प्रश्न - *शिक्षकों के लिए नित्य गायत्री मंत्र जप व ध्यान क्यों आवश्यक है?*
उत्तर - हमारे देश में 99% उद्विग्न, व्यग्र व अशांत होकर, बेमन से पढ़ने छात्र-छात्रा स्कूल आते हैं।
उनकी व्यग्रता को शांत एक स्थिर मन का शांतचित्त व प्रशन्न चित्र शिक्षक ही कर सकता है। वह स्वयं की मानसिक स्थिरता से बच्चों के मन में स्थिरता का संचार कर सकता है।
गायत्री मंत्र जप व ध्यान शारीरिक व मानसिक फिटनेस बढ़ाता है, एकाग्रता बढ़ाता है, स्पष्टता बढ़ाता है, अवेयरनेस/जागरूकता बढ़ाता है, अवलोकन/ऑब्जर्वेशन के कौशल में सुधार करता है। आपको हल्का महसूस कराता है, सकारात्मक पॉजिटिव कंपन/वाइब्रेशन पैदा करता है। आपकी मन की शांति व स्थिरता बच्चों को प्रभावित करती है। नित्य ध्यान करने वाले शिक्षकों को बच्चों के मनोभावों को समझने में आपको आसानी होती है। यह मेडिकली भी अब प्रूव हो चुका है।
पढ़ाना अर्थात वक्ता की तरह विषय वस्तु को बोलना लेकिन यदि श्रोता गण सुनने को तैयार ही न हों, उनके मनोभाव रिसीव ही न करें तो मेहनत आपकी व्यर्थ हो जाती है। अतः पढ़ाने से पूर्व पढ़ने व सुनने की मनःस्थिति बच्चों की तैयार करवाना अति अनिवार्य है।
यदि 45 मिनट की क्लास में शुरू में 3 से 5 मिनट उन छात्र छात्राओं को 1 मिनट गायत्री मंत्र जप, 2 मिनट डीप ब्रीथिंग और अत्यंत छोटे से 2 मिनट के ध्यान द्वारा एकाग्र कर दिया जाय तो अगले 40 मिनट को वो ग्रहण करने, सुनने को तैयार हो जाते हैं।
शिक्षक व छात्र-छात्राओं की चित्त की स्थिरता शिक्षण की गुणवत्ता को कई गुना बढ़ा देता है। शुरू शुरू में थोड़ी कठिनाई होगी, मगर एक बार अभ्यस्त हो गए तो कमाल हो जाएगा। यह प्रयोग एक बार करके देखें व 6 महीने में स्वयं परिणाम सुखद अनुभव करेंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - हमारे देश में 99% उद्विग्न, व्यग्र व अशांत होकर, बेमन से पढ़ने छात्र-छात्रा स्कूल आते हैं।
उनकी व्यग्रता को शांत एक स्थिर मन का शांतचित्त व प्रशन्न चित्र शिक्षक ही कर सकता है। वह स्वयं की मानसिक स्थिरता से बच्चों के मन में स्थिरता का संचार कर सकता है।
गायत्री मंत्र जप व ध्यान शारीरिक व मानसिक फिटनेस बढ़ाता है, एकाग्रता बढ़ाता है, स्पष्टता बढ़ाता है, अवेयरनेस/जागरूकता बढ़ाता है, अवलोकन/ऑब्जर्वेशन के कौशल में सुधार करता है। आपको हल्का महसूस कराता है, सकारात्मक पॉजिटिव कंपन/वाइब्रेशन पैदा करता है। आपकी मन की शांति व स्थिरता बच्चों को प्रभावित करती है। नित्य ध्यान करने वाले शिक्षकों को बच्चों के मनोभावों को समझने में आपको आसानी होती है। यह मेडिकली भी अब प्रूव हो चुका है।
पढ़ाना अर्थात वक्ता की तरह विषय वस्तु को बोलना लेकिन यदि श्रोता गण सुनने को तैयार ही न हों, उनके मनोभाव रिसीव ही न करें तो मेहनत आपकी व्यर्थ हो जाती है। अतः पढ़ाने से पूर्व पढ़ने व सुनने की मनःस्थिति बच्चों की तैयार करवाना अति अनिवार्य है।
यदि 45 मिनट की क्लास में शुरू में 3 से 5 मिनट उन छात्र छात्राओं को 1 मिनट गायत्री मंत्र जप, 2 मिनट डीप ब्रीथिंग और अत्यंत छोटे से 2 मिनट के ध्यान द्वारा एकाग्र कर दिया जाय तो अगले 40 मिनट को वो ग्रहण करने, सुनने को तैयार हो जाते हैं।
शिक्षक व छात्र-छात्राओं की चित्त की स्थिरता शिक्षण की गुणवत्ता को कई गुना बढ़ा देता है। शुरू शुरू में थोड़ी कठिनाई होगी, मगर एक बार अभ्यस्त हो गए तो कमाल हो जाएगा। यह प्रयोग एक बार करके देखें व 6 महीने में स्वयं परिणाम सुखद अनुभव करेंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन