*तीन दिवसीय जीवित्पुत्रिका व्रत(अश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक), 1 अक्टूबर से 3 अक्टूबर 2018, 2 अक्टूबर - जीवित्पुत्रिका अष्टमी*
*कथा* - महाभारत काल में द्रौणाचार्य पुत्र अश्वस्थामा ने अंर्जुन के पुत्रवधु उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने हेतु ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा समर्पित कृष्णभक्त थी, उन्होंने श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी(लक्ष्मी) का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु की रक्षार्थ प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र रोका और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने उत्तरा के गर्भ को अंदर से सुरक्षा कवच से ढँक दिया। जिस ब्रह्मास्त्र का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई रोक नहीं सकता है, इसलिए उसका मान रखने हेतु ब्रह्मास्त्र ने उत्तरा का गर्भ नष्ट किया और पुनः उस गर्भ को भगवान कृष्ण और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने जीवत किया। इसलिए इस घटनाक्रम को जीवित्पुत्रिका कहा गया। पांडवो और उत्तरा ने भगवान कृष्ण और आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी की स्तुति की। प्रशन्न होने पर उत्तरा ने कहा, माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी और जगत का पालन करने वाले कृष्ण रूप भगवान विष्णु से प्रार्थना किया क़ि, इस दिन की याद में जो पुत्रवती स्त्री आपका व्रत और तीन दिन का अनुष्ठान करें, उनके पुत्र को मेरे पुत्र की तरह आप संरक्षण प्रदान करें।
*विधि-*
महाभारत के बाद से यह व्रत मनाया जाने लगा। तीन दिन का यह व्रत माताएं अपनी सन्तान को दैवीय संरक्षण प्रदान करने हेतु करती हैं, जिससे सन्तान दीर्घायु यशस्वी हो, और उसका शारीरिक,मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक विकास हो।
*आहार* - तीन दिन का विशेष अनुष्ठान में- जल, नारियल, दूध, सफ़ेद रंग के फ़ल जैसे केला सेव छिलके उतार कर, सफ़ेद ड्राई फ्रूट जैसे मखाना और काजू) इत्यादि ग्रहण करते हैं। कोई भी काली वस्तु आहार में ग्रहण नहीं करते।
तीन दिन तला भुना खाना कढ़ाही में बना वर्जित होता है, पूर्णाहुति के बाद तीसरे दिन रात को पारण कर आहार ले सकते है या चौथे दिन पारण कर आहार लें। तीन दिन पानी खूब पियें। पूर्णाहुति के दिन सन्तान लक्ष्मी और भगवान विष्णु को मीठी मुठियां(गेहूँ के आटे में चीनी डालकर गूथें और उसे देशी घी में तल लें) प्रसाद में चढ़ती है, पूरी और आलू की लहसन प्याज बिना वैष्णव भोजन पारण के समय खाएं।
*तीन दिन के महालक्ष्मी-विष्णु से संरक्षण प्राप्ति हेतु जीवित्पुत्रिका व्रत अनुष्ठान की विधि:-*
प्रथम दिन(सप्तमी) - सुबह पूजन के वक़्त कलश स्थापना करते हैं।
फ़िर पुत्र हेतु
2700(9 माला रोज x 3 दिन तक) गायत्री मन्त्र,
900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) महामृत्युंजय मन्त्र,
900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) सन्तान लक्ष्मी मन्त्र और 900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) विष्णु मन्त्र
जप का संकल्प लेते हैं, जिसे तीन दिन के भीतर पूरा करना होता है, तीन संध्याओं (सुबह, दोपहर, शाम) को पूजन करना होता है। घर में यदि भगवान विष्णु और लक्ष्मी की फ़ोटो या मूर्ती न हो तो पान के पत्ते में दो सुपाड़ी रख के प्रतीक रूप में उसका पूजन कर लें। तीन दिन बाद दोनों सुपाड़ी को तुलसी के पेड़ के नीचे रख दें।
अंतिम दिन यज्ञ या दीपयज्ञ से जीवित्पुत्रिका व्रत की पूर्णाहुति होती है। यज्ञ में पूर्णाहुति में 27 गायत्री मन्त्र की, 9 महामृत्युंजय मन्त्र की, 9 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की और 9 भगवान विष्णु मन्त्र की और 9 नवग्रह मन्त्र की आहुतियां डालें। यज्ञ पुरोहित न मिलने पर स्वयं भी घर पर निम्नलिखित पुस्तक *सरल सर्वपयोगी हवन विधि* से संकल्प और पूर्णाहुति कर सकते हैं। पूर्णाहुति में सूखे नारियल गोले को चढ़ाएं।
गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*
महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*
सन्तान लक्ष्मी गायत्री मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।*
जगतपालनहार भगवान विष्णु मन्त्र - *ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।*
