Tuesday, 27 July 2021

आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या का जीवन परिचय

 आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या का जीवन परिचय


युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव के वंशज एवं उनकी आध्यात्मिक धरोहर एवं उनके कार्यो को आगे बढ़ाने के लिए संकल्पित।


आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या नाम सुनते ही मन में एक आदर्श युवा की छवि उभरती है, एक ऐसा युवा जो ब्रिटेन जैसे शाही देश में  डॉक्टर की सर्विस त्यागकर अपनी मातृभूमि की सेवा के भाव से पुनः देश लौटे। 2010 से लगातार देव संस्कृति विश्वविद्यालय में प्रतिकुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है, साथ-साथ राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर की कई नामी सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे है।


वर्त्तमान में डॉ चिन्मय पंड्या अध्यात्म के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर नोबेल पुरस्कार के समकक्ष टेम्पल्टन पुरस्कार की ज्यूरी के मेंबर भी है, जो कि समूचे भारतवर्ष के लिए गर्व और गौरव की बात है क्योंकि पहले भारतीय है जो इस पुरस्कार की चयन समिति के सदस्य है। "युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी" एवं "वन्दनीया भगवती देवी शर्मा माता जी" की प्रिय पुत्री "श्रद्धेया शैल जीजी" इनकी माता हैं और वर्तमान में अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख "श्रद्धेय डॉ प्रणव पंड्या जी" इनके पिता हैं। करोड़ों गायत्री परिजनों के आस्था के केंद्र युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ  पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी व माता भगवती देवी शर्मा की गोदी में खेलने का सौभाग्य बचपन में इन्हें प्राप्त हुआ।


 करिश्माई व्यक्तित्व के धनी आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या भारतीय संस्कृति को वर्तमान की तमाम समस्याओं के समाधान के रूप में देखते है। इनके ओजस्वी भाषण सुनने को हर कोई लालायित रहता है। यह अपने धाराप्रवाह उद्बोधन से श्रोताओं को भीतर से झकझोरकर सकारात्मक दिशा में सोचने को मजबूर कर देते है। भारतीय वेशभूषा धोती-कुर्ते  व खड़ाऊ धारण किये डॉ पंड्या बेहद विनम्र स्वभाव के धनी है।


देव संस्कृति विश्वविद्यालय को परिवार की भांति संचालित करके डॉ पंड्या प्रतिकुलपति  के साथ अभिभावक की भूमिका का निर्वहन कर रहे है। इसी का नतीज़ा है कि विद्यार्थी प्यार से इन्हें भैया भी कहते है। यहाँ वर्तमान में अध्ययनरत हो या पुराना कोई भी विद्यार्थी सहजतापूर्वक इनसे मिल सकता है। नित्य नये प्रयोग करने का स्वभाव  इनके व्यक्तित्व में चार चांद लगाता है।


प्रत्येक पुरुषार्थी व समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जन जन की सेवारत युवा इनसे मार्गदर्शन लेते हैं। परम्पपूजय गुरुदेव के प्यार की प्यार व सेवा का जो व्यक्तित्व लोगों ने सुना होगा उसकी झलक झांकी हमें आदरणीय चिन्मय भैया में देखने को मिलती है। उनसे मिलने वाले आध्यात्मिक हो या साधारण जन एक दिव्यता व ऊर्जा का अनुभव अवश्य करते हैं। युगऋषि के ज्ञान व माता वन्दनियाँ के प्यार की झलक उनमें मिलती है।


बेहद कम समय में डॉ पंड्या ने काफी ऊँचे मुकाम हासिल किये है। इसलिए कुछ लोगो का इनसे ईर्ष्या करना भी स्वभाविक है।

संयुक्त राष्ट्र संगठन यूएनओ द्वारा विश्व शांति के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक आध्यात्मिक मंच के निदेशक के साथ ही इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशन के परिषद् सदस्य जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभा रहे हैं।


बीते साल ब्रिटेन रॉयल मेथोडिस्ट हॉल में फेथ इन लीडरशिप संस्थान द्वारा विभिन्न धर्मों के आपसी सद्भाव विषय पर डॉ पंड्या ने अपने विचार रखे, जिसमें प्रिंस चार्ल्स, कैंटरबरी के आर्कबिशप, यहूदियों के मुख्य आचार्य, ब्रिटेन के गृहमंत्री एवं प्रधानमंत्री कार्यालय के समस्त पदाधिकारी उपस्थित थे। डॉ पंड्या के विचार से प्रभावित होकर उन्हें दूसरे दिन हाउस ऑफ लॉर्डस में अपने विचार व्यक्त करने को आमंत्रित किया गया।


आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी ने दो साल पूर्व इथोपिया में आयोजित यूनेस्को के सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। नतीज़न योग को वैश्विक धरोहर का दर्जा मिला। इसी साल वियना में हुए संयुक्त राष्ट्र धर्म सम्मेलन में डॉ पंड्या ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनके वक्तव्य से प्रभावित होकर पाकिस्तानी धर्म गुरुओं ने उन्हें पाकिस्तान आने का न्यौता दिया।

ऐसी उपलब्धियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है, जो उनके प्रखर व्यक्तित्व की वैश्विक छाप को दर्शाती है। इनकी अब तक की जीवन यात्रा को देखकर लगता है आने वाले दिनों में ये कामयाबी कई बड़े कीर्तिमान स्थापित करने वाले है।

श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या का जीवन परिचय

 प्रखर प्रज्ञा के प्रखर शिष्य - श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या


कहते हैं, प्रत्येक आत्मा पूर्व जन्म के संस्कार और ज्ञान लेकर जन्म लेती है। पूर्व जन्म का गुरु वर्तमान जन्म में भी उत्तराधिकारी शिष्य को स्वयंमेव ढूढ़ता है, पुनः तराशता निखारता है।


महाअवतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को, ठाकुर रामकृष्ण ने विवेकानंद को और दादा गुरु सर्वेश्वरानन्द ने युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी को स्वयंमेव सम्पर्क किया था। इसी क्रम में बालक अवस्था में श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या को परम् पूज्य गुरुदेव ने स्वयं बचपन से सम्पर्क किया व उनकी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ की। उन्हें प्राण दीक्षा दी, उन्हें भावी युगनिर्माण को सम्हालने हेतु गढ़ा।


कार्डियोलॉजी चिकित्सक से आध्यात्मिक चिकित्सक बनने हेतु आदेश दिया। सांसारिक सुख सुविधा युक्त जीवन छोड़कर आध्यात्मिक संघर्ष से भरा जीवन जीने हेतु दिशा निर्देश दिए। 


अपनी पुत्री श्रद्धेया शैल जीजी का विवाह श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी से करवाया और उन दोनों को मिशन हेतु जीवन समर्पित करने हेतु आदेश किया। दोनो ने गुरु आदेश शिरोधार्य किया। निज पुत्र आदरणीय डॉक्टर चिन्मय भैया को भी मिशन हेतु जीवन समर्पित करने हेतु निर्देश दिया।


अर्जुन की तरह "करिष्ये वचनम तव" कह के स्वयं के जीवन का सारथी परम पूज्य गुरुदेव को बना लिया। जो गुरु का आदेश वही मेरा जीवन लक्ष्य कहकर  युगनिर्माण में, सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम को जन जन तक पहुंचाने में जुट गए।


जब श्रद्धेय शांतिकुंज में रहने के लिए गुरु आदेश से आये तो उन्हें लेने आये कुछ भाइयों को उनके व्यक्तित्व और गुरुदेव का अपने प्रिय शिष्य डॉक्टर प्रणव पर स्नेह पसन्द नहीं आया। उन भाइयों ने डॉक्टर प्रणव पंड्या से कहा आ तो गए हो लेक़िन हम तुम्हे यहां टिकने नहीं देंगे। क्योंकि जैसे दो भाई आपस मे पिता के प्रेम हेतु लड़ते हैं वही अक्सर शिष्यों के बीच भी गुरु के प्रेम हेतु युद्ध होता है। उन गुरु भाइयों ने तब से लेकर अब तक अनवरत षड्यंत्र कर प्रयास किये, तरह तरह के व्यवधान व रोड़े अटकाए। लेक़िन श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या अनवरत गुरुमार्ग पर चलते रहे व गुरु अनुशासन को पालते रहे।


जब एक बार उनका भयंकर एक्सीडेंट हुआ व उनके बचने की सम्भवना न थी, तो डॉक्टर प्रणव पंड्या जी के जीवनदान की प्रार्थना लेकर श्रद्धेया शैल जीजी गुरु एवं माता पिता युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव के समक्ष पहुंची। तब माता जी व गुरुदेव ने कहा बेटी तेरे पति की आयु समाप्त हो चुकी है, अब यदि इसे पुनः जीवनदान मिलेगा तो यह गृहस्थ नहीं रह सकेगा, इसे गृहस्थ आश्रम में सन्यास लेना होगा और अब इसका जीवन मिशन व ईश्वरीय कार्य हेतु ही होगा। तब जीजी ने वहां सूक्ष्म शरीर धारी दिव्य ऋषियों की उपस्थिति वहां अनुभव की । श्रद्धेया जीजी ने सहमति जताई, मुझे स्वीकार है कि मेरे पति आज से केवल आपके शिष्य व मिशन हेतु समर्पित हों। वही हुआ नए जीवनदान के बाद श्रद्धेय डॉक्टर साहब मिशन हेतु समर्पित हो गए।


एक बार देवरहा बाबा जी से सम्वाद के समय उन्होंने कहा था कि श्रीराम (परम् पूज्य गुरुदेव) स्वयं राम है, और डॉक्टर प्रणव जिन्हें हिमालय की ऋषि संसद ने चुनकर युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव के सहयोगी बनने के लिए भेजा है। वह मेरा भी दामाद है जैसा कि युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी का है। शैल बाला मेरी पुत्री है जैसा कि युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जी की है।


