Saturday, 30 November 2019

प्रश्न - *दी प्रणाम, हमारे मन में किसी के प्रति दुर्भावना क्यू आने लगती है जबकि हम ऐसा नहीं चाहते क्या जिसके प्रति हमारे मन में दुर्भावना आती है

प्रश्न - *दी प्रणाम, हमारे मन में किसी के प्रति दुर्भावना क्यू आने लगती है जबकि हम ऐसा नहीं चाहते क्या जिसके प्रति हमारे मन में दुर्भावना आती है वहीं उसका कारण होता है मतलब वह हमारे प्रति दुर्भावना से ग्रस्त हो तो हमे भी उसके प्रति होने लगती है इससे कैसे बचें?*

उत्तर - आत्मीय भाई, बिना आग के धुंआ नहीं उठता। अब यह स्वार्थ की आग चाहे आपके भीतर हो या उस व्यक्ति के भीतर हो जिसके प्रति आपके लिए दुर्भावना उठ रही है। अपने हृदय से स्वार्थ व उस व्यक्ति से कुछ भी चाहने की इच्छा मिटा दो दुर्भावना मिट जाएगी। अब दूसरे के अंदर यदि आपका बुरा करने का भाव होगा तो भी आपके भीतर भी उसे देखकर दुर्भावना उठेगी।

एक कहानी से इसे समझो :-

एक धर्मात्मा राजा अपने मंत्री सहित अपने राज्य के बाज़ार में भेष बदल कर घूम रहा था। तभी एक चन्दन के दुकानदार को देखकर उसके मन मे उसके प्रति दुर्भावना उठी व उसे कोड़ों से पीटने व फाँसी देने की इच्छा हुई। राजा ने मंत्री से पूँछा, मैं इस दुकानदार को जानता भी नहीं फिर इसे देखकर मेरे मन में दुर्भावना क्यों उठ रही है? आप मेरे मन से इस व्यक्ति के लिए उठ रही दुर्भावना को मिटाइये। मंत्री ने कहा, पता करता हूँ महाराज और कुछ दिन में आपको रिपोर्ट करूंगा।

एक महीने बाद पुनः मंत्री सहित राजा उस बाज़ार में घूमने आया। आज उस चन्दन के दुकानदार को देखकर उसे पुरस्कृत करने की इच्छा हुई। स्वयं में आये इस बदलाव का कारण पुनः मंत्री  से पूँछा। तब मंत्री ने बताया:-

महाराज पहली बार जब आप इससे मिले थे तो यह आपकी मृत्यु की कामना कर रहा था, क्योंकि इसका चन्दन का व्यापार मंदा चल रहा था। आपकी मृत्यु हो और दाह सँस्कार में चन्दन की लकड़ी लगे। अतः तब आपको इसे देखकर दुर्भावना उठी व दण्डित करने की इच्छा हुई।

मैंने याद होगा कुछ दिन पूर्व आपके कुलदेवता के मंदिर को चन्दन की लकड़ी से बनाने के लिए आपसे बजट अप्रूव करवाया था।मैंने वह ऑर्डर इसे दिया, अब यह नित्य आपकी लंबी उम्र की प्रार्थना करता है। इसलिए इस बार यह व्यक्ति आपको अच्छा लगा और इसे पुरस्कृत करने की इच्छा आपको हुई।

धन्यवाद मंत्री जी, आपने दुर्भावना मिटाई।

लेकिन मेरा एक प्रश्न आपसे है कि मैं पूरी दुनियाँ के प्रति कोई दुर्भावना नहीं लाना चाहता, चाहे कोई मेरी मृत्यु की ही कामना क्यों न कर रहा हो। मंत्री जी यह कैसे सम्भव होगा?

मंत्री ने कहा, राजन इसके लिए आपको बुद्ध बनना पड़ेगा। स्वयं की चेतना को जागृत करना होगा। सुख व दुःख से परे जाना होगा। आत्म तत्व में स्थित हो तत्व दृष्टि-अंतर्दृष्टि विकसित करनी होगी। सब मनुष्यों के भीतर विराजमान परमात्म चेतना को प्रणाम करना होगा। अपने भीतर इतना प्रेम, सद्भावना व आत्मियता भरनी होगी कि उस प्रेम जल से किसी के भी मन के विद्वेष की आग को आप बुझा सकें। दुश्मन से भी प्रेम कर सकें।

इसीतरह आत्मिय भाई आपको अपने भीतर भाव सम्वेदना की गंगोत्री बहाना होगा, व आत्मतत्व में स्थित होना होगा। स्वयं स्वार्थ मुक्त होंगे व विश्वामित्र बनेंगे, तभी दूसरे के मन की दुर्भावना से आप प्रभावित नहीं होंगे।

स्वयं का भला चाहना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन दूसरे का बुरा चाहना अत्यंत बुरा अध्यात्म क्षेत्र में माना जाता है। किसी भी व्यक्ति की निंदा चुग़ली करने से, उस व्यक्ति के लिए दुर्भावना लाने पर उतने ही अंशो व मूल्य का हमें उस व्यक्ति के पापकर्म को स्वयं भोगना पड़ता है हमारे तप पुण्य उतने ही अंशो में उसके पास चले जाते हैं। मानसिक कर्म भी सतर्कता से करें।

कलियुग में मानसिक  कर्म ग़लत होने पर क्षमा मिल जाती है यदि वह शब्दों में कन्वर्ट न हो, व्यवहार में न झलके और साथ ही उसे समझ के मन ही मन उस दुर्भावना के विचार को अच्छे विचार से काट दो, उस विचार में रस मत लो। लेकिन यदि ग़लत विचार व दुर्भावना के चिंतन में रस लिया, व शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया, व्यवहार में अभिव्यक्त किया तो पापकर्मफल अवश्य बनेगा।

पुस्तक - *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* अवश्य पढ़िये।

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *मन्त्रलेखन व मंत्रजप में कौन श्रेष्ठ है। छपरा बिहार में एक बाबूजी हैं वो मन्त्रलेखन की जगह जप करने को श्रेष्ठ बताते हैं।

प्रश्न - *मन्त्रलेखन व मंत्रजप में कौन श्रेष्ठ है। छपरा बिहार में एक बाबूजी हैं वो मन्त्रलेखन की जगह जप करने को श्रेष्ठ बताते हैं। वो कहते हैं कि गुरुजी ने करोड़ो जप किया था न कि मन्त्रलेखन किया था।*

उत्तर - अध्यात्म एक परा चेतना मनोविज्ञान है, जो सूक्ष्म नाड़ियों में ऊर्जा तरंग के प्रवाह व उनके जहां जहां मिलन होता है उन ऊर्जा चक्र की ऊर्जा को प्रदीप्त कर अपेक्षित लाभ लेने का विधिव्यस्था है।

योग के सन्दर्भ में  *नाड़ी* वह मार्ग है जिससे होकर शरीर की ऊर्जा प्रवाहित होती है। योग में यह माना जाता है कि नाडियाँ शरीर में स्थित नाड़ीचक्रों को जोड़तीं है। इनमें भी तीन प्रमुख का उल्लेख बार-बार मिलता है -  *ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना*। *ये तीनों मेरुदण्ड से जुड़े हैं।  इसके आलावे गांधारी - बाईं आँख से, हस्तिजिह्वा दाहिनी आँख से, पूषा दाहिने कान से, यशस्विनी बाँए कान से, अलंबुषा मुख से, कुहू जननांगों से तथा शंखिनी गुदा से जुड़ी होती है।* अन्य उपनिषद १४-१९ मुख्य नाड़ियों का वर्णन करते हैं।

*ईड़ा ऋणात्मक ऊर्जा* का वाह करती है। शिव स्वरोदय, ईड़ा द्वारा उत्पादित ऊर्जा को चन्द्रमा के सदृश्य मानता है अतः इसे चन्द्रनाड़ी भी कहा जाता है। इसकी प्रकृति शीतल, विश्रामदायक और चित्त को अंतर्मुखी करनेवाली मानी जाती है। इसका उद्गम मूलाधार चक्र माना जाता है - जो मेरुदण्ड के सबसे नीचे स्थित है।
*पिंगला धनात्मक ऊर्जा का संचार करती है*। इसको सूर्यनाड़ी भी कहा जाता है। यह शरीर में जोश, श्रमशक्ति का वहन करती है और चेतना को बहिर्मुखी बनाती है।
*पिंगला* का उद्गम मूलाधार के दाहिने भाग से होता है जबकि ईडां का बाएँ भाग से।

यह प्राण ऊर्जा प्रवाहिनी नाड़ियां नासिका से चार से आठ अंगुल बाहर तक फैली होती है। वैसे तो यह टोटल 114 जगहों पर मिलकर ऊर्जा चक्र बनाती हैं, जिनमें से 112 शरीर के भीतर व 2 शरीर के बाहर अवस्थित हैं। छः मुख्य जो क्रमशः इस प्रकार हैं:-

1- *मूलाधार चक्र* - मेरुदंड के मूल में, सबसे नीचे। उससे ऊपर आने पर क्रम से

2- *स्वाधिष्ठान चक्र*

3- *मणिपुर चक्र*

4- *अनाहत चक्र*

5- *विशुद्धि चक्र*

6- *आज्ञा चक्र* - मेरुदण्ड की समाप्ति पर भ्रूमध्य के पीछे।

7- *सहस्त्रार चक्र* - कई विद्वान इसे इस लिए चक्र नहीं मानते कि इसमें ईड़ा और पिंगला का प्रभाव नहीं पड़ता।

भगवान शिव ने *विज्ञान भैरव तंत्र* में स्पष्ट कहा है कि यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियाँ  मनुष्य के भीतर विद्यमान है, वह अभी निष्क्रिय हैं, जिसे साधना मार्ग से सक्रिय किया जा सकता है। चेतना की गहराइयों में जाकर आत्मतत्व को जानने के 112 मार्ग शिव ने विभिन्न शिष्यों को समय समय पर सिखाया है।

वेदों का सार गायत्रीमंत्र है, यह महामंत्र है, इसके मन्त्र अक्षरों का गुम्फन व चयन परा चेतना मनोविज्ञान पर आधारित है। गायत्री मंत्र जप के लगातार घर्षण होठ तालु द्वारा मुंह के अग्निचक्र  से इनमें ऊर्जा उद्दीप्त की जाती है। जैसे श्रद्धा व भाव लेकर मनुष्य साधना करेगा वैसे ही चुम्बकीय तरंग उतपन्न होगी। ब्रह्माण्ड से ये नाड़ियां प्राण ऊर्जा तरंग खींचने लगती है साथ ही ब्रह्माण्ड इच्छित भाव अनुसार साधक के साथ घटनाएं होने लगती है। शरीर के भीतर के दिव्य ऊर्जा चक्र जागृत होते हैं।

उपरोक्त उपलब्धि पाने के हज़ारों मार्ग , मन्त्र व यौगिक क्रियाएं है। जिनमें से सर्वश्रेष्ठ मन्त्र मार्ग गायत्रीमंत्र को गुरुदेव ने इस जन्म में सिद्ध किया व शिष्यों के लिए  उपलब्ध करवाया। इसमें भी गुरुदेव ने कई प्रकार के प्रयोग चेतना स्तर पर किये। उन सबके टेस्ट रिज़ल्ट के आधार पर कर्मकाण्ड व अन्य अनुष्ठान विधियां लिखी। जिनमें से *गायत्रीमंत्र लेखन* भी है।

अब छपरा बिहार वाले बाबूजी कितने रिसर्च में गुरुजी के साथ थे व कितने मार्ग जानते हैं? चेतन स्तर पर उनकी क्या योग्यता है? कितने ग्रन्थों का उन्होंने स्वाध्याय किया है? यह मुझे पता नहीं, यह तो शास्त्रार्थ करके ही जाना जा सकता है।

मग़र उनके कथन अनुसार ऐसा मेरा मानना है कि वह गुरुदेव के विराट स्वरूप के केवल एक अंश साधना प्रयोग से परिचित हैं - जिसे उपांशु जप अनुष्ठान कहते हैं। अब इस मार्ग में भी उन्हें चेतन स्तर पर कितनी गहराई से समझा है यह भी पता नहीं। अतः वो अपनी बुद्धि क्षमता व अनुभव अनुसार सलाह दे रहे हैं। उदाहरण- जिसने जितनी शिक्षा ली होगी वो उतने ही स्तर की सलाह दे पाएगा।

आप इतना समझिए कि मन्त्रलेखन व मंत्रजप दोनों ही दो मार्ग हैं। दोनों ही साधना की मंज़िल तक पहुंचाने में सक्षम है।  मन्त्रलेखन मंत्रजप से ज्यादा फ़लदायी होता है, क्योंकि दोनों आंखों से सूक्ष्म नाड़ियाँ गांधारी व हस्तिजिह्वा, दोनों कानों से पूषा व यशस्विनी और मुंह अलंबुषा नाड़ी अर्थात पाँचो नाड़ियाँ सक्रीय हो जाती हैं। 24000 गायत्रीमंत्र जप का फ़ल 2400 मन्त्रलेखन से ही मिल जाता है।

अतः बाबूजी की बात से कन्फ्यूज़ न हो, जिस साधना मार्ग में मन लगे उसे चुने व साधना करें। गुरुदेव के लिखी पुस्तक - *गायत्री महाविज्ञान* व *प्रसुप्ति से जागृति की ओर* पढ़े।

सफ़ेद बाल किसी के ज्ञानी होने की निशानी नहीं होते, दीक्षा मात्र लेने से कोई साधक नहीं बनता, मेडिकल कॉलेज में एडमिशन किसी को चिकित्सक नहीं बनाता । युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव बनने की योग्यता व उनकी कही बातों को काटने की क्षमता नहीं रखता। अतः यदि शान्तिकुंज से प्रकाशित मन्त्रलेखन की महत्ता को छपरा बिहार के बाबूजी मना कर रहे हैं तो यह उनकी अपनी राय है ऐसा मानिए, जिसका उनके पास कोई ठोस आधार उपलब्ध नहीं है।

जो जितने अंशो में गुरु के प्रति समर्पित होकर भाव साधना के साथ पूर्व श्रद्धा-विश्वास से जिस भी साधना मार्ग का चयन करेगा उसमें उसकी सफ़लता निश्चित है। जो जितनी मेहनत करेगा वो उतने अंशो में सफ़ल होगा। साधना की सिद्धि का मूल श्रद्धा-विश्वास-समर्पण ही है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

हम हैं युगनिर्माणि

*हम हैं युगनिर्माणि*

हमारे सद्गुरु प्रज्ञावतार,
महाकाल का साक्षात हैं अवतार,
समस्या गिनने में,
वह यक़ीन नहीं रखते,
समाधान ढूँढने में,
वह सदा व्यस्त रहते हैं,
वह है पालनकर्ता,
वह ही है सृजनकर्ता,
वह हैं संघारकर्ता,
वह ही है जग पालन कर्ता।

हम हैं उनके युगनिर्माणि,
हम हैं आत्म स्वाभिमानी,
हम हैं उनके सृजन सैनिक हैं,
हाँ, हम ही हैं उनके अंगअवयव।

जब जब धर्म की हानि होती,
जब जब धरा पीड़ा से भरती,
तब तब महाकाल लेते अवतार,
तब तब कृपा करके,
हमें भी नर वानर रूप पे लाते साथ।

हमारा उनका नाता है अटूट,
उनकी परछाई बनकर चलते हैं साथ,
उनका हर आदेश हम पालते हैं,
उनके लिए ही जीते व मरते हैं।

अब उनकी इच्छा ही हमारी इच्छा,
अब उनके सपने ही हमारे सपने,
उनकी एक मुस्कुराहट के लिए,
तन मन धन, सब कुछ है अर्पण।

हम हैं उनके युगनिर्माणि,
हम हैं आत्म स्वाभिमानी,
हम हैं  उनके सृजन सैनिक हैं,
हाँ, हम ही हैं उनके अभिन्न अंगअवयव।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Friday, 29 November 2019

प्रश्न - *क्या प्रज्ञा परिजनों को व्यक्तिगत रूप से कोई दान- दक्षिणा लेना चाहिए?*

प्रश्न - *क्या प्रज्ञा परिजनों को व्यक्तिगत रूप से कोई दान- दक्षिणा लेना चाहिए?*

उत्तर - *लोकसेवियों के लिए दिशाबोध* पुस्तक में व्यक्तिगत रूप से कोई दान- दक्षिणा लेना प्रज्ञा परिजनों के लिए प्रतिबंधित है। यदि कोई परिजन ऐसा करते हुये दिखाई देते हैं तो उन्हें उपरोक्त पुस्तक के अंतिम पृष्ठ में वर्णित *प्रज्ञा परिजनों के लिए सात प्रतिबन्ध* पढ़ाएं, व ऐसा करने के लिए मना करें। गुरुदीक्षित होने पर व मिशन कार्यकर्ता रूप में व्यक्तिगत दान-दक्षिणा न यज्ञ हेतु ले सकते हैं और न ही ध्यान व आध्यात्मिक ज्ञान सिखाने हेतु ले सकते हैं। लोक श्रद्धापूर्वक जो दान देते हैं, उन्हें लोक मंगल के उद्देश्यों में ही लगाया जाना चाहिए, उसे शक्तिपीठ में जमा करना चाहिए। यदि पूर्ण समयदानी है तो शक्तिपीठ से अनुदान लें।

*जून १९७१ में जब पूज्य गुरुदेव अनिश्चित काल के लिए हिमालय यात्रा पर जा रहे थे और वन्दनीया माताजी ने भी मथुरा छोड़कर शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में रहने का निर्णय किया था, उस समय पूज्य गुरुदेव ने अपने अनुयायियों के लिए सात अनिवार्य प्रतिबन्ध घोषित किये थे।* उन्हें युग निर्माण मासिक में भी प्रकाशित किया गया था तथा अलग से प्रपत्र छपवाकर भी वितरित किए गये थे। *प्रति प्रतिबन्ध उसी रूप में यहाँ दिए जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें अनिवार्य अनुशासनों के रूप में जन- जन तक पहुँचाने से ही मर्यादाहीनता एवं भटकावों से बचा जा सकता है।* सन् ७१ के बाद पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी द्वारा स्थूल देह त्याग तक की काल अवधि में उक्त अनुशासनों के स्वरूप में जो स्वाभाविक परिवर्तन हुए हैं, उन्हें अलग से टिप्पणियाँ देकर स्पष्ट किया गया है। नैष्ठिक परिजनों को इन पर खास ध्यान देना चाहिए तथा इस संदर्भ में पूरी जागरूकता बरतनी चाहिए कि इनका उल्लंघन किसी भी क्षेत्र में न किया जाये और न करने दिया जाये। पूज्य गुरुदेव द्वारा स्थापित अनुशासनों की जानकारी के अभाव में ही जनता भ्रमित होती है, ऐसी स्थिति यथाशक्ति न आने दी जाय।

