Wednesday, 28 March 2018

मंत्रशक्ति को सबल-प्राणवान बनाती है, श्रद्धा-संवेदना

मंत्रशक्ति को सबल-प्राणवान बनाती है, श्रद्धा-संवेदना

मंत्रजप एक प्रकार से शब्द विज्ञान की एक शाखा है तो भी भौतिक विज्ञान उसका उपयोग नहीं कर पाता। उसका कारण और कुछ नहीं श्रद्धा-संवेदना का वैज्ञानिक विश्लेषण न कर पाना है। अध्यात्म विज्ञान की बात करते समय इसी तथ्य को यह कहकर प्रकट किया जाता है कि साधक की श्रद्धा इष्ट में जितनी अधिक होगी, उपास्य के प्रति उसका विश्वास जितना अधिक होगी, उपास्य के प्रति उसका विश्वास जितना प्रगाढ़ होगा, परमात्मा से मिलन की छटपटाहट-भक्ति जितनी तीव्रतर होगी, मंत्र का प्रभाव-प्रतिफल उतनी ही जल्दी उपलब्ध होगा। कभी-कभी अनायास ही किसी के मुख से निकले शब्द सच हो जाते है, शाप, वरदान फलित हो जाते हैं। उसमें भी उस व्यक्ति की उस क्षण की भावसंवेदना ही प्रमुख होती है। जब भाव संवेदनायें अपनी चरम अवस्था में उमड़ रहीं हों, उस समय मंत्र सिद्धि द्वारा कभी भी किसी भी समय किसी को भी लाभ पहुँचाया और सहायता की जा सकती है।

साधारणतया शब्द की शक्ति बहुत धीमी होती है। आकाश में बिजली चमकती है तो ध्वनि पहले होती है। प्रकाश पीछे प्रस्फुटित होता है। किन्तु दूरस्थ व्यक्ति को पहले चमक दिखाई देती है और गरज पीछे सुनाई पड़ती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि प्रकाश की गति एक सेकेंड में एक लाख 86 हजार मील या 3108 मीटर है। ध्वनि की गति मंद होती है और यह एक सेकेंड में 1120 फुट या 330 मीटर जितनी छोटी दूरी की तय कर पाती है। इतनी स्वल्प क्षमता वाली ध्वनि कोई चमत्कार कैसे पैदा कर सकती है? यह विचारणीय प्रश्न है।

रेडियो, टेलीविजन आज घर-घर पहुँच गये हैं। बी.बी.सी. लन्दन, वी.ओ.ए. न्यूयार्क, रूस, जापान आदि के प्रसारण एक सेकेंड में इतनी दूर बैठे भारतवासी सुन लेते हैं। ऐसा क्यों होता है, जबकि ध्वनि की गति मात्र 330 मीटर प्रति सेकेंड है।

भौतिक शास्त्र के विद्यार्थी जानते हैं कि रेडियो प्रसारण जिस स्टेशन से होता है वहाँ एक बड़ी क्षमता वाला विद्युत जेनरेटर जुड़ा रहता है। यह विद्युतशक्ति चुम्बकीय क्षेत्र से गुजारी जाती है। जिससे उसकी सामर्थ्य भी कई गुना अधिक तरंगित हो जाती है। इन विद्युत चुम्बकीय तरंगों के जहाज पर ही शब्दों के यात्री बैठा दिये जाने हैं जिससे उनकी गति 330 मीटर प्रति सेकेंड से बढ़कर 3+108 मीटर प्रति सेकेंड हो जाती है। इस क्रिया को ‘सुपर इम्पोज्ड रिकार्डेड साउण्ड’ कहते हैं। इस शक्ति से न केवल रेडियो प्रसारण ही संभव हुए हैं, वरन् अंतर्ग्रही राकेटों की उड़ान के समय उन्हें दिशा निर्देश देने, उनकी यान्त्रिक खराबी को दूर करने का भी कार्य इस शक्ति से किया जाने लगा है। सोनोग्राफी से लेकर साउण्ड थेरेपी तक के कितने ही चिकित्सकीय कार्य सम्पन्न होने लगे हैं।

अब शक्ति के एक नये स्रोत “लेसर” की जानकारी वैज्ञानिकों को हस्तगत हुई है जिसकी गति प्रकाश या विद्युत चुम्बकीय तरंगों की अपेक्षा बहुत अधिक है। अनुमान है कि यदि शब्द को इस शक्ति के ऊपर चढ़ा दिया जाय तो व्यक्ति ब्रह्मांड के दूसरे छोर से बैठ कर पृथ्वी के किसी घने जंगल में किसी गुफा के अन्दर बैठे हुए व्यक्ति से उसी प्रकार बात कर सकता है जैसे दो साथ बैठे व्यक्ति कर लेते हैं। यह किरणें इतनी शक्तिशाली होती है कि एक फुट मोटी इस्पात की चादर में सेकेंड के अरबवें हिस्से में ही छेद कर सकती हैं। आँख की पुतली में इसके लाखवें हिस्से में आपरेशन करना हो तो यह किरणें यह कार्य कुशलता पूर्वक संपन्न कर सकती हैं। लेसर किरणों को भविष्य की चिकित्सा का चमत्कार माना जा रहा है। एक दिन वह आ सकता है जब क्षय तथा कैंसर जैसे असाध्य रोगियों को एक पंक्ति में लगाकर रेल की टिकटें बेचने जितने समय में चंगा करके भेजा जाया करेगा। मंत्र से भी ऐसी ही अपेक्षायें की जाती हैं। मंत्र की शक्ति सामर्थ्य असीम है, वह लेसर किरणों से कम नहीं, वरन् अधिक ही है।

मंत्र जप-प्रक्रिया में भी इसी तरह की शक्ति तरंगों का उत्पादन और समन्वय होता है। पर उसका प्रभाव साधक की अस्त−व्यस्त मनःस्थिति के कारण दिखाई नहीं देता। “योगः चित्तवृत्तिश्चनिरोधाः” अर्थात् चित्त वृत्तियों को एकाग्र करना ही योग साधना का उद्देश्य है। पातंजलि योग दर्शन का एक सूत्र बताता है कि मंत्र जप के साथ मन की बिखरी हुई शक्तियों को समेटना आवश्यक है। इसी से जप ‘शक्तिशाली बनता हैं। यह शक्ति विद्युत चुम्बकीय क्षमता की तरह है और प्रारंभिक है। अन्तिम अवस्था तो मंत्र के साथ-साथ भाव संवेदना का ही जुड़ना है।

भावनाओं की शक्ति मन की शक्ति से अनेक गुना अधिक है। परामनोविज्ञान के अनुसंधानकर्ताओं को ऐसे अनेक उदाहरण मिले हैं जिन्हें ‘टेलीपैथी’ या दूर संप्रेषण के नाम से जाना जाता है। इस संदर्भ में ‘साइको काइनोसिस’ नामक एक स्वतंत्र विज्ञान ही विकसित कर लिया गया है जिसमें मनुष्य की भाव संवेदनाओं से लेकर अतीन्द्रिय क्षमताओं तक की विज्ञान सम्मत जानकारियाँ सम्मिलित हैं। पाया गया है कि अब अत्यधिक संवेदना की स्थिति में पृथ्वी के किसी वायरलैस-टेलीफोन के संदेश पहुँचाया जा सकता है। जबकि टेक्नोलॉजी में आज तक शब्द तरंगों को नियंत्रित किये बिना कभी भी यह संभव नहीं होता। यही कारण है कि रेडियो स्टेशन के प्रसारण रेडियो से तो सुने जा सकते हैं, पर रेडियो वाला स्वयं रेडियो स्टेशन वाले को कुछ नहीं कह सकता। मंत्र जप और भाव संवेदना की यह विशेषता उसे भौतिक उपार्जन से अधिक महत्वपूर्ण बनाती है। मन्त्रशक्ति केवल, वरन् साधक के व्यक्तित्व में भी प्रकंपन पैदा करती है। उससे उसका व्यक्तित्व भी प्रखर प्रकाशवान बनता चला जाता है।

मदन मोहन मालवीय जी के जीवन की एक घटना है। वे तब इलाहाबाद में थे और उनकी माँ वाराणसी में थी। माँ एक दिन दुर्घटनावश आग से बुरी तरह जल गयीं। उसी समय उन्होंने सम्पूर्ण हृदय से मालवीय जी को याद किया। उसकी प्रतिक्रिया तुरन्त मालवीय जी को तीव्र जलन के रूप में हुई। उनके अंतःकरण ने तुरन्त अनुभव किया कि माँ जल गई है। वे तत्काल बनारस पहुँचे और वस्तुस्थिति को सत्य पाया। जगत् गुरु आद्य शंकराचार्य के संबंध में भी ऐसा ही एक प्रसंग है। उन्होंने बचपन में अपनी माँ को उनका दाह संस्कार स्वयं अपने हाथों से करने का वचन दिया था। उनकी मृत्यु के समय वे उत्तर भारत की यात्रा में थे, जहाँ उन्हें माँ की अभ्यंतर वाणी सुनाई दी और वे मध्य यात्रा से ही घर लौट पड़े और ठीक समय पर पहुँच कर माँ का अन्तिम संस्कार संपन्न किया। संत ज्ञानेश्वर एवं रामकृष्ण परमहंस के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्हें मानवेत्तर प्राणियों की भावसंवेदनाओं भी अपनी मर्मांतक पीड़ा से अवगत करा देती थी। निरीह प्राणियों के शरीरों पर पहुँचने वाले कष्ट स्वयं उनकी काया पर उभर आते थे।

भावनाओं का विज्ञान समझ में न आता हो, यह अलग बात है, पर उनके अस्तित्व से कोई इनकार नहीं कर सकता। वह किन प्रकाश परमाणुओं का उपादान है, संभव है भविष्य में उसका पता चल सके, पर उनकी शक्ति सामर्थ्य दैनिक जीवन-व्यापार में हर कोई देखता है। भावनाओं के आधार पर ही सृष्टि की क्रीड़ा चलती रहती है। भावविहीन वातावरण सुनसान मरघट की तरह जान पड़ता है।

मंत्र में यह भावनायें ही-श्रद्धा−विश्वास भक्ति माध्यम से ही कार्य करती है। उन्हें जितना अधिक प्रखर और पवित्र बनाया जाता है, मंत्रशक्ति उतनी ही शीघ्र फल देने लगती है। आधे-अधूरे मन से जपा गया मंत्र फल तो देता है, पर उसमें थोड़ी देर लगती है। मंत्रशक्ति को प्रभावशाली बनाने में अन्तःश्रद्धा की प्रगाढ़ता ही प्रमुख भूमिका निभाती है। यही वह शक्ति है जो मंत्र को जीवन्त और सद्यः फलदायी बनाती है।

अखण्ड  ज्योति  अप्रैल  1993

प्रश्न - भगवान श्रीराम के चरित्र से भारतीय युवाओं को क्या शिक्षा लेनी चाहिए?

*प्रश्न- भगवान राम से आज के युवाओं को क्या शिक्षा लेना चाहिए? कृपया सरल और आज के जमाने के हिसाब से समझाइये?*

तो भाई, सबसे पहले यह समझते है कि भगवान गुणप्रधान है या रूपप्रधान है?

कोई सुंदर सी भगवान की फ़ोटो एक युवा राजा की पोशाक में या तपस्वी की पोशाक में देखने पर कैसे हम पहचानते हैं कि यह राम है या कृष्ण?

सही उत्तर- धनुष लिए होंगे तो राम और हाथ मे बांसुरी हुई और सर पर मोरपंख हुआ तो कृष्ण। अर्थात रूप नहीं उनके गुण अनुसार लिए उपकरण से उनकी पहचान करते हैं। तो भगवान सद्गुणों के समुच्चय(संग्रह) को कहते हैं, उनकी पूजा अर्थात उस देवता की तरह अपने भीतर गुण विकसित करना। धर्मनिष्ठ मर्यादापुरुषोत्तम राम की आराधना अर्थात राम के चरित्र को अपने मन में बसाना। यही तुलसीदास ने पुस्तक राम चरित(चरित्र) मानस में संदेश दिया है।

राम को भगवान सबने क्यूँ माना, क्योंकि उन्होंने दुष्ट व्यभिचारी और ऋषियों और आमजनता को प्रताड़ित करने वाले शक्तिशाली दैत्य को मारा। सबको राक्षसों से मुक्ति दिलाई, राम राज्य स्थापित किया। एक पत्नी व्रत आजन्म निभाया, स्व हित से ऊपर प्रजा का हित रखा।

आमजनता के जीवन में जब संकट आता है तो उनका चरित्र और मन बिखर जाता है। लेकिन श्रीराम जी के जीवन मे जब जब संकट आया उन्होंने वीरता से उसका सामना किया। यही राम जी के जीवन से युवाओं को सन्देश लेना चाहिए कि विपरीत परिस्थिति में भी धर्म का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

किशोरावस्था में विश्वामित्र के साथ ताड़का वध करके वहाँ रहने वाले लोगों को उसके अत्याचार से मुक्त करवाया। सीता जी से विवाह अपने पुरुषार्थ से किया। राजा बनने के वक़्त पिता के आदेश पर जंगल चल दिये क्योंकि स्वयं के पुरुषार्थ पर भरोसा था। जंगल कठिन और अतिदुष्कर होता है उस चैलेंज को स्वीकार किया। रावण ने सीता जी का अपहरण किया तो पैदल भारत के इस कोने से उस कोने तक यात्रा कर डाली। समुद्र तक मे सेतु बना दिया। असम्भव को सम्भव कर अपने पुरुषार्थ से सीता जी को मुक्त करवाया। जब पुनः राज्याभिषेक हुआ और पिता बनने वाले थे पुनः संकट गहराया। कुचक्र और षड़यंत्र कारियों ने तख्ता पलट की योजना बनाई और सीता जी पर चारित्रिक लांछन लगाया। एक तरफ़ पत्नी और होने वाली सन्तान और दूसरी तरफ़ हज़ारों प्रजा? दंगा भड़कता तो प्रजा दो हिस्सों में बंटती और राक्षस इस राजनीतिक अस्थितिरता का फ़ायदा उठा लेते, प्रजा के जीवन में गम्भीर संकट उतपन्न हो जाता, तो श्रीराम किसका जीवन बचाते- एक सीता जी का या अनेक प्रजा का ? एक तरफ खाई और दूसरी तरफ़ कुआं था। श्रीरामजी और श्री सीता जी ने एक देशभक्त सैनिक की तरह मातृभूमि की रक्षा और प्रजा हित अपने स्वहित से ऊपर माना। जैसे भगतसिंह ने अपनी प्रेमिका और मां से ऊपर मातृभूमि को माना। देश की आज़ादी के लिए शहीद हो गए। इसी तरह श्रीराम जी और सीता जी भी जीते जी मातृभूमि के लिए शहीद हो गए। विलग हो गए। अश्वमेध में अपने पुत्रों से ही युद्ध लड़ना पड़ा जो एक पिता के लिए दुःखद था। अपनी प्राणप्रिय सीता जी को अपनी आंखों के समक्ष धरती में समाते हुए देखा। इतनी सारी विपरीत परिस्थिति में भी स्वयं के चरित्र चिंतन व्यवहार को सम्हाला, मातृभूमि की रक्षा किया और दैत्यों का संघार किया, अपनी प्रजा के साथ साथ पूरे भारतवर्ष में अश्वमेघ यज्ञ द्वारा राम राज्य की स्थापना किया।

भारतीय सीमा पर लड़ने वाला सैनिक भी अपनी पर्सनल लाइफ की कई सारी जिम्मेदारी नहीं निभा पाता, इसी तरह देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी भी अपने पर्सनल जीवन सुकून चैन से न बिता सके। भगवान श्रीराम भी पर्सनल जीवन में पत्नी के प्रति जिम्मेदारी प्रजा और देश की  सुरक्षा हेतु न निभा सके। जब परिस्थितियां विपरीत होती है तब सही और ग़लत के बीच निर्णय आसान होता है। लेकिन दो सही ऑप्शन और दो गलत ऑप्शन के बीच चयन बहुत मुश्किल होता है। एक सम्हलेगा तो दूसरा उपेक्षित होगा ही। सीता जी भी यह बात जानती थीं क्यूंकि भारतीय क्षत्राणी को बचपन से ही राष्ट्रहित स्वहित से ऊपर सँस्कार में दिया होता है।