जन्म - 8 नवम्बर 1950 (रूप चतुर्दशी)

पिता - पूर्व न्यायाधीश स्व. श्री सत्यनारायण पंड्या

माता - स्व. श्रीमती सरस्वती देवी पंड्या

धर्मपत्नी - श्रीमती शैलबाला पण्ड्या (सुपुत्री वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य)

शिक्षा - एम.जी.एम. मेडिकल कॉलेज, इन्दौर से जनवरी 1972 में एम.बी.बी.एस. उत्तीर्ण किया। इसी संस्था से दिसम्बर 1975 में मेडीसिन में एम.डी. की उपाधि तथा स्वर्ण प्रदक प्राप्त किया। अमेरिका से आकर्षक पद का प्रस्ताव आया, किन्तु भारत में ही रहकर सेवा करना उचित समझा।

विद्यार्थी जीवन में न्यूरोलॉजी तथा कार्डियोलॉजी के प्रख्यात विशेषज्ञों से जुड़कर मार्गदर्शन प्राप्त किया। अनुसंधान-पत्र प्रकाशित हुए तथा सायकोसोमेटिक व्याधियों के उपचार में विशेष रुचि ली।

जनू 1976 से सितम्बर 1978 तक भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स, लिमिटेड हरिद्वार तथा भोपाल के अस्पतालों में इन्टेंसिव केयर यूनिट के प्रभारी रहे। भारतीय चिकित्सक संघ (ए.पी.आय.) के सदस्य बने। समय-समय पर रिसर्च पेपर्स पढ़े व कई वर्कशॉप सेमीनार्स का संचालन किया।

युग निर्माण योजना मिशन से 1963 में सम्पर्क में आये। सन् 1969 से 1977 के बीच गायत्री तपोभूमि मथुरा तथा शंतिकुंज हरिद्वार में लगे कई शिविरों में भाग लिया। सितम्बर 1978 में नौकरी त्याग पत्र देकर स्थायी रूप से हरिद्वार आ गये।

परम पूज्य गुरुदेव पं॰ श्रीराम शर्मा आचार्य जी के मार्गदर्शन एवं संरक्षण में अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय हेतु ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान हरिद्वार की स्थापना जून 1978 में की। तब से इस संस्थान के निदेशक हैं। इस संस्था की आधुनिक प्रयोगशाला में पूज्य गरुदेव के मार्गदर्शन में साधना के वैज्ञानिक पहलुओं पर प्रयोग किये जा रहे हैं। अभी तक शांतिकुंज आए हुए अस्सी हजार से अधिक साधकों पर यह प्रयोग-परीक्षण किये जा चुके हैं। संस्थान सभी आवश्यक विषयों पर पचास हजार से अधिक पुस्तकों के पुस्तकालय से सुसज्जित है।


सम्मान एवं पुरस्कारसंपादित करें


ज्ञान भारती सम्मान से 1998 में सम्मानित।


हिन्दू ऑफ दि ईयर पुरस्कार से एफ.आई.ए., एफ.एच.ए.द्वारा 1999 में सम्मानित।


अमेरिका की विश्वविख्यात अंतरिक्ष इकाई 'नासा' द्वारा वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार-प्रसार हेतु संस्तुति एवं विशेष सम्मान।


"भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार राष्ट्र सेवा सम्मान" पुरस्कार से 2000 में सम्मानित।

श्रद्धेया शैल बाला पंड्या का जीवन परिचय

 त्याग व सेवा मूर्ति शैल जीजी का परिचय


विवेकानंद जी व समस्त ऋषिगण भारत की आत्मा अध्यात्म है यह बताते हैं। यदि भारत को विश्वगुरु बनाना है तो अध्यात्म से जन जन को जोड़ना होगा। कठिन दुष्कर कार्य था, सोई चेतना को जगाना था।


युगऋषि परम पूज्य  गुरुदेब पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी व माता वन्दनीया भगवती देवी शर्मा ने अखिलविश्व ग़ायत्री परिवार बनाया व युगनिर्माण योजना की उद्घोषणा की। जगह जगह जनजागृति के केंद्र शक्तिपीठ बनाये व अश्वमेध यज्ञों की श्रृंखला चलाई। कठोर तप कर 3200 से अधिक सत साहित्य की रचना की, सप्त आंदोलन व शत सूत्रीय कार्यक्रम दिए।


युगऋषि के महाप्रयाण के बाद जिम्मेदारी वन्दनियाँ माता जी ने सम्हाली और सहयोग श्रद्धेया शैल जीजी व श्रद्धेय डॉक्टर प्रणव पंड्या जी ने किया।


माता जी के महाप्रयाण के समय तक ग़ायत्री परिवार बड़ा  हो चुका था और उसके केंद्र संचालन और पूरे विश्व में युगनिर्माण संचालन के लिए शशक्त नेतृत्व की आवश्यकता थी, माता जी व गुरुदेव दोनों के कार्य को सम्हालना व ग़ायत्री परिजनों को दिशा देना बड़ी जिम्मेदारी थी, इस हेतु माता जी ने महाप्रयाण से पूर्व ही यह जिम्मेदारी श्रद्धेया जीजी और श्रद्धेया डॉक्टर साहब को दे दी। श्रद्धेया जीजी के लिए बड़ी चुनौती थी ग़ायत्री परिवार को माता जी व गुरु जी की कमी महसूस न होंने देना। जब लोग शांतिकुंज आएं तो उन्हें उनकी कुशलक्षेम  पूंछना व उनके दुःख दर्द को बंटाना और माता सा प्यार लुटाना था। साथ ही गुरुदेव की तपस्यारत जिंदगी को अपनाकर तपशक्ति का संचार करना। 


जीजी ने अन्न त्याग कर केवल फलाहार व सब्जियों से अन्नमय कोष को शुद्ध करते हुए अनवरत गुरुदेव के सूक्ष्म मार्गदर्शन में ग़ायत्री के तप अनुष्ठान शुरू किए व पत्र व्यवहार, शांतिकुंज दर्शनार्थियों से सम्वाद और मिशन की गृह व्यवस्था सम्हाली। श्रद्धेय डॉक्टर साहब ने सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम को देश विदेश तक पहुचाने में जीवन समर्पित कर दिया। पुत्र आदरणीय चिन्मय भैया को भी मिशन हेतु समर्पित कर दिया।


किसी भी धार्मिक संगठन की धुरी तप होता है, उसकी अनवरतता अनिवार्य होता है। प्रेम व भावसम्वेदना से लोगो को जोड़ कर रखना होता है। यह दो महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व बिना शैल जीजी के सम्भव नहीं था। श्रद्धेया जीजी ने मिशन व देवसंस्कृति विश्वविद्यालय हेतु  दिशा निर्देश दिए व इसे सम्हालने का व व्यवस्थित संचालन में समय समय पर अपना सहयोग दिया। अध्यात्म क्षेत्र की अनेकों उपलब्धियां शैल जीजी के पास हैं। कई साधक उनकी दिव्यता व क्षमता को अनुभव कर चुके हैं।


महाकाल के उत्तरदायित्व को सम्हालना कठिन कार्य था, मग़र श्रद्धेया जीजी व श्रद्धेय डॉक्टर साहब ने इसे जिम्मेदारी व पूर्ण निष्ठा से निभाया।


श्रद्धेया जीजी के चरणों मे प्रणाम 💐

कैरियर काउंसलिंग बच्चे की करते वक्त ध्यान दें:-

 कैरियर काउंसलिंग बच्चे की करते वक्त ध्यान दें:-


बच्चों को अपने संघर्ष की कहानी सुनाकर अपने जैसी सफ़लता उम्मीद करना वैसा ही है जैसे वर्ष 1999 में गाड़ी ख़रीदकर रोड पर चलाने का अनुभव हो।


आपके समय जब गाड़ी खरीदी थी ट्रैफिक कम था, वर्तमान समय में ट्रैफिक ज्यादा है और भविष्य में बढ़ेगा। अतः गाड़ी महंगी हो या सस्ती रोड बदलने वाली नहीं। ज़मीन व संसाधन बढ़ने वाले नहीं।


अतः जो कैरियर आपने अपने समय चुना था उस समय उस कैरियर पाथ में कितना ट्रैफिक था? वर्तमान में कितना है और भविष्य में कितना होगा? उस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।


बच्चे आज़कल दिमाग़ में पैसा व शोहरत लेकर कैरियर पाथ चुनते हैं, मग़र बच्चे व माता पिता दोनो भूल जाते हैं कि गाड़ी महंगी हो या सस्ती इससे रोड पर जाम व कठिनाई नहीं बदलती। ड्राइविंग न आती हो तो सस्ती गाड़ी भी एक्सीडेंट से ठुकेगी व महंगी भी एक्सीडेंट का शिकार होगी। दूरी वही गाड़ी तय करेगी व मंजिल तक पहुंचेगी जिसका ड्राइवर कुशल व बुद्धिमान हो।


अभिनेता हो या क्रिकेट हो या इंजीनियर हो या चार्टेड अकाउंटेंट हो या सिविल सर्विसेज सभी वाहन हैं मंजिल नहीं। इन्हें चलाने वाला ड्राइवर तय करेगा कि वह कितनी दूरी तय करेगा।


चार्टेड अकाउंटेंट सभी एक समान अमीर नहीं होते, इंजीनियर भी सभी एक समान सैलरी नहीं पाते, अभिनय जगत में सभी एक समान पैसा व शोहरत नहीं कमाते, क्रिकेट जगत में सभी सफल व पैसा अधिक नहीं कमाते? 