👉🏻१. *संगठन*-युग निर्माण आन्दोलन के हर सदस्य और हर शाखा का सीधा सम्बन्ध केन्द्र से रहे। क्षेत्रीय प्रान्तीय संगठन अलग से खड़े न किये जायें, परस्पर सहयोग करना दूसरी बात है पर ऐसे मध्यवर्ती संगठन आमतौर से व्यक्तिगत महत्त्वाकाँक्षा की पूर्ति और केन्द्र से प्रतिद्वन्द्वता करने के लिए ही बनते हैं। इन प्रयासों को पूर्णतया निरुत्साहित किया जाएँ। केन्द्र को हम इतना समर्थ बनाये जा रहे हैं, भविष्य में बनाते रहेंगे कि वह भारत का ही नहीं समस्त विश्व का एक स्थान से समुचित सूत्र संचालन कर सकें। तब से अब तक अपने मिशन के अनुयायियों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। संगठन की तमाम क्षेत्रीय इकाइयाँ शाखाओं, मण्डलों एवं पीठों के रूप में स्थापित हो गई हैं। फिर भी यह तथ्य आज भी अपनी जगह स्थिर है कि कोई किसी के अधीन नहीं है। सबको केन्द्र से सीधा सम्पर्क बनाये रखने का अधिकार है। क्षेत्रीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार परस्पर सहयोग द्वारा संगठित होकर कार्य करने वाली इकाइयाँ श्रेय की पात्र कही जाती हैं। जगह- जगह समर्थ सहयोगी तंत्र भर खड़े करने के प्रयास करना अभीष्ट हैं।

👉🏻२. *गुरुदीक्षा*-  समर्थ गुरुदीक्षा दे सकने योग्य अभी कोई अपना अनुचर हम नहीं छोड़ सके हैं। असमर्थ व्यक्ति यह महान् उत्तरदायित्व अपने कन्धों पर उठावेंगे तो उनकी कमर टूट जायेगी और जो उनका आश्रय लेगा वह डूब जायेगा। इसलिए भविष्य में गायत्री मंत्र की गुरु दीक्षा लेनी आवश्यक हो तो लाल मशाल के प्रतीक को ही गुरु बनाया जाय। उस संस्कार संकल्प को कोई भी व्यक्ति करा सकेगा पर वह स्वयं गुरु न बनेगा ।  पूज्य गुरुदेव बहुत स्पष्ट कर गये हैं कि जैसे सिक्खों में ‘ग्रंथ साहब ’ तथा रा. संघ में ध्वज को ही गुरुरूप में स्वीकार किया गया है। उसी प्रकार गायत्री परिवार- युगनिर्माण अभियान के अन्तर्गत ‘ लाल मशाल ’ के प्रतीक को ही गुरुरूप में मान्यता दी जाये। युग शक्ति के रूप में अवतरित आदि शक्ति गायत्री की दीक्षा गुरुतत्त्व के इसी प्रतीक के माध्यम से दी जाती रहेगी।
इस संदर्भ में यह सूत्र ध्यान देने योग्य हैं
१. दीक्षा गायत्री महाविद्या की कही जायेगी।
२. वेदमाता- देवमाता गायत्री को विश्वमाता के रूप में सबके लिए सुलभ बनाने वाले इस युग के विश्वामित्र वेदमूर्ति तपोनिष्ठ युगऋषि पं. आचार्य श्रीराम शर्मा इस विधा के आचार्य हैं। श्रद्धालुओं को उन्हीं की सूक्ष्म एवं कारण सत्ता का संरक्षण प्राप्त रहेगा और उन्हीं के प्राण, तप एवं पुण्य के अंश ही श्रद्धालुओं में दिव्य चेतना की कलम लगाने जैसे चमत्कारी परिणाम उत्पन्न करेंगे।
 ३. स्थूल रूप से कर्मकाण्ड सम्पन्न कराने वाले- मंत्र दुहराने वाले परिजन इस विधा में योगदान करने वाले सम्माननीय सहयोगी भर कहे जायेंगे। लोक श्रद्धापूर्वक जो दान देते हैं, उन्हें लोक मंगल के उद्देश्यों में ही लगाया जाना चाहिए। व्यक्तिगत आवश्यकता पूर्ति के लिए दान लेने की परम्परा ने ही लोकसेवियों को श्रद्धा के पात्र के स्थान पर दया का पात्र बनाया है और उनकी साधना सदाशयता पर प्रश्नचिह्न लगाये हैं। उक्त अनुशासन को मानकर चलने से लोक सेवियों की प्रामाणिकता बनाये रखकर भी उनने निर्वाह की व्यवस्था सहज ही की जा सकती है। इस अर्थ प्रधान युग में अर्थानुशासन के इस सूत्र को विशेष जागरूकता के साथ अपनाया जाना चाहिए।
३. *सम्मेलन- यज्ञ*-  युग निर्माण सम्मेलन कितने ही विशाल क्यों न ही किये जायें पर उनके साथ जुड़े हुए गायत्री यज्ञ आमतौर से ९ कुण्ड से बड़े न किये जाने चाहिए। जहाँ कोई विशेष कारण हो, अधिक बड़ा यज्ञ करना अनिवार्य हो तो उसे माता भगवती देवी की विशेष स्वीकृति से ही किया जाय। बड़े यज्ञों के जहाँ बड़े लाभ हैं, वहाँ उनमें बड़ी गड़बड़ियाँ भी देखी गई हैं। इसलिए यह थोड़े कुण्डों का मध्यवर्ती मार्ग अपनाना ही दूरदर्शिता पूर्ण है।  यज्ञायोजनों के पीछे पूज्य गुरुदेव के कुछ सुनिश्चित उद्देश्य रहे हैं, जैसे- 
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१. *यज्ञीय ज्ञान एवं विज्ञान को लुप्त होने से बचाकर जनोपयोगी बनाना*।  रिसर्च करें व गहन अध्ययन करें व यज्ञ का ज्ञान विज्ञान व उपचार प्रमाणिकता के साथ साथ जन जन तक पहुंचाए।
२. *यज्ञायोजनों के माध्यम से जीवन के यज्ञीय अनुशासनों का जन सामान्य को परिचय एवं प्रशिक्षण देना*।  गायत्री मंत्र जप, तप, ध्यान व स्वाध्याय की उपयोगिता से जन जन को बताएं।
३. *यज्ञों के साथ जन सम्मेलन करके ज्ञानयज्ञ के माध्यम से विचार क्रान्ति का विस्तार करना*।  सामूहिक यज्ञायोजनों से उक्त उद्देश्यों की पूर्ति तो होती रहती है। इसलिए पूज्य गुरुदेव ने अन्ततः समाज को यज्ञीय प्रेरणाएँ देने के लिए दीपयज्ञों सहित सम्मेलनों की परिपाटी चलाने का निर्देश दिया। दीपयज्ञों द्वारा यह उद्देश्य कुण्डीय यज्ञों की अपेक्षा अधिक प्रभावी ढंग से सम्पन्न होते हैं। कुण्डीय यज्ञों को केवल सामूहिक साधनाओं की पूर्णाहुति के रूप में साधकों द्वारा अपने ही साधनों द्वारा सम्पन्न करने की मर्यादा वे स्थापित कर गये हैं। इन अनुशासनों को ध्यान में रखकर चलने से अवांछनीय प्रतिक्रियाओं से बचते हुए यज्ञीय जीवन दर्शन का लाभ जन- जन तक पहुँचाया जा सकेगा। 
४. *यज्ञाचार्यों का अलग पद न रहे*। युग निर्माण सम्मेलनों सहित हो जा यज्ञ होंगे उनका सूक्ष्म रूप में हम संरक्षण करेंगे। फिर इसके लिए किसी यज्ञाचार्य- ब्रह्मा आदि की जरूरत न रहेगी। जिन्हें विधि विधान ठीक तरह आते हों उनमें से कोई भी उस कृत्य को प्रसन्नतापूर्वक करा सकता है। 
५. *जलयात्रा, विसर्जन आदि के जुलूसों में गायत्री माता, लाल मशाल के प्रतीकों को ही सुसज्जा के साथ निकाला जाय*। व्यक्तियों का जुलूस न निकले। इस प्रतिबन्ध से अनावश्यक अहंकार एवं ईर्ष्या, द्वेष को प्रश्रय न मिलेगा। 
६. *आशीर्वाद वरदान देने माँगने का सिलसिला व्यक्तिगत रूप से न चलाया जाय*। ईश्वर और व्यक्ति के बीच में कोई मध्यस्थ न बने। जिनमें सामर्थ्य नहीं है वे यदि वरदान आशीर्वाद का सिलसिला चलाते हैं तो यह एक ठगी ही होगी। हमारे अनुयायियों में से कोई ऐसा मिथ्या प्रलोभन लोगों को देकर उन्हें भ्रमित करने का प्रयत्न न करे। कभी यह ठगी न करें कि हम सूक्ष्म रूप से अमुक प्रयास, सूक्ष्म यज्ञ, मन्त्र जप आपके लिये करेंगे व आपकी समस्या से मुक्त हो जाएंगे। कर्मफ़ल व प्रारब्ध काटने के लिए उन्हें साधना सिखाये व उन्हें स्वयं कदमो पर खड़ा होने दें। किसी के प्रारब्ध में प्रवेश न करें।
७. *दान दक्षिणा*-  व्यक्तिगत रूप से कोई दान- दक्षिणा न ले। जिन्हें आवश्यकता है वे संघ के माध्यम से लें और जिन्हें देना हो वे व्यक्ति को न देकर संघ को दें। इस प्रथा से भिक्षा वृत्ति, परिग्रह, दीनता, तंगी आदि अनेक दुष्प्रवृत्तियाँ पनपने से रुक जायेंगी।  लोक श्रद्धापूर्वक जो दान देते हैं, उन्हें लोक मंगल के उद्देश्यों में ही लगाया जाना चाहिए। व्यक्तिगत आवश्यकता पूर्ति के लिए दान लेने की परम्परा ने ही लोकसेवियों को श्रद्धा के पात्र के स्थान पर दया का पात्र बनाया है और उनकी साधना सदाशयता पर प्रश्नचिह्न लगाये हैं। उक्त अनुशासन को मानकर चलने से लोक सेवियों की प्रामाणिकता बनाये रखकर भी उनने निर्वाह की व्यवस्था सहज ही की जा सकती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday, 28 November 2019

मन मित्र व मन ही शत्रु

😈 *मन जब दुश्मन हो तो यह होता है*

पेट तो भर जाता है,
पर यह मन नहीं भरता,
मोटापे व रोगों में भी,
यह सदा स्वादलोलुप ही रहता।

पूजन में शरीर जब बैठता है,
तब यह मन वहाँ नहीं ठहरता,
पढ़ने लिखते वक्त भी,
यह मन यूँ ही भटकता रहता।

जो भी है स्वास्थ्यकर,
यह उसे नहीं चुनता,
जो भी है उज्जवलभविष्य के लिए जरूरी,
यह वही नहीं करता।

दुश्मन मन को,
न मेरे स्वास्थ्य की चिंता है,
न मेरे उज्जवलभविष्य की चिंता है,
दुश्मन मन हो तो,
इहलोक और परलोक दोनों निश्चयत: बिगड़ता है।

😇 *मन जब मित्र हो तो यह होता है*

मन पेट को कंट्रोल करता है,
आधे पेट भोजन में भी तृप्त रहता है,
मोटापे व रोगों को होने नहीं देता,
स्वाद को छोड़कर स्वास्थ्य चुनता है।

पूजन में मन यूँ ठहरता है,
कि शरीर का भान ही नहीं रहता है,
पढ़ने लिखते वक्त यूँ एकाग्र रहता है,
पढ़ा हुआ सब लंबे समय तक याद रखता है।

जो भी है स्वास्थ्यकर,
यह केवल वही चुनता है,
जो भी उज्जवलभविष्य के लिए जरूरी,
यह बस वही करता है।

मित्र मन को,
मेरे स्वास्थ्य की चिंता है,
मेरे उज्जवलभविष्य की चिंता है,
मित्र मन हो तो,
इहलोक और परलोक दोनों हमेशा संवरता है।

🙏🏻 *प्रार्थना प्रभु से*

प्रभु मेरे मन को,
अपने चरणों में रमा दो,
मेरे मन को मेरा मित्र बना दो,
इसे मेरे आत्मउद्धार में लगा दो,
मेरे मन को मेरा सच्चा मित्र बना दो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 27 November 2019

प्रश्न - *महोदया, मेरी प्यारी बिल्ली मुझसे बिछुड़ गयी। उसकी मौत से में व्यथित हूँ। मुझे लगता है मैंने उसकी देखभाल ठीक से नहीं की। मैं इस अपराध बोध से मुक्त कैसे हों सकता हूँ? उपाय बताएं*

प्रश्न - *महोदया, मेरी प्यारी बिल्ली मुझसे बिछुड़ गयी। उसकी मौत से में व्यथित हूँ। मुझे लगता है मैंने उसकी देखभाल ठीक से नहीं की। मैं इस अपराध बोध से मुक्त कैसे हों सकता हूँ? उपाय बताएं*

उत्तर - आत्मीय भाई, मृत्यु अटल है जो जन्मा है वह एक न एक दिन मरेगा ही।

अब जो हुआ उसे बदला नहीं जा सकता। लेक़िन उस बिल्ली की आत्मा की मुक्ति के लिए कुछ प्रयास किया जा सकता है। जिससे उसे नया व बेहतर जन्म मिले।

कुल दस गायत्रीमंत्र की माला जपकर, उसके नाम से यज्ञ कर दीजिए। बिल्ली की मुक्ति के दान पुण्य हेतु आवारा रोड के कुत्ते बिल्लियों को रोटी व दूध खिला दीजिये।

साथ ही एक वृक्ष बिल्ली का नाम का लगा दीजिये। ज्यों ज्यों वृक्ष ऑक्सीजन छोड़ेगा, ऑटोमेटिक पुण्य फल बिल्ली को मिलता रहेगा।

वह वृक्ष जब जब बिल्ली की आत्मा देखेगी, वह आपको दुआएं देगी। वह वृक्ष बिल्ली की याद का स्मारक होगा।

आत्मा मनुष्य की हो या पशु की सब एक ही लेवल की होती है। आत्म लेवल पर किसी मे कोई फर्क नहीं होता। पशु पक्षी जो भी पालें उसकी अंतिम विदाई श्रद्धा पूर्वक ही करनी चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *अगर कोई व्यक्ति घर से किसी विशेष कार्य के लिए जा रहा हो और कोई व्यक्ति छींक दें तो लोग अशुभ मानते हैं आप इस पर कुछ विचार व्यक्त करें कि छिंकना कितना शुभ है और कितना अशुभ है और इसका उपाय क्या है?*

प्रश्न - *अगर कोई व्यक्ति घर से किसी विशेष कार्य के लिए जा रहा हो और कोई व्यक्ति छींक दें तो लोग अशुभ मानते हैं आप इस पर कुछ विचार व्यक्त करें कि छिंकना कितना शुभ है और कितना अशुभ है और इसका उपाय क्या है?*

उत्तर - आत्मीय भाई, पॉल्युशन और प्रदूषण से भरी वायु में छींक का सही कारण शुभ व अशुभ के लिए ढूँढना असम्भव है।

पहले के लोग उच्चकोटी के साधक, संयमित जीवन, हरियाली और स्वच्छ जलवायु में प्राकृतिक जीवन जीते थे। तब उनकी अंतश्चेतना इतनी परिष्कृत होती थी कि वह ब्रह्माण्ड के संदेशों को पकड़ने में सक्षम होती थी।  इसलिए इन सभी को समझ के इनके शरीर बिना पॉल्युशन व सर्दी के भी सन्देश का रिस्पॉन्स छींक स्वरूप देते थे, लोग तदनुसार कार्य करते थे। रामायण में शुभ-अशुभ छींक का वर्णन है। प्राचीन समय न यातायात की सुविधा थी और न ही मोबाईल फोन जैसा कुछ उपलब्ध था। अतः यात्रा की कुशलक्षेम का उनका अपना तरीका होता था। शकुन व मुहूर्त वस्तुतः मौसम को परखने का तरीका होता था।

अब गूगल पर जिस जगह जा रहे हो उसके मौसम की रिपोर्ट देख लो, GPS से जाम वग़ैरह को चेक कर लो। मोबाईल हाथ में है ही, अगर कहीं लेट हो तो घर पर फोन करके सूचित कर दो।

तप की सिद्धि से भी वायुगमन कर सकते हो, पैसे हों तो वायुयान की टिकट खरीद के भी वायुगमन कर सकते हों।

मेरी सलाह यह है कि किसी विशेष कार्य के लिए यात्रा करने हेतु टेक्नोलॉजी का ही उपयोग कर लो, और जिस शकुन-अपशकुन विज्ञान की दक्षता हासिल नहीं है उसे छोड़ देना ही बेहतर हैं, आधा अधूरा ज्ञान नुकसान दायक है। जिसका ज्ञान पूर्णता से तथ्य तर्क प्रमाण सहित हो केवल वही स्वीकार करना चाहिए।

अंधविश्वास वस्तुतः हमारा मनोबल तोड़ते हैं, जो हानिकारक है। अतः इन्हें उखाड़ फेंकिये।

कोई यदि छींक दे तो उसे गायत्रीमंत्र जपकर एक ग्लास पानी पिलाइये, और स्वयं भी बैठकर एक ग्लास पानी पीकर जाइये। यज्ञ भष्म थोड़ा सा माथे पर लगाकर जाइये यात्रा शुभ ही शुभ होगी।

ज्यादा जानकारी के लिए युगऋषि द्वारा लिखित पुस्तक- 📖 *अंधविश्वास को उखाड़ फेंकिये* पढ़ लीजिये।

http://literature.awgp.org/book/andhvishwas_ko_ukhad_fenkiye/v1.48

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *श्रेष्ठ सन्तान प्राप्ति हेतु मन्त्र बताइये*

