Tuesday, 30 April 2019

प्रश्न - *स्वयं को स्वयं में कैसे खोजूँ? स्वयं ही स्वयं को कैसे जानूँ? मार्ग बतायें*

प्रश्न - *स्वयं को स्वयं में कैसे खोजूँ? स्वयं ही स्वयं को कैसे जानूँ? मार्ग बतायें*

उत्तर - आत्मीय बहन, स्वयं के शरीर को देखने के लिए दर्पण चाहिए। लेक़िन फिंर भी पूरा शरीर नहीं दिखता, दूसरा दर्पण चाहिए जो पीछे के शरीर को प्रतिबिंबित सामने वाले दर्पण में कर सके और हम अपनी सामने वाली आंखों से उसे देख सकें।

जब स्थूल शरीर को स्थूल आंखों से देखने में इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, तो फ़िर सोचो सूक्ष्म शरीर को देखने मे कितनी मशक्कत करनी पड़ेगी। ऐसी हालत में जब सूक्ष्म नेत्र/अंतर्दृष्टि ही बन्द हों, तो तो देखना/जानना और भी असम्भव है।

एक प्रयोग करो, आँख बन्द कर लो और पट्टी बांधों। फिंर एक ग्लास जल पियो। देखो कि क्या बिना नेत्रों की सहायता के तुम जल पी पाती हो या नहीं। 100% पी लोगी।

दूसरे प्रयोग में - किसी से बोलो कि तुम्हें पीठ में चिकोटी काटे। दर्द के वक्त बिना देखे तुम बता सकती हो कि दर्द कहाँ हुआ। अर्थात स्वयं के स्थूल अस्तित्व से तुम परिचित हो, शरीर के प्रति चैतन्य हो।

तीसरा प्रयोग - किसी घटना के गहरे चिंतन में डूब जाओ, इतना डूब जाओ कि शरीर का ध्यान ही न रहे, उस वक्त कोई पानी पीने को दे तो आँख खुली हो तो भी तुम पानी नही पी पाओगी। पीठ में कोई चिकोटी काटे तो तुम दर्द भी महसूस नहीं कर पाओगी। यदि गहरे चिंतन में डूबे चाय पियोगी तो स्वाद ही महसूस न होगा।

अतः उपरोक्त उदाहरण से सिद्ध हुआ कि स्वयं का स्थूल शरीर, जगत भी तभी जाना और महसूस किया जा सकता है, जब हमारा ध्यान उस पर हो।

ध्यान एक तरह का धारदार चाकू है, जिससे ऑपेरशन भी किया जा सकता है और फ़ल-सब्जी इत्यादि कुछ भी काटा जा सकता है। ध्यान बिजनेस में जमाओगे तो वहां सफल होंगे, ध्यान पढ़ाई में लगाओगे तो वहां सफल होंगे, ध्यान घर गृहस्थी में लगाओगे वहां सफलता मिलेगी, ध्यान अध्यात्म में लगाओगे वहां सफलता मिलेगी। ध्यान अंतर्जगत में लगाओगे तो वहां भी 100% सफलता मिलेगी। ध्यान के साथ प्रयास का कर्म भी करना पड़ता है।

मेरी प्यारी बहना, ध्यान का नियम अंतर्जगत पर भी लागू हैं। तुम जो बाहर जगत की तरफ ध्यान दे रही हो उसे भीतर जगत की तरफ़ भी कुछ देर के लिए मोड़ दो।

दृश्य और दृष्टा कभी एक नहीं होते, यदि तुम मेरा मैसेज मोबाइल में देख रही हो, तो मोबाइल दृश्य है और तुम्हारी आंखे दृष्टा, दोनों अलग अलग हैं। लेकिन उपरोक्त तीन उदाहरण में हमने जाना कि यदि हमारा ध्यान न हो तो हम आंखों से देखकर भी नहीं देख सकते। अतः आंखे और ध्यान देने वाला दोनों अलग है। ध्यान देने वाला मन और आंख दो अलग हुए। अब थोड़ा मन पर ध्यान केंद्रित करो कि मन क्या सोच रहा है। अरे हम तो मन क्या बोलता है सुन सकते हैं, वो क्या कर रहा है जान सकते है। ओहो तो मन से परे भी कोई है। तो वो हम हैं। अच्छा जी अब समझ मे आया हम शरीर नहीं है, मन भी नहीं है। इन दोनों से ऊपर कुछ हैं जिसके कारण हम जीवित हैं।

सूक्ष्म जीवों को देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी यंत्र चाहिए। इसी तरह सूक्ष्म जगत को देखने और अनुभव करने के लिए सूक्ष्म नेत्र/अंतर्दृष्टि चाहिए। जैसे स्थूल आंखों पर नियंत्रण है खोलने या बन्द करने का, वैसे ही आंख बंद करके सूक्ष्म नेत्रों को खोलने की कोशिश करो।

अब स्थूल आंख खोलनी हो तो अपने हाथों से तो हम खोलते नहीं, केवल सुबह नींद से उठते ही चैतन्यता आते है ध्यान नेत्र पर डालते है और भीतर ही भीतर उसे खोलने का आदेश देते हैं। बस अन्तर्जग में अंतर्दृष्टि भी ऐसे ही खुलेगी। आदेश दीजिये और ध्यान अन्तरनेत्रो में जमाइए खोलने की कोशिश कीजिये। बहुत दिनों से बन्द है, थोड़ी लगातार कई महीनों तक मेहनत करनी पड़ेगी। खुल जायेगा, फिंर अंतर्जगत में अन्तः करण के दर्पण में स्वयं को देखने और जानने की क्षमता मिल जाएगी।

बाहर से जब हम आते हैं तो घर में प्रवेश के बाद मुख्य द्वार बंद कर देते हैं। इसी तरह जब ध्यान में भीतर प्रवेश करेंगे तो बाह्य सभी मुख्य द्वार बंद कर देंगे, जैसे नेत्र, मुख, कर्ण इत्यादि। शरीर को स्थिर कर देंगे, फ़िर शुरुआत भीतर की ध्वनि सुनने से करेंगे। कुछ झींगुर के बोलने या सिटी जैसी धुन सुनेंगे। फिंर ध्यान दाहिने कान की तरफ शिफ्ट करके दाहिने कान से भीतर की ध्वनि सुनेंगे। फिंर ध्यान को सांस पर फोकस करेंगे, आती जाती श्वांस को पूरा अनुभूत करेंगे। सांस के चौकीदार बनेंगे। फिंर धीरे धीरे ध्यान अपने दोनों नेत्रों के बीच जहां स्त्रियां बिंदी लगाती हैं वहां केंद्रित करेंगे। यदि सरदर्द हो तो उस जगह पूर्णिमा के चांद का ध्यान धारणा करेंगे, यदि सर दर्द न हो तो उगते हुए सूर्य का ध्यान धारणा करेंगे। नित्य ध्यान धारणा करते करते अन्तरनेत्र सक्रिय होने लगेंगे और चयनित धारणा को देखने का प्रयास करेंगे। लगभग छह से सात महीनों में नित्य एक घण्टे बिना हिले डुले स्थिर चित्त से यह ध्यान करने पर अन्तर्जगत में सूर्य या चन्द्र जो भी ध्यान कर रहे होंगे दिखने लगेगा। अब जब अंतर्जगत में दृश्य क्लियर हो जाये अन्तरनेत्र खुल जाए तो उन अन्तरनेत्रो को आदेश दो कि स्वयं की आत्मज्योति/आत्मउर्जा के दर्शन करवाये जिसके कारण यह शरीर जीवित है।

जिन खोजा तिन पाइँया, गहरे पानी पैठ,
जिन खोजा तिन जानियाँ, गहरे ध्यान में बैठ।

मूर्ख वह है, जो यह जानना चाहता है कि अब तक कितनों को ज्ञान प्राप्त हुआ? बुद्धिमान वह है जो स्वयं के शरीर की प्रयोगशाला में प्रयोग करके स्वयं साबित करता है कि मुझे आत्म ज्ञान प्राप्त हुआ।

रिसर्च करने वाले ही रिसर्चर होते हैं, यही ऋषि कहलाते हैं। बिना आत्म रिसर्चर बने बिना मेहनत के आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday, 28 April 2019

प्रश्न - *दी, मुझे संस्कृत का अर्थ नहीं आता। बिना अर्थ जाने मैं यज्ञ के मन्त्रों का भावपूर्वक उच्चारण करके यज्ञ करती हूँ। कृपया यह बतायें कि क्या यह सही है?*

प्रश्न - *दी, मुझे संस्कृत का अर्थ नहीं आता। बिना अर्थ जाने मैं यज्ञ के मन्त्रों का भावपूर्वक उच्चारण करके यज्ञ करती हूँ। कृपया यह बतायें कि क्या यह सही है?*

उत्तर - आत्मीय बहन,

एक सत्य घटना सुनो, सूरदास जो कि अँधे थे भगवान के दर्शन को नित्य मन्दिर आते। तो एक दिन युवा पुजारियों ने उनका मज़ाक़ उड़ाते हुए पूँछा, अँधे हो दुनियाँ नही दिखती, मन्दिर और भगवान की मूर्ति नहीं दिखती। फ़िर दर्शन करने रोज क्यों आते हो?

सूरदास मुस्कुरा के बोले, भाई मैं अंधा हूँ, लेक़िन मेरा भगवान तो नेत्रों वाला है। वो तो रोज़ देखता है न कि मैं उसके दर्शन को आया हूँ। मेरे नेत्र होने से दर्शन पर वो फ़र्क़ नहीं पड़ता, जो भगवान के नेत्र होने और भक्त पर कृपा दृष्टि पड़ने से फ़र्क़ पड़ता है।

इसी तरह बहन, तुम्हें संस्कृत नहीं  समझ आती कोई बात नहीं, लेकिन भगवान को तो संस्कृत आती है, उन्हें उन मन्त्रों के अर्थ भी समझ आते हैं। उन मन्त्रों के माध्यम से तुम क्या प्रार्थना कर रही हो वो ये समझ रहे हैं । वो दयानिधान तो सुन रहा है कि तुम क्या बोल रही हो। वो तुम्हारे हृदय के भावों को भी पढ़ सकता है। अतः भक्त सूरदास की तरह तुम भी यज्ञ करो और संस्कृत के मंन्त्र भाव पूर्वक पढ़ो और यज्ञ करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में क्या अंतर है? इसके बारे में बताइये*

प्रश्न - *वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था में क्या अंतर है? इसके बारे में बताइये*

उत्तर - आत्मीय भाई, जिस प्रकार घर में सभी परिवार के सदस्य घर की व्यवस्था सम्हालने हेतु अलग अलग कार्य करते हैं, जैसे कोई रसोईघर सम्हालता है, तो कोई आध्यात्मिक गतिविधियों में बढ़चढ़ हिस्सा लेता है, कोई घर की साफ सफ़ाई करता है, तो कोई कमाई घर से बाहर जाकर करता है। अलग अलग कर्म करने से परिवार के सदस्य की जाति अलग नहीं हो जाती। रसोईं में काम करने वाला घर की सफाई करने वाले से श्रेष्ठ नहीं हुआ। काम(कर्म) तो काम(कर्म) है।

इसी तरह कम्पनी को चलाने के लिए अलग अलग विभाग होते हैं,  जैसे HR, Finance, Admin, Development, Reception etc.

इसी तरह देश-समाज की व्यवस्था सम्हालने के लिए वर्ण व्यवस्था अर्थात कार्य डिपार्टमेंट कर्म आधारित निर्धारित बनाये गए। हिंदू धर्म-ग्रंथों के अनुसार समाज को चार वर्णों के कार्यो से समाज का स्थाईत्व दिया गया हैै - ब्राह्मण (शिक्षाविद), क्षत्रिय (सुरक्षाकर्मी), वैश्य (वाणिज्य) और शूद्र (उद्योग व कला) ।

इसमे सभी वर्ण को उनके कर्म मे श्रेष्ठ माना गया है।शिक्षा के लिए ब्राह्मण श्रेष्ठ, सुरक्षा करने मे क्षत्रिय श्रेेष्ठ, वैश्य व शूद्र उद्योग करने मे श्रेेष्ठ । वैश्य व शूद्र वर्ण को बाकी सब वर्ण को पालन करने के लिए राष्ट्र का आधारभूत संरचना उद्योग व कला (कारीगर) करने का प्रावधान इन धर्म ग्रंथो मे किया गया है।सेवा राष्ट्र का कारक है , उदाहरण केे लिए सभी देश का आधार सेवा कर है।

दुर्बुद्धि जन्य प्रभावशाली व्यक्तियों ने सोचा कि इस व्यवस्था को जन्म आधारित बना देते हैं, जिससे हमारे बच्चे ऐश कर सकें। साथ ही उन्होंने अपने गुणों और कार्यकुशलता का हस्तांतरण अपनो के बीच ही करना शुरू कर दिया और अन्य लोगों को वो ज्ञान देना बंद कर दिया। इस तरह जन्म हुआ जाति व्यवस्था का। इसमें सबकुछ जन्म आधारित कर दिया गया। धर्मग्रंथों में मनमाना संशोधन किया, जन्म आधारित जाति को सही साबित करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद का सहारा लिया गया। ग्रन्थ पर ग्रन्थ लिखे गए। मित्र समूहों में विवाह परम्परा विकसित की गई। जाति-उपजाति की मनमाना नामकरण हुआ।

कोई झूठ हजारों बार बोला जाय तो उस झूठ को लोग सत्य मान लेते हैं। यह जाति प्रथा का कारण है।

फिंर धीरे धीरे लोगों ने जाति प्रथा को इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया। सबने अपनी अपनी धरोहर अपने अपने कुटुम्बियों को देना शुरू कर दिया।

आर्थिक रूप से पिछड़े लोग और पिछड़ते गए। अनपढ़ लोगों की पीढ़ियाँ भी अनपढ़ ही रह गयीं।

पूरी तरह से अवैज्ञानिक और आधारहीन रूढ़िवादी जातिप्रथा ने हिन्दू धर्म को जकड़ लिया। जिसका वेद पुराणों में जिक्र तक नहीं है। वो जाति प्रथा अवैज्ञानिक ही हुई। जब डॉक्टर के बेटा बिना पढ़े डॉक्टर नहीं बन सकता, शिक्षक का बेटा बिना पढ़े शिक्षक नहीं बन सकता। फ़िर जन्म के आधार पर किसी की जाति वर्ण कुल निर्धारित करना तो अवैज्ञानिक ही हुआ।

जो मित्रसमूह विवाह के लिए सरलता हेतु रचा गया था, उनमें भी स्वार्थप्रेरित कुबुद्धि छाई गई। फिंर शुरू हुआ दहेज़ प्रथा का कुचक्र और लड़कियों की दूर्गति।

रही सही कसर मुगलों के आक्रमण ने पूरी कर दी, उन आतताईयों से सुंदर स्त्रियों को बचाने के लिए पर्दा व्यवस्था भी शुरू हो गयी, उनका बाहर जाना भी प्रतिबंधित हो गया।

जितने भी भारत में जाति के सरनेम बोले जाते हैं उनका उल्लेख किसी भी धर्म ग्रन्थ में नहीं हैं।

वेदों और श्रीमद्भागवत गीता में भी वर्ण व्यवस्था वर्णित है।

पुस्तक - *भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिये* जरूर पढ़े

http://literature.awgp.org/book/bharatiya_sanskriti_ki_raksha_kijiye/v1.4

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - दी मैं ये जानना चाहती हूँ कि सादा जीवन कैसे जी जाती है? क्या अभिप्राय है सादा जीवन से? हमें क्या चाहिए कि हम सादा जीवन जी सके?*

प्रश्न -  *दी प्रणाम, दी ये कहा जाता है कि simple living honi chahiye..Simple life jini chahiye..*
 *कहा जाता है राजा जनक राजमहल में रह कर भी सादा जीवन जीते थे। गुरुजी के भी वाक्य है- "सादा जीवन उच्च विचार"। दी मैं ये जानना चाहती हूँ कि सादा जीवन कैसे जी जाती है? क्या अभिप्राय है सादा जीवन से? हमें क्या चाहिए कि हम सादा जीवन जी सके?*

उत्तर - आत्मीय बहन, महापुरुषों के जीवन का मूलमंत्र ही है - *सादा/सरल जीवन और उच्च विचार*

मनुष्य ख़ुश रहना चाहता है, तृप्ति चाहता है, और महान बनना चाहता है।

लेकिन अज्ञानता वश यह खुशी, तृप्ति और महानता को गलत डायरेक्शन में वस्तुओं, सांसारिक भोगों, इन्द्रिय सुखों में ढूँढ़ रहा है।

*ऋषि कहते हैं ठहरो!* हे धन, पद, यश और इंद्रियसुखो के पीछे भागने वाले इंसानों..जरा आसपास नज़र घुमा के देखो, जिसको पाने की अंधी दौड़ में शामिल हो रहे हो...क्या जिनके पास वह सब ऑलरेडी है क्या वो सुखी हैं?

उन शेखों जिनके पास अपार धन सम्पत्ति, बड़ी बड़ी तेल की फैक्टरियां, महल और जिनकी चार चार बीबियाँ हैं क्या वो सुखी हैं? जो IIT, IIM पास करके बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में लाखों के पैकेज में काम कर रहे हैं क्या वो सुखी हैं, होटल चैन चलाने वाले मालिक जिनके पास तरह तरह के व्यजन उपलब्ध हैं उन्हें ख़ाकर क्या वो सुखी हैं? ????

