना सिखाना होगा।

पार्टी में अल्कोहल को ना कैसे बोलें? स्वयं को उनसे प्रभावित होने से कैसे बचाएं?

*कॉरपोरेट पार्टी या विदेशों में रहने वाले भारतीयों के घर में या किसी हाई फाई सोसायटी में अल्कोहल को ना कैसे बोलें? स्वयं को उनसे प्रभावित होने से कैसे बचाएं?*

सेक्टर 17 में एक रिटायर्ड ऑफिसर के घर में किराए पर रहती थी, सन सिटी सेक्टर 54 में मेरा ऑफ़िस था। उनके घर किटी पार्टी के आयोजन हुआ। मुझे बुलाया गया, हतप्रभ सबके हाथ में व्हिस्की का ग्लास और तम्बोला पैसे वाला चल रहा था।

मेरी हमउम्र उनके बेटी के बच्चे थे जिनमे से एक तृप्ति मेरी ही कम्पनी में जॉब करती थी। उन्होंने मुझे पहले व्हिस्की सर्व की, मेरे मना करने पर बीयर सर्व कर दी। इसे मना करने पर जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया हो। सब मुझे इस गुनाह से उबारने और नशे का ज्ञान देने खेल रोक के पहुंच गए।

आंटी और अंकल बोले - देखो बेटा, तुम कॉरपोरेट में जॉब करती हो। ये सब तो करना पड़ेगा। हाई फाई सोसायटी और कॉरपोरेट की कोई पार्टी इसके बिना नहीं होती। यदि तुमने इसे नहीं पिया तो तुम जिंदगी के आनन्द को समझ नहीं पाओगी। तुम हाई फाई सोसायटी का हिस्सा न बन पाओगी। तुम्हें उनके कमेंट सुनकर शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी, लोग तुम्हेँ ओल्ड फ़ैशन, बहनजी टाइप बोलेंगे तो क्या तुम्हें अच्छा लगेगा? इसलिए हमारे साथ थोड़ा ट्राई करो ,मस्ती करो और जिंदगी का आनन्द लो।

मैंने सम्मान से कहा, यदि आप मेरी कुछ जिज्ञासा है उसे शांत कर दें,मेरे कुछ प्रश्नों का उत्तर दें तो उसके बाद सन्तुष्ट होने पर मैं इसे जरूर पियूंगी।

उन्होंने कहा पूंछो?

जो हम यह अल्कोहल लेंगे इसका आनन्द कितनी देर तक रहेगा? कुछ  क्षण या रात भर या कुछ दिन या जीवनभर?

*तृप्ति*- भला ये कैसा सवाल हुआ?  जहां तक मेरा अनुभव है जब तक नशा दिमाग़ में चढ़ा रहेगा तब तक एक झनझनाहट रहती हैं, मज़ा आता है।

*श्वेता* - ओके, तो नशा उतरने पर कैसा अनुभव होता है?

*तृप्ति* - हैंगओवर रहता है, कभी कभी सर में दर्द भी होता है।

*श्वेता* - कितने दिन से अल्कोहल ले रही हो?

*तृप्ति* - क़रीब 6 साल हो गए, इसके बिना तो हमारी कोई पार्टी ही नहीं होती।

*श्वेता* - मैं भी मस्ती करती हूँ, और आनंद लेती हूँ। लेकिन उसका नशा कभी उतरता नहीं और न ही हैंगओवर होता है। और न ही मुझे किसी को सम्हालने की जरूरत पड़ती है। यह आनन्द का तरीका बहुत पुराना है।

*तृप्ति* - ओके तो तुम भांग या गोली खाती हो?

*श्वेता* - नहीं, मैं मेडिटेशन करती हूँ। आनन्द दो प्रकार का होता है, एक धमाल आनंद जो उछल कूद और नशे से मिलता है। दूसरे प्रकार का आनंद शांत सुकून दायीं आनन्द होता है जो जप और मेडिटेशन से मिलता है। दिमाग़ में डोपामिन दोनों रिलीज़ करते हैं,

 *धमाल आनन्द- नशे* में डोपामिन अनियंत्रित रिलीज़ होते है और अति उत्तेजना में यह टूटते भी हैं, सिर्फ़ मन ख़ुश होता है और शरीर विशेष कर आंतो को नुकसान झेलना पड़ता है। शरीर पर दिमाग नियंत्रण ख़त्म हो जाता है। यह क्षणिक है।

*शांत आनन्द-मेडिटेशन* में डोपामिन नियंत्रित रिलीज़ होते हैं और आनन्द स्थायी होता है। पूरा शरीर मन के साथ आनन्दित होता है। शरीर पर दिमाग का पूर्ण नियंत्रण बना रहता है। यह स्थायी है।

मज़े और आनंद में फर्क है, इंसान मज़ा और मस्ती जो करने लगता है उसमें ढूढ़ लेता है। भक्त ईश्वर की भक्ति में मस्त रहता है, आतंकी आतंकवाद में मज़ा-मस्ती लेते है। कोई समाज सेवक दीन-दुखियों की पीड़ा दूर करने में मस्त है तो कोई दूसरों को पीड़ा देने में मस्त है।


*तृप्ति* - अरे यार तुमने तो मूड ख़राब कर दिया। पीना है तो पियो, नहीं तो रहने दो, पंडितो जैसे प्रवचन मत दो।

*श्वेता* - बहन प्लीज़ गुस्सा मत हो, तुमने अपने विचार रखे और मैंने अपने। कॉरपोरेट में मुझे सैलरी और प्रमोशन काम करने पर मिलेगें न कि ड्रिंक करने के लिए मिलेगा।

मेरे गुरुदेव कहते हैं, व्यसन से बचाओ और सृजन में लगाओ।

आधुनिकताक की ग़लत परिभाषा और पाश्चात्य का अंधानुकरण शराब से और कपड़ो से आधुनिकता और हाई-फाई सोसायटी की गारंटी देता है।

लेकिन हमारे देश के ही विवेकानंद जी ने विदेशियों को जवाब देते हुए कहा था कि पश्चमी देशों में दर्जी और शराब का ग्लास स्टेटस बताता है, हमारे देश में व्यक्ति की पहचान और स्टैट्स उसके गुण-कर्म-स्वभाव और ज्ञान से मिलती है।

नशे में बहकते क़दम जब स्वयं का शरीर नहीं सम्हाल सकते, तो फिर परिवार, समाज और राष्ट्र भला कैसे सम्हलेंगे।

पहले आप हमारे आनंद की तरकीब आधे घण्टे मेडिटेशन try कीजिये, तब हम भी व्हिस्की try करेंगें।

तृप्ति को कुछ उत्तर देते न बना, और वहां से उठ कर चली गयी।

कुछ दिनों बाद, धीरे धीरे मेरी तृप्ति से मेरी दोस्ती हुई। युगऋषि का साहित्य वो पढ़ने लगी। अभी वो शादी के बाद अमेरिका में है लेकिन नशा नहीं करती। उपासना-साधना-आराधना में अब तृप्त है।

*बुरे लोगों के समूह में बुराई का अनुपात स्टेटस बताता है कि कौन कितना बड़ा डॉन है? इसी तरह अच्छे लोगों के समूह में अच्छाई का अनुपात स्टेटस बताता है कि कौन कितना ज्यादा लोकसेवा कर रहा है? बुरे के समूह में एक अच्छे व्यक्ति का दम घुटता है और अच्छे लोगों के समूह में एक बुरे व्यक्ति का दम घुटता है।*

विवेकानंद की तरह निर्भीक, स्वाभिमानी और आनंदमय रहें और किसी भी सामाजिक बुराई का विरोध करें। नशे का विरोध करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 29 January 2018

भारतीय युवाओं को व्यसनी बनाने का सुनियोजित षड्यंत्र, इसे समझें स्वयं को और स्वजनों को बचाएं

*भारतीय युवाओं को व्यसनी बनाने का सुनियोजित षड्यंत्र, इसे समझें स्वयं को और स्वजनों को बचाएं*

भारतीय युवा देश आज़ाद होते ही  देश विदेशों में अपने ज्ञान और बुद्धिबल का लोहा मनवाते हुए उच्च पदों पर आसीन हो रहे थे।

इससे विश्व चिंतित था कि बिन हथियार और एक रुपये ख़र्च किये भारत देश ने ज्ञानबल से चीन, जापान, श्रीलंका इत्यादि देशों में अपना वर्चस्व फ़ैलाया था। अब अध्यात्म के साथ यदि टेक्नोलॉजी और चिकित्सा में भारत का वर्चस्व हो गया तो पूरा विश्व भारत के आगे नतमस्तक हो जाएगा। और सबसे बड़ी आबादी वाला यह देश युवा भी है, 65% युवा है यहां।

तो युवाओं को भ्रमित और लक्ष्य से भटकाने के लिए कुछ सुनियोजित योजना बनाई गई:-

1- युवाओं को भ्रमित और भ्रष्टाचार में लिप्त करने हेतु टीवी, फ़िल्म, विज्ञापन इत्यादि में माफ़िया के माध्यम से इन्वेस्ट किया गया। इसमें बताया गया कि मौज-मस्ती युवाओं को करना चाहिए। शराब और सेक्स को मार्केट किया गया। जिस देश मे चरित्र को सबकुछ माना जाता है, उस देश में लिव इन रिलेशनशिप, विवाह पूर्व मां बनना जैसी समस्याओं को उतपन्न किया गया।

2- जिस देश मे ईष्ट उपासना(जप और ध्यान)-साधना(स्वाध्याय-सत्संग) उनके चरित्र को गढ़ती थी। इसलिए कई फ़िल्म और सीरियल के ज़रिए उन्हें धर्म को पाखण्ड बता करके दैनिक उपासना से वंचित कर दिया गया। चरित्रहीन और व्यसनी युवा की फ़ौज से भारत के DNAको ही खराब करने की योजना रच दी गयी।

3- भारत देश सेवा प्रधान था, यहां अतिथि देवो भव का भाव था , संयुक्त परिवार परम्परा थी। विभिन्न  सँस्कार गर्भ से मृत्यु तक थे। इस पर भी फ़िल्म, टीवी और विज्ञापन एजेंसी ने कुठाराघात कर, एकल परिवार और स्वार्थ केंद्रित दृष्टिकोण  गढ़ा गया।

4- करीब करीब प्रत्येक फ़िल्मों में रेप की घटना गढ़ी गयी। प्रत्येक युवा लड़के को वहसी और चरित्र हीन बताया गया। लड़की-लड़कों के वासनात्मक भाव को जगाने हेतु तरह तरह के गाने रचे गए। मेरी बातों पर न विश्वास हो तो गूगल से गानों की लिस्ट निकाले और ऐसे गाने छांटने की कोशिश करें जिसमें लड़की और शराब ये दो बातें न हों। स्वयं पता चल जाएगा। साथ ही देश मे बढ़ती रेप की घटनाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। आजकल तो बच्चे हो या टीचर दोनों ही सुरक्षित नहीं।

5- सन 2005 तक भारत मे सभी विदेशों की यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी नेट पर उपलब्ध थी। कि किस देश पर कहाँ क्या रिसर्च चल रहा है, लेकिन इसे भी विदेशियों ने बन्द कर दिया।

6- लेकिन इन सब के बाबजूद सिर्फ़ बड़े घर के और उच्च मध्यमवर्गीय लड़के ही बिगड़े। तो विदेशियों ने युवाओं को पुनः भटकाने हेतु स्कूल कॉलेज को निशाना बनाया, ड्रग्स को स्कूल-कॉलेज में उपलब्ध करवाया। जिससे अधिक तेज़ी से युवाओं को नशे में धकेला जा सके और कमाई भी हो सके।

 7- whatsapp, facebook, Instagram जैसे शोशल मीडिया के माध्यम मुफ़्त उपलब्ध करवाए गए, विभिन्न प्रकार के वीडियो गेम इत्यादि उपलब्ध करवाए। नए नए मॉल में बार, पार्टी स्थल को रंगीन बनाया गया। कुछ भी करके येन केन प्रकारेण भारतीय युवाओं को ज्ञान की खोज से वंचित रखा जा सके । स्त्रियों को लुभावने टीवी सीरियल से बांध दिया ताकि वो अच्छी पुस्तको के स्वाध्याय और उपासना-साधना से वंचित हो जाये। तरह तरह के भौंडे फैशन में लिप्त कर दिया।

8- जब अज्ञानग्रस्त माता-पिता बच्चो को जन्म देंगें तो महान बच्चे जन्मने और गढ़ने की संभावना ही समाप्त हो जाएगी। टीवी सीरियल और फ़ैशन में लिप्त माता और नशे में डूबा अस्त व्यस्त दिमाग का पिता होगा तो विवेकानन्द, शिवाजी, भगतसिंह, बुद्ध इत्यादि श्रेष्ठ सन्तानों का उत्पादन ही बंद हो जाएगा।

9- निगेटिव रोल, आतंकवादी और डॉन के क़िरदार उन एक्टर से करवाया गया जो जन लोक प्रिय थे। जिससे आतंक को युवा आदर्श बना सके।

10- राजनीति में भी आतंकियों ने इन्वेस्ट किया, जातिवाद की, आरक्षण को पुनः लाइम लाइट में लाकर दंगे करवाये। जिससे युवा अपनी योग्यता न बढ़ाए और आरक्षण से अयोग्य होते हुये भी जॉब पाएं। योग्य उम्मीदवार हताश हो जाये। उनमें कुंठा भर जाए। देश की सम्पत्ति को भारी नुकसान आरक्षण के नाम पर देशवासियों से नुकसान करवाया।

*युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी इस सुनियोजित प्लान को जानते थे, अतः इस षड्यंत्र से युवाओं को मुक्त करने का उन्होंने बेड़ा उठाया।*

युवाओं को उपासना-साधना-ध्यान-योग-प्राणायाम से जोड़कर शारिरिक-मानसिक-आध्यात्मिक-सामाजिक-पारिवारिक स्वास्थ्य सम्वर्धन दिया, साथ ही उनमें अंतर्दृष्टि विकसित की, उनका सही दृष्टिकोण विकसित किया, जिससे सही गलत का अंतर समझ सकें, स्व निर्माण और स्व सुधार कर के राष्ट्र निर्माण कर सके। देश को विश्वगुरु बना सके। यज्ञ आयोजन से सूक्ष्म संशोधित किया गया।

*युगऋषि ने युवा जनजागृति नारा दिया*....
स्वस्थ्य युवा-सशक्त राष्ट्र,
शालीन युवा- श्रेष्ठ राष्ट्र,
स्वावलंबी युवा- समृद्ध राष्ट्र,
 सेवाभावी युवा- सुखी राष्ट्र

*युगऋषि ने युवा कर्तव्यबोध हेतु नारा दिया*...