कारण एक ही है, क्षेत्र चुनने के बाद परफॉर्मेंस व बुद्धिकुशलता पर सफलता निर्भर करती है।


बच्चों की बुद्धि कौशल पर कार्य कीजिये, तभी वह बढ़ते ट्रैफिक में भी जीवन की गाड़ी चला पायेगा। अन्यथा मूर्खता में बिना ड्राइविंग सिखाये गाड़ी थमाएँगे तो बच्चा एक्सीडेंट अवश्य करेगा। 


जीवन जीने की कला सिखाइये, सफलता की रेस के साथ असफलता का ब्रेक हैंडल करना भी सिखाइये। जीवन की गाड़ी में रेस व ब्रेक दोनो हैंडल करना बुद्धिकुशलता से आना चाहिए।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday, 23 July 2021

साक्षात महाकाल मेरे सद्गुरु, फिर मुझे किस बात की चिंता?

 *साक्षात महाकाल मेरे सद्गुरु, फिर मुझे किस बात की चिंता?*


गुरुपूर्णिमा पर्व की आप सभी को शुभकामनाएं

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


जंगल में भी मङ्गल मेरे लिए है,

तूफानों में भी शांति मेरे लिए है,

संसार में भी अध्यात्म मेरे लिए है,

गृहस्थ में भी तपोवन मेरे लिए है,

क्योंकि..

साक्षात महाकाल मेरे गुरु हैं..


ख़ुद की क़िस्मत पर इतराती हूँ,

ख़ुद की किस्मत पर इठलाती हूँ,

कलियुग के झंझावातों में भी नहीं घबराती हूँ,

गुरुभक्ति से नित्य सौभाग्य जगाती हूँ,

क्योंकि..

साक्षात महाकाल मेरे गुरु हैं..


जीवन में मेरे सर्वत्र गीत-सङ्गीत है,

प्रकृति के कण कण में दिखता सौंदर्य है,

मेरा हृदय शांत व निर्भय है,

जन जन मेरे लिए मित्रवत है,

क्योंकि..

साक्षात महाकाल मेरे गुरु हैं..


जीवन में कभी भटकती नहीं,

सफ़लता के मार्ग में कभी अटकती नहीं,

समस्या के अधर में कभी लटकती नहीं,

भय व चिंता के जाल में उलझती नहीं,

क्योंकि..

साक्षात महाकाल मेरे गुरु हैं..


गुरु की तस्वीर मेरा रक्षा कवच है,

गुरु का कार्य ही मेरा जीवन लक्ष्य है,

गुरु को समर्पित मेरा यह जीवन है,

गुरुमय मेरा सारा अस्तित्व है,

क्योंकि...

साक्षात महाकाल मेरे गुरु हैं..


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 19 July 2021

बात बड़ी व तुच्छ से फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क़ पड़ता है

 जब कंधा स्वस्थ हो,

तो भारी हाथ पीछे से रखो तो फर्क नहीं पड़ता,

जब उसी कंधे पर चोट हो तो,

हल्का स्पर्श भी दुःखता है।


हमें किसी की बड़ी गलत बात पर भी गुस्सा तब नहीं आता जब हमारा हृदय स्वस्थ व प्रशन्न हो, लेक़िन हृदय में छोटी तुच्छ बात भी शूल की तरह पीड़ा देती है जब मन पहले से ही किसी आघात से दर्द में चोटिल हो।


बात बड़ी व तुच्छ से फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क़ पड़ता है कि हमारा हृदय कितना स्वस्थ या अस्वस्थ, चित्त कितना प्रशन्न या अप्रशन्न और मन कितना शांत या अशांत है।


🙏🏻 यदि आपको किसी की छोटी सी बात व छोटी घटना यदि अधिक पीड़ा दे रही है, तो दोष उस व्यक्ति का अधिक नहीं है। अपितु इसका अर्थ हमारा हृदय चोटिल है। हृदय के उपचार व मन शांत करने हेतु ध्यान व स्वाध्याय की आवश्यकता है। 🙏🏻


🙏🏻 श्वेता, DIYA

गर्भस्थ शिशु का स्वागत गीत

 *गर्भस्थ शिशु का स्वागत गीत*


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है,

तुम नंन्ही परी हो या नंन्हे फरिश्ते,

तुम जो भी हो तुम हो मेरे प्यारे बच्चे...


तुम हमारे जीवन में,

ढेर सारी खुशियाँ लेकर आ रहे हो,

तुम हमारे जीवन में,

एक नई रौशनी लेकर आ रहे हो..


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है,


देखो तुम्हारे मम्मी-पापा मुस्कुरा रहे हैं,

अपनी आंखों से तुम्हारे लिए,

ढेर सारा प्यार बरसा रहे हैं,

तुम्हारे दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा तो,

तुम्हारे आने की खुशी में,

झूम नाच गा रहे हैं।


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


देखो तुम्हारे नाना-नानी, मामा-मामी, मौसा-मौसी,

ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रहे हैं,

तुम्हारे दर्शन को,

पलकें बिछा रहे हैं...


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


सारा परिवार,

तुमसे बहुत प्यार करता है,

मेरे गर्भ में और सबके हृदय में,

अब सिर्फ तुम्हारा वास रहता है,

तुम सदा स्वस्थ प्रशन्न रहो,

बुद्धि बल, धन बल, आत्मबल सम्पन्न बनो...


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


तुम हमसे मित्रवत रहो,

हम तुमसे मित्रवत रहें,

हम सब एक दूसरे के लिए,

सदा सहयोगी व संवेदनशील रहें,

ऐसी ईश्वर से हम सब प्रार्थना कर रहे हैं,

उनकी कृपा दृष्टि की आशा कर रहे हैं...


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

जॉब करने वाले पति पत्नी सास की नोकझोंक -

 एक दूसरे पर हुकुम नहीं चलाना है, एक दूसरे का सहयोगी बनना है।


जॉब करने वाले पति पत्नी सास की नोकझोंक -


पति- सुनो, एक ग्लास पानी पिला दो..

पत्नी - जाओ पानी पियो और एक ग्लास मेरे लिए भी लेते आना..

सास - कैसी पत्नी है तू, अपने पति को पानी भी नहीं पिला सकती, बेचारा थक गया है... हम तो अपने पति को चाय नाश्ता पानी सब देते थे...तू तो पानी भी नहीं पिला सकती...

बहु - माँ, क्या आप ऑफिस जाते थे और शाम को ससुर जी के साथ ही ऑफिस से आते थे?

सास - नहीं, मैं जॉब नहीं करती थी.. 

बहु - मैं भी आपके बेटे की तरह 10 घण्टे काम करके ऑफिस से घर लौटी हूँ... तो क्या मैं थक नहीं गयी?

सास - मेरा बेटा, तुझसे ज्यादा कमाता है?

बहु - 10 घण्टे जॉब में कोई 5 हज़ार कमाए या 5 लाख, थकेगा तो दोनो ही.. क्या मेरे कम कमाने से कम थकान होगी? ज्यादा कमाने वाले को ज्यादा थकान होगी? 

सास - पता नहीं.. पर वो तेरा पति है...उसकी सेवा करना तेरा कर्तव्य है..

बहु - अच्छा माँ, क्या मेरे खून का रँग नीला और आपके बेटे का खून लाल है? क्या पत्नी दूसरे ग्रह से आई प्राणी होती है? क्या वो नहीं थकती?

सास - हाँ तू भी थकती है, फिर भी तू बहु है पत्नी है, सेवा तेरा धर्म है?

बहु - माँजी, किस ग्रंथ में लिखा है कि सेवा केवल पत्नी का धर्म है, पति का नहीं... पति के लिए सेवा करना मना है।

सास - तू बहस बहुत करती है, परंपरा कहती है कि पत्नी को सेवा करनी चाहिए, धर्म ग्रंथ का मुझे पता नहीं।

बहु - माँ, परम्परा मनुष्य अपनी वर्तमान स्थिति को देखकर बनाते थे। पहले पति कठिन परिश्रम हल जोतकर , बड़े बड़े अनाज के गट्ठर ढो कर लाते थे, स्त्रियां अनाज वगैरह चक्की में पिसती थीं। दोनों मिलकर कार्य करते थे, धूप व पसीने से तरबतर पति जब आता था तो पत्नी उसकी सेवा करती थी। 

यहां मैं और आपका बेटा एक साथ ही आये हैं, आज सुबह से बैक टू बैक मीटिंग में प्रेजेंटेशन के लिए मैं पूरे दिन अधिकतर समय खड़ी रही। तो थकूंगी नहीम क्या?

सास - तू बस बहस करना जानती है, घर के काम करना नहीं...

बेटा - पानी पीकर आया व दो ग्लास पानी लाया, एक ग्लास मां को और एक पत्नी को दिया और बोला, माँ जब पति पत्नी कमाने में बराबर मेहनत कर रहे हैं तो घर मे भी दोनो को बराबर मेहनत करनी चाहिए। यदि पापा आपके काम मे हाथ बंटाते तो क्या आपको अच्छा नहीं लगता? पापा पुरानी सोच में रिटायरमेंट के बाद भी वैसा ही हुकुम बजाते हैं जैसा जॉब के वक़्त करते थे, कभी आपको नहीं लगता होगा कि घर मे तो आप दोनो एक जैसे ही रह रहे हो, पापा खुद भी पानी पिये और आपके लिए लाए तो क्या आपको अच्छा नहीं लगेगा? 