अतः भारतीय युवाओं को श्रीराम और सीता जी के चरित्र से धर्म, मर्यादा, देशभक्ति का शिक्षण लेना चाहिए। अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करना चाहिए, विपरीत परिस्थिति और संकट के समय भी धर्म के मार्ग का ही चयन करना चाहिए। स्वहित से ऊपर देशहित रखना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Tuesday, 27 March 2018

Kalp Sadhna

Kalp Sadhna, sirf  four lines mein:   We in past birth, removed green grass, digger pit of greed, arrogance, selfishness, and its impact harms others, so we sow seeds of throns in that pit for others and covered grass again. We travelled next birth, nature erased memory of past birth, we are happily travelling on grass, we fell in same pit, which we digged for others and covered with grass. Kalp Sadhna says, empty pits from thrones 1. Share autobiography with eligible people and empty, these throns are memories and incidents troubling you, so sharing is removing throns. Now we are in pit without pain Step 2. We resolve never to do it again, and show in few tests which will come in the form of choosing between truth and doing good to others or meeting our greed like previous births, passing tests, affirm our resolve to god, that we will not do it again, because now these have become sanskars. 3. After that, Kalp Sadhna means day and night earning material which will fill this pit in which we are, each day efforts will fill the pit, this material is noble and good deeds collected on day to day basis.  A day will come when pit is filled with noble and good deeds, these deeds now have become habits, so grass comes again, pit is filled, no one in external world, would ever know that we by atoning, repenting and cleaning previous births have shown to the world, that we were never wrong.  4. Last phase, Shati Purthi:
Now this habits of opening pit for greed, attachment and arrogance, sowing seeds of throns for others and again atonement, penance, repentance and filling pit with material of good deeds and coming out it will rotate. To forever come out of this habit, we have done worst loss to society, because we have set a trend which all connected within our domain will follow. For this we have to compensate society for the wrong sea lehar we have made and set trends for others, by replacing it with sea lehar of good deeds. In this process, Kalp Sadhna is complete, as we become habitual of constantly creating vibrations and setting examples of our good and noble deeds. Thus greed, attachment and arrogance are replaced with becoming an instrument in hands of divine as per his wish is complete cycle of Kalp Sadhna. Book Reference: Swarg Narak ki Swachalit Prakriya.  The painful process in short period,of removing throns is in book Chandrayan Kalp Sadhna. In Chandrayan, we tolerate excessive pains in short period and timings are short, we get free easily.   The middle less painful, but lengthwise takes more time, the process is covered in Antrik Kayakalp ka saral kintu sunichit vidhaan.   For gathering strengths in the process: Books are Nirbhay bane Shant  Rahain, Kayarta Ka Kalank hame Manjur nahi, Kathinai se  dare nahi lade, Vangmaya: Tejasvita, Manasvita, Prakharta. , Nirasha ko pass na phatkne De, Shaktiman baniyaa, Shakti path ke sanchay per, Anyaya,  aniti se kaiase Ladain, Prachiyat vidhaan small book.  For knowing exact reasons why I am in a pit suffering:  Law of absolute Karma .        Conclusion: 1.  Every past can be cleaned for bright future. 2. Destiny is changeable and controllable by noble and good deeds. 3. Future is controllable and damages for all bad future events can be easily curtailed.  Destiny can be changed- Source page 33/66, Swarg Narak Ki Swachalit Prakriyaa.     To gather strengths to achieve all these and to make this process smooth, All books on Gayatri, We cannot do from our own strengths and efforts, we need God helps, for that: Prarthna Jivant Kaiasa Banain

स्वास्तिक चिन्ह का महत्त्व

स्वास्तिक का चिन्ह

किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होता है। स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना जाता है। यहां ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना। अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’।

शुभ कार्य

यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक को पूजना अति आवश्यक माना गया है। लेकिन असल में स्वस्तिक का यह चिन्ह क्या दर्शाता है, इसके पीछे ढेरों तथ्य हैं। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है।

चार रेखाएं

मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।

चार देवों का प्रतीक

इसके अलावा इन चार रेखाओं की चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) और गणेश से तुलना की गई है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।

मध्य स्थान

मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। इसके अलावा यह मध्य भाग संसार के एक धुर से शुरू होने की ओर भी इशारा करता है।

सूर्य भगवान का चिन्ह

स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता है। वह सूर्य देव जो समस्त संसार को अपनी ऊर्जा से रोशनी प्रदान करते हैं।

बौद्ध धर्म में स्वास्तिक

हिन्दू धर्म के अलावा स्वास्तिक का और भी कई धर्मों में महत्व है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।

जैन धर्म में स्वास्तिक

वैसे तो हिन्दू धर्म में ही स्वास्तिक के प्रयोग को सबसे उच्च माना गया है लेकिन हिन्दू धर्म से भी ऊपर यदि स्वास्तिक ने कहीं मान्यता हासिल की है तो वह है जैन धर्म। हिन्दू धर्म से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का जैन धर्म में है। जैन धर्म में यह सातवं जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।

हड़प्पा सभ्यता में स्वास्तिक

सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान स्वास्तिक प्रतीक चिन्ह मिला। ऐसा माना जाता है हड़प्पा सभ्यता के लोग भी सूर्य पूजा को महत्व देते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक संबंध ईरान से भी था। जेंद अवेस्ता में भी सूर्य उपासना का महत्व दर्शाया गया है। प्राचीन फारस में स्वास्तिक की पूजा का चलन सूर्योपासना से जोड़ा गया था, जो एक काबिल-ए-गौर तथ्य है।

विश्व भर में स्वास्तिक

विभिन्न मान्यताओं एवं धर्मों में स्वास्तिक को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में और भी कई धर्म हैं जो शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक के चिन्ह को इस्तेमाल करना जरूरी समझते हैं। लेकिन केवल भारत ही क्यों, बल्कि विश्व भर में स्वास्तिक को एक अहम स्थान हासिल है।

जर्मनी में स्वास्तिक

यहां हम विश्व भर में मौजूद हिन्दू मूल के उन लोगों की बात नहीं कर रहे जो भारत से दूर रह कर भी शुभ कार्यों में स्वास्तिक को इस्तेमाल कर अपने संस्कारों की छवि विश्व भर में फैला रहे हैं, बल्कि असल में स्वास्तिक का इस्तेमाल भारत से बाहर भी होता है। एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में स्वास्तिक का इस्तेमाल किया जाता है।

लाल रंग ही क्यों

यह सभी तथ्य हमें बताते हैं कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने में स्वास्तिक चिन्ह ने अपनी जगह बनाई है। फिर चाहे वह सकारात्मक दृष्टि से हो या नकारात्मक रूप से। परन्तु भारत में स्वास्तिक चिन्ह को सम्मान दिया जाता है और इसका विभिन्न रूप से इस्तेमाल किया जाता है। यह जानना बेहद रोचक होगा कि केवल लाल रंग से ही स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है?

लाल रंग का सर्वाधिक महत्व

भारतीय संस्कृति में लाल रंग का सर्वाधिक महत्व है और मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी दर्शाता है। धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना जाता है।

शारीरिक व मानसिक स्तर

लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। हमारे सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल है। यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है। यह कुछ कारण हैं जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं।

कलश का महत्त्व


सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। जैसे मांगलिक कार्यों का शुभारंभ, नया व्यापार, नववर्ष आरंभ, गृहप्रवेश, दिवाली पूजन, यज्ञ-अनुष्ठान, दुर्गा पूजा आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।



धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश की स्थापना की जाती है। नवरा‍त्रि के दिनों में मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं तथा मां दुर्गा की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।

यह कलश विश्व ब्रह्मांड, विराट ब्रह्मा एवं भू-पिंड यानी ग्लोब का प्रतीक माना गया है। इसमें सम्पूर्ण देवता समाए हुए हैं। पूजन के दौरान कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है।

कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं। 

विक्रम संवत

विक्रम संवत हिन्दू पंचांग में समय गणना की प्रणाली का नाम है। यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है। इसका प्रणेता नेपाल के लिच्छव वंशके प्रथम राजा धर्मपाल भूमिवर्मा विक्रमादित्य को माना जाता है। इस तथ्यको गुजरात के खोजकर्ता पं.भगवानलाल इन्द्रजी ने भी सही ठहराया है। कोई कोई कहते हैं कि ऐ संवत् भारतवर्ष के सम्राट विक्रमादित्य ने शुरु किया था लेकिन समय के गणना में वो सही नहीं रहता। क्योंकि मगधके सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उज्जयनी और अयोध्या पर विजय प्राप्त किया और खुद को 'विक्रमादित्य' सम्राटका उपाधि दी। उससे पहले कहीं और कभी भी विक्रमादित्य का उल्लेख नहीं है।

बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह बारह राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है। इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।

ये संवत नेपाल काआधिकारिक संवत् है। आज भी नेपाल में यही संवत राष्ट्रीय संवत् है।

वर्ष 2017 में यह 13 मार्च (अंग्रेजी) को शुरू हुआ था और 18-मार्च-2018 को विक्रम संवत का प्रथम दिन रहेगा। जिस दिन नव संवत का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है | जैसे 18 मार्च को रविवार होने से वर्ष का राजा सूर्य होगा |

मृत्यु के झरोखे से

मृत्यु के झरोखे से,
जीवन लगता कितना मूल्यवान,
मृत्यु के चश्में से,
जीवन लगता कितना अर्थवान।

शरीर की पीड़ा को,
कोई भी बंटा न पाता,
मृत्यु की यात्रा पर,
कोई भी साथ जा न पाता।

रात का गहन अंधकार,
रौशनी के महत्त्व को समझाता,
गम्भीर गहन बीमारी,
जीवन का भूला कर्तव्य याद दिलाता।

संसार की सारी संपत्ति,
मृत्यु के पल को टाल नहीं सकती,
मजदूर हो या अमीर,
दोनों की चिता की राख़,
एक सी ही लगती।

अमूल्य जीवन को,
 यूं व्यर्थ न गवाओँ,
जीवन का हर पल- हर क्षण,
जी भर के आनंद उठाओ।

मानव जीवन के कर्तव्यों को,
पूरी शिद्दत से निभाओ,
कुछ ऐसा कर जाओ,
कि मरकर भी अमर हो जाओ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 26 March 2018

फैशन से सम्मान मिलेगा या गुणी/योग्य बनने पर सम्मान मिलेगा

*पाश्चात्य आधुनिकता के अंधानुकरण के प्रभाव में रूप/फैशन को गुण से ऊपर बच्चे मान रहे हैं, जबकि वास्तविकता में गुण/योग्यता ही असली सम्मान दिलाता है।*

फिल्में, टीवी सीरियल और विज्ञापन एजेंसियां किशोर- युवाओं-महिलाओं को एक काल्पनिक दुनियाँ में विचरण करवाते हैं। वो उनकी मनोभूमि में भौंडे फ़ैशन गढ़ते हैं।

अब भला फ़ैशनेबल हीरो हिरोइन टाइप के ब्रांडेड कपड़े किसी को परीक्षा में पास या किसी कम्पनी में जॉब या व्यवसाय में सफ़लता दिलवा सकते हैं क्या? बिना किसी गुण और योग्यता के ऐसे लड़के-लड़कियों को कोई भी जीवनसाथी बनाना चाहेगा क्या? समाज-राष्ट्र-पूरे विश्व में सिर्फ़ मार्किट से ख़रीदे कपड़े पहन के नाम बनाया जा सकता है क्या? फ़िल्म में तो एक हीरो कई सारे गुंडों को पीट सकता है लेकिन हकीकत में ऐसा बिना फ़ौज की ट्रेनिंग के आम आदमी के लिए सम्भव है क्या? फ़िल्म में लड़की-लड़के प्रेम करके भागते है शहर के बाहर लाइट वाइट लगा के झोपड़ी टाइप घर बनाके नाचने गाने लगते हैं हक़ीक़त में ये सम्भव है क्या? झुग्गी झोपड़ी में भी किराया भरना पड़ता है और बिजली का कोई सामान मुफ़्त नहीं मिलता। रील लाइफ़ और रियल लाइफ़ में जमीन आसमान का अंतर है? ये कब समझोगे भाईयों-बहनों?

ब्रांडेड कपड़ों को देख के ताली बजाने वाले कुछ रिश्तेदार और कुछ दोस्त होते हैं, वो भी जब तक आपकी जेब मे पैसा होगा- उनपर लुटाने के लिए तबतक ही ताली बजेगी। पैसा खत्म तो तुम कौन और मैं कौन? भद्दे फ़ैशनेबल कपड़ें पहन के फेसबुक की डीपी तो बन सकती है, लेकिन किसी की बीबी या शौहर नहीं बन सकते, किसी कम्पनी या व्यवसाय में सफ़लता नहीं प्राप्त कर सकते यदि कोई योग्यता न हो तो...

मध्यमवर्गीय परिवार के नक़लची बच्चे अपने अमीर दोस्तों की फ़ैशन में नक़ल करने के चक्कर में गलत रास्ते अपनाते है और भटकन और दलदल में फंस के ख़ुद भी परेशान होते है और माता-पिता को भी परेशान करते हैं।

फ़टी जीन्स, अत्यंत छोटे तंग कपड़े, मिनी से भी मिनी स्कर्ट/फ्रॉक/पैंट पहन के हासिल क्या होता है? यह भी पता नहीं...क्यूंकि ये फ़ैशन है...किसने बनाया यह फ़ैशन... पता नहीं...सब पहनते है...हीरो-हिरोइन पहनते हैं... इसलिए हम भी पहनेंगे...सब गढ्ढे में गिरेंगे तो हम भी गिरेंगे...सर्वत्र भेड़चाल....

पार्टी में दर्पण और कैमरा रख दिया जाय तो पता चलेगा सब सिर्फ स्वयं को बेस्ट दिखाने की होड़ में है...बेस्ट दिख के क्या कोई इनाम मिलेगा...नहीं जी...

कड़कड़ाती ढंड में जरीवाली साड़ी, डीप नेक ब्लाउज और गहने पहने के आना... कितनो ने नोटिस किया पता नहीं...दूल्हे-दुल्हन और उसके घरवालों को दिखाने के लिए गरीबों की तरह अमीर होकर भी ठंड बर्दास्त की क्यों?...किसी ने जबरजस्ती की थी...नहीं जी सब ऐसे ही आते हैं...सब कुँए में गिरेंगे तो हम भी गिरेंगे..

लेकिन यदि फंक्शन में कोई उच्च पद आसीन गुणी व्यक्ति आ जाये साधारण कपड़ों में तो सबके समक्ष किसकी इज्जत होगी? फ़ैशन की या गुण/योग्यता की? स्वयं विचार करें...

फ़ैशन एक तरह का व्यसन है जो बिना जाने समझे मूढ़ बुद्धि से किया जाता है, कोई भी समझदार-बुद्धिमान-योग्य व्यक्ति भौंडे फ़ैशन की मकड़जाल का शिकार नहीं बनता है। वह जीवन लक्ष्य की ओर केंद्रित हो सही दिशा में मेहनत करके गुणों के कारण स्थायी प्रशंसा-सम्मान प्राप्त करता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - अध्यात्म में सरल होने का क्या अर्थ है?