व्यसन से बचाएं- सृजन में लगाएं

जन्म जहां पर - हमने पाया
वस्त्र जहां का - हमने पहना
ज्ञान जहां से- हमने पाया
अन्न जहां का- हमने खाया
वह है प्यारा - देश हमारा
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे हम करेंगे
देश के खातिर कौन जियेगा- हम जिएंगे हम जिएंगे
देश का निर्माण कैसे होगा - व्यक्ति के निर्माण से
इत्यादि.....

युगनिर्माण योजना और विचारक्रांति अभियान का शंखनाद किया।

साथ ही 3200 युगसाहित्य रचा और आत्मबोध हेतु ऑनलाइन मुफ़्त पढ़ने हेतु उपलब्ध करवाया।

http://www.vicharkrantibooks.org

http://literature.awgp.org

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

एक विनम्र अनुरोध प्रत्येक विद्यार्थी,  युवा, शिक्षक और माता-पिता तक यह सन्देश पहुंचा दें, राष्ट्र को पुनः विश्वगुरु बनाने के लिए सब संगठित हो जाएँ।

Sunday, 28 January 2018

युगऋषि जीवन प्रदर्शनी नागपुर

*नागपुर में कुछ भाई बहनों को मैंने गुरुदेव कि जीवन प्रदर्शनी विजिट करवाई थी, उसके दौरान उनके प्रश्नों का उत्तर दिया था इसे यूट्यूब   अपलोड 4 भागों में किया है*

पार्ट 1 https://youtu.be/T_J4hGKgoRc

पार्ट 2 https://youtu.be/LpAi2gw2nGY

पार्ट 3 https://youtu.be/5vHbVqLuSeA

पार्ट 4 https://youtu.be/2We40kyj3Tw

पढ़ने में भी मन नहीं लगता

काउंसलिंग-

🤔🙄Q1:     MERA KUCH BHI MAAN NAHI LAGTA?( *मेरा कुछ भी करने में मन नहीं लगता, पढ़ने में भी मन नहीं लगता*)

👉🏽 मन उदास है,क्यूंकि जीवन लक्ष्य, मंजिल का चुनाव नहीं हो पाया है। रास्ते के गड्ढे और रास्ते की अड़चन उसे परेशान करती हैं,जो बेमन लक्ष्यविहीन यात्रा करते हैं।

एक भक्त जब भगवान से मिलन हेतु निकलता है, हिमालय की दुर्गम पहाड़ियां और रास्ते, जंगल का कठिन वातावरण उसे भयभीत नहीं कर पाता। क्यूँकि उसका चित्त ईश्वर के मिलन को केंद्रित होता है। उस मिलन की कल्पना उसे आनन्द से भर देती है।

एक प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से मिलने जब निकलते हैं,  तो रास्ते मे आग का दरिया हो तो भी पार कर लेते हैं। क्यूंकि अर्जुन की तरह उनकी दृष्टि अपने लक्ष्य प्रेम पर होती है।उस मिलन की कल्पना उसे आनन्द से भर देती है।

जब विद्यार्थी एक लक्ष्य का चुनाव करने में सफल होता है, कि मुझे कुछ बनना है। कुछ अलग करना है। मुझे इन करोड़ों इंसानों के बीच एक अपनी अलग पहचान बनानी है। लोग मुझे मेरे नाम से जाने। मेरे मरने के बाद भी मेरा नाम लोग याद करें। जब कुछ इस तरह का भाव और कल्पना विद्यार्थी करता है, उस कल्पना को करके आनन्द की अनुभूति करता है। जैसे कॉमर्स चुना तो, चाणक्य की तरह देश की अर्थव्यवस्था को बेस्ट बनाने के लिए कुछ करूँगा। भ्रष्टाचार मिटा दूंगा। कुछ ऐसा मेथड डेवलप करूंगा कि मेरे देश की अर्थव्यवस्था  दुनियां में सर्वश्रेष्ठ हो जाये।

या मैं वकील बनूँगा, कानून की उन बारीक़ विधाओं में एक्सपर्ट बनूँगा, कि जो केस मेरे पास आये उसमें विजय सुनिश्चित हो। विश्व मे जाना माना वकील बनूँगा।

या मैं डॉक्टर बनूँगा, ऐसा सिस्टम बनाऊंगा कि चिकित्सा सस्ती और बेहतर बने, देश का सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक बनूँगा। या देश का सर्वश्रेष्ठ साइंटिस्ट बनूँगा या सफ़ल व्यवसायी बनूँगा।

जो भी बनूँगा, बेस्ट बनूँगा। ये पुस्तकें मेरे जीवन लक्ष्य का मार्ग है इनसे गुज़र कर मंजिल तक पहुंचूंगा।

यदि खिलाड़ी बनूँगा, तो देश को गोल्ड मेडल से भर दूंगा, ये कठिन परिश्रम मेरे लक्ष्य का मार्ग है, बिना कठिन दर्द सहे मेरी माँ मुझे जन्म नहीं दे सकी तो, सफ़लता को जन्म देने हेतु सदबुद्धि से प्लान करके कठिन परिश्रम से लक्ष्य तक पहुंचूंगा।

बिना लक्ष्य मोटिवेशन नहीं मिलेगा और फोकस भी नहीं आएगा।अतः लक्ष्य निर्धारण सबसे जरूरी है।

🤔🙄Q2:      KAISA KARUNGI?( *कैसे करूँगी यह सब प्लान और उस पर अमल?*)

👉🏽यदि लक्ष्य क्लियर है तो बड़े लक्ष्य के छोटे छोटे मॉड्यूल बनाने पड़ेंगे। उन छोटे छोटे मॉड्यूल के भी स्टेप्स बनाने पड़ेंगे।

जैसे किसी को खिलाड़ी बनना है?
तो पहले उस खेल की बारीकी समझ के, उसके लिए स्वयं को तैयार करना। पहले अपने स्कूल में चैंपियन बनें, फिर शहर , फिर राज्य, फिर देश, फिर दुनियां में बेस्ट बनने की प्लानिंग कर क्रमशः सरल से कठिन और कठिनतम मेहनत बुद्धि लेवल पर और शरीर लेवल पर करें।

यदि पढ़कर कुछ बनना है। तो उस सब्जेक्ट की बारीकी समझें कि यह सब्जेक्ट पढ़कर क्या हासिल करने जा रहे हैं। यह विषय बनाया क्यों गया। इसका फ़ायदा एनालिसिस करें। फ़िर क्रमशः वर्तमान क्लास के एग्जाम के दिन को नोट कर लें। जितने सब्जेक्ट हैं उन्हें यदि एग्जाम में 100 दिन शेष हैं, तो स्वयं के लिए मात्र 50 दिन माने। पहले पुस्तक के इंडेक्स को पढ़े कि इसमें क्या क्या है। फिर पिछले 7 वर्षों के प्रश्न पत्र बैंक उठा लें। औऱ उस प्रश्न बैंक को कम से कम 10 बार पढ़ें केवल प्रश्न। अब कॉमन प्रश्न जो पिछले 7 वर्षों के छाँट ले। प्रश्न पत्र के पैटर्न समझें कि किस तरह के प्रश्न आते हैं। फ़िर उन सभी पांच वर्षों के प्रश्नों को याद करके उनके उत्तर नोट कर लें। पढ़ लें। ये सोच के पढ़ाई करें कि स्वयं के कोचिंग टीचर आप स्वयँ ही हैं। क्यूंकि प्रश्न बैंक पिछले 7 वर्ष के आपको आइडिया दे देगा कि वास्तव में एग्जाम में होगा क्या आपका दिमाग चुम्बक/मैगनेट बनके उन प्रश्नों के उत्तर आपके दिमाग में फीड कर देगा।

समय को पहले पकड़ा जा सकता है बाद में नहीं। सुबह 3 से 6 बजे के बीच पौधा बढ़ता है और इंसान का दिमाग़ भी बढ़ता है। जो बच्चा 5 बार गायत्री मंत्र पढ़कर इस समय पढ़ने में उपयोग करता है वो कम समय मे ज्यादा पढ़ सकता हैं। रात को जल्दी सोएं।


🙄🤔Q3:      KYA BANU ( *क्या बनूँ? मेरे जीवन का लक्ष्य क्या होगा? मैं कुछ क्यों बनूँ?* )

👉🏽देखो बच्चे लक्ष्य दो तरह से निर्धारित होता है, या तो स्वयं के लिए लक्ष्य चुन लो या स्वयं पर विश्वास न हो तो माता पिता के सुझाये लक्ष्य को अपना 100% प्रयास दे दो।

यदि ख़ुद का जीवन लक्ष्य चुनना है, स्वयं की लाइफ़ किक चाहिए तो स्वयं के भीतर उतरना होगा। कम से कम 3 महीने रोज आधे घण्टे ध्यान करना होगा। पूजा स्थल पर करो या सोफासेट पर बैठ के, कहीं भी कर सकते हो। जो भगवान पसन्द हों उनसे जीवन लक्ष्य ढूंढने में मदद मांगो, 15 मिनट गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए मन ही मन जपो। अब बिना मन्त्र जपे शांत चित्त से फोन और टीवी बन्द करके, आती जाती श्वांस को बिल्डिंग के चौकीदार जैसे गाड़ियों पर नज़र रखता है वैसे ही आपको अपनी श्वांस पर नज़र रखना है।

इसके बाद एक पेन पेपर पर रोज़ 10 चीज़े लिखो जिसे करने पर आप ख़ुश होते हो, और 10 चीज़े वो लिखो जिसे करने पर आप दुःखी होते हो।

आधे घण्टे का यह नियमित क्रम तीन महीने में आपके भीतर जमे सभी कचरे को साफ करके अंतर्दृष्टि दृष्टि देगा। आप जान जाएंगे कि वास्तव में आप क्या बनना चाहते हैं?, और क्यूँ चाहते हैं?, और लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्लान कैसे बनाओगे?

एक बात याद रखो, सफ़लता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। बल्कि सफ़लता के लिए स्मार्ट और प्रॉपर प्लानिंग(Smart & Proper Planning), एक्सीक्यूशन(Execution) और हार्ड वर्क(Hard Work) की जरूरत होती है।

एक बात और, कोई माता पिता अपने बच्चे को घर मकान और बना बनाया व्यवसाय वसीयत में दे सकते हैं, लेकिन ज्ञान की विरासत (Skill Set) योग्यता पात्रता वो दान नहीं दे सकते, मार्गदर्शन वो कर सकते हैं कोच की भूमिका निभा सकते है, लेकिन ज्ञानार्जन, योग्यता पात्रता बच्चे को स्वयं अर्जित करनी पड़ती है।

***********
युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी अपनी पुस्तक 📚 *जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति* कहते हैं:-

मनुष्य जीवन का अमूल्य यात्रा-पथ :- मनुष्य परमात्मा की अलौकिक कृति है । वह विश्वम्भर परमात्म देव की महान रचना है । जीवात्मा अपनी यात्रा का अधिकांश भाग मनुष्य शरीर में ही पूरा करता है । अन्य योनियों से इसमें उसे सुविधाएं भी अधिक मिली हुई होती हैं । यह जीवन अत्यंत सुविधाजनक है । सारी सुविधाएं और अनन्त शक्तियां यहां आकर केन्द्रित हो गई हैं ताकि मनुष्य को यह शिकायत न रहे कि परमात्माने उसे किसी प्रकार की सुविधा और सावधानी से वंचित रखा है । ऐसी अमूल्य मानव देह पाकर भी जो अंधकार में ही डूबता उतराता रहे उसे भाग्यहीन न कहें तो और क्या कहा जा सकता है ? आत्मज्ञान से विमुख होकर इस मनुष्य जीवन में भी जड़योनियों की तरह काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि की कैद में पड़े रहना सचमुच बड़े दुर्भाग्य की बात है । किंतु इतना होने पर भी मनुष्य को दोष देने का जी नहीं करता, बुराई में नहीं वह तो अपने स्वाभाविक रूप में सत्, चित् एवं आनंदमय ही है । शिशु के रूप में वह बिल्कुल अपनी इसी मूल प्रकृति को लेकर जन्म लेता है किंतु मातापिता की असावधानी, हानिकारक शिक्षा, बुरी संगति, विषैले वातावरण तथा दुर्दशाग्रस्त समाज की चपेट में आकर वह अपनेउद्देश्य से भटक जाता है । तुच्छ प्राणी का सा अविवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगता है ।

इस पुस्तक को निम्नलिखित लिंक पर फ्री पढ़े-
http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Jivan_Lakshy_Aur_Usaki_Prapti_Hindi

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Wednesday, 24 January 2018

महिला सशक्तिकरण अभियान*

*महिला सशक्तिकरण अभियान*

एक समाजसेवी सन्गठन में मीटिंग हुई, चर्चा का विषय था कि हम लोग महिलाशशक्तिरण के लिए कुछ करना चाहते हैं।

