Friday, 29 April 2022

अहंकार किस बात का?

 *अहंकार किस बात का?*


हे मन! अहंकार मत करना..

सदा हनुमानजी सा निरहंकारी रहना...


अहंकार के वृक्ष हमने बहुत देखे,

विनाश के फलों से उन्हें भरे देखे,

जब जब जहां जहां अहंकार दिखा,

तब तब वहां वहां विनाश का मंजर दिखा...


अहंकार किस बात का..

क्यों लोग करते हैं?

शरीर माता पिता से मिला,

शिक्षा गुरु जनों से मिला,

श्वांस वृक्षों वनस्पति से मिला,

अन्न जल धरती से मिला,

जब जीवन ही पूरा..

किसी न किसी के सहारे चला...

फ़िर अहंकार दिखाने का..

क्या कोई मतलब रहा..


मरने के बाद...

चिता में जलो..

या कब्र में सड़ो..

शरीर तो नष्ट होकर रहेगा,

हमारा मृत शरीर को छूकर..

हमारा अपना भी हाथ धोएगा...

फ़िर इस शरीर पर..

घमंड करने का क्या फ़ायदा...


धन के संग्रह में..

जीवन खपा दोगे..

तो भी मरने पर..

कुछ साथ ले जा न सकोगे..

कितना भी शानो शौकत कर लो..

सफ़ेद कफ़न से ही अंत में लिपटोगे..


ऐ मन! सम्हल जा..

जब अहंकारी रावण..

मृत्यु को बांध कर भी..

अपनी मृत्यु टाल न सका..

अपने अतुलित बल के बाद भी..

लंका का विनाश टाल न सका..

तब तू रावण के अहंकार मार्ग पर मत चल..

तू तो हनुमानजी की भक्ति की राह पर चल..


हे मन! निरहंकारी हनुमान जी से बनो,

निर्मल भाव से श्रीराम की भक्ति करो,

सुख चैन से आनन्द में जियो,

मरने के बाद प्रभु चेतना में मन को लीन करो...


🙏🏻लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

समलैंगिक व किन्नर लोग मनुष्य के साथ भेदभाव न करें

समलैंगिक व किन्नर लोग मनुष्य के साथ भेदभाव न करें, उन्हें अपमानित न करें। उन्हें भी सम्मान से हमारी व आपकी तरह जीने का अधिकार है।


कई किशोर व युवा इस भेदभाव से परेशान हो आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि उनका परिवार व समाज उन्हें अपमानित करता है।


जो उनकी कुंडली व किस्मत में है, उसे स्वीकारें। यह रोग नहीं है, यह एक मनःस्थिति है।


https://youtu.be/S7qPyvtZTvA

धर्म संस्कृति के लिए कुछ तो करिए, यूं मदहोश लापरवाह न रहिए

 *धर्म संस्कृति के लिए कुछ तो करिए, यूं मदहोश लापरवाह न रहिए*


माना कमाना जरूरी है,

घर गृहस्थी बनाना जरूरी है,

परिवार पालना जरूरी है,

स्वयं का कैरियर बनाना भी जरूरी है..


मग़र एक बात बताओ,

क्या समाज तुम्हारा नहीं..

इसके प्रति उत्तरदायित्व तुम्हारा नहीं..

क्या भारतीय संस्कृति तुम्हारी नहीं..

इसके संरक्षण के लिए..

क्या तुम उत्तरदायी नहीं...


क्या समाज के बनने व बिगड़ने से...

तूम व तुम्हारे बच्चे प्रभावित न होंगे?

क्या गैर धर्म के सामाजिक समूह के बीच..

तुम स्वयं को व अपने परिवार को सुरक्षित रख सकोगे?


कश्मीरी पंडित भी लापरवाह हुए,

जाति पाति छुआछूत में उलझ गए,

स्वयं के ज्ञान पर अभिमान में खोए रहे,

स्वयं की तरक्की व कमाई में उलझ गए..

वह थोड़े स्वार्थी हुए व समाज के प्रति लापरवाह हुए..

अपनी धर्म संस्कृति को,

बच्चों की जड़ो में मजबूती से रोप न सके..


जानते हो धर्मांतरण तेज़ी से कश्मीरी पंडितों का हुआ,

कहीं छल से तो कहीं तलवार की नोंक पर धर्मान्तरण हुआ,

कश्मीरी पंडितों पर कत्लेआम उन्ही लोगों ने मचाया,

जिनके पूर्वज पण्डित थे व बाद में धर्मांतरित हुए...


उनको उनके ही देश में...

उनके ही कश्मीर से..

कत्लेआम करके भगाया गया..

अपने ही देश में बेघर बेरोजगार बनाया गया...


मदहोशी छोड़ो और जाग जाओ..

कैरियर के साथ साथ,

सामाजिक मजबूत समूह बनाओ..

धर्म संस्कृति से स्वयं गहराई से जुडो..

अपने बच्चों को भी धर्म संस्कृति से जोड़ो...

तुम आज जब धर्म की रक्षा करोगे...

तब यही धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा..

जब तुम आज समूह में जुड़ोगे..

तब कल यही समूह तुम्हारे साथ खड़ा होगा...


तुम यदि स्वार्थी आज बने,

तो कल विधर्मी तुम्हारी अर्थी भी उठने न देंगे...

आज का स्वार्थ..

 कल तुम्हारा व तुम्हारे परिवार का...

जीवन व्यर्थ कर देगा...


अपने घर के पास के मंदिर से जुडो..

अपने जैसे लोगों के समूह तैयार करो..

ऑनलाइन-ऑफलाइन उनसे जुड़े रहो..

अपने समाज को सुरक्षित व संरक्षित रखने का हर सम्भव प्रयास करो..


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मृत बनाम जीवंत शक्तिपीठ मंदिर

 *मृत बनाम जीवंत शक्तिपीठ मंदिर*


जिस शक्तिपीठ में, जिस मंदिर में..

आरती तो हो.. मगर जनजागृति न हो तो,

तो वह मृत है..शक्तिहीन है...


जिस शक्तिपीठ में, जिस मंदिर में...

भगवान की मूर्ति हो.. मग़र धर्म संरक्षण हेतु प्रयास न हो..

तो वह मृत है..शक्तिहीन है...


जीवंत वह शक्तिपीठ है.. जीवंत वह मंदिर है..

जहां नित्य यज्ञ हो...कम से कम 25 परिवार वहां से जुड़े हो..

जनजागृति हो.. धर्म संरक्षण के प्रयास हो..

वह जीवंत है, वह शक्ति स्त्रोत है...


जिस शक्तिपीठ में..जिस मंदिर में..

बाल संस्कार चलता नहीं...बच्चे मंदिर आते नहीं..

युवा जहां धर्म चर्चा करते नहीं..युवा मंडल चलते नहीं..

वह मंदिर बूढ़ा है.. वह शक्तिपीठ अशक्त है..


जिस शक्तिपीठ में.. जिस मंदिर में..

भारतीय सदग्रंथ का..युगसाहित्य का विस्तार नहीं...

जहां ज्ञानरथ सड़को पर दौड़ता नहीं..

जन जन तक जहां युगसाहित्य पहुंचता नहीं..

वह शक्तिपीठ ज्ञान विहीन है..वह मंदिर प्राण हीन है...


माता आरती - प्रसाद से नही...

अपने बच्चों को मंदिर प्रांगण में देख खुश होती है...

धर्म रक्षण हेतू प्रयास देख खुश होती है..

बच्चों को संस्कार देते हुए..

चलते बाल संस्कार देख खुश होती है..

तब उस शक्तिपीठ में माता की कृपा होती है,

वह मंदिर जीवंत व प्राण ऊर्जा सम्पन्न होता है...


यदि आपको अपने शहर के..

शक्तिपीठ का पता याद नहीं..

नज़दीकी मंदिर का पता नहीं..

उससे आपका जुड़ाव नहीं..

तो यह आपके गुरुदीक्षा पर प्रश्न चिन्ह है..

यह आपकी धर्म निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह है..



क्रिश्चियन चर्च से सपरिवार जुड़ता है..

मुश्लिम मस्जिद से सपरिवार जुड़ता है..

हिन्दू मंदिर से सपरिवार जुड़ नहीं रहा..

अपनी भारतीय संस्कृति व साधना पद्धति से बच्चों को जोड़ नहीं रहा..

तो लव जिहाद भविष्य में अवश्य होगा..

कोई दूसरे धर्म का आपके बच्चे का ब्रेन वाश अवश्य करेगा..

फ़िर आप बस हाथ मलते रह जाओगे..

बाद में सिर्फ पछताते रह जाओगे...


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Thursday, 28 April 2022

बाढे पूत पिताके धरमे और खेती उपजे अपने करमे

 “बाढे पूत पिताके धरमे और खेती उपजे अपने करमे”


जो बोयेंगे वही काटेंगे... खेती अनाज की हो या इन्सान की उसका परिणाम इंसान के धर्म व कर्म पर निर्भर करता है।


पिता उत्तराधिकार में खेत दे सकता है, परन्तु खेती तो सन्तान को निज कर्म से ही करनी पड़ेगी...


एक देहाती कहावत है, “बाढे पूत पिताके धरमे और खेती उपजे अपने करमे” अर्थात माता-पिताद्वारा किया हुआ धर्माचरणका प्रभाव संततिपर अवश्य ही पडता है और खेतीके लिए पुरुषार्थ आवश्यक है ।


आजकल माता-पिता स्वयं साधना नहीं करते और न ही धर्माचरण करते हैं, उसके विपरीत पैशाचिक प्रवृत्तिवाले पाश्चात्य संस्कृतिका अंधानुकरण करते हैं और तत्पश्चात अपने संतानके दिशाहीन होनेपर दुखी होते हैं । वस्तुतः बच्चे अनुकरणप्रिय होते हैं और अपने घरके सदस्योंके संस्कारको सहज ही आत्मसात कर लेते हैं । साधना इतनी सूक्ष्म होती है कि वह हमारे कुलके संस्कारमें अंतर्भूत हो जाती है । वैदिक संस्कृतिके अतिरिक्त  इस संसारकी कोई भी संस्कृति सत्त्व गुण आधारित नहीं है; अतः आपके बच्चोंके अंदर वैदिक संस्कृतिके संस्कारका बीजारोपण करना प्रत्येक माता-पिताका मूल धर्म है ।


बीज रूप संस्कार का भी सही होना जरूरी है और बच्चे का सही मार्गदर्शन भी जरूरी है।

कविता - समूह की शक्ति से जुडो..

 एकता की शक्ति समझो,

बड़े समूह में रहो,

एक सी विचारधारा चुनो,

समूह की शक्ति से जुडो..


झाड़ू कहती है

एकता में शक्ति है,

इसे मत भूलो,

यदि एकता के सूत्र में बंधे रहोगे,

कचरा साफ करोगे,

यदि एकता टूट गयी तो,

कचरा बनकर रह जाओगे..


सरसों कहती है,

एकता में शक्ति है,

संगठित होंगे तो ही,

भीतर की शक्ति से परिचित होंगे,

स्वयं के भीतर छिपा तेल निकाल सकोगे...

रुई में लग उसे जला सकोगे,

ऊर्जा का ईंधन बन सकोगे,

यदि एकता टूट गयी तो,

खुद का अस्तित्व भी ढूढ़ न सकोगे...


पशुओं के झुंड कहते हैं,

एकता में ही शक्ति है,

संगठित होंगे तो ही,

जंगल मे भी मङ्गल मना सकोगे,

शिकारी सिंह हो तो उसे भी.. खदेड़ सकोगे,

यदि एकता टूट गयीं तो,

खुद शिकार बन जाओगे..


श्वेता अनुरोध करती है,

एकता के बल को समझो,

किसी न किसी बड़े समूह से जुडो,

या खुद नेतृत्व कर बड़ा समूह बनाओ,

तुम्हारी अकेली आवाज़ कहीं नहीं पहुंचेगी,

मगर सामूहिक आवाज़ सड़क से संसद तक पहुंचेगी,

मनचाहा बदलाव लाएगी...परिवर्तन का आगाज करेगी..


लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कविता - बेटियों को आगे बढ़ने के अवसर दो....

 बेटियों को आगे बढ़ने के अवसर दो....


बेटियाँ भी उसी गर्भ से जन्मती हैं,

जहां से बेटे जन्मते हैं,

फ़िर क्यूँ भेदभाव करते हो?

क्यूँ बेटियों के जन्म पर मातम करते हो?


इन्हें भी दर्द होता है,

इनमें भी अरमान होते हैं,

इन्हें दहेज की बलि पर मत चढ़ाओ,

इन्हें भी कुछ कर गुजरने का अवसर दो...


पंखों पर इनके उम्मीदों के भार न डालो,

उड़ने दो.. इन्हें भी स्वच्छंद आसमान में,

पैरों में समाज की बेड़ियां न डालो,

दौड़ने दो.. इन्हें भी रेस के मैदान में...


जबरन विवाह की बलि पर.. इन्हें कुर्बान मत करो,

इन्हें योग्य बनाकर स्वयं वर चुनने दो,

तुम्हारी बेटियां भी तुम्हारा नाम रौशन करेंगी,

उन्हें बस योद्धा बनने दो...उन्हें आगे बढ़ने के अवसर दो..


लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 27 April 2022

गर्भ सम्वाद - 1 परिवार के बंधन का महत्त्व (बाल निर्माण की कहानियां)

 गर्भ सम्वाद - परिवार के बंधन का महत्त्व (बाल निर्माण की कहानियां)

लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती, DIYA

मेरे प्यारे बच्चे, आज हम बात करेंगे परिवार में प्यार के बंधन से इंसान कैसे सफल बनता है?

यह झाड़ू देख रहे हो, यदि रस्सी से बंधी हो तो कोई भी कचरा साफ कर सकती है। यदि यह रस्सी खुल जाए तो यह झाड़ू स्वयं कचरा बन जाता है।

इसी तरह जब परिवार प्यार,सहकार और विश्वास के बंधन में बंधा होता है तो मिलकर बड़ी से बड़ी समस्या को सुलझा देता है। जब वही परिवार में प्यार, सहकार व विश्वास का बंधन टूट जाता है तो वह परिवार ही स्वयं समस्या बन जाता है और प्रत्येक परिवारजन समस्या ग्रस्त -तनाव ग्रस्त हो जाते हैं।

कितना भी स्वादिष्ट भोजन हो, यदि नमक न डले तो वह फ़ीका हो जाएगा। लेक़िन यदि अधिक डल जाए तो खाने योग्य न रहेगा।

परिवार का बंधन भी नमक की तरह बेहद जरूरी है मगर अत्यधिक हो तो जीवन बर्बाद कर देता है।

मेरी माता कहती थी मनुष्य का जीवन वाद्य यंत्र की तरह है, अधिक ढील दिया तो बेसुरा हो जाएगा और अधिक कस दिया तो टूट जाएगा। मनुष्य का जीवन हो या परिवार संतुलन जरूरी है।

आओ इस सम्बंध में तुम्हें एक कहानी सुनाते हैं, एक उद्योगपति ने किन्ही कारणों से विवाह नहीं किया था। बहुत धन संपदा थी। वह किसी योग्य बच्चे को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे साथ ही उस बच्चे को उसके परिवार से दूर भी नहीं रखना चाहते थे। अतः पूरे परिवार को वह अपने पास रखना चाहते थे। मग़र वह अपने जीवन मे कोई अशांति नहीं चाहते थे अतः एक प्यार सहकार से भरा परिवार ढूढ़ना उनका उद्देश्य था, बुद्धिमान भी चाहिए था जो बिजनेस सम्हाल सके।

उन्होंने ने शोशल मीडिया और न्यूज पेपर में घोषणा कर दी कि हम एक प्रतियोगिता आयोजित कर रहे हैं जिनमे विजेता परिवार को 50 लाख रुपये पुरस्कार में दिए जाएंगे, प्रतियोगिता में समस्त परिवार को बच्चे के साथ आना होगा। बालक या बालिका की उम्र 10 से 12 के बीच होनी चाहिए। चुनाव हमारे पैतृक गांव में होगा, जहां रास्ता खराब है व किन्हीं कारणों से हमारे पैतृक गांव तक पहुंचने के लिए दस किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होगी।

उद्योगपति ने रास्ते के सभी पेड़ो पर डिवाइस लगा रखी थी जिससे कौन सा परिवार क्या कर रहा है देखा व सुना जा सके।

जिन लोगों के बालक 10 से 12 वर्ष के थे वह खुश हो गए, व उद्योगपति के गांव सपरिवार निकल पड़े।

कई कसौटी पर बच्चों की बुद्धि टेस्ट लेने के बाद दो परिवार राम व मोहन के फाइनल राउंड के लिए चयनित हुए..

प्रत्येक परिवार को अलग अलग समय मे उन रास्तों से गांव पहुंचना था.. रास्ते मे कई चुनौतियों की व्यवस्था थी..

चिलचिलाती धूप और पीने के लिए पानी हेतु एक कुंआ था। वहां रस्सी तो रखी थीं मग़र छोटे छोटे टुकड़े में.. एक छोटी सी बाल्टी भी थी मगर उसमें एक छोटा सा छेद भी था..

