Tuesday, 29 December 2020

ईश्वर का प्रेम किस पर व क्यों बरसेगा?

 💐 जब हम जीवन में निज इच्छा से कार्य करने को स्वतंत्र हैं तो क्या हमारा  ध्यान ईश्वर पर है? उसके लिए कुछ करने का हम सोच रहे हैं? 💐


एक पिता की दो सन्तान थी, बच्चे मेले में जाने की जिद कर रहे थे। पिता ने 200 रुपये प्रत्येक को देकर भेजा।


बड़े लड़के ने स्वयं के लिए खिलौने, चॉकलेट व जंक फूड खरीदा। 


छोटे बेटे ने सुना था कि कुछ दिन पहले माँ पिताजी से साड़ी के लिए आलपिन मंगा रही थी, पिताजी भूल गए थे। वह बोल रहे थे मैं अक्सर भूल जाता हूँ न तुम्हारी साड़ी की आलपिन ला पाया और न ही पेपर समेटने के स्टेपलर की पिन। तो उसने माँ के लिए साड़ी की आलपिन व बिंदी, पिताजी के स्टेपलर की पिन व एक साधारण मग़र सुंदर पेन खरीदा। स्वयं के लिए रफ कॉपी व पेन खरीदा। एक छोटी सी टॉर्च व कुछ चॉकलेट खरीद के लाया। छोटे बेटे ने घर आकर जब मम्मी व पापा को उनका सामान दिया व साथ ही चॉकलेट शेयर की। तो मम्मी पापा ने उसे प्यार से गले से लगा लिया, बोला तुम्हें मेले में हमारा ध्यान था। खूब आशीर्वाद दिया।


बड़ा बेटा, चिढ़कर बोला आप लोग तो मात्र छोटे को प्यार करते हो। मुझसे बोला होता तो क्या मैं भी यह सब सामान न ला देता। अरे तुम लोगों ने हमें पैसा मेले को एन्जॉय करने के लिए दिया था, तो बताओ मैने क्या गलत किया?


आप स्वयं विचारें व बताएं कि बड़ा बेटा क्या नहीं समझ पाया, जो छोटे बेटे ने समझा।


💐💐💐💐💐💐💐

ईश्वर ने हम सबको संसार में मानसिक शक्तियों को देकर भेजा है, कर्म करने के लिए हम सब स्वतंत्र हैं। लेकिन दुनियाँ के मेले को एन्जॉय करते समय क्या हमें अपने परमपिता का ध्यान है? क्या हम उन मानसिक शक्ति से स्वयं का उद्धार व ईश्वर का कार्य कर रहे हैं? 


ईश्वर का प्रेम किस पर व क्यों बरसेगा? स्वयं विचार करें...


💐श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

Monday, 28 December 2020

मूलशान्ति - गण्डमूल

 प्रश्न - *मूल क्या है? मूल में जन्मे बच्चे के लिए मूल शांति क्यों अनिवार्य है? मूल शांति कैसे करें? कृपया विधि-विधान बतायें।*


उत्तर - *आत्मीय बहन, सबसे पहले मूल में यदि बच्चा पैदा होता है तो भय की कोई बात नहीं है। आइये वास्तव में मूल होता क्या है इसे समझते हैं:-*


यह सृष्टि त्रिआयामी, त्रिगुणात्मक है। नक्षत्र २७ हैं। इन्हें तीन समान वर्गों में बाँटें, तो 


 (१) १ से ९,


(२) १० से १८ तथा 


 (३) १९ से २७ 


 यह वर्ग बनते हैं। *इन तीनों वर्गों की सन्धि वाले नक्षत्रों को मूल संज्ञक नक्षत्र माना गया है।वे हैं २७वाँ रेवती एवं प्रथम अश्विनी ९वाँ श्लेषा एवं १०वाँमघा तथा १८वाँ ज्येष्ठा एवं १९वाँ मूल।* यह तीन नक्षत्र युग्म ऐसे हैं, जहाँ दो संलग्न नक्षत्र अलग- अलग राशियों में हैं;  किन्तु किसी का कोई  चरण दूसरी राशि में नहीं जाता। इसलिए इन्हें नक्षत्र चक्र के 'मूल' अर्थात् प्रधान नक्षत्र माना गया है। ऐसे महत्त्वपूर्ण नक्षत्रों को अशुभ मानने की परम्परा न जाने कहाँ सं चल पड़ी? *वस्तुतः तथ्य यह है कि नक्षत्रों का सम्बन्ध मानवी प्रवृत्तियों से है। नक्षत्र चक्र के तीन मूल बिन्दुओं पर स्थित नक्षत्रों में मानव की 'मूल' वृत्तियों को तीव्रता से उछालने की चिशेष क्षमता है। मूल वृत्तियों में शुभ- अशुभ दोनों ही प्रकार की वृत्तियों होती हैं। अस्तु, विचारकों ने सोचा कि हीनवृत्तियाँ विकास पाकर परेशानी का कारण भी बन सकती हैं। उन्हें निरस्त करने वाले, कुछ उपचार पहले ही किए जाएँ तो अच्छा है*। इसलिए हीन, पाशविक संस्कारों को निरस्त करने वाले, श्रेष्ठ संस्कारों को उभारने में सहयोग कर सकने वाले  कुछ जप- यज्ञादि उपचार किए जायें तो अच्छा है। *जिन घरों में गायत्री उपासना, यज्ञ, बलिवैश्व आदि सुसंस्कार जनक क्रम सहज ही होते रहते  हैं, वहाँ मूल शान्ति के निमित्त अलग से कुछ करना आवश्यक नहीं।* जिन परिजनों में ऐसे कुछ नियमित क्रम नहीं हैं, उनमें मूल शान्ति के नाम  पर कुछ उपचारों की लकीर पीटने मात्र से जातक की वृत्तियों पर कुछ उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता नहीं है। इसीलिए शास्त्र मत है कि जिन परिवारों में ऋषि प्रणीत चर्चाएँ नियमित रूप से होती हों, उनमें मूलशान्ति की आवश्यकता नहीं पड़ती। मानवोचित गुणों के विकास के लिए जिन परिवारों में योजनाबद्ध प्रयास होते हों, वहाँ मूल युक्त जातक विशेष सौभाग्य के कारण बनते हैं। 


👉🏼 *नोट - मूल की शान्ति के लिए सुविधानुसार जन्म के ११ वें या २७वें दिन रुद्रार्चन, शिवाभिषेक व महामृत्युञ्जय की विधि सहित जप व गायत्री महामन्त्र का जप, हवन कराने से अभुक्त मूल शान्ति होती है। गायत्री महामन्त्र के २७,००० मन्त्र जप व महामृत्युञ्जय मन्त्र के ११०० मन्त्र जप करना अनिवार्य है।* 👈🏻  *अनुष्ठान का संकल्प 27 वें दिन लेकर शीघ्रातिशीघ्र जप अनुष्ठान किसी भी महीने के शुक्लपक्ष की प्रथमा तिथि से शुरू करके नवमी तक पूर्ण कर लेना चाहिए।*


👉🏼 *गण्ड मूल के नक्षत्र व उनका फल*

  

मूलवास- मनुष्य की योनि पाठशाला के छात्र जैसा है। चराचर जगत् पाठ्यपुस्तक है। नाना योनियाँ इस पाठ्यपुस्तक के नाना अध्याय अथवा पाठ्यक्रम है, जिन्हें जीवरूपी छात्र यथा योनि पढ़ता, परीक्षा (इम्तहान )) के लिये मानव योनि में प्रवेश पाता है। मानव योनि पूरक परीक्षा के क्षण हैं। जिस प्रकार परीक्षा स्थल पर परीक्षक ही प्रश्नपत्र तथा उत्तर पुस्तिका छात्र को प्रदान करता है, उसी प्रकार आत्मा रूपी परीक्षक भी परिस्थितियों का प्रश्नपत्र तथा जीवन उत्तरपुस्तिका स्वंय जीवरूपी छात्र को प्रदान करता है। मनुष्य की योनि परीक्षा के क्षण हैं। परीक्षा का समय जन्म से मृत्युपर्यन्त है। जिस प्रकार परीक्षाफल तीन प्रकार का होता है, यथा उत्तीर्ण (पास) होना, अनुत्तीर्ण होना अथवा कुछ थोड़ी कमी के कारण उसे थोड़े समय उपरान्त पुनः परीक्षा में फिर से परीक्षा में आना। इस जीवन परीक्षा में भी जीवरूपी छात्र को इन्हीं अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ेगा। उत्तीर्ण होने पर अनन्त की राह है। उसे अगली कक्षा में प्रवेश मिलेगा, यदि उत्तीर्ण नहीं हो पाया और फेल हो गया तो उसे पुनः सारा पाठ्यक्रम दुहराने के लिये यथा योनियों से गुजरना होगा। इसके उपरान्त ही पुनः परीक्षा के लिये मानव योनि में प्रवेश मिलेगा। अल्प त्रुटियों की अवस्था में उसे लगभग कतिपय योनियों के उपरान्त ही पुनःपरीक्षा हेतु मनुष्य की योनि प्रदान की जायेगी। 