*रवि* - मेरे ख़्याल से स्वावलम्बन उद्योग महिलाओं के लिए शुरू करते हैं।

*सुनीता* - स्कूल की लड़कियों को आत्मरक्षा के गुण सिखाते हैं।

*मनीत* - महिलाओ को कानून का ज्ञान देते हैं, कि किन कानून और अधिकार उनके पास है।

*शिखा* - उन्हें बैंक, स्कूल और बाहर के काम सिखाते हैं।

*तृप्ति* - उनके लिए लोकल महिला आयोग बनाते हैं जहाँ उनकी समस्या का समाधान उन्हें बताते है। जरूरतमंद महिलाओं की मदद करते हैं।

*ईषना* - आप सबके सुझाव अच्छे हैं, और जरूरी भी है, लेकिन ये बीमारी के बाद की मरहम पट्टी वाले उपचार है।

*प्रज्ञा* - मैं ईषना से सहमत हूँ, जिस प्रकार इन उपायों की पुरुष समाज को जरूरत नहीं पड़ती। वैसा ही कुछ स्त्री के लिए होना चाहिए जिससे वो स्वयं को पुरूष के समान ही महत्त्वपूर्ण समझे।

*ऋत्विज* - मैंने गायत्री परिवार की छपी कुछ पुस्तकें पढ़ी हैं। जिनमें भगवती देवी शर्मा ने लिखा है, भूलवश मानव आर्थिक संपन्नता या कमाने की योग्यता को नारी जागरण समझता है। ये आंशिक जागरण है।

*ईषना* - जिस प्रकार अस्पताल जरूरी हैं, वैसे ही आप सबके सुझाव अनुसार कार्य जरूरी है। लोग रोगी न हों और इम्युनिटी बढ़े इसके प्रयास पहले जरूरी हैं।

 लेकिन जैसा की माता भगवती और युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कहा है, स्त्रियों में आत्मविश्वास जगाना पहले ज़रूरी है।

यदि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी है तो घर से बाहर जाकर कमाने की आवश्यकता नहीं है।

घर सम्हालना और बच्चों की परवरिश किसी बड़ी जॉब से कम नहीँ है।

लेकिन स्त्री घर सम्हालने की जॉब करे या बाहर करे, उसे स्वयं पर पूर्ण विस्वास होना चाहिए। स्वयं के स्त्री शरीर और स्त्री की पहचान पर गर्व होना चाहिए।

तो स्त्री को विचारक्रांति-जनजागृति द्वारा पहले उसके अस्तित्व से पहचान और आत्मविश्वास जगाने की आवश्यकता है।

*प्रज्ञा* - स्त्रियों को संगठित करने और उनके सन्गठन की आवश्यकता है, जिनमें वो सप्ताह में कम से कम से कम एक बार मिले। स्वाध्याय सत्संग के साथ एक दूसरे को मोटिवेट करें। अपने अपने हुनर की पहचान कर उसे आगे बढ़ाएं। सन्गठन की प्रबुद्ध पढ़ी लिखी स्त्रियां या बाहर से किसी को बुलाकर वर्तमान चुनौतियों का कैसे सामना करें उन्हें सिखाये।

*ऋत्विज* - वो आत्मनिर्भर बने,इसके लिए बैंक के कार्य, स्कूल के कार्य इत्यादि सिखाये।

*तृप्ति* - उन्हें कानून और अधिकार का ज्ञान दें, ताकि कोई उन्हें धोखा न दे पाये।

*रवि* - स्वरोजगार के अवसर तलाश कर उनकी मदद करना होगा जो ये करना चाहें।

*प्रज्ञा* - घर के बच्चों के सामने भाइयों को अपनी पत्नी को कुछ भी ऊंची आवाज में कहने से मना करना है। जिससे बच्चे मां की पिता के समान इज्जत करें। एक दूसरे के कार्य क्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें।

एकांत में पति-पत्नी डिसकस करें।

*ईषना* - महिलाएं अपने बच्चों को अच्छे संस्कार गर्भ से ही प्रदान करें। क्योंकि मां का प्रभाव ज्यादा होता है। माँ के विचार और मानसिकता वो सांचा हैं जिनमें देश के भविष्य गढ़े जाते हैं। ये हमारी आधी आबादी है, इनके एक्टिव पार्टिसिपेशन के बिना देश का विकास असम्भव है।

*ईषना* -एक काम करते हैं, शांतिकुंज में महिलाशशक्तिरण की वर्कशॉप फ्री है।मैं शिविर विभाग मे बात कर उनका अपॉइन्मेंट ले लेती हूँ। या तो हम लोग वहां चलते हैं, या उनको यहां बुलाकर ट्रेनिंग लेते हैं। और इस अभियान को व्यवस्थित तरीके से गति देते हैं।

(हां, ये सही रहेगा। इस अभियान को जड़ से समझकर इस पर व्यवस्थित काम करते हैं। तृप्ति ने ईषना से कहा, धन्यवाद ईषना मुझे सचमुच बहुत अच्छा लगा तुम्हारी बाते सुनकर। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि आपसब इस नेक कार्य के सहयोगी हैं)

युग सृजन का संकल्प लेकर, प्रज्ञावतार धरा पर आए,

युग सृजन का संकल्प लेकर,
प्रज्ञावतार धरा पर आए,
भाव सम्वेदना का कमण्डल लेकर,
मां सजल श्रद्धा साथ आईं।

विकृत चिंतन से उपजी समस्या को,
सद्चिन्तन दे दूर भगाया,
स्वार्थ पूरित दुश्चिंतन को,
परमार्थ भाव से पूर्ण मिटाया।

ज्ञानयज्ञ की लाल मशाल,
घर घर में अंधकार मिटाए,
नंन्हे नंन्हे सृजन सैनिक,
सर्वत्र दीप बन जगमगाये।

विचारक्रांति की नींव पर,
युगनिर्माण की योजना बनाई,
युगसाहित्य विस्तार से,
सोई जन चेतना जगाई।

हे महाकाल! हे आद्यशक्ति,
तुम ही ऋषि युग्म बन धरा पर आए,
तीनों लोकों को शोकमुक्त करने,
मानव रूप में लीला रचाये।

धन्य धन्य हैं भाग्य हमारे,
साक्षात महाकाल गुरु हमारे,
शिव शक्ति के रूप में,
नित दर्शन होते हमें तुम्हारे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

नारी सशक्तिकरण* जीवन शक्ति से भरपूर नारी है,

*नारी सशक्तिकरण*

जीवन शक्ति से भरपूर नारी है,
सृजन शक्ति से भरपूर नारी है,
शक्ति साधना से सम्पन्न नारी है,
दिव्य विभूतियों से भरपूर नारी है।

इस सत्य से अंजान जो नारी है,
वही लाचार और बेबस बेचारी है,
इस सत्य का भान जिस नारी को है,
वो ही लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा भवानी है।

महिलाशशक्तिकरण अभियान में,
बस जाम्बवान और नारद की भूमिका निभानी है,
उनकी भूली पहचान बतानी है,
नारियों की सोई चेतना जगानी है।

आत्मबल से भरी हर नारी में,
आद्यशक्ति दुर्गा भवानी है,
घर-बाहर सर्वत्र सम्हलना जानती है,
वो घर की अन्नपूर्णा महारानी है।

इन्हें आगे बढ़ने का समान अवसर दो,
इन्हें भीख नहीं बराबर सम्मान दो,
विश्व की आधी आबादी हैं ये,
घर-संसार के कल्याण को राजी हैं ये।

इन्हें समान अवसर दो,
नारी शक्ति का जागरण करो,
इनको इनके वजूद से मिलवा दो,
इनमें आत्मविश्वास जागृत करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

ज्ञानामृत के सेल्समैन

*ज्ञानामृत के सेल्समैन*

ऋत्विज और ईषना साहित्य प्रदर्शनी में लोगों को युगसाहित्य विस्तार के लिये साहित्य पढ़ने हेतु प्रेरित कर रहे थे।

वहां एक नोएडा के पुस्तक भंडार के मालिक बड़े गौर से उन्हें देख रहे थे।वो साहित्य स्टाल में आये, साहित्य की कीमत देखकर और उन दोनों से बोला,

*पुस्तक भंडार के मालिक* - बेटे इतने सस्ते साहित्य में कोई मार्जिन नहीं है, तुम लोगों की कोई कमाई नहीं होगी। मेरा पुस्तक भंडार है, तुम दोनों युवाओं की आत्मीयता से भरी कस्टमर हैंडलिंग और पर्सनालिटी से मैं बहुत प्रभावित हूँ। तुम लोग मेरे यहाँ काम करो, अच्छी सैलरी दूँगा।

*ऋत्विज ने कहा* - सर जॉब ऑफर के लिए धन्यवाद, लेकिन हमें जो सैलरी मिलती है वो आप नहीं दे पाएंगे।

*ईषना ने कहा* - सर पहले तो धन्यवाद,कि आपने हमारे कार्य को सराहा। लेकिन मैं आपकी शंका के समाधान हेतु आपसे एक प्रश्न पूंछना चाहती हूँ। क्या आप कभी गंगाजल हरिद्वार से लाये हैं नए कैन/बॉटल में, तो आप किसकी कीमत अदा करते हैं? गंगा जल की या कैन/बॉटल की?

*पुस्तक भंडार मालिक* - बोतल खरीदता हूँ, गंगा जल कोई कैसे ख़रीद सकता है, वो तो अमृत है। साक्षात मां गंगा है।

*ईषना* - जी सर इसी तरह, यह ज्ञानामृत है, जो इस युग के ऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने कठोर तप से, 24 वर्षों तक 24 लाख के गायत्री मंत्र अनुष्ठान करके , कई वर्षों तक हिमालय में कठोर तप करके, इस ज्ञानामृत को धरती पर विचारक्रांति द्वारा युग की पीड़ा और पतन निवारण के लिए इन पुस्तक रूपी बोतलों में भरा है। तो ये ज्ञानामृत अनमोल है, जो मूल्य आप इसमें देख रहे हैं, वो इन पुस्तक रूपी बोतलों का प्रिंटिंग मूल्य-खर्च है।

*ऋत्विज* - हम युवाओं को पुण्य रूपी सैलरी मिलती है, जो भौतिक कागज के टुकड़े नहीं है। यह वो धन है जो इस जन्म में भी काम आएगा और अगले जन्म में भी। क्यूंकि टूटते मन और बिखरते रिश्तों की यह अनमोल दवा है।

*ईषना* - सर, आज की समस्त समस्याओं का समाधान इन साहित्यों में है। स्कूली शिक्षा इंसान में इंसानियत नहीं सिखाती, मन का प्रबंधन नहीं सिखाती, परिवार प्रबंधन और समाज प्रबंधन नहीं सिखाती। इसलिए तो भौतिकवादी दृष्टिकोण ने दिल्ली एनसीआर और समस्त विश्व को वायु प्रदूषण के संकट में डाल दिया है।

*ऋत्विज* - सर, हम अपनी नई पीढ़ी को पैसे खर्च करके भी शुद्ध जल, शुद्ध वायु , शुद्ध पर्यावरण, शुद्ध अन्न औऱ फल खाने को नहीँ दे सकते। तनावमुक्त जिंदगी नहीं दे सकते।

हमारे जैसे कई सारे युवा विश्वभर में साहित्यि स्टाल के माध्यम से लोगों को समस्याओं के समाधान दे रहे हैं जो कि अनमोल है।

सर पैसों से हम कुछ को भोजन करा सकते हैं लेकिन उनके अंदर की भिक्षावृत्ति विचारक्रांति से मिटेगी।अपनी कमियों को दूर कर के, खुद कमाने का संकल्प विचारक्रांति से उभरेगा।

टूटते मन और बिखरते रिश्ते स्व जागरण से ही सम्हलेंगे।

देश समाज के लिए कुछ कर गुजरने का भाव, प्रकृति संरक्षण का भाव विचारक्रांति से ही उभरेगा।

*पुस्तक भंडार के मालिक* - सचमें, तुम दोनों से मिलकर मैं बहुत प्रभावित हूँ।मुझे कुछ छोटी पुस्तक बताओ जिससे इस अभियान को मैं भी समझ सकूं।

*ईषना* - कृपया अपना इंटरेस्ट बताइये कि आप किस प्रश्न का समाधान पहले चाहते हैं?

*पुस्तक भण्डार मालिक* - बेटे मैंने विभिन्न लेखकों की पुस्तक पढ़ी है , लेकिन मैं अभी भी कुछ ढूंढ रहा हूँ जो मुझे मिल नहीं रहा। एक प्रश्न है कि एक ही भगवान की पूजा के बाद भी सबके मनोभाव अलग क्यूँ होते हैं?

*ईषना* - सर , आप *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार*, *दृष्टिकोण ठीक रखें*, *मैं क्या हूँ*? और *ईश्वर कौन है कहाँ है और कैसा है?* ये चार पुस्तक ले जाइए। ये पम्पलेट भी लीजिए इनमें अन्य पुस्तक की जानकारी और हमारे केंद्रों के अड्र्स हैं। साथ ही ऑनलाइन वेबसाइट की लिंक है।

हमें पूरी उम्मीद है, कि इन पुस्तकों के अध्ययन से अध्यात्म सम्बन्धी जिज्ञासा का समाधान मिलेगा।

*पुस्तक भंडार के मालिक की पत्नी* - बच्चों तुम लोग इतनी छोटी उम्र में बहुत नेक कार्य कर रहे हो। मुझे ज्यादा पढ़ने का शौक नहीं है। केवल एक पुस्तक ऐसी बताओ जो गुरु क्यों आवश्यक है? इसका समाधान कर सके।

*ऋत्विज* - गुरुगीता की पुस्तक देते हुए बोला, आंटी इसमें एक अध्याय आप रोज पढ़ें। पढ़ने से पूर्व 5 या 24 बार गायत्री मंत्र पढ़कर प्रार्थना करें, कि हे गुरुचेतना मेरे अंदर अवतरित हो। पूजन स्थल पर पढ़ सकें तो अच्छा होगा नहीं तो सोफासेट मे भी बैठ के पढ़ लें। उम्मीद है गुरु से सम्बन्धी समाधान आपको मिलेगा।

(दोनों बच्चों को आशीर्वाद देते हुए वो लोग चले गए। ईषना और ऋत्विज जैसे अनेकों गुरुदेव के बच्चे ज्ञानमृत के सेल्समैन बनके स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।)

किसी ने क्या खूब कहा है...
दुनिया की तुम छोड़ दो,बदल लो अपनी सोच,
चलने ही  देता नहीं, अपने पैर की  मोच,
आगे बढ़ने ही नहीं देता, इंसान की छोटी सोच,
आनंद को बाहर नहीं, हे इंसान भीतर खोज़...