*प्रश्न - अध्यात्म में सरल होने का क्या अर्थ है?*

सरल साधक और तरल जल दोंनो एक जैसे होते हैं। जल का कोई रूप रंग नहीं और कोई आकार नहीं, जिस पात्र में डाल दो उसी को समर्पित हो उसका आकार ले लेता है। सकाम साधक कभी भी सरल और निर्मल हृदय नहीं बन सकता। हृदय में बची एक ईच्छा भी अनेक होने में देर नहीं लगती।

इच्छाओं से रिक्त हृदय ही सरल और निर्मल बन सकता है। जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए, कर्म में निमित्त भाव और कर्ता भगवान को ही स्वीकार ले जो हृदय वह ही सरल और निर्मल बन सकता है।

सरल साधक निर्मल हृदय से बनता है, यदि हृदय में कोई भी कैसी भी अच्छी या बुरी चाहत बची, किसी से हो या भगवान से कुछ भी पाने की इच्छा बची तो हृदय निर्मल न रहेगा। मोक्ष भी एक प्रकार की इच्छा है, जो साधक को सरल नहीं रहने देती। मोक्ष किसे चाहिए? मुझे? अर्थात परमात्मा से एकत्व नहीं हुआ, मैं विद्यमान है। जब मैं है तो हरि नहीं, जब हरि है मैं नाहि।

जब ईश्वर को समस्त ईच्छा सौंप दी जाती है, तन मन धन सर्वस्व उनका मान लिया, तो उनके रंग में साधक रंग जाता हैं। अब सौंप दिया इस जीवन का सब कंट्रोल/भार ईश्वर के हाथ में यह भाव दृढ़ रहना चाहिए।

फिर सूरदास कहावत चरितार्थ होती है- सूरदास काली कम्बल में चढ़े न दूजों रंग। फिर साधक ईश्वर के रंग में रंगने के बाद उस पर दुनियां का असर समाप्त हो जाता है। लोग क्या कहेंगे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो संसार के किसी भी जीव से कोई अपेक्षा नहीं रखता। उसके लिए मान - अपमान सब बराबर होता है। जब कुछ पाना ही शेष न रहा तो फ़िर ईर्ष्या द्वेष इन सब सांसारिक भावनाओं के लिए जगह नहीं बचती। क्यूंकि ईर्ष्या द्वेष अहंकार तो मैं को होगा, लेकिन जब है ही नहीं वो ही वो है, हरि ही हरि है तो फ़िर निर्मलता और सरलता स्वभाविक है।

फ़िर जो बन गया भगवान का दास, बन गया ईश्वर यन्त्र और रंग गया प्रभु के रंग में, सोते जागते, श्वांस-श्वांस से जो ले रहा है प्रभु का नाम और कर रहा है बिना कुछ पाने की चाह में प्रभु का काम, उस सरल और निर्मल हृदय साधक के साथ हर पल रहते हैं भगवान।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

स्वयं से प्रतिस्पर्धा

*बटरस्कॉच आइसक्रीम*

टीचर ने सीटी बजाई और स्कूल के मैदान पर 50 छोटे छोटे बालक-बालिकाएँ दौड़ पड़े।

सबका एक लक्ष्य। मैदान के छोर पर पहुँचकर पुनः वापस लौट आना।

प्रथम तीन को पुरस्कार। इन तीन में से कम से कम एक स्थान प्राप्त करने की सारी भागदौड़।

सभी बच्चों के मम्मी-पापा भी उपस्थित थे तो, उत्साह जरा ज्यादा ही था।

मैदान के छोर पर पहुँचकर बच्चे जब वापसी के लिए दौड़े तो पालकों में  "और तेज...और तेज... "  का तेज स्वर उठा। प्रथम तीन बच्चों ने आनंद से अपने अपने माता पिता की ओर हाथ लहराए।

चौथे और पाँचवे अधिक परेशान थे, कुछ के तो माता पिता भी नाराज दिख रहे थे।

उनके भी बाद वाले बच्चे, ईनाम तो मिलना नहीं सोचकर, दौड़ना छोड़कर चलने भी लग गए थे।

शीघ्र ही दौड़ खत्म हुई और 5 नंबर पर आई वो छोटी सी बच्ची नाराज चेहरा लिए अपने पापा की ओर दौड़ गयी।

 पापा ने आगे बढ़कर अपनी बेटी को गोद में उठा लिया और बोले : *"वेल डन बच्चा, वेल डन....चलो चलकर कहीं, आइसक्रीम खाते हैं। कौनसी आइसक्रीम खाएगी हमारी बिटिया रानी ? "*

*"लेकिन पापा, मेरा नंबर कहाँ आया ?"* बच्ची ने आश्चर्य से पूछा।

*"आया है बेटा, पहला नंबर आया है तुम्हारा।"*

*"ऐसे कैसे पापा, मेरा तो 5 वाँ नंबर आया ना ? "* बच्ची बोली।

*"अरे बेटा, तुम्हारे पीछे कितने बच्चे थे ? "*

थोड़ा जोड़ घटाकर वो बोली : *" 45 बच्चे। "*

*"इसका मतलब उन 45 बच्चों से आगे तुम पहली थीं, इसीलिए तुम्हें आइसक्रीम का ईनाम। "*

*" और मेरे आगे आए 4 बच्चे ? "* परेशान सी बच्ची बोली।

*"इस बार उनसे हमारा कॉम्पिटीशन नहीं था। "*

*" क्यों ? "*

*"क्योंकि उन्होंने अधिक तैयारी की हुई थी। अब हम भी फिर से बढ़िया प्रेक्टिस करेंगे। अगली बार तुम 48 में फर्स्ट आओगी और फिर उसके बाद 50 में प्रथम रहोगी।"*

*"ऐसा हो सकता है पापा ?"*

*"हाँ बेटा, ऐंसा ही होता है। "*

*" तब तो अगली बार ही खूब तेज दौड़कर पहली आ जाउँगी। "* बच्ची बड़े उत्साह से बोली।

*" इतनी जल्दी क्यों बेटा ? पैरों को मजबूत होने दो, और हमें खुद से आगे निकलना है, दूसरों से नहीं। "*

पापा का कहा बेटी को बहुत अच्छे से तो समझा नहीं लेकिन फिर भी वो बड़े विश्वास से बोली : " जैसा आप कहें, पापा। "

" अरे अब आइसक्रीम तो बताओ ? " पापा मुस्कुराते हुए बोले।

*तब एक नए आनंद से भरी, 45 बच्चों में प्रथम के आत्मविश्वास से जगमग, पापा की गोद में शान से हँसती बेटी बोली : " मुझे बटरस्कॉच आइसक्रीम चाहिए। "*


*क्या इस बार अपने बच्चो के  रिजल्ट के समय हम सभी माता पिता का  व्यवहार कुछ ऐसा होना चाहिए ....विचार जरूर करे और सभी माता पिता तक जरुर पहुचाये।*

शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलमय हो।

बालसंस्कार शाला क्यों जरूरी है?

*माता-पिता ध्यान दें*🤔🙏🏻

यदि आप ये सोचते है कि अपने बच्चे को तो हम सँस्कार दे रहे हैं, अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ा रहे है। बस हमारी जिम्मेदारी ख़त्म, यदि ऐसा सोचते है तो आपको पुनः विचार करने की आवश्यकता है...
😔😔😔😔
रेयान स्कूल की प्रदुम्न हत्याकांड बताता है कि दूसरे माता पिता द्वारा की गई लापरवाही और स्कूल की लापरवाही से जनित कुसंस्कारी साथ स्कूल पढ़ने और खेलने वाला बच्चा ही आपके बच्चे की सुरक्षा पर सबसे बड़ा ख़तरा है।

अतः जिम्मेदार नागरिक की तरह स्कूल में सप्ताह में कम से कम एक बार नैतिक शिक्षा और सम्वेदना की क्लास सुनिश्चित करवाइए। स्कूल में बाल सँस्कार शाला चलाइये।

जिस जगह या सोसायटी में रहते हैं वहां जिस प्रकार समूहिक होली-दीपावली-लोहड़ी का पर्व मनाते है उसी तरह सप्ताह में एक बार या महीने में एक बार बच्चों को एकत्रित कर बाल सँस्कारशाला शाला चलाइये।

🙄😳🤔याद रखिये भारत में 18 वर्ष से कम युवा के अपराध करने पर मृत्युदंड की कोई व्यवस्था नहीं है। साथ ही निर्भया रेप और मर्डर कांड का आरोपी की तरह वह भी 18 वर्ष तक बाल सुधार गृह में रहेगा और छूटने के बाद सरकार एक सिलाई मशीन और 10 हज़ार रुपये देकर उसे छोड़ देगी। यदि अपराधी का पिता पैसे वाला हुआ तो वो पूरा सिस्टम ख़रीद लेगा या न्याय में विलंब करवाएगा। सिर्फ़ पीड़ित माता-पिता चंद दिन मीडिया में रहेंगे फिर उनकी किस्मत में न्यायालय के चक्कर तो मिलेंगे, पैसा वकील की फीस में खर्च होगा। लेकिन न्याय नहीं मिल सकता । दोषी को मृत्युदंड नहीं मिल सकता। भारत मे न कैंसर का इलाज़ है न भारतीय कानून व्यवस्था में 18 वर्ष से कम अपराधी को मृत्यु दंड का विधान है।

अतः चेत जाईये और होश में आइए, और कम से कम अपने आसपास और स्कूल में साथ पढ़ने और खेलने वाले बच्चों में अच्छे संस्कार गढ़ने हेतु प्रयास कीजिए।

निम्नलिखित वेबसाइट पर विज़िट करें और अपने बच्चे के साथ साथ उसके आसपास साथ पढ़ने, सेम बिल्डिंग में रहने वाले या खेलने वाले बच्चों में अच्छे संस्कार गढ़े। अपने बच्चे और राष्ट्र दोनो को सुरक्षा प्रदान करें:-
🙏🏻
____http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Hindi_Books/Baal_Sanshkar_in_Hindi_in_Hindi

🙏🏻
___http://www.balsanskarshala.com

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन आपका आह्वाहन करता है देश का उज्ज्वल भविष्य बनाइये, घर-घर, गली मोहल्ले, स्कूल कॉलेज में बाल सँस्कारशाला - किशोर सँस्कारशाला चलाइये🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 21 March 2018

क्या यज्ञ एक विज्ञान है या मात्र धार्मिक कर्मकांड?

*क्या यज्ञ एक विज्ञान है या मात्र धार्मिक कर्मकांड?*

तुलसी या अन्य हर्ब  औषधि है लेकिन उसके औषधीय गुण को टेबलेट या अर्क रूप में विभिन्न बिमारियों में प्रयोग लाने के लिए एक वैज्ञानिक विधि व्यवस्था से गुजरना पड़ता है।

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते है कि इसी तरह यज्ञ एक समग्र उपचार विज्ञान है, लेकिन इसके विभिन्न उपचारों हेतु विभिन्न प्रकार की औषधीय सम्मिश्रण, मन्त्र सम्मिश्रण  के साथ अग्नि के संयोजन से उपचार क्रिया सम्पन्न की जाती है। किस प्रकार की समस्या के लिए किस प्रकार की औषधीय मिश्रण और किस प्रकार की समिधा और मन्त्र उपयोग में लाना चाहिए यह सब विस्तृत जानकारी उन्होंने अपनी पुस्तक  - *यज्ञ के ज्ञान विज्ञान* और *यज्ञ एक समग्र उपचार* में विस्तृत रूप से लिखा है।

यज्ञ सम्पूर्ण सृष्टि के इलाज़ की विधि व्यवस्था है- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, जीव, वनस्पति, पशु और मनुष्य सबके एकाकी और सामूहिक दोनो प्रकार के इलाज़ का उपक्रम यज्ञ में मौजूद है। कोई भी आधुनिक दवा, इंजेक्शन इत्यादि एक व्यक्ति का व्यक्तिगत स्तर पर इलाज करती है। लेकिन यज्ञ सामूहिक इलाज की भी विधि व्यवस्था है।

डॉक्टर ममता सक्सेना जी(पीएचडी  - यग्योपैथी, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार) ने यह बात अपने विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों में सिद्ध करके दिखाया है।

उन्होंने निम्नलिखित वैज्ञानिक प्रयोग कर निष्कर्ष निकाला:-

1- यज्ञ करने से वायु में मौजूद कीटाणु नष्ट होते है और सात दिन तक यज्ञ के प्रभाव में बढ़ते-पनपते नहीं हैं। यज्ञ से PM2.5 और PM10 तीव्रता से घटते हैं।

2- जबकि ऐसे ही बिना यज्ञ के धुंआ करने पर प्रदूषण होता है और हवा में कीटाणु-रोगाणु ज्यादा पनपते-बढ़ते हैं। PM2.5 और PM10 बढ़ता है। इसे किसी भी एयर इंडेक्स मीटर से चेक किया जा सकता है।

3- यज्ञ की ऊर्जा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से उतपन्न रेडिएशन को नष्ट करती है। इसे रेडिएशन मीटर से चेक किया जा सकता है।

4- यज्ञ से कॉस्मिक ऊर्जा बढ़ती है। इसे औरा मीटर से चेक किया जा सकता है।

5- यज्ञ के प्रभाव से हवा शुद्ध होती है और मनुष्य के लिए लाभदायक निगेटिव आयन सघन होते हैं। इसे आयन मीटर से चेक किया जा सकता है।

6- यज्ञ के औषधीय धूम्र में श्वांस लेने से फेफड़े स्वस्थ होते है क्योंकि हम स्वांस छोटी लेते है तो पुरानी प्रदूषित वायु फेफड़े से रक्त में मिलकर नुकसान पहुंचाती है। लेकिन यज्ञ का औषधीय धूम्र फेफड़े को स्वस्थ करता है। श्वसन नलिका साफ करता है। औषधीय धूम्र फेफड़े से हृदय तक पहुंचता है। औषधियां रक्त में मिलकर पूरे शरीर की नाड़ियों को स्वच्छ और रोगमुक्त करती है, रोमछिद्र से यज्ञ धूम्र प्रवेश कर त्वचा रोगों को नष्ट करता है। इम्युनिटी बढ़ाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। यज्ञ धूम्र मष्तिष्क के न्यूरॉन्स को उत्तेजित कर नियंत्रित मात्रा में डोपामिन रिलीज़ करता है, जिससे माइंड स्टेट हैप्पी हो जाती है। इसे किसी भी EEG मशीन या हैप्पी इंडेक्स मीटर से चेक किया जा सकता है।

7- यज्ञ चिकित्सा से पूर्व हेल्थ चेकअप और विविध टेस्ट और यज्ञ चिकित्सा के बाद हेल्थचेकअप और विविध टेस्ट करवा के यज्ञ चिकित्सा परिणाम को देखा जा सकता है।

 यज्ञ के लाभ अनेक हैं, गागर में सागर भरूँ कैसे? एक सी पोस्ट में यज्ञ महिमा लिखूं कैसे?