लंगड़ा पैर न होने के कारण दुःखी है और पैर पाने की चाहत रखता है, चलने वाला साइकिल न होने के कारण दुःखी है, साइकिल वाला मोटरसाइकिल के लिए दुःखी है, मोटरसाइकिल वाला कार के लिए दुःखी है, कार वाला बी एम डब्ल्यू और मर्सिडीज़ के लिए दुःखी है, बी एम डब्ल्यू और मर्सिडीज़ वाला प्राइवेट जेट के लिए दुःखी है, प्राइवेट जेट वाला  अन्तरिक्ष यान के पाने लिए दुःखी है।

भीतर जाकर देखोगे तो सब किसी न किसी तृष्णा में दुःखी हैं। उम्रभर जिस धन को जुटाने में खर्च कर देते हैं, मरते वक्त तो एक सिक्का भी साथ ले जाना सकेंगे। अमीर हो या ग़रीब सबको राख या खाक होना ही है।

जब विचार उच्च होते हैं और मनुष्य शरीर की जरूरतों से ऊपर उठकर आत्मा के अस्तित्व और जरूरत को समझता है। तो ऐसा महान व्यक्तित्व सादा-सरल जीवन स्वतः अपना लेता है। 

*सादा-सरल जीवन😇😇 में और लोभयुक्त व्यसनी😝🥵 जीवन में फ़र्क़ समझिए*

😇😇 👉🏼सरल और महान लोग जीने के लिये खाते हैं, स्वास्थ्यकर खाते हैं, सोने के लिए बिस्तर खरीदते हैं, रहने के लिए मकान खरीदते है,
शरीर को ढँकने, सर्दी-धूप-गर्मी से बचने के लिए वस्त्र पहनते हैं। जरूरत के हिसाब से जीवन निर्वहन करते है।

इनका वक़्त जीवन निर्वहन हेतु जॉब करने में, ज्ञानार्जन करने में, आत्मकल्याण और लोकल्याण के कार्यो में बीतता है। मनोमन्जन(ज्ञानार्जन) और आत्मतृप्ति हेतु जीते हैं।

यह मन के स्वामी होते हैं। इन्हें पता है, शरीर और मन नश्वर है और आत्मा अमर है।

😝🥵 👉🏼 व्यसनी दिखावेबाज खाने के लिये जीते हैं, दिनभर मुँह चलता रहता है, दुसरो को शान दिखाने के लिए बिस्तर खरीदते हैं, दुसरो को शान दिखाने के लिए और दिखावे में धौंस जमाने के लिए मकान खरीदते है,
शरीर  दुसरो को शान दिखाने के लिए और शो ऑफ करने के लिए वस्त्र पहनते हैं। शो ऑफ में अंग प्रदर्शन में नहीं हिचकते हैं।अय्याशी और दिखावे के लिए जीवन निर्वहन करते है।

इनका वक़्त बेतहाशा धन कमाने हेतु मेहनत करने में, अय्याशी के समान जुटाने में, टीवी सिरियल क्लब में इन्द्रिय सुखों की तृप्ति और मनोरंजन(मन की तृप्ति) में खर्च करते हैं।

यह मन के गुलाम होते हैं। इनके लिए इनका शरीर और मन ही सबकुछ है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

बिना विचारों में उच्चता आये जीवन मे सरलता और सादगी नहीं आएगी। विचारों को श्रेष्ठता  नित्य महान पुरुषों की संगति उनके लिखे साहित्यों के स्वाध्याय से ही आएगी और अन्तर्जगत की यात्रा से आएगी, दूसरा कोई उपाय नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday, 27 April 2019

प्रश्न - *प्रश्न दीदी क्या भूत पिशाच होते हैं? इनके होने के प्रमाण क्या आधुनिक वैज्ञानिक युग मे मिलते हैं?*

प्रश्न - *प्रश्न दीदी क्या भूत पिशाच होते हैं? इनके होने के प्रमाण क्या आधुनिक वैज्ञानिक युग मे मिलते हैं?*

उत्तर - आत्मीय बहन,

अध्यात्म और विज्ञान दोनों मानता है कि दुनियाँ में कोई वस्तु पूर्णतया नष्ट नहीं होती, केवल रूप बदलती है।

*उदाहरण 1* -  बर्फ़👉🏼 जल👉🏼वाष्प

*उदाहरण 2* -  फ़ल सब्जियां खाया👉🏼 उससे कुछ रक्त मांस बना और कुछ पॉटी👉🏼 पॉटी 👉🏼 खाद 👉🏼 फ़ल सब्जियों का भोजन बनी 👉🏼 पुनः वह फल सब्जी मनुष्य ने खाया

*उदाहरण 3* - आत्मा 👉🏼 शरीर में प्रवेश और जन्म 👉🏼 पूरी उम्र जीना और वृद्धावस्था में त्यागना 👉🏼 पुनः शरीर आत्मा और शरीर  अलग होना 👉🏼 पुनः आत्मा का शरीर विहीन होना 👉🏼पुनः जन्म लेना

🙏🏻 श्रीमद्भागवत गीता में जिसे आत्मा कहा जाता है, उसे आधुनिक परामनोविज्ञान में ऊर्जा/एनर्जी कहा जाता है। परामनोविज्ञानिको ने ऐसे यंत्रों का आविष्कार किया है जो शरीर विहीन इन एनर्जी/आत्मा की उपस्थिति का अहसास और छाया चित्र देख सकते हैं।

🙏🏻 आधुनिक विज्ञान में जो प्लेन चिट है वही प्राचीन विज्ञान में तंत्र विधि है। इनसे आत्मा से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। हाई बोल्ट आत्मा की एनर्जी होती है, थोड़ी सी चूक में यह आह्वाहन कर्ता को नष्ट कर देती है।

👉🏼 व्हाइट हाउस, अमेरिका में आज भी वहाँ रहने वाले मृत राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के भूत से साक्षात्कार करते हैं। ऐसे ही देश विदेश के कई प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी आत्मा से साक्षात्कार के अनुभव लिख चुके हैं।

👉🏼 हॉन्टेड/डरावनी जगह वो बन जाती है, जब उस घर या वस्तू से मरने के बाद भी उस आत्मा का मोह ख़त्म नहीं होता। तो वहीं रहने लगती है। लोगों को डराकर भगाती है, उस स्थान वस्तु की रक्षा करती है।

👉🏼 आत्मा बेवजह न किसी को दिखती हैं और न ही सम्पर्क साधती हैं।

👉🏼 भूत बनकर वही आत्मा भटकती है जो जीवित रहते हुए किसी जबरजस्त मोहग्रस्त होकर बंधती है। मरने के बाद भी मोहग्रस्त हो मुक्त नहीं हो पाती।

👉🏼 इंसानी आत्मा का जैसा स्वभाव, चरित्र, चिंतन, सँस्कार शरीर में जीवित रहते हुए होता है वैसे ही मरने के बाद भी होता है।

👉🏼 तगड़ा, बलशाली और मानसिक सुदृढ़ व्यक्ति मरने पर शक्तिशाली भूत बनेगा। कमज़ोर हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति कमज़ोर भूत बनता है।

👉🏼 भूतों में भी नियम कायदे कानून है जैसे कि पुलिस प्रसाशन में है। कोई भूत बिना वजह किसी को परेशान नहीं कर सकता। अन्यथा उनका समाज उनको दंडित करता है।

👉🏼 जिस प्रकार मनुष्य को बलशाली गुंडों द्वारा कब्जे में करके उसकी मर्ज़ी के बिना दबाव में कार्य करवाया जा सकता है, उसी तरह तगड़े मन्त्रों और प्रभावशाली तंत्र विधि से किसी भी भूत/प्रेतआत्मा को वशवर्ती करके जबरन कार्य करवाया जा सकता है। इसीतरह आत्मा भी कमज़ोर मनःस्थिति के मन के व्यक्ति जिसका मन कुविचार - गन्दगी से भरा हो को वश में कर सकती है और उससे अपना कार्य करवा सकती है। एक आत्मा के द्वारा जीवित व्यक्ति के शरीर मे कब्जा संभव है, ठीक उसी तरह जैसे गुंडे द्वारा किसी की जमीन पर कब्जा करना।

👉🏼 गांव में 99% मनोरोग को प्रेत बाधा घोषित कर देते हैं। वास्तव में वो अंधविश्वास होता है। 1% बात सत्य होती है।

👉🏼 जिस प्रकार भ्रम और भय वश अंधेरे में रस्सी को सांप समझा जाता है और उसे चलता हुआ महसूस किया जाता है। वैसे ही 99% केस में हिलती झाड़ियों और हिलते डुलते सामानों को भूत समझा जाता है।

👉🏼 यदि भूत को अंधविश्वास न माना जाय तो भूत आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व का प्रमाण है।

🙏🏻 *भूत कैसे होते हैं और क्या करते हैं?*,  इसे विस्तार से समझने के लिए युगऋषि लिखित पुस्तक 📖 *भूत कैसे होते हैं? क्या करते हैं?* पढ़िये।

🙏🏻 जिसने कुछ गलत नहीं किया उसे पुलिस से डरने की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह जिसने कभी कुछ गलत नहीं किया उसे भूत से डरने की आवश्यकता नहीं है।

🙏🏻 नकारात्मक ऊर्जा/ भूत/ प्रेत से किसी घर को मुक्त करवाने के लिए उस घर मे गीता पाठ और 40 दिन लगातार गायत्रीमंत्र यज्ञ करने से उन भूत/प्रेत का मोहबन्धन नष्ट होता है। सत्य ज्ञान होता है, उनके सँस्कार सुधरते हैं। और वो मुक्त हो जाती हैं।


🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday, 26 April 2019

भोजन पूर्व - गीता के श्लोक पाठ

👉🏼 🔥 *भोजन पूर्व - गीता के श्लोक पाठ*  🔥👈🏻

श्रीमद्भागवत गीता, अध्याय 4, (यज्ञ और यज्ञ-फ़ल)

ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्रौ ब्रह्मणा हुतम्‌ ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥ (२४)

👉🏼 *भावार्थ :* ब्रह्म-ज्ञान में स्थित उस मुक्त पुरूष का समर्पण ब्रह्म होता है, हवन की सामग्री भी ब्रह्म होती है, अग्नि भी ब्रह्म होती है, तथा ब्रह्म-रूपी अग्नि में ब्रह्म-रूपी कर्ता द्वारा जो हवन किया जाता है वह ब्रह्म ही होता है, जिसके कर्म ब्रह्म का स्पर्श करके ब्रह्म में विलीन हो चुके हैं ऎसे महापुरूष को प्राप्त होने योग्य फल भी ब्रह्म ही होता हैं। (२४)

👉🏼 *भोजन से पूर्व इसे जपने का महत्त्व* - जठराग्नि को यज्ञाग्नि मानो, औऱ भोजन को हवन सामग्री, यह पेट और शरीर हवनकुण्ड है। हम भोजन को यज्ञीय भाव से करें। प्रत्येक ग्रास यज्ञाहुति होगा।

अहा प्रति पल प्रति क्षण यज्ञीय भावना से जीना और यज्ञीय भावना से भोजन, अकल्पनीय श्रेष्ठ भावों का संचार होगा। भोजन के पोषक तत्वों का कारण जागृत होगा। प्राण ऊर्जा में वृद्धि करेगा।

प्रश्न - *यदि रोबोट की मदद से विधिविधान से हवन करें और टेपरेकोर्ड से मंन्त्र बोलें तो क्या वही लाभ मिलेगा जो मानव द्वारा यज्ञ होता है।*

प्रश्न - *यदि रोबोट की मदद से विधिविधान से हवन करें और टेपरेकोर्ड से मंन्त्र बोलें तो क्या वही लाभ मिलेगा जो मानव द्वारा यज्ञ होता है।*

उत्तर - आत्मीय भाई, चेतना ही दूसरी चेतना को भावोद्वेलित कर सकती है। वह एक मानव से दूसरे मानव की भावना को जगाना हो या औषधियों के भावों का जागरण हो। यह चेतना ही कर सकती है।

रोबोट के अंदर पेट के समस्त अंगों को हूबहू लगाकर और पाचनतंत्र बनाकर आप भोजन से रक्त निर्माण, ऊर्जा निर्माण नही कर सकते। वैज्ञानिक रोबोट यंत्र भोजन को केवल पीसने/चटनी बनाने का कार्य कर सकता है।

अतः यज्ञ द्वारा प्राण ऊर्जा का उत्पादन, प्राण पर्जन्य की वर्षा, औषधीय  स्थूल-सूक्ष्म-कारण  जागृत कर तरंगीय ऊर्जा छल्लों के साथ औषधीय सम्प्रेषण तो समर्पित भावों से मानव द्वारा यज्ञ से ही संभव है।

रोबोट और टेपरेकोर्डर द्वारा किया यज्ञ केवल स्थूल प्रभाव उतपन्न कर सकता है।

बिना चेतना एवं भावसंवेदना के किया गया कोई भी कार्य निस्प्राण ओर निर्जीव स्तर का ही हो सकता है

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

भोजन सिर्फ़ पेट नहीं भरता, रिश्ते भी बनाता है।*

*भोजन सिर्फ़ पेट नहीं भरता, रिश्ते भी बनाता है।*

जो माताएं गर्व से कहती हैं, हमारा बेटा या बेटी खुद जो कि 10 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैं, खुद से एक ग्लास पानी नहीं पी सकते, ख़ुद खाना परोस कर खा नहीं सकते।

15 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चे जरूरत पड़ने कुछ खाना बनाकर खा नहीं सकते। घर मे मम्मी-पापा को अपने हाथों से बनाकर कुछ खिला नहीं सकते।

यह लाड़ प्यार बेटे और बेटी को संवेदनहीन बना देगा। वो बड़े होकर कभी घर में काम करने वाली माँ और पत्नी का दर्द नहीं समझेंगे, घर मे काम करने वाली मेड का दर्द नहीं समझेंगे।

बेटी इतनी नकचढ़ी हो जाएगी कि  जॉब व्यवसाय में भले सफलता हासिल कर ले, लेकिन रिश्तों की अहमियत कभी नहीं समझेगी। बेटा रिश्तों की अहमियत ही नहीं समझेगा।

भोजन सिर्फ़ पेट नहीं भरता, रिश्ते भी बनाता है। स्वाभिमान भी जगाता है। सहयोग सिखाता है। संवेदनशील रिश्तों के प्रति बनाता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मन बहुत दुखी है ऐसा लग रहा है हम पूरी तरह अकेले हो गए हैं।जब समय हमारा ठीक नही तो सब अलग हो गए हमसे कोई साथ नही देना चाहता मेरा।सभी हमारे खिलाफ हो गए जबकि मेरा मन मुझे कभी नही कहता कि मैं गलत हूँ ऐसी स्थिति में मैं क्या करूँ।हर बार मैं झुकती रही रिस्ते सुधारने के लिए पर कुछ नही मिला और सब अलग होते चले गए ।क्या करे दी कुछ बता दो ।*

प्रश्न - *मन बहुत दुखी है ऐसा लग रहा है हम पूरी तरह अकेले हो गए हैं।जब समय हमारा ठीक नही तो सब अलग हो गए हमसे कोई साथ नही देना चाहता मेरा।सभी हमारे खिलाफ हो गए जबकि मेरा मन मुझे कभी नही कहता कि मैं गलत हूँ ऐसी स्थिति में मैं क्या करूँ।हर बार मैं झुकती रही रिस्ते सुधारने के लिए पर कुछ नही मिला और सब अलग होते चले गए ।क्या करे दी कुछ बता दो ।*

उत्तर - आत्मीय बहन, मन से बड़ा छलिया कोई और नहीं, मन से बड़ा वकील कोई और नहीं है। अतः मन तुम्हारा तुम्हें सही कह रहा है इसलिए स्वयं को सही मत मानो।

क्रिकेट के मैदान में बैट्समैन जब किसी बॉलर के गुगली डालने पर आउट हो गया तो यदि उसके मन से पूंछोगे तो उसका मन यही कहेगा कि वह सही खेला।

प्रॉब्लम  तो आज के दिन की थी, मेरा समय खराब चल रहा है, ख़राब किस्मत है, गलती ख़राब बॉल की थी, अम्पायर की थी, वहाँ बैठी जनता की थी। स्वयं को सांत्वना दे देगा।

लेकिन अंतःकरण कहेगा, कि तुम्हारी बैटिंग की तैयारी उस बॉलर से कमज़ोर थी, तुम उस बॉल को जज नहीं कर पाए और ठीक से खेल नहीं पाए। तुम्हें और ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है।

जब बैट्समैन का बल्ला चलता है जनता, मीडिया और पूरा खेल जगत उसके साथ होता है। बल्ला चलना बन्द तो वो अकेला होता है और उसे कोई नहीं पूँछता।

अतः बहन जब तक तुम्हारा बल्ला अर्थात दिमाग़, चरित्र-चिंतन-व्यवहार चलेगा, तुम्हारी परफॉर्मेंस अच्छी होगी तो सर्वत्र लोग तुम्हारे पीछे आयेंगे।

👉🏼परिवार के रिश्तेदार नातेदार 🎾 बॉलर हैं, जो तुम्हें आउट करने ही मैदान में उतरे हैं। यदि तुम  बैटिंग🏏 से चुकी तो आउट होगी। यदि दिमाग़ का बल्ला🏏 सही समय पर चला ली तो चौके छक्के का मज़ा लो। जिंदगी के गेम में हमें कोई तब तक आउट नहीं कर सकता जब तक हम मन से अपनी हार न स्वीकार लें।

👉🏼तुम्हारा कोच सद्गुरु तुम्हें कोचिंग देने के लिए तैयार बैठा है, लेकीन क्या आधे घण्टे ध्यान में उसे सुनने बैठती हो। प्रार्थना का अर्थ है अपनी बात सुनाना और ध्यान का अर्थ है भगवान-सद्गुरु की सुनना।

👉🏼तुम्हारे लाइफ़ कोच सद्गुरु ने जीवन के खेल/जंग में जीतने के लिए साहित्य भी लिखा है क्या आपने इन्हें पढ़ा है?

1- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
2- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा।
3- दृष्टिकोण ठीक रखें
4- सफ़लता आत्मविश्वासी को मिलती है
5- सङ्कल्प शक्ति की प्रचण्ड प्रक्रिया
6- जीवन जीने की कला
7- सफल जीवन की दिशा धारा
8- हम सुख से वंचित क्यों है?
9- हारिये न हिम्मत
10- गृहस्थ एक तपोवन
11- मित्रभाव बढ़ाने की कला
12- भाव सम्वेदना की गंगोत्री
13-  निराशा को पास न फटकने दें
14- मानसिक संतुलन
15- मनःस्थिति बदले तो परिस्थिति बदले

👉🏼 जिन लड़कियों को मायके में अधिक प्यार मिलता है, वो ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पाती। क्योंकि तानों की वो अभ्यस्त नहीं होती। ससुराल और ताने एक दूसरे के पूरक हैं।

👉🏼 जिन लड़कियों का विवाह उनकी मर्जी के ख़िलाफ़ होता है, वो भी ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पाती। क्योंकि मन से वो कभी रिश्ते को नहीं स्वीकारती। मन से मन की राह होती है। झगड़े स्वभाविक है।

👉🏼 जो लड़कियाँ माता-पिता की ख़ुशी के लिए अपने प्रेम का बलिदान देकर किसी अन्य से विवाह करती हैं, वो भी ससुराल में एडजस्ट नहीं कर पाती।

👉🏼 जो लड़कियाँ आत्म स्वाभिमानी होती हैं, उच्च शैक्षिक योग्यता रखती हैं। लेक़िन माता पिता के दबाव में शादी कर लेती है और ससुराल में जॉब करने नहीं मिलता। वो ससुराल में दुःखी रहती हैं, उनके जॉब करने का स्वप्न उन्हें भीतर ही भीतर कचोटता रहता है।

👉🏼 जो लड़कियाँ ससुराल में मायका जैसी सुख-सुविधा और आजादी ढूंढती है, वो हमेशा दुःखी रहती हैं।

👉🏼 वो लड़की हमेशा दुःखी रहती है, जो अपनी बात रखने में सक्षम नहीं होती।

🙏🏻 सुखी वो लड़की ससुराल में रहती है, जो ससुराल को जैसा है वैसा स्वीकारती है। परिस्थिति का आंकलन करके मनःस्थिति से उसे नियंत्रित करती है।

🙏🏻 वो लड़की सदा सुखी होती है जो इमोशनल फूल ( भावनात्मक बेवक़ूफ़) नही होती। प्रत्येक क्षण बुद्धि का प्रयोग करती है।

🙏🏻 वो लड़की सुखी रहती है, जिस पर ससुराल के तानों का कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देती है। स्वधर्म का पालन करती है।

🙏🏻 वो लड़की सुखी होती है, मायके में अपने अधिकारों के लिए लड़ती है, अपना कैरियर बनाती है। फिंर विवाह पूर्व ही अपने जीवनसाथी को अपनी जॉब की इच्छा से अवगत करवाती है। सहमति बनने पर ही विवाह करती है। जॉब और परिवार के बीच सन्तुलन स्थापित करने की योग्यता रखती है।

🙏🏻 वो लड़की सुखी होती है, जो न तो मायके वालों के व्यवहार और लेन-देन की गारंटी वारंटी लेती है और न ससुराल वालों के व्यवहार और लेन-देन की गारंटी वारंटी लेती है। वो केवल और केवल अपने व्यवहार की गारंटी वारंटी लेती है। स्वयं सुधार पर ध्यान केंद्रित रखती है।

🧠 सद्बुध्दि की देवी गायत्री का मंन्त्र, पूर्ण चन्द्रमा का आधे घण्टे का ध्यान, आधे घण्टे उपरोक्त पुस्तको का स्वाध्याय और सद्गुरु और स्वयं पर विश्वास जीवन मे सफ़लता का निर्धारण करती है।🙏🏻

🧠 सास को सुधारने की जो कल्पना और चाहत करता है, वो संसार का सबसे मूर्ख प्राणी है जिसको सुख की चाहत नहीं करनी चाहिए।

🧠 पति एक मनुष्य है, जिसका जन्म आपकी सास के गर्भ से हुआ है। यदि वो माँ का पक्ष लेता है, तो यह स्वभाविक वृत्ति है। अतः बिना सबूत उसे उसके माँ के ख़िलाफ़ भड़काने की बेवकूफी न करे। मोबाइल के ऑडियो/वीडियो से स्टिंग ऑपरेशन करें और सबूत के साथ तर्क तथ्य प्रमाण के साथ अपनी बात रखें।