बहु, सास दोनो निःशब्द थीं, तभी चार कप कॉफी बनाकर ससुर जी लाये और सबको देते हुए बोले, मैंने तुम सबकी बात सुनी, तुम सबके सामने मैं तुम्हारी माँ को सॉरी बोलना चाहता हूँ। अब हुकुम नहीं चलाउंगा सहयोगी तुम्हारी माँ का बनूँगा। हम सब मिलकर कार्य करेंगे।


बहु कॉफी पीकर उठते हुए बोली, इसी बात पर आज सबके लिए मटर पनीर और फ्राइड राइस की पार्टी, ससुर जी बोले बेटे मटर मुझे दे दो मैं छील दूंगा। सास बोली मसाले की तैयारी मैं कर दूंगा, बेटे ने कहा सलाद इत्यादि काटकर डायनिंग टेबल मैं साफ कर दूंगा।


सबने एक स्वर में कहा, यह विचार का परिवर्तन अच्छा है। एक दूसरे पर हुकुम नहीं चलाना है, एक दूसरे का सहयोगी बनना है।


💐श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

पति पत्नी, सास के झगड़े ( पढ़कर बुरा न मानें)

 पति पत्नी, सास के झगड़े ( पढ़कर बुरा न मानें)


पत्नी - मैं तुम्हारी मां के साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती..😢

पति - अरे मेरी जान, तब तो तुझे दूसरे ग्रह जाना पड़ेगा क्योंकि आसमान रूपी छत तो एक ही रहेगी..☺️☺️☺️


💐💐💐💐💐💐


माँ - मैं तेरी बीबी के साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती...😢

बेटा - अरे मेरी प्यारी माँ, इसलिए कह रहा था मेरी शादी मत करवाओ, अब बहु लाने की ज़िद तो तुमने करी थी..☺️☺️☺️


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पत्नी - तुम्हारी माँ हमेशा मुझसे सौतेला व्यवहार करती है... मेरी माँ मुझे कितना प्यार करती थी...😢

पति - अरे मेरी जान, हमारे धर्म मे  भाई और बहन शादी नहीं करते, तो सेम माँ सास नहीं बन सकती। दूसरे की माँ तो सौतेला व्यवहार ही करेगी न... जैसे तू सौतेली बेटी की तरह व्यवहार करती है...☺️☺️☺️☺️


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माँ - तेरी पत्नी के अच्छे संस्कार नहीं है..😢

बेटा - अरे मेरी प्यारी माँ, हमारे धर्म मे  भाई और बहन शादी नहीं करते, इसलिए पति पत्नी को एक जैसे संस्कार नहीं मिल सकते। दूसरे की माँ के अलग संस्कार तो होंगे ही.... जैसे तेरे बेटे के अलग संस्कार है व बहु के अलग संस्कार है..☺️☺️☺️☺️


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पत्नी - तुम अपनी माँ को छोड़ दो..😢

पति - अरे मेरी जान, मुझे पता नहीं था कि तुम अनाथ से शादी करना चाहती थी.. तुम कितनी महान हो मुझे छोड़ो और अनाथालय में पले बढ़े अनाथ का हाथ थाम लो...विश्वास मानो कोई ससुराल होगा नहीं...फिर तुम्हे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा....☺️☺️☺️☺️


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माँ - तुम अपनी पत्नी को छोड़ दो..😢

पति - अरे मेरी प्यारी माँ, मुझे पता नहीं था कि तुम भगवान बुद्ध सा सन्यासी बनाना चाहती हो.. तुम कितनी महान हो मुझे संसार के कल्याण हेतु गृहस्थ से दूर कर सन्यासी जीवन जीने को प्रेरित कर रही हो, मैं आज ही  हिमालय की ओर प्रस्थान करता हूँ...विश्वास मानो मेरे जाते ही बहु भी तुम्हारी घर छोड़ देगी... जब बेटा ही नहीं होगा, फिर बहु भी नहीं होगी...फिर तुम्हे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा....☺️☺️☺️☺️


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पत्नी - तुम अपने माता पिता पर कुछ ज्यादा खर्च कर रहे हो...😢

पति - मेरी जान, बचपन से लेकर अब तक मुझे पर किये कुल खर्च और सेवा का लोन(माता पिता ऋण) है, चुकाना तो पड़ेगा। वह 9 महीने जब मैं माँ के पेट मे था तो उस घर का किराया और जो रक्त को प्यार से बदलकर दूध बनाया गया था न वह तो काफ़ी महंगा था... वैसे तुम भी चाहोगी न कि तुम्हारा बेटा भी तुम्हारा माता मेरे जैसे लोन चुकाए, अपनी बीबी के कहने पर तुम्हे छोड़कर भाग न जाये ☺️☺️☺️☺️


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माँ - तुम अपनी पत्नी पर ज्यादा खर्च कर रहे हो..😢

बेटा - अरे मेरी प्यारी मां, मैं तो आपकी ही सलाह मान रहा हूँ।आप हमेशा पिताजी को कहते रहते थे कि अपनी पत्नी पर भी खर्च करो क्या वह तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं..☺️☺️


💐श्वेता चक्रवर्ती

सास और बहू के वार्ता झगड़े-नोक झोंक (बुरा न माने बस केवल पढ़कर लगाएं ठहाके)

 सास और बहू के वार्ता झगड़े-नोक झोंक (बुरा न माने बस केवल पढ़कर लगाएं ठहाके)


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सास - मेरी तो क़िस्मत ही ख़राब है कि कैसी बहु मिली..😢

बहु - मेरी तो क़िस्मत शानदार है जो आप जैसी सास मिली☺️, आप मेरी सास हैं यह मेरे पिछले जन्म के पुण्य प्रताप है, मैं आपकी बहु हूँ यह आपके पिछले जन्म के पाप फ़ल हैं। उम्मीद है आप इस जन्म में अच्छे कर्म कर रहे हो वरना हम पुनः अगले जन्म में मिलेंगे☺️


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सास - तू तो मेड से भी गई गुज़री है, ठीक से पोछा भी नहीं लगता तुझसे...😢

बहु - यह बात मेरी माँ को बचपन मे समझ आ गई थी कि मैं मेड की जॉब नहीं कर पाऊंगी, मुझमें योग्यता नहीं। इसलिए मुझे सॉफ्टवेयर इंजीनियर बना दिया।☺️☺️☺️☺️


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सास - गर्मी है तो क्या हुआ तू शादी में सिल्क की साड़ी पहन के चल.. बालों में पिन लगा ले जिससे सर का पल्ला न खिसके...😢


बहु - माताजी, यदि सिल्क की साड़ी पहनी तो पसीने से भीग जायेगी, फ़िर सब मुझे हीरोइन समझेंगे और घूरेंगे। सोचिए फ़िर आपको कोई न देखेगा, जो मुझे अच्छा नहीं लगेगा☺️☺️☺️☺️


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सास - कितना बेकार खाना बनाया है, इसे कुत्ते भी नहीं खाएंगे..😢


बहु - माताजी, धन्यवाद आज आपके इस कथन ने बताया कि यह भोजन इंसानों के लिए ही बना है अभी थोड़ी देर पहले आपके बेटे को टेस्ट करवाया था उन्होंने कहा अच्छा बना है... ☺️☺️☺️☺️


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सास - हमारे ज़माने में बहुएं घूंघट में रहती थी, मज़ाल है कभी सर से पल्ला उतरा हो और बहू की आवाज घर से बाहर गयी हो 😢😢


बहु - क्योंकि माँ आपके पास टीवी और इंटरनेट नहीं था। यदि आप कोई कॉमेडी सीरियल या वीडियो देखती तो जोर से हँसती तब सर से पल्ला गिरता और आवाज़ बाहर भी जाती...☺️☺️


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सास - मेरे बच्चे हमेशा पढ़ते थे व केवल शाम को बाहर खेलते थे..😢 तुम लोग तो अपने बच्चे सम्हाल नहीं पा रहे...


बहु - माँजी, आपके बच्चों के इस व्यवहार का क्रेडिट ज्यादा ससुर जी को जाता है, क्योंकि उन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट दूरदर्शन वाली टीवी और लैंडलाइन घर मे फोन रखा था। मेरे बच्चों के बिगड़ने में मेरे साथ साथ मेरे पतिदेव भी जिम्मेदार हैं, उन्होंने प्रत्येक रूम में मल्टी चैनल डिश टीवी, इंटरनेट व स्मार्टफोन से परिचित बच्चे को करवाया। तो थोड़ी 50% डांट उधर भी ट्रांसफर करें☺️☺️☺️


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सास - मैं दहेज में दो किलो सोना लाई थी, और तेरे मायके वालों ने तो 100 ग्राम सोना भी नहीं दिया😢


बहु - माँजी, मेरे मम्मी पापा आपके मम्मी पापा जितना पैसा लेकर ही सोनार के दुकान पर गए थे, मग़र उसने उतने रुपये में उतना ही कम सोना दिया कहा कि महंगाई बढ़ गयी है और सोने का रेट हाई है..☺️☺️☺️☺️


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सास - अपनी बहन से फोन पर, मेरी बहु घर का कुछ काम नही करती, दिन भर फोन पर लगी रहती है।😢


बहु - आपकी बहु बिल्कुल आप पर गयी है और आपके आदर्श का पालन करती है। आप भी घर के रिश्तेदारों के साथ फोन पर और बहू भी अपने ऑफिस वालों और रिश्तेदारों के साथ फोन पर...☺️☺️☺️ आप की चुगली का केंद्र हम, हमारी चुगली का केंद्र आप☺️☺️ हम लोग एक दूसरे को कितना प्यार करते हैं कि हमारी बात का केंद्र हम दोनों एक दूसरे को रखते हैं।


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सास - आजकल की बहुएं बहुत बोलती हैं, पलटकर जवाब देती हैं...

बहु - माँजी, ओह तो आपको गूँगी व बहरी बहु चाहिए थी, मुझे पता नहीं था...☺️☺️ 


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सास - तू किसी लायक नहीं है..