मोहन के परिवार वाले तो आपस मे लड़ पड़े और बोले, क्या जरूरत थी यहाँ आकर मरने के लिए.. पानी भी खत्म हो गया व यहां रस्सी भी टूटी है। चलो आगे बढ़ते है शायद आगे कुछ पानी पीने की व्यवस्था हो..

राम व उसका परिवार भी प्यासा था, राम के पिता ने कहा प्रत्येक समस्या का समाधान जरूर होता है। माँ ने कहा यदि हम समस्या की ओर दृष्टि रखेंगे तो चिंता होगी और समस्या का समाधान ढूढने में जुटेंगे तो समाधान अवश्य मिलेगा..

राम के पिता ने छोटी छोटी रस्सियों को आपस में गांठ बांधना शुरू किया व इसमें राम ने मदद की.. राम की माँ ने अपनी चुनरी में से कपड़ा फाड़ा और उसमें एक तरफ गाँठ लगाया और दूसरी तरफ से छेद में डालकर खींचा.. दूसरी तरफ भी गाँठ बांध दी.. बेटी ने बाल्टी को साफ कर दिया.. रस्सी बाल्टी तैयार हो गयी.. परिवार ने कुएं से पानी निकाला व अच्छे से हाथ मुंह धोया और ठीक से पानी पिया और आगे बढ़ गए...

प्रत्येक परिवार को भूख लग रही थी, मग़र कोई भोजन की व्यवस्था कहीं दिख नहीं रही थी..  बीच मे एक खेत था जहाँ कच्चे भुट्टे थे.. मोहन व उसकी बहन खुशी से चिल्ला पड़े..पापा मम्मी देखो.. कॉर्न भुट्टा.. खेत मे एक बूढ़ा किसान बैठा था..

मोहन की मम्मी भड़क गई, अब कच्चा भुट्टा खाएं क्या? मोहन के पापा ने कहा क्या इसमें भी मेरी गलती है? मोहन ने कहा भूख लगी है, मोहन की बहन तो रो पड़ी.. बहस हुई लड़ाई हुई.. मोहन के पापा बोले आगे बढ़ो शायद कुछ मिल जाये... मोहन के पिता ने बूढ़े किसान से पूँछा गांव कितनी दूरी पर है..किसान ने कहा अभी 6 किलोमीटर आगे है...

राम का परिवार भी भुट्टे को देखा, भूख तो उन्हें भी लगी थी.. सभी सोचने लगे कि भुट्टा कैसे खाया जाए.. राम ने कहा यदि भुट्टे हम आग में सेंक सके तो टेस्टी बन जायेगा। राम के पापा ने कहा आइडिया अच्छा है। किसान से पूंछा भाई भुट्टे चाहिए व माचिस भी मिलेगी क्या? किसान ने दे दिया और उन्होंने ने किसान को पैसे दे दिए..

सूखे पत्ते व लकड़ी इकट्ठी करो इसे जलाकर भुट्टे सेंकते हैं। सारा परिवार पत्ते व लकड़ी इकट्ठी करते हैं वह किसान भी मदद करता है, सब टेस्टी भुट्टे खाते हैं व किसान को भी खिलाते है। रास्ते मे आगे बढ़ते है।

जैसे तैसे भूखा प्यासा मोहन का परिवार गांव पहुंच जाता है लेकिन रास्ते में खड़े एक नुकीले पत्थर से मोहन की मां को चोट लग जाती है। वह गांव वालों और वहां के प्रशासन को गाली देते है, और आगे बढ़ जाते हैं।

राम का परिवार जब उसी पत्थर के पास पहुंचा तो राम की मां ने कहा सम्हलकर नुकीला पत्थर है। देखो यहां खून भी गिरा है लगता है अभी कुछ देर पहले किसी को चोट लगी है। राम कहता है पापा चलो इस पत्थर को निकालकर यहां से हटा देते हैं, ताकि किसी और को चोट न लगे। राम की बहन कहती है, जिसे चोट लगी होगी उसको बहुत दर्द हुआ होगा। सारा परिवार ईधर उधर नज़र दौड़ाता है, तभी उनकी नजर दूर खेत मे काम करते मजदूर पर पड़ती है, उससे गंडासा मांग कर लाते है व सब मिलकर उस नुकीले पत्थर को मध्य मार्ग से निकाल कर हटा देते हैं।

राम का परिवार भी गांव के भीतर पहुंच जाता है।

उद्योगपति राम व उसके परिवार को प्रतियोगिता का विजयी बताता है तो मोहन व परिवार के सदस्य विरोध करते हैं। कि कोई एग्जाम आपने तो लिया ही नहीं व विजेता कैसे राम व उसके परिवार को घोषित कर दिया?

उद्योगपति मुस्कुराए व बोले, रास्ते मे तीन प्रतियोगिता थी -

1- पहला कुंआ, छोटे छोटे रस्सी के टुकड़े व छेद वाली बाल्टी

2- दूसरा भुट्टा व किसान -

3- रास्ते के बीचों बीच रखा नुकीला पत्थर

जो क्रमशः आप के परिवार के बीच का तालमेल, आपके समस्या को लेकर दृष्टिकोण, आपकी सतर्कता, आपके बीच की रास्ते भर की बातचीत, साथ ही संवेदनशीलता का एग्जाम था।

मोहन का परिवार आपस मे दोषारोपण में व्यस्त था, सतर्क नहीं था व समस्या के समाधान करने की नहीं सोचा। मोहन की मां चलते वक्त पहले तो सतर्क नहीं थी, दूसरा चोट लगने पर मोहन के पापा उसके प्रति संवेदनशील नहीं हुए। मोहन ने पत्थर को निकालने का पापा से आग्रह नहीं किया जिससे दुसरो को चोट न लगे। अर्थात समाज के प्रति उत्तरदायित्व व दुसरो के कष्ट के प्रति संवेदनशील नहीं है। ऐसे परिवार के हाथ मे अपना बिजनेस दूंगा तो वह डूब जाएगा और साथ रखूंगा तो आप सब अपनी अशांति मुझे दे देंगे। मेरी कम्पनी के मजदूरों के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे तो मेरी कम्पनी की तरक्की रुक जाएगी।

राम का परिवार पूरे रास्ते हंसते बाते करते हुए आया, एक दूसरे के लिए संवेदनशील था। दिमाग लगाकर पानी पिया व भुट्टा खाया। यह इतने सतर्क रास्ते में चलते वक्त थे कि चोट नहीं लगी। इतने समाज के प्रति संवेदनशील थे कि दूसरे को चोट न लगे इसलिए पत्थर उखाड़ कर हटा दिया। यह परिवार इतना खुशहाल है कि इनके साथ जुड़ने पर यह मुझे भी खुशहाल कर देंगे। मेरी कम्पनी के मजदूरों के प्रति संवेदनशील होंगे तो मेरा काम और बढ़ेगा। इनमें बुद्धि है तो बिजनेस के उतार चढ़ाव को सम्हाल लेंगे। यह परिवार प्यार-सहकार और विश्वास की डोर से बंधा है इसलिए यह किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम है। परिवार में मिले अच्छे संस्कार से राम स्वयं भी तरक्की करेगा और बिजनेस को भी नई ऊंचाइयां देगा।


माँ का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 5 - गर्भस्थ शिशु से प्रार्थना

 माँ का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 5 - गर्भस्थ शिशु से प्रार्थना

(दिव्या के घर पर गर्भ संस्कार को लेकर चर्चा हो रही है, दिव्या का गर्भ दो माह का हो गया है।)

दिव्या - गर्भस्थ शिशु व हमारे बीच अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो, हम सबमें एक आत्मीयता बनी रहे इसके लिए क्या करें?

श्वेता - गर्भ धारण करने के बाद उसका रूपांतरण हो जाता है, अब वह मां है। 

गणित में एक प्लेस वैल्यू होती है और दूसरा फेस वैल्यू होती है। अंक का मूल्यांकन प्लेस वैल्यू पर होता है। इकाई के स्थान पर वह एक है, दहाई के स्थान पर दस और सैकड़े के स्थान पर सौ है। यह नियम लड़की व लड़के दोनो पर लागू होता है। मनमानी व एकल सोच तब तक सही है जब तक अकेले हो। विवाह के बाद मूल्य बढ़ चुका है दहाई स्थान पर हो अब दो की तरह सोचो। बच्चे के बाद अब सैकड़े के स्थान पर हो, मूल्य व जिम्मेदारी बढ़ गयी है। अतः सोचने का तरीका बदलो।

माँ केवल माँ होती है, उसे स्त्री या लड़की बनकर गर्भस्थ शिशु के बारे में नहीं सोचना चाहिए।  पिता केवल पिता होता है उसे कुंवारे लड़के की तरह नहीं सोचना चाहिए।

यदि आपने प्लानिंग के साथ बच्चा जन्म दे रहे है, तो यह बहुत अच्छी बात है। 

यदि असावधानी माता से हुई या पिता से और गर्भ ठहर गया, तो इसमें उस आगंतुक बच्चे की कोई गलती नहीं है। अतः उसे अपमानित यह कह कर न करें कि हम तो अभी बच्चा नहीं चाहते थे ये तो एक्सिडेंटल केस है।

गर्भस्थ शिशु पूर्व जन्म में मृत्यु के दर्द को झेलकर नए शरीर मे आ रहा है, अपने प्रियजनों को छोड़ने का गम है। नए परिवार में अभी पूरी तरह जुड़ा नहीं है। अतः उसकी पीड़ा का अंत हो इसलिए उसे यह जताइए कि आप उसके आने से बहुत खुश है।

अपनी इच्छा लड़का या लड़की की गर्भ आने के बाद मत दोहराइये। यदि आपने कहा हम तो लड़का चाहते हैं तो गर्भ में लड़की हुई तो वह अपमानित महसूस करेंगी दुःखी हो जाएगी। यदि आपने कहा हम तो लड़की चाहते हैं तो गर्भ में लड़का हुआ तो वह अपमानित होगा व दुःखी हो जाएगा।

दिव्या - रवि - ठीक है दी, हम ध्यान रखेंगे कि गर्भस्थ शिशु का अपमान न हो.. हम उसका स्वागत दिल से करेंगे..खुशियां मनाएंगे..

श्वेता - तुम लोग जानते हो कि हम समस्या के आध्यात्मिक व मनोवैज्ञानिक निःशुल्क समाधान देते है, जिसके लिए हमें कोई भी सोमवार से शुक्रवार सुबह 10 से दोपहर 12 के बीच फोन कर सकता है। ऐसे ही एक बार मेरे पास हाल के जन्मे बच्चे की समस्या का केस आया।

केंद्रीय विद्यालय के दो टीचर ने शादी की व उनका बेटा हुआ। समस्या यह थी कि बच्चा माँ का दूध पीने को तैयार नहीं था, मां  की गोदी में जाते ही रोने लगता। डॉक्टर ने मल्टीपल टेस्ट करवाये सब ठीक था उन्हें भी कुछ समझ नहीं आ रहा था, किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि समस्या क्या है? बहुत प्रयास के बाद कुछ नहीं हुआ, मां का दूध गिर रहा था और बच्चा ऊपर का दूध ही ले रहा था। बच्चा मां की गोदी में रोये जा रहा था।

कुछ दिनों बाद जब पति ने यह समस्या स्कूल में अपने मित्र को बताई तो उन्होंने मेरा नम्बर उन्हें दिया। जब उनका फोन आया तो समस्या सुनने के बाद हमने उनसे पूंछा पिछले वर्ष किसी वृद्ध की आपके घर मृत्यु हुई थी, उनका जवाब था ..हाँजी हमारे पिता जी की...

हमने कहा- मेरे विचार से आपके घर वही पूर्वज जन्में हैं, लेकिन वह पूर्वजन्म की कड़वी यादों के कारण आपकी पत्नी से कुछ दुश्मनी करते हैं, व माँ के रूप में उन्हें स्वीकार नहीं कर रहे।

कलियुग व पाश्चात्य प्रभावित पढ़े लिखे लोगो को शायद पुनर्जन्म पर और मेरी बातों पर भरोसा करना कठिन है। मगर हमारे वेद ग्रंथ व परा मनोविज्ञान पढ़ने वाले इस सत्य को जानते हैं कि पुनर्जन्म होता है। डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन व रिपोर्ट आपके पास है, इस समस्या का इलाज कोई भी डॉक्टर नहीं कर सकता। अतः जैसा हम कह रहे हैं पूरी श्रद्धा-विश्वास से वह करिए अवश्य लाभ होगा।

यदि हमारी बातों पर विश्वास कर सकें तो समस्या समाधान हेतु, पूजन घर मे पहले भगवान से अपने जाने-अनजाने में किये अपराध की क्षमा मांगे। भगवान से प्रार्थना करें कि वह बच्चे की आत्मा से संवाद स्थापित करने में आपकी मदद करें।

बच्चा जब तक बोलता नहीं तब तक पूर्वजन्म उसे याद रहता है, अतः उसके शरीर पर मत जाइए उसकी परिपक्व आत्मा से संवाद स्थापित कीजिए।

आप दोनो पति-पत्नी बच्चे के चरण छू कर माफ़ी मांगिये व प्रार्थना कीजिये,  उससे माफी पूर्व जन्म में उसके साथ किये दुर्व्यवहार की मांगिये। हमे अपने माता पिता के रूप में स्वीकार लो और दूध माँ का पी लो, माता की गोदी में रहना स्वीकार लो..

हमारे कहे अनुसार दोनो ने बच्चे के पैर पकड़कर माफ़ी मांगी व माता का दूध पीने का आग्रह किया। बोला आपकी माफ़ी हमे मिले इसके लिए आप जो संदेश देंगे वह प्रायश्चित हम करेंगे। हमे माता पिता के रूप में स्वीकार कर लो, हमसे मित्रता कर लो और दूध पी लो..

वह हाल में जन्मा बच्चा मुस्कुराया, मां ने पुनः प्रयास किया और बच्चा दूध पीने लगा। मां की गोदी में सामान्य बच्चों सा हंसने लगा।


दिव्या व रवि, आपको भी नहीं पता कि गर्भ में कौन सी आत्मा आयी है? उसका अपमान कदापि मत कीजिए। उसका हृदय से स्वागत कीजिए...

--भगवान से और निम्नलिखित गर्भ से प्रार्थना कीजिये:-

*भगवान से प्रार्थना* - भगवान हमें माता पिता बनने की जिम्मेदारी अच्छे से उठाने की शक्ति व सामर्थ्य दीजिये। हम अच्छे माता पिता बने, बच्चे और हमारे बीच प्यार और सम्मान हो, अच्छी मित्रता हो। बच्चे की हर जरूरत हम पूरी कर सकें। यह बच्चा हमारे जीवन मे आनन्द की वृद्धि करे। हम बच्चे के जीवन मे आनन्द भरें।

---गर्भस्थ शिशु से प्रार्थना कीजिये-

हे गर्भ में विद्यमान आत्मा,

आप हमारे पूर्वज हो या मित्र हो तो,

हम नहीं जानते...

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...

हमसे मित्रतापूर्ण व्यवहार करो...


हे गर्भ में विद्यमान आत्मा,

यदि आप हमारे पूर्वजन्म के शत्रु हो तो,

इस जन्म में समस्त शत्रुता का अंत करो,

नई मित्रता स्वीकार करो,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


हमसे जाने अनजाने में,

इस जन्म में या पूर्वजन्म में,

आपके साथ कोई दुर्व्यवहार हुआ हो तो,

हमें क्षमा कर दो,

हमने यदि आपको कोई क्षति पहुंचाई हो तो,

हमें क्षमा कर दो,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


हम अपनी भूलों के लिए प्रायश्चित करने को तैयार हैं,

हमारा स्वप्न या ध्यान में संकेत के माध्यम से मार्गदर्शन करें,

हमें क्षमा कर,

हमारी मित्रता स्वीकार करें,

हमें अपने माता पिता के रूप में स्वीकार करो,

इस नए अनुबंध में हमारा साथ दो...


स्वस्थ व प्रशन्नचित्त जन्म लो,

इस नए जन्म को सार्थक करो,

श्रेष्ठ जीवन जियो,

और हमारे साथ प्रेमपूर्वक रहो।


हम आपका आगे बढ़ने व पढ़ने में,

यथासम्भव सहयोग करेंगे,

आप भी स्वयं को उच्च शिक्षित व सफल बनाने हेतु,

यथासम्भव प्रयास करें...


आपसे प्रार्थना है कि,

आप स्वयं का उत्थान करें,

परिवार के संरक्षक बने,

समाज के उद्धारक बने,

और इस राष्ट्र के रक्षक बने,

स्वयं भी आनन्दित रहें,

व हमें भी आनन्द दें।

दिव्या-रवि - ठीक है दी, हम यह दोनो प्रार्थना करेंगे। दी गर्भस्थ के स्वागत हेतु कौन सी प्रार्थना करें यह भी बता दीजिए..