🧠 इंसान अच्छा या बुरा परवरिश के कारण होता है। आप अच्छे हो क्योंकि आपके माता-पिता ने अच्छी परवरिश और सँस्कार दिए हैं। यदि आपकी सास, ससुर या पति में कमी है तो यह उनके माता पिता के गलत परवरिश का परिणाम है। बुद्ध की करुणा और ज्ञान ने अंगुलिमाल डाकू को हृदय परिवर्तित कर दिया था। अतः आपको यदि दस्यु डाकू ससुराल में मिले है तो बुद्ध की तरह गहरे ध्यान, भावसम्वेदना और स्वाध्याय से ज्ञान प्राप्त करने में जुट जाइये। सब ससुराल वालों अपने प्यार, सेवा, करुणा और ज्ञान से अहिंसक बनाकर उनका उद्धार कीजिये। सबसे प्रेम कीजिये।

🔑🗝 सुख बाँटने से मिलता हैं, मांगने से नहीं। सुख और प्रेम पाना है तो सुख और प्रेम बाँटो। जो बोवोगे वही काटोगे। यह परमसत्य है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday, 25 April 2019

प्रश्न - *दीदी ध्यान में किस चीज़ पे मन केंद्रित किया जाए ओर कितनी देर ध्यान किया जाए*

प्रश्न - *दीदी ध्यान में किस चीज़ पे मन केंद्रित किया जाए ओर कितनी देर ध्यान किया जाए*

उत्तर - आत्मीय बहन,

लिओनार्दो दा विंची इटलीवासी, महान चित्रकार, मूर्तिकार, वास्तुशिल्पी, संगीतज्ञ, कुशल यांत्रिक, इंजीनियर तथा वैज्ञानिक था। उसके पास एक लड़की आयी और उसने उससे पूँछा कि आप जैसा महान चित्रकार बनने के लिए मुझे नित्य कितने घण्टे चित्र बनाने का अभ्यास करना चाहिए और कौन सा चित्र बनाना चाहिए।

उस महान चित्रकार ने कहा, बेटी भले 15 मिनट ही चित्र बनाने का अभ्यास करो, मगर जब चित्र बना रही हो और कल्पना का आवेग हो तो तुम और चित्र के अलावा कोई और चीज़ का तुम्हें अहसास नहीं होना चाहिए। मन में कोई अन्य कल्पना या विचार नहीं उभरना चाहिए। शरीर और मन एक लय में होने चाहिए, उस वक्त उस क्षण उस पल संसार को भूल जाना, स्वयं को भूल जाना बस चित्र बनाने में एकाग्र हो जाना। अगर यह साध लोगी महान चित्रकार बन जाओगी। अन्यथा जब मन में ही क्लियर और भव्य इमेज नहीं बना पाई तो कागज में क्लियर और भव्यता नहीं आएगी।

घण्टों अभ्यास बिना एकाग्रता के व्यर्थ है मेरे बच्चे लेकिन इस 15 मिनट की एकाग्रता पाने के लिए शुरू शुरू में घण्टों अभ्यास तो करना पड़ेगा। वस्तुतः कौन सा क्या चित्र बना रही हो यह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता है कि मन और शरीर एक लय में सधे कि नहीं, सो जैसा कल्पना मन में किया उसकी हूबहू प्रतिकृति कागज में उतरी कि नहीं। किसी भी चित्र से शुरुआत करो, एक बार हाथ सध गया, तो कुछ भी चित्र बना लोगी।

बहन, धारणा अर्थात देवी-देवता-सूर्य-चन्द्रमा-गुरु इत्यादि में से किसी के भी रूप का मानसिक चित्र । अब यह चित्र तुम्हारे मनस पटल पर इतना क्लियर होना चाहिए, तुम चयनित धारणा पर इतनी एकाग्र तन्मय तदरूप होनी चाहिए कि संसार भूलकर, स्वयं को भूलकर उसमें ही खो जाओ और ठहर जाओ। अब यह 15 करो या घण्टे भर फर्क नहीं पड़ता। इतनी तन्मयता तदरूपता हो कि चयनित धारणा के गुण, शक्तियां, प्रभाव तुममें उभरने लगे। तुम और वह एक हो जाएं। द्वैत मिटकर अद्वैत हो जाये। एक रूप हो जाओ।

अब एक सध गया तो सब सध जाएंगे। जैसे एक चित्र बनाना आ गया अर्थात हाथ सध गया तो कोई भी चित्र बन जायेगा। मन सध गया तो कोई भी धारणा सध जाएगी।

कोई जल्दी सीखता है कोई देर से, सबकी अपनी अपनी क्षमता है। तुम अपनी क्षमता देखो कि बिना हिलेडुले कितने मिनट बैठ सकती हो, फ़िर बिना अन्य विचार के किसी एक विचार पर कितनी देर एकाग्र रह सकती हो। एक बार मन सध गया तो ध्यान घट जाएगा। धारणा का जामन मन रूपी दूध में डालकर भीतर ठहर जाओ।

शुरुआती प्रैक्टिस के लिए आतिजाती श्वांस पर ध्यान केंद्रित करना शुरू करो। जितनी उम्र है उतने मिनट आंख बंद करके और कमर सीधी करके दोनों हाथ गोदी में रखकर यह अभ्यास करो। जब यह अभ्यास सध जाएगा तो जिस भी देवता के ध्यान करोगी उनके गुण तुममें दिखने लग जाएंगे।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, आप नित्य साधना में क्या क्या करती हैं? आपकी तो नाईट शिफ़्ट होती है, इसलिए मुझे जानना है😇* *मेरी जॉब भी नाईट शिफ़्ट की ही है😊*। कृपया अपनी शैक्षिक योग्यता भी बताएँ।

प्रश्न - *दी, आप नित्य साधना में क्या क्या करती हैं? आपकी तो नाईट शिफ़्ट होती है, इसलिए मुझे जानना है😇* *मेरी जॉब भी नाईट शिफ़्ट की ही है😊*। कृपया अपनी शैक्षिक योग्यता भी बताएँ।

उत्तर - तो भाई, आज आप हमारी नित्य साधना का सीक्रेट जानना चाहते हो?😊

शैक्षिक योग्यता - ग्रेजुएशन ह्यूमैन साइकोलॉजी(मनोविज्ञान),
पोस्ट ग्रेजुएशन 1- सोशियोलॉजी(समाजशास्त्र)
पोस्ट ग्रेजुएशन 2-  मास्टर इन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी(कम्प्यूटर)
साथ में विभिन्न कम्प्यूटर लेंग्वेज के सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स

हमने डबल पोस्ट ग्रेजुएशन किया हुआ है।

नाईटशिफ़्ट के कारण सुबह 6 बजे उठती हूँ, बच्चा और पतिदेव के सुबह स्कूल/ऑफिस जाने के बाद पूजन करती हूँ।

🙏🏻 *नित्य गायत्री जप विधि जो हम करते हैं।*

1-  षट्कर्म (पवित्रीकरण से न्यास तक, कर्मकाण्ड भाष्कर)
2- देव आह्वाहन गुरुदेव और माँ गायत्री और पूजन,कलश में जल और दो दाना मिश्री डालकर, गाय के घी का दीपक
3- गायत्री जप से पहले विनियोग, हृदय न्यास इत्यादि गुरुगीता वाला जो निम्नलिखित है:-

🙏🏻 *गायत्री जप विनियोग*
(निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर हाथ में या चम्मच में जल लेकर एक दूसरी कटोरी में अर्पित कर/डाल  दें।

    *ॐ कारस्य परब्रह्म ऋषिर्दैवी गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, तिसृणां महाव्याहृतीनां प्रजापतिऋर्षिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांस्यग्निवायुसूर्या देवताः तत्सवितुरिति विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः।*

*न्यास-करन्यास*
🙏🏻
*ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।*
(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श)।
*ॐ भूः तर्जनीभ्यां नमः।*
(दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ भुवः मध्यमाभ्यां नमः।*
(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ स्वः अनामिकाभ्यां नमः।*
(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः।*
(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः स्वः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।*
(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श)।

*हृदयादिन्यास*
🙏🏻
    इसमें दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से ‘हृदय’ आदि अंगों का स्पर्श किया जाता है।
*ॐ हृदयाय नमः।* (दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)।
*ॐ भूः शिरसे स्वाहा।* (सिर का स्पर्श)।
*ॐ भुवः शिखायै वषट्।* (शिखा का स्पर्श)।
*ॐ स्वः कवचाय हुम्।* (दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट्।* (दाहिने हाथ की अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)।
*ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्।* (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)।

*हाथ जोड़कर और गहरी श्वांस लेकर माँ का ध्यान मन्त्र द्वारा पुनः*

    ॐ आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि।
    गायत्रिच्छन्दसां मातः ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥--

*एक माला गुरु मन्त्र*

*ॐ ऐं श्रीराम आन्दनाथाय गुरुवे नमः ॐ*

*फिर 5 माला गायत्री मंत्र जप उगते हुए सूर्य में गुरुदेव का ध्यान*
    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

इसके बाद आरती, प्रत्येक रविवार को दैनिक यज्ञ, और यदि समय मिला तो सप्ताह में भी यज्ञ करती हूँ। नित्य बलिवैश्व यज्ञ गैस पर करती हूँ।

शांतिपाठ और क्षमा प्रार्थना, विसर्जन

फिर कलश का जल सूर्य मन्त्र बोलते हुए तुलसी के गमले में डालती हूँ। थोड़ा सा जल बचा के माथे में लगाने के बाद जितने भी पानी वाली बॉटल घर में है सबमें मिला देती हूँ, साथ में दूध में भी डाल देती हूँ।

शाम को 6 बजे नाद योग और 24 मन्त्र गुरुदेव की आवाज में। इसके बाद ओफ़ीस की नाईट ड्यूटी। घर से ही काम अधिकतर करती हूँ, जब ऑफिस जाती हूँ तो उस दिन नाद योग सोते वक़्त करती हूँ। केवल दो व्रत - मंगलवार और गुरुवार करती हूँ। केवल गुरुवार व्रत के दिन गुरुगीता का पाठ करती हूँ। यूट्यूब पर जब भी वक़्त मिलता है श्रद्धेय डॉक्टर साहब के गीता और ध्यान वाले वीडियो सुनती हूँ और उनके साथ ही ध्यान करती हूँ। ये नित्य नहीं हो पाता।

स्वाध्याय दिन रात चलता है, जब भी वक़्त मिलता है, या तो मन ही मन गायत्री मन्त्र जपति हूँ या युगसाहित्य पढ़ती हूँ। जब आप की तरह कोई भाई बहन प्रश्न पूंछते है तो जिज्ञासा का समाधान पोस्ट करती हूँ। मेरे ब्लॉग awgpggn blogspot में आपको समस्त नई पुरानी पोस्ट मिल जायेगी।

गुरुकार्य हेतु स्कूल में बाल संस्कार शाला या यज्ञ करवाने या काउंसलिंग सुबह 9:30 AM से 1:30 PM तक ही करती हूँ।  2:30 PM बजे बेटे के घर आने से पूर्व घर आ जाती हूँ😇। शाम को 5 बजे के बाद किसी भी गायत्री परिजन का फ़ोन नहीं उठाती क्योंकि ऑफिस टाइम होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इंडिया यूथ एसोसिएशन

प्रश्न - *क्या आध्यात्मिक पुस्तके परम सत्य की अनुभूति करा सकती है ?*

प्रश्न - *क्या आध्यात्मिक पुस्तके परम सत्य की अनुभूति करा सकती है ?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जैसे गूगल मैप आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकता, मोमबत्ती का चित्र अंधेरा नहीं मिटा सकता, रेसिपी की पुस्तक भूख नहीं मिटा सकती वैसे ही परम सत्य की अनुभूति मात्र पुस्तक पढ़ने से नहीं होगी।

मंजिल में पहुंचने के लिए गूगल मैप पथ प्रदर्शन करके मदद कर सकता है। मोमबत्ती का चित्र बता सकता है कि मोमबत्ती अंधेरा दूर करने में सहायक है जाओ मोमबत्ती खरीदो और घर रौशन करो। रेसिपी पुस्तक स्वादिष्ट भोजन पकाने में मार्गदर्शन कर सकती है, अमुक सामान बाजार से लाओ, अमुक तरीक़े से पकाओगे और खाओगे तो यह स्वाद मिलेगा। 

इसी तरह स्वाध्याय पथप्रदर्शक और मार्गदर्शक है, गूगल की तरह सन्मार्ग की राह बताता है, मोमबत्ती की तरह सत्य की रौशनी का लाभ बताता है, रेसिपी की पुस्तक की तरह आनन्द अनुभूति की रेसिपी बताता है।
अतः वर्णित साधना कर्म करके, सही सत्य राह पर चलकर और अथक प्रयास करके ही अनुभूति को पाया जा सकता है।

सूक्ष्म जगत में यात्रा बाहर की ओर नहीं, भीतर की ओर होती है। स्थूल अक्रिया है, बाहर से देखने पर कुछ नहीं करना है। भीतर बहुत कुछ सफाई व्यवस्था करनी है, भीतर के संसार को समझना है। दही में जामन डालकर धैर्य के साथ ठहरना और इंतज़ार करना है। यह धैर्य और इंतज़ार में ही परम सत्य घटेगा। बस भीतर ठहर जाओ ऐसे कि बाहरी दुनियाँ का होश न रहे और भीतरी दुनियाँ में चैतन्यता रहे।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी प्रणाम,* *दी ये कहा जाता है जिंदगी गुजारो नहीं जियो.. हर लम्हें को जियो..*

प्रश्न - *दी प्रणाम,*
*दी ये कहा जाता है जिंदगी गुजारो नहीं जियो.. हर लम्हें को जियो..*
*मैं ये जानना चाहती हूँ जिंदगी कैसे जी जाती है? हम ऐसा क्या करें की हमें लगें हम जिंदगी जी रहे गुजार नहीं रहे।*
*अपने आप को हर आयु में रख कर अगर ये सवाल करें।मतलब एक बच्चे को, युवा को, वृद्ध को। कैसे अपनी जिंदगी जीना चाहिए?*

उत्तर - आत्मीय बहन, यदि ड्राइवर गाड़ी चलाना किसी अच्छे गुरु से सीखा हो, अभ्यास किया हो और पूरे होशोहवास में गाड़ी चलायेगा तो एक्सीडेंट होने के चांसेस कम होते हैं।

इसी तरह जीवन की गाड़ी को चलाना जो किसी योग्य गुरु से सीखता है, अभ्यास करता है और पूरे होशोहवास में जीवन की गाड़ी चलाये तो उसके जीवन में भी एक्सीडेंट होने के चांसेस कम होते हैं।

यदि ड्राइवर का चित्त कहीं और हो, अस्थिर चित्त, मन में उलझन लिए, कुछ और सोचते हुए उसका ध्यान गाड़ी चलाने के मोमेंट से हटा तो कुछ भी गड़बड़ हो सकती हैं। साथ ही वो सुंदर वादियों में गाड़ी क्यों न चला रहा हो, वो किसी भी दृश्य का आनन्द न ले सकेगा। क्योंकि मन से वो उपलब्ध नहीं है, तन से गाड़ी चला रहा है। गाड़ी गुजर रही है, सफ़र में आनंद नहीं है। खूबसूरत वादियां और लम्हे सब गुजर रहे हैं, वो जी नही रहा।

इसी तरह अस्थिर चित्त और मानसिक उलझन में व्यक्ति खूबसूरत जीवन के पलों और लम्हों में समय गुजार देता है, वो उन पलों में जी नही रहा होता। अरे चाय का भी स्वाद तब ले सकोगे जब अस्थिर चित्त और उलझे हुए मन में न होंगे। तुम्हारा ध्यान चाय के स्वाद और चुस्कियों में होगा तभी तो तुम्हारी स्वादेन्द्रियाँ स्वाद ले सकेंगी।

Where attention goes energy flows..

जिधर ध्यान जाएगा, उसी तरफ़ आत्म चेतना की ऊर्जा प्रवाहित होगी। ध्यान जीवन के प्रत्येक पल पर होगा तभी प्रत्येक पल में जीवन होगा और आनंद होगा।

जिस उम्र में गाड़ी चलाना एक बार सीख लो और अभ्यास हो जाये तो फिर दुबारा गाड़ी चलाना नहीं सीखना पड़ता। केवल अभ्यास करना पड़ता है।

इसी तरह जीवन जीने की कला सीखने के बाद एक बार जब अभ्यास में आ जाता है तो बालक, युवा और वृद्ध किसी भी उम्र में कोई क्यों न हो जीवन जीता है, गुजारता नहीं है। लेक़िन जीवन जीने के नियमो का अभ्यास नित्य करना होगा।

ड्राइविंग गुरु गाड़ी चलाना सिखाता है, गाड़ी पर कंट्रोल, ब्रेक और रेस का प्रयोग, स्टेयरिंग इत्यादि की जानकारी देता है।लेक़िन शिष्य के जीवन में वो किन रास्तों और किन किन जगहों पर वो गाड़ी चलाएगा यह तय नहीं कर सकता। वो शिष्य के लिए समस्या मुक्त, भीड़ मुक्त साफ सुंदर सड़क मुहैया नहीं करा सकता।

इसी तरह आध्यात्मिक गुरु मन की गाड़ी चलाना सिखाता है, मन पर नियंत्रण सिखाता है। कैसे ध्यान लगाना है(रेस), कैसे ध्यान हटाना है(ब्रेक), स्टेयरिंग मन की गतिविधि पर नजर रखना सिखाता है। लेक़िन शिष्य के जीवन में वो किन परिस्थितियों और किन किन समस्याओं वाले रास्ते में मन की गाड़ी चलाएगा यह तय नहीं कर सकता। वो शिष्य के लिए समस्या मुक्त, उलझन मुक्त साफ सुंदर जीवन मुहैया नहीं करा सकता।

होशपूर्वक चैतन्यता के साथ जियें। जीवन जीने के आध्यात्मिक सूत्रों का अभ्यास करें।

युगऋषि की लिखी पुस्तक - 📖 *जीवन जीने की कला* और 📖 *सफल जीवन की दिशा धारा* अवश्य पढ़िये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 24 April 2019

प्रश्न - *ब्रह्म क्या है? ब्रह्म ज्ञान क्या है?*

प्रश्न - *ब्रह्म क्या है? ब्रह्म ज्ञान क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जब प्रायमरी स्कूल का बच्चा अपनी टीचर से पूँछता है कि सूर्य क्या है? तो पिता उसे संक्षिप्त जवाब देता है जो वो समझ सके। लेक़िन जब वही बालक ग्रेजुएशन में एक प्रोफेसर से पूँछता है कि सूर्य क्या है तो उत्तर बहुत विस्तृत और रिसर्च पर आधारित होता है।

प्रश्न एक ही था - *सूर्य क्या है?* लेक़िन उत्तर अलग हुए प्रश्नकर्ता की योग्यता और पात्रता के हिसाब से?

अब स्वयं से प्रश्न पूँछो कि क्या तुमने अध्यात्म की ग्रेजुएशन क्लास में प्रवेश कर लिया है? स्वयं के जीवन के प्रति चैतन्य और आत्म ज्ञान प्राप्त कर चुके हो? क्योंकि आत्मज्ञानी ही ब्रह्म ज्ञान को समझने की योग्यता पात्रता रखता है।

*श्रीमद्भागवत गीता* के अध्याय 8 और श्लोक 1 में *अर्जुन* भी *भगवान कृष्ण* से पूँछता है *ब्रह्म क्या है*?