बहु - सत्य कहा, यदि लायक होती तो ब्रिटेन की महारानी की बहू होती☺️☺️☺️ 


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सास - तुम्हारे पिता ने तो हमारी नाक कटा दी, हमारे रिश्तेदारों की बहुएं कितना दहेज़ लेकर आई हैं...😢


बहु - माँजी, हमारे पिताजी टाटा बिड़ला दामाद चाहते थे, मग़र हैसियत व बजट कम था, इसलिए कम बजट का हमारा रिश्ता करवा दिया ☺️☺️☺️☺️ आपकी केवल नाक कटी और हमारा तो रॉल्स रॉयस में घूमने व हवेली में रहने का सपना टूट गया।


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सास - तुझसे से तो बहस करना ही बेकार है..

बहु - जी माँजी, इसका अफसोस मुझे है क्योंकि आजतक वाद विवाद प्रतियोगिता में स्कूल से लेकर कॉलेज तक फर्स्ट प्राइज़ कभी नहीं मिला।


💐श्वेता

Sunday, 18 July 2021

सास, बहु और बेटा....

 सास, बहु और बेटा....


बेटों की माताओं ने बेटों के पालन पोषण संस्कार व बहु के प्रति व्यवहार का तरीका व ओल्ड सॉफ्टवेयर उपयोग किया, बेटियों की माताओं ने बेटियों के पालन पोषण व संस्कार व दामाद के प्रति व्यवहार में लेटेस्ट सॉफ्टवेयर व तरीका अपनाया। तो ऐसे में जो विवाह होगा उसकी सफ़लता में संदेह ही होगा।


क्योंकि सास ने जैसा दुर्व्यवहार अपनी सास से पाया था वही दुर्व्यवहार बहु से करेगी, जॉब वाली बहु के सर पर पल्ला, किचन में पोछा और बर्तन मांजने वाले बिम बार सूखा उम्मीद करेगी तो झगड़े तो होंगे ही। बहु सास से माता वाला व्यवहार उम्मीद करेगी और न मिलने पर कूढ़ेगी तो लफड़े तो होंगे ही...


जो बहुएं यह उम्मीद करेंगी कि उनका पति उनकी तरफ़ से अपनी माँ से बात करे तो भी बेवकूफी ही होगी। क्योंकि यदि बेटा माँ को समझाने गया तो "जोरू का गुलाम" टैग मिलेगा, यदि पत्नी को समझाने गया तो "माँ के पल्लू में बंधने वाला" टैग मिलेगा। एक तरफ कुआँ और दूसरी तरफ खाई है। भावनात्मक कुशलता व बुद्धिमान लड़का न हुआ तो कम्पनी ऑफिस में जरूर प्रमोशन पाए और उसे सम्हाल ले, लेक़िन घर तो जरूर बिगाड़ लेगा ही। क्योंकि ग़लत का साथ दिया तो तबाही होगी ही।


कृपया जब भी विवाह सम्बंध बनाएं तो संस्कार के सॉफ्टवेयर मैच करके विवाह करें, सर पर पल्ला, किचन में पोछा और बिम बार सूखा चाहिए तो कम पढ़ी लिखी घरेलू लड़की से विवाह करें। यदि पढ़ी लिखी जॉब वाली बहु ला रहे हो तो सर पर पल्ला मत ढूढों, उसकी जगह उससे घर व कार की EMI एवं घर सम्हालने की बस उम्मीद करो। ऐसी बहु से दोस्त की तरह व्यवहार करने में भलाई है। उसकी निजता व वस्त्र पहनने के तरीक़े में हस्तक्षेप न करने में ही समझदारी है।


बहु जी स्वयं थोड़ी बुद्धि का प्रयोग करें, यह समझें की खीर मीठी व कढ़ी तीखी होगी ही। मायका मीठा और ससुराल तीखा होगा ही। अतः लांछन, ताने, कड़वे बोल, तुम्हारे कार्य मे मीन मेख, तुम्हारे खाने पीने व पहनने में हस्तक्षेप ससुराल होने की निशानी है। ऑफिस में बॉस व ससुराल में सास मनपसंद व्यवहार नहीं करेंगे, यही जीवन है। तुम यदि भावनात्मक कुशल व बुद्धिमान न हुई तो रोने व पति से शिकायत करने में समय व्यर्थ करोगी, हासिल कुछ न होगा व घर युद्ध का मैदान बनेगा। माँ का लाडला बेटा तुम्हारे लिए माँ को नहीं समझायेगा, अतः सास से अच्छे सम्बंध तुम्हें स्वयं के बुद्धि प्रयोग से ही बनाना पड़ेगा। शिकायत छोड़ो और अक्ल दौड़ाओ, वर्षों से चली आ रही सास बहू की दुश्मनी को प्रेम में बदल दो। जहां चाह वहां राह बन ही जाती है।


जो घर में होता आ रहा है, वह परम्पराएं पालोगे तो घर टूटेंगे। यदि समय के साथ स्वयं के मानसिक सॉफ्टवेयर को अपग्रेड करोगे तो रिश्ते स्वस्थ बनेंगे।


💐श्वेता, DIYA

Saturday, 17 July 2021

प्रश्न - मुझे रोना बहुत आता है? क्या करूँ..

 प्रश्न - मुझे रोना बहुत आता है? क्या करूँ..


उत्तर - अति सर्वत्र वर्जयेत - किसी भी चीज की अति नुकसानदेह है।


बहुत रोने वाले रोतलू बच्चे से उसकी माता भी परेशान हो जाती है, दूसरे तो दूसरे है, दूसरे तो  खिलाने के लिए हंसता खिलखिलाता बच्चा पसन्द करते है। हम और आप भी हंसता बच्चा पसन्द करते हैं।


यदि आप को भी बात बात पर रोना आता है, रोतलू किस्म के हैं, तो यह बताईये आपके साथ घर गृहस्थी करना भला कौन पसन्द करेगा? शिकायत करने वाले जीवनसाथी को कौन झेलना पसन्द करेगा? आपसे दोस्ती कौन करना चाहेगा? 


जब एक जोक्स पर कोई बार बार नहीं हंसता, फिर एक ही दुःख पर बार बार रोने की क्या आवश्यकता? रोने से दुःख कम नहीं होता, अपितु अधिक रोना हमें कायर बनाता रहता है। सस्ती  सहानुभूति ढूढ़ने हेतु प्रेरित करता है?


अरुणिमा सिन्हा जैसे अपाहिज भी आत्मविश्वास से एवरेस्ट फतह कर रहे हैं। आप दो पैर, दो हाथ और एक दिमाग़ होने के बाद भी किस्मत का रोना रोते रहते हो। शर्म नहीं आती कि जो बुद्धि व मानव शरीर भगवान ने दिया है, उन शक्तियों का प्रयोग सीखने की जगह, समस्या समाधान ढूंढने की जगह तुम रोने में व्यस्त हो।


अरे भाइयों एवं बहनों, मनपसंद व्यवहार वाली घर में सास और ऑफिस में बॉस नहीं मिलते। जीवनसाथी रिमोट कंट्रोल के साथ नहीं आते। जीवन के खेल में लोग तो क्रिकेट के खेल की तरह आपको आउट करने के लिए ही बॉल फेंक रहे हैं, लेक़िन जैसे कुशल बेट्समैन उन्हीं आउट करने के उद्देश्य से फेंकी बॉल पर कभी एक तो कभी चौका तो कभी छक्का लगाके रन बना लेता है,आप भी रन बनाओ, बुद्धि प्रयोग करो। 


विवेकानंद जी कहते हैं उठो जागो व आगे बढ़ो, तब तक मत रुको जब तक मंजिल मिल न जाये।


भगवान उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है।


सभी जीव जीवन के लिए संघर्ष करते हैं, सोते शेर के मुंह मे हिरण प्रवेश नहीं करता, शेर को पुरुषार्थ से शिकार करना पड़ता है। जंगल का राजा शेर जब तक युवा व पुरुषार्थी रहता है राज करता है, वही जब वृद्ध व अशक्त होता है तो उसे दर्दनाक मृत्यु कई दिनों तक भूखा प्यासा रहकर मिलती है। प्रकृति किसी पर भी दया नहीं करती। वीर भोग्या वसुंधरा - जो वीर है वही धरती में ऐशोआराम भोगता है। 


मनुष्य के पास बुद्धि जन्मजात है, बस उसे प्रयास से निखारना पड़ता है व बुद्धिबल के प्रयोग से अपना जीवन बेहतर बनाना होता है।अध्यात्म के अभ्यास से जीवन मे खुशी भरनी है।


चिड़िया को भोजन घोंसले में होम डिलीवरी में नहीं मिलता, आपको भी ख़ुशी होम डिलीवरी नहीं होगी। प्रयत्न पुरुषार्थ से ही हासिल होगी।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Friday, 16 July 2021

क्षमाशील व प्रेममय वृद्धावस्था ही उत्तम है।

 *क्षमाशील व प्रेममय वृद्धावस्था ही उत्तम है।*


मनःस्थिति बदलिए परिस्थिति बदल जाएगी,

कहीं स्वयं बदल जाइये, कहीं दुसरो को प्यार से बदल दीजिये। जहां स्वयं बदलना या दूसरों का बदलना सम्भव न हो, तो जो जैसा है उसे स्वीकारिये।


वृद्धावस्था फलदार वृक्ष नहीं है, लेकिन वृद्धावस्था एक छायादार वृक्ष है।  परिवारजन जहां आकर सुकून चाहते हैं, आशीर्वाद चाहते हैं।


वृद्धावस्था में हँसी ख़ुशी रहने हेतु सन्त प्रकृति अपनानी पड़ती है। जब कोई मांगे तभी सलाह दें अन्यथा मौन रहना पड़ता है। अपनी दिनचर्या पोते पोती के कारण अडजस्ट भी करनी पड़ती है। 


बहु बेटे सबकुछ आपसे शेयर नहीं करेंगे, अतः जो जितना वह शेयर करते हैं केवल उतना ही ठीक है। वैसे भी उनके कार्य व व्यवसाय में हम सहयोगी ज्यादा बन नहीं सकते, उनकी कोई बड़ी प्रॉब्लम सॉल्व भी नहीं कर सकते। हम मात्र प्रार्थना कर सकते हैं।


यदि वृद्धावस्था में हम प्रेममय व क्षमाशील रहेंगे तो ही स्वयं भी आनन्द में रहेंगे व दूसरे भी आनन्द में रहेंगे। 


यदि वृद्धावस्था में हम चिड़चिड़े व क्रोधी हुए तो हम भी दुःखी रहेंगे व दूसरे को भी दुःखी करेंगे। 


जो सहयोग कर सकते हैं करें जो न बन सके तो सॉरी बोल दें, इससे कोई बात आगे न बढ़ेगी।


स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है।


हिन्दू सनातन संस्कृति में जीवन के उत्तरार्द्ध में सन्यास आश्रम कहा गया है, अर्थात शरीर से जंगल मे रहो या घर मे रहो, लेकिन सन्यासी की तरह निर्लिप्त रहो व आत्म उन्नति में लगे रहो।


💐श्वेता, DIYA

प्रश्न - हमारे ससुराल में कोई पूजा पाठ नहीं करता सब पाश्चात्य प्रेरित नास्तिक हैं, मुझे साधना करने में असुविधा होती है यहाँ, क्या करूँ कैसे अनुष्ठान वगैरह करूँ?