श्वेता - तुम यह गर्भस्थ शिशु का स्वागत गीत गाओ..

मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है,

तुम नंन्ही परी हो या नंन्हे फरिश्ते,

तुम जो भी हो तुम हो मेरे प्यारे बच्चे...


तुम हमारे जीवन में,

ढेर सारी खुशियाँ लेकर आ रहे हो,

तुम हमारे जीवन में,

एक नई रौशनी लेकर आ रहे हो..


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है,


देखो तुम्हारे मम्मी-पापा मुस्कुरा रहे हैं,

अपनी आंखों से तुम्हारे लिए,

ढेर सारा प्यार बरसा रहे हैं,

तुम्हारे दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा तो,

तुम्हारे आने की खुशी में,

झूम नाच गा रहे हैं।


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


देखो तुम्हारे नाना-नानी, मामा-मामी, मौसा-मौसी,

ख़ुशी के मारे फूले नहीं समा रहे हैं,

तुम्हारे दर्शन को,

पलकें बिछा रहे हैं...


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


सारा परिवार,

तुमसे बहुत प्यार करता है,

मेरे गर्भ में और सबके हृदय में,

अब सिर्फ तुम्हारा वास रहता है,

तुम सदा स्वस्थ प्रशन्न रहो,

बुद्धि बल, धन बल, आत्मबल सम्पन्न बनो...


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


तुम हमसे मित्रवत रहो,

हम तुमसे मित्रवत रहें,

हम सब एक दूसरे के लिए,

सदा सहयोगी व संवेदनशील रहें,

ऐसी ईश्वर से हम सब प्रार्थना कर रहे हैं,

उनकी कृपा दृष्टि की आशा कर रहे हैं...


मेरे प्यारे बच्चे,

गर्भ में तुम्हारा स्वागत है,

हमारे जीवन में तुम्हारा स्वागत है...


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन



मनुष्य बनने का प्रयत्न करें

 मनुष्य शरीर जन्म से मिलता है, मग़र मनुष्य तभी कोई बनता जब उसमें मानवीय गुण विद्यमान हो, इंसानियत हो..

पशुवत खाना-पीना व प्रजनन बस यही कर रहे हो तो तुम एक उत्कृष्ट नर पशु हो..

आत्मकल्याण व लोककल्याण कर रहे हो तो ही तुम मनुष्य हो..

वह माता जी व पिताजी  भी पशुवत ही है, जिनका दिया ज्ञान परिवार के पालन पोषण पर केवल ध्यान दो व समाज के प्रति कर्तव्यों की उपेक्षा करो, कमाओ खाओ एन्जॉय करो.. बस अपना उल्लू सीधा करो...निम्न चेतना युक्त माता पिता श्रेष्ठता का ज्ञान अपने बच्चों को देने में असमर्थ होते हैं..

बुद्धि अलग करती है पशु व मनुष्य के अंतर को..

आत्म उत्कृष्टता अलग करती है नरपशु व महामानव के अंतर को...

श्रेष्ठ कर्म करें, मनुष्य बने व उन्नति करें, स्वयं सुखी रहें व दुसरो को भी सुखी रहने दें..

दुसरो के सुख के निमित्त बने, मग़र जानबूझकर किसी के दुःख का निमित्त न बने..

याद रखें, जो बोयेंगे वही काटेंगे, श्रेष्ठ कर्म करेंगे तो श्रेष्ठता से जुड़ेंगे, खुशियां बांटेंगे तो ख़ुश रहेंगे...

~श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

माँ का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 4 - गर्भस्थ शिशु से प्रार्थना

 माँ का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 4- गर्भस्थ शिशु से प्रार्थना

(श्वेता एक सप्ताह के बाद दिव्या के घर वीकेंड पर जाती है, दिव्या और रवि गर्भ से संवाद कैसे करें (how to communicate with unborn child in womb) इसके लिए श्वेता से मार्गदर्शन चाहते हैं।

दिव्या के ड्राईंग रूम में सभी परिवार जन बैठे हैं, चर्चा प्रारंभ होती है।)

दिव्या - दी, हम गर्भस्थ शिशु को संस्कार देने के लिए संवाद कैसे करें यह बताएं?

रवि की माँ - मेरा प्रश्न है जिसका अभी पूरा शरीर नहीं बना और जिसका जन्म भी नहीं हुआ उससे क्या संवाद करने का फायदा है? क्या कोई साइंटिफिक एविडेंस है? 

(श्वेता लैपटॉप ओपन करती है और पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से और वीडियो के माध्यम से बताती है कि गर्भ में बच्चा सुनता है व सीखता है)


Tuesday, 26 April 2022

प्रश्न - आज़कल बच्चों पर पढ़ाई का लोड बहुत ज्यादा है? ब्रेन की परफॉर्मेंस बढाने के लिए व जल्दी ब्रेन डेटा प्रोसेस करे और मेमोरी पॉवर बढ़े, इसके लिए ऐसे में कम समय में बच्चे क्या करें? बच्चों को सपोर्ट करने के लिए माता पिता क्या करें?

 प्रश्न - आज़कल बच्चों पर पढ़ाई का लोड बहुत ज्यादा है? ब्रेन की परफॉर्मेंस बढाने के लिए व जल्दी ब्रेन डेटा प्रोसेस करे और मेमोरी पॉवर बढ़े, इसके लिए ऐसे में कम समय में बच्चे क्या करें? बच्चों को सपोर्ट करने के लिए माता पिता क्या करें?


उत्तर - आग जलने के लिए ऑक्सीजन जिस प्रकार चाहिए, वैसे ही ब्रेन को एक्टिव रहने के लिए ऑक्सीजन चाहिए।


एक मोमबत्ती कम ऑक्सीजन में जल सकती है, लेक़िन उत्सव या बड़े कार्य हेतु अधिक अग्नि चाहिए तो ढेर सारा ऑक्सीजन  व ईंधन चाहिए।


नॉर्मल श्वांस न्यूज पेपर पढ़ने व दैनिक पढ़ाई कार्य के लिए पर्याप्त है, लेकिन यदि कम्पटीशन और एग्जाम की तैयारी करनी है तो ब्रेन को ऑक्सीजन सप्पलाई प्राणायाम द्वारा बढ़ानी होगी। ब्रेन की सर्विसिंग मेडिटेशन(ध्यान) से करनी होगी। ब्रेन को एनरज़ाइज (ऊर्जा उद्दीपन) देने हेतु ग़ायत्री मन्त्र जपना होगा।


अतः बच्चे को निम्नलिखित कार्य ब्रेन की परफॉर्मेंस बढाने के लिए व जल्दी ब्रेन डेटा प्रोसेस करने के लिए और मेमोरी पॉवर बढाने के लिए स्वयं करना होगा:-


1- दोनो हाथ से मन्त्र लेखन बारी बारी 6 ग़ायत्री मन्त्र दाहिने हाथ से व पाँच ग़ायत्री मन्त्र बाएं हाथ से लिखना है। इससे राइट और लेफ्ट ब्रेन बेस्ट संतुलित (Sync) होते हैं। उस मन्त्रलेखन को तकिए के नीचे रख दें। जब सोए उसी पर सोए।


2- बुद्धि में लय बद्धता हेतु 11 बार अनुलोम विलोम प्राणायाम करें


3- ब्रेन की स्पीड बढाने के लिए 11 बार गणेश योग (सुपर ब्रेन योग)

उगते सूर्य का ध्यान यह बच्चे को करना होगा


4- कम से कम दिन में 108 बार ग़ायत्री मन्त्र जपें। इसे पढ़ाई शुरू करने से पहले। या बीच बीच मे ब्रेक के समय भी कर सकते हैं।


क्योंकि यदि ऑक्सीजन ब्रेन में समुचित नहीं पहुंचेगा तो ब्रेन की स्पीड नहीं बढ़ेगी।


पढ़ाई के लिए ब्रेन का एक्टिव रहना और उसका पढ़ा हुआ डेटा फ़ास्ट प्रोसेस करना जरूरी है


माता पिता बच्चे की पढ़ाई में सहयोग हेतु:-


1- घर मे तेज आवाज़ में बात न करें, टीवी मोबाइल तेज आवाज में न चलाये। फोन पर जोर जोर बात न करें, बच्चा पढ़ रहा हो या सो रहा हो तो उससे दूर जाकर फोन पर बात करें।


2- बच्चे को जब भी भोजन या कुछ पीने को दें एक बार ग़ायत्री मन्त्र पढ़कर दें, जिससे भोजन की ऊर्जा बढ़ जाये।


3- नित्य यज्ञ में इन मंत्रों की तीन तीन आहुतियां सम्मिलित कर दें


ॐ भूर्भुवः स्व: ह्रीं ह्रीं ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात ह्रीं ह्रीं ह्रीं ॐ, स्वाहा इदं सरस्वत्यै इदं न मम


ॐ जूँ स: माम् सन्तान भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूँ ॐ स्वाहा इदम शिवाय इदं न मम


4- नित्य ग़ायत्री मन्त्र साधना के साथ साथ निम्नलिखित मन्त्र की एक-एक माला नित्य करने पर भी लाभ होगा। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य हेतु प्रार्थना करें।


ॐ भूर्भुवः स्व: ह्रीं ह्रीं ह्रीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योन: प्रचोदयात ह्रीं ह्रीं ह्रीं ॐ


ॐ जूँ स: माम् सन्तान भाग्योदयं कुरु कुरु स: जूँ ॐ


5- माता पिता व्यर्थ की घर मे बच्चे को लेकर चिंता न करें अन्यथा घर की ऊर्जा चिंता से भरेगी व बच्चे की पढ़ाई को प्रभावित करेगी।


6- माता पिता बच्चे के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए मन ही मन भावना करें कि बच्चा सफल अवश्य होगा।


7- घर मे प्रशन्नता के साथ साथ एक दूसरे को सम्मान व एक दूसरे का ख़याल रखें। मग़र साथ ही एक दूसरे से चिपके नहीं अपितु उन्हें उनके हिसाब से रहने दें, थोड़ा स्पेस भी दें।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday, 24 April 2022

प्रश्न - बच्चों के जन्मदिन संस्कार पर उन्हें व उनके परिवार जन को कौन सी पुस्तक पढ़ने के लिए दें?

 प्रश्न - बच्चों के जन्मदिन संस्कार पर उन्हें व उनके परिवार जन को कौन सी पुस्तक पढ़ने के लिए दें?


उत्तर - बच्चों के संस्कार बाद उन्हें सर्वप्रथम *ग़ायत्री मन्त्रलेखन* लिखने के लिए प्रेरित करें। दोनो हाथ से बारी बारी, इससे उनके दोनो मष्तिष्क के भाग ऊर्जावान होंगे।


उगते सूर्य का ध्यान करते हुए नित्य प्राणायाम, दस मिनट ध्यान व ग़ायत्री जप करने को कहें। ग़ायत्री मंत्रजप व ध्यान के लाभ समझाएं। कम से कम 11 बार गणेश योग(सुपर ब्रेन योग) करने को कहें। यह सब बच्चों की बुद्धि को प्रखर बनाने व तन मन को स्वस्थ रखने में प्राणायाम, ग़ायत्री मन्त्र जप व ध्यान मदद करेगा।


उन्हें निम्नलिखित पुस्तक पढ़ने को दें और उन्हें समझाएं कि यह आपकी पर्सनल लाइब्रेरी में हमेशा होना चाहिए। नित्य 20 मिनट इन अच्छी पुस्तको को आप पढ़ेंगे एवं ईश्वर को आप धन्यवाद देंगे। यह पुस्तक उनके जीवन मे भगवान कृष्ण की तरह उनके बुद्धि की सारथी बनेगी व जीवन युद्ध मे विजयी बनाएगी:-


1-बाल निर्माण की कहानियां

2-ग़ायत्री की दैनिक साधना

3-प्रबंध व्यवस्था एक विभूति एक कौशल

4-व्यवस्था बुद्धि की गरिमा

5-आगे बढ़ने की तैयारी

6-अधिकतम अंक कैसे पाएं

7-बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि

8- महापुरुषों की जीवनियां

9- दृष्टिकोण ठीक रखें

10- शक्ति संचय के पथ पर , शक्तिवान बनिये

11- गहना कर्मणो गतिः (कर्मफ़ल का सिद्धांत)

12- सङ्कल्प बल की प्रचंड प्रक्रिया

13- हारिये न हिम्मत

14- बिना औषधि के कायाकल्प

15- सफल जीवन की दिशा धारा


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

माँ का गर्भ - शिशु की प्रथम पाठशाला, भाग - 2, प्रश्नोत्तरी

 माँ का गर्भ - शिशु की प्रथम पाठशाला, भाग - 2, प्रश्नोत्तरी

लेखिका श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

(गृह प्रवेश यज्ञ के बाद सभी लोग अध्यात्म चर्चा कर रहे थे, रवि और दिव्या भावी माता पिता बनने और श्रेष्ठ सन्तान प्राप्ति के लिए यज्ञ पुरोहित श्वेता जी जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर, समाजसेवी और अखिल विश्व ग़ायत्री परिवार की कार्यकर्ता है उन से मार्गदर्शन ले रहे हैं। तभी रवि के मैनेजर व ऑफिस कर्मियों ने रवि को इशारा करके बुलाया और उससे कहा क्या वो अपने प्रश्न श्वेता जी से पूंछ सकते हैं।)

रवि - श्वेता दी, हमारे मैनेजर गुप्ता जी आपसे प्रश्न पूंछना चाहते हैं?

श्वेता - जी कहिए सर, आपकी क्या जिज्ञासा है?

मैनेजर गुप्ता जी - मैं विदेशों में पढ़ा हूँ, और मुझे कोई शर्म यह कहने में नहीं कि मैं नास्तिक हूँ। गृह प्रवेश यज्ञ में मैं मात्र पार्टी के उद्देश्य से आया था, मग़र यज्ञ पूजा पाठ देखकर बस रवि के कारण मौन रहा। किंतु अब और मौन नहीं रह सकता। जो ईश्वर दिखता नहीं, जिसका कोई अस्तित्व नहीं, जिसे वैज्ञानिक विधि से प्रमाणित नहीं किया जा सकता, उस पर हम कैसे भरोसा करें? उसकी हम पूजा क्यों करें? उसका ध्यान क्यों करें? उसके भरोसे श्रेष्ठ सन्तान पाने की इच्छा क्यों करें? आप इंजीनियर है तो प्रमाणिकता के साथ उत्तर दें।

(सभी लोग ऐसे प्रश्न सुनकर स्तब्ध रह गए, कुछ आस्तिक मन ही मन बोले पाश्चात्य के प्रभाव में पागल हो गया है, भगवान नहीं मानता नरक में जायेगा। कुछ नास्तिक व बुद्धिजीवी इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उत्साह से भर गए...श्वेता मुस्कुराई व सहज भाव से कहा)

श्वेता - सर, आपके प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व मुझे कुछ चीजों की जरूरत है, कृपया कुछ समय दें। दिव्या आप तीन कांच की ग्लास में एक जैसी मात्रा में जल भर दो। एक ग्लास में सादा जल, दूसरे में थोड़ी चीनी व तीसरे ग्लास में नमक घोल कर लाये। इतना बेहतरीन घोलें की वह घुल जाए, कोई कण शेष न हो... साथ ही एक ग्लास दुध लेकर आओ...

(सभी आश्चर्यचकित थे, अब आगे क्या होगा जानने को इच्छुक थे। तभी दिव्या तीनो ग्लास जल लेकर आई व श्वेता के सामने रख दिया)

दिव्या- श्वेता दी, यह लीजिए तीन ग्लास जल इसमें, एक मीठा,वेक नमकीन व एक सादा जल है।

श्वेता - सर आपकी कम्पनी में कोई कार्य करता है तो वह सैलरी लेता है, आपकी कम्पनी भी उसी को सैलरी देती है जो कार्य करता है। अर्थात बिना लेन-देन कोई कार्य नहीं होता।

गुप्ता जी - हाँजी सही कहा..

श्वेता - हम आपके प्रश्नों का उत्तर देंगे यदि आप संतुष्ट हो तो आपको भी मुझे इस सेवा के बदले कुछ देना चाहिए...है न...

(गुप्ता जी सहित सब परेशान आखिर क्या मांगना चाहती हैं, या इस बहाने प्रश्न का उत्तर देने से श्वेता बचना चाहती हैं..)

गुप्ता जी - कहिए, आपको क्या चाहिए?

श्वेता - एक वचन चाहिए, यदि हमने आपकी जिज्ञासा का समाधान कर दिया तो आप शान्तिकुंज हरिद्वार रवि के साथ सपरिवार जाएंगे व गुरु दीक्षा लेंगे? कहिए यह वचन देंगे..