क्योंकि अर्जुन को आत्मज्ञान नहीं है इसलिए भगवान ने *ब्रह्म क्या है* का संक्षिप्त जवाब दिया कि *जो अविनाशी है वही ब्रह्म है, जो सृष्टि से पहले, सृष्टि के समय और सृष्टि के प्रलय के बाद भी मौजूद रहता है। वह ब्रह्म है।*

*जिस प्रकार मछली जल में रहती है और जल मछली के पेट में भी होता है। उसी तरह हम ब्रह्म के अंदर हैं और ब्रह्म हमारे अंदर है।*

*वेद पुराण उपनिषद सब ब्रह्म की ओर ईशारा मात्र हैं, वो ब्रह्म की पूर्ण व्याख्या करने में असमर्थ हैं। जो कहता है वो ब्रह्म ज्ञानी है वो वास्तव में ब्रह्म को नहीं जानता।*

वैज्ञानिक दावा करते हैं कि वो जल को  जान गए हैं, लेकिन एक बूंद भी जल आजतक नहीं बना पाए।

*उस परब्रह्म ने तुम्हारे शरीर में ऐसी मशीन फिट कर रखी है कि तुम फल और सब्जियां खाओ, रक्त बन जाएगा। वैज्ञानिक दावा करते हैं कि वो रक्त को जान गए हैं लेकिन एक बूंद भी रक्त आज तक मशीनों द्वारा नहीं बना पाए। एक तरफ सब्जी फल डालें मशीन में और दूसरी तरफ रक्त बनकर निकले।*

हमारी मानवीय बुद्धि अतिक्रमण करती है, उदाहरण छोटे दो बच्चे हों एक रोबोट और दूसरा कार खेल रहा हो तो दोनों अपने मे खुश नहीं होंगे एक तीसरा बड़ा बच्चा कोई रिसर्च कर रहा हो उनकी उस पर नज़र होगी। रिसर्च उन बच्चों के लिए खिलौना है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है?

सीढ़ी पर क्रमशः ही चढ़ा जा सकता है, ग्रेड्यूएशन तक प्रायमरी से क्रमशः पढ़कर ही जाया जा सकता है।

पूरे समुद्र को प्रयोगशाला में नहीं लाया जा सकता, उसकी कुछ जल ही प्रयोगशाला में लाया जा सकता है। यदि समुद्र जल की प्रॉपर्टी को समझ गए तो कुछ हद तक समुद्र भी समझ जाओगे।

*परब्रह्म समुद्र है, और उसकी एक बूंद तुम्हारी आत्मा है। तुम्हारा शरीर स्वयंमेव एक प्रयोगशाला है। विभिन्न रिसर्च स्वयं पर कर के आत्मतत्व को जानों। जिस दिन आत्म ज्ञान हुआ उस दिन ब्रह्मज्ञान के अधिकारी हो जाओगे, ब्रह्म और ब्रह्माण्ड को समझने की पात्रता विकसित हो जाएगी।*

👉🏼 *एक छोटा प्रयोग आत्मशक्ति का घर पर करके देखो*:- अपनी दृष्टि बाएं हाथ की हथेली के बीचों बीच केंद्रित करो और उसे एकटक देखते हुए गायत्री मंत्र मन ही मन जपो। कुछ देर में पाओगे कि हथेली के बीच गर्म होने लगा। जैसे उस पर धूप पड़ रही हो। अब पूजन रूम में धूप तो है नहीं फिंर यह गर्मी कहाँ से आई? सोचो और करके देखो😊😊😊

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *ऑटिज्म(Autism) क्या है? इस रोग की पहचान और इस बीमारी को ठीक करने के उपाय क्या हैं? क्या यग्योपैथी में इसका इलाज़ सम्भव है?*

प्रश्न - *ऑटिज्म(Autism) क्या है? इस रोग की पहचान और इस बीमारी को ठीक करने के उपाय क्या हैं? क्या यग्योपैथी में इसका इलाज़ सम्भव है?*

उत्तर - ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लग जाते हैं. इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है.

कहीं आपका बच्चा भी तो ऑटिज्म से पीड़ित नहीं ? ऑटिज्म से पीड़ि‍त बच्चे
क्या आपका बच्चा आपके चेहरे के हावभाव को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है? क्या वह आपकी आवाज सुनने के बावजूद न तो खुश होता है और न ही कुछ जवाब देता है? क्या वह दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा चुप रहता है? अगर आपके बच्चे में भी ये लक्षण हैं तो हो सकता है कि वह ऑटिज्म से पीड़ित हो.

ऑटिज्म एक मानसिक बीमारी है जिसके लक्षण बचपन से ही नजर आने लग जाते हैं. इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे होता है. ये जन्म से लेकर तीन वर्ष की आयु तक विकसित होने वाला रोग है जो सामान्य रूप से बच्चे के मानसिक विकास को रोक देता है. ऐसे बच्चे समाज में घुलने-मिलने में हिचकते हैं, वे प्रतिक्रिया देने में काफी समय लेते हैं और कुछ में ये बीमारी डर के रूप में दिखाई देती है.


हालांकि ऑटिज्म के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है लेकिन ऐसा माना जाता है कि ऐसा सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने के कारण होता है. कई बार गर्भावस्था के दौरान खानपान सही न होने की वजह से भी बच्चे को ऑटिज्म का खतरा हो सकता है.

क्या होते हैं लक्षण:

- सामान्य तौर पर बच्चे मां का या अपने आस-पास मौजूद लोगों का चेहरा देखकर प्रतिक्रिया देते हैं पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चे नजरें मिलाने से कतराते हैं.

- ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आवाज सुनने के बावजूद प्रतिक्रिया नहीं देते हैं.

- ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को भाषा संबंधी भी रुकावट का सामना करना पड़ता है.

- इस बीमारी से पीड़ित बच्चे अपने आप में ही गुम रहते हैं वे किसी एक ही चीज को लेकर खोए रहते हैं.

- उनकी सोच बहुत विकसित नहीं होती है. इसलिए वे रचनात्मकता से दूर ही नजर आते हैं.

- अगर आपका बच्चा नौ महीने का होने के बावजूद न तो मुस्कुराता है और न ही कोई प्रतिक्रिया देता है तो सावधान हो जाइए.

- अगर बच्चा बोलने के बजाय अजीब-अजीब सी आवाजें निकाले तो यह समय सावधान हो जाने का है.

*Autism का इलाज़*

एलोपैथी में कई प्रकार की दवाईयां उपलब्ध हैं।

आयुर्वेद में और होमियोपैथी में भी इसका ट्रीटमेंट उपलब्ध हैं।

👉🏼 यग्योपैथी द्वारा इस मानसिक व्याधि को ठीक किया जा सकता है।

यग्योपैथी में रोग से सम्बन्धित औषधियों का हवन किया जाता है, बच्चे को धूम्र का सेवन कराया जाता है।

औषधियाँ मंन्त्र तरंगों के साथ औषधि का विकिरण(फैलाव करती हैं), जो श्वसन के माध्यम से सीधे मष्तिष्क कोषों और नर्वस सिस्टम में असर करता है।

माता गर्भ के दौरान किसी न किसी घटना से आहत हुई हैं, इस बीमारी की जड़ माता-पिता की भावनात्मक अस्थिरता की देन होता है।

माता-पिता अलग अलग समय मे एक कागज़ में अलग अलग उन घटनाओं को लिखें जिनके कारण वो आहत हुए हैं, अपने मन की कुंठा कागज में लिख डालिये। उसको लिखकर पूजन के दिये में जला दें। यह निष्कासन तप है, माता-पिता का मनोमालिन्य दूर होते ही, बच्चे में भी फ़र्क़ दिखने लगेगा।

बलिवैश्व यज्ञ की अत्यंत थोड़ी सी राख और शान्तिकुंज से मिली भष्म एक ग्लास जल में घोल दें, अब उस जल को हाथ मे लेकर उसे देखते हुए 24 गायत्री मंत्र  और 5 महामृत्युंजय मंत्र पूर्ण श्रद्धा से जपें और उस जल को बच्चे को सुबह शाम पिलाये। यह मंन्त्र पूरित जल नर्वस सिस्टम को क्लीन करेगा और रक्त में ऊर्जा भरेगा।

बच्चे के नाम पर रोज 3 माला गायत्री और एक माला महामृत्युंज की जपें, सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं थोड़ा सा जल बचा लें। उसमें शान्तिकुंज की यज्ञ भष्म मिलाकर बच्चे के माथे और रीढ़ की हड्डी में लगा दें।

यह भारत देश है, जहां अध्यात्म की शक्तियों से जनमानस परिचित है। जीवंत प्रार्थना के चमत्कार सर्वत्र देखे जा सकते हैं। एलोपैथी इलाज करवाये या यग्योपैथी लेकिन भगवान से अपनी भूलो के लिए क्षमा मांगते हुए बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अनवरत प्रार्थना करें। आपकी प्रार्थना जरूर कबूल होगी।

यदि संभव हो तो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सवा लाख गायत्री मन्त्रों का अनुष्ठान कर लें, एक दिन घर मे आसपास के परिजनों के साथ महामृत्युंजय मंत्र का अखण्डजप कर लें।

बच्चे के सोते वक्त बच्चे के मष्तिष्क पर दाहिना हाथ रख के उसे देखते हुए 5 गायत्री मंत्र और एक महामृत्युंजय मंत्र जपें।

यदि घर मे किसी की पिछले 20 वर्षो के अंदर अकाल मृत्यु या आत्महत्या से मृत्यु हुई हो तो शान्तिकुंज तीन बार जाकर तीन बार तर्पण करवा दें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दीदी, किसी महिला पर देवी आना अँधिविश्वास है या मनोविकार है या सच्चाई है? महिला मंडल 22 महिलाओं का है, नवरात्रि में रोज 9 दिन तक गायत्री मंत्र का सामूहिक जप्और भजन मां गायत्री माता की आरती करते हैं .इसी दौरान एक महिला को माताजी आ गई

समस्या - *दीदी, महिला मंडल  22 महिलाओं का है,  नवरात्रि में रोज 9 दिन तक गायत्री मंत्र का सामूहिक जप्और भजन मां गायत्री माता की आरती करते हैं .इसी दौरान एक महिला को माताजी आ गई और सब उसके पूजा अर्चना में लग गए मेरी बेटी ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन अंधविश्वास में पड़ी हुई महिलाओं ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया आपस में सद्भावना और व्यवहार अच्छा होने के कारण वह ज्यादा कुछ बोल भी नहीं सकती आप कुछ ऐसी पोस्ट बनावे जिससे उनको उचित ज्ञान हो और बुरा भी ना लगे।*

उत्तर - आत्मीय बहन, एक बार हम भी घर घर कलश स्थापना में गए थे, हमारे समक्ष भी ऐसे ही एक औरत के ऊपर माता जी आयी।

हम उठकर *शांति मंन्त्र पढ़कर* उस पर छिड़क दिया। कुछ देर में वो शांत हो गयी।

केवल 1% कोई सिद्ध तपस्वी हिमालयीन आत्मा में देवी अवतरित हो सकती हैं।

लेकिन 99% केस में यह एक मानसिक बीमारी है, जिसे Dissociative identity disorder (DID) कहते हैं।
previously known as multiple personality disorder,[7] is a mental disorder characterized by at least two distinct and relatively enduring personality states.[3] This is accompanied by memory gaps, beyond what would be explained by ordinary forgetfulness.[3] These states alternately show in a person's behavior;[3] presentations, however, are variable.[5] Other conditions which often occur in people with DID include borderline personality disorder (BPD), posttraumatic stress disorder (PTSD), depression, substance use disorders, self-harm, or anxiety.

यह बीमारी उस लड़की को होती है जो उच्च महत्वाकांक्षी होती है, सम्मान की भूखी होती है, लेकिन जिसके मन में कोई गहरा सदमा उज़के परिवार द्वारा बचपन का बड़े में दिया गया होता है, और गहरी इन्सल्ट कभी न कभी हुई होती है। यह प्रताड़ना उसके भीतर स्वयं के अस्तित्व को नकार देता है, जिसकी कोई घर समाज में रेस्पेक्ट नहीं है।

वह अपने सदमें और लानत को भुलाने के लिए भगवान की भक्ति का सहारा लेती है। वह जब देखती है कि माता को लोग कितनी पूजा और सम्मान दे रहे हैं। तो उसके मन में माता की तरह बनने का भाव गहरा जाता है। तब Dissociative identity disorder (DID) के तहत स्वयं में माता के प्रकटीकरण का अनुभव करती हैं। शुरुआत में झूमती है और फिर जोर जोर बड़ी आवाज़ें करके सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती है। क्योंकि यह धार्मिक पुस्तकें नित्य पढ़ती है, तो वह उन बातों को उस दौरान बोलती है।

आपने फ़िल्म मुन्ना भाई MBBS देखा होगा, उसमें संजय दत्त उर्फ मुन्ना भाई को गांधी जी दिखते थे, लेकिन वो केवल उतना उत्तर देते थे जितना मुन्ना भाई ने लाइब्रेरी में पढ़ा हुआ होता है। इसीतरह जिन महिला में माताजी आता है, उसके पास केवल उतना ही ज्ञान होता है जितनी पुस्तक उसने पढ़ी होती है। उन्हीं व्यक्ति के बारे में बोल सकती है जिसे वो पहले से जानती है।

यदि जब माता जी आई हो उसके समक्ष किसी नए व्यक्ति और महिला को समक्ष लाया जाय तो वो उसके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं बोल पाएगी। क्योंकि उस नए व्यक्ति से सम्बंधित कोई जानकारी उसके मष्तिष्क में नहीं है। कोई ऐसी बात का उत्तर नहीं दे सकती जो उसने कभी पढ़ा या देखा न हो।

माता जी का भाव/पहचान उतरने के बाद उसे कुछ भी 90% केस में याद नहीं रहता। 10% केस में यादाश्त बनी रहती है। उसने क्या बोला या क्या किया भूल जाती है।

इसका इलाज़ मनोचिकित्सक के पास होता है, वो उसे हिप्नोसिस के जरिये उस घटना तक ले जाता है जिससे वो आहत हुई थी। उसके मन की सफाई करता है, साथ ही दवाईयां देता है। परिवार वालो को भी इलाज के दौरान सहयोग करना होता है।

कभी भी माताजी  वाली Dissociative identity disorder (DID) किसी सुखी समृद्ध सम्पन्न और प्रशन्न स्त्री को नहीं होता।

मनोरोगी को कोई ज्ञान बिना उसकी मानसिक हालत समझे नहीं देना चाहिए। जब वह Dissociative identity disorder (DID) अटैक से गुजर रही हो तो उल्टा सीधा न बोलें, उसे नौटंकी न बोले अन्यथा वो अपना मानसिक संतुलन खोकर हिंसक भी बन सकती है।

आप सामूहिक गायत्री मंत्र 3 बार बोलकर, उसके ऊपर शांति पाठ मंन्त्र पढ़ते हुए जल छिड़क दें।

आप केवल उसका वीडियो बनाकर उसके घरवालों को देकर उसके इलाज के लिए प्रेरित कर सकते हैं। ऐसा कुछ न करें कि वह और ज्यादा भड़क जाए या पागलपन में आ जाये।

Dissociative identity disorder (DID) एक कॉमन बीमारी है, देश विदेश सर्वत्र इसके मरीज पाए जाते हैं। ऐसे मरीज़ बचपन या जवानी में किसी गहरे सदमें से गुजरे होते हैं, या अपने जीवनसाथी से किसी न किसी कारण चिढ़े होते हैं। इनका वैवाहिक जीवन डिस्टर्ब होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, प्रणाम कृपया करके मेरी इस समस्या का समाधान करें की मैं अपने लक्ष्य का निर्धारण कैसे करूँ क्योकि मेरे सामने कई विकल्प है जैसे व्यापार करना, शिक्षा के क्षेत्र में इत्यादि परन्तु मैं विस्मय की स्थिति है। कृपया मेरा सही मार्गदर्शन करने का कष्ट करें। धन्यवाद*

प्रश्न - *दी, प्रणाम कृपया करके मेरी इस समस्या का समाधान करें की मैं अपने लक्ष्य का निर्धारण कैसे करूँ क्योकि मेरे सामने कई विकल्प है जैसे व्यापार करना, शिक्षा के क्षेत्र में इत्यादि परन्तु मैं विस्मय की स्थिति है। कृपया मेरा सही मार्गदर्शन करने का कष्ट करें। धन्यवाद*

उत्तर - आत्मीय बेटे, विकल्प चुनने से पहले अपने दिमाग़ और उसकी जरुरतों को समझो।

 हमारे दिमाग़ के तीन मुख्य हिस्से हैं, उनकी जरूरतों को क्रमशः समझो:-

1- The reptilian brain -👉🏼 भोजन, पानी, आराम इत्यादि👉🏼 शारिरिक जरूरतें,👉🏼 कपड़ा और मकान, सुरक्षा

2- The limbic brain - परिवार, प्यार, मित्रता और कुछ मानसिक लेवल पर अलग करने की इच्छा

3- The neocortex - आत्मसंतुष्टि के लिए कुछ करना

इन्हीं तीनों दिमाग़ की जरूरत के हिसाब से एक ट्राइएंगल को जीवन में नीचे से ऊपर पूरा करने की प्रायोरिटी तय करो, उसे अचीव करो:-


1- कैरियर विकल्प चुनते समय यह देखो कि क्या यह मेरी रोटी, कपड़ा और आराम के लिए पर्याप्त है।

2- क्या इस कैरियर विकल्प से मैं स्वयं के रहने के लिए अच्छा मकान किराए पर या स्वयं का खरीद सकता हूँ।

3- क्या इस कैरियर विकल्प को अपनाकर मैं घर गृहस्थी बसा सकता हूँ और अच्छी जिंदगी जी सकता हूँ।

4- क्या कुछ बड़ा और डिफरेंट अचीव कर सकता हूँ इसमें आगे, कोई ग्रोथ प्लान है।

5- आत्मोत्थान, आत्म उत्कर्ष, आत्म संतुष्टि के लिए साथ साथ कुछ कर सकूंगा।

जब यह पांचों अचीव होगा, तभी तुम सांसारिक जीवन मे सफल कहलाओगे।

समय प्रबंधन तुम्हारे जीवन की सफलता में सहयोगी होगा। Important, Not Important, Urgent, Not Urgent कार्य सूची बनाकर कार्य करोगे तो सफल होंगे।

🙏🏻 अब जब उपरोक्त जरूरतें समझ आ गयी तो अब अपनी योग्यता, पात्रता और रुचि का Analysis करो।

घण्टों बैठकर सोचो ऐसा कौन सा कार्य है जिसे करने में तुम थकते नहीं। जो तुम्हें ख़ुशी देता है। जिस कार्य के सम्बन्धी बातों को करने से तुम्हारी आँखों और चेहरे पर चमक आ जाती है। जिसके लिए कम पैसे मिले तो भी तुम उसे करना चाहोगे। यह कार्य वास्तव में तुम्हारा passion/रुचि है। यदि इसे चुना तो तुम्हारी सफलता को कोई रोक नहीं सकता।

अब जो रुचिकर कार्य है उसके लिए क्या तुम्हारी शारीरिक, आर्थिक और मानसिक योग्यता पर्याप्त है? इस क्षेत्र में सफलता के लिए...यदि हाँ तो आगे बढ़ जाओ

व्यापार के क्षेत्र में कदम रखने से पहले विचारों क़ि क्या तुम्हारे अंदर उस व्यापार का पूरा प्लान क्लियर है, क्या, कब, कैसे करोगे? what, when, how जब क्लियर हो और आपके पास एक वर्ष तक यदि कोई रिटर्न व्यापार से न भी आये तो भी वह व्यापार चला सको? पर्याप्त पूँजी व्यापार चलाने और खाने पीने के लिए है? यदि हाँ तो व्यापार करो।

शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने के लिए वो क्यों कर रहे हो, इसको करके क्या क्या अचीव कर सकोगे, यदि यह क्लियर है तो शिक्षा का क्षेत्र चुनो।