आज धन्यवाद वैज्ञानिक उपकरणों का जिनके माध्यम से ऋषियो की धरोहर और यज्ञ एक समग्र उपचार को बेहतर तरीके से जन सामान्य को समझाने में आसानी हो रही है।

यग्योपैथी- यज्ञ एक समग्र उपचार और भविष्य सुरक्षित रखने वाला ज्ञान-विज्ञान

*यग्योपैथी- यज्ञ एक समग्र उपचार और भविष्य सुरक्षित रखने वाला ज्ञान-विज्ञान*

विज्ञान की तरक़्क़ी से एक ओर विकास तो दूसरी ओर विनाश होता है। आधुनिक विभिन्न कारे-वाहन, फैक्ट्री-मिल जहां विकास का चिन्ह है वहीं उनसे निकलने वाला जहरीला धुंआ विनाश का चिन्ह है। टेलीविजन, मोबाइल, लेपटॉप, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स समान एक तरफ़ विकास का चिन्ह है तो इनसे उतपन्न रेडिएशन विनाश का चिन्ह हैं। प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग विकास का चिन्ह है और इनका अंधाधुंध अत्यधिक दोहन विनास का चिन्ह है। एंटीबायोटिक  दवाओं और टीकों का जितना लाभ है उससे ज्यादा उससे शरीर को होता नुकसान है। इस विनाश और प्रदूषण का कोई हल विज्ञान के पास नहीं है।

युगऋषि आचार्य श्रीराम जी ने अपनी पुस्तक यज्ञ एक समग्र उपचार में इसका हल दिया और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में यज्ञ रिसर्च की नींव रखी। इस विश्वविद्यालय से यज्ञ पर सर्वप्रथम यज्ञ पर पीएचडी डॉक्टर ममता सक्सेना ने देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ प्रणव पण्ड्या के मार्गदर्शन में किया।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी डॉक्टर ममता सक्सेना ने दिल्ली पॉल्युशन बोर्ड के साथ मिलकर यज्ञ के प्रभाव को हवा में व्यापत प्रदूषण और रोगाणुओं पर किया। परिणाम आश्चर्यजनक थे। यज्ञ द्वारा औषधियों, आम की लकड़ी, मन्त्र शक्ति और व्यवस्थित तरीके से उतपन्न धुएं से हवा में व्यापत रोगाणु घटे, PM2.5 और PM10 भी घट गया। रेडिएशन भी यज्ञ के धुंए से घटा साथ ही घर की नकारात्मक एनर्जी दूर करने में भी सफलता प्राप्त की।

पीएचडी पूरी करने के बाद डॉक्टर ममता सक्सेना ने यग्योपैथी टीम बनाई जो कई प्रकार के इंस्ट्रूमेंट की सहायता से लाइव यज्ञ के प्रभाव को जनसामान्य को दिखाता है। वैज्ञानिक रिसर्च अनवरत इस पर चल रही है।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में सेकंड बैच में आयुर्वेद की डॉक्टर वंदना ने भी यज्ञ पर पीएचडी कुलाधिपति डॉक्टर प्रणव पण्ड्या के मार्गदर्शन में किया। उन्होंने विभिन्न बीमारियों को यज्ञ चिकित्सा के माध्यम से ठीक किया , पूरे भारतवर्ष से लगभग 200 से 250 मरीज प्रतिवर्ष  यज्ञचिकित्सा से रोगों से निदान प्राप्त कर स्वास्थ्य प्राप्त करते हैं।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय की डॉक्टर रुचि ने कई प्रकार के वैज्ञानिक परीक्षण यज्ञ के धुएं और उसकी राख के केमिकल एनालिसिस पर किया। उन्होंने ने पाया कि यज्ञ के धुएं में अनेक ऐसे तत्व होते है जो न सिर्फ़ प्रदूषण दूर करने में सहायक होते है, बल्कि रोगाणु भी नष्ट करते है। साथ ही मनुष्य के अंदर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। बंध्यापन और मानसिक रोगों के लिए तो यग्योपैथी राम बाण इलाज है।

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय और यहां से पीएचडी करने वाले डॉक्टर्स देश के विभिन्न हिस्सों में इस पर रिसर्च कर रहे हैं।

वृक्षारोपण और यज्ञ मात्र यही दो उपाय है जिनसे जीवन बच सकता है।

Monday, 19 March 2018

योग निद्रा

*योग निद्रा*

योग अर्थात किससे जुड़े हो? किधर और किस पर ध्यान है? किस पर केंद्रित हो संसार या परमात्मा?

साधारणतया चेतना ध्यान दिन-रात शरीर और संसार पर ही होता है तो इंसान भ्रमित रहता है, जब यही योग चेतना का परमात्मा से होता है तो इंसान आनन्दित रहता है। योग शरीर के भाव से ऊपर उठा कर आत्मअनुभव तक का सफ़र है। थकान शरीर और मन को होती है, आत्मा को नहीं। हम शरीर भी नहीं है और अनुभवों और यादों से बना मन भी नहीं हैं। हम इन दोनों से ऊपर हैं, बस जागृत अवस्था से चैतन्य अवस्था तक की निद्रा जो सांसारिकता में सुला दे लेकिन अध्यात्मिकता में जगा दे योगनिद्रा है। योग निद्रा में शरीर और मन को हम आराम देकर नींद वाली प्रक्रिया से बिना सोए गुजरते हैं, शरीर के प्रत्येक अंगों तक ध्यान केंद्रित कर प्राण प्रवाह संचारित करते है, शरीर को आदेश देकर विश्राम अवस्था मे पहुँचा देते हैं। फिर मन को आदेश दे उसे विश्राम में पहुंचा देते है और कुछ क्षण तक स्वयं हृदय में केंद्रित हो आत्मभाव में ध्यानस्थ हो जाते है।

निद्रा द्वारा सर्जन, चयापचय और संवृद्धि हार्मोन का स्राव होता है और इम्युनिटी बढ़ने के साथ साथ ऊर्जा संरक्षित होती है जिससे सोकर उठने पर तरोताजगी का अनुभव होता है। मनुष्यों में, प्रत्येक निद्रा चक्र औसत 90 से 110 मिनट तक के लिए रहता है। कई स्तर का N1-N2-N3... REM का होता है। जिसमें अंतिम स्तर और गहराई निद्रा के चौथे प्रहर में प्राप्त होता है।

साधारण रूप से प्रयास रहित आराम योग निद्रा द्वारा किसी भी योगासन क्रम के बाद आवश्यक हैं। योगासन शरीर को गरमाहट देता हैं और शरीर को शांत करता हैं।

योगासन अभ्यास शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ाते हैं। योग निद्रा इस ऊर्जा को संरक्षित एवं समेकित करती हैं जिससे शरीर व मन को विश्राम मिलता है। योग निद्रा आपको प्राणायाम और ध्यान के लिए तैयार करती है। अतः यह आवश्यक हैं कि योगासन के पश्चात् आप उचित समय योग निद्रा के लिए रखे।

योग निद्रा के लाभ | Yoga nidra benefits in hindi

योगासन के पश्चात् शरीर को आराम देता हैं।

शरीर का सामान्य तापमान बनाने में मदद करता है| योगासन के प्रभाव को अवशोषित करके तंत्रिका तंत्र को सक्रिय बनाता हैं।

योग निद्रा करने के लिए कैसे तैयार हो

अभ्यास के पूर्व पेट हल्का रखें। योगासन एवं योग निद्रा के पूर्व भर पेट भोजन नही करना चाहिए।

आरामदायक एवं अव्यवस्था रहित स्थान होना चाहिए। एक योगी का घर शांत, आरामदायक एवं अव्यवस्था रहित होता हैं।

कुछ लोगो को योग निद्रा के पश्चात् हलके ठंडक का आभास होता हैं। अतः साथ में एक कम्बल रखना चाहिए।

योग निद्रा की विधि | How to do yoga nidra in hindi

पीठ के बल शवासन में लेट जाएँ। नेत्र बंद कर विश्रामवस्था में आये। कुछ गहरी श्वाश लें और छोड़े। ध्यान रहे साधारण श्वाश लेना हैं, उज्जई नहीं।

अपना ध्यान अपने दाहिने पंजे पर ले जाये।कुछ सेकंड तक यहाँ अपना ध्यान बनाये रखें। पंजों को विश्रामावस्था में लाये। इसके पश्चात अपना ध्यान क्रमशः दाहिने गुटने, दाहिने जंघा तथा दाहिने कूल्हे पर ले जाए। इसके पश्चात अपने पूरे दाहिने पैर के प्रति सचेत हो जाये।

यही प्रक्रिया बाएं पैर में दोहराए।

अपना ध्यान शरीर के सभी भागों जननांग, पेट, नाभि और वक्ष में ले जाये।

अपना ध्यान दाहिने कंधे, भुजा, हथेली, उंगलियो मेँ ले जाएं।यही प्रक्रिया बाये कंधे, भुजा,हथेली, गर्दन एवं चेहरे और सिर के शीर्ष तक ले जाये।

एक गहरी श्वास लें। अपने शरीर में तरंगो का अनुभव करें। कुछ मिनट इसी स्थिति में आराम करे।

अपने शरीर एवं आस-पास के वातावरण के प्रति सचेत हो जाये। दाहिने करवट ले के कुछ समय लेटे रहे। बाएं नासिका से श्वास बाहर छोड़े जिससे शरीर में ठंडेपन का अहसास होगा।

अपना समय लेते हुए धीरे धीरे उठकर बैठे।जब आप आराम महसूस करे तो धीरे धीरे नेत्र खोलें।

विशेष: ध्यान रखे योगनिद्रा *सचेत प्रयास* नहीं  *सचेत विश्राम* हैं|

जैसे किसी पल आप एक शब्द ‘ सेब’ सुनते हैं, तुरंत उसका प्रतिबिम्ब आपके मन में आ जाता हैं। आपको यह प्रयास नहीं करना पड़ता कि वह छोटा हैं या बड़ा हैं या लाल हैं या हरा। यही स्थिति योग निद्रा में होती हैं।

आपको इस बात पर एकाग्र या फोकस नही होना पड़ता कि पैर क्या हैं या नाक को स्पर्श नहीं करना होता। न ही आपको शरीर के इन भागो को हिलाना होता हैं। केवल आप अपनी चेतना को उन स्थानों पर ले जाते हैं और गहरी श्वास लेते हैं।योग निद्रा पूर्ण सचेतावस्था में गहरा विश्राम देती हैं। यह प्रयास रहित सचेत शरीर और मनका विश्राम हैं।

यह प्राकर्तिक हैं कि योग निद्रा के समय कुछ विचार आये, उसे नियंत्रण करने का प्रयास न करे। यदि आप प्राकर्तिक रूप से सोजाते हैं तो अपराधबोध से ग्रसित न हो। इस प्रकार योग निद्रा आनंदपूर्ण प्रयासरहित तरीका हैं जो योगासन के बाद करना चाहिए। आओ चले आराम और आनंद का अनुभव इस प्रकार करें।

"जैसे नींद के पश्चात ताजगी का अहसास होता हैं, योग निद्रा वही अहसास देती हैं यह मेरी सबसे प्यारी झपकी हैं जो मुझे गहन विश्राम और ताजगी देता है।

Friday, 16 March 2018

यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति है,

*यज्ञ एक समग्र उपचार पद्धति है,* यह पूरी पृथ्वी और समस्त जीवों के उपचार हेतु कार्य करता है। युगऋषि श्रीराम शर्मा जी आचार्य से प्रेरणा लेकर और उनके बताए रिसर्च पैटर्न  के आधार पर कई विद्वानों, डॉक्टरों ने रिसर्च किया और बहुत अच्छे परिणाम सभी को मिले।

युगऋषि के अनुसार उपचार स्थूल और सूक्ष्म दोनो स्तर पर होता है। स्थूल के उपचार को आप मशीनों से चेक कर सकते हैं:-

1- यज्ञ हवा में व्याप्त पॉल्युशन को दूर करता है। PM2.5 और PM10 को आप किसी भी एयर इंडेक्स मीटर मशीन से चेक कर सकते हैं। हम लोग एयरवेदा से चेक करके परिणाम लोगो को दिखाते हैं।

2- डॉक्टर ममता सक्सेना ने दिल्ली पॉल्युशन बोर्ड के साथ मिलकर हवा के प्रदूषण को और रोगाणुओं पर रिसर्च किया और पाया कि यज्ञ से इस पर बहुत प्रभाव पड़ता है।रोगाणु तेजी से कम होते है।

3- डॉक्टर वंदना और डॉक्टर रंजू ने रिसर्च में पाया कि शरीर मे व्यापत बीमारी को दूर करने में भी यज्ञ अन्य पैथी से ज्यादा असरकारक है। साउंड एनर्जी-मन्त्र, यज्ञ की अग्नि-हीट एनर्जी और औषधियों के संयोजन से बने धूम्र रोगी की श्वांस और रोमछिद्रों से शरीर मे प्रवेश करते है। रोगी को रोग मुक्त करते हैं।

4- डॉक्टर हिमांशु और डॉक्टर बेरीवाल के अनुसार मानसिक रोगों पर तो यज्ञ ही एकमात्र उपचार है। दुनियां में इतने सारे मानसिक रोगी है जिन्हें पता ही नहीं कि वो रोगी है। उनसे आसपास के लोग भी धीरे धीरे मानसिक अशांति से रोगग्रस्त होने लगते हैं। यज्ञ के धूम्र से मानसिक रोगी के साथ साथ पूरा परिवार स्वस्थ होता है।

5- डॉक्टर ममता सक्सेना ने रिसर्च में पाया कि घर के वातावरण में व्याप्त निगेटिविटी को यज्ञ दूर करता है। उसे सकारात्मक बनाता है। इसे औरा मीटर से देखा जा सकता है।

6- प्राण एनर्जी का प्रवाह जब अवरूद्ध होता है तो शरीर रोगी बनता है। प्राण एनर्जी को बढ़ाने और नियंत्रित करने में यज्ञ चिकित्सा सबसे ज्यादा प्रभावशाली है।

7-  विभिन्न रोगों और समस्याओं के लिए हवन सामग्री अलग अलग होती है। अतः रोगनिदान के लिए विशेष हवन सामग्री आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह पर तैयार कर उपयोग में ली जाती है।

8-  यज्ञ एक चिकित्सक की भूमिका में कार्य करता है। अगर रोगी की किसी भी पैथी के चिकित्सक पर श्रद्धा न हो तो दवाई ज्यादा प्रभावशाली ढंग से असर नहीं करेगी। क्यूंकि रोगी के मन को दवा के असर को स्वीकृति देनी होती है। असर आएगा लेकिन वक्त लगेगा।

9- यज्ञ एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है जिसमें औषधियों के कारण को जगा के उसके प्रभाव को अग्नि और मन्त्र के संयोजन से  गुणा करके हज़ार गुना तक बढ़ाया जा सकता है। लाल मिर्च को जलाने का असर सबने देखा है।

10- भावनाओं(Emotion) के विकृति से उतपन्न रोगों पर यज्ञ ज्यादा असरकारी है। क्योंकि अन्य कोई औषधि भावनात्मक स्तर तक नहीं पहुंच सकती।

गायत्री जप और यज्ञ से किस्मत तक का उपचार सम्भव है। किस्मत बदली जा सकती है। कठिन प्रारब्ध को नष्ट कर सौभाग्य को जगाया जा सकता है। लाभ अनेक हैं इसे विस्तार से पढ़े पुस्तक -📖 *यज्ञ एक समग्र उपचार*, 📖 *यज्ञ का ज्ञान विज्ञान और*,  📖 *यज्ञ चिकित्सा*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सबसे आसान है ईश्वर से मिलन

*सबसे आसान है ईश्वर से मिलन,*
*सबसे कठिन है मैं से मुक्ति।*

क्यूंकि ईश्वर से मिलन हेतु कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं, कोई शक्ति आपको उससे मिलने से रोक नहीं सकता। वो भीतर है और इतने नज़दीक जितना कोई और दूसरा रिश्ता नहीं होता। उससे मिलन में एक ही बाधा है वो है *मैं*। बस इससे मुक्ति कठिन है।

जब मैं था तब हरि नहीं,
अब हरि हैं मैं नाहि,
प्रेम गली अति सांकरी,
जा में दो न समाहि।

चीनी में दूध घुले या दूध में चीनी, घुलना तो चीनी को ही पड़ेगा। केवल दूध ही बचेगा। ईश्वर रूपी दूध में मैं को घुलना ही होगा।

संकल्प - चन्द्रायण राष्ट्रपुरोहित आंतरिक कायाकल्प सामूहिक साधना

*संकल्प - चन्द्रायण राष्ट्रपुरोहित आंतरिक कायाकल्प सामूहिक साधना*


विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्ररार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे, वैवस्वतमन्वन्तरे, भूर्लोके, जम्बूद्वीपे, भारतवर्षे, भरतखण्डे, आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते, < *अपने क्षेत्र का नाम यहां जोड़ें*> क्षेत्रे,  स्थले 2074 विक्रमसंवत्सरे मासानां मासोत्तमेमासे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे .चतुर्दशी. तिथौ .बुध वासरे .....<*अपना गोत्र का नाम बोलें*>..... गोत्रोत्पन्नः ..<*अपना नाम बोलें*>........ नामाऽहं सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय, दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -परिष्काराय, उज्ज्वलभविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये, अस्मै प्रयोजनाय च कलशादि- आवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् ...<*चन्द्रायण या मास परायण राष्ट्रपुरोहित आंतरिक कायाकल्प साधना हेतु माला संख्या ***** जो भी हो बोलें करेंगे>........ कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पम् अहं करिष्ये।

सभी साधक
संकल्प आज अपने अपने पूजन स्थल पर 6 से 7 बजे के बीच ले लें।

दशहरे का ध्यान- मर्यादा पुरुषोत्तम का ध्यान

*दशहरे का ध्यान- मर्यादा पुरुषोत्तम का ध्यान*

ध्यान - रामचरितमानस अर्थात् श्रीराम का चरित्र मन में बसाना, अपने आचरण में मर्यादा का वरण करना। चित्त रुपी सीता श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के साथ होनी चाहिए, लेकिन यदि सूक्ष्म या स्थूल अहंकार रूपी रावण ने चित्त का हरण कर लिया है तो अहंकार का नाश करना और मर्यादा का पुनः वरण करना। रामराज्य मन में पुनः स्थापित करना।