गुप्ता जी - ठीक है, यदि मुझे आपसे मेरे प्रश्न का समाधान मिलता है तो मैं वचन देता हूँ कि मैं शान्तिकुंज जाऊंगा गुरु दीक्षा लूंगा। साथ ही ईश्वर को मानूंगा और सनातन धर्म को मानूंगा। लेकिन यदि आप मेरे प्रश्न का समाधान न दे सकीं तो मैं फेसबुक पर आपके विरोध व आडंबर पर पोस्ट लिखूंगा।

श्वेता - स्वीकार है, आपको अनुमति मेरे खिलाफ लिखने की यदि हम आपकी जिज्ञासा शांत नहीं कर पाए।

दिव्या - श्वेता जी बात बढ़ रही है, मुझे भय लग रहा है..

श्वेता - दिव्या आप चिंतित न हो, सब ठीक होगा। लेन-देन संसार का नियम है।

आगे श्वेता ने गुप्ता ही से कहा आआप तो विज्ञान के छात्र है व विदेशों से पढ़कर आये हैं, इन ग्लास को देखिए व बताईए कौन सा मीठा, कौन सा सादा व कौन सा नमकीन है? तर्क से प्रमाणित कीजिये...

गुप्ता जी - चीनी व नमक घुल चुका है, नमक व चीनी दिखाई नहीं दे रहा। अतः मात्र तर्क के सहारे या देखकर मैं अंतर नहीं बता सकता। हाँ यदि आप चाहें तो मैं चखकर अंतर बता सकता हूँ..

श्वेता - अभी थोड़ी देर पहले आपने कहा जो दिखाई नहीं देता उसे आप नहीं मानते। फ़िर आप चीनी व नमक के दिखाई न देने पर उसे क्यों मान रहे हैं। कह दीजिये सभी जल सादा है...

गुप्ता जी - दुनियां में बहुत सी चीज है जो दिखाई नहीं देता मग़र उनका अस्तित्व होता है जैसे हवा... अनुभव में है दिखती नहीं.. ऐसे ही चीनी नमक दिख नहीं रहा मग़र चखकर अनुभव करके बताया जा सकता है...

श्वेता - गुप्ता जी आपने अपने पहले प्रश्न का उत्तर स्वयं दे दिया कि न दिखने वाली चीज का भी अस्तित्व होता है। ईश्वर दिखता नहीं फिर भी उसका अस्तित्व है। जिसने उसे अनुभव किया जा सकता...

ईश्वर भी कण कण में समाया है, उसे भी अनुभव किया जा सकता है...

(गुप्ता जी ने बेमन से सहमति से सर हिलाया)

श्वेता - गुप्ता जी, क्या आप बता सकते हैं यज्ञ में जो हमने घी डाला वह किससे बनता है?

गुप्ता जी - दूध से घी बनता है, इस डिब्बे में गाय का घी लिखा है तो यह गाय के दूध से बना है।

श्वेता - यह ग्लास में गाय का दूध है, कृपया घी कहाँ है निकाल कर दिखाये..

गुप्ता जी - देखिए श्वेता जी,  दूध से क्रीम इसे उबालकर व जमाकर , पुनः इसे मथकर मख्खन निकालकर, फिर उसे गर्म करके उससे घी मिलता है। ऐसे कैसे तुरंत इससे घी निकाले के दिखा दूँ..

श्वेता - गुप्ता जी क्या कभी आपने स्वयं गाय के दूध से इस तरह घी निकाला है? आपको यह विधि कैसे पता है?

गुप्ता जी - मैंने कहीं पढा था..

श्वेता - आपने अपने दूसरे प्रश्न का भी स्वयं उत्तर दे दिया, कि दूसरों द्वारा बताई बातों को पढ़कर आप जानते हैं कि दूध से घी निकलता है , लेकिन जिसने यह बताया या लिखा होगा उसने तो अनुभव किया होगा न...

गुप्ता जी - हाँजी आप सही कह रही हैं..

श्वेता - सर जी, इसी तरह हमने आपने भले ईश्वर का साक्षात्कार न किया हो, मग़र जिन ऋषियों ने ईश्वर के सम्बन्ध में वेद पुराणों व उपनिषदों में कहा, उन्होंने तो अनुभव किया होगा न... क्या आप इस बात को मानते हैं... आप दूध के ग्लास से तुरंत घी तर्क से नहीं निकाल सकते और आप चाहते हैं कि मैं इस यज्ञ पूजन से भगवान निकाल के दिखा दूँ... दूध से भी घी निकलने में इतनी लंबी चौड़ी प्रोसेस है तो भगवान के अनुभव के लिए भी तो कुछ प्रोसेस होगी.. हो सकता है थोड़ी कठिन भी हो...

गुप्ता जी - जी ठीक कह रही है..

श्वेता - विद्युत जल से बनता है, लेकिन क्या इस जल के ग्लास से आप विद्युत निकाल सकते हैं अभी...?

गुप्ता जी -  समझ गया और मान गया कि ईश्वर है.. लेकिन मेरे एक और प्रश्न का उत्तर दीजिये कि उन गाड़ियों का एक्सीडेंट क्यों होता है जिसमे भगवान की तस्वीर होती हैं? 

श्वेता - गुप्ता जी जिस घर मे आपकी तस्वीर हो क्या वहां चोरी नहीं होगी? जिस गाड़ी में आपकी तस्वीर हो तो क्या उसका एक्सीडेंट न होगा?

श्वेता - गुप्ता जी जिस तरह आपकी तस्वीर आप की तस्वीर होते हुए भी आपकी तरह कुछ कर नहीं सकती। मग़र यदि कोई आपकी तस्वीर का पूजा करे तो आपको अच्छा लगेगा और यदि कोई उस पर थूके तो आपको बुरा लगेगा। इसी तरह लोग भगवान को प्रशन्न करने के लिए उनकी तस्वीर की पूजा करते हैं।

गुप्ता जी - समझा नहीं... मुझे बताइए ईश्वर की पूजा करने से क्या गड्ढे में गिरी गाड़ी स्वतः निकल जायेगी..

श्वेता - गुप्ता जी आप अध्यात्म(ईश्वर के ध्यान, चिंतन, योग व पूजन) को ईंधन समझिए और पुरुषार्थ को गाड़ी। आपके पास ईंधन हो तो भी बिना गाड़ी के आप कहीं पहुंच नहीं सकते। गाड़ी हो और ईंधन न हो तो भी आप कहीं नहीं पहुंच सकते।

इस घर में विद्युत हो मगर बल्ब न हो तो रौशनी नहीं होगी, बल्ब हो और विद्युत न हो तो भी रौशनी नहीं होगी। विद्युत को बल्ब चाहिए। हममें से किसी ने वस्तुतः विद्युत को नहीं देखा केवल बल्ब को जलते देखा है। बल्ब बुझा है तो विद्युत नहीं है।

इसीतरह भगवान को विद्युत की तरह इंसान के मन का माध्यम चाहिए होता है। आनंदमय प्राणवान व ऊर्जावान व्यक्ति जलते हुए बल्ब की तरह है जिससे पता चलता है कि इसने स्वयं में ईश्वरीय चेतना को धारण किया है। 

मान लीजिए कि दो व्यक्तियों की गाड़ी गड्ढे में फंस गई। दोनो ने प्रयास किया विफल रहे। एक दारू पीने लगा और दूसरा व्यक्ति हनुमान चालीसा या ग़ायत्री मन्त्र जपने लगा। अब न दारू पीने से गड्ढे से गाड़ी स्वतः निकलेगी और न ही अध्यात्म की शरण मे जाने से स्वत: गाड़ी गड्ढे से निकलेगी। 

मनुष्य की चेतना के क्रमशः पांच स्तर होते हैं - देव मानव, महामानव, मानव, पशु मानव, पिशाच मानव

जब कोई नशा या गलत कार्य करता है तो उसकी चेतना मानव से नीचे तक पशु व पिशाच की ओर उतरती है। तब उसे समस्या का बॉटम व्यू से दिखती है व बहुत बड़ी लगती है। वह तनावग्रस्त हो जाता है।

जब कोई आध्यात्मिक अभ्यास करता है तो चेतना ऊपर की ओर उठती है क्रमशः महामानव व देव मानव की ओर उठती है, उसे समस्या को टॉप व्यू/बर्ड व्यू मिलता है। उसे समस्या पूरी समझ आती है व उसके समाधान का आइडिया उसके दिमाग मे आता है। ईश्वर के ध्यान से उसमें विश्वास बढ़ता है हिम्मत आती है। ईश्वरीय चेतना उसके भीतर उतरती है व उसे गड्ढे से गाड़ी निकालने में मार्गदर्शन करती है।

महाभारत हो या कलियुग सभी अर्जुन को अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ता है। ईश्वर केवल मार्गदर्शन देता है, उसे मन के भीतर ध्यानस्थ हो सुनना पड़ता है।

(गुप्ता जी व अन्य सभी गहन चिंतन में पड़ गए, सहमति में सर हिलाए)

श्वेता - आप को देखकर लगता है आप सनातन धर्म ग्रंथो पर भी भरोसा नहीं करते। आपको एक और डेमो दिखा सकती हूँ यदि आप को अपना जन्म समय, जन्म दिनांक व जन्म स्थान पता हो। साथ ही अपना व्हाट्सएप नम्बर हमे शेयर करें..

गुप्ता जी - जी पता है.. आपको व्हाट्सएप कर दिया है कृपया चेक करें..

(श्वेता अपना लेपटॉप खोलती है, ज्योतिष सॉफ्टवेयर में डिटेल डालती है, उनकी कुंडली बनाती है। उसको एनालिसिस करके गुप्ता जी को कुछ बाते व्हाट्सएप पर लिखकर भेजती है। जिसे पढ़कर गुप्ता जी का मुंह ढलते सूर्य की तरह लाल हो जाता है, उनका मुंह मानो मिर्च खा लिया हो ऐसी आवाज़ में उफ कहते है।)

गुप्ता जी - आप मेरे बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती है। मेरी सन्तान नहीं है व पत्नी से अनबन है आपको कैसे पता। मेरी परेशानी के बारे में आप कैसे जानती है? हम आज ही मिले है, मेरी इतनी पर्सनल बात मेरे ऑफिस वालो को नहीं पता आप कैसे जानती हैं? शर्मा जी की आंखे नम हो गयी..

श्वेता - शांत हो जाइए गुप्ता जी, आपको हमने व्हाट्सएप इसलिए किया था कि आपके बारे में हम सार्वजनिक कुछ नहीं बोलना चाहते थे। हम तो मात्र आपको हमारे ऋषियों पराशर व जैमिनी के वेदों के अंग ज्योतिष शास्त्र के रिसर्च की कुछ झलक झांकी दिखाना चाहते थे। हमारा उद्देश्य आपको दुःखी करना नहीं था... जो आपके वैज्ञानिक मित्र नहीं बता सकते वह हमने इसी प्राचीन वैदिक विधि से कुछ मिनटों में बता दिया...

गुप्ता जी - मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ, एवं शान्तिकुंज जाकर गुरु दीक्षा लेने जाऊंगा। अपने फेसबुक पेज में आपकी  प्रशंशा लिखूंगा। मुझे आपसे अकेले में बात करनी है, जो यहां सार्वजनिक नही कर सकता। क्या मैं आपको फोन कर सकता हूँ।

श्वेता - गुप्ता जी, पहले थोड़ा शांत होइए आपके जीवन की समस्या समाधान के लिए मुझे कल सुबह फोन कीजियेगा। फेसबुक में अपने मेरे बारे में नहीं हमारे वर्तमान गुरु और आपके भावी गुरु के बारे में लिखियेगा। 

यदि आप सब अपना थोड़ा समय दें तो आध्यात्म की एक अनुभूति का भी डेमो कर लें..

(सबने उत्साहित हो सहमति में सर हिलाया)

श्वेता - आप सभी नेत्र बन्द कर लें कमर सीधी करें। दिव्या यहाँ आओ ध्यान मुद्रा में बैठ कर सबको दिखाओ। 

(दिव्या ध्यान हेतु बैठती है, श्वेता दिव्या को दिखाते हुए सबको ध्यान के नियम समझाती है। सबको सबसे पहले ग़ायत्री मन्त्र और उसके बाद मात्र ॐ को दीर्घ स्वर में एक साथ लगातार ग्यारह बार बोलने को कहती हैं। ॐ की समूहिक ध्वनि व गुंजन से एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। फिर सबको मौन होकर मात्र आती जाती श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए साक्षी भाव से देखने को कहती है। गहरी श्वांस लेने को कहती है। विचारों से लड़े नही बस होशपूर्वक एक चौकीदार की तरह देखें, श्वांस को देखे महसूस करें। अब हमारे साथ साथ यह प्रार्थना मन ही मन  दोहराएं

हे ईश्वर, हे ग़ायत्री माँ! हमें अपनी दिव्य अनुभूति करवाइए। हमें अपनी शरण मे ले। हम आपका आह्वान अपने मन, बुद्धि, चित्त व हृदय में करते हैं। हमारी बुद्धि को हमे बलपूर्वक अध्यात्म की ओर ले चलो। हमे संसारी अंधेरे से अध्यात्मिक उजाले की ओर ले चलो। हमे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। हमे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो। हमे अपनी शरण मे लो, जिस प्रकार अर्जुन के आप सारथी थे, हमारे जीवन के सारथी भी बन जाइये। हमारे बुद्धि रथ को थाम लीजिए। आर्त स्वर में दिल से प्रार्थना कीजिये। वह 5 मिनट बस मौन ईश्वर के संग रहिए। संसार भूल जाइए। जब हम ग़ायत्री मन्त्र बोलेंगे तब दोनो हाथ रगड़े व जैसे क्रीम लगाते है वैसे समस्त चेहरे पर लगाना है।

इस तरह सबने ध्यान पूर्ण किया व शांति पाठ हुआ, सभी बहुत अच्छा व हल्का महसूस कर रहे थे। गुप्ता जी व सब बहुत अच्छा महसूस कर रहे थे। गुप्ता जी ने रवि को यज्ञ में बुलाने के लिए धन्यवाद दिया। )

गुप्ता जी - श्वेता जी आपका धन्यवाद, आपने हमारे प्रश्नों का उत्तर दिया। मार्गदर्शन किया। मुझे हारना पसन्द नहीं फिर भी आज मैं हारकर भी बहुत खुश हूँ। शान्तिकुंज जाने को उत्साहित हूं।मुझे बताए मैं अपनी अध्यात्म की यात्रा कैसे शुरू करूँ..

श्वेता - यह पुस्तक -  *अध्यात्म विद्या का प्रवेश द्वार* है इसे पढ़िए, यह मन्त्रलेखन है इसमें रोज मन्त्रलेखन बारी बारी से दोनो हाथ से करिए। यह मन्त्रलेखन पुस्तिका तकिए के नीचे रखकर 40 दिन तक सोईये। बाकी मार्गदर्शन हम आपको फोन पर करेंगे। जितनी जल्दी सम्भव हो गुरु दीक्षा ले लीजिए।

गुप्ता जी - धन्यवाद, मैं जरूर इसे पढूंगा व मन्त्रलेखन करूंगा। कल आपको सुबह दस बजे फोन करूंगा। बहुत प्रश्न है उनके उत्तर चाहिए।

श्वेता - चिंता मत कीजिए, सभी प्रश्न के गुरु कृपा से हम उत्तर देने हेतु निमित्त हम अवश्य बनेंगे। हमारे गुरु की सेवा सौभाग्य अर्थात उनके भावी शिष्य आपकी जिज्ञासा के समाधान हेतु प्रयास करेंगे।

ॐ शांति... क्रमशः

यह लेख हमारी आने वाली पुस्तक - "माँ का गर्भ - शिशु की प्रथम पाठशाला" से है। 


माँ का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 3 - गर्भस्थ शिशु के लिए ईश्वर से प्रार्थना-

 माता का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 3 - गर्भस्थ शिशु की दादी भी बनी शिक्षक और शुरू की तैयारी..


लेखिका - श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

(शाम का समय है, बड़ा सुहावना मौसम है। श्वेता लैपटॉप में अपने ऑफिस कार्य मे व्यस्त है। तभी मोबाइल में रिंग बजती है, जिससे श्वेता का ध्यान फोन की तरह जाता है... फोन पर दिव्या का नाम देख आश्चर्य विस्मित मुस्कान के साथ श्वेता फोन उठाती है।)

श्वेता - हेलो दिव्या, कैसे हो? 

(दिव्या की की आवाज़ में उत्साह व उमंग से श्वेता समझ गयी कि कुछ शुभ समाचार है)

दिव्या - दी हम अच्छे है...हम आपसे मिलने आपके घर आना चाहते हैं...

श्वेता -- आ जाओ आपका स्वागत है... आओ और शुभ समाचार दो..

दिव्या- आपको कैसे पता चला कि कोई शुभ समाचार है? 

श्वेता - तुम्हारे आवाज की उत्साह व खनक व चमक बता रही है...आ जाओ मिलकर बात करते हैं...