जिस प्रकार सुबह नाश्ता👉🏼 दोपहर लंच 👉🏼 रात को डिनर करते हो, वैसे ही कमाई और कैरियर का विकल्प चुनते समय कम ही सही शुरुआती नाश्ते की तरह इनकम होनी चाहिए, कैरियर ग्रोथ हो जिसमें लंच की तरह कमाई और कार्य दोनों बढ़े। इतनी कमाई कर सको कि रात वृद्धावस्था में भोजन और आराम की व्यवस्था हो।

सांसारिक जरूरतें तो पुरी करनी ही है साथ मे आध्यात्मिक जरूरतें आत्मकल्याण और लोककल्याणार्थ करने का स्कोप भी पहले से क्लियर रखो। जिससे जीवन का सम्पूर्ण आनन्द उठा सको।

इस पोस्ट में वर्णित बातों के लिए तीन चित्र भी भेज रही हूँ, जिससे मेरा कथन बेहतर समझ सको।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन


Tuesday, 23 April 2019

यज्ञ-सामानकीलिस्ट

👉🏼📯 *क्या आपने 2 जून गृहे गृहे महायज्ञ की तैयारी कर ली? 24000 घरों में एक साथ एक समय यज्ञ होगा।*

यह कर्मकांड भास्कर का ऐप है । इस ऐप में मंत्र के दाहिने तरफ मंत्र कैसे उच्चारण किया जाए उसका ऑडियो भी दिया गया है जिससे सीख कर कोई भी यज्ञ कर्मकांड सीख सकता है।

https://play.google.com/store/apps/details?id=in.awgp.app.sk.karmakandbhaskar

📖 पुस्तक *सरल हवन विधि खरीद लें*, और मंन्त्र उच्चारण उपरोक्त अपल्लीकेशन से सीख लें।

👉🏼 यज्ञ सामग्री लिस्ट, इसे पढ़कर पूर्व व्यवस्था बना लें

👉🏼 *यज्ञ की सामग्री*

*1. एक मीटर पीला कपड़ा(देव आसन )*
*2. छोटी चौकी एक*
*3. देव स्थापना चित्र (भगवान की फोटो)*
*4. आम की लकड़ी 3 किलो*
*5. हवन सामग्री 1 किलो*
*6. हवन कुण्ड या तसला एक*
*7. गाय का घी 250 ग्राम*
*8. जटावाला नारियल एक*
*9. गोला एक*
*10. कलश या लोटा एक* (तांबे का कलश उत्तम है, न मिलने पर स्टील का कलश बना लें)
*11. आम या अशोक के पत्ते 5-7*
*12. गंगाजल*(गंगा जल न मिलने पर कलश में मॉ गंगा का ध्यान कर लें)
*13. पान पत्ता एक*
*14. सुपारी दो , लौंग 5 , हरी इलायची 5 ,मिश्री दाना 100 ग्राम*
*15. रोली एक पैकेट , कलावा दो गुच्छे , जनेऊ एक*
*16. कपूर एक डिब्बा , धूप कपूर या अगरबत्ती एक पैकेट  ,  गोल वाली रुई की बत्ती 8-10 , माचिस एक*
*17. दीपक दो - एक बड़ा, एक छोटा (पीतल या स्टील या मिट्टी का घर में जो भी हो )*
*18. पीले चावल 100 ग्राम (साबुत कच्चा चावल हल्दी लगा )*

*20. फल स्वेच्छानुसार*
*21. मिष्ठान्न्र प्रसाद स्वेच्छानुसार* (घर में हलवा या खीर बनाये तो श्रद्धा भाव और शुद्धता बनी रहेगी। होटल में मजदूर नहाधोकर मिठाई नहीं बनाते)
*22. फूलमाला 2*
*23.* - हाथ का पंखा हो तो अच्छी बात नहीं तो पेपर से पंखे का काम ले लें।


*घर का सामान*
*बड़ी दो थाली + चार कटोरी व चार चम्मच + दो मध्यम आकार की प्लेट*

काष्ठ पात्र हो तो अच्छा है, नहीं तो उसकी जगह स्टील की चम्मच उपयोग में लें।

*नोट:*- 150 रुपये वाला पूजा के घी बोलकर नकली घी मार्किट में बिकता है जो मृत पशुओं को गर्म करके बनता, उसे पूजन में प्रयोग कदापि न करें।

यज्ञकर्ता के बैठने के लिए कम्बल, ऊनी शॉल का प्रयोग सर्वोत्तम है। इसके न मिलने पर साधारण आसन भी उपयोग में ले लें।

यज्ञ के बाद कम से कम तीन नए लोगों को अखण्डज्योति या युगसाहित्य जरूर बांटे।

प्रश्न - *दी, पढ़ने में मन नहीं लगता क्या करें? मन भटकता है क्या करें?*

प्रश्न - *दी, पढ़ने में मन नहीं लगता क्या करें? मन भटकता है क्या करें?*

उत्तर- बेटे, दुनियाँ में ऐसा कोई इंजेक्शन, दवाई या चूरण नहीं बना है जिसके सेवन से पढ़ने में मन लग जाये।

मैं तुम्हें कितना भी ज्ञान दे दूँ कि पढ़ना कितना जरूरी है, इससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला, क्योंकि पढ़ाई का महत्व जानती हो तभी तो प्रश्न पूंछ रही हो।

गूगल में या किसी के पढ़ाई करने की हज़ारों तकनीक बताने से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, क्योंकि कुछ दिन पढ़ोगी उसके बाद फ़िर वही मन का भटकाव तुम्हें परेशान करेगा।

👉🏼पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी में धार होगी, तो लकड़हारा कम थकेगा और ज्यादा आउटपुट दे सकेगा।

इसी तरह बुद्धि में धार देने के लिए नित्य आधे घण्टे ध्यान करना शुरू कर दो। आधे घण्टे गायत्री मंत्र जप शुरू कर दो। सोने से पहले एक पैराग्राफ स्वयं को मोटिवेट करने वाला साहित्य पढ़ लो। सुबह उठते ही भगवान को धन्यवाद देकर स्वयं को ढेर सारा अच्छा अच्छा आशिर्वाद दो।

👉🏼दो रँग की टॉफी ले लो या दो रँग के कंकड़ ले लो, एक को नकारात्मक/भटकने वाले विचार का प्रतीक मान लो और दूसरे को सकारात्मक/दिशानिर्देश वाले विचार का प्रतीक मानो। दो कटोरी रख लो। पढ़ने बैठो, ज्यों ही मन भटके ब्लैक टॉफी/कंकड़ भटकने वाली कटोरी में डाल दो। कोई पढ़ाई में मदद करने वाला विचार आये तो सफ़ेद टॉफी/कंकड़ सकारात्मक कटोरी में डाल दो।

यह प्रक्रिया यह तय करेगी कि तुम मन में उठ रहे विचारो के प्रति चैतन्य जागरूक हो। एक दिन ऐसा आएगा कि नकारात्मक विचार वाला कटोरा खाली रह जायेगा और सकारात्मक विचारों वाला कटोरा भर जाएगा। तुम्हारे मन पर तुम्हारा नियन्त्रण बढ़ता जाएगा।

👉🏼 एक पेपर लो और उसमें दो कॉलम बनाओ

एक सफल व्यक्ति की आदत का कॉलम और दूसरा असफ़ल व्यक्ति की आदत का कॉलम

दूसरे पेपर में एक सफल व्यक्ति की नापसंद कार्य का कॉलम और दूसरा असफ़ल व्यक्ति की नापसंद कार्य का कॉलम

उदाहरण - सफल व्यक्ति सुबह उठता है, योग-व्यायाम करता है, अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करता।

असफ़ल व्यक्ति लेट उठता है, योग-व्यायाम में आलस्य करता है, खूब समय बर्बाद करता है।

अब जब चेकलिस्ट बन जाये तो अपनी आदतों को लिस्ट से मैच करवा लो। बिना ज्योतिष के स्वयं जान लो कि भविष्य में तुम सफल होगी या असफ़ल। तुम्हारी आदतें यदि सफल व्यक्ति के कॉलम से मैच खाती होंगी और वो तुम हर कार्य कर रही हो जो असफ़ल आदमी की नापसंद है - जैसे सुबह उठना, व्यायाम करना, लक्ष्य पर केंद्रित होना, समय प्रबंधन तो तुम्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।

👉🏼 हम अपना भविष्य डायरेक्ट नहीं बदल सकते, लेकिन हम अपने आदतें बदल सकते हैं, जो हमारा भविष्य स्वतः बदल देगी। अच्छी आदतें 👉🏼 अच्छा भविष्य
बुरी आदतें 👉🏼 बुरा भविष्य

👉🏼 स्वयं की अध्यापिका स्वयं बनो, स्वयं की गतिविधियों पर नजर रखो, स्वयं के विचारों पर नजर रखो।

👉🏼 क्या तुम्हारी कोई पहचान है? तुम्हारा कोई वजूद है? यदि तुम कहीं किसी प्रोग्राम में पहुंचो तो लोग खड़े होकर तुम्हारा अभिवादन करें... तुम्हें लोग तुम्हारे नाम से जाने...

या चाहती हो कि अमुक की बेटी, अमुक की पत्नी और अमुक की माँ ही तुम्हारी पहचान हो, बेनाम जीवन जीना चाहती हो तो तुम्हारी मृत्यु कभी नहीं होगी। क्योंकि जो नाम कभी जिंदा ही नहीं था लोगों के लिए उसकी भला मौत कैसी? मरेगा वही जो जिंदा होगा। बेनाम-बिना वजूद का जीवन मृत ही है। पराधीन व्यक्ति को जीवन मे सुख की आशा का त्याग कर देना चाहिए। गुलामों को पढ़ने की जरूरत नहीं। मालिक बनने के लिए पढ़ना होगा।

👉🏼 अगर पढ़लिख कर और जीवन से संघर्ष करके स्वयं को स्थापित नहीं कर सकती तो लड़कियों की दुर्गति की पोस्ट न पढ़ना न आगे फ़ारवर्ड करना। क्योंकि वजूद विहीन और अयोग्य लड़की को एक भार की तरह पिता दहेज देकर विदा करता है और पति उम्रभर उसे भार मानकर ही रखता है। उसकी कोई ख्वाइश मान्य नहीं होती।

👉🏼 अगर तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकी, जिससे लोग यह कह सकें कि बेटी हो तो तुम्हारी तरह...तुम्हारे आसपड़ोस का हर माता पिता अपनी बच्चियों के सामने तुम्हारा उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सके...तो समझना तुम वजूद विहीन हो...तुमने स्त्री जाति के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया...कन्या भ्रूण हत्या की एक जिम्मेदार तुम भी हो...कोई माता पिता तुम्हे देखकर जब लड़की पैदा करने से डरेगा तो...कन्या भ्रूण हत्या का पाप तुम पर भी लगेगा...क्योंकि तुम लड़की किसी भी लड़के से कम नहीं यह साबित करने में असफ़ल रही...


👉🏼 इतना मोटिवेशन एक आत्मस्वाभिमानी लड़की के लिए पर्याप्त है। वैसे भी मानसिक गुलामो को हमारे प्रश्नोत्तर की जरूरत नहीं है।

गुरू प्रेरणा से हम सृजन की महाशक्तियों और दिव्य युवाओं के लिए पोस्ट लिखते हैं।

 जो अपने मन से हार गया वो भला जग कैसे जीतेगा?

मन बहुत अच्छा गुलाम और मन बहुत बुरा मालिक है। यदि मन को गुलाम नहीं बना सके तो यह मन तुम्हें औरों के आगे भीख मांगने वाला गुलाम 100% बना देगा।

कभी कभी कठोर शब्द और कड़वे प्रवचन मन को चुभते हैं,
लेकिन इस चुभन से बड़े बड़े नेतृत्व उभरते हैं।
हमेशा मीठी दवा से रोग नहीं ठीक होते,
कड़वी दवाओं से रोग ठीक करने पड़ते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - नंन्हे दीपकों से लो युग सृजन की प्रेरणा

*नंन्हे दीपकों से लो युग सृजन की प्रेरणा*

विध्वंस है सरल,
सृजन है कठिन,
चरित्र पतन है सहज़,
चरित्र उत्थान है कठिन,
युगपतन है सरल,
युगनिर्माण है कठिन,

इसे गहराई से समझ ले तू इंसान,
तुम्हें ही करना है सृजन और युगनिर्माण।

उथले जल में,
बालक्रीड़ा है आसान,
समुद्र की गहराई में,
गोताखोर बनके,
मोती लाना है मुश्किल,
वातारण प्रदूषित-विषाक्त,
करना है आसान,
वातावरण प्रदूषणमुक्त-विषमुक्त,
करना है मुश्किल,

इसे गहराई से समझ ले तू इंसान,
तुम्हें ही प्रदूषणमुक्त करना है,
यह वातावरण और संसार।

कठिनाई सुनकर,
क्या भयग्रस्त हो गया तू,
चुनौतियों से डरकर,
क्या पीछे हट गया तू,
इसे गहराई से,
समझ ले तू इंसान,
जो कठिनाई से जूझ सका,
वही बन सका महान,
जो चुनौतियों से खेला,
वही है भारत की आन-बान-शान।

इसे गहराई से समझ ले तू इंसान,
तुझे ही बनना है भारत की आन-बान और शान।

कार्तिक अमावस्या की थी,
वह गहन अंधेरी रात,
जनमानस नें देवताओं से लगाई थी,
तब मदद की गुहार,
नंन्हे दीपकों ने तब जगाई,
सोए जनमानस में इक आस,
प्रबल सङ्कल्प से जलकर,
फैलाया वहाँ प्रकाश,
दीपकों के प्रबल सङ्कल्प से,
हार गया था अंधकार,
दीपों की साहसिकता का,
तब तीनों लोकों में हुआ गुणगान,

इसे गहराई से समझ ले तू इंसान,
जब नंन्हे दीपक की सङ्कल्प ज्योति को,
बुझा नहीं सकता,
गहन से गहन अंधकार,
फ़िर तेरे प्रचण्ड सङ्कल्प से तो,
झुक जाएगा आसमान।

सूर्य की तरह चमकने के लिए,
स्वयं जलना होगा,
दुनियाँ को बचाने के लिए,
कुछ न कुछ करना होगा।

आओ युगशिल्पियों,
इन नंन्हे दीपकों से लें प्रेरणा,
अंतिम श्वांस तक,
युगसृजन का सङ्कल्प बनाये रखना,
याद रखो, स्वयं जलकर,
तिमिर को है भगाना,
जहां हैं वहीं,
गुरुचेतना का प्रकाश है फैलाना,
दीप से दीप है जलाते जाना,
युगनिर्मानियों सृजन सेना है बनाते जाना,
युगऋषि का स्वप्न है पूरा करना,
हमें उनका अंगअवयव है बनना,
मनुष्य में देवत्व है जगाना,
धरती को ही स्वर्ग सा सुंदर है बनाना।

इसे गहराई से समझ तू इंसान,
स्वर्ग और नर्क क्या है ज्ञान - विज्ञान।
समाज और समूह का,
अच्छा चरित्र चिंतन और व्यवहार ही,
धरती का स्वर्ग है,
समाज और समूह का,
बुरा चरित्र चिंतन और व्यवहार ही,
धरती का नर्क है,
चरित्र चिंतन व्यवहार बदलने के लिए,
तुझे उनकी सोच को बदलना होगा,
इसके लिए तुम्हें,
गायत्रीमंत्र जप, ध्यान और स्वाध्याय से,
जनमानस को जोड़ना होगा,
सबके भीतर भाव सम्वेदना जगाना होगा,
प्रकृति के संरक्षण में सबका योगदान लेना होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कर्मकांड भास्कर का ऐप

यह कर्मकांड भास्कर का ऐप है । इस ऐप में मंत्र के दाहिने तरफ मंत्र कैसे उच्चारण किया जाए उसका ऑडियो भी दिया गया है जिससे सीख कर कोई भी यज्ञ कर्मकांड सीख सकता है।
https://play.google.com/store/apps/details?id=in.awgp.app.sk.karmakandbhaskar

प्रश्न - *दी, हम ख़ुद का अपना मकान लेना चाहते हैं, समझ नहीं आ रहा कि लोन लेकर घर खरीदें या नहीं। मैं मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता हूँ और मेरी पत्नी प्राइवेट स्कूल में टीचर है।*

प्रश्न - *दी, हम ख़ुद का अपना मकान लेना चाहते हैं, समझ नहीं आ रहा कि लोन लेकर घर खरीदें या नहीं। मैं मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता हूँ और मेरी पत्नी प्राइवेट स्कूल में टीचर है।*

उत्तर - आत्मीय भाई, आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर उत्तर दे रही हूँ।

हलाकिं मैंने स्वयं लोन पर घर खरीदा है, मेरे अनुभव के अनुसार यह निर्णय ग़लत था। क्योंकि मैं एक भ्रम में थी कि अपना घर होना चाहिए।

अभी भी मेरा घर मेरा नहीं है, क्योंकि उसके कागज़ बैंक के पास हैं। मूर्खतावश जिसे मैं owner समझ रही थी वो वस्तुतः  loaner है। 20 वर्ष बाद मेरा घर मेरा होगा, जिसके लिए पूरी युवावस्था मुझें लोन का दबाव झेलना पड़ेगा। घर और कार दोनों फर्स्ट हैंड में कीमती हैं और सेकंड हैंड में इनकी कीमत केवल घटती है। 20 वर्ष बाद पुराने फ्लैट की ख़स्ता हालत जग जाहिर है, मुम्बई और दिल्ली के 20 वर्ष पुराने फ्लैट देख लें। आये दिन टूट फुट की न्यूज सुनते हैं। तो फ्लैट कोई ज़मीन से खड़ा महल नहीं है जो 20 वर्ष बाद भी एंटीक और बेशकीमती रहेगा। आपकी सन्तान इसमें रहना पसंद नहीं ही करेगी।

यदि मस्तमौला अहंकार रहित हो तो आनंदमय जीवन जीने के लिए किराए के मकान में रहो। जिस मकान की क़िस्त owner उर्फ loaner 80,000 रुपये भर रहे हैं, उस मकान को मात्र 15,000 रुपये में एन्जॉय करो। बाकी पैसे बचत करो। बच्चे को पढ़ा लिखा के इस योग्य बनाओ कि वह स्वयं के लिए रोटी कपड़े और मकान की व्यवस्था स्वयं कर सके।

प्राइवेट नौकरी स्थायी नहीं है, रिश्क से भरी है, पेंशन इसमें मिलना नहीं है। सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग के चक्कर में महाजन बैंकों की ग़ुलामी न करो तो ही अच्छा है।

ज़मीन खरीदना नफ़े का सौदा है, लेक़िन सोसायटी में फ़्लैट ख़रीदना मेरे हिसाब से बेवकूफी है। यह बेवकूफी आज के समय क्यों है इसे निम्नलिखित वीडियो में देखिए:-

https://youtu.be/jC132T9SwWM

मीडिया और विज्ञापन एजेंसियां, बैंक और विश्व की समस्त सरकारें  एक तरह से मनोमानसिक प्रेशर देकर एक ट्रैप/ज़ाल में मानव को फँसाते है। फिंर उम्रभर मनुष्य निकल नहीं पाता है इस ज़ाल से, आइये इस वीडियो से इसे समझें:-

https://youtu.be/-DCuyt0e1tY

देखो भाई, जब तक जितने का घर खरीदने जा रहे हो उसका 50% अमाउंट का फिक्स्ड डिपाजिट या जमीन जायजाद न हो, कृपया प्राइवेट नौकरी के दम पर घर खरीदने का रिस्क मत लेना।

थोड़े से रिश्तेदारों और मित्रों को दिखाने के लिए और स्वयं के अहंकार की तुष्टीकरण के लिए घर लोन पर मत ख़रीदना।

जीवन जीने की कला जानने वाले किराए के घर में आनन्दित रहते हैं। वह जानते हैं कि किराए की सराय यह शरीर है, इसे हमें यहीं छोड़कर जाना है। फ़िर इस शरीर और इससे जुड़े रिश्ते के रहने के लिए किराए के मकान से बेस्ट और क्या है? बिना टेंशन कई घर बदलो, जरूरत का सामान साथ रखो और जीवनयात्रा का आनन्द लो।