 प्रश्न - हमारे ससुराल में कोई पूजा पाठ नहीं करता सब पाश्चात्य प्रेरित नास्तिक हैं, मुझे साधना करने में असुविधा होती है यहाँ, क्या करूँ कैसे अनुष्ठान वगैरह करूँ? 


उत्तर - एक सत्य कहानी सुनो, एक जूते बनाने वाली कम्पनी के दो सेल्समैन को अफ़्रीकी महाद्वीप के एक शहर में जूते की फैक्ट्री खोलने से पहले निरीक्षण हेतु भेजा गया। पता करके बताओ कि फैक्ट्री खोलना ठीक रहेगा या नहीं।


उस अफ़्रीकी जनजातीय क्षेत्र में कोई जूता व चप्पल पहनता नहीं था।


पहले सेल्समैन ने रिपोर्ट बनाकर कम्पनी को भेजी कि *यहां कोई जूता चप्पल पहनता नहीं*, अतः यहां जूते की फैक्ट्री खोलने का कोई लाभ नहीं।


दूसरे सेल्समैन ने रिपोर्ट बनाकर कम्पनी को भेजी कि *यहां कोई जूता चप्पल पहनता नहीं*, अतः यहां जूते की फैक्ट्री खोलने से बहुत लाभ होगा, क्योंकि हम पहली कम्पनी होंगे जो लोगों को जुते चप्पल पहनने का लाभ बताएंगे, लोगो को जूते चप्पल की उपयोगिता के प्रैक्टिकल लाभ दिखाएंगे। धीरे धीरे परिवर्तन ह्योग, व सभी हमसे जुते चप्पल खरीदेंगे, कम्पनी को यहां बहुत लाभ होगा।


जूते की कम्पनी ने पहले सेल्समैन को  वापस बुला लिया, दूसरे सैल्समैन को वहां खोली नई कम्पनी का जनरल मैनेजर बना दिया।  वह सफल हुआ।


अब यह कहानी तुम पर भी लागू होती है, *तुम्हारे ससुराल में आध्यात्मिक वातावरण नहीं है* यह कटु सत्य है। अब पहले सेल्समैन की तरह रिपोर्ट बनाओगी या दूसरे सेल्समैन की तरह रिपोर्ट व प्लान बनाओगी, यह तुम्हारा निर्णय तय करेगा, वही नियति बनेगा।


तुम अध्यात्म की सेल्समैन हो, तुम उस परिवार तक अध्यात्म पहुंचा सकती हो, सबके आत्म उत्थान का माध्यम शनैः शनैः बन सकती हो। कठिन है मगर असम्भव नहीं, कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती। जो अपनी मदद स्वयं करता है, उसकी मदद ईश्वर भी करता है।


दीपक के तल में अंधेरा हो तो भी उसका महत्त्व कम नहीं होता, यदि जो बहन  सभी ससुराल वालों को अध्यात्म से नहीं जोड़ पाई मग़र किसी एक को उनमें से अध्यात्म राह पर ले आई, वह भी बहुत है। स्वयं के अध्यात्म को जीवंत व प्रकाशित रखना भी श्रेयष्कर है।


घण्टों जप ध्यान में व्यवधान है, तो मन से ध्यानस्थ गृह कार्य करते हुए भी रहा जा सकता है। मन के जप व ध्यान को जब तक कोई अंतर्यामी न हो जान भी नहीं सकता। 


तुम ज्यों ज्यों आत्म प्रकाशित होगी, बुद्धत्व तुममें जागृत होगा त्यों त्यों ससुराल वाले भी अध्यात्म की ओर जुड़ने लगेंगे। 


गुरु का प्रथम परिचय शिष्य होता है, शिष्यत्व के परिचय को ठीक करो, गुरु  को तुम्हारे जानने व उनसे जुड़ने को परिवार के लोग अवश्य प्रेरित होंगे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - मूर्ति पूजा के सम्बंध में कहे जाने वाले इस दोहे पर आपकी क्या राय है?

 प्रश्न - मूर्ति पूजा के सम्बंध में कहे जाने वाले इस दोहे पर आपकी क्या राय है?


पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।

ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥


कबीर दास जी कहते हैं, यदि पत्थर पूजने से भगवान मिलते, तो मैं पहाड़ पूजता। इससे अच्छा तो पत्थर की चाकी है जिससे कम से कम आटा तो पीसकर संसार खाता है।


उत्तर- दोहे का प्रश्न पूँछा है तो प्रति उत्तर में एक दोहा से ही शुरुआत करना चाहती हूँ..


गुलाब दिए जो बदले में प्रेम मिले,

तो मैं दूँ ढ़ेर सारे गुलदस्ता उपहार।

ताते यह गोभी का फूल भला,

इसकी सब्जी बना खाये संसार।।


 श्वेता कहती हैं कि यदि गुलाब के पुष्प से प्रेम मिलता हो तो हम हज़ारों गुलदस्ते उपहार में दे दें। लेकिन गुलाब के पुष्प से अच्छा तो गोभी का फूल है जिससे सब्जी बनाकर पूरा परिवार खायेगा। अतः अब प्रेम सम्बंध हो या ईश्वर पूजन गुलाब के पुष्प की जगह गोभी का फूल उपयोग में लें...😍😍😍😁😁😁 


मज़ाक बहुत हुआ, असली मुद्दे पर आते हैं।

प्रतीक :-

 गुलाब का पुष्प एक लिफ़ाफ़े की तरह है जो किसी के प्रेम का वाहक प्रतीक बनता है। 


वाहक :-

शरीर वैसे तो बिना आत्मा शव है, लेकिन जब तक उसमें आत्मा है, वह आत्मा का लिफ़ाफ़ा/वाहन बनता है। 


सहारा :-

अक्षर वैसे तो निराकार ध्वनि है, लेक़िन सभी भाषा वादियों ने उसे एक आकार दे दिया, जिससे पढ़ने लिखने में आसानी हो।


इसीतरह निराकार भगवान के प्रतीक उनके विग्रह/मूर्ति के पूजन का विधान है। मूर्ति को दुकान से लाकर यूँ ही उसकी पूजा शुरू नहीं की जाती। उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा होती है, उसमें भावनात्मक रूप से साधक जुड़ता है, तब वह मूर्ति ईश्वर प्रतीक बनती है। एक आध्यात्मिक विधिव्यवस्था है। भक्ति की शक्ति से मूर्ति सजीव होती है, प्रेमी के प्रेम भाव से गुलाब का पुष्प जीवंत प्रेम प्रतीक बनता है।


प्रतीक सभी धर्मों में पूजे जाते हैं, क्रॉस व क्राइस्ट की मूर्ति इसाई धर्म मे , कब्र पूजन मुस्लिम धर्म में इत्यादि।


माता की मूर्ति हो या फोटो में अपनी माता को देख हम उन्हें याद करते हैं। भाई यदि सैनिक हो और छुट्टी न मिले तो स्त्री उसके फोटो को राखी बांधती है और विवाहिता उसका फ़ोटो देखकर करवा चौथ का व्रत तोड़ती है। फ़ोटो के साथ ही पूरे प्रतीक के साथ सजीव भावना से नियम पूरे किये जाते हैं।


कबीर निराकार निर्गुण साधक थे, वह यह समझा रहे थे कि मात्र मूर्ति को सबकुछ मत समझो, मूर्ति पूजन की प्राण प्रतिष्ठा की, भावनाओ की महत्ता व साधना की गुणवत्ता को भी समझो। अध्यात्म के मर्म व योग को भी समझो। मात्र अध्यात्म की प्राइमरी क्लास में मत रुक जाना, आगे सगुण साधना से निर्गुण साधना की ओर भी बढ़ना। 


🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday, 15 July 2021

प्रश्न - पशुवत जीने में क्या बुराई है? प्राकृतिक अवस्था मे रहने वाले पशु पक्षी कितने सुखी हैं..

 प्रश्न - पशुवत जीने में क्या बुराई है? प्राकृतिक अवस्था मे रहने वाले पशु पक्षी कितने सुखी हैं..