(शाम को रवि व दिव्या व उनकी माता जी श्वेता के घर आते हैं, बेल बजती है श्वेता दरवाजा खोलती है, दिव्या मिठाई का डिब्बा आगे कर देती है, फिर रवि दिव्या पैर छूते हैं। श्वेता फिर साथ आई दिव्या के सास जी का पैर छूती है।)

श्वेता - बताओ शुभ समाचार बताओ, इतंजार नहीं हो रहा... दिव्या तुम्हारी व रवि के चेहरे की खुशी बता रही है कि नन्हे मेहमान के आने की सूचना डॉक्टर ने कन्फर्म कर दिया है।

सरिता जी - हाँजी श्वेता, हम दादी बनने वाले हैं। आज ही कन्फर्म हुआ है।

रवि - दी, कृपया बताओ गर्भ संस्कार कब करवाना है? उससे पूर्व हम सबको अब क्या दिनचर्या अपनानी है? उसी का मार्गदर्शन लेने आये हैं....

श्वेता - पहले तो बहुत बहुत बधाई स्वीकार करो.. मुंह मीठा करो..

(दिव्या व श्वेता गले मिलते हैं, चाय नाश्ता सब करते हैं)

श्वेता - गर्भ संस्कार साढ़े तीन महीने के बाद करवाना..

 देखो, हम सभी सामाजिक प्राणी है। हमारा प्रभाव परिवार व समाज पर और परिवार व समाज का प्रभाव हम पर पड़ता है। इसी तरह सन्तान केवल तुम्हारे घर जन्म ले रही है तो यह मत समझना कि मात्र इससे तुम ही प्रभावित होंगे। पूरे समाज को इससे फ़र्क़ पड़ेगा। राम जन्मने वाले हैं या रावण? इसके अच्छे या बुरे प्रभाव दोनो समाज पर पड़ेगा। इसी तरह जिस समाज मे बच्चे का जन्म हो रहा है वह भी इसे प्रभावित करेगा। बच्चे की प्राण ऊर्जा, आत्मबल व बुद्धिबल ज्यादा हुआ तो यह समाज को दिशा देगा, यदि कम हुआ तो समाज द्वारा दिखाई दिशा में यह आगे बढ़ेगा।

दिव्या -रवि - हमें अब क्या करना है यह बताईये दी..

श्वेता - तुम्हें गर्भस्थ बच्चे के तीनो शरीर को पोषण देना होगा।

स्थूल शरीर के लिए - चिकित्सक के मार्गदर्शन अनुसार संतुलित आहार, व्यायाम, आयरन कैल्शियम व फोलिक एसिड की दवाइयां इत्यादि समय पर लेनी होगी।

सूक्ष्म शरीर के लिए - ध्यान, प्राणायाम, मन्त्र जप इत्यादि माध्यम से उसे ऊर्जावान बनाना होगा।

कारण शरीर के लिए - भावनात्मक विकास हेतु भजन कीर्तन, ॐ ध्वनि का श्रवण व  उच्चारण, सकारात्मक सङ्गीत, सेवा इत्यादि माध्यम से भावनात्मक शरीर को पुष्ट करना होगा।

मन का 10% ऊपरी भाग को संसार का ज्ञान देना होगा, जिसमे मैथ की पहेलियां, मेंटल मैथ, नई भाषा का ज्ञान, अपनी भाषा के बारे में जानकारी, जिस क्षेत्र में तुम चाहते हो बच्चा तरक्की करे उस क्षेत्र सम्बन्धी बाते तुम दोनो गर्भस्थ बच्चे के सामने करो और उसे प्रेरित करो।

मन के अन्तः 90% भाग की इनर इंजीनियरिंग करने के लिए उसमें जो गुण, आदत, संस्कार, भावनाएं डालना चाहते हो उसके लिए प्रयास करो।

नित्य अब गर्भ संवाद शुरू करो, जैसे अर्जुन सुभद्रा बाते करते थे, वैसे आप लोग गर्भ संवाद के माध्यम से बच्चे को नई नई चीजें सिखाओ।

चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग - यदि तुमने गर्भ से ही बच्चे में शुभ संस्कार और वीरता युक्त पुरुषार्थ के गुण डाल दिये तो बाहरी विषाक्त वातावरण तुम्हारे बच्चे को प्रभावित न कर सकेगा..

रवि की माँ - आप ने तो गर्भ को ही पाठशाला बना दिया..

श्वेता - जी, गर्भस्थ शिशु के नए गुरु माता, पिता और आप होंगी...

रवि की माँ - मैं भला क्या सिखा पाऊंगी, मैं इन दोनों की तरह पढ़ी लिखी नहीं हूँ, ज्ञानी नहीं हूँ।

श्वेता - आप मोबाईल उपयोग करती हैं? क्या आपके पास स्मार्ट फोन है और आप यूट्यूब चला लेती हैं। अपना नम्बर दीजिये

रवि की माँ - हाँ स्मार्टफोन तो है, यूट्यूब चलाना आता है..

(श्वेता रवि की माँ को कुछ यूट्यूब के लिंक भेजती है)

श्वेता -  माता जी आप इस लिंक को ओपन कीजिये। यह तेनालीराम की कहानियां है। आप इसे देखो, याद करो और बहू के पास आकर अपने गर्भस्थ नाती-नतिनी जो भी है उसे रोज एक मोटिवेशनल कहानी सुनाओ। दादी-नानी की कहानियां तो बच्चे गर्भ से ही पसन्द करते हैं।

रवि की माँ - मुझे जल्दी कुछ याद नहीं होता..क्या करूँ

श्वेता - जो ध्यान हमने आपके घर करवाया था वह आप रोज करो और मन्त्रलेखन करो, कहानी के वीडियो दो बार देखो और उस कहानी को अपने शब्दों में गर्भस्थ शिशु को सुनाओ। इससे आपकी यादाश्त बढ़ेगी व धीरे धीरे अभ्यास से आप सक्षम बनेंगी।

आपको मैं, रवि और दिव्या कहानियों के लिंक भेजते रहेंगे आप बस देखो, याद करो और गर्भस्थ को सुनाओ..

रवि आपको बाल निर्माण की कहानियां खरीद के देगा, आप उसे पढ़कर गर्भस्थ शिशु को सुनाना..

रवि की माँ - गर्भस्थ शिशु के साथ साथ मेरी भी पढ़ाई शुरू हो गयी...

श्वेता - जब घर मे बच्चा आता है तो सबका काम बढ़ जाता है... आप सब काम पर लग जाओ, सन्तान का पालन पोषण 21 वर्षीय योजना है जिसकी शुरुआत गर्भ से ही प्रारंभ हो गयी है..

(सभी हंसने लगते हैं, वह खुश होते हैं)

रवि- दी आप हमारे घर कब आओगे? 

श्वेता - परसों ऑफिस से लौटते वक्त शाम को तुम्हारे घर चाय पीते हैं, फिर आगे की कार्ययोजना डिसकस करेंगे.. 

रवि - ठीक है दी...

श्वेता - दिव्या मुझे पता है आपको चाय पीने की आदत है, कोशिस करें चाय न पिएं, लेकिन यदि पीने की इच्छा हो भी तो ख़ाली पेट बिल्कुक चाय न पिएं..

सुबह का पहला आहार कच्चा नारियल, दूध व भीगे हुए कुछ ड्राई फ्रूट्स चिकित्सक के मार्गदर्शन अनुसार लें। पहला भोजन पौष्टिक होना चाहिए..

रात को सोने से पूर्व पेट मे हल्के हाथ से नारियल का तेल अवश्य लगाना। नाभि व तलवों में भी नारियल तेल लगाकर सोना..

यज्ञ के समय जो युगसाहित्य दिया था, उसमें से जो पसन्द आये वो या किसी महापुरुष के जीवनी या सद्विचार रात को सोने से पूर्व अवश्य पढ़कर सोना.. मन्त्रलेखन अवश्य दोनो हाथ से बारी बारी करना...

दिव्या -- ठीक है दी...

(रवि दिव्या व उनकी माता जी विदा लेकर अपने घर चले जाते हैं)

क्रमशः

माता का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 1 - गर्भ से पूर्व तैयारी

 माता का गर्भ शिशु की प्रथम पाठशाला - भाग 1

लेखक - श्वेता चक्रवर्ती, डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

(नवविवाहित जोड़े रवि और दिव्या ने नया घर खरीदा है, दोनो सॉफ्टवेयर इंजीनियर मल्टीनेशनल कंपनी में है। गृहप्रवेश हेतु ग़ायत्री शक्तिपीठ से परिजन(भाई-बहन) यज्ञ करवाने आये और उन्होंने यज्ञ संपन्न किया। सुबह की धूप उनके नए घर की खिड़कियों से घर के भीतर प्रवेश कर रही है, जो कि खुशियों को बढ़ा रही है। दोनो ने पूजन हेतु पीले वस्त्र पहने हैं जो सूर्य की रौशनी में चमक रहे हैं। पूजन स्थल से गुलाब व गेंदे की फूलों की खुशबू मन मोह रही है, हवन की दिव्य खुशबू मन को सुकून दे रही है। यज्ञ के बाद भोजन प्रसाद के बाद सभी बैठकर बातें कर रहे हैं)

श्वेता ने कहा- रवि और दिव्या अब तो तुम दोनो ने घर भी ले लिया और जॉब में प्रमोशन भी मिल गया है। अब तो घर में नन्हे मेहमान को लाने के बारे में विचार करो।

दिव्या - हाँ दी, अब हम भी फ़ैमिली बढाने के बारे में सोच रहे हैं, मग़र हम दोनों की हार्दिक इच्छा है कि हमारी सन्तान अच्छे स्वभाव, श्रेष्ठ व सफल बने।

रवि - हाँजी दी, हमारी इच्छा है कि हम एक श्रेष्ठ आत्मा को जन्म दें, क्या हमारे ऋषियों ने व परमपूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने इस सम्बंध में कुछ मार्गदर्शन किया है क्या? वह हमें बताएं। आप तो हमारी तरह सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी है और ग़ायत्री परिवार की कार्यकर्ता भी है। आप गुरुदेव के साहित्य का नित्य अध्ययन करती हैं आप हमारा मार्गदर्शन करें।

(सभी रिश्तेदार व पड़ोसी भी उत्सुकता से यह संवाद सुन रहे थे)

श्वेता - हाँजी, युगनिर्माण योजना के सूत्रधार परमपूज्य गुरुदेव ने सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम शुरू किया। जिसमें एक है "आओ गढ़े संस्कारवान पीढ़ी", इसमें बहुत सारे डॉक्टर और आध्यात्मिक रिसर्चर जुड़े हुए है। इस सम्बंध में आगे चर्चा करने से पहले हम कुछ प्रश्न आप सभी से पूंछ रहे हैं, उसका उत्तर दें।

प्रश्न - यह बताइए यदि मुझे इस घर में चींटियों को बुलाना हो तो मैं कैसे उन्हें बुला सकती हूँ?

दिव्या - दीदी यह तो बड़ा आसान है, मीठी चीज जैसे चीनी या गुड़ जमीन पर डाल दीजिए।  देर सवेर में चींटी इन तक पहुंच जाएगी..

श्वेता - अगर मुझे कॉकरोच व मख्खी को बुलाना हो तो क्या करना होगा?

रवि - यहां गंदगी फैला दीजिये और  छोड़ दीजिये, मक्खी कॉकरोच सब यहां आ जाएंगे।

श्वेता - यदि मधु मक्खी और तितलियों को कहीं बुलाना हो तो क्या करना होगा?

सरिता - तब दी फूलों की व्यवस्था करनी पड़ेगी, उनकी खुशबू तितली और मधुमक्खी को आकर्षित करेंगी..

श्वेता - बिल्कुल सही कहा, जिन्हें आमंत्रित करना हो उनके लिए वैसा माहौल तैयार करना पड़ेगा। तो यह बताओ यदि गर्भ में महान आत्मा को बुलाना है तो किस प्रकार के माहौल की आवश्यकता होगी?

रवि - दी, यदि मैं आपकी बात सही समझ रहा हूँ तो हमें कुछ ऐसा अच्छा माहौल घर का बनाना होगा जिसे श्रेष्ठ आत्माएं पसन्द करें...

दिव्या - लेकिन श्वेता दी, ऐसे अच्छे माहौल को तैयार कैसे करें?

श्वेता - हमारे विचार व चिंतन एक प्रकार के चुम्बक की तरह होते हैं, व एक तरह का चुम्बकीय सिग्नल व संदेश ब्रह्मांड में भेजते रहते हैं। सूक्ष्म शरीर धारी आत्माएं जो नए शरीर की तलाश में होती हैं वो उन संदेशों को सुनने में सक्षम होती हैं। अपने योग्य अपने जैसे अच्छे विचार सम्प्रेषण से प्रभावित हो गर्भ में प्रवेश करती हैं।

सरिता - तो क्या भगवान कौन कहां जन्मेगा यह तय नहीं करते?

श्वेता - भगवान एक न्यायाधीश की तरह है, जो मृत व सूक्ष्म शरीर धारी आत्मा को उनके कर्म के फल अनुसार अपने लिए गर्भ चुनने का अधिकार देते हैं। कुछ निकृष्ट आत्माओं को बलपूर्वक उनके ऋणानुबंध अनुसार उनके लेवल के निम्न गर्भ में भेज दिया जाता है, लेकिन सामान्य आत्माओं और विशेषकर श्रेष्ठ आत्माओं को चयन का अधिकार मिलता है।

दिव्या - एक अच्छी आत्मा हमारे घर मे जन्म ले इसके लिए हम लोग क्या करें?

श्वेता - जैसी आत्मा को गर्भ में चाहते हो वैसे विचार को मन मे प्रवेश करवाने के लिए... उससे सम्बंधित पुस्तक पढ़ो, वीडियो देखो, ऑडियो सुनो। वैसी उससे सम्बंधित तस्वीरे घर मे प्रत्येक कमरे में लगाओ। आसपास सफाई रखो, घर मे वैसा वातारण तैयार करो।

रवि - इसके अलावा, और कुछ भी करना होगा दी..

श्वेता - प्रत्येक गृहणी भोजन बनाने से पूर्व क्या बनाना है? उससे सम्बंधित जानकारी व समान इकट्ठी करना होता है, प्लान बनाना होता है तब जाकर  भोजन बनता है। ऐसे ही अच्छी मनचाही सन्तान कैसे प्राप्त करें? इससे सम्बंधित कुछ पुस्तक पढ़ो, उनसे सम्बंधित जानकारी इकट्ठी करो।

सरिता - हमारे बच्चे के जन्म के समय तो हमने कुछ सोचा ही नहीं था।

श्वेता - सरिता जी, बच्चे दो तरह से जन्म लेते है - एक एक्सिडेंटल बिना प्लानिंग के और दूसरे प्लानिंग के साथ सोच विचार के...

रवि औऱ दिव्या पढ़े लिखे हैं व अध्यात्म में रुचि रखते हैं, जब घर इन्होंने इतने सोचविचार के लिया तो सोचो सन्तान को लाने से पूर्व क्या यह सोचेंगे विचारेंगे नहीं करेंगे?...प्लान नहीं करेंगे?

सरिता - सही कहा आपने...

श्वेता - रवि और दिव्या यदि सम्भव हो तो आप दोनो अच्छी सन्तान प्राप्ति के लिए एक लघु अनुष्ठान (24 हज़ार ग़ायत्री मन्त्र का) कर लें...

दिव्या - इसके अलावा और क्या करना होगा?

श्वेता - नित्य सोने से पूर्व और जागने के बाद आत्मबोध व तत्व बोध की संक्षिप्त साधना करो। सुबह उठकर ईश्वर को धन्यवाद दो, सोने से पूर्व कुछ भी अच्छी पुस्तक का थोड़ा सा अध्ययन कर सोने जाओ। 

हां, एक और बात सन्तान के लिए प्रयास शाम को गोधूलि बेला और ब्रह्ममुहूर्त में नहीं करना चाहिए। मध्य रात्रि उत्तम है।

रावण का जन्म गोधूलि बेला में सन्तान जन्म के प्रयास से हुआ था, ऐसे ही कुछ राक्षसों का जन्म ब्रह्ममुहूर्त के प्रयास में हुआ था ऐसा शास्त्रों में उल्लेख है। 

सरिता - क्या आहार सम्बन्धी भी सावधानी बरतनी पड़ेगी?