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*इसीलिये जब भी घर में शिशु का जन्म होता है, घर में सूतक (छूत) का वास होता है। मन्दिर,पूजा आदि बन्द कर दिये जाते हैं, बरहा मनाया जाता है इसका पृष्ठ रहस्य यही है कि जन्मने वाला शिशु हमारा ही पूर्वज है अल्प त्रुटियों से रह गया था,फिर अपने घर लौट आया। बरहा पूजन  में प्रायश्चित पूजन भी करते है उसी में मूल शान्ति विधि भी पूरी कर लेते हैं। यद्यपि मूल का वास- माघ,आषाढ़,आश्विन, और भाद्रपद माह- आकाश में, कार्तिक, चैत, श्रावण और पौष माह- पृथ्वी में, फाल्गुन, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष और वैशाख माह- पाताल में होता है। 'भूतले वर्तमाने तु ज्ञेयो दोषोऽन्यथा न हि।' अर्थात् जब पृथ्वी में मूल का वास हो तभी मूलपूजन का क्रम करना चाहिये अन्यथा सामान्य यज्ञादि से भी बारह (बरहा) पूजन का क्रम पूरा कर लेना चाहिये।*


प्रारम्भिक कर्मकाण्ड मंगलाचरण से रक्षाविधान तक पूर्ण करें। तत्पश्चात् संकल्प करें। 


👉🏼🙏🏻 *॥ सङ्कल्प॥*


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य 


विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणो 


 द्वितीये परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे 


भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्त्तैकदेशान्तर्गते..........क्षेत्रे..........मासानां मासोत्तमेमासे..........मासे..........पक्षे..........तिथौ..........वासरे


..........गोत्रोत्पन्नः.......... नामाऽहं सत्प्रवृत्ति- संवर्द्धनाय, 


दुष्प्रवृत्ति- उन्मूलनाय, लोककल्याणाय, आत्मकल्याणाय, वातावरण -


परिष्काराय, उज्ज्वलभविष्यकामनापूर्तये च प्रबलपुरुषार्थं करिष्ये, 


अस्मै प्रयोजनाय च कलशादिआवाहितदेवता- पूजनपूर्वकम् गण्डान्त नक्षत्रजनित दोषोपसमानार्थं गण्डदोष मूलशान्ति कर्मसम्पादनार्थं सङ्कल्पं  अहं करिष्ये। 


👉🏼🙏🏻 *पञ्चकलशों में पञ्चद्रव्यों के सहित पूजन करें।* 


👉🏼 *मध्य कलश-*


ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। 


पिपृतां नो भरिमभिः। -८.३२,१३.३२ 


👉🏼 *पूर्व-*


ॐ त्वं नोऽ अग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः। 


यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषा*सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्। -२१.३ 


👉🏼 *दक्षिण-* 


ॐ स त्वं नो अग्नेवमो भवोती 


नेदिष्ठो अस्याऽ उषसो व्युष्टौ। 


अव यक्ष्व नो वरुण*रराणो वीहि मृडीक*सुहवो नऽ एधि। -२१.४ 


👉🏼 *उत्तर-*


ॐ इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युरा चके।- २१.१ 


👉🏼 *पश्चिम-*


ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्। 


उपयामगृहीतोस्यश्विभ्यां त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा। -७.११


*नमस्कार- दोनों हाथ जोड़ कर नमन- वन्दन करें।*


ॐ नमस्ते सुरनाथाय, नमस्तुभ्यं शचीपते। 


गृहाणं स्नानं मया दत्तं, गण्डदोषं प्रशान्तये॥ 


👉🏼 *षोडशमातृका पूजन*- 


गौरी पद्मा शची मेधा, सावित्री विजया जया। 


देवसेना स्वधा स्वाहा, मातरो लोकमातरः॥ 


धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिः,आत्मनः कुलदेवता। 


गणेशेनाधिका ह्येता, वृद्धौ पूज्याश्च षोडश॥ 


ॐ षोडशमातृकाभ्यो नमः। आ०स्था०,पू० 


👉🏼 *वास्तुपूजन-* अनन्तं पुण्डरीकाक्षं, फणीशत विभूषितम्। 


विद्युद्बन्धूक साकारं, कूर्मारूढं प्रपूजयेत्॥ 


नागपृष्ठं समारूढं, शूलहस्तं महाबलम् । 


पातालनायकम् देवं, वास्तुदेवं नमाम्यहम्॥ 


ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥


👉🏼 *नागपूजनम्-* 


ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः। 


वासुक्यादि अष्टकुल नागेभ्यो नमः॥आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ 


👉🏼 *चौंसठयोगिनीपूजनम्-* 


दिव्यकुण्डलसंकाशा, दिव्यज्वाला त्रिलोचना। 


मूर्तिमती ह्यमूर्ता चे, 


उग्रा चैवोग्ररूपिणी॥ 


अनेकभावासंयुक्ता, संसारार्णवतारिणी। 


यज्ञे कुर्वन्तु निर्विघ्नं, श्रेयो यच्छन्तु मातरः॥ 


दिव्ययोगी महायोगी, सिद्धयोगी गणेश्वरी। 


प्रेताशी डाकिनी काली, कालरात्री निशाचरी॥ 


हुङ्कारी सिद्धवेताली, खर्परी भूतगामिनी। 


ऊर्ध्वकेशी विरूपाक्षी, शुष्काङ्गी धान्यभोजनी॥ 


फूत्कारी वीरभद्राक्षी, धूम्राक्षी कलहप्रिया। 


रक्ता च घोररक्ताक्षी, विरूपाक्षी भयङ्करी॥ 


चौरिका मारिका चण्डी, वाराही मुण्डधारिणी। 


भैरव चक्रिणी क्रोधा, दुर्मुखी प्रेतवासिनी॥ 


कालाक्षी मोहिनी चक्री, कङ्काली भुवनेश्वरी। 


कुण्डला तालकौमारी, यमूदूती करालिनी॥ 


कौशिकी यक्षिणी यक्षी, कौमारी यन्त्रवाहिनी। 


दुर्घटे विकटे घोरे, कपाले विषलङ्घने॥ 


चतुष्षष्टि समाख्याता, योगिन्यो हि वरप्रदाः। 


त्रैलोक्ये पूजिता नित्यं, देवामानुष्योगिभिः॥ १०॥ 


ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः॥ आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥ 


👉🏼 *ब्रह्मापूजनम्-* 


ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेनऽआवः। 


सबुध्न्याऽउपमाअस्य विष्ठाःसतश्च योनिमसतश्च वि वः॥- १३.३ 


ॐ ब्रह्मणे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। 


👉🏼 *विष्णुपूजनम्*- 


ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम्। 


समूढमस्य पा * सुरे स्वाहा॥ ॐ विष्णवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। -५.१५ 


👉🏼 *शिव पूजनम्-* 


ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ, उतो त ऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः। 


ॐ रुद्राय नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥- १६.१ 


 

👉🏼 *नवग्रहपूजनम्*- 


*सूर्य-* ॐ जपाकुसुमसंकाशं, काश्यपेयं महाद्युतिम । 


तमोऽरिं सर्वपापघ्नं, प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥ 


ॐ आदित्याय विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्। ॐ सूर्याय नमः। 


*चन्द्र-*


ॐ दधिशङ्खतुषाराभं, क्षीरोदार्णवसम्भवम्। नमामि शशिनं सोमं, शम्भोर्मुकुटभूषणम्॥ 


ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे, सागरोद्भवाय धीमहि। तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्। ॐ चन्द्राय नमः। 