उत्तर - न पशुवत जीने में बुराई है और न विकसित मनुष्य की तरह जीने में बुराई है।


समस्या तब उत्तपन्न होती है जब कोई आधा मनुष्य व आधा पशुवत जीना चाहता है। 


पक्के मकान व सभ्य समाज में रहकर जङ्गली पशुवत व्यवहार उचित नहीं, जङ्गली कबीले में आदिवासियों के बीच सभ्य आधुनिक व्यवहार उचित नहीं।


पशु पक्षी कुछ भी पकाकर नहीं खाते, कोई वस्त्र नहीं पहनते, कुछ भी कृत्रिम उपयोग मे नहीं लेते, पेड़ पौधे व गुफा - कंदरा में निवास करते हैं। आप भी बिल्कुल वैसा प्राकृतिक एवं पशुवत जीवन जी सकते हो। बुद्धि प्रयोग बन्द करके जड़वत जियें।


यदि बुद्धि प्रयोग हुआ, एवं समाज मे आपका प्रवेश हुआ तो सामाजिक नियम मानने पड़ेंगे।


मनुष्य आनन्द के लिए शरीर पर नहीं है, उसकी निर्भरता मन पर  है, वह जानता है शरीर को दर्द या आराम दिया जा सकता है, सुख या दुःख नहीं। सुविधा से आराम मिलता है सुख नहीं। सुख व दुःख मन की अनुभूति है, मन के आध्यात्मिक क्रमशः विकास से निरंतर मन्त्र जप, ध्यान व स्वाध्याय से परम आनन्द पाया जा सकता है। सुखी रहा जा सकता है।


💐श्वेता, DIYA

विषय - आत्म निर्माण से परिवार निर्माण व राष्ट्रनिर्माण

 विषय - आत्म निर्माण से परिवार निर्माण व राष्ट्रनिर्माण


परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं कि सबसे बड़ा पुण्य परमार्थ है, स्वयं के मूलतत्व को जानना कि "मैं क्या हूँ?' और स्वनिर्माण- आत्मनिर्माण करना। अप्प दीपो भव - आत्मप्रकाशित होना।


बुझा हुआ दीपक, न स्वयं के आसपास का अंधेरा मिटा सकता है, न किसी के जीवन को रौशन कर सकता है और न हीं दूसरे दीपक को जला सकता है। यदि क्रमशः परिवार निर्माण, समाज निर्माण व राष्ट्र निर्माण करना है तो उसकी पहली शर्त आत्मनिर्माण को करना होगा।


जब तक स्वयं की पहचान शरीर तक रखेंगे पशुवत आचरण रहेगा। जब अपनी पहचान मात्र मन तक रखेंगे तो मात्र भोगी बनकर रह जाएंगे और जब अपनी पहचान अपने मूल स्वरूप आत्मा को समझेंगे तभी हम आत्मनिर्माण कर सकेंगे।


जीवन संग्राम हो या साधना समर उसे लड़ने व जीतने के लिए शरीर रूपी उपकरण स्वस्थ होना ही चाहिए। जंग लगी तलवार से युद्ध नहीं जीता जाता वैसे ही अस्वस्थ शरीर से जीवन संग्राम व साधना समर नहीं लड़ा जा सकता।


साधना कैप्सूल


आहार शुद्धि से प्राणों के सत की शुद्धि होती है, सत्व शुद्धि से स्मृति निर्मल और स्थिरमति (जिसे प्रज्ञा कहते हैं) प्राप्त होती है। स्थिर बुद्धि से जन्म-जन्मांतर के बंधनों और ग्रंथियों का नाश होता है और बंधनों और ग्रंथियों से मुक्ति ही मोक्ष है। अत: आहार शुद्धि प्रथम नियम और प्रतिबद्धता है।


आहार केवल मात्र वही नहीं जो मुख से लिया जाए, आहार का अभिप्राय है स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर को पुष्ट और स्वस्थ रखने के लिए इस दुनिया से जो खाद्य लिया जाए।


1. कान के लिए आहार है शब्द या ध्वनि। अच्छा सुनें व कान भरने वालो से दूर रहें। सत्संग करें।

2. त्वचा के लिए आहार है स्पर्श। उन लोगों के स्पर्श से बचें जो मन मे विकार उतपन्न करें।

3. नेत्रों के लिए आहार है दृश्य या रूप जगत। अच्छा देखें, दूसरों में अच्छाइयां देखें।

4. नाक के लिए आहार है गंध या सुगंध। अच्छा सुंगंधित वातावरण मन को शांत व व्यवस्थित बनाता है। कृतिम परफ्यूम व गन्ध मन को उत्तेजक व वासनामय बनाती है, इससे बचें।

5. जिह्वा के लिए आहार है अन्न और रस। जिह्वा को साधें, स्वास्थ्यकर खाये व बोलने से पहले दो बार सोचसमझकर बोलें। मीठे वचन मन की पीड़ा हरते हैं, कटु वचन मन को लहू लुहान कर देते हैं।

6. मन के लिए आहार है उत्तम विचार और ध्यान। जैसे विचारों का संग्रह मन करेगा वैसा बनेगा। वासनामय विचार का संग्रह मनुष्य को व्यभिचारी बना देते हैं, श्रेष्ठ विचारों का संग्रह मनुष्य को महान बनाता है। विचार बीज है और कर्म उसका पौधा, जो जैसा विचारों का चिंतन मनन करता है वैसबन जाता है।


अत: ज्ञानेन्द्रियों के जो 5 दोष हैं जिससे चेतना में विकार पैदा होता है, उनसे बचें। आत्मशोधन के माध्यम से जो अवांछनीय स्वयं में दोष दुर्गुण हैं उन्हें निकाले, श्रेष्ठ गुणों को जीवन में समावेशित करें। एकाग्रता का अभ्यास करें और स्वयं को प्रतिपल निखारे।


आत्मनिर्माण से व्यक्तित्व पूर्णता को प्राप्त करता है, ऐसा व्यक्ति परिवार का संरक्षक बनता है, समाज का उद्धारक बनता है और राष्ट्र का रक्षक बनता है।


दीप से दीप जलता है, अच्छे व्यक्ति का प्रभाव दुसरो को अच्छाई के लिए प्रेरित करता है। धीरे धीरे अच्छे लोगो का समूह खड़ा होता है और एक अच्छे समाज का निर्माण होता है। अच्छे लोग मिलकर महान  व शशक्त राष्ट्र निर्माण में सहयोगी बनते हैं।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday, 14 July 2021

एकाग्रता ही सफलता की प्रथम शर्त है

 एकाग्रता ही सफलता की प्रथम शर्त है


अर्जुन के मछली के आंख के बेधन की क्षमता की कथा जो जानते हैं वह समझते ही होंगे कि एकाग्रता और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं।


अध्यात्म क्षेत्र हो या संसार क्षेत्र सफल होना है तो एकाग्रता का अभ्यास होना चाहिए।


एकाग्रता के अभ्यास का एक छोटा उपक्रम में शांतिकुंज का ध्यान। मन की एकाग्रता के लिए शरीर की स्थिरता जरूरी है। तो प्रथम कम से कम 15 मिनट बिना हिले डुले रीढ़ की हड्डी सीधी रख बैठने का प्रयास करें, कमर दर्द हो तो कुर्सी का प्रयोग कर लें। शरीर की स्थिरता मिलने पर मन की स्थिरता हेतु क्रमशः निम्नलिखित प्रयास करें।


1- शुरुआती एक हफ्ते मन को घर से शांतिकुंज यात्रा करवाइए

2- अगले एक हफ्ते मन को शांतिकुंज के अंदर कहीं भी घूमने की इजाजत दें

3- अगले दूसरे हफ्ते मन को समाधि क्षेत्र में रोककर रखें मानो आपका मन समाधि क्षेत्र में लगा कैमरा हो जो मात्र समाधि क्षेत्र को ही देख सकता हो।

4- इसी तरह कुछ हफ्ते कभी सप्तर्षि में मन को रोकिए, तो कभी ग़ायत्री मन्दिर, तो कभी यज्ञस्थल, तो कभी अखंडज्योति दर्शन तो कभी गुरुदेव के साधना कक्ष के भीतर मन को केंद्रित करें। मग़र ध्यान रखे चुने क्षेत्र से मन बाहर न जाये।कम से कम 15 मिनट और अधिक से अधिक एक घण्टे यह अभ्यास करें।

5- मन जब थोड़ा अभ्यस्त हो गया तो अब मन को ग़ायत्री मन्दिर में मात्र माता की मूर्ति पर कुछ दिन केंद्रित करें। माता का मुकुट, चेहरा, वस्त्र व चरण सब को गहराई से अंतर्मन में अंतर चक्षु से देखने का प्रयत्न करें।

6- जब मन माता की मूर्ति पर एकाग्रता का अभ्यास कर ले, तब मन को मात्र ग़ायत्री माता की आंखों पर या चरण पर केंद्रित करें। फोकस चरण या नेत्र में से जो भी सोचा हो उस पर ही केंद्रित हो।

7- इस एकाग्रता से ध्यान के सफर में आप आगे बढोगे। मन इतना अभ्यस्त हो जाएगा कि आध्यात्मिक कोई भी ध्यान में मन लगने लगेगा, सांसारिक पढ़ाई हो या जॉब व्यवसाय का काम कहीं भी मन को एकाग्र करने की कुशलता मिल जाएगी।


करत करत अभ्यास से,

जड़मति होत सुजान,

रसरी आवत जात ही,

सल पर पड़त निशान।


निरंतर अभ्यास से एकाग्रता हासिल की जा सकती है। 



🙏🏻श्वेता, DIYA

Wednesday, 7 July 2021

प्रश्न - भगवान बेरहम क्यों है?

 प्रश्न - भगवान बेरहम क्यों है?