प्रश्न - *श्रेष्ठ सन्तान प्राप्ति हेतु मन्त्र बताइये*

उत्तर - निम्नलिखित  मन्त्र का रोज पूजन में सुसन्तति की शीघ्रता से प्राप्ति के पूजन में शामिल कर लीजिए। षट कर्म व देवावाहन के बाद एक बार इन मन्त्रो का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करना है।

॥ स्वस्तिवाचनम्॥ - स्वस्ति + वचन
स्वस्ति का तात्पर्य है कल्याणकारी, वाचन अर्थात् वचन बोलना ।। सभी के कल्याण की कामना करते हुये मन्त्र के वचन बोलना। मन्त्र वह शब्दों का गुंथन होता है और एक प्रकार का चुम्बक की तरह कार्य करता है। जो जैसा मन्त्र पढ़ता है उसके आसपास ब्रह्मांड से वैसे ही शक्तियां आकृष्ट होकर उसके आसपास आ जाती हैं।मनोवान्छित फल देती है। इसे आकर्षण का सिद्धांत (Law of attraction) कहते हैं। जैसे शॉप में जो ऑर्डर करोगे वही मिलेगा वैसे ही ब्रह्माण्ड में जैसा मन्त्र भावपूर्वक पढोगे वैसी शक्तियाँ आकर्षित होंगी।

*ॐ गणानां त्वा गणपति * हवामहेप्रियाणां त्वा प्रियपति *  हवामहेनिधीनां त्वा निधिपति *  हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥* -२३.१९

*अर्थात्-* हे गणों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ गणपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे प्रियों के बीच रहने वाले प्रियपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे निधियों के बीच रहने वाले सर्वश्रेष्ठ निधिपते! हम आपका आवाहन करते हैं। हे जगत् को बसाने वाले! आप हमारे हों। आप समस्तजगत् को गर्भ में धारण करते हैं, पैदा (प्रकट) करते हैं, आपकी इस क्षमता को हम भली प्रकार जानें। आप आएं और हमें सद्बुद्धि दें।


*ॐ स्वस्ति नऽ इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।* *स्वस्तिनस्ताक्र्ष्योअरिष्टनेमिःस्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।*- २५.१९

*अर्थात्* - महान् ऐश्वर्यशाली, इन्द्रदेव हमारा कल्याण करें, सब कुछ जानने वाले पूषादेवता हमारा कल्याण करें, अनिष्ट का नाश करने वाले गरुड़ देव हमारा कल्याण करें तथा देवगुरु बृहस्पति हम सबका कल्याण करें। हम सबका भला करें।

*ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽ ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्*॥- १८.३६

*अर्थात्*- हे अग्ने! आप इस पृथ्वी पर समस्त पोषक रसों को स्थापित करें। ओषधियों में जीवन रूपी रस को स्थापित करें। द्युलोक में दिव्य रसको स्थापित करें। अन्तरिक्ष में श्रेष्ठ रस को स्थापित करें। हमारे लिए ये सब दिशाएँ एवं उपदिशाएँ अभीष्ट रसों को देने वाली हों। आप हमारा पोषण करें।

*ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा*॥- ५.२१

*अर्थात्*- भगवान् विष्णु (सर्वव्यापी परमात्मा) का प्रकाश फैल रहा है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जगत् स्थिर है तथा विस्तार को प्राप्त हो रहा है, सम्पूर्ण जगत् परमात्मा से व्याप्त है, उन (विष्णु) के द्वारा यह जड़- चेतन दो प्रकार का जगत् उत्पन्न हुआ है, उन्हीं भगवान् विष्णु के लिए यह देवकार्य किया जा रहा है। वह भगवान विष्णु प्रशन्न हों और हमारी चेतना को जागृत करें।

*ॐ अग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवता ऽऽदित्या देवता मरुतो देवता विश्वेदेवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता॥* -१४.२०

*अर्थात्*- अग्निदेवता, वायुदेवता, सूर्यदेवता, चन्द्रमादेवता, आठों वसु- देवता, ग्यारह रुद्रगण, बारह आदित्यगण, उनचास मरुद्गण, नौ विश्वेदेवागण, बृहस्पतिदेवता, इन्द्रदेवता और वरुणदेवता आदि सम्पूर्ण दिव्य शक्तिधाराओं को हम अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति के लिए स्थापित करते हैं। ये सभी शक्तियां यहां आए और हमारे प्रयोजन/कार्य को पूर्ण करने में सहायक बनें।

*ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष * शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥* -३६.१७

*अर्थात्*- द्युलोक (स्वर्ग), अन्तरिक्षलोक तथा पृथिवीलोक हमें शान्ति प्रदान करे। जल शान्ति प्रदायक हो, ओषधियाँ तथा वनस्पतियाँ शान्ति प्रदान करने वाली हों। विश्वेदेवागण शान्ति प्रदान करने वाले हों। ब्रह्म (सर्वव्यापी परमात्मा) सम्पूर्ण जगत् में शान्ति स्थापित करे, शान्ति ही शान्ति हो, शान्ति भी हमें परम शान्ति प्रदान करे। सर्वत्र शांति हो।

*ॐ   विश्वानि  देव   सवितर्दुरितानि  परा        सुव।यद्भद्रं   तन्न   ऽ  आ   सुव, ॐ  शान्ति:   शान्ति:   शान्ति:॥        सर्वारिष्टसुशान्ति:र्भवतु।*-  ३०।३

*अर्थात्*- हे  सर्व-  उत्पादक   सवितादेव!       आप  हमारी  समस्त  बुराइयों    (पाप       कर्मों) को  दूर  करें  तथा  हमारे  लिए  जो        कल्याणकारी  हो, उसे  प्रदान  करें।    ॥
हम बुराई छोड़े और अच्छाई ग्रहण करें।

साथ ही नित्य 3 या 5 गायत्री मंत्र के साथ साथ 11 मन्त्र या एक माला निम्नलिखित दोनों मन्त्र की जपो

*ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः*

*या देवी सर्वभूतेषु सन्तान लक्ष्मी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥*

यदि रख सकें तो 16 सोमवार का व्रत भगवान शंकर-पार्वती का या 16 शुक्रवार व्रत सन्तान लक्ष्मी का रहना लाभदायक है।

जिस प्रकार की आत्मा को गर्भ में आवाहित करना चाहती हैं वैसा माहौल अपने घर का कर लीजिए। नित्य गायत्रीमंत्र जप व यज्ञ करेंगी तो उसके धूम्र व मन्त्र तरंग से श्रेष्ठ आत्मा आपके गर्भ की ओर आकृष्ट होगी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Tuesday, 26 November 2019

प्रश्न- *जी, अगर अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थिविसर्जन, श्राद्ध-तर्पण कर्म न करके, केवल मृत शरीर को चील, कौओं के आगे डाल दिया जाए तो क्या होगा? पर्यावरण की दृष्टि से भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी क्या होगा कृपया बताएं* , *यह भी बताएं कि आपने अपनी मृत्यु के बारे में क्या सोचा है?*

प्रश्न- *जी, अगर अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थिविसर्जन, श्राद्ध-तर्पण कर्म न करके, केवल मृत शरीर को चील, कौओं के आगे डाल दिया जाए तो क्या होगा? पर्यावरण की दृष्टि से भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी क्या होगा कृपया बताएं* , *यह भी बताएं कि आपने अपनी मृत्यु के बारे में क्या सोचा है?*

उत्तर- आत्मीय भाई, मनुष्य यदि जीवित अवस्था में मुक्त व दानी न हुआ तो वह आत्मा भटकेगी। अतः उसके भटकाव को रोकने के लिए अंत्येष्टि क्रिया करवाई जाती है। उसके नाम पर दान पुण्य करके, कथा श्रवण व स्वाध्याय करके उसे मुक्ति की ओर अग्रसर किया जाता है।

जीवित अवस्था में मनुष्य की जाति व परम्परा अलग अलग हो सकती है। मरने के बाद कोई अंतर नहीं होता। सबको संस्कृत मन्त्र से श्रद्धा अर्पण करो या उर्दू-फ़ारसी आयतों से श्रद्धा दो या अंग्रेजी में बाइबल के वाक्यों से श्रद्धा दो। मृतात्मा को परिवार की श्रद्धा चाहिए ही होती है जिससे उसे तृप्ति मिले।

सांसारिक मृतात्मा का मोह शरीर से भंग नहीं होता, वह 13 दिन तक शरीर के आसपास ही मंडराती रहती है। उसे यह कतई पसन्द नहीं होता कि उसके परिवार वाले उसके शरीर का निरादर करें। जब विधिवत फूलों से सजा के अर्थी निकलती है और पूर्ण विधि विधान से उसकी अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थि विसर्जन व श्राद्ध-तर्पण न हुआ तो आत्मा भड़क उठती है व प्रतिशोध भावना से कुपित हो जाती है। जिसे पितृदोष कहते हैं।

सिद्ध योगियों व मुक्त आत्माओं को केवल अंत्येष्टि सँस्कार, अस्थि विसर्जन व श्राद्ध-तर्पण की जरूरत नहीं होती। इसलिए योगियों के शरीर को पत्थर से बॉन्ध कर गंगा जल में डुबो दिया जाता है, जिसे मछलियाँ ख़ाकर धीरे धीरे नष्ट कर देती हैं।

मनुष्य के शरीर को खुले में चील कौवों को डालना उचित इसलिए नहीं है कि मनुष्य का समस्त शरीर रोगों का घर होता है, आत्मा निकलते ही तेजी से सड़ता है यदि दो दिन के अंदर वह पूर्णतया पक्षियों के द्वारा खाया न गया तो हवा में शरीर की सड़न से उत्तपन्न विषाणु आसपास के इलाके के पशु, पक्षी व इंसानों को रोगी व कोढ़ी बना देंगे।

कैसे प्रेतात्मा मृत शरीर व उससे जुड़ी घटनाओं को देखती व समझती है, यह निम्नलिखित वीडियो में स्वयं सुने। एक लेदर का सामान बेंचने वाले मृतात्मा प्रेत ने जो घटनाक्रम बताया था उसे स्वयं सुने।

https://youtu.be/OYyh12rL6mU

अतः बिना किसी व्यक्ति की अनुमति के उसका शरीर दान हॉस्पिटल में न करें, न ही उसके मृत शरीर का अपमान करें। श्रद्धा के साथ उसकी अंतिम विदाई करें।

जब जिस व्यक्ति ने पूर्ण होश हवास में देह भाव से परे होकर आत्म स्थित अवस्था मे स्वयं के देहदान का फार्म भरा हो, उसी व्यक्ति की मृत्यु पर हॉस्पिटल में फोन कर उसका देह समर्पित करें।

*उदाहरणस्वरुप आप यह जानना चाहते हैं* - *हम क्या करेंगे? मृत्यु के सम्बंध में हमारी तैयारी क्या है?* तो भाई हमने अपना श्राद्ध व तर्पण  स्वयं कर लिया है। विधिवत शान्तिकुंज से वानप्रस्थ ले रखा है। अपनी देहदान नहीं करेंगे, हम केवल अपने समस्त अंगदान करेंगे। मृत्यु के पश्चात हमारे समस्त उपयोगी अंग हॉस्पिटल लेकर बचे अनुपयोगी शरीर की अस्थि व चमड़ी को सिलकर मेरे परिवार वालों को दे देंगे। मेरे परिवार वाले उसका अंत्येष्टि सँस्कार करेंगे जिससे मेरे शरीर का अंतिम चिता यज्ञ पूर्ण हो। उसके बाद वो अपनी श्रद्धा अनुसार जो दान पुण्य करना चाहे करें। मैंने स्वयं के लिए अक्षय पुण्य की व्यवस्था स्वरूप वृक्षारोपण कर रखा है, सरकारी लाईब्रेरी व स्कूलों में साहित्य दान की व्यवस्था कर रखी है, बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट के ब्याज़ से अनवरत दान होता रहेगा। तो मैं जियूँ या मरूँ दान पुण्य ऑटोमेटिक मेरे नाम पर चलता रहेगा।

जिन भाई बहनों को गुरुचेतना से जोड़ा है, उनके द्वारा किये पुण्य का भी एक अंश मिलता रहेगा। साथ ही समस्या समाधान की समस्त पोस्ट इंटरनेट, फेसबुक व ब्लॉग में सुरक्षित हैं, उनसे भी जिन जिन लोगों का भला होगा, उससे भी पुण्य मिलता रहेगा।

🙏🏻 *जिस तरह जीने की तैयारी होती है, बुद्धिमान व्यक्ति मरने की भी पूरी तैयारी रखता है😇 मृत्यु से डरता नहीं है।* 🙏🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday, 24 November 2019

प्रश्न - *किसी स्वजन की मृत्यु के पश्चात क्या क्या नियम व विधिव्यस्था अपनानी चाहिए।मनुष्य के शरीर से प्राण निकल जाने पर उसका क्या व कैसे किया जाय..*

प्रश्न - *किसी स्वजन की मृत्यु के पश्चात क्या क्या नियम व विधिव्यस्था अपनानी चाहिए।मनुष्य के शरीर से प्राण निकल जाने पर उसका क्या व कैसे किया जाय..*

उत्तर - जीवन शांत होने व श्वांस थमने के बाद भी दो घण्टे तक मृतक देह को  यूँ ही पड़े रहने दें, क्योंकि कई बार दो घण्टे के भीतर पुनः प्राण लौट आते हैं।

मृतक देह के पास अत्यधिक रोना-धोना न करें, अन्यथा मृतक को अशांति व असहजता महसूस होती है। मृतक की जीवात्म अपने मृत देह के आसपास ही मंडराता रहता है।

हिंदू धर्म में अंत्येष्टि सँस्कार एक यज्ञ ही है, पंचतत्वों के शरीर को पुनः पंचतत्वों में विलीन करने की विधिव्यस्था है। अतः मृत्यु हो जाने के दो घण्टे 15 मिनट बाद मृतक देह स्त्री हो तो घर की स्त्रियां व पुरुष हो तो घर के पुरुष मिलकर नहला दें। मस्तक व शरीर पर चंदन पीस कर लेप कर दें, लगा दें। स्वच्छ व धुले वस्त्र पहना दें, व स्त्री हो तो उसके बाल भी ठीक कर दें। सुहागिन हो तो बिंदी व सिंदूर भी लगा दें। बांस की मञ्जूषा जिस पर मृत देह ले जाई जाएगी उसे फूलों से सजा दें। मृतक के दोनों पैर के अंगूठे व दोनों हाथ के अंगूठे कलावे या सफेद धागे से बांध दें। अंगूठे बंधने पर  कोई दूसरी आत्मा शरीर में प्रवेश नहीं करती। कुछ पारम्परिक लोकाचार परम्पराएं हो तो वो भी कर लें। घर पर

जो मृतक को मुखाग्नि देगा, वह भी स्नान अवश्य कर ले।

*अत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व इन बातों का रखें ध्यान*

अंत्येष्टि संस्कार विधि से पूर्व मृतक परिजनों को कुछ व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। जैसे कि –

1- सबसे पहले मृतक के लिए नए वस्त्र, मृतक शैय्या, उस पर बिछाने-उढ़ाने के लिए कुश एवं सफेद वस्त्र आदि।

2- मृतक शैय्या की सजावट हेतु पुष्प आदि।

3- पिण्डदान के लिए जौ का आटा, एक पाव एवं जौ, तिल चावल आदि मिलाकर तैयार कर लें। अगर जौ का आंटा न मिले तो गेहूँ के आटे में जौ मिलाकर गूंथ लें।

3- कई स्थानों पर संस्कार के लिए अग्नि घर से ले जाने का प्रचलन होता है। यदि ऐसा है तो इसकी व्यवस्था करें अन्यथा श्मशान घाट पर अग्नि देने अथवा मंत्रों के साथ माचिस से अग्नि तैयार करने का क्रम बनाया जा सकता है।

4- पूजन की आरती, थाल, रोली, अक्षत, अगरबत्ती, माचिस आदि।

5- हवन सामग्री, चंदन, अगरबत्ती, सूखी तुलसी, आदि।

6- अगर बरसात का मौसम हो तो आग जलाने के लिए सूखा फूस, पिसी हुई राल या बूरा आदि।

7- पूर्णाहुति के लिए नारियल के गोले में छेद करके घी डालें।

8- वसोर्धारा आदि घृत की आहुति के लिए एक लंबे बांस आदि में ऐसा पात्र बांधकर रखें जिससे घी की आहुति दी जा सके।

अंत्येष्टि सँस्कार का समस्त उपक्रम घर में किये जाने वाले पिंडदान से लेकर श्मशान की कपाल क्रिया तक पुस्तक - 📖 *कर्मकाण्ड भाष्कर* के *अंत्येष्टि सँस्कार* में वर्णित विधिविधान अनुसार अंत्येष्टि सँस्कार, मरणोत्तर सँस्कार व पंचबलि अवश्य करें। यह पुस्तक किसी भी नज़दीकी गायत्री शक्तिपीठ से खरीद सकते हैं या गायत्री शक्तिपीठ से सम्पर्क करके वहाँ के पुरोहित से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
👇🏻👇🏻👇🏻
*पुस्तक की ऑनलाईन लिंक* :-
http://literature.awgp.org/book/kram_kand_bhaskar/v2.30

अंत्येष्टि सँस्कार श्मशान में पूर्ण करने के बाद व राख-फूल(श्मशान से मृत देह की राख) को गंगा या किसी अन्य नदी में प्रवाहित कर दें। राखफूल बिनते समय *आत्माराम* नामक हड्डी के स्ट्रुक्चर को ज़रूर जल में प्रवाहित करने के लिए उठाएं। आत्मा राम मनुष्य की बैठी हुई आकृति का स्ट्रक्चर होता है, जिसमें मूलतः आत्मा का निवास माना जाता है। राख फूल को किसी मिट्टी के कलश में ही रखकर उसे कपड़े से बांधकर ही एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाएं।

जिसघर में मृत्यु हुई है उसके रक्तसम्बन्धियों व उस स्थान पर रहने वाले लोगों पर सूतक लगता है। जो व्यक्ति रक्तसम्बन्धी नहीं है उसपर सूतक नहीं लगता। जो रक्तसम्बधी दूसरे शहर या दूसरे देश मे हैं उस पर सूतक नहीं लगता। सूतक अक्सर उसी पर लगता है जिससे मृतक जीवात्मा का मोहबन्धन होता है। जीवात्मा का पुत्र व पुत्री पर सूतक अवश्य लगता है। जिसका अनिवार्यतः पालन करना चाहिए।