जब शरीर बदलना पड़ता है आत्मा को, तो उसे घर बदलने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

LOAN - लोन को समझो - "लो" + "ना', इसे कभी अय्याशी के लिए मत लेना। अत्यंत जरूरत हो तो ही लेना। दोनों वीडियो पूरा देखना। मेरी बात से सहमत हो तो आगे फ़ारवर्ड कर देना।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 22 April 2019

प्रश्न - *घर के किसी सदस्य की बीमारी दूर करने और उनके प्रारब्ध काटने के लिए कौन सी साधना करें? कृपया मार्गदर्शन करें।*

प्रश्न - *घर के किसी सदस्य की बीमारी दूर करने और उनके प्रारब्ध काटने के लिए कौन सी साधना करें? कृपया मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, प्रदूषण युक्त वातावरण जहाँ न पीने को शुद्ध जल है, न श्वांस लेने को शुद्ध हवा है, न खाने को शुद्ध ऑर्गेनिक अन्न है। ऐसी विकट परिस्थिति में बीमारियों का आक्रमण शरीर पर स्वभाविक है।

👉🏼 बीमारियां मुख्यतः तीन कारणों से होती हैं,

1- वातावरण व परिस्थिति जन्य
उदाहरण - ज़हरीली केमिकल फैक्ट्री के पास रहने वाले सभी लोगों का रोगी होना
2-  आनुवांशिक रोग
उदाहरण - माता-पिता को डायबटीज़ तो बेटे को डायबिटीज होना
3-  प्रारब्धजन्य
उदाहरण - पूर्व जन्मों के कर्मफ़ल स्वरूप गम्भीर बीमारियां होना

👉🏼 बीमारियों की जड़ पेट और मन में होती है। यदि पेट और मन को स्वच्छ कर लिया जाय तो बीमारियों को जड़ से उखाड़ना संभव है।

👉🏼आरोग्य, बल, श्री, समृद्धि, निर्विघ्नता, एवं सुख शान्तिमय परिस्थितियाँ उत्पन्न करने वाली देवी गायत्री की साधना, मृत्यसम कष्टों को दूर करने वाले भगवान भोलेनाथ का महामृत्युंजय जप, आरोग्य के देवता सूर्य का व्रत और सर्वसंकट नाशक यग्योपैथी अपनाकर रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।

👉🏼 ध्यानधारणा द्वारा मन का आंतरिक काया कल्प घर बैठे श्रद्धेय के यूट्यूब चैनल से देख सकते हैं:-
https://youtu.be/umAfVbaGWhw

👉🏼 इम्म्युनिटी (रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए) सुबह गेंहूँ के ज्वारे का रस, एक बड़े सरसों के दाने बराबर चूना(पान वाला) और सुबह शाम अमृता वटी(गिलोय) का तीन महीने तक सेवन करें। यह शरीर को भीतर से मजबूत कर देता है।

👉🏼 बीमारी सम्बन्धी योग-प्राणायाम अपनाकर रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है, रोगसम्बन्धी बीमारियों के लिए कौन सा योग करें:-
योगाचार्य - 09811130431, रमनिश वत्स( भारत सरकार द्वारा रबर बॉय की उपाधि प्राप्त)
यूट्यूब चैनल - https://www.youtube.com/user/ramnish1

योगाचार्य - +919337710225, डॉक्टर विश्व रंजन रथ, भारत और उड़ीसा में ख्यातिप्राप्त योगाचार्य।
यूट्यूब चैनल - https://www.youtube.com/channel/UCBuUm0tNSe1As6Y6HacNxVQ

इन दोनो योगाचार्य के प्रोग्राम टीवी पर आते हैं, इनके उपरोक्त यूट्यूब चैनल पर जाएं और मार्गदर्शन लें।

👉🏼 मन की सफ़ाई के लिए नित्य स्वाध्याय करें और कम से कम एक निश्चित समय में एक घण्टे का मौन रखें। उगते हुए सूर्य का ध्यान करें।

👉🏼 पेट की सफ़ाई के लिए रसाहार और जलाहार लेकर प्रत्येक रविवार व्रत रखें तो पेट साफ़ होगा। रोगी के लिए परिवार के सदस्य रविवार व्रत रखें। जीवनसाथी यदि बीमार हो तो मंगलवार व्रत भी रख सकते हैं।

👉🏼 बीमार बच्चे के माता-पिता,  बीमार पति के लिए पत्नी और बीमार पत्नी के लिए पति सवा लाख गायत्री जप का अनुष्ठान उसकी रोगमुक्ति के लिए श्रद्धा भाव से करे। एक दिन 8 घण्टे का गायत्री अखण्डजप मित्रों और परिजनों की मदद से कर लें और एक दिन 8 घण्टे का महामृत्युंजय मंत्र का अखंड जप रोगमुक्ति के लिए कर लें।

👉🏼 नित्य कम से कम 3 गायत्री मंत्र की माला और एक महामृत्युंजय मंत्र की माला स्वजन की रोगमुक्ति के लिए करें। कलश का जल सूर्य को अर्पित करके थोड़ा सा बचा लें और उस जल से रोटी का आटा गूंथे और उसकी रोटियां परिवार वालों को खिलाएं।

👉🏼 नित्य घर में दैनिक यज्ञ या बलिवैश्व यज्ञ करें।

👉🏼रोगसम्बन्धी औषधियों के हवन को यग्योपैथी कहते हैं। इससे रोगी को श्वांस द्वारा मंन्त्रतरंगों युक्त औषधि मिलती है, जो उसे तेजी से स्वास्थ्य प्रदान करती है। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड जाएं और रोगसम्बन्धी औषधि वहां से लाकर नित्य हवन करें:-
फोन पर सम्पर्क सूत्र -
919258369619, डॉक्टर वंदना
 +916399080163, डॉक्टर विरल

👉🏼 गुरूदेव ने स्वास्थ्य के लिए अनेक पुस्तकें लिखीं है इन्हें पढ़कर घर पर स्वास्थ्य के सूत्र अपनाएं:-
1- बिना औषधियों के कायाकल्प
2- जीवेम शरदः शतम
3- व्यक्तित्व विकास की उच्चस्तरीय साधनाएं (इसमें योग-प्राणायाम-ध्यान विधियों द्वारा रोगोपचार वर्णित है)
4- तुलसी के चमत्कारिक गुण
5- यज्ञ चिकित्सा विज्ञान
6- निराशा को पास न फटकने दें
7- मनःस्थिति बदलें तो परिस्थिति बदले
8- मानसिक संतुलन
9- हारिये न हिम्मत
10- दृष्टिकोण ठीक रखें

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी... इच्छा शक्ति और विचार शक्ति में क्या अंतर है? क्या ये दोनों एक है?या अलग अलग हैं?है क्या ये दोनों?*

प्रश्न - *दी... इच्छा शक्ति और विचार शक्ति में क्या अंतर है? क्या ये दोनों एक है?या अलग अलग हैं?है क्या ये दोनों?*

उत्तर - आत्मीय बहन, विचार और इच्छा एक दूसरे के पूरक हैं।

विचार का जन्म किसी न किसी ऑब्जेक्ट या  इन्फॉर्मेशन या सूचना से जन्म लेता है।

एक किसान और एक साइंटिस्ट के अंदर उठने वाले विचार प्रवाह और उन विचारों की शक्तियाँ भी अलग अलग होती हैं।

इसी तरह इच्छाओं का जन्म भी आसपास से मिली इन्फॉर्मेशन, परिस्थिति और विचारों पर निर्भर करता हैं। इच्छाएं भी किसान और साइंटिस्ट की अलग होंगी। किसान जहाँ अच्छी फसल की उपज, अपने परिवार का सुख-सौभाग्य और फसल की अच्छी क़ीमत सम्बन्धी इच्छाएं करेगा। वहीं दूसरी तरफ साइंटिस्ट कुछ नए अविष्कार, नई खोज कर के दुनियाँ को चमत्कृत करने की इच्छा करेगा।

जीव चैतन्य है और उसका पोषण अनंत चेतना करती है, इसलिए उसके अंदर वह सुप्त शक्ति है वह अपनी सम्भावना को सर्व शक्तिमान के सत्तर तक उठा सके ।

जो जैसा बनना चाहता है वैसा बन जाता है । इसका रहस्य मन में उठने वाली इच्छा से आरम्भ होता है जो कि उसके आसपास की वस्तुएं, जानकारी और परिस्थिति से सम्बंधित विचारों से जन्मेगा । मन का धर्म इच्छाएं उत्पन्न करना है । मन में कोई इच्छा उठी , शीघ्र ही मन की सेविका कल्पना शक्ति उस इच्छा का एक मानसिक चित्र रच देती है , एक कल्पना चित्र मानस पटल पर बन जाता है । यदि मन की इच्छा निर्बल हुई तो वह कल्पना चित्र कुछ क्षणों बाद ही अवचेतन मन की परतों में विलीन हो जाएगा, लेकिन यदि वह इच्छा बलवती हुई तो मन की विद्युत धारा चारो और उड़ उड़ कर अनुकूल वातावरण की तैयारी में लग जायेगी। बलवती इच्छा शक्ति अब बुद्धि को सक्रिय करेगी और तत्सम्बन्धी शशक्त विचार शक्ति को उतपन्न करेगी, विचारों की सृजनात्मक शक्ति उस इच्छा को पूर्ण करने में जुट जाएगी  । अब बुद्धि में उस कल्पना चित्र के प्रप्ति के लिए तरकीबें उठेंगीं , संकटों का मुकाबला करने लायक योग्य शक्ति पैदा होगी और ऐसी ऐसी गुप्त सुविधाएं उपस्थित होगी जिनसे अब तक हम अनजान थे ।

जैसे एक इंसान ने सड़क पर एक  कार को देखा । अगर उसका देखना ऐसे ही था जैसे एक कैमरे के लेन्स से देखना तो उस कार के बारे में उसकी इच्छा शक्ति बलवती नहीं हो पाएगी, और कुछ ही समय के अंतराल पर उसे उस कार की विस्मृति हो जायेगी । लेकिन यदि उस मॉडल की कार को देख कर उसके मन में यह इच्छा उठी की उसके पास भी ऐसी कार हो , उसके मन में उस कार का एक कल्पना बिम्ब बन जाएगा , यदि उसकी इच्छा और तीव्र हुई की उसके पास वह कार होनी ही चाहिए , तो इच्छा शक्ति की खाद खुराक से वह चित्र कुछ ही समय में परिपुष्ट हो जाएगा और वास्तविक कार से अपना घनिष्टता स्थापित कर लेगा ,बुद्धि में तरकीबें उठेंगीं, विचारो का प्रवाह उमड़ेगा की कैसे उस कार को प्राप्त किया जाए, यदि उस आकर्षण चित्र को निरंतर उसी धारा में सोचने से पोषण मिलता रहा और प्रयास वह मनुष्य करता रहा तो , बाहर की परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो , धीरे धीरे वह आकर्षण चित्र अपना काम करता रहेगा और परिस्थितियों को अनुकूल करने की दिशा में कार्य आरम्भ कर देगा । इच्छा उठने से लेकर वह कार मिलाने तक की मार्ग की असंख्य छोटी मोटी बाधाएं को साफ़ करने में विचारों की सृजनात्मक शक्ति ही  काम करती है, मनुष्य कितने संघर्ष करता है यह हम नहीं जान पाते । यही इच्छा शक्ति असंख्य प्रकार की शारीरिक, मानसिक और बाहरी परिस्थितियों की कितने बलपूर्वक चीर चीर कर अपना रास्ता साफ़ करती है ,इसे हम देखा पाते तो समझ पाते की हमारे अंदर अत्यंत प्रभावशाली चुम्बक शक्ति भरी पड़ी है ।

यह नियम है की तत्व जितने जितने सूक्ष्म होते जायंगे उसमें निहित शक्ति उतनी ही बढ़ती जायेगी । विचार से सूक्ष्म इच्छा है और इच्छा से अधिक सूक्ष्म और शक्ति शाली संकल्प है । विचार शक्ति को इच्छा शक्ति और कालांतर में संकल्प शक्ति में परिवर्तित करके जीव जो जो बनना चाहता है बन सकता है जो जो प्राप्त चाहता है प्राप्त कर सकता है ।

विचार से इच्छा और इच्छा से संकल्प और सङ्कल्प को पूर्ण करने में जुट पढ़ने का हुनर ही सफ़लता की आधार शिला है।

ज्यादा जानकारी के लिए तीन पुस्तकें
📖 *विचारों की सृजनात्मक शक्ति*
📖 *प्रखर प्रतिभा की जननी इच्छा शक्ति*
और
 📖 *सङ्कल्प शक्ति की प्रचंड प्रक्रिया* पढ़िये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं मेरे जीवन का उद्देश्य कैसे ढूँढू बतायें?*

प्रश्न - *मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मैं मेरे जीवन का उद्देश्य कैसे ढूँढू बतायें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, जीवन का उद्देश्य समझने के लिए सबसे पहले जीवन को बनाया किसने समझना पड़ेगा।

परिवार, जीवनसाथी और बच्चे, जॉब सांसारिक उपलब्धियां और समाजकल्याण करना, यह सब सम्हालना जीवात्मा का कर्तव्य/उत्तरदायित्व है जो इस  शरीर से जुड़ा है। हम यह शरीर नहीं है, हम वह आत्मा है जो अनन्त यात्री है। जो इस शरीर रूपी सराय में ठहरी है। समय पूरा होते ही यह शरीर छोड़कर नए मार्ग पर बढ़ जाएगी। अतः संसार मे प्राप्य और शरीर से जुड़ा लक्ष्य कैरियर ऐम या सांसारिक लक्ष्य हो सकता है लेकिन शरीर और संसार से जुड़ा कोई भी लक्ष्य जीवन लक्ष्य नहीं हो सकता। जीवन लक्ष्य तो आत्मा से जुड़ा होना चाहिए, जो अजर अमर अविनाशी है। जिसके कारण जीवन है, जिसके शरीर से निकल जाने पर जीवन ही शेष नहीं बचता। तुरन्त शरीर जला दिया जाता है। अतः जिसके कारण जीवन है उस तत्व को जानना जीवन उद्देश्य है। जिसने यह सृष्टि रची उसे जानना जीवन उद्देश्य है।

इस सृष्टि में जीवन की शुरुआत अचानक और अपने आप होना ना मुमकिन है. फिर….. इस विशाल ब्रम्हांड में पृथ्वी ही एक मात्र और अनोखा गृह क्यों है जिस में जटिल जीवन पाया जाताहै? क्या इस के पीछे कोई बनावट / डिजाइन/सृष्टि  है? एक बनावट / डिजाइन के पीछे जरूर कोई डिजाइनर /  बनानेवाला/मेकर/इंजीनियर का होना जरूरी है।

हांजी ! जो डिजाइनर/मेकर/इंजीनियर जो सृष्टि के निर्माण के पीछे है, उसका नाम परमेश्वर/God/परब्रह्म/भगवान है।  उस ने सारा संसार और पृथ्वी और उसके अंदर की हर एक चीज बनाई है. केवल प्राकृतिक क़ानून के अनुसार चलने वाली ऑटो मेटिक मशीन जैसा नही परन्तु अपने निर्णयों को स्वयं लेने वाले इंसानों को भी बनाया है।

अब मनुष्य को छोड़कर भगवान ने सबको जीवनक्रम चुनने का अधिकार और बुद्धि नहीं दिया है। मनुष्य को बुद्धि के साथ साथ स्वयं के जीवनक्रम और भाग्य का निर्माण करने की छूट भी दी है।

जब इतनी ज्यादा स्वतंत्रता और बुद्धिबल मनुष्य को मिला है, फ़िर भी मनुष्य आज दुःखी क्यों है?

मनुष्य वस्तुतः आनन्द(Ultimate happiness/blissful mind state) चाहता है। लेक़िन बस गलती यह कर रहा है कि इसे बाह्य वस्तुओं में ढूँढ़ रहा है। वस्तु से प्राप्त सुख क्षणिक है।

*उदाहरण - 1*- जिसके पास मारुति की वर्तमान में कार है, वो BMW या मर्सिडीज़ में सुख ढूढ़ रहा है, जिसके पास बाइक है वो मारुति कर में बैठे इंसान को सुखी समझ रहा है। जो साइकिल में है उसके लिए बाइक वाला सुखी है। जो पैदल है उसके लिए साइकिल वाला सुखी दिख रहा है। और जो लंगड़ा है उसकी नज़रों में जिनके पास पैर है वो सुखी हैं। वास्तव में कोई अपने पास वर्तमान संसाधन से सुखी नहीं है और दूसरों के पास जो अपनी हैसियत से ज्यादा वस्तुएं उसको भ्रम वश सुख मान रहा है। अगर साइकिक वाले को बाइक मिल जाये तो क्या वो सुखी हो जाएगा नहीं..फिंर वो कार पाने के लिए दुःखी होगा।

*उदाहरण -2* संसार में सुख को अनुभव करने के लिए पहले दुःखी होना पड़ता है। जितना बड़ा दुःख उसे पाने के बाद उतना बड़ा ही सुख। एक ठंडे शर्बत को पीकर स्वर्ग सा सुख धूप में कार्यरत मजदूर को मिलेगा, एयरकंडीशनर में बैठे साहब को नहीं। मजदूर का बच्चा साहब को बच्चे को सर्व सुखी मानता है, लेकिन क्या साहब का बच्चा सुखी है?

*उदाहरण 3*-  वस्तु की अधिकता भी दुःख का कारण बन जाती है। एक रसगुल्ला यदि सुख देगा तो वहीं 100 रसगुल्ले जबरन खिलाये जाएं तो दुःख देंगे।

इस सृष्टि को बनाने वाला और जीवन को देने वाला मनुष्य के भीतर है, और उसी के पास आनन्द का स्रोत है। आपकी समस्त शक्तियों के ख़ज़ाने की चाबी भी है।

प्रत्येक मनुष्य के जीवन का उद्देश्य अपने सृष्टि/जीवन के निर्माता को जानना और उस परमानन्द के स्रोत तक पहुंचना है जो भीतर है। मनुष्य के भीतर आनन्द के स्रोत के साथ साथ अतुलित शक्तियों का भंडार भरा हुआ है। जैसे एक बरगद के बीज के भीतर बड़े से बरगद का अस्तित्व छुपा है, वैसे ही मनुष्य के भीतर बीज रूप में जो देवत्व का पूर्ण वृक्ष छुपा है।

भीतर प्रवेश का एक ही मार्ग है - ध्यान। स्वयं को जानने का एक ही मार्ग है ध्यान। ध्यान लगाया नहीं जाता स्वतः लगता है, जैसे बीज से पौधा स्वतः निकलता है। अब इस ध्यान तक पहुंचने के लिए अनेक धारणाएं हैं। विभिन्न धर्म ग्रन्थों में जो ध्यान विधि सिखाई जाती है वो वस्तुतः ध्यान की धारणा सिखाई जाती है। मंजिल सबकी एक ही है स्वयं को जानना और स्वयं के निर्माता को जानना।

प्रत्येक जीवात्मा की यात्रा की मंजिल परमात्मा से मिलन और परमानन्द की प्राप्ति ही है। यही मंजिल ही जीवन उद्देश्य है।

संक्षेप में आत्म ज्ञान प्राप्ति जीवन लक्ष्य और लोककल्याण परम कर्तव्य है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday, 21 April 2019

कविता - आत्मियता विस्तार के बिना,* *हो सकता युगनिर्माण नहीं..* *भावसम्वेदना के जागरण बिना,* *हो सकता आत्मनिर्माण नहीं..*

*आत्मियता विस्तार के बिना,*
*हो सकता युगनिर्माण नहीं..*
*भावसम्वेदना के जागरण बिना,*
*हो सकता आत्मनिर्माण नहीं..*

माना हर कोई तुम्हारा रिश्तेदार नहीं,
सबसे तुम्हारी मित्रता और प्रेम व्यवहार नहीं,
फिर भी जब कभी तुम किसी से मिलना,
मुस्कुरा कर सबका अभिवादन करना,
क्योंकि बिना आत्मियता विस्तार के,
हो सकता युगनिर्माण नहीं।

ध्यान रखो कि...
आत्मियता विस्तार के बिना,
हो सकता युगनिर्माण नहीं..
भावसम्वेदना के जागरण बिना,
हो सकता आत्मनिर्माण नहीं..