Tuesday, 23 January 2018

इस देश का कुछ तो हो सकता है* - यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो.... कृपया आर्टिकल पूरा पढ़ें...

*इस देश का कुछ तो हो सकता है* - यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो.... कृपया आर्टिकल पूरा पढ़ें...

ऑफिस में कैफेटेरिया में चाय की चुश्कियाँ लेते हुए, देश दुनियाँ की बाते शुरू हुई। सबने बताया कि सरकार को क्या करना चाहिए और क्या नहीं, कितनी सारी समस्याएं हैं इत्यादि इत्यादि, और अंत मे मोहन बोला इस देश का तो कुछ नहीं हो सकता। ईषना को छोड़कर सबने हां में हां मिलाई। व्यंग्यात्मक चुटकियां लेते हुए रवि बोला -

*रवि* - क्या हुआ ईषना तुम क्या सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही हो, जो चुप हो। क्या तुम हमसे सहमत नहीं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता।😊😊😊

*ईषना* - भाइयों-बहनों, इस देश का कुछ तो हो सकता है यदि हम सब चाहे तो...

*रवि* - तुम कहना क्या चाहती हो? साफ साफ बोलो..

*ईषना* - देखो...हमलोग यदि गौर करे तो पिछले 15-20 मिनट की चर्चा में हम सबने यह बताया कि सरकार को देश के विकास के लिए क्या करना चाहिए...इसको क्या करना चाहिए...उसको क्या करना चाहिए...लेकिन किसी ने इस बात पर चर्चा नहीं की कि हमें स्वयं देश के समाज के उद्धार के लिए क्या करना चाहिये।

*हमारे गुरुदेव युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है, परिवर्तन चाहते हो तो परिवर्तन का हिस्सा बनो। उसमें भागीदार बनो।*

*मोहन* - हम टैक्स तो दे रहे हैं, सरकार को वोट भी दे दिया।अब सरकार का काम है कि देश का विकास करे और समस्याओं का समाधन करे।

*ईषना* - सिर्फ़ नियमित टैक्स देने और वोट देने मात्र से हमारी जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व देश के प्रति , समाज के प्रति खत्म नहीं हो जाता। हम प्रकृति से जो ले रहे हैं तो हमें प्रकृति को भी तो वाटर टैक्स, एयर टैक्स, बादलो की सर्विस और आकाश को टैक्स इत्यादि देना होगा। तो प्रकृति को लौटाना भी तो होगा।पशु पक्षी जीव वनस्पति इन्हें भी तो टैक्स देना होगा। होटल में खाने पीने पर वैट टैक्स देते हो न...

हम सबके पास गाड़ी और घर मे AC है, कितना प्रदूषण रोज हम स्वयं कर रहे हैं। प्राणवायु ऑक्सीजन श्वांस में रोज़ लेते हुए कितना सारा कार्बनडाई ऑक्ससाइड छोड़ रहे हैं। हमारा शरीर बहुत सारी दुर्गंध, मल-मूत्र, घर के कूड़े इत्यादि के रूप में प्रकृति को नित्य दूषित कर रहे हैं।तो प्रकृति को संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती?

*मोहन* - जब सब कुछ स्वयं करना है तो फ़िर सरकार की क्या जरूरत?

*ईषना* - हमारी कम्पनी के मैनेजमेंट को सरकार समझो और जूनियर एम्प्लोयी, डेवलपर को आम जनता समझो। तो सबके सहयोग और स्वयं के कार्य करने पर कम्पनी चलेगी। इसी तरह सरकार देश का मैनेजमेंट है, नियम-कानून बनाने वाली और उसका पालन करने वाली संस्था। उनका भी कार्य करना जरूरी है और हमें भी हमारे हिस्से का कार्य करना जरूरी है। सरकार और जनता मिलकर कार्य करेंगे तब ही देश का उद्धार होगा।

कम्पनी के अंदर अच्छा या बुरा वातावरण(Work Environment)  हेतु प्रत्येक एम्प्लोयी जिम्मेदार है। कम्पनी के प्रॉफिट या लॉस में सबकी हिस्सेदारी होती है।

इसी तरह समाज अच्छा या बुरा होने में हम सबका योगदान है।

*सुनीता* - क्या हमें सरकार के दायित्वों के पालन हेतु ,उनपर दबाव बढ़ाने के लिए, सड़कों पर उतर कर  उग्र आंदोलन करना चाहिए? या शान्ति पूर्वक धरना प्रदर्शन करें।

*ईषना* - इलाज़ दवाई से भी सम्भव है और शल्यक्रिया(operation) से भी, लेकिन अच्छा डॉक्टर रोग की root analysis करके, पहले दवा देता है। जब नहीं ठीक होता तो ऑपेरशन करता है।

डॉक्टर भी ऑपेरशन हेतु चाकू उठाता है लेकिन रोगमुक्त करने के लिए, यह सकारात्मक आंदोलन हुआ।

रोगी को ही कत्ल कर देना, ये नकारात्मक आंदोलन हुआ।

इसी तरह विकृत चिंतन स्व उत्तपन्न समाजिक समस्याओं की चिकित्सा हेतु आंदोलन दो प्रकार का हो रहा है, सकारात्मक और नकारात्मक।

 आरक्षण आंदोलन और अन्य आंदोलन जिसमें हिंसा धरना प्रदर्शन हुआ ये सब नकारात्मक आंदोलन है,इससे देश का कोई भला नहीं होगा।

हम सकारात्मक आंदोलन की बात कर रहे हैं, जिसमें हम संगठित होकर देश का विकास कर सके, समाज का उपचार कर सकें। हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठा सकें।हमें रोग को मिटाना है न कि रोगी को मारना है।

*रवि* - कुछ उदाहरण देकर समझाओ, क्या तुम और तुम्हारी संस्था ऐसा कुछ कर रहे हो?

*ईषना* - हाँ, गायत्री परिवार के युवा आंदोलन हेतु एक सन्गठन है जिसे डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन कहते हैं। युगऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा जी जो कि एक  स्वतंत्रता सेनानी थे औऱ बहुत बड़े तपस्वी और समाजसुधारक थे उनसे प्रेरणा लेकर पूर्व राष्ट्रपति माननीय अब्दुल कलाम और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के चांसलर श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी ने इसको यह नाम दिया था। जैसा कि हम सब जानते हैं युवा की भागीदारी के बिना देश का विकास असम्भव है।

*मोहन* - तुम्हारी संस्था द्वारा किये जा रहे कुछ initiative के बारे में बताओ।

*ईषना* - हम लोग तीन लेवल पर युग निर्माण और समाज के उद्धार हेतु काम कर रहे हैं:-

1-प्रचारात्मक 2-रचनात्मक 3-संघर्षात्मक

समस्या की जड़ विकृत और स्वार्थ केंद्रित सोच है, इसलिए लोगों के विकृत चरित्र-चिंतन-व्यवहार में सुधार के लिए, उनके शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक विकास और स्वास्थ्य के लिए उन्हें जप-ध्यान-स्वाध्याय-योग-प्राणायाम से जोड़ रहे हैं। ये सब फ्री सिखाते हैं।

पर्यावरण-और मानव समाज को शुद्ध और स्वस्थ करने के लिए, Environmental healing करने के लिए विभिन्न औषधीयों से युक्त और गाय के घी से उन्हें घर पर यज्ञ करना सीखा रहे है, और सामूहिक अश्वमेध यज्ञ, छोटे बड़े यज्ञों की सृंखला के माध्यम से पर्यावरण के उपचार हेतु, संशोधन हेतु प्रयास कर रहे है। दवा और इंजेक्शन से कुछ व्यक्ति को स्वस्थ कर सकते हैं, लेकिन औषधि को यज्ञ में वायुभूत करके इंसानों के साथ वृक्ष - वनस्पति को भी स्वास्थ्य प्रदान कर सकते हैं।

180 से ज्यादा पहाड़ियों को हमारे स्वयं सेवियों ने वृक्ष गंगा अभियान के तहत हराभरा कर दिया है, देश की पांच बड़ी नदियों जिनमें गंगा और नर्मदा शामिल है उनकी सफाई अभियान चल रहा है। स्वच्छता अभियान में हम सरकार के पार्टनर हैं। महिला शशक्तिकरण, गर्भ सँस्कार, बाल सँस्कार शाला, युवा अभ्युदय इत्यादि पर काम कर रहे हैं। कॉरपोरेट स्कूल कॉलेज इत्यादि जगहों में वर्कशॉप देकर उन्हें प्रतिभा परिष्कार, स्ट्रेस मैनेजमेंट, जीवन प्रबंधन इत्यादि सीखा रहे हैं।

नशा, व्यसन, भौंडे फैशन, कुरीतियों, ख़र्चीली शादी, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध जनजागृति करने हेतु अभियान चला रखा है।

*मोहन* - दिल्ली एनसीआर में हम भी जुड़ना चाहेंगे, मैं गरीबो के लिए कुछ करना चाहता हूँ।

*ईषना* - तो तुम कई जगहों और झुग्गी में चल रही गरीब बच्चों की बाल सँस्कार शाला में समयदान और अंशदान करो।

*रवि* - स्कूलों और युवाओं के लिए मैं कुछ करना चाहता हूँ।

*ईषना* - तुम नशा उन्मूलन और व्यसन मुक्ति अभियान में साथ दो, उनकी Skill Refinement, Art of living और Life Management में मदद कर सकते हो। प्रोजेक्ट दृष्टिकोण में कार्य कर सकते हो, उनमे राष्ट्र चरित्र गढ़ सकते हैं।

*महेश* - ईषना मैं Environment healing और यग्योपैथी में काम करना चाहता हूँ। वृक्षारोपण और स्वच्छता अभियान में जुड़ना चाहते हैं।

*ईषना* - हम सब कुछ न कुछ तो कर ही सकते हैं।

देखो जो संकल्प आज राष्ट्र सेवा के उभरें है, वो स्थायी रहें इसके लिए हम सब लोगों को उपासना-साधना-आराधना से जुड़ना होगा।ये ईंधन है, एनर्जी स्त्रोत है। 15 मिनट मन्त्र जप, ध्यान नियमित करो और रोज दिन में कभी भी अखण्डज्योति का नियमित एक आर्टिकल पढ़ना होगा। इससे ये शुभ संकल्प हमारे मन मे बने रहेंगे और हम सब मिलकर देश के लिए कुछ तो कर सकते हैं, यह भाव बनेगा और आचरण में उतरेगा।

(सब साथ मे मिलकर बोले, हाँ यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो इस देश का कुछ तो हो सकता है। सब मुस्कुरा दिए)

गायत्री मंत्र गुरुदीक्षा

*गुरुदीक्षा*

संसार मे चलने के लिए जिस प्रकार दो पैरों की जरूरत होती है, वैसे ही अध्यात्म के दो पैर होते हैं- श्रद्धा और विश्वास।

गुरुदीक्षा एक प्रकार का आध्यात्मिक विवाह है। जिसमें दो व्यक्ति एक पवित्र उत्तरदायित्व को ओढ़ते हैं। गुरु अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेता है कि शिष्य की आत्मा को ऊंचा उठाने में कोई कसर न रखूँगा। शिष्य अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेता है कि गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा रखता हुआ उनके आदेश को शिरोधार्य करूंगा। विवाह और दीक्षा में यद्यपि भौतिक दृष्टि से बहुत अन्तर नहीं है। दो आत्माएं जीवन भर के लिए पूरी ईमानदारी से एक दूसरे की उन्नति और सहायता का व्रत लेती हैं यही दीक्षा कहलाती है पति पत्नी की इस प्रतिज्ञा को विवाह, और गुरु शिष्य की प्रतिज्ञा को दीक्षा, मित्र 2 की प्रतिज्ञा को मैत्री या “पगड़ी पलटना” कहते हैं। इस प्रकार के व्रत बन्धन के पश्चात् अधिक जिम्मेदारी से कर्तव्य पालन के भाव दृढ़ होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि शिष्य के पाप पुण्यों का दसवाँ भाग गुरु को भी मिलता है। कारण स्पष्ट है कि शिष्य के निर्माण में गुरु का भारी उत्तरदायित्व उन कार्यों में उसे भागीदार बना देता है।

गायत्री साधना के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। इस कार्य के लिए ब्रह्मनिष्ठ, आत्मदर्शी, का वरण करना चाहिए। कोई श्रेष्ठ, अनुभवी, आत्मिक दृष्टि वाले सदाचारी व्यक्ति अपने समीप न हों तो दूरस्थ व्यक्तियों से भी यह हो सकता है, या  गुरु दीक्षा सूक्ष्म शरीर धारी उच्च आध्यात्मिक सद्गुरु से ली जा सकती है जिन्होंने 24 लाख के 24 गायत्री महामन्त्र जप अनुष्ठान महापुरुश्चरण किये हों। शरीर दूर दूर रहते हुए भी आत्माओं के लिए दूरी का कोई प्रश्न नहीं। दूरस्थ सूक्ष्म शरीर धारी उसी प्रकार एक दूसरे की समीपता कर सकती हैं जिस प्रकार पास पास रहते हुए दो व्यक्ति आपस से निकटता अनुभव करते हैं। यदि ऐसी, दूरस्थ गुरु की भी व्यवस्था न हो सके, तो किसी सूक्ष्म शरीर धारी महापुरुष को गुरुवरण किया जा सकता है। एकलव्य, कबीर आदि ने दूरस्थ व्यक्तियों को गुरु वरण करके अपने आप दीक्षा ले ली थी। इस प्रकार के दूरस्थ या सूक्ष्मशरीर धारी गुरुओं के बारे में शिष्य को ऐसा भाव मन में धारण करना पड़ता है कि वे अपने समीप हैं, प्रसन्न हैं और गुरु के समस्त उत्तरदायित्वों को पूरा कर रहे हैं।