10 दिन तक घर के देवी-देवताओं की मूर्ति को नहलाना धुलाना नहीं चाहिए। न स्थूल पूजन में उन्हें दीपक व अगरबत्ती देनी चाहिए, न माला लेकर जप होगा न ही यज्ञ होगा। *इसका मुख्य काऱण है कि इन दस दिनों दीपक केवल मृतात्मा की फ़ोटो के समक्ष जलता है, समस्त श्रद्धा उसी को दी जाती है*।  मनोवैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार मृतात्मा के शोक से उबरने में परिवार को 10 दिन लगते हैं। अध्यात्मविद के अनुसार मृतक का सूक्ष्म देह, मृतक का औरा व प्रभाव सिमटने व मिटने में 10 दिन का वक्त लगता है। यही सूतक है। 

जनेऊ धारी किशोर,  युवा स्त्री व पुरुष,  वृद्ध स्त्री व पुरुष की मृत्यु के दसवें दिन शुद्धि होगी। व तेरहवें दिन घर में यज्ञ का आयोजन होता है।

*बच्चे की मृत्यु पर 1 दिन का सूतक, किशोर की मृत्यु पर 3 दिन का सूतक और युवा या वृद्ध की मृत्यु पर 10 दिन का सूतक लगता है।*

इस सन्दर्भ में विभिन्न व्यवस्थाओं को लोकाचार या देशाचार के अनुसार उचित महत्व देना चाहिए। अथवा इनसे प्रभावित व्यक्तियों के गुणों- अवगुणों पर विचार करके सूझ- बूझ के साथ इनका कम या अधिक निर्वाह करना चाहिए। अथवा इन्हें आपदाओं आदि के अनुसार प्रयुक्त होने या न होने योग्य मान लेना चाहिए।

 युगऋषि के मार्गदर्शन के अनुसार युगतीर्थ- शान्तिकु ञ्ज हरिद्वार में इसी प्रकार विवेकपूर्वक सूतक- शुद्धि का क्रम औसतन ३ दिन में सम्पन्न करा दिया जाता है।

आज के व्यस्त जीवन में श्राद्ध- शुद्धि की लम्बी अवधि के कर्मों का निर्वाह अधिकांश व्यक्तियों के लिए नहीं है, इसलिए अतिव्यस्तता के कारण- उत्तर भारत के अनेक शहरों में तीन दिन में ही सभी कर्म सम्पन्न किए- कराये जाने लगे हैं। जहाँ परिपाटियों के अनुसार लम्बी अवधि के कठिन क्रम किए कराए जाते हैं, वहाँ लोग बहुत परेशानियाँ अनुभव करते हैं।

 श्राद्धकर्म श्रद्धा आधारित होते हैं तभी उनका उचित लाभ मिलता है। जहाँ मजबूरी- लाचारी -परेशानी के भाव आ जाते हैं वहाँ श्रद्धाभाव पीछे खिसक जाते हैं और कर्मकाण्डों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ता ।। इसलिए उचित यहीं है कि मन में से भय या असमंजस निकालकर, विवेकपूर्वक उक्त प्रक्रियाओं का समुचित निर्वाह किया जाय। इस सन्दर्भ में नीचे लिखे अनुसार निर्धारण को अपनाया जा सकता है।जन्म और मरण के सूतकों के क्रम में स्थान और वातावरण की शुद्धि के प्रयास विवेकपूर्वक शीघ्र से शीघ्र पूरे किए जायें। इससे सम्बन्धित स्थानों और वस्त्रों की सफाई, भली प्रकार हो। इसके लिए नीम की पत्तियॉ उबालकर तैयार पानी, लाल दवा, फिनायल जैसी सहज सुलभ दवाओं और यज्ञोपचार का उपयोग किया जा सकता है।मानसिक सन्तुलन लाने के लिए सामूहिक जप, कथा- कीर्तन आदि का सहारा लिया जाय। मृत्यु प्रकरण में इस हेतु कुछ लोग परम्परागत ढंग से गरुड़ पुराण  का पाठ करवाते हैं। वह बुरा तो नहीं, किन्तु आज के समय में उससे एक रूढ़िवाद का निर्वाह भर हो पाता है। परिवार के लोग उतने लम्बे प्रकरण को न तो सुन पाते हैं और न मरणोत्तर जीवन का सत्य समझ कर उसका लाभ उठा पाते हैं।

इस सन्दर्भ में एक विनम्र सुझाव है कि युगऋषि की लिखी एक छोटी पुस्तक है- 📖 ‘‘ *मरने के बाद हमारा क्या होता है*।’’ उसे लगभग एक डेढ़ घण्टे में पढ़ा, सुनाया या समझाया जा सकता है। यदि कोई अध्ययनशील- विचारशील व्यक्ति प्रभावित परिजनों को वह विषय सुना समझा दे, तो उससे बहुत अच्छे ढंग से अपना उद्देश्य पूरा हो सकता है। इन दिनों *श्रीमद्भागवत गीता का स्वाध्याय भी उत्तम है।*

अन्त्येष्टि के बाद तीन दिन में श्राद्ध सहित शुद्धि का क्रम पूरा किया जा सकता है।

*इसके साथ ही यदि परिजनों की भावना है और व्यवस्था बन सकती है तो १० या १३ दिन तक मृतक का चित्र रखकर उसके सामने तेल का अखण्ड दीपक जलाया जाय*।

 परिवार के सदस्य और स्नेही परिजन वहाँ प्रतिदिन कम से कम एक घण्टा इष्टमन्त्र या नाम का सामूहिक जाप करें। मृतात्मा की शान्ति- सद्गति के लिए प्रार्थना करें। श्राद्धकर्म शास्त्रसम्मत तथा विज्ञानसम्मत हैं, इसे पूरी श्रद्धा के साथ पूरा किया जाय। इसके लिए संक्षिप्त सर्वसुलभ और प्रभावशाली पद्धति युग निर्माण मिशन द्वारा तैयाार कर दी गयी है।

सच्चे श्राद्ध के कई लाभ होते हैं, जैसे-अपने पितरों की सन्तुष्टि और सद्गति के लिए अपनी सामर्थ्य भर श्रद्धापूर्वक प्रयास करना हर व्यक्ति का धर्म- कर्तव्य बनता है। इसे पूरा करने वालों की श्रद्धा विकसित होती है, कर्तव्य पूर्ति का सन्तोष मिलता है और पितृदोष जैसी विसंगतियों से बच जाते हैं।श्राद्ध कर्म करने वालों को सन्तुष्ट पितरों के स्नेह अनुदान सहज ही मिलते रहते हैं।श्रद्धा- कृतज्ञता के भावों का विस्तार होता है, उससे सूक्ष्म वातावरण अनुकूल बनता है तथा नई पीढ़ी में भी वे भाव सहजता से जाग जाते हैं।

श्राद्ध के साथ जुड़ी कुरीतियों, अन्ध परम्पराओं (जैसे- खर्चीले- मृतकभोज, आशौच की मनगढ़न्त परिपाटियों आदि) को महत्व न देकर उनका निर्वाह विवेकपूर्वक किया जाय।

हर समाज एवं हर वर्ग के प्रगतिशील, भावनाशील, समझदार व्यक्ति इस दिशा में जन- जागरूकता लाने तथा परिपाटियों को विवेक सम्पन्न बनाने के लिए विशेष प्रयास करें। *मृतक की मुक्ति व सद्गति के लिए वृक्षारोपण उनके नाम पर करवाया जाए*। कुछ स्थूल दान स्वरूप अन्न व वस्त्र गरीबों को दें।

अंत्येष्टि, अस्थि विसर्जन व तीर्थस्थल में यज्ञादि करने के बाद जॉब करने वाले ऑफिस वग़ैरह जा सकते हैं। अपने दैनिक कर्म कर सकते हैं। सूतक के दौरान घर में कोई उत्सव नहीं मनाए जा सकते। विवाह इत्यादि किसी का है तो भी तिथि आगे बढ़वा दें। तेरहवीं के दिन यज्ञादि होने के बाद  कोई भी उत्सव व  घर के सदस्य के विवाह इत्यादि करवाये जा सकते हैं। एक वर्ष बाद मृतक की बरसी के दिन कोई अन्य उत्सव न मनाएं, केवल मृतात्मा की मुक्ति सद्गति के लिए यज्ञ करवाएं।

किसी त्यौहार के दिन मृत्यु होने पर वह त्यौहार एक वर्ष तक नहीं मनाया जा सकता।  दूसरे बरसी के दिन से वह त्योहार मनाया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday, 23 November 2019

प्रश्न - *सकाम पूजन व निष्काम पूजन में कौन श्रेष्ठ है? स्वयं की इच्छाओं की पूर्ति हेतु साधना और लोककल्याण के लिए साधना में कौन श्रेष्ठ है? इनके फ़ायदे व नुकसान क्या है?*

उत्तर - उपरोक्त प्रश्न का उत्तर सुनने से पहले एक घटना सुनिए:-
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एक बच्चा अपने ताऊ जी की दुकान गया, उनके चरण स्पर्श किये व बड़े अच्छे से व्यवहार किया। टॉफी का डब्बा ताऊ जी ने खुश होकर आगे बढाते हुए कहा तुम टॉफ़ी निकाल लो।  बच्चे ने कहा ताऊजी आप ही दे दो।

ताऊ जी ने एक मुट्ठी भरकर उसे टॉफ़ी दे दी, व उससे पूँछा यह बताओ तुमने स्वयं क्यों नहीं लिया? क्या शरमा रहे थे?

बच्चे ने कहा- ताऊ जी मेरे हाथ छोटे हैं व मेरी छोटी मुट्ठी से थोड़ी ही टॉफ़ी निकाल पाता। मग़र जब वही टॉफ़ी आपने दी तो ज़्यादा टॉफ़ी मिली क्योंकि आपकी मुट्ठी मुझसे ज्यादा बड़ी है।

इसी तरह सकाम भक्ति में आप अपनी छोटी मुट्ठी/बुद्धि से थोड़ा ले पाएंगे, यदि निष्काम भक्ति करेंगे तो परमात्मा अपनी मुट्ठी/बुद्धि से देगा तो अनन्त देगा। कृतार्थ हो जाएंगे।

भगवान हमें वह नहीं देता जो हम चाहते हैं, भगवान हमें वह देता है जिसकी हम योग्यता व पात्रता रखते हैं।

सकाम भक्ति अत्यंत आवश्यक हो तो ही करना चाहिए, अन्यथा निष्काम भाव से ही भक्ति व साधना करते रहना चाहिये। उसकी जो इच्छा हो उसे देने देना चाहिए।

सकाम भक्ति व साधना परमात्मा से हमें दूर करता है। निष्काम भक्ति व साधना परमात्मा से हमें जोड़ता है, भक्ति योग -साधना योग सधता है।

सकाम भक्ति में हम होटल में जैसे वेटर को ऑर्डर देते हैं वैसे ही परमात्मा को वेटर की तरह ऑर्डर देते हैं व उन्हें विवश करके अपनी बात मनवाते हैं।

निष्काम भक्ति में हम दास भाव से अपनी स्वामी परमात्मा की सेवा करते हैं। जैसे सती पत्नी अपने को भूलकर पूर्णतया पति को समर्पित हो जाती है, उसी तरह निष्काम भक्ति में आत्मा रूपी पत्नी परमात्मा रूपी पति पर समर्पित हो जाती है। पति फ़िर स्वतः पत्नी का समस्त ख़्याल रखता है व जिम्मेदारी उठाता है।
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इसे एक कहानी से समझो:-

एक राजा अपने लिए पर्सनल सेवक रखना चाहता था। उसने इंटरव्यू ऑर्गनाइज किया। सबसे कुछ प्रश्न पूंछता:-

तुम्हारा नाम क्या है? कहाँ रहते हो? खाने में क्या पसन्द है? तुम्हें क्या पहनना पसंद है? तुम्हारे शौक क्या है?

सब अपना नाम पता व पसन्द-नापसंद बताते वह राजा सबको रिजेक्ट कर देता। अंत मे एक व्यक्ति ने उपरोक्त प्रश्न का उत्तर कुछ ऐसे दिया जिसे राजा ने अपना सेवक चुन लिया।

मेरा वर्तमान नाम मोहन है, लेक़िन अब आप जो चाहें रख लें। आप जहां रखेंगे वही मेरा पता अब से होगा। आप जो भी खिलाएंगे वही मेरी पसन्द होगा। जो पहनाएंगे वही मेरी पसन्द होगा। आपकी सेवा ही मेरा सौभाग्य व शौक होगा। मेरे स्वामी मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका सेवक बनने पर और आपको प्रशन्न करने पर, मैं वर्तमान जीवन से उत्तम जीवन, भोजन, पहनावा व आश्रय पाऊंगा।

अतः निष्काम भाव से जगत कल्याण के लिए  ही भक्ति साधना करें। यही श्रेष्ठ है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

सद्विचार




गुरुगीता अनुष्ठान विधि


गुरुगीता अनुष्ठान विधि🙏
👉आध्यात्मिक और सांसारिक सफलता के लिए, गृह क्लेश और बीमारी निवारण के लिए, पाप के शमन के लिए , उच्च आध्यात्मिक सफलता के लिए
🚩गुरुगीता श्री स्कन्द पुराण के उत्तरखंड में भगवान शंकर और माता पार्वती के संवाद के रूप में वर्णित है | इसका स्वाध्याय और अनुष्ठान पथ जन–जन के कल्याण और श्रद्धा संवर्धन के लिए है | गुरुगीता आपको किसी भी गायत्री चेतना केंद्र या शक्तिपीठ से मिल सकती है और इसका संपादन 👉डॉक्टर प्रणव पंड्या जी ने किये है |

👉इसके दो भाग है खंड “अ” और खंड “ब”. इस पुस्तक के खंड 👉ब. में इसकी  शास्त्रोक्त अनुष्ठान पाठ  विधी दी गयी है|

👉इसे क्रमशः 5 दिन, १० दिन, ३० दिन और ४० दिन की अवधी सुविधानुसार ली जा सकती है |
इस अनुष्ठान को किसी भी गुरुवार (Thursday) से प्रारम्भ किया जा सकता है |
👉इसके पाठ के साथ 5, 11, २१, 27 माला गायत्री जप की सुविधानुसार किया जाता है |

👉उदाहरण के तौर पर हम १० दिन के गुरुगीता अनुष्ठान बताते है :-
१-  गुरुवार (Thursday) से प्रारम्भ किया
२- 11 माला गायत्री की और एक पाठ गुरुगीता का
३- षठ (६) कर्म करने के बाद, ईश्वर आवाहन
४- रोज खंड – ब को ही पढना है
५- पहले जल के साथ संकल्प, फिर जल के साथ गायत्री विनियोग,  हृदय न्यास, कर न्यास, आवाहन
६- १० माला गायत्री जप
७-   जल के साथ गुरुगीता विनियोग,  हृदय न्यास, कर न्यास, आवाहन, ध्यान
८- गुरुगीता का पाठ
९- अंतिम में जल के साथ संकल्प, फिर जल के साथ गायत्री विनियोग,  हृदय न्यास, कर न्यास, आवाहन
१०- एक माला गायत्री जप और एक माला गुरु मंत्र – “ॐ एं श्री राम आनंदनाथाय गुरुवे नमः ॐ “
११- विसर्जन , गुरुस्तुती
१२- नियमित १० दिन तक करना है, सिर्फ कम्बल या उन के बने आसन का ही प्रयोग करें |

http://literature.awgp.org/book/gurugeeta_path_vidhi/v1

Friday, 22 November 2019

प्रश्न - *सतत स्वाध्याय से अब जानता हूँ क्या सही व क्या गलत है? दीदी, ये स्थिति बुरी है जब यह महसूस होता है कि क्या स्वयं को भी न बदल पाने का कलंक लिये ही मर जाऊंगा, एक मनुष्य होकर भी मैं अपनी लत को नहीं छोड़ पा रहा हूँ। मैं यह भी न कर पाया तो किस बात का मनुष्य हूँ?*

प्रश्न - *सतत स्वाध्याय से अब जानता हूँ क्या सही व क्या गलत है? दीदी, ये स्थिति बुरी है जब यह महसूस होता है कि क्या स्वयं को भी न बदल पाने का कलंक लिये ही मर जाऊंगा, एक मनुष्य होकर भी मैं अपनी लत को नहीं छोड़ पा रहा हूँ। मैं यह भी न कर पाया तो किस बात का मनुष्य हूँ?*

उत्तर - आत्मीय भाई,

एक कहानी सुनों, एक मंत्री गायत्री मंत्र जप साधना में अपने पूजन गृह में बैठा था। तभी उसके राज्य के महाराज उसके घर आये। पत्नी ने कहा महाराज वो गायत्रीमंत्र जप में है।  थोड़ा वक्त लगेगा। महाराज आश्चर्य चकित थे कि उनके मंत्री ने अपनी साधना के बारे में कभी क्यों नहीं बताया। मंत्री जब पूजन करके आया तो राजा ने मंत्री से गायत्री मंत्र जप के बारे में पूँछा।

मंत्री ने कहा- *गायत्री कलियुग की कामधेनु है, इसकी साधना से इहलोक व परलोक दोनों सुधरते हैं, व आत्मा प्रकाशित होती है।*

ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकम्।।

राजा ने मंत्री से कहा मुझे तुम गायत्रीमंत्र की दीक्षा दो, मंत्री ने कहा मेरे सवा करोड़ गायत्री जप नहीं हुए हैं और साथ ही मैं वशिष्ठ व विश्वामित्र की शर्तें पूरी नहीं कर सका हूँ। इसलिए आपको दीक्षा नहीं दे सकता। हमारे राज्य में एक सद्गुरु है आप उनसे दीक्षा ले लें।

राजा को यह अपमान लगा, वो रास्ते में एक गरीब ब्राह्मण के घर जाकर गायत्रीमंत्र सीखकर आ गया। जपने लगा।

मंत्री जब राजमहल पहुंचा तो राजा ने गायत्रीमंत्र उसे सुनाया। बोला तुम तो यूँ ही कह रहे थे कि जो अधिकारी गुरु होगा वही गायत्रीमन्त्र दीक्षा देगा तो ही मन्त्र शीघ्रता से फ़लित होगा। इसे अब प्रमाणित करो।

मंत्री ने वहाँ खड़े सैनिकों को राजा की ओर इशारा करते हुए हुक्म दिया कि *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* कई बार बोला मग़र किसी भी सैनिक ने उसकी बात नहीं मानी।