रास्ते में जो किसी से मिलो तो,
हाल चाल पूंछने रुक जाना,
आत्मियता विस्तार की एक झलक,
उसको जरूर दिखला देना।

हो.. यदि दूर कोई पहचाना नजर आए तो,
दूर से ही तुम मुस्करा देना,
अभिवादन में मुस्कुराते हुए,
सिर्फ हाथ ही हवा में लहरा देना।

बस विश्वामित्र बनने की,
राह पर तुम चल देना,
स्वयं में देवत्व जगाने की,
राह पर तुम चल देना।

ध्यान रखो कि..
आत्मियता विस्तार के बिना,
हो सकता युगनिर्माण नहीं..
भावसम्वेदना के जागरण बिना,
हो सकता आत्मनिर्माण नहीं..

ज़िद्दी कभी मत बनना,
किसी बात पर मत अकड़ना,
खुले दिल से परिवर्तन स्वीकारना,
दूसरे के मनोभावों को भी समझना।

किसी की भूल जो है बंद पन्नो में,
उसको समाज में मत खोलना,
बुद्ध सी करूणा और मार्गदर्शन से,
सुधरने का उसे एक मौका जरूर देना।

बात छिड़े चुगली चपाटी की कहीं,
हंसकर उसको टाल देना,
मनुष्य है गलतियों का पुतला,
सुधरने का मौका सबको देना।

जो स्वयं को नुकसान पहुंचाए,
उसको माफ़ कर देना,
लेकिन जो संगठन-मिशन को नुकसान पहुंचाए,
उसे कभी माफ़ मत करना।

ध्यान रखो...
आत्मियता विस्तार के बिना,
हो सकता युगनिर्माण नहीं..
भावसम्वेदना के जागरण बिना,
हो सकता व्यक्तित्वनिर्माण नहीं..

आत्मियता के कैप्सूल में,
ज्ञानामृत की दवा भरकर देना,
कभी बिना भावसम्वेदना के,
कभी कठोर शब्दो मे ज्ञान मत परोसना।

कण कण में जब परमपिता को महसूस करोगे,
तभी मनुष्य मात्र में परमात्मा को देख सकोगे,
आत्मियता विस्तार तब ही संभव होगा,
जब अहंकार शून्य गुरुभक्त निर्मल मन होगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्वेता जी, आपके प्रश्नोंत्तर के लेख होते तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन सभी प्रश्नों के उत्तर में समाधान तौर पर गायत्रीमंन्त्र जप, ध्यान और स्वाध्याय होता ही है। ऐसा क्यों है जानना चाहता हूँ।*

प्रश्न - *श्वेता जी, आपके प्रश्नोंत्तर के लेख होते तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन सभी प्रश्नों के उत्तर में समाधान तौर पर गायत्रीमंन्त्र जप, ध्यान और स्वाध्याय होता ही है। ऐसा क्यों है जानना चाहता हूँ।*

उत्तर - आत्मीय भाई, गाड़ी आप किसी भी कम्पनी की खरीदें, कोई से भी मॉडल खरीदें, उसे चलाने के लिए पेट्रोलियम ईंधन तो चाहिए।

इसी तरह समस्या कोई भी हो, उसके समाधान हेतु शक्ति तो चाहिए। गायत्री मंत्र जप, ध्यान और स्वाध्याय से यह शक्ति उतपन्न होती है। इसी शक्ति के उपयोग से समाधान मिलता है।

*उदाहरण 1* - हम सभी के मन में दो विचारधारा रूपी अस्तित्व   हैं - एक वफ़ादार देवत्व युक्त और दूसरा नुकसानदेह असुरत्व युक्त है। 

गायत्री मंत्र जप , ध्यान, स्वाध्याय से देवत्वगुण वाली विचार धारा को शक्ति मिलेगी।

 गन्दे वीडियो, चुगली चपाटी, नशे इत्यादि कुकर्मों से असुरत्व युक्त विचार धारा को शक्ति मिलेगी।

 युद्ध मे वही पहलवान जीतेगा जिसे आप भोजन दोगे। अपने भीतर देवत्व जगाना है या असुरत्व, यह चयन तो आपको करना पड़ेगा, चयन के अनुसार परिणाम भी मिलेगा।

*उदाहरण 2* - अब मान लो आप कैरियर बनाना चाहते हैं, सुबह उठ कर पढ़ने का, घण्टों पढ़ने का सङ्कल्प लेते हैं। लेक़िन सुबह आपके भीतर असुरत्व और देवत्व विचारधारा के बीच युद्ध होगा। जो विजयी होगा वो आपका दिन तय करेगा। देवत्व जीता तो सुबह उठेंगे और दिनभर पढ़ेंगे, असुरत्व जीता तो सुबह उठ न पाएंगे और दिनभर पढ़ न पाएंगे।

*उदाहरण 3* - सुबह व्यायाम और आराम के बीच,   सेहतमंद भोजन और स्वादिष्ट भोजन के बीच भी जब आप चयन करने जाएंगे तो पुनः भीतर देवासुर संग्राम होगा। देव विचारधारा विजयी हुई तो व्यायाम और सेहतमंद भोजन चुनेंगें, स्वास्थ्य पाएंगे। असुर विचारधारा जीती तो सुबह आलस्य में समय गंवाएंगे, स्वादिष्ट मसालेदार भोजन करेंगे, परिणामस्वरूप रोगी बनेंगे।

🙏🏻दुनियां समस्त विचारक शुभसँकल्प लेकर जीवन लक्ष्य चुनने को बोलते हैं। लेक़िन यह शुभसँकल्प युक्त लक्ष्य तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक भीतर दैवीय शक्ति न हो।

वस्तुतः दैवीय शक्ति का स्रोत तो गायत्री मंत्र जप, ध्यान और स्वाध्याय ही है, जिससे उतपन्न शक्ति से सङ्कल्प बल मिलता है।  भावनाएं शुद्ध होती है और बुद्धिकुशलता मिलती है। साधक स्वयं अपने जीवन की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो जाता है।

गूगल करके गायत्रीमंत्र जप, ध्यान और स्वाध्याय के फायदे और मेडिकल रिसर्च देख सकते हैं।

सङ्कल्प बल की गाड़ी का ईंधन है, गायत्री मंन्त्र जप, ध्यान और स्वाध्याय। इस गाड़ी में बैठकर जहां चाहे वहाँ पहुंच सकते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *क्या लोग धर्म और तंत्र के नाम पर पागलपन का शिकार होते है? अपना होश खो बैठते हैं? यदि ऐसा कोई हो जाये तो उन्हें पुनः होश में कैसे लायें?*

प्रश्न - *क्या लोग धर्म और तंत्र के नाम पर पागलपन का शिकार होते है? अपना होश खो बैठते हैं? यदि ऐसा कोई हो जाये तो उन्हें पुनः होश में कैसे लायें?*

उत्तर - मनुष्य का दिमाग़ बड़ी अजीबोगरीब संरचना लिए हुए है, किसी भी मनुष्य के सबसे शक्तिशाली दिमाग़ को भी बेक़ाबू और पागल किया जाना आसानी से सम्भव है।

 जिस पर मनुष्य की अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास टिक जाए, वो उसके आगे दिमाग़ की दुकान बंद कर देता है। कुछ सोचने समझने की शक्ति खो देता है।

*उदाहरण* - यदि एक लड़के का पत्नी पर अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास हो तो पत्नी के भड़काने पर अपनी जन्मदेने वाली वृद्ध माता और जन्मदाता पिता के साथ मारपीट कर उन को बेदर्दी से वृद्धाश्रम छोड़ आते है या घर से निकाल देते हैं।

इसी तरह यदि इन लडकों की अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास माता-पिता पर हो तो दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने या जीवित जलाने में संकोच नहीं करते।

जब स्त्री प्रेमी पर अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास कर लेती है तो घर से भाग जाती है, प्रेमी को पाने के लिए पागलपन की किसी भी हद को पार कर सकती है।

जब यह अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास तांत्रिक को समर्पित होता है तो उल्टी सीधी हरक़त करने में अनपढ़ तो अनपढ़ पढ़े लिखे लोग  भी नहीं हिचकते।

जब यही अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास धार्मिक नेता पर, पीर मौलवी पर हो जाती है तो तीन तलाक़, हलाला, आतंकवाद, हत्या, लूटपाट जैसी अमानवीय आतंकी घटनाओं को करने से ये लोग नहीं झिझकते।

*Root Cause Analysis*:- अब अगर आप गौर से जड़ समझेंगे तो पाएंगे कि अंध श्रद्धा के पीछे मुख्य कारण उस व्यक्ति की कोई न कोई चाहत होती है, अब वो चाहत सांसारिक भी हो सकती है और स्वर्ग-मुक्ति की आध्यात्मिक चाहत भी हो सकती है। व्यक्ति जिस पर अंध श्रद्धा करता है वो किसी भी हालत में उसे नाराज़ नहीं करना चाहता। उसके हाथों की कठपुतली बन जाता है।

आप जेलों में अपराधियों/आतंकियों की प्रोफ़ाइल चेक कीजिये तो आप पाएंगे कई सारे तो बहोत पढ़े लिखे लोग हैं।

*आइये प्राचीन उदाहरण* - दुर्योधन और रावण का देखते हैं, वो बहुत ज्यादा पढ़े लिखे लोग और धर्म के ज्ञाता थे। रावण का अपनी माता के प्रति अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास और दुर्योधन का अपने मामा शकुनि के प्रति अंध श्रद्धा-प्रेम-विश्वास उनकी बुद्धि पर पर्दा डलवा देते है। मदान्ध करके पूरे समाज को कलंकित करने वाली दो घटनाएं सीता हरण और द्रौपदी चीर हरण जैसी घटनाओं को अंजाम दे डालते हैं।

*देखिए* - ब्रेन वाश तो आज़कल टीवी सीरियल मीडिया फ़िल्मे युवाओं का कर रहे हैं, उनपर अंध श्रद्धा का असर यह है कि आजकल की युवा लड़की फैशन के नाम पर अर्द्ध नग्न घूम रही है, युवा नशे का ज़हर नशों में भर रहे हैं।

आजकल आस्था चैनल और अन्य धार्मिक चैनल को कुछ ज्यादा ही सुनने वाले धार्मिक पागलपन का शिकार हो रहे हैं। इनमें परोसे जाने वाले कंटेंट को फ़िल्टर नहीं किया जाता। यह एक बहुत बड़ा खतरा है।

*तो बचाव क्या है?*- घर में धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक माहौल विनिर्मित करना। आध्यात्मिक और धार्मिक दोनों में अंतर करना बहुत आसान है, अध्यात्म दवा के फार्मूले की बात करता है यदि इन साल्ट का कम्पोज़िशन किसी भी ब्रांड की दवा में है तो अमुक बुखार रोग ठीक हो जाएगा। धर्म कम्पनी ब्रांड की तरह विज्ञापन करता है अमुक बुखार है तो हमारे ब्रांड की दवा से ही ठीक होगा।

बच्चा कोरे दिमाग़ को लेकर गर्भ मे आता है उसके दिमाग़ की सही प्रोग्रामिंग और ब्रेनवाशिंग वैज्ञानिक आध्यात्मिक संस्कारो और विचारों से हुई तो वह कभी पागलपन का शिकार न होगा। बच्चे के जीवन मे यह ब्रेन प्रोग्रामिंग माता-पिता, दादा-दादी या क्लोज रिश्तेदार, अध्यापक गण और वातावरण करता है।

*यदि कोई बड़ा हो गया है और धार्मिंक अंधविश्वास और पागलपन का शिकार है तो उसके लिए क्या करें?* - आपके हाथ में सिर्फ़ प्रयास है, उसे अच्छे विचार दें, साधक बनने हेतू प्रेरित करें। नित्य ध्यान और अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करवाएं। यदि वो आपकी बात मान लेता है तो बदलाव होगा और नहीं मानता, ध्यान-स्वाध्याय नहीं करेगा तो इस पागलपन से उबरना बड़ा मुश्किल है।

कुछ पुस्तकें ऐसे धार्मिक पागलपन से लोगों को उबार सकती है यदि कोई ढंग से पढ़ कर समझ ले:-

1- अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार
2- ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
3- योग के नाम पर मायाचार
4- क्या धर्म एक अफ़ीम की गोली है?
5- मैं क्या हूँ?
6- महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया
7- सतयुग की वापसी

ये सभी पुस्तक निम्नलिखित लिंक से फ्री डाउनलोड करके पढ़े:-

http://literature.awgp.org
http://www.vicharkrantibooks.org

भगवान कृष्ण ने लाखों को उबारा और ज्ञान दिया। लेकिन दुर्योधन ने उनको सुनने से ही इंकार कर दिया तो उसका उद्धार सम्भव न हो पाया।

भगवान का नाम लेकर प्रयास कीजिये। कर्म करिये फल की चिंता मत कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *दी, आजकल हम युवाओं के व्यक्तित्व इतने खंडित या अस्थिर क्यों है? व्यग्रता हम युवाओं में आम बात क्यों हो गयी है?*

प्रश्न - *दी, आजकल हम युवाओं के व्यक्तित्व इतने खंडित या अस्थिर क्यों है? व्यग्रता हम युवाओं में आम बात क्यों हो गयी है?*

उत्तर - आत्मीय बेटी, मनुष्य का व्यक्तित्व वस्तुतः मोटे तौर पर दो आधारस्तंभ पर खड़ा हैं, उसकी भावनाएं(हृदय) और उसकी बुद्धिकुशलता(दिमाग़)। यह दो निर्णय करते हैं कि मनुष्य का व्यक्तित्व कैसा होगा।

बुद्धिकुशलता भी चार स्तम्भ पर खड़ी है - मन , बुद्धि, चित्त और अहंकार

*सूचनाओं(इन्फॉर्मेशन) का एकत्रीकरण दिमाग़ में बुद्धिमानी नहीं कहलाता। गूगल हाथ में लेकर 10 साल का बच्चा अब पीएचडी धारक को इन्फॉर्मेशन बोलने बताने में पीछे धकेल सकता है। युवा बस यहीं गलती करता है, ज्यादा इन्फॉर्मेशन होने को बुद्धिमानी समझ लेता है।*

*सूचनाओं को उपयोग करने की कला बुद्धिकुशलता कहलाती है, जो अभ्यास और अनुभव से सीखा जाता है। आपने गूगल से सारी जानकारी ले ली कि गॉल ब्लैडर का ऑपेरशन कैसे होता है? लेक़िन ऑपेरशन किसी मेडिकल कॉलेज में योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करके सीखना पड़ेगा। तब जानकारी + अनुभव + अभ्यास बुद्धिकुशलता कहलाएगी।*

समस्या यह है, कि मनुष्य की भावनाओं में समुद्र की तरह ज्वार भाटे आते रहते हैं। एक पल में प्रेम दो दूसरे पल घृणा, एक पल में सहानुभूति और दूसरे पल में क्रोध इत्यादि भावनाओं का ज्वार भाटा परेशान करता है। कोई एक भाव स्थिर नहीं रहता। युवा बहुत कुछ करना चाहता है, तो अस्थिरता और ज्यादा स्वभाविक है।

दूसरी तरफ़ विचार बादलों की तरह मन के आसमान में आवागमन करते हैं। कभी घनघोर घटा तो कभी आसमान साफ तो कभी छूट पुट बादल चलते रहते हैं। लक्ष्य नहीं बना तो बादल घूम तो रहे हैं लेकिन बरस नहीं रहे। उसका कोई आउटकम नहीं आ रहा है।

दो अस्थिर और अनिश्चित स्तम्भ पर खड़ा व्यक्तित्व कैसे स्थिर होगा भला? भटकन तो स्वभाविक है। चित्त की अस्थिरता स्वभाविक है।

अब व्यक्ति बाबा जी लोगों के पास जाता है, और दोनों को स्थिर करने का कोई चमत्कार चाहता है। उल्टे पुल्टे उपायों से भावनात्मक और वैचारिक स्थिरता तो मिलती नहीं अपितु अस्थिरता और बढ़ जाती है।

जिन्होंने विज्ञान पढ़ा है, वो जल चक्र को अच्छी तर्ज जानते हैं। समुद्र का जल सूर्य की गर्मी से वाष्प बनता है, वही बादल बनकर बरसता है, पुनः वही जल नदियों से होते हुए समुद्र तक पहुंचता है।

इसी तरह भावनाएं ही गर्म होकर विचार बनते हैं, विचारों के बादल बरस कर पुनः भावनाओं को उद्वेलित करते हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं हैं। स्मृतियां जलाशय और नदियां हैं, जिन्हें विचारों और अनुभवों से भरा जाता है।

व्यक्तित्व को खंडित/डूबने से बचाने के लिए *एक दृढ़ संकल्पित लक्ष्य का जहाज़ चाहिए*।  जो भावनाओ की लहरों के बीच भी लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सके।

बेटा, न आप युवाओं को समुद्र के जल को शांत करना है और न ही बादल को बनने से रोकना है। आपको केवल अपने जहाज़ को चलाने की कुशलता हासिल करनी है और लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है। इस जहाज को चलाने की योग्यता गायत्री जप,ध्यान और स्वाध्याय देगा। यह जहाज किस लक्ष्य की ओर अग्रसर होगा यह तय आपको करना है। जहाज़ को लक्ष्य की दिशा नहीं दोगे तो वो समुद्र में भटकेगा ही।

लक्ष्यविहीनता युवा जीवन का अभिशाप है। लक्ष्य निर्धारण युवा जीवन का वरदान है।

सकल पदारथ है जग माहीं,
लक्ष्यविहीन कर्महीन नर पावत नाहीं।
सकल पदारथ उपभोग वो करता है,
जो जीवनलक्ष्य निर्धारित करके कर्म करता है।

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है, बस उसे यह क्लियर होना चाहिए कि उसे कैसा भाग्य  चाहिए, और उसे कैसे  निर्माण करना है? और यह भाग्य निर्माण कब तक पूरा करना है? भाग्य निर्माण में What, When और How क्लियर है, और भाग्य निर्माण में जुट जाओ तो फिर व्यग्रता शेष नहीं रहती। फ़िर तो भावनाएं, विचारणाये और कर्म कौशल एक दिशा में केंद्रित होकर सृजन करते है जिससे  शानदार व्यवस्थित व्यक्तित्व का निर्माण होता  है।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday, 19 April 2019

प्रश्न - *गाय की पूजा क्यों की जाती है? और इसका उद्देश्य क्या है, क्या महत्व है? गौ और गायत्री का सम्बंध क्या है? गौ पूजा से हमें क्या लाभ मिलता है? वर्तमान शहरी युवा जो फ्लैट सिस्टम में रहते हैं, वो किस प्रकार गौ सेवा करें? मैं जिस शहर में जॉब करता हूँ और जिस सोसायटी में रहता हूँ यहां आसपास गाय दिखती नहीं है? परमपूज्य गुरूदेव गौ सेवा के बारे में क्या कहते थे?*

प्रश्न - *गाय की पूजा क्यों की जाती है? और इसका उद्देश्य क्या है, क्या महत्व है? गौ और गायत्री का सम्बंध क्या है? गौ पूजा से हमें क्या लाभ मिलता है? वर्तमान शहरी युवा जो फ्लैट सिस्टम में रहते हैं, वो किस प्रकार गौ सेवा करें? मैं जिस शहर में जॉब करता हूँ और जिस सोसायटी में रहता हूँ यहां आसपास गाय दिखती नहीं है? परमपूज्य गुरूदेव गौ सेवा के बारे में क्या कहते थे?*