*मङ्गल-*


ॐ धरणीगर्भसम्भूतं, विद्युत्कान्तिसमप्रभम्॥ 


कुमारं शक्तिहस्तं च, मङ्गलं प्रणमाम्यहम्॥ 


ॐ क्षितिपुत्राय विद्महे, लोहिताङ्गाय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्। ॐ भौमाय नमः। 


*बुध-*


ॐ प्रियङ्गु कलिकाश्यामं, रूपेणाप्रतिमं बुधम्। 


सौम्यं सौम्यगुणोपेतं, तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥ 


ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे, रोहिणीप्रियाय धीमहि। 


तन्नो बुधः प्रचोदयात्। ॐ बुधाय नमः।


*गुरु-* ॐ देवानां च ऋषीणां, च गुरुं काञ्चनसन्निभम्। 


बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं, तं नमामि बृहस्पतिम्॥ 


ॐ अङ्गिरोजाताय विद्महे, वाचस्पतये धीमहि। 


तन्नो गुरुः प्रचोदयात्। ॐ बृहस्पतये नमः। 


*शुक्र-*


ॐ हिमकुन्द मृणालाभं, दैत्यानां परमं गुरुम्। 


सर्वशास्त्रप्रवक्तारं, भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥ 


ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे, श्वेतवाहनाय धीमहि। तन्नः कविः प्रचोदयात्। ॐ शुक्राय नमः। 


*शनि*- ॐ नीलाञ्जन समाभासं, रविपुत्रं यमाग्रजम्। 


छायामार्त्तण्डसम्भूतं, तं नमामि शनैश्चरम्॥ 


ॐ कृष्णाङ्गाय विद्महे, रविपुत्राय धीमहि। तन्नः शौरिः प्रचोदयात्। ॐ शनये नमः। 


*राहु*- ॐ अर्धकायं महावीर्यं, चन्द्रादित्यविमर्दनम्। 


सिंहिकागर्भसम्भूतं, तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥ 


ॐ नीलवर्णाय विद्महे, सैंहिकेयाय धीमहि। तन्नो राहुः प्रचोदयात्। ॐ राहवे नमः। 


*केतु*- ॐ पलाशपुष्पसङ्काशं, तारकाग्रहमस्तकम्। 


रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं, तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥ 


ॐ अन्तर्वाताय विद्महे, कपोतवाहनाय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्। ॐ केतवे नमः। 


👉🏼 *।। पञ्चगव्यपूजन एवं सवत्सगोपूजनम्।।* 


गोदुग्धं गोमयक्षीरं, दधि सर्पिः कुशोदकम्। 


निर्दिष्टं पञ्चगव्यं, पवित्रं मुनिः पुङ्गवैः॥


👉🏼 *॥ नक्षत्र पूजन॥* 


जातक जिस नक्षत्र में जन्मा हो, उसी नक्षत्र के मन्त्र के साथ नक्षत्र पूजन करें। 


👉🏼 *1 अश्विनी*- 


ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। 


तया यज्ञं मिमिक्षितम्॥ ॐ अश्विनीभ्यां नमः॥- २०.८० 


👉🏼 *2 आश्लेषा*- 


ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वीमनुयेऽन्तरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः। 


ॐ सर्पेभ्यो नमः॥- १३.६ 


👉🏼 *3 मघा*- 


ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः 


  प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन् पितरोऽ मीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्। 


ॐ पितृभ्यो नमः॥- १९.३६ 


👉🏼  *4 ज्येष्ठा*- 


ॐ सजोषाऽ इन्द्र सगणो मरुद्भिः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्। जहि शत्रूँ२ऽ रप मृधोनुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः। 


ॐ इन्द्राय नमः- ७.३७ 


👉🏼 *5 मूल*- 


ॐ मातेव पुुत्रं पृथिवी पुरुषमग्नि* स्वे योनावभारुखा। तां विश्वै- र्देवैऋतुभिः संविदानः


प्रजापतिर्विश्वकर्मा वि मुञ्चतु। 


ॐ नैऋतये नमः॥- १२.६१ 


👉🏼 *6 रेवती*- 


ॐ पूषन् तव व्रतेवयंन रिष्येम कदा चन। 


स्तोतारस्तऽ इह स्मसि। ॐ पूष्णे नमः॥- ३४.४१ 


👉🏼 *सप्तधान्य पूजन(कोई भी सात अनाज रख ले)*- 


ॐ अन्नपतेन्नस्य नो देह्यनमीवस्य शुष्मिणः। 


प्रप्र दातारं तारिषऽ ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे। -११.८३ 


तत्पश्चात् सभी आवाहित देवताओं का षोडशोपचार विधि से पूजन पुरुषसूक्त (पृ० १८६-१९८) से करें। 


👉🏼 *।। पञ्चकलशों से सिञ्चन।।* 


*पञ्चकलशों को पाँच सम्भ्रान्त व्यक्ति (महिला- पुरुष) ले लें तथा निम्न मंत्र के साथ जातक और उनके माता- पिता का सिञ्चन अभिषेक करें।* 


ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवः तानऽ ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे। 


ॐ यो वः शिवतमो रसः तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः। 

ॐ तस्माऽ अरंगमाम वो यस्यक्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः।   


तत्पश्चात् यज्ञ का क्रम पूर्ण करें। गायत्री मन्त्र की २४ आहुतियाँ एवंं महामृत्युञ्जय मन्त्र से ५ आहुति दें, फिर विशेष आहुतियाँ समर्पित करें। 


🙏🏻 👉🏼 *विशेष आहुति* 


👉🏼 *नक्षत्र मन्त्राहुति*- 


ॐ नमस्ते सुरनाथाय नमस्तुभ्यं शचीपते। गृहाणामाहुति मया दत्तं गण्डदोषप्रशान्तये, स्वाहा॥ इदं इन्द्राय इदं न मम। (तीन बार) 


🙏🏻 👉🏼 *नवग्रह मन्त्राहुति*


👉🏼 *१ सूर्य गायत्री*- 


 ॐ आदित्याय विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं सूर्याय, इदं न मम। 


👉🏼 *२ चन्द गायत्री*- ॐ अत्रिपुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि। तन्नः चन्द्रः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं चन्द्राय, इदं न मम। 


👉🏼 *३ मङ्गल गायत्री*- 


ॐ क्षितिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं भौमाय, इदं न मम। 


👉🏼 *४ बुध गायत्री*- 


 ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं बुधाय, इदं न मम। 


👉🏼 *५ गुरु गायत्री*- 


 ॐ अङ्गिरोजाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि। तन्नो गुरुः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं बृहस्पतये, इदं न मम। 


👉🏼 *६ शुक्र गायत्री*- 


ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि। तन्नः कविः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं शुक्राय, इदं न मम। 


👉🏼 *७ शनि गायत्री*- 


ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि। तन्नः शौरिः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं शनये, इदं न मम। 


👉🏼 *८ राहु गायत्री*- 


 ॐ नीलवर्णाय विद्महे सैंहिकेयाय धीमहि। तन्नो राहुः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं राहवे, इदं न मम। 


👉🏼 *९ केतु गायत्री*- ॐ अन्तर्वाताय विद्महे कपोतवाहनाय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्, स्वाहा। इदं केतवे, इदं न मम। 


तत्पश्चात् यज्ञ का शेष क्रम स्विष्टकृत्, पूर्णाहुति आदि सम्पन्न करें। उपस्थित सभी परिजन अभिषेक मन्त्र के साथ जातक और उनके माता- पिता को आशीर्वाद दें। मूल शांति कार्यक्रम पूर्ण हुआ। 


सन्दर्भ पुस्तक - *कर्मकांड प्रदीप्त, शान्तिकुंज हरिद्वार प्रकाशन*


दान-पुण्य हेतु बच्चे के वजन की चने की दाल और गुङ माता-पिता स्पर्श कर गौशाला में दान दे दें। युगसाहित्य दान दें। माता भगवती भोजनालय में दान दें।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday, 26 December 2020

प्रश्न - आपको क्या लगता है कि आपने जीवनरूपी पहेली को सुलझा लिया है?

 प्रश्न - आपको क्या लगता है कि आपने जीवनरूपी पहेली को सुलझा लिया है?


