Thursday, 22 February 2018

सूक्ष्म तीव्र प्राण प्रवाह और ध्यान

सूक्ष्म तीव्र ध्यान से एक पदार्थ का रसास्वादन जिह्वा कर सकती है, लेकिन इस प्रक्रिया में विचार के साथ इमोशन/फीलिंग टाइटली जुड़नी चाहिए।

साथ ही जहर के ध्यान से मृत्यु भी हो सकता है और अमृत के ध्यान से आरोग्य और नूतन यौवन भी मिल सकता है।

वैज्ञानिक दो सफ़ल प्रयोग मृत्युदंड प्राप्त दो कैदियों पर किये गए इस बात को सिद्ध करने हेतु:-

👉🏽 पहले प्रयोग में कैदी की आंख में पट्टी बांध के ज़हरीले नाग को लाने, उसे कटवाने का बेहतरीन नाटक एक्सपर्ट कलाकारों द्वारा करवाया गया। और सर्प दंश को दिखाने हेतु उसे पहले नकली सर्प स्पर्श करवाया गया, और एक नये इंजेक्शन से दो टिनी होल उसके पैर में किये गए जिससे उसे अनुभव हो कि सर्प ने काटा। फिर सब झूठ मूठ बोले अरे इसका पैर नीला हो गया, जहर चढ़ रहा है, इस तरह क्रमशः बोलते गए और वह कैदी इसे सच समझता गया और मर गया। पोस्टमार्टम में विष निकला। तो आखिर यह विष आया कहाँ से, ये उसके मष्तिष्क ने उतपन्न किया।

👉🏽दूसरा प्रयोग- दूसरे कैदी की आंख में पट्टी बांधी, और बोला कि आखिर इसे मृत्यु दंड मिला है क्यूँ न इसके मरने से पहले इसके शरीर से समस्त उपयोगी खून निकाल लिया जाय। झूठ मूठ की एक्टिंग हुई, इंजेक्शन की सुई चुभोई गयी। एक टब लिया गया जिसमें एक प्लास्टिक की पॉलीथिन से बूंद बूंद पानी टपकाया गया। और बोला गया कि यह कैदी का रक्त टपक रहा है। चार घण्टे के अंदर कैदी मर गया। जबकि असलियत में उसके शरीर से खून नहीं निकाला गया। पोस्टमार्टम में उसके शरीर में रक्त प्रवाह रुका पाया गया।

उपरोक्त विधि से सिद्ध होता है कि एक व्यक्ति सूक्ष्म और तीव्र मात्र ध्यानस्थ अनुभव से क्या से क्या हो सकता है।

अब सोचिये यही सूक्ष्म तीव्र भाव यदि यज्ञ में आहूत हो जाये तो मनोवांछित वस्तु मिल सकती है। ऋषि अपने सूक्ष्म प्राण प्रवाह से तीव्र वर्षा रुक सकते थे और सूखे में वर्षा करवा सकते थे। क्योंकि यज्ञ में जो आहूत होगा वो करोड़ो गुना बनकर असर करता है। स्कूल कॉलेज में अच्छी भावना से यज्ञ वहां सूक्ष्म को संशोधित करेगा।

कुछ मशीनें यग्योपैथी टीम के पास हैं जैसा कि एयर इंडेक्स मीटर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के दो दिन बाद तक का PM2.5 चेक किया जा सकता है। रेडियेशन मीटर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेडिएशन पर यज्ञ का प्रभाव चेक हो सकता है। औरा स्कैनर से यज्ञ से पूर्व और यज्ञ के बाद का औरा/सकारात्मक ऊर्जा चेक किया जा सकता है। लेकिन यह सब स्थूल है।

मानसिक तौर पर यज्ञ से पहले और यज्ञ के बाद की स्वयं की मनःस्थिति हम स्वयं भी अनुभव कर सकते हैं।

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विषय - *देश का सुनहरा भविष्य बनाओ, विद्यार्थियों को इन्नोवेटिव बनाओ, इनमें राष्ट्रभक्ति जगाओ,कृषि व्यवस्था को उद्योग के साथ साथ उन्नत बनाओ*

आत्मीय प्रिंसिपल एवं स्कूल प्रसाशन, अध्यापकगण एवं विद्यार्थियों के माता-पिता,

भारत एक कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था है, जिसमें 80% कृषि और 20% उद्योग है। बढ़ती जनसंख्या परेशानी का सबब है, लाखों बच्चे रोज जन्म ले रहे हैं। करोङो बच्चे विभिन्न स्कूलों में एडमिशन लेकर जिस नौकरी व्यवसाय का स्वप्न  लिए पढ़ाई कर रहे हैं, वास्तव में उतनी जॉब भारत तो क्या पूरे विश्व में उपलब्ध नहीं है। सब डॉक्टर इंजीनियर वकील और विभिन्न व्यवसायी बनना चाहते है.. कृषक कोई नहीं बनना चाहता...जब अन्न कोई उगाएगा ही नहीं तो खरीदोगे क्या...और खाओगे क्या...कभी सोचा है? तो स्कूल में किसान को सबसे ज्यादा सम्मानित व्यक्ति बताएं...किसान को और सैनिक जवान को सम्मान दें।

जॉब में तो हाई कम्पटीशन है, मध्यमवर्गीय लोग बड़े अमाउंट का लोन लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उदाहरण - उन सभी 9 लाख लोन लेकर MBA किये बच्चे को यदि बड़ा पैकेज नहीं मिला तो वो लोन कैसे चुकाएगा, घर गृहस्थी कैसे बसाएगा?