पहले हनुमान की भूमिका में सीता का पता लगाइये, ध्यान की गहराई में पता करिये क़ि हमारा चित्त वास्तव में कहाँ है। कितने लोगों के प्रति ईर्ष्या है, ईर्ष्या-द्वेष में कहीं चित्त तो नहीं लगा? कहीं किसी प्रकार का स्थूल या सूक्ष्म अहंकार तो हमारे अंदर तो नहीं, स्वयं की प्रसंशा सुनने की चाह तो नहीं? कहीं किसी भी प्रकार का द्वेष, मद, लोभ, दम्भ तो नहीं? मन में ऐसा तो कुछ नहीं जिसे सद्गुरु नहीं चाहते क़ि वो हमारे अंदर हो? स्वयं की समीक्षा कर अपने दस बुराईयों का एक रावण ध्यान में बनाइये। फ़िर भावना कीजिये हमारे सद्गुरु श्रीराम के रूप में धनुष लेकर आये हैं।  और पहले तीर से वो मन की ईर्ष्या-द्वेष रुपी नाभि पर वार कर उसे नष्ट कर रहे हैं। बारी बारी सभी बुराईयों को उन्होंने नष्ट कर दिया।

अब भावना कीजिये हम विकार मुक्त हो गए हैं, हमारे अंदर राम राज्य अर्थात् आत्मीयता-सम्वेदना का विस्तार हो गया है। हमारे आचरण व्यवहार में मर्यादा स्थापित हो गयी है। मन बहुत हल्का लग रहा है, हृदय का सारा बोझ मिट गया है। जिसने जिसने हमारा जाने अंजाने में बुरा किया उसे हमने माफ़ कर दिए हैं, जिसका हमने जाने अंजाने में बुरा किया उसने हमें माफ़ कर दिया है। निर्लिप्त निर्विकार भाव सम्वेदना से भरी हमारी आत्मा का पुनर्जन्म हो गया है। हम सब अशुभ भूल गए हैं। अब हमारा चित्त पूर्ण रूपेण सद्गुरु श्रीराम के चरणों में स्थित है। अब समस्त विश्व हमारा मित्र है, हम विश्वामित्र बन गए हैं। इस भाव में खो जाइये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

आपको और आपके परिवार को विजयादशमी की शुभ कामनाएँ। मन को विजय करके राम चरित्र मन में बसाने की शुभकामनाएं

नवरात्र का आठवां दिन - महागौरी का ध्यान

*नवरात्र का आठवां दिन - महागौरी का ध्यान*

*ध्यान* - नेत्र बन्द कर भावना कीजिये क़ि महागौरी गौर वर्ण हैं, श्वेत पुष्पों का श्रृंगार किया हुआ है, चांदनी की तरह दूधिया साड़ी में स्वर्ण मण्डित किनारा है। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

भावना कीजिये क़ि माँ हमारी की चित्त वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश कर रही हैं। हमारा मन निर्मल हो रहा है। हम कषाय कल्मष से मुक्त हो रहे हैं। हम माता के श्री चरणों का पूजन कर रहे हैं, पहले जल से चरण धोकर, उसे पोंछ रहे हैं, चरणों में पुष्प अर्पित कर रहे हैं। हम नीचे बैठे हैं और माँ ने अपना दाहिना पैर हमारे सहस्त्रार दल के ऊपर हमारे सर पर रखा है। माँ के चरणों से निकलने वाली किरणों ने हमें बिलकुल पारदर्शी और चन्द्रमा की तरह श्वेत और चमकीला बना दिया है। हमारे अंग प्रत्यंगों से रौशनी निकल रही है। हम माँ के चरण स्पर्श से दिव्य, सुन्दर और गौरवर्ण चांदनी सी रौशनी लिए हुए हो गए हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

नवरात्र का आठवां दिन - महागौरी का ध्यान

*नवरात्र का आठवां दिन - महागौरी का ध्यान*

*ध्यान* - नेत्र बन्द कर भावना कीजिये क़ि महागौरी गौर वर्ण हैं, श्वेत पुष्पों का श्रृंगार किया हुआ है, चांदनी की तरह दूधिया साड़ी में स्वर्ण मण्डित किनारा है। महागौरी की चार भुजाएँ हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं। इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

भावना कीजिये क़ि माँ हमारी की चित्त वृत्तियों को सत्‌ की ओर प्रेरित करके असत्‌ का विनाश कर रही हैं। हमारा मन निर्मल हो रहा है। हम कषाय कल्मष से मुक्त हो रहे हैं। हम माता के श्री चरणों का पूजन कर रहे हैं, पहले जल से चरण धोकर, उसे पोंछ रहे हैं, चरणों में पुष्प अर्पित कर रहे हैं। हम नीचे बैठे हैं और माँ ने अपना दाहिना पैर हमारे सहस्त्रार दल के ऊपर हमारे सर पर रखा है। माँ के चरणों से निकलने वाली किरणों ने हमें बिलकुल पारदर्शी और चन्द्रमा की तरह श्वेत और चमकीला बना दिया है। हमारे अंग प्रत्यंगों से रौशनी निकल रही है। हम माँ के चरण स्पर्श से दिव्य, सुन्दर और गौरवर्ण चांदनी सी रौशनी लिए हुए हो गए हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ गौरी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। हे माँ, मुझे सुख-समृद्धि प्रदान करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

कालरात्रि का ध्यान -सातवां दिन

*कालरात्रि का ध्यान -सातवां दिन*

*ध्यान* - आज माँ का आवाह्न मन में बसे जन्मजन्माँतर के उन विकारों के नाश के लिए करना है, जो हमें परेशान करके रखें है। भावना कीजिये हमारे विकारों, दोष, दुर्गुण, पाप को माँ कालरात्रि खड्ग के प्रहार से नष्ट कर रही हैं। हमें विकार मुक्त कर रही हैं। हमारे समस्त विकारों की कालिमा को नष्ट करके, हमें पवित्र और निर्मल बना रही हैं। माँ का यह ध्यान रात्रि सूर्यास्त के बाद करना उत्तम रहेगा।

माँ हमें निर्मल कर माँ गौरी के दिव्य रूप में परिवर्तित हो गयी, उसी तरह जैसे गन्दगी में पड़े बच्चे को माँ डाँट डपटकर साफ़ करती है, नहला धुलाकर साफ़ वस्त्र पहनाती है। फ़िर स्वयं स्वच्छ वस्त्र पहन लेती है।

भावना कीजिए क़ि माँ ने आपकी मन की गन्दगी साफ़ करके, आपको अंदर बाहर से पवित्र कर, माँ गौरी का रूप ले लिया है। और आपको अपनी गोद में लेकर प्यार कर रही हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

या देवी सर्वभूतेषु, कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु, निद्रा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

या देवी सर्वभूतेषु, मातृ रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

ॐ भूर्भुवः स्वः क्लीं क्लीं क्लीं तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात क्लीं क्लीं क्लीं ॐ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी ध्यान

*नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है।*

 इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।

*ध्यान* - माँ कात्यायनी का ध्यान दोनों भौं के बीच आज्ञा चक्र(जहाँ स्त्रियां बिंदी और पुरुष तिलक लगाते हैं) वहां करना चाहिए। भावना करें, आज्ञा चक्र में स्फुरण हो रहा है, कमल पुष्प खिल गया है। उस कमल पुष्प में माँ कात्यायनी विराज मान है। माँ के भीतर के प्रकाश से मन मष्तिष्क में प्रकाश ही प्रकाश हो गया है। पूरे शरीर में मानो हज़ारों वाट के बल्ब जितनी रौशनी निकल रही है। अपने रोम रोम से शक्ति का प्रकाश निकलता हुआ अनुभव कीजिये और इस ध्यान में खो जाइये।

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।

*या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥*

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।

इसके अतिरिक्त ऐसी मान्यता है जिन कन्याओ या लड़कों के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।

शीघ्र और सुयोग्य जीवनसाथी से शीघ्र विवाह के लिये 40 दिन तक रोज 10 माला गायत्री मन्त्र और एक माला कात्यायनी मन्त्र की जपें। साथ ही तृतीया(शुक्ल पक्ष) का व्रत रखें, भोजन में तीन मीठी रोटी या परांठा चढ़ाएं। एक रोटी गाय को खिला दें, एक रोटी प्रसाद में बाँट दे और एक स्वयं ग्रहण कर लें।

गायत्री मन्त्र -
*ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*

विवाह हेतु कात्यायनी मन्त्र -
 *ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।*

स्कंदमाता का ध्यान -पांचवा दिन

*स्कंदमाता का ध्यान -पांचवा दिन*

*ध्यान* - मन को समस्त लौकिक, सांसारिक, मायिक बंधनों से विमुक्त होकर पद्मासना माँ स्कंदमाता के स्वरूप में पूर्णतः तल्लीन हो जाइये। मन को पूर्ण सावधानी के साथ उपासना की ओर अग्रसर करें, और समस्त ध्यान-वृत्तियों को एकाग्र रखते हुए माता के दिव्यरुप का नेत्र बन्द कर ध्यान करें।

भावना करें, माँ की गोद में भगवान कार्तिकेय(स्कन्द) बैठे हैं, माँ सन्तान लक्ष्मी के रूप में आपके घर आई हैं। आप उन्हें आसन दे रहे हैं। उनके चरण धो रहे हैं। अपने हाथों से बनाई पुष्पो की माला और पुष्पो के आभूषण बनाके माँ को सजाइये। माँ को अपने हाथो से बनी खीर अपने हाथों से खिलाइये और माँ के आवभगत के इस ध्यान में खो जाइये

माँ कुष्मांडा का ध्यान- चतुर्थ दिन

*माँ कुष्मांडा का ध्यान- चतुर्थ दिन*

*या देवी सर्वभूतेषु, माँ कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै  नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः*।।

ध्यान - नीले आसमान में सुबह का सूर्योदय लालिमा लिए हो रहा है। सूर्य के अंदर से आकृति उभर रही है। माँ कुष्मांडा की मन्द मन्द खनकती हंसी हमारे कानों को सुनाई दे रहा है, और माँ की मुस्कान हमारे कष्ट हर रही है। हमारे अंदर असीम शांति और सुकून महसूस हो रहा है। माँ की अब स्पष्ट रूप दिख रहा है, अरे ये क्या माँ तो सिंह पर सवार हो अमृत कलश हाथ में लेकर हमारे पास ही आ रही हैं। माँ ने पहले शंखनाद किया फिर हमें दोनों हाथों से नल से जैसे पानी पीते हैं वो मुद्रा हाथ की बनाने को कहा, अब हमारे हाथों की अंजुली में माँ अमृत कलश से अमृत डाल रही हैं और हम अमृत पान कर रहे है। अमृत पीकर तृप्त हो रहे हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

माँ चन्द्रघण्टा का ध्यान-तृतीय दिन

*माँ चन्द्रघण्टा का ध्यान-तृतीय दिन*

*देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*

माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है इसलिए इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।  इनके दस हाथ हैं।

पांच ज्ञानेन्द्रियाँ :- आँख  नाक जीभ  कान  त्वचा पांच कर्मेन्द्रियाँ :- हाथ (हस्त)  पैर(पाद)  जीभ(वाक्)  उपस्थ (मूत्र द्वार) गुदा(मलद्वार) इन्ही के समूह को दस इन्द्रियां भी कहा जाता है ।

माँ का स्वरूप कहता है क़ि चंद्रमा की तरह शीतल मस्तिष्क, घण्टे की तरह मधुर स्वर, दसों इन्द्रियों को नियंत्रित करके मनुष्य, सिंह जैसे जंगली जीव को वश में करके उस पर भी सवारी कर सकता है। अर्थात् घर के सदस्य हों, ऑफिस के सदस्य हों या समाज में अन्य कोई उसे हैंडल किया जा सकता है।

ध्यान - भावना कीजिये आसमान में पूर्ण शरद पूर्णिमा चाँद खिला हुआ है, गहरा नीले रंग का साफ़ आसमान तारों से भरा हुआ है। चाँद की दूधिया रौशनी हमारे पूरे शरीर पर पड़ रही है, मधुर मन्द वायु बह रही है। हिमालय के शुभ्र शिखर चन्द्रमा की रौशनी में और श्वेत और चमकीले लग रहे हैं। गंगा के शीतल जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिख रहा है। कानों में घण्टे का मधुर नाद गूँज रहा है। पूर्णिमा के चाँद की रौशनी में माँ भगवती सिंह में सवार होकर हमारे समक्ष आ गयी। हमें शिशु की तरह गोद में उठा कर, प्यार से सर सहलाते हुए सिंह पर बिठा लिया। माँ का सुन्दर स्वरूप देख के हम निहाल हो रहे हैं। आकाश मार्ग से चाँद की  रौशनि में हमें पूरे हिमालय और ब्रह्माण्ड के दर्शन करवा रही हैं। इस ध्यान में खो जाइये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

सभी बहन भाइयों ने मुझे बताया क़ि मैं जब तक ध्यान की पोस्ट करती हूँ तब तक सबके जप लगभग पूरे हो जाते हैं। अतः मुझे पूर्व सन्ध्या पर ही माँ का ध्यान और फ़ोटो भेजना चाहिए। जिससे सुबह की साधना में वो इस ध्यान को कर सकें।

माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान- द्वितीय दिन

*माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान- द्वितीय दिन*

कमण्डल अर्थात् पात्रता विकसित करेंगें, माला अर्थात् मन का मनका फेरेंगे, पूरे दिन मन में माँ का मन्त्रोच्चार करेंगें, अपने मन में उठ रहे विचारों के प्रति होश में रहेंगे जागरूक रहेंगे।

ब्रह्म + चारिणी = ब्रह्ममय तपमय श्रेष्ठ आचरण करेंगे।

श्वेत वस्त्र अर्थात् पवित्रता धारण करेंगे, उज्जवल चरित्र का निर्माण करेंगे।

आज कण कण में ब्रह्म के दर्शन करते हुए खुली आँखों से ध्यान करेंगे। जो भी जीव, वनस्पति, व्यक्ति, कीट या पतंगा दिखे, जिसमें भी जीवन है उसमें ब्रह्म है। बिना ब्रह्म के जीवन सम्भव नहीं। श्वांस में प्राणवायु के रूप में ब्रह्म ही प्रवेश कर रहा है और हमें जीवनदान कर रहा है। कण कण में ब्रह्मदर्शन करते हुए नेत्र बन्द कर पूजा स्थली या किसी शांत स्थान पर कमर सीधी कर नेत्र बन्द कर बैठ जाएँ।

जो भी ध्वनि सुनाई दे बाहर की उसे इग्नोर कर भीतर का ब्रह्मनाद सुनने की कोशिश करें। झींगुर जैसी ध्वनि के बीच ब्रह्म नाद के शंख, बाँसुरी, ॐ की झंकार सुनने का प्रयत्न करें। स्वयं को हिमालय की छाया और माँ गंगा की गोद में अनुभव करें। गंगा का शांत शीतल जल और हिमालय की सफ़ेद आभा में भी गुंजरित ब्रह्मनाद सुने। कल्पना करें क़ि आप शिशु रूप में हो गए हैं कमल आसन में विराजमान माँ ब्रह्मचारिणी जगत जननी की गोद में हैं। माँ ओंकार की ध्वनि कर रही है जो आपके कानो को सुनाई दे रहा है, माँ प्यार से आपका सिर सहला रही हैं। फ़िर आपके आँखों पर हाथ रख आपको दिव्य दृष्टि प्रदान कर रही हैं, अब आप धीरे धीरे नेत्र खोल रहे हैं। अरे ये क्या प्रकृति के कण कण में माँ जगतजननी के आपको दिव्य दर्शन हो रहे हैं और कानों में ब्रह्मनाद सुनाई दे रहा है। इस ध्यान के क्षण में खो जाइये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

माँ शैलपुत्री का ध्यान-प्रथम दिन

*माँ शैलपुत्री का ध्यान-प्रथम दिन*

भावना कीजिए कि आपका शरीर एक सुन्दर रथ है। उसमें मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार रूपी घोड़े जुते हैं। इस रथ में दिव्य तेजोमयी माता शैलपुत्री विराजमान हैं और घोड़ों की लगाम उसने अपने हाथ में थाम रखी है। जो घोड़ा बिचकता है वह चाबुक से उसका अनुशासन करती है और लगाम झटककर उसको सीधे मार्ग पर ठीक रीति से चलने में सफल पथ-प्रदर्शन करती है। घोड़े भी माता से आतंकित होकर उसके अंकुश को स्वीकार करते हैं।

आपका मन माता के अनुशासन में शांत हो गया है, हृदय में निर्मल भक्ति का सागर हिलोरे ले रहा है। आप नीले आकाश में सफ़ेद बादलो पर माँ शैलपुत्री के साथ विचरण कर रहे हैं। माँ आपको हिमालय की ऊंची चोटियों का दर्शन आसमान से करवा रही हैं। बड़े प्यार से अपना स्नेह आप पर लुटा रही हैं। आप बालक की तरह माँ का आँचल थामे हैं।

मानो तो माँ माँ है न मानो तो स्थूल स्त्री का शरीर मात्र है। इसी तरह जब तक भावना और ध्यान मातृशक्ति से एकाकर नहीं होगा, तब तक वह शक्ति चेतना में प्रवेश कर अपना प्रभाव नहीं दिखाएगी। माँ का गहन ध्यान ही माँ की शक्ति को हमारी चेतना में प्रवेश करवाएगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

Thursday, 15 March 2018

प्रश्न - क्या ईश्वर से साक्षात्कार सम्भव है? क्या ईश्वर एक है या अनेक?