उत्तर - वाद्य यंत्र व सङ्गीत कोई पहेली नहीं जिसे सुलझाकर संगीतज्ञ या वादक बना जा सकता है। यह एक साधना है जिसे करते हुए पूरी उम्र भी गुजार दो तो भी लगेगा कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है।


जीवन भी सङ्गीत की तरह एक साधना है, जीवन जीना भी एक कला है। यह कोई पहेली नहीं है कि जिसे सुलझाकर होशियारी दिखाई जा सके। कर्म में कुशलता बढ़ाकर, ईश्वरीय निमित्त बनकर आत्मकल्याण व लोककल्याण के कार्य करते हुए। आसक्ति का त्याग करना व कर्म के बन्धन में न बन्धना ही जीवन जीने की कला है। जिसे हैंडल कर सकते हो कर लो, जिस पर जोर नहीं उसे सह लो।


🙏🏻श्वेता, DIYA

अग्रेजी बोलना आता है तो अहंकार मत कीजिये, अंग्रेजी नही आता तो हीन भावना मत लाइये।

 कम्युनिकेशन की भाषा  इंग्लिश हो या हिंदी या अन्य भाषा में हो, भाषा मात्र लिफाफे की तरह होते हैं, जो भावनाओं व उद्देश्य का आदान प्रदान करते हैं। लिफ़ाफ़े से ज्यादा महत्त्व उस लिफाफे के अंदर क्या है उस परनिर्भर करता है। प्रत्येक देश का भिखारी हो या होटल का वेटर उसी देश की भाषा बोलता है। प्रत्येक देश का अमीर व्यक्ति व देश का प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति उसी देश की भाषा बोलता है  । अंग्रेज भिखारी अंग्रेजी में ही भीख मांगता है, अंग्रेज बिजनेसमैन अंग्रेजी बोलकर बिजनेस करता है। अतः लिफ़ाफ़े में केवल मत उलझिए उस लिफाफे के अंदर क्या व्यक्तित्व व कृतित्व भरना है उस पर ध्यान दीजिए।


अग्रेजी बोलना आता है तो अहंकार मत कीजिये, अंग्रेजी नही आता तो हीन भावना मत लाइये। अंग्रेजी सिर्फ भाषा है, अमीर व सफल बनने की गारंटी नहीं। 


जापान व जर्मन अपनी लोकल भाषा मे बोलकर भी तरक्की कर रहे हैं। हमारा देश भी मुगलों के आने से पहले संस्कृत व हिंदी बोलकर सोने की चिड़िया था, विश्व व्यापार में 21% से अधिक हिस्सेदारी रखता था। ज्ञान में विश्वगुरु था। 


स्वलिखित - 26 दिसम्बर 2020

श्वेता चक्रवर्ती, DIYA


Friday, 25 December 2020

ईश्वर पर विश्वास बनाये रखना

 *ईश्वर पर विश्वास बनाये रखना*


अंधेरा तो नित्य रात को गहरायेगा ही,

बस तुम प्रकाश की व्यवस्था रखना।

नकारात्मकता तो परिस्थितिवश छायेगा ही,

बस तुम "सकारात्मक विचारों" की व्यवस्था रखना।


भय तो किन्ही न किन्ही कारणों से सताएगा ही,

बस तुम साहस भरे विचारों की व्यवस्था रखना,

मन तो कभी न कभी डगमगाएगा ही,

बस तुम "ईश्वर पर श्रद्धा-विश्वास" बनाये रखना।


यह मृत्युलोक है कलियुग है,

यहां लोगों का आना जाना लगा रहेगा।

इससे तुम मत घबराना,

बस जीवन में "उत्साह उमंग" बनाये रखना।


नित्य "मंत्रजप, ध्यान, स्वाध्याय" करते रहना,

कर्म में कुशलता बढ़ाते रहना,

अनवरत आगे बढ़ते रहना,

जब तक जीवन है "जीवनीशक्ति" बनाये रखना।


🙏🏻श्वेता, DIYA

बोलो कैसे उसे मानव कहा जाय?

 *बोलो कैसे उसे मानव कहा जाय?*


स्वाद, मिठास व मधुरता के गुण बिना,

बोलो कैसे उसे मिठाई कहा जाय?

वैसे ही "प्यार, करूणा, दया, मानवता" के गुण बिना,

बोलो कैसे उसे मानव कहा जाय?


भाग्य सौभाग्य से मानव जन्म मिला,

मानवता के लिए बोलो क्या तुमने प्रयत्न किया?

यदि हृदय में भाव संवेदना का जागरण न किया,

बोलो कैसे उसे मानव कहा जाय?


परहित जो नित्य कुछ कर्म न किया,

जन जन में जो प्रभु को अनुभूत न किया,

परपीड़ा देख जो आंख में अश्रु न आये,

बोलो कैसे उसे धार्मिक कहा जाय?


राष्ट्रहित जो भाव मन में न जगे,

देशद्रोही को देख जो खून न खौले,

मातृभूमि की सेवा को जो ततपर न दिखे,

बोलो कैसे उसे राष्ट्रभक्त कहा जाय?


🙏🏻श्वेता, DIYA

ईश्वर पर विश्वास बनाये रखना

 *ईश्वर पर विश्वास बनाये रखना*


अंधेरा तो नित्य रात को गहरायेगा ही,

बस तुम प्रकाश की व्यवस्था रखना।

नकारात्मकता तो परिस्थितिवश छायेगा ही,

बस तुम "सकारात्मक विचारों" की व्यवस्था रखना।


भय तो किन्ही न किन्ही कारणों से सताएगा ही,

बस तुम साहस भरे विचारों की व्यवस्था रखना,

मन तो कभी न कभी डगमगाएगा ही,

बस तुम "ईश्वर पर श्रद्धा-विश्वास" बनाये रखना।


यह मृत्युलोक है कलियुग है,

यहां लोगों का आना जाना लगा रहेगा।

इससे तुम मत घबराना,

बस जीवन में "उत्साह उमंग" बनाये रखना।


नित्य "मंत्रजप, ध्यान, स्वाध्याय" करते रहना,

कर्म में कुशलता बढ़ाते रहना,

अनवरत आगे बढ़ते रहना,

जब तक जीवन है "जीवनीशक्ति" बनाये रखना।


🙏🏻श्वेता, DIYA

भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।

 *भाव संवेदना गंगोत्री बहने दो..*


हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।

भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।


प्रकृति के कण कण से जुड़ने का आभास करो।

प्रत्येक जीव वनस्पति से निःस्वार्थ प्रेम करो।

हृदय के प्याले से सबके लिए दिव्य प्रेम झलकने दो।।


हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।

भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।



पुष्प की तरह खिलते रहो, मुस्कुराते रहो।

सारे जहान में खुशियाँ बिखेरते रहो।

जीवन की बगिया को यूँ ही महकने दो।।


हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।

भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।


मन मन्दिर में ईश्वर को मुस्कुराने दो।

सत्कर्मों की अनवरत यज्ञ आहुतियां दो।

प्रेममय-भक्तिमय जीवनयज्ञ होने दो।


हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।

भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।


अतंस  में  भाव संवेदना जगने दो।

अब खुद में देवत्व उभरने दो।

खुद को ब्रह्ममय बनने दो।


हृदय सागर में आत्मीयता की लहरें उठने दो।

भाव संवेदना की गंगोत्री हृदय से बहने दो।।


 🙏🏻 श्वेता, DIYA

Tuesday, 22 December 2020

मन को संस्कारित करना अनिवार्य है

 मन को संस्कारित करना अनिवार्य है।


जल का कोई रँग व स्वाद नहीं होता, वैसे ही मन का कोई रँग व स्वाद नहीं होता है।


जल को जिस प्रकार मनुष्य प्रदूषित कर रहा है, वैसे ही मन को भी मनुष्य प्रदूषित करता है।


जल को प्रदूषण मुक्त कर पीने योग्य बनाने के लिए RO है या उबालकर व छानकर अशुद्धि दूर की जाती है। वैसे ही प्रदूषित मन को शुद्ध व ईश्वरीय चेतना धारण करने योग्य बनाने के लिए इसे भी ध्यान, मन्त्र जप और स्वाध्याय से गुजारना होगा। मन को शुभ संस्कारो से युक्त करना होगा।


हम सबका मन वैचारिक प्रदुषण का शिकार हो रहा है, अतः मन की निर्मलता हेतु कुछ प्रयत्न पुरुषार्थ नित्य करना होगा।

मन में कुछ दिन तो सात्विकता रहती है लेकिन कुछ दिन बाद फिर भंग हो जाती है फिर मन चंचल होकर भटकने लगता है ऐसा क्यों और इसके लिए क्या समाधान करे..