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
किसी भी पुराण, उपनिषद या महाभारत की पुस्तक में इस व्रत को निर्जल(बिना पानी के रहने का) वर्णन नहीं है।
*कथा* - महाभारत काल में द्रौणाचार्य पुत्र अश्वस्थामा ने अंर्जुन के पुत्रवधु उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने हेतु ब्रह्मास्त्र चलाया। उत्तरा समर्पित कृष्णभक्त थी, उन्होंने श्रीकृष्ण और माता रुक्मणी(लक्ष्मी) का ध्यान किया और गर्भस्थ शिशु की रक्षार्थ प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने ब्रह्मास्त्र रोका और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने उत्तरा के गर्भ को अंदर से सुरक्षा कवच से ढँक दिया। जिस ब्रह्मास्त्र का पूरे ब्रह्माण्ड में कोई रोक नहीं सकता है, इसलिए उसका मान रखने हेतु ब्रह्मास्त्र ने उत्तरा का गर्भ नष्ट किया और पुनः उस गर्भ को भगवान कृष्ण और माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी ने जीवत किया। इसलिए इस घटनाक्रम को जीवित्पुत्रिका कहा गया। पांडवो और उत्तरा ने भगवान कृष्ण और आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी की स्तुति की। प्रशन्न होने पर उत्तरा ने कहा, माँ आद्यशक्ति सन्तान लक्ष्मी और जगत का पालन करने वाले कृष्ण रूप भगवान विष्णु से प्रार्थना किया क़ि, इस दिन की याद में जो पुत्रवती स्त्री आपका व्रत और तीन दिन का अनुष्ठान करें, उनके पुत्र को मेरे पुत्र की तरह आप संरक्षण प्रदान करें।
*विधि-*
महाभारत के बाद से यह व्रत मनाया जाने लगा। तीन दिन का यह व्रत माताएं अपनी सन्तान को दैवीय संरक्षण प्रदान करने हेतु करती हैं, जिससे सन्तान दीर्घायु यशस्वी हो, और उसका शारीरिक,मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक विकास हो।
*आहार* - तीन दिन का विशेष अनुष्ठान में- जल, नारियल, दूध, सफ़ेद रंग के फ़ल जैसे केला सेव छिलके उतार कर, सफ़ेद ड्राई फ्रूट जैसे मखाना और काजू) इत्यादि ग्रहण करते हैं। कोई भी काली वस्तु आहार में ग्रहण नहीं करते।
तीन दिन तला भुना खाना कढ़ाही में बना वर्जित होता है, पूर्णाहुति के बाद तीसरे दिन रात को पारण कर आहार ले सकते है या चौथे दिन पारण कर आहार लें। तीन दिन पानी खूब पियें। पूर्णाहुति के दिन सन्तान लक्ष्मी और भगवान विष्णु को मीठी मुठियां(गेहूँ के आटे में चीनी डालकर गूथें और उसे देशी घी में तल लें) प्रसाद में चढ़ती है, पूरी और आलू की लहसन प्याज बिना वैष्णव भोजन पारण के समय खाएं।
*तीन दिन के महालक्ष्मी-विष्णु से संरक्षण प्राप्ति हेतु जीवित्पुत्रिका व्रत अनुष्ठान की विधि:-*
प्रथम दिन(सप्तमी) - सुबह पूजन के वक़्त कलश स्थापना करते हैं।
फ़िर पुत्र हेतु
2700(9 माला रोज x 3 दिन तक) गायत्री मन्त्र,
900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) महामृत्युंजय मन्त्र,
900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) सन्तान लक्ष्मी मन्त्र और 900 (3 माला रोज x 3 दिन तक) विष्णु मन्त्र
जप का संकल्प लेते हैं, जिसे तीन दिन के भीतर पूरा करना होता है, तीन संध्याओं (सुबह, दोपहर, शाम) को पूजन करना होता है। घर में यदि भगवान विष्णु और लक्ष्मी की फ़ोटो या मूर्ती न हो तो पान के पत्ते में दो सुपाड़ी रख के प्रतीक रूप में उसका पूजन कर लें। तीन दिन बाद दोनों सुपाड़ी को तुलसी के पेड़ के नीचे रख दें।
अंतिम दिन यज्ञ या दीपयज्ञ से जीवित्पुत्रिका व्रत की पूर्णाहुति होती है। यज्ञ में पूर्णाहुति में 27 गायत्री मन्त्र की, 9 महामृत्युंजय मन्त्र की, 9 सन्तान लक्ष्मी मन्त्र की और 9 भगवान विष्णु मन्त्र की और 9 नवग्रह मन्त्र की आहुतियां डालें। यज्ञ पुरोहित न मिलने पर स्वयं भी घर पर निम्नलिखित पुस्तक *सरल सर्वपयोगी हवन विधि* से संकल्प और पूर्णाहुति कर सकते हैं। पूर्णाहुति में सूखे नारियल गोले को चढ़ाएं।
गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*
महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्*
सन्तान लक्ष्मी गायत्री मन्त्र - *ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।*
जगतपालनहार भगवान विष्णु मन्त्र - *ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।*
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन
किसी भी पुराण, उपनिषद या महाभारत की पुस्तक में इस व्रत को निर्जल(बिना पानी के रहने का) वर्णन नहीं है।