श्वेता - शुद्ध सात्विक वह समस्त आहार जो भगवान को भोग में चढ़ाया जा सकता है... हो सके तो एक वर्ष तक वही आहार दिनचर्या में शामिल करें। यदि मजबूरी में ऑफिस पार्टी या टूर में बाहर का खाना खाना पड़े तो तीन बार मन ही मन ग़ायत्री मन्त्र जप करें तब ही कुछ खाये-पिये। यह तो शरीर का आहार हुआ।

मन का आहार विचार है - अतः महापुरुषों की वीररस भरी जीवनियां पढ़े, ऋषियों की अध्यात्म यात्रा पढ़े। बिजनेसमैन की सफलता के किस्से पढ़े। महान लोगो के संघर्ष की कहानियां पढ़े। नए अविष्कार के बारे में पढ़े। वह सब जो आप चाहते है कि आपका बच्चा पढ़े व जाने, वह सब आपको पढ़ना, जानना होगा...और उस सम्बंध में चिंतन करना है। श्रीमद्भागवत गीता पढ़े। युगसाहित्य पढ़े।

आत्मा के आहार के लिए - जिस देवी देवता में आपकी श्रद्धा है, उसका ध्यान करे। सुबह उगते सूर्य का और शाम को चंद्रमा का थोड़ा ध्यान करे। उत्तम बुद्धि और तेज-ओज-वर्चस के लिए ग़ायत्री मन्त्र जप करें। योग-प्रणायाम करना होगा।

हाँजी, नित्य माता ग़ायत्री व सूर्य भगवान से तेजस्वी ओजस्वी सन्तान हमारे गर्भ से जन्मे यह प्रार्थना करनी है, दिव्या आपको सूर्य भगवान को जल अर्पित करने के बाद बचे जल को अपने माथे और गर्भ में लगाना है। फिर थोड़ी देर लगभग 5 मिनट बिस्तर पर लेट कर ध्यान करना है कि आपका गर्भ दिव्य आत्मा के प्रवेश के लिए तैयार है। वह नीली आसमानी चमकती ऊर्जा से भर गया है, सूर्य का तेज-ओज-वर्चस आपके गर्भ में प्रवेश कर गया है। ऐसा आपको मन ही मन सोचना और अनुभव करना है।

रवि आपको सूर्य को जल अर्पित करने के बाद वह बचा हुआ जल आपको स्वयं पीना है। मात्र 5 मिनट का छोटा सा ध्यान नेत्र बन्द कर पूजन स्थल पर करना है, स्वयं के भीतर सूर्य के तेजस-वर्चस-ओज को महसूस करना है। स्वयं को प्रकाशित महसूस करना है।

रवि - दिव्या - जी दीदी आपने जैसा बताया है हम वैसा करने का प्रयास करेंगे।

श्वेता - जब दिव्या तुम्हारा गर्भ धारण हो जाये तब तुम मुझे पुनः बुलाना... तब हम साढ़े तीन महीने में तुम्हारा गर्भ संस्कार करेंगे। व गर्भ में किस प्रकार तुम दोनो को गर्भस्थ शिशु का शिक्षण-प्रशिक्षण प्रारंभ करना है उस पर चर्चा करेंगे।

सरिता - यह आप क्या कह रही है, गर्भ से ही स्कूलिंग शुरू?

श्वेता - हाँजी, अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ना गर्भ में ही सीखा था। वैसे ही सभी माता पिता को गर्भ से शिक्षण-प्रशिक्षण प्रारंभ करना होगा...

रवि-दिव्या - जी दीदी, हम गर्भ धारण के बाद पुनः आपसे सम्पर्क करेंगे।

श्वेता - आप दोनो प्रत्येक रविवार समय निकालकर हो सके तो यज्ञ करने नजदीकी शक्तिपीठ जाइये व यज्ञ में सम्मिलित होइए, वहां मंदिर की ऊर्जा व यज्ञ ऊर्जा आपको मनचाही सन्तान प्राप्त करने में बहुत मदद करेगी।

आप सब भी मंदिर जाकर स्वयं को दिव्य ऊर्जा से चार्ज कीजिए, जो सप्ताह में एक बार मंदिर जाता है। उसे तनाव को हैंडल करना आ जाता है...जीवन जीने की कला, आध्यात्मिक व मनोवैज्ञानिक समाधान के सूत्र उन्हें मिलते रहते है...

ॐ शांति ....

क्रमशः.....

Saturday, 23 April 2022

दिशा का ज्ञान भी जरूरी है

 जो रुका हुआ है या गलत दिशा की ओर आगे बढ़ रहा है वह मंजिल तक कभी नहीं पहुंचता है।

जीवन यात्रा में यदि तुम आगे बढ़ नहीं रहे, तो तुम दूसरों से स्वतः पिछड़ रहे हो।

जीवन यात्रा में यदि तुम आगे बढ़ नहीं रहे, तो तुम दूसरों से स्वतः पिछड़ रहे हो। यदि दिशा सही नहीं तो भी मंजिल तक नहीं पहुँचोगे। होशपूर्वक चलो, सही दिशा की ओर योजना बनाकर आगे बढ़ो।

जो अनवरत सही दिशा की ओर बढ़ता चलता है, वह खरगोश हो या कछुआ मंजिल तक जरूर पहुंचता है। कोई जल्दी तो कोई देर से सफल होता है। 

मग़र जो रुका हुआ है या गलत दिशा की ओर आगे बढ़ रहा है वह मंजिल तक कभी नहीं पहुंचता है।

आपके जीवन की योजना क्या है?

 यदि आप जीवन की सफल योजना बनाने में विफल हैं

तो आप असफल होने की स्वतः योजना बना रहे हैं ...

तुम विजेता हो तो,

सफलता की योजना बनाओ उस पर कार्य करो...

समझ बढ़ने से बदल गयी जिंदगी

 जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर *मैं Rs.3000 की घड़ी पहनू या Rs.30000 की* दोनों *समय एक जैसा ही बताएंगी* ..!

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मेरे पास *Rs.3000 का बैग हो या Rs.30000 का*, इसके *अंदर के सामान* मे कोई परिवर्तन नहीं होंगा। !

मैं *300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के* मकान में, *तन्हाई का एहसास* एक जैसा ही होगा।!

आख़ीर मे मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं *बिजनेस क्लास में यात्रा करू या इक्नामी क्लास*, मे अपनी *मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा*।!

इस लिए _ *अपने बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं* _ .... ..

फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था

 *ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता है लेकिन गरीब इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं*।

क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू ताकि लोग मुझे *बुद्धिमान और समझदार मानें?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना *Mac या Kfc में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन दोस्तों के साथ *उठक बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ* ताकि लोग यह समझें कि *मैं एक रईस परिवार से हूँ?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं *Gucci, Lacoste, Adidas या Nike के कपड़े पहनूं ताकि जेंटलमैन कहलाया जाऊँ?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार *अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं?*

क्या यह आवश्यक है कि मैं *Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ?*

_*नहीं यार !!!*_

मेरे कपड़े तो *आम दुकानों* से खरीदे हुए होते हैं,

दोस्तों के साथ किसी *ढाबे* पर भी बैठ जाता हूँ,

भुख लगे तो किसी *ठेले* से  ले कर खाने मे भी कोई अपमान नहीं समझता,
अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलता हूँ। चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है
_*लेकिन ....*_

मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो *मेरी Adidas से खरीदी गई एक कमीज की कीमत में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।*

मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे *एक Mac बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।*

बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि *पैसा ही सब कुछ नहीं है* जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।
*मानव मूल की असली कीमत उसकी _नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सुल्ह-रहमी, सहानुभूति और भाईचारा है_। ना कि उसकी मोजुदा शक्ल और सूरत* ... !!!

*सूर्यास्त के समय एक बार सूर्य ने सबसे पूछा, मेरी अनुपस्थिति मे मेरी जगह कौन कार्य करेगा?*
*समस्त विश्व मे सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तभी  कोने से एक आवाज आई।*
*दीपक ने कहा "मै हूं  ना"* 
*मै अपना पूरा  प्रयास  करुंगा ।*
*आपकी सोच  में ताकत और चमक होनी चाहिए। छोटा -बड़ा होने से फर्क  नहीं पड़ता,सोच  बड़ी  होनी चाहिए। मन के भीतर  एक दीप जलाएं और सदा मुस्कुराते रहें।*

लड़के वह जीवन में लक्ष्य प्राप्त करते हैं

 लड़के वह जीवन में लक्ष्य प्राप्त करते हैं जो चाय की टपरी व पान-सिगरेट के दुकान में लक्ष्यविहीन गलत संगत में व्यर्थ चर्चा में नशा करने में जीवन नष्ट नहीं करते। वह लक्ष्य प्राप्त करते हैं जो अच्छी संगति में होते है और महान पुरुषों की जीवनियां पढ़कर उनसे सीखते हैं।

लक्ष्य वह लड़की जीवन में प्राप्त करती है

 लक्ष्य वह लड़की जीवन में प्राप्त करती है जो समय दर्पण के सामने सजने में नहीं बिताती अपितु अपने दिमाग़ को प्रखर बनाने हेतु अच्छी पुस्तकों को पढ़ने में समय बिताती है।

लड़कियों के हाथ में लिपस्टिक की जगह कलम होनी चाहिए, आंखों में काजल की जगह पेन में स्याही होनी चाहिए जो अपने सुनहरे भविष्य को लिखने में जुट जाये।


Friday, 22 April 2022

नाटक - डॉक्टर मित्र

 डॉक्टर मित्र


(पर्दा उठता है, एक ड्राइंग हॉल में कुछ मित्र व परिवार जन बैठे हैं। चाय बिस्किट रखी हुई है और गपशप चल रही है। गर्मी का समय है और एयरकंडीशनर के रिमोट से कूलिंग एडजस्ट करते हुए गृहस्वामी रवि कहते हैं)


देब - आज़कल जिसे देखो लूटने में लगा है, इंसानियत की तो सर्वत्र चिता जल रही है।


मित्र किशन - सही कह रहे हो, अभी कुछ दिनों पहले मेरी भाई की पत्नी की सिजेरियन डिलीवरी हुई है कुछ कॉम्प्लिकेशन हो गया था, बस उसका फ़ायदा डॉक्टरों ने हमें लूटने के लिए उपयोग में लिया। लंबा चौड़ा बिल थमा दिया।


मित्र नीलिमा - हाँजी, डॉक्टर आजकल व्यापारी बन गए हैं। आजकल जिसे देखो उसका सिजेरियन हो रहा है। नॉर्मल डिलीवरी तो डॉक्टर करते ही नहीं, क्योंकि उसमें उन्हें पैसा जो नहीं मिलेगा।


(सभी बारी बारी डॉक्टरों को भला बुरा कह रहे थे, गृह स्वामिनी श्वेता जो कि एक समाजसेवी व पेशे से इंजीनियर है, सबके लिए पोहा किचन में बना रही थी व सबकी बाते सुन रही थीं। पोहे का नाश्ता लेकर ड्राइंग रूम में आती है। सबको देते हुए अपनी बात इस विषय पर रखती हैं।)


श्वेता - आप लोगों ने डॉक्टर की इतनी बुराई की व भला बुरा उन्हें कहा, मेरा मानना है कि यदि वो इतने खराब है तो आप लोगो को उन लुटेरों के पास इलाज के लिए नहीं जाना चाहिए। 


मित्र महक - ये क्या कह रही हो श्वेता, यदि इलाज नहीं मिला तो लोग बेमौत मारे जाएंगे। 


श्वेता - मृत्यु व जीवन तो ईश्वर के हाथ है, फिर डॉक्टर के पास जाने की क्या जरूरत?


मित्र वृंदा - अरे, मृत्यु से पहले जीना भी तो है, बीमारी व तकलीफ को तो चिकित्सा से ही ठीक किया जा सकता है तो डॉक्टर के पास तो जाना ही पड़ेगा। भगवान के बाद यदि कोई जीवन बचाता है तो वह डॉक्टर ही तो है।


मित्र  संदीप - श्वेता जी, मुझे पेसमेकर लगा है, यदि मैं हॉस्पिटल न गया होता तो आज मैं जिंदा न होता।


श्वेता -  जब आप सभी एकमत से यह स्वीकारते है कि डॉक्टर की अहमियत हमारे जीवन मे बहुत है, फिर उनकी बुराई करने की जगह पेशेंट, उनके परिवारजन व डॉक्टर और उनके स्टाफ के बीच मित्रता व सौहार्द कैसे हो इसका प्रयास क्यों नहीं करते? 


देब - श्वेता की बात में वजन है, डॉक्टर जरूरी तो हैं।


श्वेता - आयुर्वेद, एलोपैथी, होमियोपैथी , प्राकृतिक चिकित्सा, वैकल्पिक चिकित्सा इत्यादि अनेक माध्यम उपलब्ध है। यदि मनुष्य जागरूक व होशपूर्वक स्वस्थ दिनचर्या अपनाए, योग-ध्यान-व्यायाम करें व स्वास्थ्यकर ऑर्गेनिक खाये तो डॉक्टर के पास जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। परन्तु स्वयं की लापरवाही को कोई क्यों दोष देगा, स्वयं की गलती से बीमार पड़े और गाली डॉक्टर को दे रहे है।


रही बात सिजेरियन व नॉर्मल डिलीवरी की तो पहले स्त्रियां स्वास्थ्यकर मोटा अनाज फल सब्जी खाकर खूब मेहनत करती थी, शरीर लचीला था तो नॉर्मल डिलीवरी हो जाती थी।


आजकल शारीरिक श्रम है बहुत है नहीं, योग व्यायाम होता नही। फ़ास्ट फूड व तलाभुना अधिक खाने के कारण स्त्रियों के शरीर अकड़े रहते हैं, फिर इनकी नॉर्मल डिलीवरी कैसे सम्भव है? स्वयं सोचो...


मित्र किशन(मज़ाक उड़ाते हुए) - श्वेता जी आप तो इंजीनियर हैं फ़िर डॉक्टर की वकालत वकील बनकर क्यों कर रही है? लगता है आप कभी डॉक्टरों की लूट का शिकार नहीं हुई है..


श्वेता - भाई साहब आप प्रोफेशर है, क्या आपके प्रोफेशन में सब ईमानदार है इसकी गारंटी दे सकते है? आप सब भी जिस जॉब व्यवसाय में है उसमें सबके ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे सकते हैं?


मित्र वृंदा - श्वेता आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?


श्वेता - यहीं कि चिकित्सा एक श्रेष्ठ जनसेवा का माध्यम है। चिकित्सक बनने के लिए बहुत पढ़ाई व मेहनत लगती है। हमे उनका सम्मान करना चाहिये। कोविड में कितने डॉक्टर ने दुसरो का इलाज करते हुए अपनी जान गंवाई।


आधी ग्लास भरी व आधी खाली है, कुछ डॉक्टरों के गलत नियत और कुछ बड़े हॉस्पिटल व्यवसायी रुख के कारण सभी डॉक्टर का अपमान करना उचित नहीं है। सबको लुटेरा कहना उचित नहीं है।


जब कोई अपना जीवन मृत्यु के संकट में होता है, वही डॉक्टर अपने प्रयासों से हमारे अपनों की जान बचाता है। अतः हमें अहसान फरामोश नही होना चाहिए।


संदीप - जब मेरा पेसमेकर लगा था तब वह डॉक्टर सचमुच हमें देवदूत ही लगा था।


किशन - सॉरी श्वेता, मैंने तुम्हारा मज़ाक उड़ाया लेकिन तुम ठीक कह रही हो।


श्वेता - मेरा मानना है कि हमें डॉक्टर व पेशेंट के बीच मित्रता का भाव बढाना चाहिए। अच्छे डॉक्टरों को ढूढ़कर अवेयरनेस कैम्प लगवाना चाहिए। जिससे लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो और बीमारी अधिक बढ़े उससे पूर्व उसे पहचान कर समय पर इलाज करवा सकें।


जैसे जवान व किसान का सम्मान करते हो, वैसे ही जीवन रक्षक डॉक्टर का भी सम्मान करो। कोई अच्छा व इंसानियत युक्त डॉक्टर नहीं चाहता कि उसका पेशेंट मरे, वो बेचारा तो हर सम्भव प्रयास करता है उसे जीवन देने का... डॉक्टर भी हमारे व आपकी तरह इंसान है उसमें भी जान है। वह भी थकता है और वह भी सम्मान चाहता है।


आइये हम सभी चिकित्सक समूह से मित्रता करे और अच्छे सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण करें। लूटपाट न हो उसके लिए अवेयरनेस कैम्पेन चलाये दोषारोपण करने की जगह मिलकर समाधान ढूढे। याद रखिये डॉक्टर भगवान के बाद वह देवदूत है जो हम सबकी जान बचाते हैं।


(सभी सहमति में सर हिलाते है, व तय करते हैं अच्छे कार्य की शुरूआत आज से ही करेंगे। इस बिल्डिंग में अमुक फ्लैट में पति पत्नी डॉक्टर हमारे पड़ोस में रहते हैं, आज चलो उन्हें धन्यवाद दें व उनकी मेहनत को सराहे। नीचे की शॉप से सभी कुछ मीठा खरीदते हैं व उनके फ्लैट में साथ जाते हैं और बेल बजाते है।)


डॉक्टर साहब का नौकर दरवाजा खोलता है व डॉक्टर साहब को इसकी सूचना देता है। डॉक्टर साहब व डॉक्टर साहिबा बाहर इतने लोगो के इकट्ठे आने पर कुछ  चिंतित हो जाते हैं व बाहर आते हैं।)


तब देब कहते हैं, डॉक्टर साहब घबराइए नहीं, कुछ चिंता की बात नहीं। हम सब आपको बस आज आप सभी डॉक्टर की जन सेवा के लिए धन्यवाद देने आए हैं। सभी एक साथ बोल उठे आज श्वेता ने हम सबकी दृष्टिकोण में हृदय में जमी मैल साफ कर दिया व आपके प्रोफेशन व आपके योगदान का महत्त्व समझाया। हम सब आप डॉक्टर मित्र अवेयरनेस अभियान चलाएंगे। आप सबके योगदान के लिए जय जवान, जय किसान की तरह जय चिकित्सक का भी सम्मान देंगे।


सभी मीठा डॉक्टर जोड़े को देते हुए उनका अभिवादन करते हैं। 


डॉक्टर साहब व डॉक्टर साहिबा बहुत खुश होते हैं व श्वेता को धन्यवाद देते हैं। कहते हैं आप ग़ायत्री परिवार से हैं न इसलिए आप सबके लिए संवेदना रखती हैं। 


सबको अंदर बुलाकर चाय नाश्ते के लिए पूंछते है।


किशन कहते है - श्वेता जी ने चाय नाश्ते के साथ ज्ञान भी बहुत खिलाया है, अब और कुछ खाने की जगह नहीं। 


सभी मुस्कुरा देते हैं।


श्वेता - जी हमारे पूज्य गुरुदेव पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने यही सिखाया है कि दूसरों के श्रेष्ठ कार्य का सम्मान करना चाहिए। सबके श्रेष्ठ कर्म यज्ञ है जिससे सबको लाभ मिलता है।


डॉक्टर साहिबा - खुश होकर हम और डॉक्टर साहब निःशुल्क सोसायटी में एक घण्टे की हेल्थ अवेयरनेस वर्कशाप रखेंगे। जिससे सबका भला हो।


इस तरह सभी के मन प्रशन्न थे, सब अच्छा महसूस कर रहे थे। एक नई मित्रता जो शुरू हुई है, वह सबको आनन्द दे रही थी।


नाटिका लेखक - श्वेता चक्रवर्ती,

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - आपको नहीं लगता इस दुनियां में अच्छे व भले लोगों की कमी हो गयी है? अच्छे इंसान ढूंढने से भी नहीं मिलते?