 प्रश्न - दीदी , 

मन में कुछ दिन तो सात्विकता रहती है लेकिन कुछ दिन बाद फिर भंग हो जाती है फिर मन चंचल होकर भटकने लगता है ऐसा क्यों और इसके लिए क्या समाधान करे..


उत्तर - मन को स्थिर रखने हेतु निरंतर अभ्यास चाहिए, एक दिन भी चूकोगे तो भटकन स्वतः आएगी। एक बार के भोजन से जीवन भर पेट नहीं भरता। एक बार की सफाई से जीवन घर साफ नहीं होता। एक बार की साधना से हमेशा के लिए मन स्थिर न होगा।


पेट में भूख स्वतः लग जायेगी, अतः उसे मिटाने हेतु भोजन की व्यवस्था करो।


घर में धूल स्वतः आ जायेगी, अतः नित्य सफाई की व्यवस्था करो।


इसी तरह स्वत: मन चंचल व भटकन आ जायेगी, अतः नित्य सात्विकता स्थापित करने की व्यवस्था करो और उसे सन्मार्ग पर लाओ। नित्य स्वाध्याय, प्राणायाम, ध्यान व मन्त्र जप करना पड़ेगा।

Friday, 18 December 2020

प्रश्न - क्या हमें ईमानदार, सीधा और सरल नहीं होना चाहिए?

 प्रश्न - क्या हमें ईमानदार, सीधा और सरल नहीं होना चाहिए?


उत्तर - सीधा सरल भोला भाला ईमानदार हमें भगवान शिव की तरह होना चाहिए। अच्छे लोगों के लिए सीधा व सरल एवं दुष्टों के लिए साक्षात महाकाल बनने की योग्यता भी होनी चाहिए।


सीधा सरल के साथ साहसी व पुरुषार्थी भी होना चाहिए।


डरपोक बच्चे को ही दूसरे बच्चे डराते है। बहादुर बच्चे को डराने की कोई हिम्मत नहीं करता। अतः सीधे सरल बच्चे को बहादुर भी होना चाहिए।


जीवन के खेल में स्वयं की बैटिंग पर ध्यान दो, दूसरे रिश्तेदार, घरवाले, आस पड़ोस वाले, ऑफिस वाले सब समस्या व टेंशन की बॉलिंग एक एक करके करेंगे। अब तुम्हे जीवन का खेल नहीं आता तो टेंशन होगी। यदि खेलना आता है तो जीवन का आनन्द लोगी।


बेटे, हिरण सीधा सरल है उस ने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा होता है। फिर भी मांसाहारी जीव शेर, लकड़बग्घे, जंगली सुअर इत्यादि नित्य उसे शिकार बनाने हेतु आते हैं। हिरण को उन सबसे तेज दौड़ना है, जिस दिन वह तेज न दौड़ा तो उनका शिकार बनेगा व मृत्यु को प्राप्त होगा।।


बेटे, इसी तरह सीधा व सरल होने के साथ साथ यदि बुद्धिकुशल व आत्मबल के धनी नहीं बने, तो टेंशन देने वाले जीव तुम्हारा शिकार अवश्य करेंगे। तुम्हें परेशान जरूर करेंगे।


उदाहरण - तुम जेबकतरे व चोर नहीं हो, तो तूम्हारे सीधा सरल व ईमानदार होने से जेबकतरा तुम्हें नहीं बख्शेगा, वह स्वयं की आदत अनुसार तुम्हारी जेब काटने का प्रयास करेगा। तो सीधा व सरल के साथ सतर्क भी रहो व जेब न कटे इसलिए होशियार रहो। तुम्हें ईमानदार व सतर्क रहना है।


जेबकतरों से बचने के लिए जेबकतरा बनने की जरूरत नहीं है। दुष्टों से बचने के लिए दुष्ट बनने की जरूरत नहीं है।


मात्र हिरण की तरह दिल का अच्छा होना काफी नहीं है, जीवन रक्षण हेतु हिरण की तरह दौड़ना भी आना चाहिए। इसीतरह मात्र अच्छा इंसान व भोला होना काफी नहीं, स्व रक्षण के लिए भोलेनाथ को महाकाल बनने की योग्यता भी होनी चाहिए। यह संसार है, यहां आत्मबल रूपी ऊर्जा व बुद्धि रूपी हथियार के साथ स्ट्रेंथ(शक्ति), स्टेमिना(दमख़म) व स्पीड(गति) अनिवार्य है।

क्या अपने कभी गौर किया है आईने में कुछ लोगों का चेहरा अलग क्यों लगता है?

 

क्या अपने कभी गौर किया है आईने में कुछ लोगों का चेहरा अलग क्यों लगता है?

दर्पण मात्र बाह्य हाव भाव व मेकअप को दिखा सकता है। हृदयगत भावों को जो छुपाने में कुशल है उसे दर्पण नहीं दिखा सकता।

मन से कुरूप व दुष्ट एवं तन से सुंदर को दर्पण सुंदर ही दिखायेगा। कुरूप लड़की के मेकअप के बाद दर्पण उसे सुंदर ही दिखायेगा।दर्पण न सत्य बोलता है और न ही झूठ बोलता है। वह केवल प्रतिबिंबित करता है।

सत्य अंतर्जगत का हृदय दर्पण बोलता है, वही असली सुंदरता को पहचानता है।

गिरगिट और कुत्ते के अंदर लोगों के हृदय को देखने की क्षमता होती है।

इंसान व दर्पण तो अक्सर धोखा खा जाते हैं, बनावटी को ही सत्य समझ लेते हैं।

प्रश्न - जब कभी नकारात्मक परिस्थितियों में आप घिर जाते हैं तो खुद को सँभालने के लिए क्या करते हैं?

 प्रश्न - जब कभी नकारात्मक परिस्थितियों में आप घिर जाते हैं तो खुद को सँभालने के लिए क्या करते हैं?


उत्तर - ज्यों ही सूर्य ढलता है व अंधेरा बढ़ता है। तो अंधेरे से हमें न लड़ने की जरूरत है न घबराने की जरूरत है। बस अपने घर में प्रकाश की व्यवस्था हेतु लाइट्स जला लेते हैं। बिजली गुल हो तो दिया या मोमबत्ती जला लेते हैं या टॉर्च जला लेते हैं।

ऐसे ही जब भी नकारात्मक परिस्थितियों का अंधेरा बढ़ता है, तब मन में हम आशा का दीपक जला लेते हैं। सकारात्मक विचारों का तेल दीपक में डालते रहते हैं इस हेतु मन्त्र जप, ध्यान, प्रार्थना और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय कर लेते हैं। प्रेरणा हेतु महापुरुषों की जीवनियां और यूट्यूब पर इनके टॉक सुन लेते हैं।

Wednesday, 16 December 2020

अगर मेरे पास 100 बीघा जमीन हो तो क्या मुझे नौकरी करनी चाहिए?

 

अगर मेरे पास 100 बीघा जमीन हो तो क्या मुझे नौकरी करनी चाहिए?