उत्तर - बेटे, भगवान एक न्यायाधीश है, वह न दयालु है और न ही बेरहम है।


कर्म प्रधान यह विश्व बनाया है, जंगल में शेर व हिरण दोनों को बनाया है। सुबह दौड़ दोनों लगाते हैं एक नाश्ते के लिए और दूसरा जीवन बचाने के लिए..शेर जीता तो भोजन इनाम में मिलेगा, हिरण जीता तो जीवन इनाम में मिलेगा।


प्रत्येक जीव की स्वतंत्र यात्रा और कर्मफ़ल है। ऋणानुबंध जिसका जैसा सम्बंध प्रतिफल में उसके वैसे... दो पूर्वजन्म के मित्र जीवनसाथी बने तो प्रेमी युगल...दो पूर्वजन्म के शत्रु जीवनसाथी बने तो युद्ध प्रचंड.. किसका कितने दिनों का साथ यह भी पूर्व जन्म के कर्मफ़ल का ही है विधान...


जब तक मनुष्य स्वयं को शरीर व इसी जन्म को सबकुछ मानेगा उसे भगवान बेरहम दिखाई देगा। जब मनुष्य स्वयं के अस्तित्व की पहचान करेगा, यह जानेगा कि वह आत्मा है और उसका कर्मफ़ल बैंक का अकाउंट आत्मा से लिंक है मात्र इस वर्तमान शरीर से नहीं... उसे पता चलेगा कि वह अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है... तब उसे भगवान बेरहम नहीं लगेगा अपितु दयालु न्यायाधीश लगेगा... जो बड़े बड़े अपराध सच्चे हृदय से साधना व प्रायश्चित करने पर माफ कर देता है... गलत कर्म करने वालो पर दण्ड विधान अपनाता है... अच्छे कर्म करने वालो को प्यार ही प्यार देता है...


धरती में जो जैसा बोता है वही काटता है।  धरती पक्षपात नहीं करती व न्यायाधीश की तरह कर्म बीज अनुसार फल देती है। ऐसे ही मनुष्य जो कर्म बीज समय की जमीन पर बोता है, परमात्मा वही फसल के रूप में लौटाता है। फिर भगवान बेरहम कैसे हुआ? 


जब किसान धरती को बेरहम नहीं बोलता तो आप भगवान को बेरहम कैसे बोल सकते हैं? जब किसान डिमांड नहीं करता कि बीज बबूल के और फल आम के दो, तो हम सब यह क्यों चाहते हैं कि करे गलत कर्म और आये अच्छा परिणाम? 


जीवन समग्र है, टुकड़ों में यह चाहोगे कि आधा बुरे कर्म करें व आधा अच्छा तो नहीं चलेगा, सब मिक्स परिणाम मिलेगा। अच्छा जीवन परिणाम चाहिए तो सब अच्छा करने का अभ्यास करना होगा।


सही कर्म बीज समय की जमीन पर बोइये, उनका पोषण कीजिये। शुभ परिणाम अवश्य मिलेगा।


💐श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 5 July 2021

प्रश्न - हमारे पति दो भाई और एक बहन हैं, छोटे भाई व नंदोई ने मिलकर सम्पत्ति माता पिता पर दबाव डालकर अपने नाम कर ली है? क्या सम्पत्ति में अपना हिस्सा के लिए हो रही लड़ाई में हमें भाग लेना चाहिए?

 प्रश्न - हमारे पति दो भाई  और एक बहन हैं, छोटे भाई व नंदोई ने मिलकर सम्पत्ति माता पिता पर दबाव डालकर अपने नाम कर ली है? क्या सम्पत्ति में अपना हिस्सा के लिए हो रही लड़ाई में हमें भाग लेना चाहिए?


उत्तर- प्रत्येक परिवार में धर्म युद्ध करना पड़ता है। कभी स्वेच्छा से राम बन बनवास स्वीकारते हैं तो रामायण घटती है। कभी अपने जब अधिकार मांगते हैं तो महाभारत घटती है।


युद्ध कभी शांतिपूर्ण नहीं होता और न ही बिना हानि उठाये जीता जाता है। पारिवारिक युद्ध अपनों के बीच होता है, तो रिश्तों में कड़वाहट स्वभाविक है।


न रामायण पालना कायरता है और न ही महाभारत करना बहादुरी है।रामायण पालना है या महाभारत करना है, इस बात के लिए स्व-विवेक का सहारा लीजिये। आप गृहस्थ हो कोई सन्यासी नहीं। अतः भगवान व गुरुदेव दोनों ही बुरा नहीं मानने वाले यदि आप अपने सही अधिकारों के लिए धर्म युद्ध लड़ेंगे। 


मग़र बस यह ध्यान रखें, अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ना है तो लड़ें मग़र जानबूझ छल  कर के दूसरे की संपत्ति न हड़पें। साथ ही जब कोई असहाय वृद्धावस्था रुग्णावस्था में आपसे मदद मांगने आये तो मदद अवश्य करें चाहे उसने आपके साथ कितना ही बुरा क्यों न किया हो।


सभी अपने अपने किये कर्म भोगेंगे।


श्रीमद्भागवत गीता का 18 दिन पाठ कीजिए और साथ ही गायत्री मंत्र जप और ध्यान कीजिए। स्वयं से प्रश्न पूँछिये कि आपके लिए क्या उचित होगा? सम्पत्ति के पाने के लिए लड़ना या सम्पत्ति छोड़कर चले जाना। हृदय से जो आवाज़ आये व आत्मा जिसकी गवाही दे वह अवश्य करें।


कलियुग में सतयुगी रिश्ते मिलना मुश्किल है। युद्ध बिना नुकसान के होना सम्भव नहीं, दोनों तरफ नुकसान अवश्य होगा किसी का ज्यादा व किसी का कम नुकसान होगा। कोर्ट कचहरी में समय, श्रम व धन अवश्य खर्च होगा। अतः मनःस्थिति इसके लिए पूर्व तैयार रखें फिर युद्ध मे कदम रखें।


सन्यासी बनकर सम्पत्ति छोड़नी है तो जीवनसाथी को और निज मन को समझाने के लिए तर्क तथ्य प्रमाण रखिये। नहीं तो गृहस्थ जीवन मे अर्जुन की तरह अपना युद्ध सबको स्वयं ही लड़ना ही पड़ता है, कर्म अवश्य करें व हार-जीत की चिंता न करें। जो होगा अच्छा ही होगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - यदि गलत आचरण करने वाले हमसे उम्र में बड़े हों तो क्या उनका विरोध करना व आक्रोश जताना उचित है?

 प्रश्न - यदि गलत आचरण करने वाले हमसे उम्र में बड़े हों तो क्या उनका विरोध करना व आक्रोश जताना उचित है?


उत्तर- बड़ी उम्र यह निर्धारित नहीं करती कि बड़ी उम्र में किया गलत आचरण उचित है।


अतः बड़े द्वारा किये ग़लत कार्य व आचरण का विरोध और उन पर किया आक्रोश उचित है।


उदाहरण 1 - 

माता जी को डायबिटीज 400 के आसपास है, उनका जिह्वा पर नियंत्रण नहीं। चोरी से मिठाई खा रही हैं, यह जानते हुए भी कि इससे तबियत बिगड़ जाएगी तो आप उम्र में उनसे छोटे हो तो भी उन्हें इसके लिए टोकों, विरोध करो और आक्रोश जताओ।


उदाहरण 2 - पिताजी रिटायर्ड हैं और मोबाइल में अश्लील वीडियो देखने के आदी हैं, घर में छोटे बच्चे हैं जो मोबाईल छूते हैं। तो पिताजी को मना करो, उनका विरोध करो कि पहली बात यह सब न देखें, यदि देखते हैं तो एकांत में हेडफोन लगा के देखें। बच्चों के सामने यह सब नहीं पड़ना चाहिए। यूट्यूब में जैसे कंटेंट आप देखते हो, वैसे कंटेंट ही इंटरनेट में सभी जगह सजेस्ट होंगे। अतः बच्चे की पहुंच से अपना मोबाइल दूर रखें।


🙏🏻श्वेता, DIYA

Friday, 2 July 2021

प्रश्न - मनुष्य जीवन का मूल लक्ष्य (Ultimate Goal) क्या होना चाहिए?

 प्रश्न - मनुष्य जीवन का मूल लक्ष्य (Ultimate Goal) क्या होना चाहिए?


उत्तर - मानव अस्तित्व बीच में है, दो तल ऊपर - महामानव व देवमानव के हैं और दो तल नीचे क्रमशः मानवपशु और मानवपिशाच हैं।


निम्न को 5 माने और 1 को उच्च माने तो 1- देवमानव, 2-महामानव, 3-मानव,  4-पशु मानव, 5-मानव पिशाच


हम जब जन्मते हैं तब हम बीच में 3- मानव होते हैं। 


मनुष्य अच्छे कर्मो से ऊपर की ओर और बुरे कर्मो से नीचे की खाई की ओर गमन करता है।


मनुष्य के जीवन का उद्देश्य स्वयं में देवत्व का उदय कर, अच्छे कर्मों व शुभ विचारों से 1-देवमानव बनना चाहिए। देवमानव ही परमात्म चेतना से एकाकार व उनकी कृपा, अनुदान, वरदान के हकदार बनते हैं।


हम परमात्मा के अंश है, परमात्मा सद्गुणों व सत्कर्मों का समुच्चय है। उसके जैसा बनना ही जीवन लक्ष्य होना चाहिए। यही मुक्ति व आनन्द मार्ग है। जितने अंशो में देवत्व जगेगा उतने अंशो में आनन्दमय मन और तृप्त-संतुष्ट आत्मा होगी।


आत्मसाक्षात्कार देवमानव को स्वतः हो जाता है, क्योंकि दैवीय नेत्र स्वयं के मूल तत्व आत्मा को जानने व परमात्मा से एकत्व स्थापित करने में सक्षम होते हैं।


💐श्वेता,DIYA

डायबिटीज घरेलू उपाय से 6 महीने में ठीक करें - पनीर फूल(पनीर डोडा)

 सभी चिकित्सक, योग करवाने वाले भाइयों बहनों, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे डायबटीज और ब्लडप्रेशर ठीक करने वाले रिसर्च में सहयोग करें। निम्नलिखित...