विभिन्न सरकारी जॉब की कोचिंग देने वाले इंस्टीट्यूट दो लाख एवरेज फीस लेते हैं, उनमें से मात्र 5% पास होते हैं उनकी फ़ोटो टीवी अख़बार में छपती है। लेकिन कोई यह नहीं पूंछता उन 95% विद्यार्थियों का क्या हुआ? उनकी फ़ीस जो कभी रिटर्न नहीं होगी, उनका ख़र्च किया समय जो कभी रिटर्न नहीं होगा, घर मे माता -पिता के उदास लटके चेहरे जो देखे नहीं जाएंगे उनसे, सबसे बड़ा मेंटल टॉर्चर यदि मां ने अपने गहने या पिता ने अपना घर गिरवी रख के या लोन लेकर पढ़ाया होगा तो वो कैसे चुकेगा? कुछ विद्यार्थी यह मानसिक दबाव झेल जाएंगे, कुछ समाज से बदला लेने के लिए आपराधिक प्रवृत्ति की ओर निकल जाएंगे, कुछ ख़ुद को समाप्त कर लेंगे और कुछ नशे में रोज तिल तिल मरेंगे।

हम यहां उन 95% विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर आपसे बात करना चाह रहे हैं। माता-पिता, अध्यापकगण और स्कूल प्रिंसिपल और प्रसाशन ने इन 95% बच्चों के लिए क्या सोचा है? इन्हें इनके हाल पर छोड़ना है या इन्हें कुछ ऐसा मानसिक रूप से तैयार करना है कि ये सब भी जिंदगी में कुछ न कुछ कर ही लें। सब बच्चे अपने सामर्थ्य को पहचान के खिलाड़ियों की तरह एक मैच हारने पर दूसरे मैच की तैयारी में निकल पड़े। राष्ट्र समाज के लिए उपयोगी बनें।

और जो 5% बच्चे पास हो रहे हैं, वो सिर्फ़ 6 अंको की सैलरी और पेट-प्रजनन में व्यस्त न हो जाएं। देश के लिए वर्तमान पोज़िशन में रहते हुए भी कुछ करते रहें। इन्नोवेशन करते रहें।

दुर्भाग्यवश वर्तमान शिक्षा व्यवस्था बहुत ही ज्यादा बोझिल है और पाश्चात्य प्रभावित है, इसे देश के उन युवाओं ने बनाया है जो भारतीय संस्कृति से अनभिज्ञ थे और विदेशों से पढ़कर आये थे। जिस शिक्षा व्यवस्था को कॉपी पेस्ट विदेशों से लेकर भारत मे किया गया था, उन पाश्चत्य देशों में तो पिछले 70 वर्षों में शिक्षा का पूरा पैटर्न ही बदल गया लेकिन भारत मे शिक्षा व्यवस्था उसी पुराने पैटर्न पर चल रही है। किसी भी बोर्ड या यूनिवर्सिटी में वर्तमान पाठ्यक्रम में चल रही पुस्तकें उठाइये तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी नहीं मिलेगी, कुछ वर्ष पुरानी बातें ही पढ़ने को मिलेगी। कुछ महीनों के अंतराल में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी लिए रोज  नए नए  प्रोडक्ट विश्व मार्किट में लांच हो रहा है, वहां पुरानी खोज़ो को रट के पास होने वाले भारतीय कैसे टिकेंगे?

12 वर्ष से 21 वर्ष की उम्र नूतन दिमाग़ में नए नए इनोवेशन का होता है, नई नई खोज़ इस दौरान ही उपजती है, लेकिन दुर्भाग्यवश पढ़ाई का इतना लोड इस वक्त होता है कि एग्जाम पास करने के अलावा अधिकतर विद्यार्थि कुछ और सोच ही नहीं पाते। विदेशों में 40% थ्योरी और 60% वर्तमान सिचुएशन पर आधारित समस्याओं के समाधान पर प्रेक्टीकली पढ़ाई होती है। हमारे देश मे 90% हम पुरानी खोज़ ही रटते रहते हैं, 10% जो प्रोजेक्ट भी बनाने को देते हैं उसमें भी पुरानी झलक मिलती है।

हम सर्विस इंडस्ट्री में पूरे विश्व मे आगे हैं, हम बेहतर क़्वालिटी के सेवक/क्लर्क ग्रेड के/नौकरी करने वाली सोच के नागरिकों का उत्पादन कर रहे हैं। हम उच्चकोटि के कॉपियर है विदेशों में हुई कोई भी खोज को त्वरित कॉपी कर सकते है, उस प्रोडक्ट का सपोर्ट और मेंटिनेंस दे सकते हैं। लेकिन नई पीढ़ी में इनोवेशन नदारद है।