*ईश्वर से साक्षात्कार*

ईश्वर या ऊर्जा(एनर्जी) कोई किसी को दिखा नहीं सकता और न ही बता सकता है। सिर्फ़ उस ओर इशारा कर सकता है। वेद भी ईश्वर की इशारा मात्र हैं।

लेकिन बिना देखे भी विद्युत को स्वयं  विद्युत कनेक्शन लेकर सही इलेक्ट्रिकल इंस्ट्रूमेंट लेकर विधि व्यवस्था बनाकर प्रकाशित हुआ जा सकता है।

किसी ने विद्युत के साथ पंखा लगाया और वो चल गया तो उसने अपने धर्म ग्रन्थ में पदार्थ पंखे को ईश्वर समझ लिया और अन्य को यही पढ़ा दिया।

किसी ने 40 वाट का बल्ब की साधना इंस्ट्रूमेंट लगाया और बोला ईश्वर में मात्र 40 वाट की रौशनी मिलती है। धर्म ग्रन्थ में यही लिख दिया।

किसी ने सुपर कम्प्यूटर को उसी विद्युत से चलाया तो किसी ने हज़ार वाट का बल्ब। किसी ने उसी विद्युत से हीटर चलाया तो किसी ने AC, कोई ज़ीरो वाट का बल्ब बन के ही ईश्वरीय ऊर्जा को उपयोग किया और वही लिखा और बताया। लेकिन कोई बल्ब या पंखा ईश्वरीय शक्ति को परिभाषित कर सकता है पूर्ण रूपेण? जो धर्म ग्रन्थ में ईश्वर के बारे में लिखता है वो केवल अपनी क्षमता ईश्वर की प्राप्ति का लिखता है, लेकिन ईश्वर उसकी क्षमता से परे है।

जो प्रकाशित हुआ उसे ही सब पूजने में व्यस्त हो गए लेकिन स्वयं प्रकाशित होने को चंद लोग ही आगे आये। बिजली के पूजन से बिजली नहीं मिलती। सिर्फ अक्षत और कुछ कर्मकांड से भगवान नहीं मिलता। स्वयं को साधना पड़ेगा उसके योग्य बनाना पड़ेगा।

युगऋषि ने पुस्तक *ईश्वर कौन है?कैसा है?कहाँ है?* में इसे विस्तार से लिखा है। साथ ही इसका इशारा *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में भी किया है।

भक्त भगवान का पिता होता है। वो जितना गहरा भीतर उतरता है समर्पण के साथ उतने अंशो में स्वयं को प्रकाशित कर यह बताता है भाई ऊर्जा है इसे विभिन्न साधनाओ से सिद्ध किया जा सकता है अर्थात जुड़ा जा सकता है।

इसलिए आज़तक कोई ईश्वर की सार्वभौम परिभाषा न दे सका। quantum physics की तरह बस कुछ ईशारे कर सका है।

मेरी साधना मेरे बल्ब के पावर को निर्धारित कर बताएगी कि मैं कितने वाट ईश्वरीय शक्ति को उपयोग में ले सकती हूँ। आपकी साधना क्षमता मुझसे ज्यादा हो सकती है या कम, मुझसे डिफरेंट इंस्ट्रूमेंट आपकी आत्मचेतना हो सकती है। अर्थात पदार्थ की भाषा मे हमारी और आपकी ईश्वरीय परिभाषा कभी एक जैसी नहीं हो सकती।

सभी धर्म सम्प्रदाय के लोग ऊर्जा के लिए नहीं लड़ते बल्कि वो इस बात के लिए लड़ते है कि इससे सिर्फ कोई कहता है AC चल सकता है तो कोई कहता है कि केवल बल्ब जल सकता है तो कोई कहता है पंखा चल सकता है। क्यूंकि विद्युत नहीं वो विद्युत उपकरणों को परिभाषित धर्म गर्न्थो में कर रहे हैं।

इसलिए भगवान को मानने और जानने में बहुत फ़र्क है। कण कण में ऊर्जा है भगवान है। विधिव्यवस्था और पुरुषार्थ है तो जल से भी विद्युत मिलेगा, हवा से भी विद्युत मिलेगा, कोई भी ठोस पदार्थ  हो या तरल , दृश्य हो या अदृश्य सब से विद्युत पाया जा सकता है। भगवान से जुड़ा जा सकता है।

सभी अवतार उस चेतना से प्रकाशित कुछ कलाओं के माध्यम से थे। कुछ सोलह तो कुछ अंश थे। लेकिन केवल उतना ही अंश परमात्मा है यह मिथक है। क्योंकि वो उससे भी परे है।

सूर्य को देखने के लिए आंखे चाहिए। बिन आंख खोले तर्क वितर्क से प्रकाश को माना जा सकता है लेकिन जानना और अनुभव नहीं किया जा सकता।

तो भाई विद्युत कनेक्शन इसी क्षण मिल सकता है। भगवान से इसी क्षण आपका साक्षात्कार करवा सकती हूँ? लेकिन यह चेक कर लें स्वयं को कि क्या आप विद्युत के लिए सुचालक है, कहीं विद्युत उपकरण खराब तो नहीं? उपासना-साधना-आराधना से स्वयं का उपकरण ठीक कर लें कनेक्शन तुरन्त मिल जाएगा। साक्षात्कार अभी इसी क्षण ईश्वर का करवा देंगे। विवेकानंद की आत्मचेतना सुचालक थी उन्हें तड़फ थी प्रकाशित होने क़ि ठाकुर रामकृष्ण ने कनेक्शन कर दिया। उन्होंने तो सभी शिष्यों को कनेक्शन दिया लेकिन जो जितनी साधनात्मक क्षमता विकसित किया वो उतना प्रकाशित हुआ। यही सिद्धांत युगऋषि से दीक्षित होने का है, गुरुदेव कनेक्शन देंगे जिसकी जितनी साधनात्मक क्षमता वो उतने अंश ईश्वर से प्रकाशित हो सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 14 March 2018

प्रश्न-मैं कॉलेज में BBA फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हूँ।

*प्रश्न-मैं कॉलेज में BBA फर्स्ट ईयर स्टूडेंट हूँ। भैया जब स्कूल-कॉलेज जाता था तो मम्मी पापा उससे कभी इतने प्रश्न नहीं करते थे। थोड़ा लेट हो जाओ तो प्रश्नों की झड़ी लगा देते हैं। सभी लड़कियां मॉडर्न कपड़े पहनती है, लेकिन मम्मी मुझे पहनने नहीं देती। हर वक्त की टोका टोकी से मैं तंग आ गई हूँ। मैं क्या करूँ?*

पहले लम्बी गहरी श्वांस लो और तीन बार गायत्री मंत्र विवेकदृष्टि जागरण के लिए जपो, और स्वयं को इस प्रश्न का हिस्सा न समझ के इसे समस्त कॉलेज जाने वाली लड़कियों का प्रश्न समझो, समस्या समझो। जब हम कोई बात/समस्या पर्सनल लेते है तो उत्तर समझ नहीं सकते, लेकिन जब वही बात/समस्या  दूसरों के लिए बोलते है तो बेहतर समझ पाते हैं। तुम बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन पढ़ रही हो तो तुम्हें तुम्हारी भाषा मे समझाती हूँ।

सोने को तिज़ोरी में रखते है और उसे ज़्यादा सुरक्षा के साथ कहीं लाते और ले जाते हैं। क्यूंकि चोरी होने का ज्यादा डर है। लोहे की सुरक्षा हेतु हमें कुछ विशेष करने की जरूरत नहीं पड़ती। वास्तव में धातु तो दोनों है लेकिन लोगों के दृष्टिकोण के कारण यह सुरक्षा बरतनी पड़ती है। अब यदि लोग स्वर्ण का मोह त्याग दें और कोई इसे भाव ही न दे, उपेक्षा कर दे, सब सन्त बन जाएं या स्वर्ण लोहे की तरह बहुतायत हो जाय तो लोग स्वर्ण को भी लोहे की तरह बेपरवाह होके उपयोग में लेंगे और उसकी सुरक्षा नहीं करेंगे। तो तुम अर्थात लड़की स्वर्ण हो तुम्हारी इज्जत चोरी का भय ज्यादा है इसलिए तुम्हारी सुरक्षा ज्यादा है। तुम्हारा भाई लोहा है अतः उसके लिए सुरक्षा की आवश्यकता नहीं, उसके इज्जत चोरी होने का भय नहीं अतः प्रश्न कम पूंछे जाते हैं।

अब आते है मॉडर्न कपड़े पर, जो कि आज की जनरेशन के हिसाब से सुंदर दिखने और सेक्सी लगने के लिए पहने जाते हैं।

स्वयं से प्रश्न करो कि कॉलेज जाते क्यूँ हो? पढ़ने या मॉडलिंग करने? कपड़े पास करवाएंगे या पढ़ाई? क्या जरूरी है?

क्या कोई लड़का मिनी पैंट या मिनी स्कर्ट सा कुछ पहन के डीप नेक का कुछ पहन के आते देखा है? टीशर्ट जीन्स पहनते हैं वो राइट। क्या जितना मैकअप लड़कियां करती है उतना मैकअप करते लड़को को देखा है नहीं न।

मॉडर्न या ओल्ड एक सोच है जो टीवी, मीडिया और फ़िल्म जगत हम सबके मन में प्रोग्राम करता है। जिससे हम नकलची बन्दर की तरह उसका अंधानुकरण करने लगते है बिना विचारे... जानते हो अधिकतर लड़के और लड़कियां कुछ कार्य इसलिए करते हैं क्यूंकि सब कर रहे है तो उन्हें भी करना है...सब जगह भेड़ चाल है...जो बुद्धि-विवेक का उपयोग करेगा वो भेड़चाल में नहीं पड़ेगा।

फ़टी जीन्स और कम कपड़े, आपको चंद लोगों के सामने मॉडर्न घोषित कर भी दें तो उससे आपको हासिल क्या होगा? बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में इस फैशन का कोई योगदान होगा? जब जॉब करेंगी तो प्रोफेशनल ड्रेस पहनना पड़ेगा वहां भी इसका कोई लाभ नहीं। सिर्फ़ मॉडलिंग और फ़िल्म जगत में इन कपड़ों से फ़ायदा मिलेगा जहां आप अंग-प्रदर्शन से कुछ आर्थिक कमाई का ज़रिया होता है। अन्यथा सब जगह इन कपड़ो का कोई कद्र नहीं।

अब यह आपको तय करना है कि अर्जुन की तरह बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन में दक्षता हासिल करना आपका लक्ष्य है या मॉडर्न लुक में कुछ गैरजिम्मेदार लड़के लड़कियों की वाहवाही लूटना आपका लक्ष्य है? मम्मी-पापा आप पर आपके भाई से ज़्यादा गर्व करें इस हेतु कुछ कर गुजरना और योग्य इंसान बनना आपका लक्ष्य है? या मात्र घर में बेवज़ह भाई से तक़रार आपका लक्ष्य है? तय आपको करना है....जिंदगी आपकी है...

*खुदी को कर बुलन्द इतना कि खुद ख़ुदा आकर पूंछे ए बन्दे तेरी रज़ा क्या है? महिलाओं को सम्मान और शशक्तिकरण कोई भीख में नहीं देगा, इसे अपनी मेहनत और बुद्धिबल से हासिल करना होगा।*

इतनी योग्य बन जाओ कि इंटरव्यू में कम्पनियां पूंछे कि कितना पैकेज लोगी? बिजनेस मैगज़ीन फ्रंट पेज में तुम्हारा फ़ोटो और आर्टिकल लेने के लिए तुम्हारे आगे पीछे घूमें.... तुम्हारे मम्मी-पापा विश्व मे तुम्हारे नाम से जाने जायँ... लड़को के रिश्ते घर आये तुम तय करो कि किससे शादी करना है या किससे नहीं..तुम्हें देखकर लोग प्रेरणा लें और अपने घर बेटी पैदा करके तुमसा बनाएं...यदि बड़ा लक्ष्य रखना है तो कुछ बड़ा करो...स्वर्ण हो तो स्वर्ण की तरह चमको...स्वर्ण को कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस कपड़े में या अलमारी में वो रखा है...उसकी कीमत लोहे से हमेशा ज़्यादा रहती है...कोई माने या न माने...लेकिन यदि सुरक्षा न कि और सावधान न रहे तो चोरी होने का ख़तरा सदैव बना रहेगा।

लड़कों को अपनी सोच बड़ी रखनी है तो आप लड़कियों को भी सभ्य कपड़े पहनने होंगें। स्त्री मोह त्याग के साधु संत जबतक समस्त विश्व के लड़के  नहीं बन जाते तब तक लड़कियों को सावधान रहना ही होगा। तबतक मम्मी-पापा का बेटियों की चिंता जायज़ है, मम्मी का भैया से ज्यादा तुम्हारी फिक्र करना जायज़ है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आत्मीय भाइयो एवं बहनों

आत्मीय भाइयों एवं बहनो,
आपके प्यार और आशीर्वाद के लिए धन्यवाद।

क्षमा करें, मेरा व्हाट्सएप अकाउंट 5000 फ्रेंड्स का फूल हो चुका है, अतः सभी से अनुरोध है कि मुझे फ्रेंड रिकवेस्ट न भेजें, मेरे पास 2000 फ्रेंड रिकवेस्ट पेंडिंग है जिसे स्वीकार करने में मैं असमर्थ हूँ । मेरा व्हाट्सएप अकाउंट भी ग्रुप से फुल हो चुका है मुझे नए ग्रुप में न जोड़ें।

आप सबकी सलाह पर मैंने awgp.vicharkranrti( https://facebook.com/AWGP.vicharkranti) का निम्नलिखित फेसबुक पेज बना दिया है जहां मैं समस्त पोस्ट डालती हूँ। एक awgpggn . Blog( http://awgpggn.blogspot.in) बना दिया है, जहां नई पुरानी समस्त पोस्ट मिलेगी। बच्चो की बाल सँस्कार शाला के लिए http://www.balsanskarshala.com वेबसाईट भी बना दी है। अतः इन सभी जगहों से आप विचारक्रांति पोस्ट से जुड़ सकते हैं। आप सभी जो मुझे प्रश्न भेजते है तो अपना भरोसा मुझपर दिखाते हो। इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार।