राजा को मंत्री की धृष्टता पर गुस्सा आ गया, राजा ने मंत्री की ओर इशारा करते हुए सैनिकों को हुक्म दिया कि *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* एक बार बोलने पर ही सैनिकों ने तुरंत मंत्री को बंदी बना लिया।

मंत्री मुस्कुराते हुए राजा से क्षमा मांगते हुए बोला - महाराज मैंने प्रमाणित कर दिया।

एक ही वाक्य सैनिकों को - *इसको बंदी बनाकर कारागृह में डाल दो।* हमने और आपने दोनों ने बोला। मैं अधिकारी नहीं था तो वह बेअसर निकला। आप अधिकारी थे तो वह तुरन्त अमल में आया।

इसीतरह *गायत्री मन्त्रशक्ति का उत्कीलन और शक्तिस्रोत को शिष्य के लिए खोलने का दीक्षा के वक़्त उपक्रम मन्त्र कोई भी बोल सकता है। लेकिन उत्कीलन व शक्तिस्रोत ब्रह्माण्ड के सैनिक तभी करेंगे जब वह गुरु अधिकारी होगा। वह गरीब ब्राह्मण ने आदेश मेरी तरह ब्रह्माण्ड के सैनिक हो दिया होगा लेकिन उसके हुक्म की तामील नहीं हुई होगी क्योंकि वह अधिकारी न था।*

राजा को बात समझ आयी और वह सद्गुरु की शरण में गया जिससे मंत्री ने गुरुदीक्षा लेने को कहा था।

अतः तुम शोक का त्याग करके गुरुभक्ति में लीन होकर गायत्री साधना करो। क्योंकि हमारे गुरु सवा करोड़ से ज्यादा जप कर चुके हैं, वशिष्ठ व विश्वामित्र शर्ते पूरी करते हैं। पूरे ब्रह्याण्ड में गायत्रीमंत्र की शक्तिधाराओ के उत्कीलन और एक्टिवेशन में सर्वसमर्थ है। वे वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ व गायत्रीमंत्र के दृष्टा है उनकी शरण में जाओ तुम्हारा कल्याण होगा।

 गुरुगीता का अनुष्ठान करो, गुरुसेवा करो। गुरूकृपा अर्जित करो।

ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम् । मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ।।

जप, तप, ध्यान, योग, स्वाध्याय इत्यादि सब आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करते हैं। लेकिन आत्मसाक्षात्कार तुम्हें गुरूकृपा से ही होगा। जब स्वयं को जानोगे व आत्मा प्रकाशित होने लगेगी तो सभी बुरी लत का क्षय स्वयंमेव होने लगेगा। सूर्य उदित होते ही अंधकार भला कैसे टिकेगा।

बुरी लत से कब मुक्ति मिलेगी इस चिंतन में समय व्यर्थ मत करो। गुरुभक्ति में लीन रहकर गायत्रीमंत्र की साधना करो, जानते हो स्थूल हृदय बाएं तरफ होता है और सूक्ष्म हृदय दाहिने तरफ़ होता है। जहाँ प्रभु का वास होता है। गुरु गीता की साधना से तुम्हें दाहिने सूक्ष्म हृदय में कुछ स्फुरणा महसूस होगी। जो तुम्हें प्रकाशित कर देगी। गुरु के चरणों के ध्यान में रहो सब स्वतः ठीक हो जाएगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *भक्ति व परोपकार में क्या अंतर है?*

प्रश्न - *भक्ति व परोपकार में क्या अंतर है?*

उत्तर- पहले भक्ति को समझिए,

👉🏻 *भक्ति क्या है?*

*भज्* धातु में *क्तिन्* प्रत्यय होने से *भक्ति* शब्द का निर्माण हुआ है। *भज् सेवायाम* - *भज्* धातु का अर्थ है *समर्पण के साथ सेवा करना*।

जिसको आराध्य माना है उसकी सेवा करना। उदाहरण - ईश्वर भक्ति, मातृ भक्ति, पितृ भक्ति, गुरु भक्ति, देश भक्ति, स्वामी भक्ति इत्यादि। आराध्य की जो इच्छा होगी तदनुसार उसकी इच्छा पूरी करने में जुट जाना, उसकी सेवा में खो जाना, उसके लिए मरने मिटने में पीछे न हटना भक्ति का अंग अवयव है। निःश्वार्थ भाव भक्त का होता है, उसके द्वारा किया परोपकार भी भक्ति का एक अंग है। भक्ति में यदि कोई भक्त जन सेवा व परोपकार भी करता है तो उसके पुण्यफ़ल को वह अपने आराध्य को अर्पित कर देता है।

भगवान कृष्ण ने ईश्वरीय - नवधा भक्ति हेतु कहा है:-

*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*

1.श्रवण 2. कीर्तन, 3. स्मरण, 4. पादसेवन, 5. अर्चन, 6. वंदन, 7. दास्य, 8. सख्य और 9.आत्मनिवेदन

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अब परोपकार को समझिए

👉🏻 *परोपकार* दो शब्दों से मिलकर बना है - *पर* + *उपकार*

*पर* - जो स्वयं से परे दूसरा है उसके भले के लिए उसका श्रम,साधन,अंशदान,समयदान, प्रतिभादान द्वारा उस पर *उपकार* अर्थात भला करना ही परोपकार कहलाता है। परोपकार के बदले पुण्यफ़ल मिलता है। परोपकार  स्वार्थ भाव और निःश्वार्थ भाव अर्थात दोनों भाव से किया जाता है।

*परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।*
*परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥*

परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं, (अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है ।

*परोपकारशून्यस्य धिक् मनुष्यस्य जीवितम् ।*
*जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति ॥*

परोपकार रहित मानव के जीवन को धिक्कार है । वे पशु धन्य है, मरने के बाद जिनका चमडा भी उपयोग में आता है ।

परोपकार करने वाला आस्तिक व नास्तिक दोनों हो सकता है। परोपकार में उस पुण्यफ़ल को व्यक्ति स्वयं ग्रहण करता है। परोपकार करने वाला भक्त न हुआ तो परोपकार के बाद मिली प्रसंशा उसे अहंकारी भी बनाती है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *ध्यान(Meditation) व एकाग्रता(Concentration) में क्या अंतर हैध्यान व एकाग्रता में अंतर?*

प्रश्न - *ध्यान(Meditation) व एकाग्रता(Concentration) में क्या अंतर है?*

उत्तर - एकाग्रता ध्यान का एक प्रतिफल है। ध्यान में एकाग्रता का विकेंद्रीकर्ण हो जाता है।

आपकी शायद यह धारणा हो की ध्यान का अर्थ है मन को एक स्थान पर एकाग्र कर लेना। यह उचित नहीं है। वास्तव में ध्यान एकाग्रता के साथ भी व एकाग्रता के बिना भी होता है। ध्यान के घटित होने के अनेक मार्ग हैं, एकाग्रता उनमें से एक है।

 आप को काम करते समय एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन ध्यान  करने के लिए आपको एकाग्रता की आवश्यकता नहीं है।

किसी भी कार्य को सतर्कता के साथ और मन का केंद्रित करके करना एकाग्रता कहलाता हैं। जैसे नोट गिनते वक़्त व्यक्ति एकाग्र होता है, सच्चा विद्यार्थी पढ़ते वक्त एकाग्र होता है, साइंटिस्ट अपनी रिसर्च पर एकाग्र होता है।

एकाग्रता एक मानसिक क्रिया है।

ध्यान की प्रथम सीढ़ी एकाग्रता भी हो सकती है, ध्यान की चुनी हुई धारणा पर एकाग्र होने पर ध्यान घटना में मदद मिल सकती है।

ध्यान एक अक्रिया है।

जैसे बीज बोना एक क्रिया है, लेकिन बीज से पौधा निकलना एक अक्रिया है। दूध में जामन डालना एक क्रिया है, लेकिन दूध से दही बनना एक अक्रिया है।

ध्यान एक योग है, इसमें जुड़ना अनिवार्य है, तन्मयता तल्लीनता व तदरूपता ध्यान के अनिवार्य घटक हैं। बीज से पौधा बनने पर बीज का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है। दूध से दही बनने पर दूध का मूल अस्तित्व खत्म हो जाता है। फ़िर पौधा शेष बचता है, फ़िर दही शेष बचता है।

इसी तरह ध्यान हेतु जब साधक मन के दूध में ईश्वरीय जामन डालकर स्थिर बैठता है। तक ध्यान योग घटित होता है, तब साधक का अस्तित्व मिटता है, उसमें देवत्व शेष बचता है। नर - बीज है और ध्यान मार्ग से नारायण - वृक्ष बनने की विधिव्यस्था है।

जब तक बीज है तबतक पौधा नहीं,
जब पौधा बन गया तो बीज शेष नहीं बचेगा।

इसीतरह

जब तक *मैं* है तबतक *हरि* नहीं,
जब *हरि* आएगा तो *मैं* शेष नहीं बचेगा।

प्रेम गली अति संकरी, जा में दो न समाय

बीज पौधे को बाहर नहीं पा सकता, जो उसमें ही विद्यमान है उसे पाने के लिए उसे गलना व मिटना होगा। भक्त भगवान को बाहर नहीं पा सकता, जो उसमें विद्यमान है उसे बाहर लाने के लिए *मैं* को गलना व मिटना होगा।

ध्यान कुछ पाने के लिए नहीं है, ध्यान तो नर से नारायण बनने का राजमार्ग है।

पुस्तक - *प्रसुप्ति से जागृति की ओर* जरूर पढ़ें

🙏🏻श्वेता, DIYA

Monday, 18 November 2019

अंधापन दो प्रकार का होता है, एक स्थूल व दूसरा सूक्ष्म।

*अंधापन दो प्रकार का होता है, एक स्थूल व दूसरा सूक्ष्म।*

स्थूल अंधापन या तो जन्मजात होता है या एक्सीडेंट से होता है।

सूक्ष्म अंधापन साधकों में दो कारणों से होता है- पहला दूसरे साधक से ईर्ष्यावश या अहंकार में ठेस पहुंचने पर।

सूक्ष्म अंधापन संसारी लोगों में काम वासना या इच्छाओं की आपूर्ति में बाधा पड़ने से होता है।  पुरूष के अहंकार या स्त्री के भावनाओं को ठेस पहुंचने पर होता है। इसे बदले की भावना या प्रतिशोध का अंधापन भी कह सकते हैं।

स्थूल अंधेपन का इलाज़ ऑपरेशन से सम्भव है।

सूक्ष्म अंधेपन का इलाज़ तब तक असम्भव है जब तक कि बदले की भावना में दूसरे को बर्बाद करने का भाव मन से वह व्यक्ति स्वयं निकाल न दे। वह स्वयं के उत्थान में जुटकर जीवन से अप्रिय घटनाक्रम को भूलने का प्रयास करे। ईर्ष्या को मन से निकालने में और अहंकार को घटाने में जो जुटेगा वही सूक्ष्म अंधेपन से मुक्त होगा।

सूक्ष्म अंधे व्यक्ति की पहचान अत्यंत कठिन है, केवल उससे बात करके ही उसके अंधेपन को जाना जा सकता है। जिस व्यक्ति के लिए उसके भीतर अंधापन होगा उसकी चुगली निंदा करने में वो रस लेगा या स्वयं चुगली निंदा करेगा। उसे अपशब्द बोलेगा।

बदले की भावना में अंधा व्यक्ति कितना ही उच्चवकोटी का साधक क्यों न हो, वह अपनी साधना को भी बदले की बलि चढ़ा देता है। इतिहास गवाह है कि लोगों ने तप करके उसका दुरुपयोग बदले की भावना हेतु किया। वह उस पेड़ को काटने से भी नहीं हिचकता जिस पर वह स्वयं बैठा हो।

बदले की भावना में अंधा व्यक्ति बहरा भी हो जाता है। वह उस व्यक्ति की बर्बादी के लिए स्वयं व अपने परिवार को भी बर्बाद करने से पीछे नहीं हटता। बदले की भावना में अंधा व्यक्ति पागलपन व व्यामोह का इस कदर शिकार हो जाता है कि वह अपना अच्छा या बुरा सोचने की परिस्थिति में नहीं होता।

इस अंधेपन से मुक्ति केवल परमात्मा तभी दे सकता है, जब व्यक्ति इससे  मुक्त होना स्वयं चाहेगा।

बदले की भावना के महाभारत में जो बर्बाद करने चलता है वह पहले स्वयं बर्बाद होता है और अपने से जुड़े अपनो को बर्बाद करता है। तबाह व बर्बाद जीवन ही जीता है, कभी भी सुकून नहीं मिलता।

*एक सत्य घटना* - तिब्बत में एक बच्चे के चाचा ने उसके पिता की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति हड़प ली, मां व बहन को झूठे आरोप में गांव से निकलवा दिया। बदले की भावना में उस बच्चे ने साधना की व घोर तांत्रिक बना। जब चाचा के घर उसकी छोटी पुत्री का विवाह आयोजन था,पूरा गांव एकत्रित था तब उसने ओलों की तांत्रिक बारिश से सबको मृत्यु के घाट उतार दिया। उसने सोचा था कि बदला पूरा होते ही वह आनन्द से भर जाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टा उसके हृदय में दर्द व क्षोभ और बढ़ गया। व अशांति व उद्विग्नता से मुक्ति हेतु संतो के शरण मे जाने लगा। कोई सन्त उसे शिष्य बनाने को तैयार न हुआ। तब उसने कई वर्षों तक पश्चाताप किया, तब अंततः उसके गुरु आये और बोले तूने बदले की भावना में जो पाप किया है वो तू अगले कई जन्मों तक भोगेगा। कर्मफ़ल में तुझे पुनः वही पीड़ा रिश्तों से मिलेगी। जितने लोगो को तूने मारा है प्लस उतने लोगों को की मृत्यु पर रोने वाले उससे जुड़े लोग इतने जन्मों तक तू कष्ट भोगेगा। प्रायश्चित व सत्कर्म करते रहो, कुछ इस जन्म में और कुछ अगले जन्मों तक इसको भुगतने के मानसिक रूप से स्वयं को तैयार कर लो। तभी तुम्हें निर्वाण मिलेगा, जब जितनो को मारा है उससे हज़ार गुना लोगो का जीवन तुम बचा सकोगे। आग एक माचिस की तीली से झोपड़ी को लगाई जा सकती है, मगर बुझाने के लिए कई बाल्टी पानी चाहिए। एक बद्दुआ पूरा जीवन तबाह कर देती है, जीवन को सम्हालने के लिए कई सारी दुआएं चाहिए। अतः जन सेवा करो और दुआएं अर्जित करो।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं कॉलेज पास कर चुके हैं, हम साधनारत भी हैं। मगर काम वासना हम दोनों पर बहुत हावी है। मैंने सुना है कि सन्यास लेते वक़्त ऋषिमुनि कुछ औषधियों का सेवन करवाते थे?*


प्रश्न - *हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं कॉलेज पास कर चुके हैं, हम साधनारत भी हैं और काम विकार से मुक्त होना चाहते हैं। मगर काम वासना हम दोनों पर बहुत हावी है। मैंने सुना है कि सन्यास लेते वक़्त ऋषिमुनि कुछ औषधियों का सेवन करवाते थे?*

उत्तर - अत्यधिक कामवासना रोग की निशानी है। साधारण काम वासना गृहस्थ के लिए अनिवार्य है। क्योंकि गृहस्थ उद्देश्यों व सन्तान उत्तपत्ति का दायित्व पूर्ण हुआ तो आप कुछ शास्त्रोक्त विधि अपना सकते हैं।
सर्वप्रथम विपश्यना ध्यान करना शुरू कीजिए, यह विधि आपको पँच कर्मेन्द्रिय, पँच ज्ञानेन्द्रिय व एक मन पर नियंत्रण प्रदान करेगी। विधि निम्नलिखित वीडियो देखकर सीख लीजिये, इस वीडियो के अंत मे विपश्यना ध्यान करवाया गया है:-
https://youtu.be/TOev96BPYDc
कामभावना का दमन रोगों में प्रवेश है। काम की जड़ को समझकर सर्वप्रथम कामभावना का शमन स्वास्थ्यकर है।
कामोत्तेजक विचारों का चिंतन व काम भावना को बढाने वाले टीवी सीरियल, फिल्मों, मैगज़ीन इत्यादि का त्याग कर दें। अच्छे साहित्य का नित्य स्वाध्याय व नित्य गायत्री मन्त्रलेखन प्रारम्भ कर दीजिए।
कुछ औषधियां भी है,  शास्त्रों में इन्हें इसलिए बताया गया है, यह चीजें उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होती थी जो कामवासना को खुद से दूर रखना चाहते थे।
जैसे कि हमारे साधू-संत होते हैं तो उनके लिए कामवासना को रोकना बहुत ही जरुरी होता है तो वह लोग इन चीजों का उपयोग करते थे।ऐसा मैने पढ़ा है कि इनके उपयोग से एक पुरुष काममुक्त हो जाता है-
1. *केले के पेड़ की जड़ का रस*
यह बात सबसे अधिक प्रचलित है कि यदि किसी व्यक्ति को केले के जड़ का रस पानी में मिलाकर पिला दिया जाए तो इससे वह व्यक्ति कुछ ही दिनों में नपुंसक बन जाता है। आपके यहाँ यदि केले का पेड़ गमले में है तो ध्यान दें कि केले के पेड़ की कुछ जड़े गमले से बाहर निकल रही होंगी, तो उन्हें काटकर, उनका रस पीसने के बाद निकाल लें और इसको पानी में मिलाकर कुछ दो बार से तीन बार पी लेने के बाद पुरुष में नपुंसकता आने लगती है।
2. *पुरुष को आम का अचार खाना क्यों मना है?*
आपने सुना ही होगा कि पुरुष को आम का अचार खाने से मना किया जाता है। इसके पीछे का जो मुख्य कारण है वह यही है कि आम का अचार यदि एक पुरुष लगातार खाता है तो उसके अन्दर नपुंसकता आ जाती है। इसीलिए जो गृहस्थ हैं उन पुरुषों को खट्टा नहीं खाना चाहिए। जो कामभावना नहीं चाहते वे अचार का सेवन करें।
3. *आंवला भी खिलाते रहो*
अगर आप किसी को नामर्द ही बनाना चाहते हैं तो आप उस व्यक्ति को आंवला खिलाते रहें. आपने आजतक आंवला के फायदे ही सुने होंगे लेकिन एक साधू की मानें तो कामवासना को ख़त्म करने के लिए वह लोग आंवला काफी खाते हैं। इसका शारीरिक लाभ तो होता है किन्तु साथ में कामभावना को नियंत्रित करता है।
4- स्त्रियां यदि नित्य मीठे में गुड़ का सेवन करती हैं तो उनके अंदर काम भावना नियंत्रित होती है।
आप दोनों पति पत्नी 16 सोमवार का व्रत करें व रुद्राभिषेक करें, व काम के शमन की प्रार्थना करते रहें। भगवान शिव ने काम देवता को नष्ट किया था, यदि शिव की साधना काम भावना को भंग करने के लिए किया जाय तो वह बल मिलता है जिससे भाव शुद्धि होती है। काम भावना नियंत्रित होती है।
🙏🏻श्वेता, DIYA