दीक्षा के समय गुरु शिष्य को एक प्रधान विचार देते हैं। यह विचार-मंत्र-कहलाता है। मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि मंत्र गायत्री है, क्योंकि इसमें ज्ञान-साँसारिक ज्ञान, विज्ञान-आध्यात्मिक ज्ञान इस प्रकार भरा हुआ है जैसे बिन्दु में सिन्धु। जल की एक बूँद में वे सब तत्व मौजूद होते हैं जो समुद्र की विशाल जल राशि में होते हैं। बीज में वृक्ष का संपूर्ण आधार छिपा होता है, वीर्य की एक बूँद में सारे शरीर का ढाँचा सन्निहित रहता है। गायत्री मंत्र 24 अक्षर का है पर इसके गर्भ में ज्ञान विज्ञान के अनन्त भण्डागार छिपे पड़े हैं। इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं, इसलिए इस वेदमाता को गुरु मंत्र के रूप में अन्तस्तल में धारण करना अधिक मंगलमय होता है। दीक्षा और गुरु मंत्र ग्रहण करने की विधि के साथ आरंभ की हुई गायत्री उपासना विशेष फलवती होती है, ऐसा शास्त्र का मत है।

गायत्री परिवार में गुरुदीक्षा के क्रम समस्त शक्तिपीठ में कराए जाते हैं। यदि सम्भव हो तो शांतिकुंज हरिद्वार या तपोभूमि मथुरा के दिव्य प्रांगण में गुरुचेतना से जुड़ने हेतु दीक्षा लें। यदि दूर न जा सकें तो अपने नजदीकी शक्तिपीठ से सम्पर्क करें।

 इसमें गुरुदीक्षा में गुरुचेतना का प्रतिनिधि कार्यकर्ता सूक्ष्मशरीर धारी परम् पूज्य गुरुदेव युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आह्वाहन करता है। प्रतिनिधि एक तरह से पोस्टमैन की भूमिका निभाता है। गुरु का संदेश दीक्षा लेने वाले शिष्य को समझाता है, मन्त्र कैसे जपना है, उपासना, साधना, आराधना में क्या करना है इत्यादि मार्गदर्शन देता है।

गुरुदीक्षा के वक्त कुछ पुस्तकों, माला, रुद्राक्ष, गुरुदेव, माताजी और गायत्री माता का चित्र, मन्त्र दुपट्टा का एक गुरुदीक्षा सेट मिलता है। इसे लेकर ही गुरुदीक्षा में बैठते हैं।

गुरुदीक्षा की प्रोसेस में करीब आधे से एक घण्टे का समय लगता है, उसके बाद यज्ञ करने शिष्य गुरुमुखी होकर बैठता है। एक बुराई दक्षिणा स्वरूप छोड़ता है और गुरुदीक्षा के साथ एक अच्छाई से जुड़ने का संकल्प लेता है।

गुरुदीक्षा होने के बाद, आपके गुरु युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी बन जाते हैं। जिन्होंने 24 लाख के 24 गायत्री मंत्र अनुष्ठान किये हैं, कई वर्षों तक हिमालय में कठोर तप किया है। 3200 से ज्यादा पुस्तकों के लेखक हैं। युगनिर्माण योजना और विचार क्रांति अभियान के उद्घोषक और संरक्षक है। जिनकी छत्र छाया में 11 करोड़ लोग उनसे दीक्षित हैं।

जब भी गायत्री जप से पूर्व आप समर्पित होकर भावपूर्ण उनका आह्वाहन गुरुमंत्रो से करते हैं तो वो गायत्री मन्त्र का उत्कीलन, शाप विमोचन स्वतः कर देते हैं साथ ही दशों दिशाओं से साधना को सुरक्षा प्रदान करते है। शिष्य की चेतना को ऊंचा उठाते रहते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 22 January 2018

फ़ैशन के नाम पर निर्वस्त्र होते युवा

*नुक्कड़ नाटक - फ़ैशन के नाम पर निर्वस्त्र होते युवा*

(बच्चे आपस में बात करते हुए, कॉलेज के फर्स्ट ईयर की पहली फ्रेशर पार्टी की तैयारी में)

*रीना* - अरे यार मैं तो डिसाइड ही  नहीं कर पा रही पार्टी में क्या पहनूं?

*सुनीता* - कुछ ऑनलाइन आर्डर कर लो, आजकल सारा लेटेस्ट फ़ैशन ऑनलाइन उपलब्ध है।

*मीना* - चल मोबाईल में एक साथ शॉपिंग करते हैं।

(तीनों के साथ मोबाईल में ड्रेस देखती हैं)

*रीना* - ये कितनी कूल और सेक्सी ड्रेस हैं न?

*मीना* - है तो लेकिन थोड़ी ज्यादा छोटी और डीप है। क्या तुम्हारी मम्मी इसे पहन के कॉलेज आने देगी?

*रीना* - अरे बाबा, घर से पहन के आने की क्या जरूरत, बैग में लाऊंगी और कॉलेज के वॉशरूम में चेंज कर लूंगी।

(सविता बड़े गौर से उन लोगों की बातें सुन रही थी, उन्हें टोंकते हुए बोली)

*सविता* - रीना, मम्मी से पूंछे बिना कोई ड्रेस ऐसे छुप के पहनना गलत है। फ़ैशन के नाम पर युवा लड़कियां  निर्वस्त्र होने की तरफ़ बढ़ रही हैं। स्कर्ट छोटी होते होते अति मिनी हो गयी है और जीन्स निक्कर बन गया । और उसमें भी कई फ़टे कट वाले डिज़ाइन के साथ। यह अनुचित है, भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ है। पढ़ने आये हो, फैशन परेड से रिज़ल्ट नहीं मिलेगा।

*रीना* - व्यंग में हंसते हुए , अगर मैं अपनी मम्मी की सुनूँगी तो पार्टी में बिल्कुल बहनजी लगूंगी।

सविता plz प्रवचन मत दो, तुम न समय से पहले मम्मी लोगों जैसी मैच्योर बातें करती हो। अरे हां, याद आया तुम तो गायत्री परिवार की हो। अश्लीलता के विरुद्ध आंदोलन चला रखा है। होली में मैंने देखा था।

*सुनीता* - चलो मिलकर लड़को की बातें सुनते हैं छुप के, वो क्या तैयारी  कर रहे हैं।

(चारों खिड़की के पास छुपकर लड़कों की बातें सुनती हैं)

*रवि* - और भाई मोहन पार्टी में क्या पहन के आ रहे हो?

*मोहन* - मैं तो पार्टी में एन्जॉय करने आ रहा हूँ, मुफ़्त में इन कॉलेज गर्ल के अंग प्रदर्शन का शो देखने को मिलेगा। बहुत कुछ एन्जॉय करने को मिलेगा।

*मोहित*- भाई मैं तो उसको ही मिस फ्रेशर बनाऊंगा जो सबसे कम कपड़े में होगी।

(तीनों ठहाके लगा के हंसते हैं)

*रवि* - ये लड़कियां कितनी बेवकूफ़ होती हैं, पहले हमें ही दिखाने के लिए कम कपड़े पहनती हैं,फिर हमें ज्ञान देती हैं कि हम स्कर्ट छोटी से छोटी करेंगे और लड़कों तुम सोच बड़ी से बड़ी रखो😄😄😄😂😂

*मोहन* - यार हमें पता है उस सविता को छोड़कर सबकी सब सेक्सी शब्द सुनने के लिए हमारे मुंह से बेताब होंगी।

*मोहित* - हां भाई सही कहा, सविता में कुछ बात है। पढ़ने में भी अच्छी है। किसी अच्छे संस्कारी घर से है।

*मोहन* - भाई मैं तो सविता जैसी लड़की से ही शादी करूंगा। जो व्यवस्थित और संस्कारी हो।

*रवि* - अरे वाह, अभी तो तू लड़कियों पर कमेंट पास कर रहा था। गर्लफ्रेंड के लिए सेक्सी अंगप्रदर्शन वाली लड़की और घर बसाने के लिए सविता जैसी सुंस्कारी।

*मोहन*  - भाई ये जो सेक्सी दिखने वाली फैशनपरस्त लड़कियां हैं ये टाइमपास और गर्लफ्रेंड के लिए ठीक हैं। लेकिन घर को घर एक सुंस्कारी लड़की ही बनाती है। जिस पर आप विश्वास कर सको, जो बच्चों को भी अच्छे संस्कार दे।

*रवि* - बड़े उच्च ख्याल हैं, चलो पार्टी की तैयारी करते हैं।

*मोहित* - कल मेरी बहन सरिता भी पार्टी में आ रही है, याद रखना उसका भाई इसी कॉलेज में है। तुम लोग उस पर टुच्ची नज़र से मत घूरना।

*रवि* - कितनी अजीब बात है न, अपनी बहन की सबको फिक्र है।दूसरे की बहन को स्वयं घूरते हो और अपनी बहन को गार्ड करते हो?

*मोहित* - रवि को धक्का देते हुए, क्या बोला, मैंने किसी लडक़ी को नहीं बोला खुली तिजोरी की तरह सामने आओ। लड़कियां किसके लिए अंग प्रदर्शन करती हैं हम लड़कों को दिखाने के लिए। कोई लड़की दूसरी लड़की को देख के इन कपड़ो में खुश नहीं होती। खुद सोचो।

ये लड़कियां महंगे मोबाइल में स्क्रीन गार्ड लगाती हैं, कवर करके रखती हैं कि महंगा मोबाईल खराब न हो। तो क्या ख़ुद को कवर नहीं रख सकती जिससे किसी की कुदृष्टि उनपर न पड़े।

आसमान की बारिश नहीं रोका जा सकता लेकिन छाते से या बरसाती कोट से स्वयं को तो बचाया जा सकता है।

सविता भी तो लड़की है,क्या हम में से किसी ने उसके बारे में अभद्र कमेंट पास किया। ये इज्ज़त उसने खुद कमाई है।

मैंने तो अपनी बहन सरिता से बोल दिया है कि सविता के साथ ही  दोस्ती रखे। और उन अश्लील वस्त्रो वाली तितलियों से दूर रहे।

( *रोहित* ने बीचबचाव किया और बोला अच्छा काम पर लगो बातें बहुत हो गयी, और प्लीज़ आपस मे मत लड़ो। ।ग़लती हम सबकी है, हम लड़के यदि इनके भौंडे अंग प्रदर्शन को सपोर्ट न करें, तो यह किनको दिखाने के लिए पहनेगी।इस बार हम सबको उस लड़की को वोट करना चाहिए जो सबसे शालीन हो। हम सुधरेंगे तो ये भी जरूर सुधरेंगी। कम से कम अपना कॉलेज की अपनी क्लास तो सुधर ही जाएगी)

(इधर उन चारों लड़कियों ने उनकी बातें सुनी तो स्तब्ध रह गयी)

*रीना* - मुस्कुराते हुए बोली, मैं वही कपड़े पहन के आऊंगी जो मम्मी कहेगी ठीक है।वैसे भी हम यहां पढ़ने आते हैं फैशन परेड करने नहीं।

(चारों हंसते हुए चली गईं)

नुक्कड़ नाटक - महिला शशक्तिकरण-असुरक्षित लड़कियां-कन्याभ्रूण हत्या

*नुक्कड़ नाटक - महिला शशक्तिकरण-असुरक्षित लड़कियां-कन्याभ्रूण हत्या*

(कुछ महिलाएं आपस में बात करती हुईं)

*सविता* - यह देश महिलाओं के लिए असुरक्षित हो गया, बढ़ते अपराध और रेप की घटनाओं से बड़ा डर लगता है।

*सुनीता* - सच कह रही हो, सरकार कुछ करती क्यों नहीं।

*मीना* - देखो बहन गुरुदेव कहते है , कि मनुष्य का विकृत चिंतन ही समस्त समस्याओं का कारण है।

*सविता*- वो तो ठीक है, लेकिन इसे ठीक कैसे करें?

*मीना* - एक प्रश्न पूंछू, यदि कोई मटका सही आकार का नहीं बना है? तो उसमें किसकी गलती है? मटके की या कुम्हार की?

*सविता* - कुम्हार की गलती है, क्यूंकि उसने उसके निर्माण में प्रॉपर सावधानी नहीं बरती।

*मीना* - बहन यही तो युग ऋषि कहते हैं, लड़के और लड़की दोंनो ही माँ के गर्भ से आते है।माता-पिता   कुम्हार हैं जो उनकी पर्सनालिटी-व्यक्तित्व गढ़ते हैं। फ़िर नेक्स्ट स्कूल टीचर और बच्चे के दोस्त उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालते हैं। इन सबकी भूल-चूक का परिणाम यह विकृत समाज है।

*सविता* - तो क्या सरकार कुछ नहीं कर सकती?

*मीना* - बहन सरकार वातावरण सुधार सकती है दण्ड व्यवस्था कठोर कर सकती है। लेकिन अपराध भाव मन में उपजे ही नहीं इसके लिए माता-पिता और स्कूल दोनो जगह विचारों की/मानसिकता गढ़ने की प्रोग्रामिंग करनी पड़ेगी।

*सविता* - लेकिन स्कूल ये जिम्मेदारी तो उठाना चाहेंगे नहीं, वो तो मान्यता प्राप्त कोर्स पढ़ाकर, मार्कशीट थमा कर पल्ला झाड़ लेते है। इंसान अच्छा बने या बुरा इसके लिए कोई ठोस कदम स्कूल में तो नहीं दिखता।

*मीना* - गर्भ से ही माता को पुंसवन सँस्कार के माध्यम से बच्चे के व्यक्तित्व को गढ़ने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। प्रत्येक जन्मदिवस पर जन्मदिवस सँस्कार में अपने दिए संस्कारों का अवलोकन कर लें। बच्चे को बचपन से ही जप और ध्यान से जोड़ दें, साधना-स्वाध्याय उसके जीवन का अनिवार्य अंग बना दें। घर में बलिवैश्व से अन्न द्वारा सँस्कार गढ़े।महा पुरुषों और वीरों की कहानियाँ सुनाकर लड़का हो या लड़की उनमें वीर रस भर दें। इस तरह पाले बच्चे चन्दन की तरह होंगे, इन पर सांसारिक विष असर नहीं करेगा।

*सविता* - बहन ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई।

*मीना* - समाजसेवा हेतु बालसंस्कार शाला अपने घर चलाकर बच्चो और उनकी माताओं को जप-ध्यान-योग-प्राणायाम-स्वाध्याय से जोड़कर आसपास के वातावरण को अच्छा बनाये। अच्छे पड़ोसी मतलब सुरक्षित बच्चे।

*सविता* - जी दीदी सही कहा।

*मीना* - बच्चियों को लड़कों की तरह पलने, आगे बढ़ने, पढ़ने का अवसर दें।अपने बेटियों को आत्मरक्षा जरूर सिखाएं। आजकल  समाज मे लड़के भी सुरक्षित नहीं अतः उन्हें भी आत्म रक्षण सिखाएं।

दहेज़-प्रथा, ख़र्चीली शादी न हो , और लड़कियां समाज मे सुरक्षित हों , लड़के-लड़की दोनों एक दूसरे को सम्मान दें, एक दूसरे के पूरक बनें ऐसे सँस्कार जगे। तो कन्या भ्रूण हत्या कोई करवाएगा ही नहीं।

*सविता* - सही कहा दी, ये बताओ स्कूलों के लिए हम क्या करें?

*मीना* - आसपास के स्कूल में जाकर जन जागृति जगाएं, जैसे राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा सरकार ने *अखण्डज्योति   पत्रिका, सुनसान के सहचर और गीता* स्कूल में पढ़ाना अनिवार्य किया है। लेकिन वो पढ़ाया जा रहा है या नहीं इसको सुनिश्चित करें। स्वाध्याय स्कूलों में होगा तो बदलाव आएगा।

*सविता* - धन्यवाद दी

*मीना* - युगऋषि कहते हैं हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा।हम बदलेंगे युग बदलेगा।

यदि हम सब अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, स्कूलों में उपरोक्त पुस्तकों का स्वाध्याय हो, गली मोहल्ले में बाल सँस्कार शाला चले।तो धरती पर ही स्वर्ग सा सुंदर और सुरक्षित वातावरण बन जायेगा।

*सविता और सुनीता* - सही कहा दी आपने। हम कम से कम अपने आसपास तो लड़कियों के लिये सुरक्षित समाज बनाएंगे।

नुक्कड़ नाटक - *सोशल मीडिया*

नुक्कड़ नाटक - *सोशल मीडिया*
(4 विद्यार्थी और एक  अध्यापक)
----------------------

*अध्यापक* - बच्चों सोशल मीडिया के बारे में कुछ बताओ..

*रवि* - सोशल मीडिया एक अपरंपरागत मीडिया (nontraditional media) है। यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे इंटरनेट के माध्यम से पहुंच बना सकते हैं। सोशल मीडिया एक विशाल नेटवर्क है, जो कि सारे संसार को जोड़े रखता है। यह संचार का एक बहुत अच्छा माध्यम है। यह द्रुत गति से सूचनाओं के आदान-प्रदान करने, जिसमें हर क्षेत्र की खबरें होती हैं, को समाहित किए होता है।

*मोहन* -सोशल मीडिया (Social Media) सकारात्मक भूमिका अदा करता है जिससे किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के जरिए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं जिनसे कि लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम हुआ है जिससे किसी भी देश की एकता, अखंडता, पंथनिरपेक्षता, समाजवादी गुणों में अभिवृद्धि हुई है।

हम ऐसे कई उदाहरण देखते हैं, जो कि उपरोक्त बातों को पुष्ट करते हैं जिनमें 'INDIA AGAINST CORRUPTION' को देख सकते हैं, जो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ महाअभियान था जिसे सड़कों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी लड़ा गया जिसके कारण विशाल जनसमूह अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़ा और उसे प्रभावशाली बनाया।

2014 के आम चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने जमकर सोशल मीडिया का उपयोग कर आमजन को चुनाव के जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।

*रितिका* -लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, जहां व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा लोकप्रिय बना सकता है। आज फिल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है। वीडियो तथा ऑडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हो पाई है जिनमें फेसबुक, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं।

*स्नेहा* - सर ये सब सकारात्मक पहलू के साथ मैं इसके कुछ नकारात्मक पहलू पर भी ध्यान आकृष्ट करना चाहती हूँ।

कुछ लोग इसका गलत उपयोग भी करते हैं। सोशल मीडिया का गलत तरीके से उपयोग कर ऐसे लोग दुर्भावनाएं फैलाकर लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा की जाती है जिससे कि जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।> > कई बार तो बात इतनी बढ़ जाती है कि सरकार सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल करने पर सख्त हो जाती है और हमने देखा है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध तक लगाना पड़ता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन में भी सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि असामाजिक तत्व किसान आंदोलन की आड़ में किसी बड़ी घटना को अंजाम न दे पाएं।

*प्रीति* - सर मैं भी कुछ कहना चाहती हूँ-

जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार सोशल मीडिया के भी दो पक्ष हैं, जो इस प्रकार हैं-

*दैनिक जीवन में सोशल मीडिया का प्रभाव*

*यह बहुत तेज गति से होने वाला संचार का माध्यम है*

👉🏽यह जानकारी को एक ही जगह इकट्ठा करता है

👉🏽यह सरलता से समाचार प्रदान करता है

👉🏽सभी वर्गों के लिए है, जैसे कि शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग

👉🏽यहां किसी प्रकार से कोई भी व्यक्ति किसी भी कंटेंट का मालिक नहीं होता है।

👉🏽फोटो, वीडियो, सूचना, डॉक्यूमेंटस आदि को आसानी से शेयर किया जा सकता है

*सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव*

👉🏽यह बहुत सारी जानकारी प्रदान करता है जिनमें से बहुत सी जानकारी भ्रामक भी होती है।

👉🏽जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है।

👉🏽किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।

👉🏽यहां कंटेंट का कोई मालिक न होने से मूल स्रोत का अभाव होना।

👉🏽प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है।

👉🏽फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं जिनके व्दारा कभी-कभी दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती

👉🏽शोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।

*अध्यापक* - बच्चों इंटरनेट और सोशल मीडिया अग्नि की तरह है सावधानी से उपयोग किया तो फ़ायदेमंद हैं। इंसान मुफ्त में अपनी बात/समान/ज्ञान का विज्ञापन कर सकता है।

यदि असावधानी बरती तो घर में आग लग सकती है, देश मे दंगे भड़क सकते हैं, इंसान को सुसाइड के लिए प्रेरित कर सकता है।

अतः अध्यापकों, माता-पिता, बड़े भाई बहनों को अपने से छोटे लोगों को शोशल मीडिया के फायदे के साथ खतरों से भी अवगत कराना चाहिए।

मोबाईल में रखी जानकारी सुरक्षित रखें, हिस्ट्री ब्राउज़र की डिलीट करते चलें, किसी को भी सोशल मीडिया में अपनी व्यक्तिगत जानकरी न दें। किसी अनजान व्यक्ति से न मिलें।

 पासवर्ड ताला है जो आपकी साइट्स , ईमेल को सुरक्षित करता है। इसे आसान न रखें जिसे कोई भी तोड़ सके। इसमें कुछ स्पेशल केरेक्टर के साथ बनाएं और किसी अनजान से शेयर न करें।

वर्चुअल दुनियां से बाहर आकर असली दुनियां में अच्छे दोस्त बनाये। किसी के बहकावे में न आएं।

रील औऱ रियल जिंदगी में फ़र्क है, उसी तरह वर्चुअल और असली दुनियां में फर्क है। इसे समझें, सावधान रहें।

मुझे बनाके एक कर्मयोगी सन्त, मां मेरे जीवन में ला दे नूतन बसन्त*

*मुझे बनाके एक कर्मयोगी सन्त,*
*मां मेरे जीवन में ला दे नूतन बसन्त*

मेरी दुर्भावनाओं का करके अंत,
मां मुझे बना दे इक सन्त,
काम क्रोध मद लोभ से करके मुक्त,
मां मेरे जीवन में ला दे नूतन बसन्त।

बलपूर्वक सन्मार्ग में चला दे,
उज्ज्वल भविष्य का दिखा दे पथ,
दुर्बुद्धि-कुबुद्धि से करके मुक्त,
मां मेरे जीवन में ला दे नूतन बसन्त।

इच्छाओं-वासनाओं से करके मुक्त,
भक्ति में भीगा दे मेरा तन और मन,
मुझे बना के एक कर्मयोगी सन्त,
मां मेरे जीवन में ला दे नूतन बसन्त।

वसन्त पर्व की बधाई
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Saturday, 20 January 2018

*मन का पार्लर -* *अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय*

*मन का पार्लर -*
*अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय*
*मन की सुंदरता का राज़ -*,
*अच्छे विचारों का स्वाध्याय*

घर में झाड़ू लगता है,
साफ़-सफ़ाई नित्य होती है,
घर की चीज़ों को रोज़,
व्यवस्थित रखने की होड़ होती है।

दिमाग़ में न कभी झाड़ू लगता है,
न कभी साफ़-सफ़ाई होती है,
न विचारों को व्यवस्थित रखने की,
और न ही जीवन लक्ष्य तक पहुंचने की,
किसी के जीवन में होड़ होती है।

शरीर के पार्लर में,
घण्टों समय व्यतीत करते हैं,
विचारों के पार्लर स्वाध्याय के लिए,
फ़ुर्सत नहीं होती है।

परिस्थिति की उलझनों को सुलझाने में,
व्यस्त रहते हैं,
मनःस्थिति की उलझनों को सुलझाने में,
ध्यान नहीं देते हैं।

दृष्टि के लिए जतन होते हैं,
दृष्टिकोण को समझते नहीं,
विचारों को व्यवस्थित करते नहीं,
मनःस्थिति बदलते नहीं।

फ़िर दुःखी फ़िरते है,
ईश्वर को कोसते रहते है,
मनःस्थिति सुधारते नहीं,
और परिस्थिति को कोसते फ़िरते हैं।

मन और विचारों की कुरूपता,
सर्वत्र झलकती है,
दुर्भाव द्वेष से ग्रस्त मन से,
निराशा-उदासी झलकती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Sunday, 14 January 2018

सत्य बोलो लेकिन प्रिय सत्य बोलो

प्रिय सत्य बोलो,

जिस प्रकार मटके पर कुम्हार सत्य की चोट डालता साथ ही हाथ से भीतर सम्वेदना से सम्हालता है। स्वयं का और दूसरे का व्यक्तित्व और मन निखर जाएगा।

बिन सम्वेदना और अच्छी भावना के  सत्य बोला तो वो सत्य का प्रहार   मटका तोड़ देगा। स्वयं और दूसरे के व्यक्तित्व और मन दोनों तोड़ देगा, बिखर जाएगा।

सत्य बोलते वक्त एक चिकित्सक की तरह सावधानी बरतें। ऑपरेशन के बाद घाव खुला न छोड़ें । सम्वेदना से घाव में टाके जरूर लगाएं। प्रेम और स्नेह से निरन्तर ट्रीटमेंट करते चले।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

चेहरे का सौंदर्य बढ़ाना

अखण्डज्योति December 1944
चेहरे का सौंदर्य बढ़ाना
चेहरा सौंदर्य का प्रधान स्थान है। जिसके चेहरे पर कोमलता चमक तथा स्निग्धता होती है वह सुन्दर मालूम होता है और जो चेहरा रूखा, निस्तेज तथा सुस्त होता है वह अच्छी बनावट का होने पर भी कुरूप दिखाई पड़ता है। यदि झाँई, मुँहासे, फुन्सियाँ किल एवं झुर्रियों का पड़ना शुरू हो जाय तब तो रहा सहा सौंदर्य भी चला जाता है।

अधिक चिन्ता, शोक, पेट की खराबी, रक्त की अशुद्धता, निराशा, मनहूस स्वभाव, विषय वासना की ओर अधिक झुकाव, आलस्य या अत्यधिक परिश्रम चेहरे की कुरु पता का प्रधान कारण है। क्रोध, ईर्ष्या एवं खुदगर्जी की अधिकता से भी मुखाकृति बिगड़ जाती है। ऐसे ही कारण की प्रतिक्रिया से चेहरा मुंहासे, झुर्री, फुन्सी आदि से लटककर कुरूप होने लगता है। यदि उपरोक्त बातों से बचाव रखने का ध्यान रखा जाय तो चेहरे की कुरूपता से मनुष्य बचा रह सकता है और यदि कभी मुँह पर यह उपद्रव दिखाई देने लगें तो उपरोक्त बातों में सुधार कर देने से उनका आसानी से सुधार हो सकता है।