सभी मित्रों को मेरा फेसबुक जरूर शेयर करने का कष्ट करें। पुनः धन्यवाद।

https://facebook.com/AWGP.vicharkranti

Tuesday, 13 March 2018

प्रश्न -मैं और मेरा भाई देश की सेवा करना चाहते हैं,

*प्रश्न-मैं और मेरा भाई देश की सेवा करना चाहते हैं, हम गायत्री परिवार से जुड़े हमारी बुआ के कारण, साधना के साथ गुरुदेव आराधना भी बोले है। मेरी उम्र 17 साल है। लेकिन मेरे मम्मी-पापा कहते हैं पहले पढ़ाई पूरी करो और कुछ बन जाओ फिर जो मर्जी आये वो करना। बड़े भइया की जॉब लग गयी है उन्हें बोलते हैं पहले घर बस जाए फ़िर जो मर्ज़ी हो करना। दादी पोते का मुंह देखना चाहती है। ऐसे में क्या करूँ?*

पहले लम्बी गहरी श्वांस लो, और ध्यान से देश सेवा में अभी तुम क्या कर सकते हो वो टिप्स सुनो। अभी तुम 12वीं की परीक्षा पूरे मनोयोग से दो और अच्छे अंक प्राप्त करो। क्यूंकि एक योग्य व्यक्ति बनने पर तुम ज्यादा बेहतर तरीक़े से देश के लिए कुछ कर पाओगे।

1- भिखारी न बनना भी एक देश सेवा है।
2- ज़्यादा कमाकर ज़्यादा टैक्स भरना भी देश सेवा है। अपनी कमाई से समाजसेवा करना भी देश सेवा है।
3- स्वयं को योग्य साक्षर और उद्यमी बनाना देश सेवा है।
4- यदि आप समाधान का हिस्सा नहीं है तो आप स्वयं एक समस्या है। अतः जो कर सकते हो उसे जरूर करो। तो देश की समस्या बेरोजगारी, भिक्षावृत्ति, भुखमरी, प्रदूषण, गंदगी इत्यादि समस्याओं के समाधान में लगो।
5- तुम्हारी मैथ अच्छी है आसपास के बच्चों की बाल सँस्कारशाला लो, उन्हें अच्छे विचार दे उनमें राष्ट्रचरित्र भी गढ़ो और देश का जिम्मेदार नागरिक बनाओ। उन्हें मैथ में एक्सपर्ट बना दो।
6- आसपास जब भी वृक्षारोपण, सफ़ाई अभियान, व्यसन मुक्ति रैली हो थोड़ा समय वहां जरूर दो।
7- अपना आदर्श सुभाषचंद्र बोष और अरविंद घोष को बनाओ, कठिन से कठिन सिविल प्रतियोगिता परीक्षा को पास करके स्वयं को साबित कर दो। फ़िर पूर्ण समर्पण से राष्ट्र निर्माण में लग जाओ।
8-  शादी करना या न करना, दादी को पोता पोती देना ये सब अभी तय करने का वक़्त नहीं है। अभी सिर्फ़ देश के लिए सबसे योग्य व्यक्ति बनने का समय है। वृद्ध माता-पिता, दादा-दादी की सेवा और उनकी जरूरत पूरी करना भी ईश्वर की आराधना और देश सेवा है। लेकिन यदि कोई माता-पिता की इच्छा विवेकदृष्टि से सही न लगे तो उसे फ़िलहाल इग्नोर कर दो। बाद में सोचना कि उसका क्या करना है।
9- भैया को क्या करना है क्या नहीं यह निर्णय उनपर छोड़ दो।
10- रोज नित्य गायत्री जप और ध्यान के साथ अच्छी पुस्तकों और क्रांतिधर्मी साहित्य का अध्ययन थोड़ा थोड़ा करो और स्वयं के अंतःकरण को राष्ट्रसेवा हेतु राष्ट्र जगाने वाला, एक योग्य पुरोहित बनाने की तैयारी में लगा दो।

इतना योग्य समर्थ सभ्य सुसंस्कृत शालीन और मेधावी युवा बनो कि तुममें लोग सुभाषचंद्र बोष और विवेकानन्द की छवि देखें। ग्रेजुएशन तक धैर्य के साथ स्व निर्माण करो। बाल सँस्कारशाला और युवा सँस्कारशाला चलाते रहो। भीतर की आत्मशक्ति जागृत करो जिसे कालांतर में देशनिर्माण-युगनिर्माण हेतु खर्च कर सको।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 12 March 2018

प्रश्न- मैं एक लड़की से प्रेम करता हूँ, ...

*प्रश्न- मैं एक लड़की से प्रेम करता हूँ, शादी करने का उससे वादा किया है। अब माता-पिता जबरजस्ती मेरी शादी मेरी इच्छा के विरुद्ध करवाना चाहते है। मेरे मना करने पर मम्मी मरने की धमकी दे रही है, इधर जिससे मैं प्रेम करता हूँ वो शादी न करने पर वो भी मरने की धमकी दे रही है। एक तरफ कुँआ दूसरी तरफ़ खाई है। मुझे लग रहा है कि मैं स्वयं अपनी ही जान ले लूँ। क्यूंकि मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा।*

सबसे पहले गहरी तीन बार श्वांस लें और तीन बार गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान कर जपें। ठीक है हम आपके प्रश्नों के समाधान हेतु दो कहानियाँ सुनाते हैं:-

पहली क्या आपकी मम्मी या आपकी प्रेमिका आपके लिए जान देगी या नहीं? या ये मात्र कोरी धमकी है?

आवेश में लोग बिना सोचे समझे कुछ भी बोल जाते हैं, जन्म-मृत्यु दोनों निश्चित है। यदि किसी के मृत्यु की घड़ी आ गयी तो तुम बचा नहीं सकते, यदि आयु शेष है तो कोई मर नहीं सकता। स्वयं की आत्महत्या एक गुनाह है जिसकी सज़ा प्रेत बनकर भुगतना पड़ेगा।

कलियुग के माता-पिता झूठी शान के लिए जीते हैं, एक नहीं अनेक सन्तानें बिना प्लानिंग के पैदा करते हैं। और फिर इंसान को जन्म देकर रोबोट जैसा आज्ञा पालन करवाना चाहते है जो सम्भव नहीं होता। आजकल के प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे को आकर्षण में पाना किसी भी कीमत पर चाहते है लेकिन जीवन के प्रति दूरदर्शिता का सर्वथा अभाव होता है। प्रेम में पड़ने और उसके दौरान रिश्ते की पूर्णता सम्भव है या नहीं इस पर विवेक का प्रयोग नहीं करते। प्रेमिका प्रेम तो इंसान से करती है लेकिन रोबोट की तरह आज्ञाकारी प्रेमी चाहती है, यही हाल प्रेमी का है प्रेम तो इंसान से करते है लेकिन आज्ञाकारी प्रेमिका रोबोट की तरह चाहिए। सर्वत्र दूरदर्शिता, विवेक और परमार्थ का अभाव है।

प्रेम का अर्थ होता है त्याग, हम जिससे प्रेम करते है उसकी ख़ुशी का ख़्याल रखना, उसकी ख़ुशी के लिए स्वयं के अस्तित्व और खुशी का त्याग कर देना।

जब किसी भी रिश्ते में संवाद और विश्वास नहीं होने पर ही कोई मरने की धमकी अंतिम अस्त्र रूप में देता है।

लेकिन क्या कोई वास्तव में आपके लिए मरेगा? या स्वयं की इच्छापूर्ति और झूठे सामाजिक दिखावे के लिए मरेगा। इसे एक सत्य कहानी के माध्यम से समझते हैं:-

एक शिष्य जो पूर्व जन्म में सिद्ध साधक था उसकी मृत्यु हुई और इस जन्म में वो गृहस्थ हो चुका था। सद्गुरु को इसका आभास था, अतः इस जन्म में जब मुलाकात हुई तो गुरुदेव ने कहा, पिछले जन्म की साधना पूरी कर सिद्ध बन जाओ। वानप्रस्थी सन्यासी बनना पड़ेगा। वो घर गया और पूंछ कर पुनः गुरुजी के पास आया।  शिष्य बोला गुरुजी मेरे घर वाले और पत्नी मुझे बहुत चाहते है मेरे सन्यासी बनते ही वो जान दे देंगे। गुरुजी बोले चलो इसकी परीक्षा करते है कि कौन तुम्हें बहुत चाहता है जो तुम्हारे लिए जान भी दे देगा। शिष्य से बोले लो ये औषधि खाओ, और जब भी कोई नजदीक आये श्वांस चढ़ा लेना मृत लगोगे। सुनाई सब देगा। लाश की तरह शिष्य निढ़ाल हो गया उसे लेकर गुरुजी उसके घर गए। बोले आपका बेटा मर गया, सब छाती पीटकर रोने लगे, बोले यमराज इसके बदले हमे ले जाते ये तो हमारा प्राणप्रिय था। गुरुजी बोले इसमें यमराज को कष्ट देने की जरूरत नहीं, मैं मेरी सिद्धि से इसे जीवित कर सकता हूँ जो चाहे इसके बदले उसे यमलोक भेज सकता हूँ। अतः जो इससे प्रेम करता हो आगे आये अपनी आयु इसे दान कर दे। माता-पिता बोले प्यार तो इसे बहुत करते हैं लेकिन मेरी अन्य संतान भी तो है उन्हें भी तो देखना है। पत्नी बोली अभी मेरी उम्र ही क्या है, मेरे माता-पिता मेरा वियोग सह नही पाएंगे। बूढ़े दादा-दादी भी अपनी उम्र दान करने को तैयार न हुए। बहन बोली मेरा तो परिवार है मैं कैसे अपनी जान दे दूं, गुरुजी ने कहा चलो मैं ही अपनी उम्र इसे दान कर देता हूँ। शिष्य उठ खड़ा हुआ, फिर इमोशनल ड्रामा घर में प्रेमाभिव्यक्ति का शुरू हो गया। शिष्य ने सबको प्रणाम किया और बोला गुरुदेव ने अपनी आयु मुझें दान की अतः अब मैं गुरु का हो गया और वो तपस्या करने चला गया।

इसी तरह तुम्हारे लिए कोई जान नहीं देगा, यदि वो जान देंगे भी तो अपने स्वार्थपूर्ति के लिए देंगे।

सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगें लोग। इसको भूल जाओ। लोगों के मुंह मे ढक्कन नहीं हैं कुछ भी कर लो वो कुछ न कुछ कहेंगे ही।

नौ दिन का अपनी जिंदगी से ब्रेक लो, जाओ किसी आश्रम या हिल स्टेशन में। नित्य गायत्री मंत्र उगते हुए सूर्य का ध्यान करते हुए करो विवेकदृष्टि जागृत होगी।

खिलाड़ी खेल के मैदान में अपनी गलती को नहीं समझ पाता, लेकिन उसी खेल का रिकॉर्डेड वीडियो जब घर पर आराम से टीवी में विवेकदृष्टि से देखता है तो अपनी गलती देख समझ के अगले मैच में सुधार लेता है।

इसी तरह घर से दूर सुबह गायत्री मंत्र जप के बाद अपने रिलेशनशिप और अपने पारिवारिक घटनाक्रम को दृष्टा की तरह देखो, सोचो ये घटनाएं किसी अन्य व्यक्ति के साथ घट रही है, उसे तुम्हे सही सलाह देनी है इससे उबरने के लिए। नौ दिन की विवेचना के बाद निर्णय लो।

किसी दूसरी लड़की से विवाह माता-पिता की स्वार्थपूर्ति हेतु कदापि मत करना, क्यूंकि यदि इस घटनाक्रम में तुमने इमोशनली विवाह करके किसी लड़की का जीवन बर्बाद किया तो कई जिंदगियां बर्बाद होंगी। आत्मा में इतना बोझ पड़ेगा कि जीवित रहते हुए भी जिंदा लाश बन जाओगे।

जो भी निर्णय लेना सोच-समझ के लेना, यदि किसी अन्य से विवाह करने की बाध्यता आन भी पड़े तो पहला रिश्ता तोड़ने के बाद एक वर्ष का वक्त लो, उसे और स्वयं को सम्हलने दो फिर किसी अन्य से विवाह करना।

जिससे प्रेम करते हो उससे भी शीघ्रता से विवाह मत करना, यहां भी कम से कम 3 महीने का वक्त लेकर सोच समझ के विवाह करना।

जीवन अनमोल है, ईश्वर का दिया हुआ है। ईश्वर की इस सृष्टि के प्रति भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। इस देश के लिए लिए भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। इसे किसी स्वार्थपूर्ति के लिए नष्ट मत करना।

आपके उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना करते हैं। नौ दिन के ब्रेक लेकर घर से दूर जीवन साधना के दौरान अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय जरूर करना। फ़िर मुझे अपडेट बताना कि क्या निर्णय लिया।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday, 11 March 2018

अम्बर बरसे धरती भीजे, ये जाने सब कोय।धरती बरसे अम्बर भीजे, बूझे बिरला कोय।

*अम्बर बरसे धरती भीजे, ये जाने सब कोय।*
*धरती बरसे अम्बर भीजे, बूझे बिरला कोय।।*

साधारण दृष्टिकोण से बादल बरसता है और पृथ्वी भीगती है, लेकिन वास्तव में यह भी सत्य है कि पृथ्वी बरसती है और अम्बर भी भीगता है। क्यूंकि धरती का जल ही सूर्य के ताप से वाष्प बनके बादल बनता है। धरती के ही वन-वृक्ष पुनः उन्हें आकर्षित करके वर्षा भी करवाते हैं।

कबीरदास जी कहते हैं, भगवान बादल है उनकी कृपा बरसते सब देखते हैं, उनकी कृपा से भक्तों को भीगते सब देखते हैं। लेकिन भक्त को तप से तपते और भक्ति और तप के वाष्प से भगवान को भीगते कोई कोई देख पाता है। भक्त के प्रेम-वन से भगवान को बरसने पर विवश होना होता है ये कोई कोई ही समझते हैं।

वास्तव में, भक्त की भक्ति से ही भगवान को शक्ति मिलती है, जब भक्त नहीं होगा तो भगवान कहाँ होगा। जितना बड़ा भक्त उसका उतना ही बड़ा भगवान। इसलिये तो युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा जी अपनी पुस्तक *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* में कहते हैं कि भक्त भगवान का पिता होता है। अपनी भक्ति से भगवान को जन्म देता है। मीरा की भक्ति ने पत्थर के कृष्ण में भगवान को सजीव किया, उस ईश्वरीय चेतना को स्वयं पर बरसने को विवश किया।

सीधा सा इसका दूसरा अर्थ यह है कि हमारे बुरे कर्म ही हमारे दुर्भाग्य/प्रारब्ध/रोग/शोक रूपी बादल का निर्माण करते हैं, अच्छे कर्म सौभाग्य/स्वास्थ्य/सुकून/आनन्द रूपी बादल बनाते है।

 हम ही अपने अपने भाग्य के निर्माता हैं, जैसे पृथ्वी अपने बादल की निर्मात्री है। आज हम जो है जैसे भी है जिस प्रकार का स्वास्थ्य रखते है और जिस परिस्थिति में रह रहे हैं उसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार है। जड़ प्रकृति से सुख या दुःख हम अपने कर्मो से अपने पास बुलाते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 7 March 2018

*महिला शशक्तिकरण होगा कैसे?*

स्त्री की सबसे बड़ी मित्र स्त्री,
स्त्री की सबसे बड़ी दुश्मन स्त्री,
स्त्री के सृजन का कारण स्त्री,
स्त्री के पतन का कारण स्त्री।

जन्मदात्री भी स्त्री,
सहयोगी भी स्त्री,
उत्थान का कारण भी स्त्री,
और पतन का कारण भी स्त्री।

कहीं सास रूप में बहु को सताने देने वाली स्त्री,
कहीं बहु रूप में सास को सताने वाली स्त्री,
कहीं एक दूसरे को आगे बढ़ाने वाली ,
मित्रवत सास-बहू दोंनो भी स्त्री।

पुरुष को स्त्री का सम्मान सिखाने वाली भी स्त्री,
पुरूष से स्त्री का अपमान करवाने वाली भी स्त्री,
दहेज़ के लिए जलने वाली भी स्त्री,
दहेज के लिए जलाने वाली भी स्त्री।

स्त्री के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए,
साथ निभाने वाली स्त्री,
स्त्रीत्व की रक्षा करने वाली,
स्वयं को सक्षम बनाने वाली स्त्री।

भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली भी स्त्री,
भ्रूण हत्या कराने वाली भी स्त्री,
गर्भ में मरने वाली भी स्त्री,
डॉक्टर-नर्स रूप में कुकृत्य में सहयोगी भी स्त्री।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
महिला शशक्तिकरण में, स्त्रियों को स्वयं जागरूक होकर एकजुट होना होगा, स्वयं को सक्षम-शशक्त बनाने के साथ अन्य स्त्रियों को भी सक्षम शशक्त बनाना होगा। ख़र्चीली शादी-दहेज़ प्रथा, गिफ़्टपैक की तरह सजकर होने वाली विदाई इत्यादि पर एकजुट हो रोक लगानी होगी। लड़का हो या लड़की दोनों सन्तानों को समान आगे बढ़ने का और पढ़ने का अधिकार और अवसर दें। दहेज़ लोभी और भ्रूण हत्या करवाने वाले आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार करें।

स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं, पिता-भाई रूप में पुत्री-बहन का दर्द समझने वाला ससुर-पति रूप में दूसरी स्त्री का कष्ट क्यूँ नहीं समझता। अपनी बहन की इज्ज़त की रक्षा करने वाले हाथ दूसरे की बहन को छेड़ने के लिए कैसे उठ जाता है? इसका प्रमुख कारण है- खोखले दिखावे का प्रभाव और अच्छे संस्कारों का अभाव।

यूँ ही चलता रहा भ्रूणहत्या का घिनौना कर्म, तो शीघ्र ही सृष्टि स्वयंमेव समाप्त हो जाएगी, एक स्त्री से विवाह को हज़ारो पुरुषों के बीच तलवारें खींच जाएंगी, महाभारत हो जाएगा। जब बेटी का जन्म होगा ही नहीं, तो बेटे के संसार को बसाने के लिए बहु लाओगे कहाँ से?