जो स्वार्थ में बनेंगे वो रिश्ते तो टूटेंगे ही

*जो स्वार्थ में बनेंगे वो रिश्ते तो टूटेंगे ही*

दूध में नींबू डलेगा,
वो दूध तो फटेगा ही,
रिश्ता जो स्वार्थ में बनेगा,
वो रिश्ता तो टूटेगा ही।

आज मां बेटी को,
परिवार में सेवा-सहकार सिखाती नहीं,
आज पिता बेटे को,
परिवार के लिए कष्ट उठाना सिखाता नहीं।

आज स्वार्थ की तराजू देकर,
बेटी को ससुराल भेजा जाता है,
आज स्वार्थ का व्यापारी बनकर,
बहु को घर लाया जाता है।

जैसे ही रिश्ते में घाटा दिखा,
वैसे ही रिश्ते में बिखराव शुरू,
सच्चे प्रेम व त्याग के अभाव में,
कोर्ट कचहरी की बात शुरू।

पाश्चात्य की स्वार्थभरी आंधी से,
पुनः परिवार को टूटने से बचाना होगा,
भारतीय संस्कारों का खाद पानी देकर,
पुनः जन जन में  निःस्वार्थ प्रेमभाव रोपना होगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

यदि गंजेपन से बचना चाहते हैं, शाश्वत सौंदर्य पाना चाहते तो पुनः भारतीय ऋषि परम्परा में लौट चलें

*यदि गंजेपन से बचना चाहते हैं, शाश्वत सौंदर्य पाना चाहते तो पुनः भारतीय ऋषि परम्परा में लौट चलें*
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रोज की धूल-मिट्टी और प्रदूषण का सीधा असर हमारे बालों पर पड़ता है। प्रदूषण के कारण दिन बदिन हमारे बाल कमजोर होते हैं और बालों से जुड़ी तमाम समस्याएं होने लगती हैं। नकारात्मक चिंतन व तनाव जीवन के साथ साथबालों को भी बर्बाद कर रहा है।

 आज के समय में ज्यादातर लोग बाल झड़ने, कम उम्र में बाल सफेद होने, गंजेपन या कम बाल जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। मार्केट में कई तरह के ऐसे प्रोडक्ट्स मौजूद हैं, जो स्वस्थ, लंबे और घने बाल करने का दावा करते हैं। लेकिन तमाम केमिकल्स के प्रयोग से बनें ये प्रोडक्ट्स बालों को फायदा पहुंचाने की बजाए नुकसान पहुंचाते हैं। इसके लिए बेहतर है कि आप बालों की सेहत के लिए प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करें।

 बालों के लिए प्राचीन ऋषि परम्परा के अनुसार घरेलू नुस्खे में आप सरसों का तेल शामिल कर सकते हैं। सरसों के तेल में कई ऐसे गुण होते हैं, जो बालों को लंबा करने और उन्हें मजबूत बनाने में मददगार होते हैं। सकारात्मक चिंतन के लिए  युगसाहित्य पढ़ सकते हैं।

*कच्ची घानी सरसों के तेल को हल्का गर्म करके उसमें आधा नींबू का रस मिलाएं व हल्का गुनगुने तेल को ही हल्के हाथों से मन ही मन गायत्री मंत्र जपते हुए सर पर बालों की जड़ पर मसाज़ करें। मसाज करते वक्त आसमान में  अनेक तारों का ध्यान करें। कम से कम दो घण्टे सर पर तेल लगा रहने दें फ़िर किसी भी रेगुलर शैम्पू जो लगाते हैं उससे सर धो लीजिये। कंडीशनर लगाने की अलग से जरूरत नहीं है। आपको स्वयं अपने बालों में शाइनिंग व बालों की हेल्थ में सकारात्मक फ़र्क़ महसूस होगा।*

*सरसों के तेल के फायदे*

👉🏻सरसों के तेल में फैटी एसिड होता है जो बालों को नमी देता है और रूखापन दूर करता है।
👉🏻सरसों का तेल लगाने से बाल जल्दी बढ़ते हैं।
👉🏻सरसों का तेल लगाने बालों की ग्रोथ अच्छी होती है, जिससे बाल घने होते हैं।
👉🏻सरसों के तेल में सेलेनियम नामक एंटी ऑक्सीडेंट तत्व पाया जाता है, जो स्कैल्प को प्रदूषण से बचाता है।
 👉🏻सरसों के तेल से मसाज करने से स्कैल्प का ब्लड सर्कुलेशन भी सही रहता है और बाल जड़ से मजबूत होते हैं।
👉🏻कई कारणों से उम्र से पहले बाल सफेद होने लगते हैं। ऐसे में सरसों का तेल बाल काला रखने में मददगार होगा। सरसों के तेल से बालों को जरूरी पोषण मिलते हैं।
👉🏻निम्बू और सरसों का तेल आपके बालों को काला बना सकते हैं. निंबू में भरपूर मात्रा में विटामिन सी और सिट्रिक एसिड मौजूद होते हैं. सरसों के तेल में कैल्शियम और खनिज तत्वों की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो हमारे बालों के लिए बहुत फायदेमंद होती हैं।
👉🏻सरसों का तेल एमयूएफए, पीयूएफए, ओमेगा 3 और 6, विटामिन ई, खनिज और एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है।
👉🏻 नीम्बू मिलाकर लगाने से बालों में शैम्पू के वक्त चिपचिपा पन नहीं होता। कंडिशनर प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। फिर भी यदि कंडिशनर करना ही चाहते हैं तो केवल चायपत्ती सादे पानी मे उबालकर ठंडा कर लें। उसे छानकर उस जल से बालों को कंडीशन करें जिससे और ज्यादा चमक मिले।
👉🏻 सोते वक़्त स्वाध्याय करके ही सोएं इससे रात को बालों को सकारात्मक विचारों के कारण ग्रोथ अच्छी मिलेगी।
👉🏻 दिन में कम से कम 324 बार गायत्री मंत्र शांत चित्त होकर जपें इससे दिव्य ऊर्जा केंद्र जागृत होंगे व नस नाड़ियों में प्राण संचार होगा। जिससे शरीर स्वस्थ होगा व चेहरे व बालों में प्राण ऊर्जा पहुंचेगी।

सरसों के तेल व नीम्बू का विज्ञापन टीवी में, मीडिया में, न्यूजपेपर में तो आएगा नहीं, क्योंकि यह घर घर में मिलता है और इससे विदेशी कम्पनियों को कोई फ़ायदा मिलेगा नहीं। अतः हमने सोचा भारतवासियों को गंजा होने से बचाने की मुहिम के तहत यह एक पहल की जाए। औषधीय गुणों से भरपूर सरसों तेल व नीम्बू के मिश्रण का प्रचार किया जाय। लोगों के परिवार बचाने के साथ साथ बाल भी बचाने की एक मुहिम शुरू किया जाय। मुझे यह पोस्ट करने में कोई आर्थिक कमाई नहीं होगी, आपको भी यह फारवर्ड करने पर कमाई न होगी। केवल दुआ मिलेगी।

फ़ायदा मिले तो दुआ व आशीर्वाद देना न भूलें😇, यही हमारी कमाई है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Sunday, 17 November 2019

*हे अनन्त यात्री मोह न करो

*हे अनन्त यात्री मोह न करो*

मोह करूँ मैं किसका,
मेरे मरने के बाद,
मेरे अपने ही मुझे चिता में जला देंगे।

गुरुर करूँ मैं किसका,
मेरे मरने के बाद,
मुझे छूने के बाद लोग हाथ धो लेंगे।

इकट्ठा क्यों करूँ धन इतना,
मेरे मरने के बाद,
साथ तो कुछ ले जा न सकूँगा।

मकान क्यों बड़ा करूँ इतना,
मेरे मरने के बाद,
यहाँ कुछ दिन भी तो न रह सकूँगा।

मुट्ठी भर राख की,
मेरी औक़ात है मेरे भाई,
भिखारी हो या राजा,
किसी की राख में,
कोई फ़र्क़ न ढूंढ सकेगा भाई।

तू ही बता किस बात का गुरुर करूँ?
तू ही बता किस बात का मोह करूँ?
शरीर से जुड़े रिश्ते शरीर के साथ जलेंगे,
मेरे अपने भी मुझे जलाने से न हिचकेंगे।

मेरा रात को कोई नाम लेना न पसन्द करेगा,
मेरी तस्वीर भी मेरे अपनों में रात को भय भरेगा,
मुझे भूलकर मेरे अपने जीवन में,
वैसे ही आगे बढ़ जाएंगे,
जैसे मैं ख़ुद मेरे माता पिता को भूलके,
सारी उम्र जिया भाई।

यह यात्रा है स्मरण रख भाई,
तू भी, किसी गुरुर में मत अकड़ भाई,
तू भी, किसी मोह में मत जकड़ भाई,
उस परमात्मा का स्मरण रख भाई,
उसकी जिसमें ख़ुशी हो वही कर भाई।

🙏🏻श्वेता, DIYA

Saturday, 16 November 2019

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है?

*मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है?*

आधुनिक चिकित्सा व अस्पताल क्या मौत टाल रहे हैं? उत्तर हाँ है। क्योंकि मनुष्य की औसत आय पहले से डेढ़ गुना बढ़ गयी है।

जन्म व मृत्यु भी इंसान के कर्म प्रभावित कर सकने में सम्भव है।

हिन्दू धर्म मे तलाक का कोई सिस्टम बना ही नहीं था। पति या पत्नी एक दूसरे को छोड़ देते थे जिसे त्यागना कहते थे, लेकिन इसे विवाह बंधन की मुक्ति या विच्छेद नहीं माना जाता था। आधुनिक कानून ने विवाह में विच्छेद का भी प्रावधान कर दिया। 

अतः विवाह को भी मनुष्य के कर्म प्रभावित कर रहे हैं।

मनुष्य ने धरती को प्रदूषित करके सामूहिक मौत और फेफड़ों की लाइलाज बीमारियों का इंतज़ाम कर लिया है।

अतः मनुष्य के कर्म यहां भी जीवन व पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है।

अमीर या गरीब मनुष्य अपने कर्मो द्वारा बन सकता है? विवाह करना न करना मनुष्य की स्वयं की इच्छा पर निर्भर है। बच्चे कितने पैदा करना है यह भी मनुष्य तय कर सकता है? मरना कब और कैसे है यह भी मनुष्य तय कर सकता है। सब कुछ तो मनुष्य के हाथ मे है।

हमारे अच्छे या बुरे कर्म ही इस जन्म व अगले जन्मों को प्रभावित कर रहे है।

जब भगवान ने मनुष्य को कर्म करने में पूर्णतयः स्वतंत्र छोड़ रखा है, फ़िर इंसान भगवान को दोष 🤔 क्यों देता है?


🙏🏻श्वेता, DIYA

Thursday, 14 November 2019

प्रश्न - *आज़कल कुछ पढ़े लिखे मानसिक विक्षिप्त लोग देवी-देवताओं की मूर्तियां जलाते हुए यूट्यूब पर वीडियो अपलोड कर रहे हैं, जिनमें से उत्तरप्रदेश के मड़ियाहूं का विक्षिप्त ज्ञानी भी है, मूर्ति पूजा को अंधविश्वास बता रहे हैं।*

प्रश्न - *आज़कल कुछ पढ़े लिखे मानसिक विक्षिप्त लोग देवी-देवताओं की मूर्तियां जलाते हुए यूट्यूब पर वीडियो अपलोड कर रहे हैं, जिनमें से उत्तरप्रदेश के मड़ियाहूं का विक्षिप्त ज्ञानी भी है, मूर्ति पूजा को अंधविश्वास बता रहे हैं।*

उत्तर- विवेकानंद जी व युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने एक बात को बल देते हुए कहा है कि *जब तक हम ब्रह्माण्ड में व्याप्त परमात्म तत्व को मन में नहीं ग्रहण कर पाते, तब तक हमें मूर्तियों के सहारे ही उपासना करनी होती है*, ठीक उसी प्रकार जैसे भाषा का जब तक हम पूर्णतया ज्ञान न हो जाये, भाषा सीखने के लिए कलम-कॉपी का उपयोग करना उचित है। मूर्तिपूजा को लेकर विवाद पैदा करना उचित नहीं, क्योंकि जो परमात्म चेतना कण कण में है वह मूर्ति के कणों में भी विद्यमान है। अपनी श्रद्धा-विश्वास को उस मूर्ति में आरोपित कर उस परमात्म तत्व को अनुभूत किया जाता है। जैसे पुत्र के लिए पिता की तस्वीर मात्र कागज़ का टुकड़ा नहीं होती, वह पिता को अनुभूत व याद करने का माध्यम होती है, वह उस तस्वीर को उतनी ही इज्जत सम्मान देता है जितना वो पिता को देता है, यही नवाब के मूर्ति पूजा के सम्बंध में शंका समाधान करते हुए विवेकानंद जी ने बताया था।
भक्त के लिए भी पुत्र की तरह भगवान की मूर्ति व साक्षात भगवान में फर्क नहीं। उसकी श्रद्धा भावना उतनी ही जुड़ी हुई है और वह उतना ही भक्ति से लाभान्वित भी होता रहता है।

 स्वामी विवेकानंद का चिंतन..
यदि कोई कहे कि प्रतीक, अनुष्ठान और विधियां सदैव रखने की चीजें हैं, तो उसका यह कहना गलत है, पर यदि वह कहे कि इन प्रतीकों और अनुष्ठानों द्वारा विकास की निम्न श्रेणियों में आत्मोन्नति में सहायता मिलती है, तो उसका कथन ठीक है। पर हां, आत्मोन्नति का अर्थ बुद्धि का विकास नहीं। किसी मनुष्य की बुद्धि कितनी ही विशाल क्यों न हो, पर आध्यात्मिक क्षेत्र में संभव है वह एक बालक या उससे भी गया-बीता हो। इसी क्षण आप इसकी परीक्षा कर सकते हैं। हममें से कितने ऐसे हैं, जिन्होंने सर्वव्यापित्व की कल्पना की है? हालांकि हम लोगों को सर्वव्यापी ईश्वर में ही विश्वास करना सिखाया गया है। यदि आप प्रयत्न करेंगे तो सर्व-व्यापकता के भाव के लिए आकाश या हरे-भरे विस्तृत मैदान की या समुद्र अथवा मरुस्थल की कल्पना करेंगे। पर ये सब भौतिक मूर्तियां हैं, जब तक आप सूक्ष्म को सूक्ष्म की ही तरह मन में नहीं ग्रहण कर सकते, तब तक इन आकारों के मार्ग से, इन भौतिक मूर्तियों के सहारे ही चलना होगा। फिर ये मूर्तियां चाहे दिमाग के भीतर हों या बाहर, उससे कोई अंतर नहीं पड़ता।

विवेकानंद जी व राजा का सम्वाद निम्नलिखित वीडियो में देखिए।
https://youtu.be/7VZZeR-0-Fg

मूर्ख विक्षिप्त व्यक्ति जिसे महानता का व्यामोह हो गया है कि जिस तरह वह भगवान की मूर्तियां जला रहा है, बस उतनी ही शिद्दत व महानता के साथ अपने घर के लोगों की तस्वीरों पर थूक कर आग लगा देने को बोलिये। आख़िर वो भी तो मात्र कागज़ का टुकड़ा ही तो है। उन फ़ोटो में उनके घरवाले थोड़े ही हैं। उसकी व उसके घरवालों की फ़ोटो लेकर कुत्ते की पॉटी साफ़ कीजिये, उस फ़ोटो में वो थोड़े ही है जो बुरा मानेगा।😇

🙏🏻इसे विस्तार से समझने के लिए प्रवचन माला में प्रकाशित पुस्तक -
📖 *पाठ पूजा का दर्शन समझें*
http://beta.literature.awgp.in/book/pathpooja_ka_darshan_bhee_samajhen/v1.28

निम्नलिखित अखण्डज्योति पत्रिका का आर्टिकल पढ़िये:-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1958/May/v2.10

सूर्य विज्ञान, मन्त्र, यन्त्र व तंत्र विज्ञान का गुह्य ज्ञान-विज्ञान जानता है वह किसी भी निर्जीव वस्तु में चेतना प्रवाहित कर प्राणप्रतिष्ठा करके अभीष्ट सिद्धि कर सकता है।

जल, वायु, कोयला इत्यादि में विद्युत है और उससे घर में बल्ब जला कर रौशन किया जा सकता है। जिसने पुस्तकें पढ़ी है वह मानेगा और जो अनपढ़ होगा वो हँसी उड़ाएगा और बोलेगा मैं तो रोज पानी पीता हूँ मुझे तो कभी करंट नहीं लगा। रोज सांस लेता हूँ करंट नहीं लगा। रोज कोयला जलाता हूँ कभी करंट नहीं लगा। यह अंधविश्वास है कि जल, वायु और कोयले से अग्नि बन सकती है। इसी तरह अध्यात्म जगत के अनपढ़ को भी मूर्ति विज्ञान का महत्त्व समझ नहीं आता, वो भी इसे अंधविश्वास ही कहेंगे।😇

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 13 November 2019

प्रश्न- *दी, मेरा मित्र कहता है कि हमें दूसरों से कम्पटीशन करना चाहिए, मुझे लगता है कि मुझे ख़ुद से कम्पटीशन करनी चाहिए। आपका इस सम्बंध में क्या विचार है?*

प्रश्न- *दी, मेरा मित्र कहता है कि हमें दूसरों से कम्पटीशन करना चाहिए, मुझे लगता है कि मुझे ख़ुद से कम्पटीशन करनी चाहिए। आपका इस सम्बंध में क्या विचार है?*

उत्तर - आत्मीय बेटी,

हमें कम्पटीशन हमेशा टाइम व टेलेंट से करना चाहिए।

उदाहरण - आप धावक बनना चाहते हो। तो पता करो वर्ल्ड रिकॉर्ड किसके नाम है।

Usain Bolt is an 11-time world champion. He holds the world records in races for 100 meters, at 9.58 seconds, and 200-meters, at 19.19 seconds.