कुछ उपाय भी ऐसे हैं जिनकी सहायता से चेहरे की कुरूपता को हटाया जा सकता है। चेहरे की मालिश इस प्रकार के उपायों में प्रधान है। प्रातः काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर सह्य गरम पानी में एक खुरदरे तौलिये को भिगोकर धीरे-धीरे चेहरे के हर एक भाग को रगड़ना चाहिए। पाँच-पाँच मिनट बाद तौलिये को निचोड़ कर फिर दुबारा गरम पानी में डुबो लेना चाहिए। यह क्रिया पन्द्रह मिनट तक करनी चाहिए। इसके बाद पीली सरसों का शुद्ध तेल लेकर चेहरे के हर एक भाग पर उसकी मालिश करनी चाहिए। तेल की मालिश केवल उंगली के पोरुओ से नहीं पूरी हथेली और पूरी उंगलियों से करनी चाहिए। हथेली पर थोड़ा तेल लेकर दोनों हाथों की हथेलियों और उंगलियों तक उसे फैला लेना चाहिए तब फिर उससे मालिश करनी चाहिए। मालिश में एक बात का ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए कि नीचे की ओर से ऊपर की ओर जब मालिश की जाय तो दबाव अधिक रहे और जब ऊपर से नीचे की ओर हाथ आवे तो हाथ का दबाव हलका रहे। ऐसा करने से नीचे की ओर लटकी हुई त्वचा अपने स्थान पर सरक जाती है। ऊपर से नीचे की ओर दबाव देने से त्वचा के लटकने की आशंका रहती है।

मालिश करने के बाद उंगलियों से चेहरे के हर भाग को हलके-हलके थप-थपाना चाहिए। दोनों हाथों से दोनों ओर थप-थपाने से बचा देना चाहिए या बहुत ही हलके-हलके थपथपाना चाहिए। कारण यह है कि कनपटी वह स्थान है जहाँ से मस्तिष्क के कोमल तन्तु निकट हैं और नेत्रों की अन्तः शिराएं भी पास पड़ती हैं। इस स्थान पर जरा अधिक आघात लगे तो हानि होने की सम्भावना रहती है।

पानी से रगड़ना, तेल की मालिश और थपथपाना यह तीनों क्रियाएं मिलाकर आध घण्टे नित्य करनी चाहिए। पन्द्रह मिनट रगड़ना, दस मिनट मालिश और पाँच मिनट थप-थपाना। इसके बाद ताजे पानी से मुँह धो डालना चाहिए और कुछ देर दर्पण के सामने खड़े होकर अपने चेहरे का अवलोकन करते हुए “हमारा सौंदर्य बढ़ रहा है” ऐसी दृढ़ भावना करनी चाहिए। कभी-कभी उबटन भी करना चाहिए, सप्ताह में एक बार संतरे का टुकड़ा भी चेहरे पर रगड़ देना चाहिए। लापरवाही से कुरूपता का अधिक संबंध है। यदि मनुष्य सावधान रहे और उपरोक्त रीति से अपनी सुन्दरता बढ़ाने का प्रयत्न करता रहे तो निस्संदेह झुर्री, झाई, मुंहासे आदि दूर हो सकते हैं और चेहरे के सौंदर्य में बहुत उन्नति हो सकती है।

Saturday, 13 January 2018

*मकरसंक्रांति की शुभकामनाएं* - दान, स्नान और उपासना का पर्व है संक्रांति, ऐसे करें सूर्य की उपासना

*मकरसंक्रांति की शुभकामनाएं* 
  *दान, स्नान और उपासना का पर्व है संक्रांति, ऐसे करें सूर्य की उपासना* ⚡🌞

मकर संक्रांति सूर्य उपासना का विशेष पर्व है. इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना शुरू होते हैं और इसके बाद बाद से धरती के उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु की ठंडक में कमी आनी शुरू होती है. प्रायः हर साल 14 जनवरी को सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए तिथि को मकर संक्रांति कहते हैं| पूरे भारतवर्ष में ये मनाया जाता है, लेकिन सब जगह मनाने का तरीका और नाम अलग अलग होता है। 

इस दिन सूर्योदय से पहले नहाएं, पानी में तिल या तिल का तेल मिला कर नहाना चाहिए। 11 गायत्री मन्त्र, 11 सूर्य गायत्री मन्त्र और 5 महामृत्युंजय मन्त्र से तिल और गुड़ की आहुति यज्ञ में दें। 

यदि यज्ञ की व्यवस्था न हो तो गैस जला कर उस पर तवा रख कर गर्म करें, फ़िर मन्त्र पढ़ते हुए यज्ञ की आहुति तवे पर डाल दें। यज्ञ के बाद गैस बन्द कर दें और उस यज्ञ प्रसाद को तुलसी या किसी पौधे के गमले में डाल दें।

सूर्य गायत्री मन्त्र जपते हुए सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं।  मकर संक्रांति के दिन पीला या श्वेत वस्त्र पहनें। आहार में पहला नाश्ता दिन में तिल और गुड़ का प्रसाद लें। घर में इस दिन खिचड़ी चावल और उड़द की दाल की बना के खाना शुभ होता है। 
 
इस दिन यदि सम्भव हो तो सुबह गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर कमर तक जल के बीच में खड़े हो सूर्यदेव को जल में तिल-गुड़ अर्घ्य देना चाहिए।

ध्यान रखें कि अर्घ्य तांबे के लोटे में दें। पात्र को दोनों हाथों से पकड़ कर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य के समय सूर्य गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।

सूर्य गायत्री मन्त्र- *ऊं भाष्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात*

गायत्री मन्त्र- *ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*



सूर्योपासना को अच्छे से समझने के लिए पुस्तक पढ़े - 📖 *तत्सवितुर्वरेण्यं*
 

लोहड़ी उत्सव की शुभकामनाएं - j वीर पंजाबी नायक, युगनिर्मानी दुल्ला भट्टी और लोहड़ी की कहानी

*लोहड़ी उत्सव की शुभकामनाएं* 

*वीर पंजाबी नायक, युगनिर्मानी दुल्ला भट्टी जिसने मुगलों से विद्रोह कर कुँवारी लड़कियों को दासत्व से मुक्त कर उनका घर बसाया, लोहड़ी के पर्व में हम उसे याद कर वैसा ही अपने समाज में बुराईयों के नाश के लिए संकल्पित हों, युगनिर्माणि समाजसेवक युवाओं का आवाहन दिया(Divine India Youth Association) करता है, जो समाज के प्रति अपना उत्तरदायित्व निर्भीक साहसी दुल्ला भट्टी सा निबाहें। 24 गायत्री मन्त्र और 5 महामृत्यंजय मन्त्र के साथ लोहड़ी की अग्नि में रेवड़ी, मूंगफली, लावा का हवन करें और सामूहिक यज्ञ प्रसाद लें।*

 लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं की लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं।

दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था। उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था! *उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी की हिन्दू लडको से करवाई और उनके शादी के सभी व्यवस्था भी करवाई।*

दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे। उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं। वह सभी पंजाबियों का नायक था।

गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

महामृत्युंज मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*



सही उद्देश्य और लोहड़ी की कहानी को जन जन तक पहुंचाने के लिए ये पोस्ट शेयर अवश्य करें। अधिकांश लोग लोहड़ी का महत्व नहीं जानते।

असली अध्यात्म आज किसे चाहिए? गण्डे ताबीज़ का शॉर्टकट चाहिए।

*असली अध्यात्म*,
किसी को नहीं चाहिए,
गण्डे ताबीज़ का,
सबको शॉर्टकट चाहिए।

किसी को,
बिन पढ़े पास होने वाला,
ताबीज़ चाहिए,
किसी को,
बिन मेहनत धन देने वाला,
ताबीज़ चाहिए।

असली अध्यात्म और असली सन्त,
आज किसे चाहिए?
सत्य धर्म और कर्मफ़ल का विधान,
आज किसे चाहिए?

ईश्वर वो ईंधन है,
अध्यात्म वो एनर्जी है,
जो किसी भी इंजन को चला सकता है,
लेकिन कहीं पहुंचने के लिए गाड़ी तो चाहिए,
इंजन में तेल के साथ पहिये में हवा भी चाहिए,
ईश्वरीय कृपा के साथ पुरुषार्थ भी चाहिए।

लेकिन असली अध्यात्म,
आज किसे समझना है?
सबको कोकोकोला पीकर कृपा बरसाना है,
पैसे देकर षठ चक्र और कुंडलिनी जगाना है,
लम्बे चौड़े आध्यात्मिक विज्ञापन में उलझना है।

आज असली सन्त के दरबार में,
कुछ लोग दिखाई देते हैं,
नकली सन्तों के कारोबार में,
भीड़ ही भीड़ दिखाई देती है।


क्योंकि असली अध्यात्म,
किसी को नहीं चाहिए,
गण्डे ताबीज़ का,
सबको शॉर्टकट चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Tuesday, 9 January 2018

Workshop Subject - *Skill Refinement & Stress Management for teachers through Meditation*

Venue - Greenfields School, Dilshad Garden, Delhi




Monday, 8 January 2018

गीता सार - जीवन जीने की कला* भगवान श्री कृष्ण, गीता के अठारह अध्याय में,

*गीता सार - जीवन जीने की कला*

भगवान श्री कृष्ण,
गीता के अठारह अध्याय में,
समझाते मानव जीवन सार,
देते समस्त समस्याओं का समाधान।

ग़लत सोच और ग़लत ज्ञान से,
उपजती जीवन मे समस्या,
सही सोच और सही ज्ञान से,
सुलझती जीवन की हर समस्या।

परमार्थ और परोपकार है,
आनंदमय जीवन की आधारशिला,
स्वार्थ और अहंकार है,
दुःखमय जीवन की आधारशिला।

कर्मबन्धन से अच्छे कर्म ही,
बन्धन मुक्त कर सकता है,
निष्काम कर्म से ही,
जीव भवबन्धन मुक्त बन सकता है।

ईश्वर को अर्पित कर,
अच्छे कर्म करना ही,
सच्ची ईश प्रार्थना है,
स्वाध्याय-सेवा-संयम ही,
सच्ची देव आराधना है।

अहंकार को त्याग के ही,
ईश्वरीय चेतना से,
जुड़ना सम्भव है,
निर्मल मन से ही,
ईश्वरीय चेतना को,
कण कण में,
देखना सम्भव है।

ईश्वरिय मदद का,
अधिकारी वो बन पाता है,
जो अपनी मदद,
स्वयं ही कर पाता है।
सफलता के शिखर पर,
वो पहुंच पाता है,
जो निज सामर्थ्य और पुरुषार्थ पर,
यकीन रख पाता है।

जो शरीर को रथ,
स्वयं को रथी समझता है,
नित्य आत्मभाव में,
जो स्थिर रहता है,
उसके भीतर ही,
आनंद का महासागर,
हिलोरे लेता है।

जो परोपकार की भावना से,
नित्य निष्काम कर्म करता है,
ईश्वरीय निमित्त बन,
जो जन सेवा करता है,
वो कर्मयोगी,
कर्म में कुशल बनता है,
वो भवबन्धन मुक्त हो,
सशरीर देवमानव बनता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन


http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Jivan_Jine_Ki_Kala_Hindi

सेवा-करूणा के साथ, जहां बहे ज्ञान की अविरल धारा, ऐसा गायत्री परिवार हमारा

*ऐसा गायत्री परिवार हमारा*

सेवा-करूणा के साथ,
जहां बहे ज्ञान की अविरल धारा
ऐसा गायत्री परिवार हमारा
ऐसा गायत्री परिवार हमारा

स्वसुधार-स्वबदलाव का,
जहां युगऋषि ने,
दिया है नारा,
ऐसा गायत्री परिवार हमारा-2

जन्मगत ऊंच नीच का,
जहां भेद नहीं है,
सत्कर्मो से ब्राह्मण बनने का,
सन्देश यहीं है,
कर्मफ़ल पर आधरित,
जहाँ बनाया आधार सारा,
ऐसा गायत्री परिवार हमारा-2

मैं क्या हूँ और शरीर क्या है?
इसका मेरा नाता क्या है?
आत्मतत्व का भेद जहां पर,
युगऋषि ने समझा दिया सारा,
ऐसा गायत्री परिवार हमारा-2

वेद ज्ञान के साथ जहां पर,
सम्वेदना पढ़ाई जाती,
आत्मीयता विस्तार के साथ जहां पर,
दैवीय चेतना जगाई जाती,
उपासना-साधना-आराधना के साथ,
जहां सिखाया जाता भाई चारा,
ऐसा गायत्री परिवार हमारा
ऐसा गायत्री परिवार हमारा

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डीवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

युग साहित्य फ़ोल्डर अभियान क्या है? इस में फोल्डर किस प्रकार के होते है?