उत्तर - आत्मीय भाई,
🐮🐮🐮🐮🐮🐮
👉🏼 भारतीय संस्कृति का भवन चार स्तम्भ पर खड़ा है - गौ, गंगा, गीता और गायत्री।

*गौ(गाय)*-  यह महज पशु नहीं है। यह गौ माता हैं -आध्यात्मिक सम्पदा के स्रोत के साथ साथ आर्थिक सम्पदा का आधार हैं, औषधीय गुणों से भरपूर स्वास्थ्य रक्षक दूध है। कृषि प्रधान देश की आत्मा *गाय* है। इसका दूध, दही, मूत्र, गोबर सबकुछ उपयोगी है।

*गंगा* - यह महज नदी नहीं है- आध्यात्मिक सम्पदा के स्रोत के साथ साथ आर्थिक सम्पदा का आधार हैं, औषधीय गुणों से भरपूर स्वास्थ्य रक्षक जल है। भारतीय भूभाग को उपजाऊ बनाती है। बड़े शहर इसके किनारे बसे हैं।

*गीता* - यह महज पुस्तक नहीं है- आध्यात्मिक सम्पदा के स्रोत के साथ साथ विश्व की सबसे बड़ी प्रबंधन(Management) पुस्तक है। जो जीवन प्रबंधन, व्यवसाय प्रबंधन, अर्थ प्रबंधन, परिवार प्रबंधन, आध्यात्म में ज्ञान-भक्ति-सांख्य सभी का प्रबन्ध सिखाती है। यह वेदों का सार है। जो गीता नित्य पढ़ता है, उसे कोर्ट जाकर गीता पर हाथ रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वह कभी झमेले में नहीं पड़ता।

*गायत्री* - यह महज देवी नहीं है- बौद्धिक और आध्यात्मिक सम्पदा के स्रोत के साथ साथ समस्त मनोकामना पूरी करने वाली कलियुग की कामधेनु है। औषधीय गुणों से भरपूर गायत्री मंत्र है, जो रोगनाशक, इम्युनिटी बढाने वाला, पुष्टिवर्धक, बौद्धिक कुशलता बढ़ाने वाला है। इसपर AIIMS के डॉक्टर ने रिसर्च भी किया है।

ये चारों एक दूसरे से अटूट सम्बन्ध रखते है। मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग अवतरण के लिए यह चारों ही चाहिए। यह अध्यात्म के चार मुख्य मार्ग हैं, इनमें से यदि एक को भी साध लिया तो भी आत्मोत्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है।

👉🏼 *गौ सेवा का महत्त्व* - गौ पूजा के कई घटनाएं गर्न्थो में भरे पड़े हैं। हम एक प्राचीन और दो वर्तमान कलियुग की घटना बता रहे हैं।

प्राचीन समय में राजा दिलीप ने कपिला गौ सेवा करके सन्तान प्राप्ति के साथ साथ ऋद्धियाँ सिद्धियां पाई थी।

वर्तमान में *प्रसिद्ध देश भक्त और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव गोविंद रानाडे* का जन्म गौ सेवा के फलस्वरूप हुआ था। उनके माता-पिता वृद्ध हो चले थे, निःसन्तान होने की वजह से दुःखी थे। एक सन्त ने उन्हें बछड़े सहित काली गौ माता की सेवा करने की सलाह दी। वो गौ माता को साबुत गेहूँ खिलाते, गोबर में जो गेहूं निकलता उसे धोकर, सुखाकर और पीस कर आटा बनाते और पति पत्नी छह मास तक वही रोटियां खाते रहे, उसी गाय का दूध, दही, छाछ, मक्खन खाते। तीनों संध्या में गायत्री जपते रहे। सुबह खाली पेट पति-पत्नी दोनों तीन चम्मच गौ अर्क लेते थे। गौ के गोबर की समिधा से और उसी गाय के दूध से बने घी से नित्य यज्ञ करते रहे। दोनों बांझपन दूर हुआ और उन्होंने तेजस्वी बालक *महादेव रानाडे* को जन्म दिया। कोई भी निःसन्तान दम्पत्ति इस उपाय से सन्तान वर्तमान समय मे भी पा सकता है।

युगऋषि गुरूदेव ने *गायत्री की सिद्धि के लिए* गायत्री अनुष्ठान के साथ साथ गौ सेवा की थी। गाय को साबुत *जौ* खिलाते, उसके गोबर से *जौ* छानकर, धोकर, सुखाकर और उसे पीसकर वन्दनीया माता जी रोटी बनाती। युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव 24 वर्षो तक 24-24 लाख के गायत्री मंत्र महापुरुश्चरण के दौरान उसी जौ की रोटी और उसी गाय के दूध के छाछ का सेवन करते रहे। नित्य यज्ञादि गौ घृत से करते रहे। अष्ट सिद्धि और नवनिधि को प्राप्त किया। असंभव भी संभव कर सके। 3200 से अधिक पुस्तको का विविध विषयों पर लेखन किया, युगनिर्माण योजना  और विचारक्रांति अभियान को शुरू किया।

कोई भी व्यक्ति एक वर्ष तक 66 माला रोज गायत्री जप, गौ सेवा करते हुए गौ को साबुत जौ या गेहूँ खिलाकर उसकी रोटी ख़ाकर अनुष्ठान पूरा करे। इसके प्रभाव को स्वयं अनुभव कर सकता है।

👉🏼 किसी भी व्यक्ति की कुंडली में दोष हो या घर में पितृ दोष हो, तो वो गौशाला में एक घण्टे नित्य सेवा दें, चना और गुड़ गौ माता को खिलाये। देशी गाय के गोबर की समिधा(उपले) में हवन सामग्री, गुड़, देशी गाय का घी मिलाकर 40 दिन तक नित्य 24 गायत्री मन्त्रों और 11 महामृत्युंजय मंत्र से आहुति दे तो समस्त दोषों का नाश होता है।

👉🏼 सामान्य रोगी या असाध्य बीमारियों से ग्रसित रोगी स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह खाली पेट तीन चम्मच गौ अर्क(गौ मूत्र) गंगा जल के साथ पियें, नित्य 3 माला गायत्री मंन्त्र का जप, 1 माला महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।गौशाला में एक घण्टे नित्य सेवा दें, चना और गुड़ गौ माता को खिलाये। देशी गाय के गोबर की समिधा(उपले) में  औषधीय हवन सामग्री, गुड़, देशी गाय का घी मिलाकर 40 दिन तक नित्य 24 गायत्री मन्त्रों और 11 महामृत्युंजय मंत्र से आहुति दे तो समस्त रोगों का नाश होता है।

👉🏼 भारतीय आयुर्वेद तो गौ अर्क का सदियों से चिकित्सा में प्रयोग करता रहा है। लेकिन पाश्चत्य देश में  गौ मूत्र के रोगनाशक क्षमता और बीमारियों में इसके उपयोग करने हेतु 5 पेटेंट अमेरिका और 1 पेटेंट चाइना के पास है।

👉🏼 गौ मूत्र और गोबर से तैयार अमृत मिट्टी और अमृत जल तो कृषि के लिए वरदान हैं।
http://www.amrutkrushi.com/amrut%20jal.html

👉🏼 देशी गाय का दूध समस्त औषधिय गुणवत्ता युक्त अमृत है, जिसे आधुनिक भाषा मे A2 कहा जाता है। A2 दूध को पचाना ज्यादा आसान होता है। गूगल में SE दूध सर्च करके फायदे जान लें।

👉🏼 गौ के ज्ञान विज्ञान के लिए यह वीडियो देखे:- https://youtu.be/-TleWRT6Bbw

👉🏼 गौ सेवा से आध्यात्मिक लाभ सम्बन्धी यह आर्टिकल पढो-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1959/March/v2.12

👉🏼 कृषि समस्या, स्वास्थ्य समस्या और जीवन को समस्याओं एक समाधान गौ पालन है।

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तुम्हारे जैसा युवा लड़का जो HR Manager बड़ी बंगलोर की मलटीनेशनल कम्पनी में जॉब करता है। कॉरपोरेट में लोग जहां शराब-शवाब से ज्यादा कुछ सोचते नहीं। ऐसे कीचड़ में तुम कमल हो, जो इन सबसे ऊपर उठकर गौ सेवा को समझना चाहता है। तुम एक श्रेष्ठ आत्मा हो, तुम्हें मेरा प्रणाम।

🐮 आसपास प्रत्येक शहर में गौशाला है। जैसे मन्दिर जाते हो वैसे महीने में एक बार गौ शाला जाओ। समयदान करो और उन्हें चारा दान करो।

🐮 एक सोसायटी के भावनाशील एकजुट होकर 20-25 लोग गौ सेवा फंड बनाओ। उसमें अंशदान करो, फिंर नज़दीकी गांव में एक या दो फ़ैमिली को रोजगार दो और गौपालन करवाओ। उसका घी और दूध अपनी सोसायटी के सदस्यों तक पहुंचाओ। ऐसा रोल मॉडल बनाओ कि सब लाभान्वित हों।

🐮 एक गांव गोद लेकर अमृत मिट्टी और अमृत जल से ऑर्गेनिक खेती करवाओ। फिंर उस अनाज को अपनी सोसायटी कर लोगों को खाने हेतु उपलब्ध करवाओ।

🐮 गौ चिकित्सा केंद्र भी खुलवा सकते हो, मशीनें लगवाकर गौ अर्क इत्यादि गो मेडिसिन, गौ समिधा इत्यादि उपलब्ध करवा सकते हो।

🐮 गौ सेवा के साथ देश सेवा हो जाएगी। गौ माता के साथ भारत माता की भी कृपा मिलेगी। संगठन में शक्ति है।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 17 April 2019

मंन्त्र संग्रह - 24 देवताओं के 24गायत्री मंन्त्र सहित*

📖🌺 *मंन्त्र संग्रह - 24 देवताओं के 24 गायत्री मंन्त्र सहित* 🌺📖

यह लेख यज्ञ पुरोहितों के लिए मंन्त्र की गहरी समझ विकसित करने, शब्द संरचना और संस्कृत-हिंदी अर्थ के साथ लिखा गया है। जिससे यज्ञ के दौरान लोगों की जिज्ञासा शांत कर सकें।।

मंन्त्र यदि शरीर हैं तो श्रद्धा-विश्वास युक्त भावना उसका प्राण है। कितना भी कमजोर मंन्त्र हो यदि दृढ़ श्रद्धा-विश्वास युक्त भावना से जपा जाए तो फ़लित होगा। कितना भी श्रेष्ठ मंन्त्र हो यदि बिना श्रद्धा-अविश्वास युक्त बिना भावना के जपा जाएगा।वो निष्प्राण और अप्रभावी होगा।

सोने पर सुहागा तब होगा, शक्ति भण्डार तब मिलेगा जब शक्तिशाली मंन्त्र पूर्ण श्रद्धा-विश्वास युक्त भावना से जपा जाएगा।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
👉🏼 *गायत्री मंत्र* - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।*

भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

👉🏼 *महामृत्युंजय मंत्र* - *ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।*
*उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*

भावार्थ - हे त्रिनेत्रधारी महादेव, आपकी कृपा से हम भी त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं, दो नेत्रों से बाह्य दृष्टि विकसित करें और  तीसरे नेत्र से विवेकदृष्टि/अन्तः दृष्टि विकसित करें। त्रिगुणात्मक सृष्टि के प्रति गहरी समझ विकसित करें, हे महादेव आपकी कृपा से जीवन हमारा मधुर और परिपूर्णता को पोषित करता हुआ और वृद्धि करता हुआ हो। ककड़ी की तरह, एक फल की तरह हम मृत्यु के समय इसके तने रूपी शरीर से अलग ("मुक्त") हों, और आत्मता की अमरता और शरीर की नश्वरता का हमें सदा भान रहे। मृत्यु से अमरत्व की ओर गमन करें।

👉🏼 *महाकाली बीज मंन्त्र* -
ॐ भूर्भुवः स्वः  क्लीं क्लीं क्लीं  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् क्लीं क्लीं क्लीं ॐ

👉🏼 *प्रखर प्रज्ञा श्री सद्गुरु मंन्त्र*-
ॐ प्रखरप्रज्ञाय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।
👉🏼 *सजल श्रद्धा माँ भगवती मंन्त्र*-
ॐ सजलश्रद्धाय विद्महे महाशक्तयै धीमहि। तन्नो भगवती प्रचोदयात्।

जिस देवता की जो गायत्री है उसका दशांश जप गायत्री मन्त्र साधना के साथ करना चाहिए। देवताओं की गायत्रियां वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएं है, जो तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूलवृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेले देव गायत्री भी निष्प्राण होती है, उसका जप महागायत्री (गायत्री मन्त्र) के साथ ही करना चाहिए।

चौबीस देवताओं के गायत्री मन्त्र
१. *गणेश गायत्री*—ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

२. *नृसिंह गायत्री*—ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।

३. *विष्णु गायत्री*—ॐ त्रैलोक्यमोहनाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

४. *शिव गायत्री*—ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

या

ॐ पञ्चवक्तत्राय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।


५. *कृष्ण गायत्री*—ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

६. *राधा गायत्री*–ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि। तन्नो राधा प्रचोदयात्।

७. *लक्ष्मी गायत्री*–ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे  विष्णुप्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

८. *अग्नि गायत्री*–ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्नि: प्रचोदयात्।

९. *इन्द्र गायत्री*–ॐ सहस्त्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।

१०. *सरस्वती गायत्री*–ॐ सरस्वत्यै विद्महे ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।

११. *दुर्गा गायत्री*–ॐ गिरिजायै विद्महे शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

१२. *हनुमान गायत्री*–ॐ अांजनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि।  तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

१३. *पृथ्वी गायत्री*–ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे सहस्त्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्।

१४. *सूर्य गायत्री*–ॐ आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

या

*सूर्य गायत्री*–ॐ भाष्कराये विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।


१५. *राम गायत्री*–ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो राम: प्रचोदयात्।

१६. *सीता गायत्री*–ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।

१७. *चन्द्र गायत्री*–ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्त्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।

१८. *यम गायत्री*–ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो यम: प्रचोदयात्।

१९. *ब्रह्मा गायत्री*–ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारुढ़ाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

२०. *वरुण गायत्री*–ॐ जलबिम्वाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुण: प्रचोदयात्।

२१. *नारायण गायत्री*–ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।

२२. *हयग्रीव गायत्री*–ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हयग्रीव: प्रचोदयात्।

२३. *हंस गायत्री*–ॐ परमहंसाय विद्महे महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।

२४. *तुलसी गायत्री*–ॐ श्रीतुलस्यै विद्महे विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

25 - *गुरुदेव गायत्री* - ॐ प्रखरप्रज्ञाय विद्महे, महाकालाय धीमहि। तन्नो श्रीराम: प्रचोदयात्।

26- *माता वंदनीया गायत्री* - ॐ सजलश्रद्धाय विद्महे, महाशक्तयै धीमहि। तन्नो माताभगवती प्रचोदयात् ।

गायत्री साधना का प्रभाव तत्काल होता है जिससे साधक को आत्मबल प्राप्त होता है और मानसिक कष्ट में तुरन्त शान्ति मिलती है। इस महामन्त्र के प्रभाव से आत्मा में सतोगुण बढ़ता है।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

👉🏼 *रहस्य* - देवताओं के गायत्री मंत्र बनाने के लिए सम्बन्धित देवता के दो या तीन नाम लिए जाते हैं। *उदाहरण विष्णु जी के नाम* - नारायण, वासुदेवाय, विष्णु

अब इसे क्रमशः ॐ, विद्महे, धीमहि, तन्नो, प्रचोदयात के बीच मे जोड़ा जाएगा।

ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *नारायण:* प्रचोदयात

या

ॐ *नारायणाय* विद्महे, *वासुदेवाय* धीमहि, तन्नो *विष्णु:* प्रचोदयात

👉🏼 *ॐ* - सर्वशक्तिमान कण कण में व्यापत परमात्मा
👉🏼 *विद्महे(विद + महे)* - विद्  अर्थात जानते हैं व उनकी उपस्थिति मानते हैं।
👉🏼 *धीमहि(धी + महि)* - धी - अर्थात बुद्धि, मन । महि अर्थात ध्यान। तो अर्थ हुआ हम उनका मन में ध्यान करते है, बुद्धि में आह्वाहन करते हैं।
👉🏼 *तन्नो* - वह हमारे लिए
👉🏼 *प्रचोदयात* - प्रकाशित करें, प्रेरणा दें, बुद्धि को प्रेरित करें।

*नारायण गायत्री मंत्र का अर्थ हुआ* - हम नारायण को सर्वशक्तिमान जानते और मानते हैं। ऐसे सर्वशक्तिमान नारायण वासुदेव का हम मन में ध्यान करते हैं। नारायण हमारी बुद्धि को प्रेरणा दें और सन्मार्ग को बढ़ाने हेतु उसका पथ प्रदर्शन करें।

ऐसे ही समस्त देवताओं के मन्त्रों का अर्थ होगा।

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👉🏼 *बीज मंन्त्र* - जैसा की इसके नाम से स्पष्ट है कि यह बड़े मंन्त्र का बीज (सूक्ष्म) स्वरूप है। यदि खाना हो तो हम सेव का फल खरीद कर खाते हैं, लेक़िन यदि खेती करनी हो तो हम बीज लेकर आएंगे और उसे बोएंगे।

इसी तरह नित्य साधना हेतु, मनोकामना और कृपा प्रप्ति के लिए मंन्त्र जपे जातें हैं। लेक़िन यदि सम्बन्धित देवता के देवत्व को स्वयं में एकाकार करना हो तो उनके बीज मंन्त्र की जरूरत पड़ती है। इनके मंन्त्र जप में सावधानी खेती की तरह बरतनी पड़ती है। निश्चित समय औऱ संख्या में अनुष्ठान करने पर ही इनका फल मिलता है। बीज बिना मिट्टी और अन्य सहायता के पनप नहीं सकता। इसी तरह बीज मंन्त्र किसी मंन्त्र की सहायता से ही जपे जा सकते हैं। बीज का वही अर्थ है जो उस देवता का है जिस देवता का बीज मंन्त्र है।

उदाहरण -
*माँ महाकाली का बीज मंत्र* :-
जीवन से सभी भय , ऊपरी बाधाओं , शत्रुओं के छूटकारा दिलाने में माँ काली के बीज मंत्र द्वारा उनकी आराधना विशेष रूप से लाभ प्रदान करने वाली है | माँ काली का बीज मंत्र है : ” क्लीं ” |

*उदाहरण* - ॐ भूर्भुवः स्वः  *क्लीं क्लीं क्लीं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *क्लीं क्लीं क्लीं* ॐ

👉🏼 *देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र* :-
देवी लक्ष्मी को स्वाभाव से चंचल माना गया है इसलिए वे अधिक समय के लिए एक स्थान पर नहीं रूकती | घर में धन-सम्पति की वृद्धि हेतु माँ लक्ष्मी के इस बीज मंत्र द्वारा आराधना से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | देवी लक्ष्मी का बीज मंत्र है : ” श्रीं ”  |

*उदाहरण* - ॐ भूर्भुवः स्वः *श्रीं श्रीं  श्रीं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *श्रीं श्रीं  श्रीं* ॐ

👉🏼 *देवी सरस्वती का बीज मंत्र* : –
माँ सरस्वती विद्या को देने वाली देवी है जिनका बीज मंत्र ” ऐं ” है | परीक्षा में सफलता के लिए व हर प्रकार के बौद्धिक कार्यों में सफलता हेतु माँ सरस्वती के इस बीज मंत्र/Beej Mantra का जप प्रभावी सिद्ध होता है |

उदाहरण - ॐ भूर्भुवः स्वः *ऐं ऐं ऐं*  तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् *ऐं ऐं ऐं* ॐ

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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