गाड़ी हो व चलाना न आता हो या ड्राईवर न तो हम यात्रा नहीं कर सकते। अच्छा व कुशल ड्राइवर खड्डे भरी रोड या पहाड़ में भी गाड़ी चला लेता है, अकुशल ड्राइवर सीधी सड़क में भी एक्सीडेंट कर देता है।

किचन में अनाज व सब्जी हो लेकिन भोजन पकाने की कला न आती हो तो भूख नहीं मिट सकती। कुशल गृहणी उन्ही समान से 36 स्वादिष्ट व्यंजन बना लेती है, अकुशल गृहणी उन्ही समान से खाने योग्य भी खानां नहीं बना पाती।

इसीतरह मात्र खेती हेतु जमीन होने भर से आमदनी न होगी, खेती की कुशलता भी होनी चाहिए।

सही स्ट्रेटजी व अप्रोच से कृषि में मेहनत की जाए तो बिजनेस की तरह प्रॉफिट देता है। लेकिन अकुशल कृषि से काम चलाऊ धन मिलता है।

तुम मनुष्य हो, जो इस पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ प्राणी हैं। जिसके पास बुद्धि है, जो जहाँ बुद्धि, पुरुषार्थ व जुनून को लगाएगा, वहीं सफलता पायेगा। कृषि में जुटेगा तो वहां भी सफलता अवश्य प्राप्त करेगा।

नौकरी की इच्छा है तो नौकरी भी कर सकते हो। साथ में कोई पार्टनर शिप में कॉन्ट्रैक्ट खेती भी करवा सकते हो।


मेरे पास इतनी जमीन होती तो मैं खेती व पशुपालन पसन्द करती औऱ फार्म हाउस बनाकर आनन्द से रहती। साथ ही बहुत से भाई बहनों को रोजगार का अवसर देती। स्वयं की जमीन पर मालिक बनना ज्यादा अच्छा है, किसी की नौकरी में गुलामी करने से…


इंजीनियर हूँ, मग़र हूँ तो नौकर ही किसी मल्टीनेशनल कंपनी की। पढ़ी लिखी डबल पोस्ट ग्रेजुएट नौकर - जो नौकरी कर रही है।



प्रश्न - आज के जमाने का व्यवहारिक कड़वा सच क्या है?

 प्रश्न - आज के जमाने का व्यवहारिक कड़वा सच क्या है?

कटु सत्य -


1- जो व्यवहार स्वयं के लिए पसन्द नहीं है, वह व्यवहार दूसरों से करता है।


2- बेईमान व्यक्ति भी दूसरों से स्वयं के प्रति ईमानदारी की चाह रखता है।


3- चरित्रहीन व्यक्ति भी अपने लिए चरित्रवान जीवनसाथी चाहता है।


4- जिह्वा से नित्य अपनी कब्र खोदते हैं, जानबूझकर अस्वास्थ्यकर खाते हैं।


5- दूसरों को वह ज्ञान देते हैं जिसपर खुद अमल नहीं करते।

प्रश्न - क्या मृत्यु की घटना सबके लिए एक जैसी है?

 प्रश्न - क्या मृत्यु की घटना सबके लिए एक जैसी है?


उत्तर - वर्षा तो एक सी ही होती मग़र बरसात के सबके अनुभव अलग अलग होते हैं। बेघर के लिए वर्षा मुसीबत, नवविवाहित के लिए वर्षा रोमांटिक, वृद्ध जोड़े के लिए वर्षा कपड़े सुखाने में दिक्कत की वजह इत्यादि होती है। वर्षा से स्वयं को बचाने के लिए चील बादल से ऊपर उड़ता है और अन्य पक्षी कोटर में छुपते हैं।

वर्षा की तरह मृत्यु की घटना सबके लिए एक जैसा ही घटता है, मग़र लोगों के मनोभाव अनुसार उनका अनुभव अलग अलग होता है। योगी के लिए मृत्यु आत्मा की जीवनयात्रा का मात्र एक पड़ाव है, भोगी सांसारिक के लिए मृत्यु बहुत बड़ी घटना है।

किसी की मृत्यु पर परिवारजनों के आंखों में आँशु की मात्रा उनकी वर्तमान में उपयोगी व अनुपयोगी होने पर निर्भर करेगा। बीमार वृद्ध व महीनों से खर्चा करवा रहा रोगी मरेगा लोग कम रोयेंगे। एक कमाने वाला मर जाये तो लोग ज्यादा रोयेंगे।

प्रश्न - कहावत है कि "शैतान को याद किया शैतान हाजिर" लेकिन "भगवान को याद किया भगवान हाजिर" यह कहावत क्यों नहीं बनी?

 

प्रश्न - कहावत है कि "शैतान को याद किया शैतान हाजिर" लेकिन "भगवान को याद किया भगवान हाजिर" यह कहावत क्यों नहीं बनी?

पहाड़ चढ़ने में प्रयत्न अधिक लगता है, खाई में गिरने हेतु ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं, बस थोड़ा सा फिसलना पर्याप्त है।

फसल उगाने के लिए मेहनत चाहिए, झाड़ व खर-पतवार स्वतः उग जाते हैं।

सँस्कारवान बच्चे बनाने में मेहनत लगेगी, बच्चे बिगाड़ने व कुसंस्कारी बनाने हेतु ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है।

शिक्षित बनने हेतु मेहनत चाहिए, अनपढ़ होने के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं।

शिक्षा का नाम याद करने से कोई शिक्षित नहीं बन सकता, शिक्षित बनने के लिए पढ़ने व मेहनत की जरूरत है।

इसीलिए भगवान को मात्र याद करने से भगवान हाजिर नहीं होते। उन्हें पाने के लिए प्रार्थना व पुरुषार्थ दोनों चाहिए। इसलिए कहावत नहीं बनी।

मानसिक थकान दूर कर मन को रिलैक्स करने हेतु निम्नलिखित कार्य सोने से पूर्व करें।

 मानसिक थकान दूर कर मन को रिलैक्स करने हेतु निम्नलिखित कार्य सोने से पूर्व करें।


गायत्रीमंत्र लेखन दोनों हाथ से करना है, यदि बाएं हाथ से राइटिंग बिगड़ रही है तो चिंता न करें। नित्य अभ्यास से वह बेहतर बनेगी। कम से कम 5 लाइन दाहिने हाथ से और 5 लाइन बाएं हाथ से लिखना है। मन्त्रलेखन जिस कॉपी में कर रहे हैं उसे तकिए के नीचे रखकर सोना है। मन्त्र अधिक जितना चाहे उतना लिखें।


 मन्त्र लेखन से पूर्व भावना/कल्पना करें :-


"मेरे रक्त का रंग खूब लाल है, यह मेरे उत्तम स्वास्थ्य का द्योतक है। इसमें अपूर्व ताजापन है। इसमें कोई विजातीय तत्व नहीं है, इस रक्त में प्राण तत्व प्रवाहित हो रहा है। मैं स्वस्थ व सुडौल हूँ और मेरे शरीर के अणु अणु से जीवन रश्मियाँ नीली नीली रौशनी के रूप में निकल रही है। मेरे नेत्रों से तेज और ओज निकल रहा है, जिससे मेरी तेजस्विता, मनस्विता, प्रखरता व सामर्थ्य प्रकाशित हो रहा है। मेरे फेफड़े बलवान व स्वस्थ हैं, मैं गहरी श्वांस ले रहा हूँ, मेरी श्वांस से ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणतत्व खीचा जा रहा है, यह मुझे नित्य रोग मुक्त कर रहा है। मुझे किसी भी प्रकार का रोग नहीं है, मैं मेरे स्वास्थ्य को दिन प्रति दिन निखरता महसूस कर रहा हूँ। यह मेरी प्रत्यक्ष अनुभूति है कि मेरा अंग अंग मजबूत व प्राणवान हो रहा है। मैं शक्तिशाली हूँ। आरोग्य-रक्षिणी शक्ति मेरे रक्त के अंदर प्रचुर मात्रा में मौजूद है।"


"मैं शुद्ध आत्मतेज को धारण कर रहा हूँ, अपनी शक्ति व स्वास्थ्य की वृद्धि करना मेरा परम् लक्ष्य है। मैं आधिकारिक शक्ति प्राप्त करूंगा, स्वस्थ बनूँगा, ऊंचा उठूँगा। समस्त बीमारी और कमज़ोरियों को परास्त कर दूंगा। मेरे भीतर की चेतन व गुप्त शक्तियां जागृत हो उठी हैं। मेरी बुद्धि का उच्चतर विकास हो रहा है। मैं बुद्धिकुशल बन रहा हूँ, बुद्धिबल व आत्मबल प्राप्त कर रहा हूँ।"


"अब मैं एक बलवान शक्ति पिंड हूँ, एक ऊर्जा पुंज हूँ। अब मैं जीवन तत्वों का भंडार हूँ। अब मैं स्वस्थ, बलवान और प्रशन्न हूँ।"


निम्नलिखित सङ्कल्प मन में पूर्ण विश्वास से दोहराईये:-


1- मैं त्रिपदा गायत्री की सर्वशक्तिमान पुत्री/पुत्र हूँ।

2- मैं बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान परमात्मा का बुद्धिमान, ऐश्वर्यवान व बलवान पुत्री/पुत्र हूँ।