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 5 March 2018

शिक्षक बनना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है

मुझे यदि देश के शासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति होती तो सबसे पहले देश की शिक्षा व्यवस्था को सुधारती, क्योंकि यदि शिक्षक और विद्यार्थी जिस देश के निर्माण में जुट गए उस देश को व्यापार-वाणिज्य में सोने की चिड़िया और ज्ञान में विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता।

शिल्पकार की गलती से कुछ मूर्ति बिगड़ेंगी, मिस्त्री की गलती नींव में दब जाएगी और पेंट से छुप जायेगी, डॉक्टर की गलती कब्र में दब जाएगी, लेकिन एक शिक्षक की गलती सर्वत्र तबाही मचाएगी। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य कहते है - कि शिक्षक बनना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि देश का भविष्य उसके हाथ मे है।

कोई चन्द्रगुप्त ही न होता अगर चाणक्य न होता।

स्त्रियों को गायत्री का अधिकार सम्बन्धी शंका का समाधान

*स्त्रियों को गायत्री का अधिकार सम्बन्धी शंका का समाधान*

प्रत्येक शरीर मे स्त्री तत्व और पुरूष तत्व दोनो है, इसलिए शिव का अर्ध नारीश्वर स्वरूप जग विदित है।

कोई भी स्त्री स्वयं की मनःस्थिति को बदल के पुरुष की तरह कठोर बन सकती है और कोई भी पुरुष मनःस्थिति बदल कर स्त्री की तरह कोमल व्यवहार कर सकता है।

आत्मा के स्तर पर नर और नारी में कोई भिन्नता नहीं है, पुनर्जन्म के कई ऐसे प्रमाण परामनोविज्ञान में मिलता है कि एक आत्मा एक जन्म में स्त्री तो दूसरे में पुरुष जन्म ली है।

उच्चस्तरीय सधनाये और मंत्रजप मन करता है, इसलिए इसे मन्त्र अर्थात (मन + त्र) मन को त्र अर्थात   त्राण करने रक्षा और व्यवस्था करने वाली विधि व्यवस्था। गायत्री अर्थात गय(प्राण) + त्र(त्राण) - प्राणों की रक्षा करने वाली शक्ति।

24 केंद्र और षठ चक्र सूक्ष्म लेवल पर होते हैं, उन्हें स्थूल में आँकना मूर्खता है। इड़ा -पिंगला नाड़ी जो कि ब्रह्मांड की एनर्जी को गायत्री मंत्र जप से सूक्ष्म जागृत करती है। स्थूल के आकार-प्रकार में कोई बदलाव नहीं होता। प्राण शक्ति में परिवर्तन होता है, सद्बुध्दि और विवेकदृष्टि जागृत होता है।

चेतना अन्तर्जगत की यात्रा करके शिखर पर पहुंचती है।

जो भी पुरुष भाई किसी स्त्री से कहे कि वो गायत्री जप का अधिकार नहीं रखती, वो अर्ध विद्या भयंकरी वाला ज्ञान रखता है। अतः उस महामूर्ख बनाने वाली बात से परेशान होने की जरूरत नहीं।

एक बार शंकराचार्य की ज्ञान चर्चा में जब ऐसा ही कुछ ऊटपटाँग(विधवा होने की बात) स्त्रियों को गायत्री जप अधिकार सम्बन्धी बोला गया, तो वहां गायत्री परिवार की स्त्रियों ने खुला चेलेंज दिया कि लाखों महिलायें गायत्री जपती है, हमारे यहां सबका भला हुआ। हम सभी सौभाग्यवती स्त्री है। अपने पतियों को खड़ा करके सभी ने शंकराचार्य जी से पूंछा ये हटते कट्टे स्वस्थ है और हम सब कई वर्षो से गायत्री जप रहे हैं। और हमारे साथ आई माताजी पिछले 30 वर्षों से जप रही है और बाबूजी भी स्वस्थ है।

उन स्त्रियों ने शंकराचार्य से पूंछा क्या ऐसा कोई गारंटी दे सकते है कि जो महिला गायत्री नहीं जपेगी वो सदा सुहागन और निरोग रहेगी।

या जो पुरुष गायत्री या अमुक जपेगा तो उसके प्रारब्धानुसार उसे कोई कष्ट न सहने पड़ेंगे। शंकराचार्य मौन हो गए, कुछ जवाब देते न बना।

मैं भी 40 वर्ष की हूँ, पिछले 14 वर्ष से आई टी फील्ड में जॉब करती हूँ। मेरे पति भी आई टी फील्ड में है और 9 वर्षीय बेटा है। स्वस्थ प्रशन्न हूँ। नित्य गायत्री मंत्र जपती हूँ। जॉब पति बच्चा स्वास्थ्य धन सबकुछ है, ऐसी लाखो गायत्री जपने वाली महिलाओं से मिलवा भी सकती हूँ। मेरे पास युगऋषि परम् पूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा प्रदत्त तथ्य तर्क प्रमाण है, लाखो बहनो द्वारा नित्य जप के प्रमाण है, गायत्री जप द्वारा स्त्रियों को हुए लाभ के प्रमाण है, आ जाओ शास्त्रार्थ करने, खुला चैलेंज दे रही हूँ। स्थान - शान्तिकुंज हरिद्वार होगा, हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या? प्रत्यक्ष को प्रमाण देने में कैसा भय?

कुछ पुरुषप्रधान व्यवस्था के समर्थक भाई समाज में स्त्री के अस्तित्व को कभी बढ़ने नहीं देना चाहता, सदियों से लड़कियों को वस्तु और गुलाम बंनाने की परंपरा है। वो भूल गए हैं कि उनका जन्म भी स्त्री के ही रक्त मांस मज़्ज़ा से बना है और नौ महीने स्त्री के गर्भ से ही निकलकर बाहर आये है। पिता के साथ माता का DNA के गुण उनमे है। पता नहीं ये स्वयं पवित्र कैसे हो गए और इनकी माता और बहन अपवित्र कैसे हो गयी और गायत्री अधिकार से वंचित क्यों हो गयी?

लड़कियां वैदिक काल में सक्षम थीं, लेकिन मध्ययुगीन काल लड़कियों के लिए बुरा था। हिंदुस्तान हो या पाश्चत्य देश या मुश्लिम सर्वत्र स्त्री को शोषण करने की वस्तु समझा जाता है।

उन्हें समान वेतन कभी नहीं मिला और न हीं वोट देने का अधिकार था, न हीं उन्हें मन्दिर, चर्च, मस्जिदों में अधिकार था। कई लड़ाइयां लड़ी गयी तब जाके सब अधिकार मिले।

अब कुतर्कों के जाल और बड़ी बड़ी बातों में लड़कियों को बर्गलाने की चाल चल रही है। कहीं कुतर्क से तो कहीं अनिष्ट का भय दिखा के उन्हें काबू में करने की कोशिश की जा रही है। स्त्री हूँ गायत्री जपती हूँ, फेस टू फेस शास्त्रार्थ को तैयार हूँ, आयुर्वेद से लेकर एलोपैथ के डॉक्टरों के साक्ष्य में, और ज्योतिषियो और अध्यात्म वैज्ञानिकों के साक्ष्य में, लाखो गायत्री परिवार के पुरुष भाई जो स्त्रियों के गायत्री जप का समर्थन करते है के साक्ष्य में,  शास्त्रार्थ करने को तैयार हूँ। हमारे गुरुदेव ने गायत्री जप का अधिकार दिया, हमने जपा और हम लाभान्वित हुए।

रेफरेन्स- http://literature.awgp.org/book/Super_Science_of_Gayatri/v9.14

http://literature.awgp.org/book/gayatri_upnishad/v1.4

ऋग्वेद के 10-134, 10-39, 10-40, 8-91, 10-95, 10-107, 10-109, 10-154, 10-159, 10-189, 5-28, 8-91 आदि सूक्तों कीमन्त्र दृष्टा यह ऋषिकायें हैं।

ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं, जिनसे
  स्पष्ट होता है कि स्त्रियां भीपुरुषों की तरह यज्ञ करती और कराती थीं। वे यज्ञ-विद्या और ब्रह्म विद्यामें पारंगत थीं। कई नारियां तो इस सम्बन्ध में अपने पिता तथा पति का मार्ग दर्शन करती थीं।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशनसृतियो

क्या भगवान है? क्या आप इसका प्रमाण दे सकती हो?

(ईषना और जॉन का संवाद, ऑफिस में सब जानते थे कि ईषना आध्यात्मिक है और आये दिन कोई न कोई व्रत उपवास साधना करती रहती है। आज जॉन की बर्थडे पार्टी थी सब पिज़्ज़ा और कोल्डड्रिंक एन्जॉय कर रहे थे। हमेशा की तरह ईषना ने कहा मैं कुछ नहीं खाऊँगी मेरा व्रत है। ईषना को नीचा दिखाने हेतु जॉन ने ईषना से प्रश्न पूंछना शुरू किया और सब जॉन की तार्किक बुद्धि से परिचित थे, तो कुछ आज ईषना और जॉन के संवाद में निंदारस ढूंढ रहे थे तो कुछ ज्ञान तलाश रहे थे।)
जॉन - *क्या भगवान है? क्या आप इसका प्रमाण दे सकती हो? भगवान कहाँ है?*
*ईषना*- क्या तुम हो? इसका प्रमाण दे सकते हो? तुम शरीर के किस हिस्से में हो और कहां हो?
*जॉन* - ये कैसा सवाल है? तुम प्रश्न का उत्तर न देकर उल्टा प्रश्न क्यूँ कर रही हो?
*ईषना* - इस प्रश्न में ही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है? कृपया बताओ कि तुम कहाँ हो?
*जॉन* - मैं क्या तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा? क्या तुम्हारी नज़र कमज़ोर है?
*ईषना* - मुझे तुम्हारा शरीर दिख रहा है, जो तुम्हारे मरने के बाद भी दिखेगा, जैसे जो शरीर मेरा तुम्हे दिख रहा है, वो मेरे मरने के बाद भी तुम्हे दिखेगा? हमें भी भगवान की सृष्टि दिखाई दे रहा है, लेकिन भगवान नहीं दिख रहे?
ये बताओ मैं और तुम कहाँ है? इसको प्रमाणित करो। जिसके कारण तुम जीवित हैं वो तत्व दिखाओ? जो इस पल में उपस्थित है उसको दिखाओ वो कहाँ है?
*जॉन* - अरे यार इसे ऐसे समझो की यह शरीर हार्डवेयर है और हम सॉफ्टवेयर हैं। जो दिख तो नहीं रहा , इसे छू भी नहीं सकते लेकिन इसी के कारण यह शरीर रुपी हार्डवेयर फंक्शन कर रहा है।
*ईषना* - तो इसी तरह इस हार्डवेयर स्थूल सृष्टि का कोई ऐसा ही सॉफ्टवेयर होगा जिसके कारण यह सृष्टि फंक्शन कर रही है? क्या ये तुम मानते हो? क्या उसी को भगवान तो नहीं कहते?
*जॉन* - हांजी, विचार में पड़ गया। लेकिन....
(जॉन के साथ साथ सभी अन्य लोग भी सोच में पड़ गए, शायद मैं क्या हूँ? इस शरीर से परे हूँ? जिसके कारण जीवित हूँ? यह प्रश्न सबके दिमाग़ में एक साथ कौंध उठा)
*ईषना* - (जॉन की कोल्डड्रिंक की ओर इशारा करते हुए) जॉन, इस कोल्ड्रिंक में शुगर है क्या तुम इसे प्रमाणित कर सकते हो? क्या तुम मुझे दिखा सकते हो? या इस पिज़्ज़ा में नमक है? क्या इसे दिखा सकते हो? ये प्रमाणित कर सकते हो?
*जॉन* - अरे दिखाना सम्भव नहीं है, इसे पीकर और इसे खाकर मीठे और नमकीन की अनुभूति तो कर सकती हो, लेकिन नमक और चीनी इसमें से निकाल कर नहीं दिखा सकता। इसे प्रमाणित तर्क से नहीं कर सकता। एक ही रास्ता है इसे चखना।
साथ ही मेरे शरीर मे मैं कहाँ हूँ यह भी दिखा या तर्क द्वारा बता नहीं सकता।
शायद कुछ मुझे समझ आ रहा है, लेकिन एक तरफ मैं सुलझ रहा हूँ तो दूसरी तरफ मैं कुछ उलझ रहा हूँ। मेरा दिमाग़ अब भगवान से पहले स्वयं को जानने के प्रश्न कर रहा है कि मैं क्या हूँ?
*ईषना* - तुम अब सही प्रश्न पर हो, पहले जानो कि तुम क्या हो? कहाँ से आये हो कहां को जाओगे? ये सब ज्ञान बाहर दृष्टि से देखने पर न मिलेगा, इसके लिए भीतर देखना पड़ेगा। अंतर्जगत में उतरना पड़ेगा।
चलो जल्दी कोल्डड्रिंक पिज़्ज़ा खत्म करो और नीचे चलो, ब्रेक आवर पूरा हो गया।
*जॉन* - ईषना यह चर्चा तो शुरू मैंने तुम्हें तर्क द्वारा नीचे दिखाने के लिये शुरू की थी। लेकिन इस चर्चा के बाद तुम मेरी क्या हम सबकी नजरों में ऊंची उठ गई हो। इस विषय पर कल ऑफिस ब्रेक पर चर्चा करेंगे।
(हां ईषना सबने एक साथ कहा, हम इस विषय पर और चर्चा करना चाहेंगे)
*ईषना* - हां जरूर क्यों नहीं, लेकिन उससे पहले मैं यह सलाह दूंगी क़ि तुम लोग दो छोटी पुस्तक *सुप्रसिद्ध अध्यात्म वैज्ञानिक युगऋषि श्रीराम शर्मा द्वारा रचित* पढ़कर आना जिसका पीडीएफ ऑनलाइन फ्री उपलब्ध है। क्योंकि यदि हम सब एक साथ पढ़कर आएंगे तो चर्चा प्रभावशाली होगी, अन्यथा आधारहीन हो जाएगी।
1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- मैं क्या हूँ
http://literature.awgp.org/book/adhayatm_vidhya_ka_pravesh_dwar/v1.1
http://literature.awgp.org/book/Main_Kya_Hun/v4
http://vicharkrantibooks.org/vkp_ecom/Mai_Kya_Hun_Hindi
(सबने सहमति जताई और अपनी अपनी डेस्क पर काम करने में लग गए, लेकिन साथ ही आज सबके मन मे *मैं क्या हूँ?* प्रश्न घूम रहा था)
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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