अब तुम्हारा कम्पटीशन  Usain Bolt नाम व्यक्ति से नहीं होना चाहिए, अपितु तुम्हारा कम्पटीशन 9.58 सेकंड्स से है जिसमें तुम्हें 100 मीटर रेस दौड़ना है। रंनिंग को दिन प्रतिदिन सुधारना है। व्यक्ति से कम्पटीशन करोगी तो कभी बेस्ट नहीं बनोगी। समय व टेलेंट से कम्पटीशन करोगी तो सदा सफल रहोगी।

इसी तरह कोई गवर्नमेंट की जॉब का कम्पटीशन हो तो पता करो क्या हाई स्कोर कट ऑफ है। बस उस स्कोर व टेलेंट से कम्पटीशन करो। खुद से प्रश्न करो कि जो कुर्सी व पद चाहते हो क्या उसके लिए बेस्ट उम्मीदवार हो?

इसी तरह यदि स्कूल-कॉलेज में हो तो तुम्हारा कम्पटीशन विद्यार्थियों से नहीं है। उन सब्जेक्ट्स से है जिसमें तुम्हें अंक स्कोर करना है। अब स्वयं तय करो कि क्या लक्ष्य रख रहे हो - 70% या 80% या 90% या 99%। मान लो तुम अक्सर 80% अंक स्कोर करते हो और इस वर्ष 90% का लक्ष्य रखा। और उसे अचीव किया तो किसी का तुमसे कम आये तो सुखी मत होना, किसी का तुमसे ज्यादा आये तो दुःखी मत होना। तुम्हारा कम्पटीशन इंसान से नहीं है, सम्बन्धित विषय की दक्षता  से है।

प्रत्येक रविवार चेकलिस्ट बनाओ, कि पिछले रविवार से आज तक में मैं कितनी बेहतर बनी? एक महीने में क्या हासिल किया? पिछले वर्ष से अब तक क्या हासिल किया?

यह भी प्लान करो कि एक दिन में क्या सीखना या पढ़ना है? एक सप्ताह में, एक महीने में, एक वर्ष में क्या पढ़ना व सीखना है?

पहले लक्ष्य बनाओ, फिर उसमें क्या, क्यों, कैसे व कबतक करना है प्लान करो? उस समय अंतराल व सम्बन्धित ज्ञान से कम्पटीशन करो।

खुदी को कर बुलन्द इतना,
कि खुद खुदा आकर तुझसे पूँछे,
ऐ बन्दे तेरी रज़ा क्या है?

स्वयं को इतना योग्य बनाओ कि स्वयं को यह बताने में गर्व हो कि हाँ वर्तमान में इस पद की बेस्ट उम्मीदवार हूँ।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 11 November 2019

प्रश्न - *मृतसंजीवनी मन्त्र रोगनिवारण के लिए करना है, इस पर मार्गदर्शन कीजिये*

प्रश्न - *मृतसंजीवनी मन्त्र रोगनिवारण के लिए करना है, इस पर मार्गदर्शन कीजिये*

उत्तर- मृतसंजीवनी पूर्ण तभी बनता है, जब उसमें मृत्युन्जय मन्त्र + गायत्री मंत्र + महामृत्युंजय मंत्र के सभी शब्द मौजूद हों।

शास्त्रों में,पुराणों में और हिन्दू धर्म में भी दो महामंत्र गायत्री मंत्र और मृत्युंजय मंत्र का बहुत ही ज्यादा महत्त्व है| इन दोनों ही मंत्रो को बहुत बड़े मन्त्र माना जाता है, जो आपको सभी संकटों से मुक्त कर सकारात्मकता प्राणऊर्जा से भर देते है| लेकिन भारतीय शास्त्रों में ऐसे मन्त्र का उल्लेख भी है, जो इन दोनों ही मन्त्रों से शक्तिशाली है क्योंकि यह मंत्र गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र दोनों से मिलकर बना है।  कहते है की इस मंत्र से मृत व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता है अर्थात इस मंत्र के सही जाप से बड़े से बड़े रोग और संकट से मुक्ति पाई जा सकती है। इस मंत्र का नाम है मृत संजीवनी मंत्र|

इंटरनेट में आपको कई तरह से मृत संजीवनी मन्त्र मिलेगा, इससे कन्फ्यूज़ न हो। गायत्री मंत्र व महामृत्युंजय मंत्र का कुछ जगह आंशिक मिलन करवा के जपते हैं क्योंकि सभी कठिन मन्त्र जप नहीं पाते।

*पूर्ण मृतसंजीवनी मन्त्र* -

*ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्र्यंबकं यजामहे ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ*

*संक्षिप्त मृत संजीवनी मन्त्र* -

*ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व:*
*ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥*
*ॐ स्व: भुव: भू: ऊँ स: जूं  हौं ऊँ*

जप से पूर्व गुरु आह्वाहन जरूर करें।
षट कर्म व घी का दीपक जलाएं।
जप घर के पूजन गृह या शिव मंदिर में ही करें।
जप के दौरान ब्रह्मचर्य पालन अनिवार्य है।
जप के दौरान स्वयं बनाया भोजन करें तो उत्तम है।
जप के बाद शांतिपाठ करके उठें।
मन्त्र उच्चारण शुद्ध हो यह ध्यान रखें।
मन्त्र होठ हिले मगर शब्द उच्चारण कोई सुन न सके ऐसा उपांशु जप करें।
जप में रुद्राक्ष की माला का ही प्रयोग करें। यदि रुद्राक्ष में हो तो तुलसी की माला का प्रयोग करें।
जप ऊनी कम्बल के आसन में पूर्व या उत्तर दिशा में करें।
शांतिपाठ अवश्य करें।

यदि अस्पताल जाना पड़े तो वहां मानसिक गुरु आह्वाहन करके मात्र मृतसंजीवनी मन्त्र का लेखन करें या मौन मानसिक जप करें।


*भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।*
*याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥*

*भावार्थ:*-श्रद्धा और विश्वास के स्वरूप श्री पार्वतीजी और श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ, जिनके बिना सिद्धजन अपने अन्तःकरण में स्थित ईश्वर को नहीं देख सकते॥

श्रद्धा-विश्वास के बिना कोई भी मन्त्र फ़लित नहीं होता। अतः श्रद्धा-विश्वास से उपरोक्त में से पूर्ण या संक्षिप्त में से जो जप सकें, जप करें। भगवान शंकर व माता गायत्री की कृपा बनी रहेगी। रोगों से मुक्ति मिलेगी।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *हम लगातार अपनी बुरी आदतों और कुसंस्कारों दूर करने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं। अपने जीवन की प्रगति के लिए और स्वाध्याय भी करते हैं। कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता है

प्रश्न - *हम लगातार अपनी बुरी आदतों और कुसंस्कारों दूर करने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं। अपने जीवन की प्रगति के लिए और स्वाध्याय भी करते हैं। कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता है फ़िर पुनः पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं, कुसंस्कार व बुरी आदतें हम पर पुनः हावी हो जाते हैं। इससे मन उदास व आत्मविश्वास तार तार हो जाता है। क्या करें?*

उत्तर- आत्मीय भाई,
👇🏻
*कुछ प्रश्न स्वयं से पूँछो:-*

पान सड़ा क्यों?
घोड़ा अड़ा क्यों?
विद्या भूली क्यों?
रोटी जली क्यों?
🙏🏻
उपरोक्त का उत्तर है कि *बिना फेरे*
पान को रोज ऊपर नीचे नहीं करोगे तो पान सड़ जाएगा।
घोड़ा रोज़ दौड़ाओगे नहीं तो घोड़ा अड़ेगा।
रोज़ पढ़ोगे नहीं तो विद्या भूल जाओगे।
बिना सतर्कता के रोटी उल्टोगे पलटोगे नहीं तो रोटी जल जाएगी।
👇🏻
*अच्छा कुछ और प्रश्न स्वयं से पूँछो?*

शरीर को नित्य क्यों नहलाना होता है?
घर में रोज क्यों झाड़ू पोछा करना पड़ता है?
नित्य जॉब में क्यों जाना पड़ता है?

🙏🏻 यह उपरोक्त बोरिंग कार्य नित्य करने पड़ेंगे अन्यथा शरीर गन्दा होगा, घर गन्दा हो जाएगा, जॉब छूट जाएगी व इनकम बन्द हो जाएगी।

भाई मेरे समस्या यह है कि मनुष्य को बार-बार करने वाला एक जैसा कार्य बोरिंग लगता है, ऊब जाता है, फ्रस्ट्रेट हो जाता है। वह चाहता है कि कुछ ऐसा उपाय उसे पता चले कि केवल एक बार नहाए और वर्षो तक स्वच्छ रहे। केवल एक बार झाड़ू पोछा करे और घर वर्षो तक साफ रहे। केवल एक दिन ऑफिस जाए और वर्षों तक सैलरी मिलती रहे।

कुसंस्कार गन्दगी की तरह है, जिनकी सफ़ाई के लिए नित्य स्वाध्याय, ध्यान, जप व तप करना ही पड़ेगा। अब वह रुचिकर लगे या न लगे नित्य तो करना पड़ेगा। अन्यथा वो पुनः हावी होंगे।

जिस तरह मन को यह समझा दिया है कि नित्य नहाना, घर की साफ सफाई इत्यादि जरूरी है। वैसे ही मन को यह समझा दें कि कुसंस्कार की सफाई हेतु  नित्य प्रयत्न करना पड़ेगा।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *दी, हम ऐसा क्या करें कि आलस्य व नींद न आये?*

प्रश्न - *दी, हम ऐसा क्या करें कि आलस्य व नींद न आये?*

उत्तर- बेटी, आलस्य दो प्रकार का होता है, शारिरिक व मानसिक:-

1- आलस्य शरीर करता है,
2- मन के आलस्य को प्रमाद कहते हैं

*स्वयं से चार प्रश्न करो कि..*

👉🏻 प्रश्न - 1- क्या मेरा नित्य का भोजन पर्याप्त ऊर्जा देता है? क्या इसमें जीवित ऊर्जा कण जैसे फ़ल, ड्राइफ्रूट्स, भीगे हुए कच्चे अंकुरित अनाज व हरी सब्जियां सम्मिलित हैं?

👉🏻प्रश्न - 2- क्या मैं नित्य व्यायाम करती हूँ?

👉🏻 प्रश्न- 3 ऐसा कोई लक्ष्य मेरे जीवन में है, जिसको पूरा करने के लिए मेरे मन में जुनून हो, क्या मेरे दिमाग़ में क्लियर है, एक दिन में क्या करना है, एक सप्ताह तक क्या लक्ष्य प्राप्त करना है, एक महीने में क्या लक्ष्य प्राप्त करना है, एक वर्ष में क्या क्या प्राप्त करना है? इन सब के लिए क्या, क्यों, कैसे और कब तक करना है?

👉🏻 प्रश्न- 4 - क्या मन को ऊर्जावान बनाने के लिए, इच्छाशक्ति को बढ़ाने के लिए व मानसिक व्यायाम के लिए नित्य गायत्री मंत्रजप- उगते हुए सूर्य का ध्यान व अच्छी प्रेरक पुस्तकों स्वाध्याय करती हूँ?

🙏🏻 *यदि उत्तम सात्विक व पौष्टिक भोजन है और नित्य व्यायाम तुम करोगी तो शरीर में आलस्य पैदा नहीं होगा।*

🙏🏻 *यदि तुम्हें तुम्हारा जीवन लक्ष्य क्लियर है, मन को ऊर्जावान बनाने के उपक्रम जप-ध्यान-स्वाध्याय नित्य करती हो तो तुम्हारे मन में आलस्य जिसे प्रमाद कहते हैं नहीं उपजेगा।*

🙏🏻 *तुम्हें नींद अभी ज्यादा इसलिए आती है, क्योंकि तुम्हारे शरीर व मन में आलस्य भरा है, यदि तुम शरीर व मन को ऊर्जावान बना लोगी तो गहरी नींद आएगी व कुछ घण्टों में पूरी हो जाएगी व शरीर को स्फूर्तिदायक बनाएगी। पूरे दिन नींद नहीं आएगी।*

निम्नलिखित पुस्तक अवश्य पढ़ो-
1- *जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति*
2- *समय का सदुपयोग*
3- *सफ़लता के सात सूत्र साधन*
4- *प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल*
5- *व्यवस्था बुद्धि की गरिमा*

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

देव दीपावली व प्रकाशपर्व - कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली - पूजन विधिविधान, 12 नवम्बर 2019, मंगलवार*

🌹 *देव दीपावली व प्रकाशपर्व - कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली - पूजन विधिविधान, 12 नवम्बर 2019, मंगलवार* 🌹

*देव दीपावली की तिथि*: 12 नवंबर 2019
*पूर्णिमा तिथि आरंभ*: 11 नवंबर 2019 को शाम 06 बजकर 02 मिनट से
*पूर्णिमा तिथि समाप्‍त*: 12 नवंबर 2019 को शाम 07 बजकर 04 मिनट तक

*दीपावली (Deepawali) के 15 दिनों बाद देव दीपावली (Dev Deepawali) मनाई जाती है।* पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसारा इस दिन भगवान शिव शंकर धरती पर आए थे, मान्‍यता है कि कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन ही महादेव ने त्रिपुरा (Tripura) नामक राक्षस का वध कर उसके अत्‍याचार से देवताओं और धरतीवासियों को मुक्ति दिलाई थी। भगवान शिव के विजयोत्‍सव को मनाने और अत्‍याचारी राक्षस के वध की खुशी में देवता गण पृथ्‍वी पर आए थे और धरतीवासियों के साथ देव दीवाली मनाई थी। यही वजह है कि शिव की नगरी काशी यानी कि वाराणसी में हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन धूमधाम से देव दीपावली मनाई जाती है। इस मौके पर लोग दूर-दूर से बनारस आते हैं और गंगा के घाटों पर दीप प्रज्‍ज्‍वलित करते हैं। देव दीपावली के दिन गंगा स्‍नान का विशेष महत्‍व है। साथ ही इस दिन गंगा पूजा का भी विधान है।

भगवान विष्णु ने जलप्रलय से लोकउद्धार के लिए आज के ही दिन मत्स्यावतार लिया था।

 कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानकदेव जी का जन्मदिन प्रकाशपर्व भी मनाया जाता है।

जो गंगा स्नान कर सकते हैं तो अत्यंत शुभ है, जो न कर सकें वो निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए घर में स्नान कर लें:-

*ॐ ह्रीं गंगायै ॐ ह्रीं स्वाहा*। यह मंत्र बोलते हुए सिर पर जल डालें तो गंगा स्नान का पुण्य होता है।

जो व्रत कर सकें तो और भी शुभ है। न कर सकें तो पूजन तो शाम को कर ही लें।


*देव दीपावली पूजन विधि*
( घर में धन धान्य वृद्धि और सुख शांति के लिए )
🌺🌺🌺🌺🌺🌺

👉🏻1- गुरु आवाहन मंत्र - *ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।*

👉🏻2- गणेश आवाहन मंत्र - *ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्ती: प्रचोदयात् ।*

👉🏻3 - शिव आवाहन मन्त्र - *ॐ पंचवक्त्राय विद्महे, महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्र: प्रचोदयात ।।*

👉🏻4- दुर्गा आवाहन मंत्र - *ॐ गिरिजाय विद्महे, शिवप्रियाय धीमहि । तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।*


👉🏻5 - नारायण आवाहन मन्त्र - *ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो विष्णु: प्रचोदयात ।।*

👉🏻6- लक्ष्मी आवाहन मंत्र - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।*

👉🏻7- चन्द्र आवाहन मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि । तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।*


👉🏻6 -दीपदान मंत्र ( कम से कम 5 या 11 या 21 घी के दीपकों को प्रज्वल्लित करें )-

*ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्नी: स्वाहा । सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्चो स्वाहा । सूर्यो वर्च्चो ज्योतिर्वर्च्च: स्वाहा । ज्योतिः सूर्य्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा ।।*

👉🏻7 - चौबीस(२४) बार गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् , भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।*

👉🏻8- तीन बार महामृत्युंजय मंत्र का जप करें - *ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।*

👉🏻9 - तीन बार लक्ष्मी गायत्री मंत्र का जप करें - *ॐ महा लक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॥*

👉🏻10 - तीन बार गणेश मंत्र का जप करें - *ॐ एक दन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥*

👉🏻11 - तीन बार दुर्गा के मंत्र का जप करें - *ॐ गिरिजाय विद्महे, शिवप्रियाय धीमहि । तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।*

👉🏻12-  तीन बार लक्ष्मीपति भगवान विष्णु गायत्री मन्त्र का जप करें- *नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो विष्णु: प्रचोदयात।*

👉🏻13 - तीन बार चन्द्र गायत्री मंत्र का जप करें- *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि । तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात् ।*

👉🏻14 - तीन बार हनुमानजी के मंत्र का जप करें क्योंकि कल मंगलवार भी है- *ॐ अंजनी सुताय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि । तन्नो मारुति: प्रचोदयात् ।*

👉🏻14 - शान्तिपाठ - *ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।*

दीपक नकारात्मकता का शमन कर सकारात्मक दैवीय शक्तियों को घर में प्रवेश देता है।  घर के मुख्य् द्वार पर दो घी या सरसों या तिल के तेल के रुई बाती वाले दीपक, एक तुलसी के पास, एक रसोईं में और एक बड़ा मुख्य् पूजन स्थल पर दीपक सूर्यास्त के बाद जलाकर रख दें। फिर कलश स्थापना कर पूजन करें।

खीर प्रसाद में मखाना डालकर चढ़ाएं।

आज के दिन बलिवैश्व देव यज्ञ भी खीर से ही करें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

सभी अपने ईष्ट मित्रों को समय से पूर्व फारवर्ड कर दें।  अतः षट कर्म और कलश पूजन हेतु 📖 *कर्मकाण्ड प्रदीप्त* शांतिकुंज पब्लिकेशन की पुस्तक की मदद ले।

कुछ युगनिर्माण योजना मथुरा  प्रकाशन की पुस्तकें जिनके स्वाध्याय से अमीर बनने के रहस्य पता चलेंगे, जरूर धनतेरस के दिन पढ़े:-
1- धनवान बनने के गुप्त रहस्य
2- सफलता के सात सूत्र साधन
3- प्रबन्ध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल
4- व्यवस्था बुद्धि की गरिमा
5- आगे बढ़ने की तैयारी