3- मैं गायत्री की गर्भनाल से जुड़ी/जुड़ा हूँ और माता गायत्री मेरा पोषण कर रही हैं। मुझे बुद्धि, स्वास्थ्य, सौंदर्य व बल प्रदान कर रही है।

4- मैं वेदमाता का वेददूत पुत्री/पुत्र हूँ। मुझमें ज्ञान जग रहा है।

5- जो गुण माता के हैं वो समस्त गुण मुझमें है।

6- मैं और मेरा परिवार भगवान की कृपा से सुखी व संतुष्ट है।

7- हम सभी स्वस्थ हैं व आनन्दमय जीवन जी रहे हैं।

👇🏻👇🏻


फिर गायत्रीमंत्र जप करना शुरू करे - *ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्।*


जप या लेखन के बाद तीन बार ॐ शांति ॐ शांति ॐ शांति बोल लें। व दोनो हाथ को रगड़कर चेहरे पर जैसे क्रीम लगाते हैं वैसे ही घुमा लीजिये।


कोई अच्छी पुस्तक भी सोने से पूर्व पढ़ना अच्छा रहता है।

Friday, 11 December 2020

प्रश्न - मोबाइल फोन पर बोले जाने वाले हैलो शब्द के बदले कौन सा धार्मिक शब्द उपयुक्त होगा?

 प्रश्न - मोबाइल फोन पर बोले जाने वाले हैलो शब्द के बदले कौन सा धार्मिक शब्द उपयुक्त होगा?

उत्तर- 

हैलो दी, कैसे हो? हैलो पापा,आप कैसे हो? यह पाश्चात्य प्रचलित विधि है।


इसे आसानी से व थोड़े अभ्यास से हेलो की जगह "हरि ॐ" इत्यादि से बदला जा सकता है।


ओके शब्द को "ॐ" से बदल सकते हैं।


कुछ उदाहरण:-


हरि ॐ दी, आप कैसे हो?


हरे कृष्णा! दी, आप कैसे हो?


जय श्री कृष्णा! दी, आप कैसे हो?


जय श्री राम! दी, आप कैसे हो?


हरि ॐ! पिताजी, आप कैसे हो?


हरि ॐ! रवि कैसे हो?


हरि ॐ मिताली कैसी हो?


इत्यादि बोले जा सकते हैं

प्रश्न - क्या आप अपनी सन्तान को लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार दे सकती हैं?

 प्रश्न - क्या आप अपनी सन्तान को लिव इन रिलेशनशिप में रहने का अधिकार दे सकती हैं?


उत्तर - माता पिता के रूप में भारतीय संस्कृति के मूल्यों से अपने बच्चों को जोड़ने व जीवन के प्रति सही समझ विकसित करने का हर सम्भव प्रयास मैं करूंगी। जिससे वह जीवन में सही निर्णय विवेक अनुसार ले सकें।


विवाह दो आत्माओं का भावनात्मक व आत्मिक बन्धन होता है। यहां पास रहने से ज्यादा मन में दिल में रहने को वरीयता दी जाती है।

लिवइन दो व्यक्तियों का मात्र शारीरिक सम्बन्ध होता है, कुछ साथ रहते रहते विवाह कर लेते हैं, कुछ मन भरने पर छोड़ देते हैं। यहां शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु हृदय से जुड़ाव अनिवार्य नहीं।

कानून इसकी इजाजत देता है, धर्म नहीं देता। इंसानियत भी इसकी इजाजत नहीं देता।

पाश्चात्य प्रेरित मानसिकता के युवाओं को चाहिए,

प्रेम बिना बन्धन का,

और बिना जिम्मेदारी का,

मौज मस्ती और पार्टी,

बिना किसी बाधा का,

पाश्चात्य का अंधानुकरण,

सोशल सिक्योरिटी नम्बर के बिना ,

विकसित देश की नकल,

आर्थिक मजबूती के बिना।

प्रेम में आस्था संकट उतपन्न हो गया है, शारीरिक भूख मिटाने को प्रेम की संज्ञा मिल गयी है।

त्याग- सेवा- सहकारिता- जिम्मेदारी उठाना यह प्रेम के वृक्ष की जड़ थी, जिसकी छांव में पूरा जीवन आनन्द से बीतता था। अब यह जड़ ही खोखली हो गयी है। भावनात्मक जुड़ाव और आत्मियता का सर्वथा अभाव हो गया है। गृहस्थी की नींव हिल गयी है।

*प्रेम से गोद मे लिया 10 किलो का बच्चा माता-पिता को भार नहीं लगता, लेक़िन बिना प्रेम के 10 किलो का अन्य सामान भार लगता है। प्रेम किसी से होगा तो विवाह का यह बन्धन, जिम्मेदारी और एडजस्टमेंट भार नहीं लगेगा। प्रेम के अभाव में यही भार स्वरूप हो जाएगा।*

*जो लोग लिव इन रिलेशनशिप की डिमांड करते है और विवाह से बचते है वो वास्तव में प्रेम नहीं करते, केवल शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति का माध्यम तलाशते है, वेश्यालय जाने में खर्च अधिक है, उससे कम पैसों में लिवइन उपलब्ध हो जाता है। मन भर जाए तो छोड़ दो कोई कानून या सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं है।*

हम लिवइन के समर्थन में नहीं है, साथ ही इसके बुरे परिणाम से चिंतित भी जरूर है।

भारतीय लड़कियां विदेशों की तरह सुरक्षित नहीं है, न ही उन्हें सामाजिक सुरक्षा, अधिकार और सम्मान विदेशों की तरह प्राप्त है।

नकल + अक्ल = सफ़ल

नकल + बिना अक्ल = असफ़ल

एक लड़की की लिव इन रिलेशनशिप और कुँवारी मां बनना विदेशों में सामाजिक रूप से स्वीकार्य है। लेकिन भारत मे मान्यता है ही नहीं। तो विदेशों में लड़कियां कुँवारी मां बनने पर गर्भपात नहीं करवाती, और दूसरा और तीसरा जीवनसाथी प्राप्त करने में उन्हें कोई प्रॉब्लम नहीं होती। अनन्त रिश्ते जीवन के किसी भी उम्र में बनाना सम्भव है। नाजायज़ बच्चों का भार सरकारी संस्थाएं उठाती है उन बच्चों को पिता के नाम की जरूरत नहीं होती।

भारतीय पाश्चत्य प्रभावित मॉडर्न लड़के, धोबी के कुत्तों की तरह न घर के होते हैं न घाट के। दूसरी लड़कियों के चरित्र में दाग लगाने को बेताब होते हैं।लेकिन अपनी माँ,बेटी, बहन और पत्नी दूध से धुले चरित्र वाली बेदाग़ चाहिए। गर्लफ्रेंड हॉट चाहिए लेकिन पत्नी चरित्र की साफ़ चाहिए।

ऐसे में वर्तमान के लिवइन के मज़ा बाद में भारतीय लड़कियों को बहुत भारी पड़ता है। क्योंकि शादी के बाद वो गृहस्थी के लिए जरूरी त्याग व प्रेम भाव नहीं ला पाती। अंतर्मन कचोटता रहता है।

विदेशों में जनसंख्या कम है और क्षेत्रफल ज्यादा, रोज़गार के अवसर ज़्यादा है। भारत मे क्षेत्रफल कम और रोजगार के अवसर अत्यंत कम हैं।

ऐसे में प्रति व्यक्ति आय और संसाधन जीने खाने के लिए 7 गुना विदेशियों से कम हैं।

पाश्चत्य की नकल करने से पहले अपनी जीवन निर्वहन की योग्यता पर विचार करें, जिससे आप प्रेम कर रहे हो क्या वो हम सफर बनने योग्य है भी या नहीं। जो वादे आप कर रहे हो वो निभाने की योग्यता खुद में है या नहीं। स्वयं पहले आर्थिक, मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से योग्य बने तब ही प्रेम बन्धन में बंधे।

लिवइन में जाने से पूर्व, rethink mode में बैठे, जीवन को प्लान करें। पूरी जिंदगी के आनन्द प्राप्ति का प्लान करें। किसी के बहकावे में न आयें। स्वयं की जिंदगी की प्रॉपर प्लानिंग करें।जो जीव आपके गर्भ से जन्म ले या जिस जीव के पिता आप हों उसे बेमौत मरना न पड़े। स्वयं की संतान के हत्यारे और जीव हत्या का कारण आप न बनें। प्रेम जिम्मेदारी से करें।

मैं केवल अपनी सन्तान को सही व गलत क्या है? व भारतीय संस्कृति में विवाह की इतनी मान्यता क्यों है? इत्यादि उपरोक्त उदाहरण सहित समझाऊंगी। इसके बाद निर्णय उन पर छोड़ दूँगी, उन्हें जो सही लगे सोच समझ के निर्णय लें।

मैं कभी भी अपनी सन्तान को मेरा निर्णय मानने के लिए विवश नहीं करूंगी। केवल उन्हें जरूरी मार्गदर्शन दूंगी व अंतिम निर्णय का अधिकार उनके हाथ में रहने दूँगी।

प्रश्न - यदि आपकी बेटी होती तो आप अपनी बेटी के लिए जीवन साथी के रूप में लड़के में किन गुणों को देखना चाहेंगी?