*सत्साहित्य फोल्डर अभियान*

गुजरात गायत्री परिवार ने युग्सहित्य विस्तार हेतु एक अनूठी पहल की है जिसे सत्साहित्य फ़ोल्डर अभियान का नाम दिया है:-

*उद्देश्य* - वर्तमान समय मे व्यक्ति टूटे मन, अस्वस्थ शरीर, बिखरते रिश्तों और आस्था संकट से ग्रसित हो दुःखी और बेचैन है। ऐसे समय पर वर्तमान समस्याओं का समाधान और जीवन मे दिशा धारा चाहता है। लेकिन किस पर विश्वास करे किस पर नहीं समझ नहीं पाता। ऐसे लोगों तक इनके जीवन की समस्याओं का समाधान सत्साहित्य रूप में फोल्डर अभियान के ज़रिए दिया जाता है। लोगों के विचारों में क्रान्तिबीज डालकर इन्हें सत्साहित्य पढ़ने हेतु प्रेरित करते है ये फ़ोल्डर।

*साहित्य फ़ोल्डर अभियान में फोल्डर किस प्रकार के होते है?* - प्लास्टिक पारदर्शी फ़ोल्डर जिसमें मध्यम साइज की टोटल 12 पुस्तकें आती हैं। हैंगर के साथ आसानी से दीवार में लटकाई जाती हैं। पारदर्शी होने के कारण पुस्तक के नाम दूर से स्पष्ट नज़र आते हैं। उसमें कॉन्टेक्ट नम्बर होता है जिस पर लोग पुस्तक पढ़कर आगे सम्पर्क करते हैं।

*किस प्रकार की पुस्तकें इसमें रखते हैं* - एक फोल्डर में 12 पुस्तकें ही रख सकते हैं, इसलिये मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, परिवार निर्माण, बाल निर्माण,प्रकृति संरक्षण और युगनिर्माण सम्बन्धी दो - दो पुस्तकें रखते हैं। इसमें *समस्त समस्याओं का समाधान वाला पम्पलेट भी रख देते हैं, इसमे समस्या और उनके समाधान अनुरूप अन्य पुस्तकों की लिस्ट होती है साथ ही ऑनलाइन वेबसाइट के साथ लोकल शक्तिपीठ का अड्र्स भी होता है।*

*साहित्य फोल्डर को कहां लगाते है? इसके लिए कैसे सम्पर्क करते हैं?*

ऐसे स्थानों का चयन करते हैं जहां बैठ कर लोगों को इंतज़ार करना ही पड़ता है, जैसे अस्पताल में मरीजों के इंतज़ार की जगह, नाई या पार्लर, जनरल स्टोर, डेरी मिल्क की शॉप, बस स्टैंड, मन्दिर इत्यादि जगहों का चयन करते हैं।

अस्पताल में सम्पर्क करने पर लगभग 70% डॉक्टर इजाज़त दे देतें है। दुकान और अन्य जगहों पर भी ऐसा ही है।

पुस्तकों को हर महीने रिफिल भी करते रहना होता है।

*साहित्य फोल्डर अभियान चलाने के लिए कितने व्यक्तियों की जरूरत पड़ती है*? -  कुछ लोगों की टीम हो तो बहुत अच्छा है, लेकिन यदि टीम न बन पाए तो एक व्यक्ति दो से तीन जगह सत्साहित्य अभियान बड़े आराम से चला सकता है।

*सत्साहित्य फ़ोल्डर अभियान चला रहे टीम आनन्द जी से हमने इस बारे में पूंछा* - तो उन्होंने बताया कि दीदी इसके बहुत अच्छे रिज़ल्ट सब जगह मिल रहे हैं। लोग हमें फोन करके बताते हैं कि हमने अमुक जगह के फोल्डर से पुस्तक उठाई थी, और इसके बारे में जानना चाहते है। इसका केंद्र कहाँ है और इसे जिसने लिखा उसके बारे में जानकारी चाहते है।

#यज्ञ-शंका समाधान- प्रदूषण नियंत्रण

#यज्ञ-शंका समाधान-

शंका: यज्ञ से धुँआ होता है जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और ऑक्सीजन भी खर्च होती है।क्योकि कोई चीज तभी जलती है जब उसे ऑक्सीजन मिले।

समाधान: यज्ञ से प्रदूषण कदापि नही होता।जितना ऑक्सीजन खर्च होता है उससे कहीं ज्यादा बढ़ता है। प्रदूषण दूर होता है।
यज्ञ पूर्णतः वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
यज्ञो वै श्रेष्ठतम कर्म।
यज्ञ से श्रेष्ठ कोई कार्य नही है।
यज्ञ को अग्निहोत्र वा हवन भी कहते हैं।
अग्निहोत्र का अर्थ है जल, पृथ्वी, वायु आदि की शुद्धि के लिए डाली गयी आहुतियां।
यज्ञ केवल कर्मकाण्ड ही नही बल्कि चिकित्सा पद्धति भी है। यज्ञ करते समय जो हम विभिन्न मंत्रोच्चार करते हैं उसका हमारे मन, मस्तिष्क,व आत्मा पर विशेष प्रभाव डालती है।साथ साथ वातावरण को भी शुद्ध करती है।
यज्ञ को हवि भी कहते हैं जिसका अर्थ है विष को हरने वाला। विज्ञानं के सिद्धान्त के अनुसार कोई भी पदार्थ नष्ट नही होता ,हां उसका रूप बदला जा सकता है।
(By law of conservation of mass we know that mass cannot be created nor destroyed in a chemical reaction)
हवन सामग्री गाय का देशी घी आदि जो हम अग्नि पर डालते है हवन के लिए वे वास्तव में औषधियां हैं , जलने से नष्ट नही होतीं बल्कि दूसरे रूप में परिवर्तित होती हैं और सूक्ष्म रूप में हमे प्राप्त होती हैं। जब एलोपैथ नही था तो प्राचीन काल में आयुर्वेद था।आयुर्वेद में इन्ही वनस्पतियों से ही चिकित्सा की जाती थी।
हवन सामग्री में जो औषधियां हैं उनमे
1.कीटाणुनाशक 2.सुगंधि वर्धक
3.स्वास्थ्यवर्धक (medicinal action property)
4.पौष्टिक। 5. ऑक्सीजन वर्धक
गुण होते हैं।
जब ये औषधियां हवन कुण्ड में जलायी जाती हैं तो ये परमाणु रूप मे सांस के माध्यम से एक नही बल्कि अनेको जीव जंतुओं तक पहुचती हैं जिससे परोपकार भी होता है।
यज्ञ में होने वाली रासायनिक क्रियाएँ निम्न हैं...
1.ज्वलन ( combustion)
2. ऊर्ध्वपातन ( sublimation)
3. धूनी (Fumigation)Fumigation is a method of pest control that completely fills an area with smoke, vapor, or gas to especially for the purpose of disinfecting or of destroying pests.
4.औटना( Volatilization)
Volatilization is the process whereby a dissolved sample is vaporised.
ये सभी रासायनिक क्रियाएँ हमारे लिए लाभकारी ही हैं। इनमे ज्वलन (combustion) अभिक्रिया के दौरान गाय का घी ( जिसमे लगभग 8% संतृप्त saturated fatty acids तथा triglycerides, diglycerides, monoglyceride) ज्वलन को तेज करता है जिससे complete cumbustion हो सके।
fatty acid के combustion के दौरान CO2 और H2O निकलती है। complete combustion से CO2 भी बहुत कम हो जाता है।
Glycerol के combustion में pyruvic acid और Glyoxal (C2H2O2)बनता है। pyruvic acid हमारे metabolism को बढ़ाता है।और glyoxal बैक्टेरिया को ख़त्म करता है।
इनके आलावा combustion के दौरान जो हाइड्रोकार्बन बनते हैं वे पुनः स्लो combustion रिएक्शन होता है और methyle, ethyle alcohol ,फार्मिक एसिड और फार्मेल्डिहाइड आदि बनता है।जोकि वायु को सुगन्धित करता है और कीटाणुनाशक ही है। यही तक कि H1N1 वायरस को भी समाप्त करने की क्षमता भी यज्ञ में है।
अब आप सोच रहे होंगे की जब ज्वलन होता है तो ऑक्सीजन खर्च होती है ।एक तरह से हम पर्यावरण को नुक्सान पहुचाते हैं।तो आप गलत हैं
यज्ञ ही वह प्रक्रिया है जिसमे ऑक्सीजन खर्च तो होता है पर ऑक्सीजन बनती भी है।क्यों की इसमें CO2 के साथ -साथ वाष्प(H2O) भी बनती है। देखिये..
CO2 + H2O (g) +112000 cal = HCHO (farmaldehyde) +O2(ऑक्सीजन)
इस प्रकार यज्ञ करने से ऑक्सीजन खर्च नही बल्कि प्रोड्यूस होती है बनती है।
साथ ही साथ अन्य रासायनिक क्रियाओं से बने gaseous प्रोडक्ट्स से पर्यावरण शुद्ध होता है।एवं हमें स्वास्थ्य लाभ भी होता है।
अग्निहोत्र का अवशेष राख हमारी मिटटी की उर्वरकता बढाती है और कुछ त्वचा रोगों को दूर करने के लिये भी काम आती है ।अतः यज्ञ से कोई नुक्सान नही बल्कि लाभ ही लाभ है। प्रतिदिन घर में यज्ञ करें और त्योहारों पर बडे बडे यज्ञों का आयोजन करें तो विश्व रोगों से मुक्त हो सकता है ।

Sunday, 7 January 2018

यज्ञ करने से पूर्व क्या खाना खा सकते हैं? भोजन करके क्या यज्ञ नहीं करना चाहिए या नहीं?

प्रश्न - *यज्ञ करने से पूर्व क्या खाना खा सकते हैं? भोजन करके क्या यज्ञ नहीं करना चाहिए या नहीं?*

उत्तर - यज्ञ से पूर्व केवल तरल रसों का आहार लें सकते है, ठोस आहार वर्जित है। यदि अत्यधिक भूख लगे तो फलाहार कर लें।

ठोस अन्न शरीर की प्राणवायु को 4 घण्टे तक 100% भोजन पाचन प्रक्रिया हेतु उपयोग में ले लेता है।

यज्ञ की औषधीय धूम्र श्वांस और रोमछिद्रों से प्रवेश कर शरीर मे पहुंचती है, प्राणवायु में मिलकर हृदय से समस्त शरीर तक पहुंच कर लाभान्वित करती है। जब प्राणवायु पाचन में व्यस्त नहीं होती तो उच्च केंद्रों पर विचरण करती है। मन्त्र शब्द सामर्थ्य से 24 दिव्य केंद्रों को जागृत करती है।

इसके लिए पेट हल्का होना जरूरी है, और प्राणवायु पाचन में व्यस्त न हो इसलिए भोजन से पूर्व यज्ञ का प्रावधान है।

अगरबत्ती जलाना चाहिए या नहीं? अगरबत्ती को सर्प्रथम किसने उपयोग में लिया?

*अगरबत्ती का उद्भव और इतिहास*

बांस जलाने पर पॉलीएरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच)  निकलता है, जो अत्यंत हानिकारक होता है।


लेकिन औषधि लपेटकर जलाने पर इसका हानिकारक प्रभाव कम हो जाता है और दुर्गंध का नाश करता है। कब्र पूजन में धूप और अगरबत्ती अनिवार्य है।

इतिहासकारों की माने तो सर्वप्रथम अगरबत्ती का प्रयोग यवनों ने सैनिकों की कब्रों पर किया गया , क्योंकि बरसात के मौसम में मिट्टी के अंदर सड़ती लाशों की दुर्गंध बाहर आने से आसपास के लोगों का रहना दूभर हो जाता था। इस समस्या से निज़ात के लिए कब्र पर अगरबत्ती जलाने का क्रम शुरू हुआ।

क्योंकि बांस की तिलियां आसानी से उपलब्ध होती थी, इसलिए इनका उपयोग सर्वाधिक हुआ।

हिन्दू भारतीय संस्कृति में बांस जलाना वर्जित है, यहां तक कि चिता तक मे वर्जित है।

तुलसी के पौधे को रविवार को जल क्यों नहीं चढ़ाते?

प्रश्न - *तुलसी के पौधे को रविवार को जल क्यों नहीं चढ़ाते?*

उत्तर -
पेड़ में नित्य जल चढ़ाने से ऑक्सीकरण डिस्टर्ब होता है। जैसे मनुष्य उपवास करके शुद्ध होता है वैसे ही एक दिन का ब्रेक तुलसी के दिव्य पौधे को भी चाहिए। मिट्टी की उर्वरता सप्ताह में एक दिन का ब्रेक देने पर बढ़ जाती है।

प्रश्न - *तुलसी के सामने घी का दिया क्यों जलाते हैं?*

उत्तर - तुलसी औषधीय रस को हवा में छोड़ता है, और रेडिएशन को दूर करने के साथ हवा के रोगाणुओं को मारकर हवा को रोगमुक्त बनाता है। घी का दिया सकारात्मक ऊर्जा का घेरा लगभग 5 मीटर का बनाता है। तुलसी को दिया देने से इन दोनो का मिलन होता है। तुलसी के औषधीय रस और घी के दिये की गर्मी से गर्म होकर लगभग 5 मीटर तक घर मे फैलकर सकारात्मक ऊर्जा के साथ औषधीय हवा फेफड़ो तक पहुंचाते हैं।

प्रश्न - *तुलसी को शिव पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता?*

उत्तर - शिव के लिंग उन मुख्य स्थलों पर स्थापित किये गए हैं जहां पृथ्वी पर सर्वाधिक रेडिएशन है। रेडिएशन को शिवलिंग वातावरण से खींच कर धरती के गर्भ में प्रस्थापित करके निष्क्रिय करता है। तुलसी रेडिएशन रोकती है। अतः इस कार्य मे विघ्न पहुंचेगा। इसलिए तुलसी शिव पर चढ़ाना वर्जित है।

प्रश्न - *तुलसी को चबाकर डायरेक्ट खाने के लिए मना किया जाता है। तुलसी को प्रसाद या मीठे में मिलाकर खाने को कहते है या गटकने को क्यों बोलते है?*

उत्तर - तुलसी में पारे जैसा तीव्र औषधीय प्रभाव होता है जो डायरेक्ट दांतों के न सहने पर कठोर दांतो को नुकसान पहुंचा सकता है। इसको प्रसाद में मिलाकर या काढ़ा बनाने पर खाने पर दांत इसे सह लेते है। मुंह की लार तुलसी के रस में मिलकर पेट मे पहुंचती है। पूरी पाचन संस्थान को रोगमुक्त करती है।

~श्वेता , DIYA

प्रश्न - जप करते वक्त बहुत नींद आती है, जम्हाई आती है क्या करूँ?

 प्रश्न - जप करते वक्त बहुत नींद आती है, जम्हाई आती है क्या करूँ? उत्तर - जिनका मष्तिष्क ओवर थिंकिंग के कारण अति अस्त व्यस्त रहता है, वह जब ...