 प्रश्न - आपको नहीं लगता इस दुनियां में अच्छे व भले लोगों की कमी हो गयी है? अच्छे इंसान ढूंढने से भी नहीं मिलते?


उत्तर- जब हम किसी की ओर उंगली दिखाते हुए उसकी गलती गिनाते है तब एक उंगली उसकी ओर और तीन खुद की ओर होती है।


क्या तुम्हें देखकर कोई यह कह सकता है, संसार में एक तो अच्छा व सच्चा इंसान मिला...


यदि हाँ, तो दुनियां में अच्छे लोग आज भी हैं। आपके पास आकर लोगों के अच्छे इंसान की तलाश पूरी हो रही है।


यदि हम परिवर्तन चाहते हैं तो परिवर्तन का हिस्सा हमें स्वयं बनना पड़ेगा। 


मग़र समस्या यह है कि लोग परिवर्तन चाहते तो है मगर उसकी जिम्मेदारी दुसरो के कंधे पर डालते हैं।


लोग विवेकानंद, भगत सिंह, लक्ष्मीबाई और सुभाष चन्द्र का जन्म तो चाहते हैं मगर पड़ोसी के घर जो देशहित जान निछावर कर दें और कठिन मार्ग पर अनवरत चले...


खुद के  घर तो घर गृहस्थी सम्हालने वाले व कमाने वाले बच्चे चाहिए.. उनके जीवन मे कोई चैलेंज नहीं चाहिए, उनका जीवन तो आसान सुख चैन भरा चाहिए...


दीप से दीप जलता है, हम और तुम, साथ ही यह पोस्ट पढ़ने वाले खुद सङ्कल्प ले सकते हैं कि जब तक हम लोग जिंदा है कोई यह नहीं कह सकता कि दुनियां में अच्छे लोगो की कमी है और ढूंढने से नहीं मिल रहे। हम सबके पास आकर लोगो को अच्छे लोग मिल जाये, हमसे प्रभावित व प्रेरित होकर दूसरे भी अच्छे बने।


हम सब कुछ न कुछ अच्छा करे, सबके भले के लिए प्रयास अवश्य करें।


आपकी बहन

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मेरा संबंध मेरे गुरु से और मेरे से इस का मूल्यांकन सिर्फ मेरा गुरु ही करता है और कर सकता है , वर्तमान में किसी में इतना समर्थ नहीं है कि मेरा व्यक्तिगत मूल्यांकन कर सके

 प्रश्न - Thanks didi , पर मुझसे पोस्ट पढ़ने वालों की गुलामी नही होगी। किसी के मेरे लिखे पोस्ट पर प्रतिक्रिया मेरे लिये मायने नहीं रखती। 


मेरा संबंध मेरे गुरु से और मेरे से इस का मूल्यांकन सिर्फ मेरा गुरु ही करता है और कर सकता है , वर्तमान में किसी में इतना समर्थ नहीं है कि मेरा व्यक्तिगत मूल्यांकन कर सके आपको अच्छी नहीं लगी हमारी बात तो इसके लिए हम क्षमा चाहते हैं आप हमारी बात को त्याग दे।


उत्तर - बेटे, आपका या हमारा प्राइवेट स्तर पर कोई मूल्यांकन नहीं करता। हम घर मे कैसे रहते व बात करते है उस पर कोई मूल्यांकन नहीं होता।


पब्लिक डोमेन में जब हम कोई पोस्ट भेज रहे हैं वह वैसा ही हुआ कि हम घर से बाहर आ गए। अब दूसरे आपका मूल्यांकन करेंगे। आपके या हमारे चाहने न चाहने से कोई फर्क नहीं पड़ता।


सभी का डायरेक्ट सम्बंध गुरु से अंतर्मन में है। लेकिन बाहर वह क्या बोल रहा है क्या लिख रहा है उस पर पाठक गण अवश्य प्रतिक्रिया देंगे। 


गुरु के महान होने मात्र से शिष्य महान नहीं होता। गुरु दीक्षा लेंने मात्र स कोई श्रेष्ठ शिष्य नहीं बनता। गुरु का भय शोशल मीडिया पर दिखा कर किसी का मुंह बंद नहीं किया जा सकता व किसी को प्रतिक्रिया देने से रोका नहीं जा सकता।


अतः जब पब्लिक डोमेन में पोस्ट डाल रहे हो तो एक अच्छे लेखक की तरह अपनी पोस्ट के पाठक से खुले मन से प्रतिक्रिया स्वीकार करो।


प्रत्येक व्यक्ति में सुधार के अवसर होते हैं, अतः दिल से बुरा मत मानो। इस प्रतिक्रिया पर विचार करो। यदि कोई टिप्पणी आई है तो क्यों आई है। 


युद्ध हो या पोस्ट हो या रेस हो, आप अकेले नहीं होते। सामने वाला भी है, अतः मात्र गुरु की महानता पर दुसरो को असमर्थ कहना उचित नहीं।


तथ्य तर्क प्रमाण से लॉजिक दो और इस पर खुले हृदय से चर्चा करो। 


मेरी बात बुरी लगे तो क्षमा करना। 🙏🏻


अतः ग़ुलाम शब्द का मर्म समझ के बात पर प्रति उत्तर दो।


गुलामी इंसान स्वयं के मन की इच्छाओं की करता  है दुसरो की नहीं। 


कोई पति अपनी पत्नी का या कोई पत्नी अपने पति की गुलामी नहीं करती। दोनो अपनी इच्छाओं के और एक दूसरे से पूरी होने वाली इच्छाओं के गुलाम होते है।


कोई ऑफिस में काम करने वाला ऑफिस का गुलाम नहीं होता, वह अपनी सैलरी और उससे पूरी होने वाली इच्छाओं का ग़ुलाम होता है।


न कोई आपका गुलाम है न आप आपकी पोस्ट पढ़ने वाले के गुलाम है। 


पोस्ट पढ़ने वाला आपके व्यक्तित्व व कृतित्व से प्रभावित होकर आपके पोस्ट से मिलने वाले लाभ का गुलाम बनेगा। आप अपनी पोस्ट द्वारा हुए गुरुकार्य व लोगो को पसन्द आये व उनमें बदलाव हो इस इच्छा के गुलाम बनेंगे।


मेरी बात बुरी लगे तो क्षमा करना। अहंकार अच्छा नहीं न स्वयं पर न गुरु पर.. न गुरु से जुड़ने पर ... 🙏🏻


आपकी बहन

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - क्या हमें सिर्फ फेसबुक, व्हाट्सऐप व शोशल मीडिया में गुरु के संदेशों को सरल शब्दों में प्रेषित कर अपने कर्तव्यों को पूर्ण समझ लेना चाहिए? कोई उन संदेशों से कोई बदल रहा है या नहीं यह उसकी इच्छा पर छोड़ देना चाहिए?

 प्रश्न - क्या हमें सिर्फ फेसबुक, व्हाट्सऐप व शोशल मीडिया में गुरु के संदेशों को सरल शब्दों में प्रेषित कर अपने कर्तव्यों को पूर्ण समझ लेना चाहिए? कोई उन संदेशों से कोई बदल रहा है या नहीं यह उसकी इच्छा पर छोड़ देना चाहिए?


उत्तर - बेटे, संदेश ऋषियों का देने वाले की योग्यता व पात्रता पर निर्भर करता है, यदि उस पर जनता का विश्वास व जनता का उसके प्रति हृदय में सम्मान न हो तो उसके द्वारा दिया ज्ञान कोई ग्रहण नहीं करता।


शिष्य गुरु का विजिटिंग कार्ड होता है, यदि शिष्य योग्य नहीं व यदि उसकी कथनी-करनी भिन्न हुई तो उसका गुरु कितना ही महान क्यों न हो व उस गुरु के संदेश लोगो के हृदय में नहीं उतार पायेगा।


तुम्हारी योग्यता तय करेगी कि तुम्हारे द्वारा भेजी पोस्ट को कोई कितनी गम्भीरता से पढ़ेगा? यदि लिखते समय तुम्हारे तप बल व श्रेष्ठ कर्मो का अंश उस पोस्ट में नहीं लगा तो वह पोस्ट कोई असर नहीं दिखाएगी।


शिष्य द्वारा मात्र गुरु के साहित्यिक शब्दो का सरल शब्दों में ट्रांसलेशन करने से कोई  असर नहीं होता, अपितु असर तब होगा  जब गुरु के महान तेज का कुछ अंश शिष्य में दिखेगा उसकी तप की व व्यक्तित्व की रौशनी में परिवर्तन होगा।


 बेटे, थोड़ी साधना व ध्यान बढ़ाओ, थोड़ी जनसेवा करो। तुम्हारी पोस्ट में गहराई व सम्प्रेषण तब तक नहीं होगा जब तक वह तुम्हारे आचरण में न होगा। तुम जिस गुरु के शिष्य हो उसकी चेतना से जुडो तब बात बनेगी।


यदि भाषण व पोस्ट से परिवर्तन होना होता तो नेता कबके युगनिर्माण कर चुके होते। 


स्वयं पर बहुत काम करने की आवश्यकता है, अन्यथा दिल से दिल तक बात नहीं पहुंचेगी। बुझा दिया दुसरे दिए को रौशन न कर सकेगा। 


क्षमा करना यदि मेरे बात बुरी लगी हो।


 तुम्हारी प्रत्येक पोस्ट की  टैग लाइन है - सच्चाई को स्वीकार करना शुरू कर दो सारे डर स्वतः खत्म हो जाएंगे


बेटे, सूर्य ने कभी अंधकार नहीं देखा। साहस ने कभी भय नहीं देखा। सत्य ने कभी असत्य नहीं देखा। दो तलवार एक म्यान में नहीं रहती। यदि सत्य है भय नहीं, यदि भय है तो सत्य नहीं।


सत्य व असत्य के नाम पर लड़ने वाले लोगों का भेद ऐसा है मानो दो चींटी सफेद दानों को बिना चखे दृष्टि के आधार पर चीनी साबित करने की कोशिश करें।


जो चखेगा वही जान सकेगा, कौन मीठा और कौन नमकीन है। इसी तरह अध्यात्म में अनुभव को ज्यादा महत्त्व दिया गया है, शब्दो को कम महत्त्व दिया गया है। शब्द तो मात्र अनुभव की ओर बढ़ने हेतु प्रोत्साहित करने का माध्यम है।


मात्र गुरु के योग्य व महान होने से तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा व तुम्हारे द्वारा पोस्ट से जन जन को लाभ न होगा। लाभ तब होगा जब महान गुरु चेतना तुममें झलकेगी, लोगो के हृदय में तुम्हारे लिए सम्मान होगा, तब असर होगा बात बनेगी।


💐तुम्हारी बहन

श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Wednesday, 20 April 2022

प्रश्न - *मान अपमान से परे आनन्दमय जीवन कैसे जियें?*

 प्रश्न - *मान अपमान से परे आनन्दमय जीवन कैसे जियें?*


उत्तर - जौहरी व धोबी अपनी योग्यता अनुसार रूबी रत्न की कीमत लगाएंगे व उस पर प्रतिक्रिया देंगे।


सुख व दुःख दोनो एक दूसरे से जुड़े हैं,

मान व अपमान दोनो एक दूसरे से जुड़े हैं,


स्वयं के लिए मान, अपमान, सुख व दुःख सबकी सृष्टि मनुष्य स्वयं निज मन वचन कर्म व व्यवहार से करता है। अपनी सोच से करता है। उसी तरह किसी दूसरे पर अपनी प्रतिक्रिया भी अपनी योग्यता अनुसार ही देगा।


कर्मो का कर्मफ़ल मात्र लोगों से प्रतिक्रिया दिलवाता है,  कोई इसे मान अपमान से जोड़ता है तो कोई इसे मात्र प्रतिक्रिया समझता है। जो जैसा है उसे वैसा स्वीकारना संत ही कर सकते हैं। इंसान तो अपने दृष्टिकोण के चश्मे से व निज योग्यता के अनुसार प्रतिक्रिया आंकता है।


उदाहरण - एक संसारी साधारण व्यक्ति ने शौक से ड्रेस किसी रँग की खरीदी व पहनी।  उसे देखकर..

एक साधारण व्यक्ति ने प्रतिक्रिया दी - वाह सुंदर है

दूसरे साधारण व्यक्ति ने प्रतिक्रिया दी- वाहियात है बकवास है

तीसरा जो कपड़े का कार्य करता है व योग्यता रखता है, वह कपड़े की गुणवत्ता व फैशन अनुसार सटीक प्रतिक्रिया देगा


ड्रेस पहनने वाला व्यक्ति पहले की प्रतिक्रिया सुनकर सम्मानित और दूसरे की प्रतिक्रिया सुनकर अपमानित होता है। बस समस्या यहीं है। 


उसे केवल तीसरा जो कि कपड़े का एक्सपर्ट है उसकी प्रतिक्रिया पर भी निज विवेक से निर्णय लेना चाहिए, उसे भी मान अपमान से नहीं जोड़ना चाहिए।


वह संसारी साधारण मनुष्य ड्रेस के मोह में स्वयं व ड्रेस को एक समझ बैठा है, कपड़े के मान-अपमान को निज की सत्ता व व्यक्तित्व के मान-अपमान से जोड़ बैठा है। इसलिए क्रमशः वह सुखी या दुःखी होगा।


यदि वह तनिक भी आध्यात्मिक हो और कपड़े व स्वयं को अलग अस्तित्व समझे, तो न उसे सम्मान अनुभव होगा और न ही अपमान अनुभव होगा। सुख दुःख की अनुभूति भी न होगी।


यही व्यक्ति के शरीर रूपी वस्त्र, आर्थिक स्टेट्स, कार्य, वस्तुएं, घर, गाड़ी इत्यादि से भी सम्बंधित है। क्योंकि संसारी मनुष्य इन सबसे मोह से जुड़ा है। अतः इन पर घटित प्रतिक्रिया से मान व अपमान महसूस करता है।


आध्यात्मिक मनुष्य जानता है, न मैं शरीर हूँ न मैं मन हूँ। मैं एक ईश्वर का अंश अविनाशी आत्मा हूँ। मैं शरीर नहीं हूँ। अतः कोई इसे सुंदर कहे या असुंदर, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। मेरे घर, मकान, आर्थिक स्टेटस, कार्य इत्यादि का मैं उपयोगकर्ता हूँ, यह मैं नहीं हूँ। इनके आधार पर कोई प्रतिक्रिया दे, निंदा या स्तुति करे तो मुझे अप्रभावित ही रहना चाहिए। उसे सुख दुःख से न जोड़कर, मात्र प्रतिक्रिया समझ कर उसे विवेक के अनुसार हैंडल करना चाहिए। मान अपमान से परे रहकर आनन्दमय जीवन जीना आसान हो जाएगा।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - क्या पत्नी को पति के पैर छूने चाहिए? क्या स्त्री की ही पैर छूने के लिए बाध्यता है?

 प्रश्न - क्या पत्नी को पति के पैर छूने चाहिए? क्या स्त्री की ही पैर छूने के लिए बाध्यता है?