Saturday, 9 November 2019

प्रश्न - *दीदी जी सादर प्रणाम, एक उलझन को सुलझाने की कृपा करेंगे।वह यह कि हमारे यहां नारियों को मासिक धर्म के समय में पांच दिनों तक भोजन प्रसाद बनाने के लिए मना किया जाता है,क्या यह सही है। गुरुदेव का निर्देश नहीं पढ़ पाया हूं।*

प्रश्न - *दीदी जी सादर प्रणाम, एक उलझन को सुलझाने की कृपा करेंगे।वह यह कि हमारे यहां नारियों को मासिक धर्म के समय में पांच दिनों तक भोजन प्रसाद बनाने के लिए मना किया जाता है,क्या यह सही है। गुरुदेव का निर्देश नहीं पढ़ पाया हूं।*

उत्तर- प्राचीन समय में  केवल मनुष्यों के लिए भोजन नहीं बनता था, वस्तुतः वह भगवान का भोग लगता था। भोजन बनने के बाद बलिवैश्व यज्ञ चूल्हे की अग्नि में ही हो जाता था। एकल परिवार नहीं थे कि जिनमें भोजन मात्र दो या तीन लोगों के लिए बने व गैस भी नहीं कि खड़े खड़े बन जाये। भोजन सँयुक्त परिवार के 20 से 25 लोगों के लिए बनता था व आटा से लेकर मसालों तक सबकुछ पीसना कूटना कष्ट साध्य प्रक्रिया थी।

अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से भी आराम रजोदर्शन/मासिक धर्म मे चाहिए, साथ ही रजोदर्शन में पकाए भोजन की यज्ञाहुति न दे सकने के कारण स्त्रियों को भोजन पकाने की प्रक्रिया से दूर रखा जाता था।

आधुनिक समय में हाइजीन की उत्तम व्यवस्था है, उत्तम स्वास्थ्य हो तो नहाधोकर स्वच्छता से आसान प्रक्रिया से भोजन पकाने की व तीन से पांच सदस्य के लिए बनाया जा सकता है। गैस, मिक्सी सबकुछ तो है, अतः अत्यधिक शारीरिक श्रम नहीं है। बस 5 दिनों तक जो बलिवैश्व यज्ञ करते हैं वो पके भोजन से बलिवैश्व यज्ञ न करें।

घर का जो सदस्य पति या सास उन दिनों में भगवान का पूजन कर रहा है वह हवन सामग्री में गुड़, घी, काला तिल, जौ या साबुत चावल मिलाकर यज्ञ कर लें।

अब यह तो आप समझ ही गए होंगे कि स्त्रियों को मात्र अशुद्धि के लिए किचन या पूजन गृह में जाने के लिए नहीं रोका जाता था, वस्तुतः उन दिनों उन पर कठोर श्रम का दबाव न पड़े व अधिक विश्राम मिल सके इस हेतु उन्हें आराम दिया जाता था। नस-नाड़ियों में कोमलता बढ़ जाने से उन दिनों अधिक कड़ी मेहनत न करने की व्यवस्था स्वास्थ्य के नियमों को ध्यान में रखते हुए बनी है। नाक की घ्राण शक्तिं कमज़ोर होती है और पूरा शरीर उस वक्त कमज़ोरी झेलता है। पहले आटा चक्की नहीं थी अतः रसोई में भोजन का अर्थ होता था चक्की पीसना और धान कूटना, तब चूल्हे में लकड़ी काटकर भोजन पकाना। अत्यधिक श्रम साध्य होता था भोजन पकाना, अतः विश्राम हेतु भोजन पकाना मना था।

आध्यात्मिक शक्ति को धारण करने के लिए नसों और उपत्यिकाओं का एक्टिव होना अनिवार्य है। कमर सीधी रखना उपासना के दौरान अनिवार्य है। प्राण शक्ति/ ऊर्जा को धारण करने हेतु रजोदर्शन/अशौच के समय शरीर सक्षम नहीं होता। उपासना गृह प्राणऊर्जा को संग्रहित रखता है और सूक्ष्म प्राण ऊर्जा संग्रहित रखता है। अतः दुर्घटना से बचाव हेतु उपासना गृह में जाना और उपासना करना वर्जित है।

स्त्री को यदि मात्र इस कारण अशुद्ध माना जाय कि उनका मेंटिनेंस पीरियड आता है, तो उस मेंटिनेंस के रक्तमांस से बने बच्चे - पुरुष भला किस तरह पवित्र हो सकते हैं? अतः स्त्री प्रकृति की तरह नई सृष्टि को जन्मदेने की क्षमता धारण करने हेतु चन्द्र कलाओं, सूर्य की कलाओं और प्रकृति की कलाओं से 5 दिन तक जुड़कर स्वयं के मेंटेनेंस दौर से गुजरती है। इस दौरान किसी भी कारण से कोई व्यवधान किसी को उतपन्न नहीं करना चाहिए। स्त्री को पर्याप्त विश्राम देना चाहिए।

इन प्रचलनों को जहां माना जाता है वहां कारण को समझते हुए भी प्रतिबन्ध किस सीमा तक रहें इस पर विचार करना चाहिये। रुग्ण व्यक्ति प्रायः स्नान आदि के सामान्य नियमों का निर्वाह नहीं कर पाते और ज्वर, दस्त, खांसी आदि के कारण उनकी शारीरिक स्थिति में अपेक्षाकृत अधिक मलीनता रहती है। रोगी परिचर्या के नियमों से अवगत व्यक्ति जानते हैं कि रोगी की सेवा करने वालों या सम्पर्क में आने वालों को सतर्कता, स्वेच्छा के नियमों का अधिक ध्यान रखना पड़ता है। रोगी को भी दौड़-धूप से बचने और विश्राम करने की सुविधा दी जाती है। उसे कोई चाहे तो छूतछात भी कह सकते हैं। ऐसी ही स्थिति रजोदर्शन के दिनों में समझी जानी चाहिए और उसकी सावधानी बरतनी चाहिए।

तिल को ताड़ बनाने की आवश्यकता नहीं है। कारण और निवारण का बुद्धिसंगत ताल-मेल विवेकपूर्वक बिठाने में ही औचित्य है। शरीर के कतिपय अंग द्रवमल विसर्जन करते रहते हैं। पसीना, मूत्र, नाक, आंख आदि के छिद्रों से निकलने वाले द्रव भी प्रायः उसी स्तर के हैं जैसा कि ऋतुस्राव। चोट लगने पर भी रक्त निकलता रहता है। फोड़े फूटने आदि से भी प्रायः वैसी ही स्थिति होती है। इन अवसरों पर स्वच्छता के आवश्यक नियमों का ध्यान रखा जाना चाहिए। बात का बतंगड़ बना देना अनावश्यक है। प्रथा-प्रचलनों में कई आवश्यक हैं कई अनावश्यक। कइयों को कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और कइयों की उपेक्षा की जानी चाहिए। सूतक और अशुद्धि के प्रश्न को उसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए जिससे कि प्रचलन कर्ताओं ने उसे आरम्भ किया था। उनका उद्देश्य उपासना जैसे आध्यात्मिक नित्यकर्म से किसी को विरत, वंचित करना नहीं वरन् यह था कि अशुद्धता सीमित रहे और स्त्री को उचित शारीरिक-मानसिक विश्राम मिले। आज भी जहां अशौच का वातावरण है वहीं सूतक माना जाय और शरीर से किये जाने वाले कृत्यों पर ही कोई रोकथाम की जाय। मन से उपासना करने पर तो कोई स्थिति बाधक नहीं हो सकती। इसलिए नित्य की उपासना मानसिक रूप से जारी रखी जा सकती है। पूजा-उपकरणों का स्पर्श न करना हो तो न भी करे।

🙏🏻श्वेता, DIYA

प्रश्न - *क्या हमारे पूर्वज जो किसी त्योहार या तिथि को खत्म हुए थे उनके साथ ही कहा जाता है कि वह त्योहार भी खत्म हो गया। अब उस त्योहार को मनाना चाहिए या नहीं।*

प्रश्न - *क्या हमारे पूर्वज जो किसी त्योहार या तिथि को खत्म हुए थे उनके साथ ही कहा जाता है कि वह त्योहार भी खत्म हो गया। अब उस त्योहार को मनाना चाहिए या नहीं।*

उत्तर- जिस दिन मृत्यु होती है उसी दिन पर सूतक लग जाता है, तो उस वर्ष वह त्योहार स्थगित हो जाता है। दूसरे वर्ष उसी पुण्यतिथि पर बरसी मनाने का उपक्रम वरीयता से किया जाता है। अतः जब तक बरसी का पूजन न हो जाये और यज्ञपूर्णाहूति न हो जाये तबतक त्योहार का उत्सव नहीं मनाया जा सकता। तो कुल मिलाकर दो वर्ष आप उस त्योहार को पूर्णतया नहीं मना सकते।

यदि मृतक का श्राद्ध-तर्पण नहीं किया तो हर वर्ष पुण्यतिथि पर उनकी शांति की प्रार्थना करनी पड़ेगी और त्यौहार को पूर्णतया नहीं मना सकते। यदि मृतक का श्राद्ध-तर्पण कर दिया तो हरवर्ष की पुण्यतिथि को बरसी की तरह बड़े स्तर पर मनाने की आवश्यकता नहीं है।

त्यौहार के दिन दो छोटी सी थाली में सभी भोजन-पकवान को अत्यंत थोड़ा रखें, एक देवताओ को अर्पित कर दें व दूसरी पितरों को किचन के कोने में रख दें या घर के बाहर गमले के पास रख के अर्पित कर दें। यज्ञ में देवताओ के साथ साथ तीन पितर के लिए भी आहुति दे दें।

श्राद्ध-तर्पण के बाद उस त्यौहार को पूर्व की तरह पूर्ण मनाना चाहिए। कोई रोक टोक नहीं है। मृतक श्राद्ध-तर्पण के बाद पितर बन जाते हैं जो कि पूजनीय हो जाते हैं, यज्ञाहुति लेने में समर्थ हो जाते हैं और उनका का आशीर्वाद मिलता है। अपने बच्चों के आनन्द के लिए त्यौहार की तिथि को वो मुक्त कर देते हैं। अतः त्यौहार पूरी तैयारी के साथ खुशियों सहित मनाइए।

🙏🏻श्वेता, DIYA

चंद्रायण - आहार क्रम

चंद्रायण - आहार क्रम

*नवंबर 2019 कार्तिक पूर्णिमा*
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12  नवम्बर मंगलवार कार्तिक पूर्णिमा - (सङ्कल्प व आहार में 15 ग्रास)
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13  नवम्बर बुधवार मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा (14 ग्रास)
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14 नवम्बर गुरुवार मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया (13 ग्रास)
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15 नवम्बर शुक्रवार मार्गशीर्ष तृतीया (12 ग्रास)
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16 नवम्बर शनिवार संकष्टी चतुर्थी (11 ग्रास)
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17 नवम्बर रविवार वृश्चिक संक्रांति व पंचमी (10 ग्रास)
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18 नवम्बर सोमवार मार्गशीर्ष षष्ठी (9 ग्रास)
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19 नवम्बर मंगलवार मार्गशीर्ष सप्तमी (8 ग्रास)
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20 नवम्बर बुधवार मार्गशीर्ष अष्टमी (7 ग्रास)
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21 नवम्बर गुरुवार मार्गशीर्ष नवमी (6 ग्रास)
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22 नवम्बर शुक्रवार उत्पन्ना दशमी व एकादशी (4 ग्रास)
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23 नवम्बर शनिवार मार्गशीर्ष द्वादशी (3 ग्रास)
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24 नवम्बर रविवार त्रयोदशी प्रदोष व्रत (कृष्ण) (2 ग्रास)
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25 नवम्बर सोमवार मासिक शिवरात्रि (1 ग्रास)
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26 नवम्बर मंगलवार कार्तिक अमावस्या ( जलाहार व रसाहार कोई अन्न नहीं)
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27 नवम्बर बुधवार मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा ( जलाहार व रसाहार कोई अन्न नहीं)
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28 नवम्बर गुरुवार मार्गशीर्ष शुक्ल द्वितीया (2 ग्रास)
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29 नवम्बर शुक्रवार मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया (3 ग्रास)
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30 नवम्बर शनिवार मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी (4 ग्रास)
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1 दिसम्बर रविवार मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी (5 ग्रास)
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2 दिसम्बर सोमवार मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी (6 ग्रास)
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3 दिसम्बर मंगलवार मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी (7 ग्रास)
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4 दिसम्बर बुधवार मार्गशीर्ष शुक्ल अष्टमी (8 ग्रास)
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5 दिसम्बर गुरुवार मार्गशीर्ष शुक्ल नबमी (9 ग्रास)
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6 दिसम्बर शुक्रवार मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी (10 ग्रास)
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7 दिसम्बर शनिवार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी (11 ग्रास)
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8 दिसम्बर रविवार मोक्षदा एकादशी (11 ग्रास)
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9 दिसम्बर सोमवार प्रदोष-द्वादशी व्रत (शुक्ल) (12 ग्रास)
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10 दिसम्बर मंगलवार मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी (13 ग्रास)
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11 दिसम्बर बुधवार मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी (14 ग्रास)
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12 गुरुवार मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत (पूर्णाहुति व पूर्ण भोजन यज्ञ के बाद)
*दिसंबर 2019 मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक*

Friday, 8 November 2019

What are the health benefits of gayatri mantra?

Questions: - *What are the health benefits of gayatri mantra?*

Ans- *Gayatri mantra is originally found in the Vedas, the highest spiritual texts of the Hindus. Made up of around 24 syllables, they create both physiological and psychological effect on the body of a human. There are several health benefits of Gayatri mantra. Check out the few given here and start practicing its recitation for faster results.*

Gayatri Mantra - *OmBhur Bhuva SvahaTat Savitur VarenyamBhargo Devasya DheemahiDhiyo yonah Prachodayat*

*ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात*

Here are some health benefits of gayatri mantra
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*Brings Calmness to Mind*

Gayatri mantra
The mantra begins with Om. When you recite the Gayatri mantra, its recitation triggers off a vibration that starts from your lips and then travels along your tongue, palate, back of skull and throat. Due to this your body releases relaxing hormones and helps to calm your mind.
With regular recitation, you become more focused. It is so because the syllables of the mantra improve your concentration and bring peace to your mind.
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*Improves Immunity to Diseases*

One of the biggest health benefits of Gayatri mantra is that it improves the immunity of the body. Regular recitation ensures that you are protected from common diseases and infliction of infections. When a person puts pressure on tongue, lips, palate, vocal cord and other body parts connected to the brain during the recitation it creates resonance in and around the brain.
The vibrations stimulate the hypothalamus and your brain starts functioning more efficiently. Hypothalamus is the gland that regularizes the functioning of several body activities including immunity. Gayatri mantra recitation also excites the extrasensory energy points or the seven chakras in your body.
Proper functioning of these chakras is of utmost importance to ensure that the body stays protected and the immune system works in topmost condition. Vibration in these chakras thus helps to increase the energy levels in your body and immunity.
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*Improves Learning Ability, Increases Concentration*

An International Journal of Yoga recently revealed that people who regularly chanted the Gayatri mantra had better memory and concentration. It is because when you chant the mantra, it activates the first three chakras in the body. These are the third eye in between the eyebrows, throat and crown chakras.
Since these three chakras are directly connected to the brain andthyroid gland they help in improving concentration and memory by stimulating the associated glands.
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*Helps Improve Breathing*

When you chant the mantra with deeply controlled breathes it improves the functioning of the lungs and also the breathing. Deep breathing oxygenates the cells in the body thereby keeping your whole body fit.

*Deep breathing is also good for the heart and even lowers  hypertension. According to British Medical Journal, one of the greatest health benefits of Gayatri mantra is that its recitation synchronizes and regularizes the beating of the heart helping it stay healthy.*
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*Improves Functioning of Nerves*

 When you chant Gayatri mantra it strengthens and stimulates the functioning of the nerves in your body through vibration. This guides the body to release neurotransmitters properly and helps in the proper conduction of impulses.
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*Keeps Depression & Stress Away*

Regular chanting of Gayatri mantra helps you to beat the damage caused due to toxicity and oxidation. It reverses the damage caused due to regular stress and depression. Many doctors especially prescribe chanting of this mantra to overcome depression symptoms and stimulate positivity.
Reports indicate that Gayatri mantra stimulates the vagus nerve that affects people suffering from depression and epilepsy. Chanting of this mantra stimulates the vagus nerve and penial body thereby encouraging the release of endorphins and other types of relaxing hormones.
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*Gets Rid of Toxins*

Apart from the health benefits of Gayatri mantra, there are certain beauty benefits as well. The vibrations caused due to the recitation of Gayatri mantra stimulate vital point in the body as well as on the face. It, in turn, helps to eliminate toxins from the body and facial cells. So regular Gayatri mantra chanting helps to make your skin glowing and looking younger.
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*Helps in Improving Asthma Symptoms*

Gayatri mantra chanting directly affects breathing and hence indirectly provides relief in asthma. Regular recitation improves heavy breathing problem as it also improves the functioning of the lungs. Having a proper schedule for chanting this mantra gives fast and expected results.
What’s more you can also overcome several other breathing problems by regularly reciting Gayatri mantra. Since it bring massive changes in your body, pregnant women and young children should practice its recitation only under proper guidance.
So there are some of the health benefits of Gayatri mantra. You can always try the recitation at home. But learning its proper chanting from an expert helps you to get optimum result.

 Dr Rama Jyasunder, AIIMS, Presentation on Gayatri Mantra
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https://youtu.be/tR3SgLmwyPs


https://youtu.be/mxLv8KnBfjg

Sit calm and Close your eye, imagine rising sun and Please chant minimum 108 times of Gayatri Mantra, after that rub your palm and touch your face and heart to give divine power.

Om shanti om shanti om shanti

Read more info here:-

https://www.awgp.org/spiritual_wisdom/gayatri/faq/Derive_maximum_benefit

प्रश्न - जप करते वक्त बहुत नींद आती है, जम्हाई आती है क्या करूँ?

 प्रश्न - जप करते वक्त बहुत नींद आती है, जम्हाई आती है क्या करूँ? उत्तर - जिनका मष्तिष्क ओवर थिंकिंग के कारण अति अस्त व्यस्त रहता है, वह जब ...