 प्रश्न - यदि आपकी बेटी होती तो आप अपनी बेटी के लिए जीवन साथी के रूप में लड़के में किन गुणों को देखना चाहेंगी?


उत्तर- मैं मेरी बेटी के लिए सफ़ल व संवेदनशील जीवनसाथी चाहूंगी, जिसके अंदर निम्नलिखित गुण हों:-


1- वह व्यवस्थित हो व समय का सही उपयोग करता हो


2- आज का काम कल पर नहीं टालता हो


3- जो भविष्य में बनना है उसका क्लियर रोडमैप बनाकर उसपर चल रहा हो। वर्तमान के जो भी आर्थिक स्थिति है उसे सम्हालते हुए और अधिक आर्थिक कमाने हेतु प्रयासरत हो।


4- जो भी कार्य कर रहा हो उससे सम्बंधित विषय की छोटी बड़ी जानकारी एकत्रित करने की आदत हो।


5- स्वयं को स्वयंमेव मोटिवेट रखता हो।


6- उसके अंदर सफलता का Triple "S" - Speed, Strength & Stemina विद्यमान हो।


7- जिसके जीवन मे सफलता प्राप्ति के Four "D" - Desire, Determination, Dedication, Discipline हो।


8- जो धन से अधिक रिश्तों को महत्त्व देता हो।


9- जो अपने माता पिता को सम्मान देता हो व उनका ख्याल रखता हो।


10- जो मेरी बेटी को उसके हिस्से की स्वतंत्रता व आगे बढ़ने का अवसर दें। जो उसे उसकी मर्जी से जीने दें।


11- जो समझदार हो व मेरी बेटी को समझने के लिए तैयार हो।


12- जो रिश्तों को निभाने में विश्वास रखता हो। जो मेरी बेटी के हृदय को भी सम्हालकर रखे।


13- नशे की आदत उसमें न हो


14- देश व समाज के लिए कुछ न कुछ कर रहा हो।


15- अपने देश भारत से प्रेम करता हो। भारतीय होने पर उसे गर्व हो।

Wednesday, 9 December 2020

पहले मैं कभी गुस्सा नहीं होता था, लेकिन आजकल मुझे छोटी-छोटी बातों पर बहुत ज्यादा गुस्सा क्यों आता है, ऐसा क्या किया जाए, जिससे मुझे गुस्सा नहीं आए?

 

पहले मैं कभी गुस्सा नहीं होता था, लेकिन आजकल मुझे छोटी-छोटी बातों पर बहुत ज्यादा गुस्सा क्यों आता है, ऐसा क्या किया जाए, जिससे मुझे गुस्सा नहीं आए?

तीन गुब्बारे लो, तीनों में अलग रँग का जल भर दो। एक जल में सुगंधित द्रव्य और दूसरे में बदबू वाला कुछ डाल दो। तीसरे को सामान्य रख दो।

अब एक आलपिन से सबमें छेद करो। तो जिसमे जो भरा होगा वही बाहर आयेगा। सुगन्धित द्रव्य वाला सुगंध बिखेरेगा, बदबू वाला बदबू और सामान्य वाला सामान्य रहेगा।

इसीतरह छोटी छोटी बातें पिन हैं जो तुम्हारे मन में चुभोई जाती हैं। पहले तुम अभी की अपेक्षा खुश रहते थे, तो यह छोटी बाते हैंडल हो जाती थीं। अब वर्तमान में तुम असंतुष्ट व फ्रस्ट्रेशन से क्रोध से किसी न किसी कारण से भरे हो। जब यह छोटी बातों के पिन मन केन चुभते हैं तुम्हारे भीतर भरा क्रोध फ्रस्ट्रेशन व असंतुष्टि निकलने लगती है।

वस्तुतः तुम यह नियंत्रित नहीं कर सकते कि पिन न चुभे या कोई मुझे गुस्सा न दिलाये। तुम्हें तो स्वयं के अंदर नित्य ध्यान,स्वाध्याय और अच्छे चिंतन की इतनी सकारात्मक ऊर्जा मन में भरनी है कि कोई तुम्हारे मन मे छोटी छोटी बातों से पिन चुभोये तो उससे सकारात्मक ऊर्जा इतनी निकले कि तुम्हारे साथ साथ उसका भी कल्याण हो जाये।

रोज रात को सोने से पूर्व मन से नकारात्मक चिंतन हटाने हेतु कुछ सकारात्मक विचार पढ़कर व मन्त्र जप कर सोना। सुबह ईश्वर को जीवन के लिए धन्यवाद देना। आधी ग्लास खुशियों से भरी व आधी खाली है। अपनी दृष्टि आधी भरी की ओर देखो व मन में उत्साह का संचार करो।

आनन्दमय मन एक जल स्त्रोत की तरह है, उसमें क्रोधाग्नि की चिंगारी कोई बाहर से फेंकेगा तो वह स्वतः बुझ जाएगी।

असंतुष्ट व फ्रस्ट्रेशन से भरा मन पेट्रोलियम से भरा कुंआ है, उसमें जब क्रोधाग्नि की चिंगारी कोई बाहर से फेंकेगा तो क्रोध का ब्लास्ट होगा।

अतः स्वयं के मन पर कार्य करो और उसे आनन्दमय जलस्रोत में परिवर्तित करो।

Tuesday, 8 December 2020

शांति मन्त्र

 

बृहदारण्यक उपनिषद् तथा ईशावास्य उपनिषद्संपादित करें

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

तैत्तिरीय उपनिषद्संपादित करें

ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं नः इन्द्रो वृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। ॠतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ''ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

तैत्तिरीय उपनिषद्कठोपनिषद्मांडूक्योपनिषद् तथा श्वेताश्ववतरोपनिषद्संपादित करें

ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

केन उपनिषद् तथा छांदोग्य उपनिषद्संपादित करें

ॐ आप्यायन्तु ममांगानि वाक्प्राणश्चक्षुः
श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि।
सर्वम् ब्रह्मौपनिषदम् माऽहं ब्रह्म
निराकुर्यां मा मा ब्रह्म
निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणम् मेऽस्तु।
तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते
मयि सन्तु ते मयि सन्तु।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

ऐतरेय उपनिषद्संपादित करें

ॐ वां मे मनसि प्रतिष्ठिता
मनो मे वाचि प्रतिष्ठित-मावीरावीर्म एधि।
वेदस्य म आणिस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीरनेनाधीतेनाहोरात्रान्
संदधाम्यृतम् वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु
तद्वक्तारमवत्ववतु मामवतु वक्तारमवतु वक्तारम्।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

मुण्डक उपनिषद्माण्डूक्य उपनिषद् तथा प्रश्नोपनिषद्संपादित करें

ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवाः।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवागं सस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितम् यदायुः।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

अन्य स्रोतों सेसंपादित करें

शान्ति मन्त्र वेदों व वैदिक साहित्य में अन्यत्र भी हैं जिनमें से कुछ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।

वैसे तो इस मंत्र के जरिये कुल मिलाकर जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है, परंतु विशेषकर हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करते हैं।

ऐसे ही बृहदारण्यकोपनिषद् में मंत्र है, जिसे पवमान मन्त्र या पवमान अभयारोह मन्त्र कहा जाता है।

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्माऽमृतं गमय।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28।

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