उत्तर- हमारी संस्कृति में जो उम्र व अनुभव में बड़ा होता है, उसके पैर छुए जाते हैं। बड़ी बहन का छोटी बहन पैर छूती है बड़े भाई का छोटे भाई पैर छूते है। बड़ो का घर में सम्मान और छोटो को प्यार व आशीर्वाद यह संस्कृति है। 


पति परमेश्वर है तो पत्नी भी परमेश्वरी है, पति नारायण है तो पत्नी भी लक्ष्मी है। मात्र जेंडर के आधार पर पैर नहीं छुआ जाता। योग्यता व उम्र को आधार मानकर श्रद्धा से पैर छुए जाते हैं।


यदि पति उम्र में बड़ा है तो पत्नी पैर छुए व यदि पत्नी उम्र में बड़ी है तो पति को उसका पैर छूना चाहिए। 


यदि कोई किसी का पैर न छूना चाहे तो कोई बाध्यता नहीं है।


पैर छूने के आध्यात्मिक वैज्ञानिक लाभ :-


1- वैज्ञानिकों की मानें तो इंसान के शरीर के चारों तरफ एक आभामंडल यानी aura होता है। पैर छूने से उसके औरा से आप कनेक्ट होते हैं।


2- हमारे विचारों और व्यव्हार के बदलने पर हमारे शरीर का आभामंडल भी बदलता है।


3- जब हम किसी के पैर छूते हैं तो वह किसी के प्रति समर्पण और विनीत के भाव को दर्शाता है।


4- किसी के पैर छूने पर तुरंत मनोवैज्ञानिक असर ( Psychological effect ) पड़ता है।


5- इस मनोवैज्ञानिक असर से हमारे अंदर प्रेम, आशीर्वाद और संवेदना का आभास होता है।


6- आशीर्वाद लेने वाले व्यक्ति पर यह असर विज्ञान ही है।


7- बड़े-बुजुगों के आशीर्वाद हमारे सौभाग्य को अच्छा बनाने में मदद करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, बड़ों को नियमित प्रणाम करने से आयु, विद्या, यश, बल बढ़ता है।


8- किसी बड़े और अपने प्रिय के पैर छूने से नकारात्मक सोच-विचारों से मुक्ति मिलती है।


9- पैर छूने वाले व्यक्ति को एक बात ध्यान देनी चाहिए कि जिसके पैर आप छूते हैं उनका आचार-व्यवहार, आचरण अच्छा होना चाहिए।


10- बता दें कि व्यक्ति अगर दुष्प्रवृत्ति का है तो उसका पैर छूने से लाभ नहीं मिलता।


जिनका आप हृदय से सम्मान नहीं करते या जो दुष्ट प्रवृत्ति हो उनका पैर न छुएं। हाथ से नमस्कार करना उत्तम है।


अच्छे व्यक्ति के पैर छूने से अच्छे गुण और बुरे व्यक्ति के पैर छूने से बुरे गुण से सम्पर्क बनता है। अतः सावधानी अनिवार्य है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न - *आदर्श विवाह क्या है? क्या आजकल आदर्श विवाह के नियमो की उपेक्षा हो रही है? भड़काऊ मेकअप और बड़ी दावतों के आयोजन को आदर्श विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा?क्या मात्र दान दहेज न लेना ही आदर्श विवाह है?*

 प्रश्न - *आदर्श विवाह क्या है? क्या आजकल आदर्श विवाह के नियमो की उपेक्षा हो रही है? भड़काऊ मेकअप और बड़ी दावतों के आयोजन को आदर्श विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा?क्या मात्र दान दहेज न लेना ही आदर्श विवाह है?*


उत्तर - आत्मीय बेटी, आदर्श विवाह को समझने से पहले लोगो की मानसिकता को समझो।


सभी बुख़ार (fever) देखने में एक सा लगता है, लेकिन यदि जड़ में जाओ(root cause analysis)  तो कारण अलग अलग होते हैं..किसी फीवर का कारण डेंगू, तो किसी का इंफेक्शन, किसी कोविड तो किसी का अन्य कारण होता है। ऐसे ही आदर्श विवाह जो दिख रहा है उसके जड़ में सभी लोगों की उसको लेकर मानसिकता अलग अलग है। सबके अपने अपने लाभ-नुकसान के गणित है।


सबसे पहले जानने की कोशिश करो कि आदर्श विवाह की परिभाषा से लोग क्या समझ रहे हैं? उनकी मानसिकता क्या है?


अधिकतर लोग आदर्श विवाह का अर्थ दहेज लेन देन का न होना मानते हैं। 


कुछ लोग कम खर्च में शादी को आदर्श विवाह मानते हैं।


कुछ लोग अयोग्य कन्या को योग्य वर के साथ सस्ते में विवाह का एक माध्यम मानते हैं।


मग़र वस्तुतः आदर्श विवाह का सही अर्थ है यज्ञ के माध्यम से देवताओं और दोनो ओर के मुख्य परिवार जन की उपस्थिति में दो वर वधु का सादगीपूर्ण ढंग से विवाह करना व वैदिक धर्म अनुसार आदर्श गृहस्थी को चुनना। 


कन्या व वर दोनो का योग्य होना आदर्श विवाह की अनिवार्यता है। दोनो वर वधु के संस्कार अच्छे होने चाहिए। दोनों में 19-20 या 18-20 में अंतर हो सकता है, लेकिन यदि शिक्षा में बड़ा अंतर हुआ व आर्थिक स्टेटस में दोनों परिवार में बड़ा अंतर हुआ तो भी विवाह लंबे समय तक टिकता नहीं।


पहले फोटोग्राफी सम्भव नहीं थी अतः विवाह के गवाह दोनो तरफ के अड़ोसी पड़ोसी व रिश्तेदार होते हैं। अब फोटोग्राफी है तो सबूत व गवाह के लिए विवाह की तस्वीरें ही पर्याप्त है। विवाह रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।


जानते हो मूल वैदिक समय मे विवाह के समय उपहार में वस्तुतः नई गृहस्थी को शुरू करने हेतु दोनो परिवार के लोग और रिश्तेदार आवश्यक समान देकर नए जोड़े की नई गृहस्थी शुरू करने में मदद करते थे। यह नियम विकृत रूप में दहेज बन गया, स्वेच्छा से दी मदद मनचाही दहेज की सूची बन गयी।


वर वधु वरण में दान व दहेज़ दोनों की उपेक्षा करना, लेन देन न करना। मेकअप की दुकान लड़की व लड़के का न बनना आदर्श विवाह है। स्वेच्छा से जरूरी मदद आदर्श विवाह का हिस्सा है।


भड़काऊ मेकअप, बड़ी दावत, ढेर सारे घराती-बराती आदर्श विवाह का हिस्सा हो नहीं सकते...


वर्तमान समय में शादी में सजना सभी लड़की व लड़कों को पसन्द है क्योंकि वीडियो रिकॉर्डिंग और विवाह का अल्बम खराब हो जाएगा। जो जैसा है वह विवाह में वैसा दिखना ही नहीं चाहता। अर्थात रूप सज्जा व महंगे वस्त्र आभूषण की अनिवार्यता को देखते हुए लोगों ने आदर्श विवाह में इसे सम्मिलित कर लिया। ओरिजिनल न मिला तो नकली पहन लेते हैं।


अब घराती व बाराती सोचते हैं कि शादी में अच्छा भोजन तो हमें मिलना ही चाहिए। माता पिता की मानसिकता होती है कि सबके शादी में खाया तो खिलाना तो पड़ेगा ही...


आदर्श विवाह कैसे होगा यह दोनो पक्ष तय करते हैं, लड़के वाले बोलते हैं भाई दहेज नहीं ले रहे मग़र थोड़ा खाना पीना रिश्तेदारों का ठीक रखना इज्जत का सवाल है।


मंदिर वाले देखते हैं कि भाई इतने सारे लोग आएंगे तो उनका खर्च केलकुलेट करके व मंदिर की दक्षिणा कैलकुलेट करके वो भी बजट बता देते हैं।


तो आदर्श विवाह के आधुनिकीकरण व विकृत व्यवस्था में रूप सज्जा, महंगे परिधान, बड़ी दावत, ढेर सारे घराती बराती लगभग सभी होते हैं, मात्र विवाह में दहेज का खर्च और बड़े  बैंक्वेट हॉल/होटल का खर्च बचता है।


कटु सत्य यह है, कि आदर्श विवाह मूल स्वरूप में होते नहीं है। आदर्श विवाह में मात्र यज्ञ के माध्यम से लड़की व लड़के सादे व मूल स्वरूप व स्वच्छ सुंदर वस्त्रों में विवाह कर यज्ञ प्रसाद में शुद्ध सात्विक भोजन कर विदाई हमने अभी तक नहीं देखा नहीं है।


Something is better than nothing... कुछ न होने से कुछ होना अच्छा है। पूरी तरह से आदर्श विवाह न हो पाए तो भी जितना सम्भव है उतने विधि से आदर्श विवाह कर ले वो भी प्रशंशनीय है। स्वागत योग्य है। 


🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

कन्या दान में क्या है कन्या का सम्मान?

 विचित्र व्यवस्था है कन्या दान 

क्षमा करना हम इस व्यवस्था का नहीं करते सम्मान।

वर-बधू वरण होना चाहिए, यदि कन्या ससुराल वालों को दान हुई तो वर भी अपने ससुराल को दान होना चाहिए।

समाज में जिस तरह लड़को को शिक्षित व कमाने योग्य बनाया जाता है, वैसे ही कन्या को शिक्षित व कमाने योग्य बनाना चाहिए।

जिस कन्या के जीवन में लक्ष्य नहीं, जिसके अंदर शिक्षा, सांसारिकता व आध्यात्मिकता का ज्ञान नहीं। उसका दूसरे मात्र वस्तु की तरह उपभोग करते हैं। उसे सम्मान नहीं देते।

एक अयोग्य होगा तो वह वस्तु की तरह दान ही होगा, व अयोग्यता में दहेज़ के जंजाल में भी फंसेगा।

जो माता-पिता पुत्री को संस्कार व शिक्षा साथ नहीं देते, उसमें वीरता साहस का संचार नहीं करते। वह पुत्री के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं।





Sunday, 3 April 2022

बुद्धू और बुद्ध में फ़र्क़ समझें

 *बुद्धू और बुद्ध में फ़र्क़ समझें*


कुछ रोज पहले,

चाचा जी गुज़र गए,

उनके के लिए,

नजदीकी श्मशान में,

कफ़न इत्यादि ख़रीदने गया,

अंतिम क्रिया का सामान,

भारी मन से ख़रीदने गया।


एक वृद्ध बहन जी,

दुकान पर बैठी थीं,

जाते ही मुझसे पूँछा,

मरने वाला पुरुष है? या महिला?

उसकी कद काठी क्या थी?

उन्हें न कोई मृतक के प्रति सम्वेदना थी,

न ही कोई उनके चेहरे पर प्रतिक्रिया थी।


मैंने जानकारी दी कि,

मरने वाला पुरुष था,

बस फ़िर क्या सहजता से उन्होंने,

सारा समान ऐसे दे दिया,

मानो वह पहले से सेट बनाकर रखा था,

अन्य किराने वाले जैसे सामान देते हैं,

बस वैसे ही सहजता से वो सामान मुझे थमा दिया था।


मैंने उन वृद्ध बहन से पूँछा,

आप यह अंतिम क्रिया की दुकान,

कब से चला रही हो?

उन्होंने मेरी ओर देखकर कहा,

बेटा, बहुत वर्ष हो गए,

कब से यहां हूँ,

यह तो याद नहीं,

हाँ, यह हमारी पुस्तैनी दुकान है,

पति के परलोक गमन के बाद से,

मैं ही इसे चला रही हूँ।


मैंने पुनः हिम्मत कर,

उनसे प्रश्न पूंछा,

क्या आपको यहाँ भय नहीं लगता,

जलती लाशें देखकर दुःख नहीं लगता,

हरियाणा में तो स्त्रियां श्मशान नहीं जाती,

आप स्त्री होकर,

यहाँ अंतिम क्रिया की दुकान कैसे चलाती हो?


वह हँसी और मेरी ओर देखा,

बोली जिंदा इंसान हानिकारक हैं,

मुर्दा इंसान नहीं,

जो ख़ुद दूसरों के कंधे पर आ रहा हो,

जो स्वयं जलकर खाक होने आ रहा हो,

वो भला किसी को क्या नुकसान पहुंचाएगा?

जलती लाशों को देख दुःख किस बात का?

यह तो ब्रह्म सत्य है जो जन्मा है व मरेगा भी...


जी वह तो सत्य है,

लेक़िन लोग कहते हैं कि,

श्मशान में भूत होते हैं,

तो क्या आपको उससे डर नहीं लगता,

क्या आपको कभी हकीकत में,

या कभी स्वप्न में यह सब नहीं दिखता?


वह हँसी और पुनः मेरी ओर देखा,

बोली बेटा,

क्या तुम भगवान का  बही-खाता समझते हो,

कोई भी आत्मा किसी को बेवज़ह सता नहीं सकता है,

कोई न कोई कर्मफ़ल का जब तक टकराव न हो,

तो कोई आत्मा किसी को नज़र भी नहीं आ सकता है,

शिव आज्ञा लेकर ही,

लेनदेन हेतु ही आत्मा किसी जीवित से सम्पर्क करता है,

ऋणानुबंध अनुसार मदद या नुकसान पहुंचा सकता है...


श्मशान में आने वाली,

इन हज़ारों-लाखों आत्माओं से,

जब मेरा इनसे कोई लेन-देन शेष नहीं है,

जब इनके कर्मफ़ल और मेरे कर्मफ़ल का कोई अनुबंध नहीं है,

तब यह भला मुझे क्यों दिखेंगी?

यह भला मुझे क्यों सताएंगी?

अतः इनसे मुझे कोई भय नहीं है,

तुम्हें भी इनसे भय करने की जरूरत नहीं है।


मैंने अंत्येष्टि का सामान लिया,

गहन सोच सोचते हुए,

जब श्मशान से वापस आ रहा था,

दोनों तरफ़ कई ढेर सारी लाशें जल रही थी,

उनकी लपटें व तपन महसूस कर रहा था,

उन सबके स्वजनों के भीतर,

जगता वैराग्य भाव देख रहा था।


फ़िर पुनः सन्त कबीर की बात याद आ गयी,

चेहरे पर व्यंग्य मिश्रित मुस्कान छा गयी,

इनकी तरह मुझमें भी,

अभी इस वक्त वैराग्य जगा हुआ है,

आत्मा अमर और शरीर नश्वर का,

अश्रुपूरित अहसास जगा हुआ है,

मग़र अफ़सोस यह वैराग्य क्षणिक सा है,

क्योंकि यह इस स्थान का प्रभाव है,

परफ्यूम की तरह यह वैराग्य भी उड़ जाएगा,

यह लोग और मैं पुनः संसार में लौट कर,

बीस से तीस दिनों में सब भूल जाएंगे,

पुनः आत्मा का अहसास मिट जाएगा,

मात्र देहाभिमान और देह से जुड़े कर्म ही,

बस याद रह जायेगा।


मैं पुनः जुट जाऊँगा,

समाज में धौस ज़माने और वर्चस्व लहराने में,

ऐसे धन एकत्र करूंगा मानो हमेशा अमर रहूँगा,

या यह सब साथ ले जाऊँगा,

सब भूलकर पुनः मूवी का टिकट लूंगा,

परिवार सहित पॉपकॉर्न के साथ फ़िल्म देखूँगा,

यह वैराग्य पुनः तब ही जगेगा,

जब या तो मैं स्वयं मर रहा होऊंगा,

या पुनः किसी की अंतिम यात्रा देखूँगा।


घोर आश्चर्य है न,

मृत पूर्वजों की टँगी तस्वीरें भी,

हममें वैराग्य नहीं जगाती,

नित्य मरते हुए लोग देखते व सुनते हैं,

फ़िर भी कुछ नहीं चेताती,

भगवान बुद्ध ने तो सिर्फ,

एक रोगी वृद्ध और एक लाश देखी,

बुद्धत्व पाने में जुट गए,

हम तो कैंसर में मरते रोगियों से भरा,

कोई अस्पताल घूम आएं,

या हज़ारो जलती हो जहां लाशें,

वह श्मशान घूम आयें,

हम बुद्धुओं को कोई फ़र्क़ न पड़ेगा,

हममें ज्ञान व वैराग्य का भाव कभी स्थिर न रहेगा।


क्योंकि हम बुद्धू से बुद्ध बनना ही नहीं चाहते,

हम मदहोशी में जीने वाले जगना ही नहीं चाहते,

जीवन को समझना ही नहीं चाहते,

ज्ञानामृत पीना ही नहीं चाहते,

अपने कर्मो को सुधारना ही नहीं चाहते,

लोभ मोह तृष्णा से पीछा छुड़ाना ही नहीं चाहते।


हम बुद्धू हैं बुद्ध क्यों बनना नहीं चाहते,

पैसे, मान, सम्मान की हवस में ही क्यों जीना चाहते हैं,

रिश्तों को स्वार्थ में क्यों निचोड़ना चाहते हैं,

हम बुद्धू की तरह ही क्यों जीना चाहते हैं,

हम बुद्धु तरह ही क्यों मरना चाहते हैं?


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती

डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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