इन्नोवेशन में हम जापान और इजरायल जैसे छोटे देशों से भी बहुत पीछे है।

युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य जो कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और 3200 से ज्यादा पुस्तको के लेखक हैं कहते हैं कि देशभक्ति सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम में ही जरूरी नहीं थी, वो आज भी जरूरी है। देश की सुरक्षा में शहीद होना केवल देशभक्ति नहीं है, देश मे रहकर देशहित जीना भी देशभक्ति है। हमारे देश मे सुपर ब्रेन की कमी नहीं है, जरूरत बस आप सबके सहयोग की है। देश की कृषि व्यवस्था भी विकसित करना है और उद्योग भी विकसित करना है, नए नए अविष्कारों से दुनियां के कल्याण हेतु प्रयास भी करना है।

आईये भारत का गौरवशाली इतिहास फिर से लौटाएं, जैसे पुराने समय मे देश सोने की चिड़िया व्यापार में था, देश विश्वगुरु था, देश अनुसन्धानों/इन्नोवेशन में विश्व मे सबसे आगे था, वो गौरव शाली भारत पुनः बनाएं। देशहित पुनः एकजुट हो जाये। शिक्षा व्यवस्था पूरी तो नहीं बदल सकते लेकिन वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में ही इन्नोवेशन के लिए कुछ स्पेस बनाये। बाल सँस्कार शाला के माध्यम से, भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के माध्यम से स्कूलों में कम से कम सप्ताह में एक दिन शनिवार को राष्ट्रहित सोचने हेतु विचारमन्च बनाये। हम सब कर सकते है, यह सम्भव है, बस आप सबके साथ की जरूरत है। सबमिलकर प्रयास करेंगे तो कुछ न कुछ कर ही लेंगे। विश्वपटल में भारत का नाम रौशन कर ही देंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

योगः कर्मशु कौशलम - कर्म में कुशलता और योग का सम्बंन्ध

*योगः कर्मशु कौशलम - कर्म में कुशलता और योग का सम्बंन्ध*

विचार(thoughts), भावनाएं(emotions) और क्रिया(action) जिस लक्ष्य(aim) प्राप्ति के लिये योग(united) करते हैं, वह लक्ष्य मिलकर रहता है। सारी कायनात उसे देने में जुट जाती है।

विचार, भावनाएं और क्रिया में जब सामंजस्य(योग/United) होती है तो इंसान प्रत्येक पल आनन्दित रहता है। और इस योग के कारण कर्म में कुशलता आती है।

जब विचार, भावनाएं और क्रिया में सामंजस्य योग नहीं होता तो प्रत्येक पल इंसान दुःखी रहता है।

उदाहरण - बच्चे को गर्भ धारण से लेकर पालन पोषण तक मां के विचार, भावनाएं और क्रिया में योग होता है। अतः इतने कष्ट सहने के बावजूद वो आनन्दमग्न शिशु के साथ रहती है।

विचार के साथ भाव जुड़ना जरूरी है और भाव के तदनुरूप क्रिया जरूरी है।

यही हाल सच्चे भक्त का होता है, विचार, भावनाएं और क्रिया तीनों का योग उसे कठिनतम तप और घनघोर जंगल मे भी आनन्दमय अवस्था मे रखता है।

लेकिन जिस जॉब को करने में विचार, भावनाएं और क्रिया में योग नहीं वहाँ न कुशलता होती है और न ही सुख।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

भगवान ने आनन्दमय सृष्टि की रचना की है

*भगवान ने आनन्दमय सृष्टि की रचना की है*

भगवान ने समस्त जीव को बनाया तथा उनके जीवन निर्वहन हेतु प्राकृतिक संसाधन से धरा पर सबकुछ उपलब्ध किया।

भगवान ने सुख-दुःख का निर्माण नहीं किया, सुख-दुःख का निर्माण मनुष्य स्वयं अपनी मनःस्थिति से करता है, कभी लोभ में, ईर्ष्या में, अहंकार में तो कभी प्रेम में।

उदाहरण - समस्त धातुओं की तरह भगवान ने स्वर्ण भी एक धातु बनाई। समस्त पत्थरों की तरह हीरा भी बनाया। लेकिन स्वर्ण और हीरे को बहुमूल्य बनाया इंसानी सोच ने। इसके मिलने पर सुख और इसके खोने पर दुःख, यह इंसानी दिमाग़ की उपज है।

भगवान और अन्य प्राणियों के लिए अन्य धातु और स्वर्ण में कोई फर्क नहीं, हीरा भी सभी कंकर पत्थर की तरह ही एक पदार्थ है।

मनुष्य की इच्छाएं वासनाएं सुख-दुःख का निर्माण करती हैं। जो चीज़ भगवान ने बनाई ही नहीं तो उसे देने या उसे दूर करने में वो इंसान की मदद भला कैसे करे?

वासना-इच्छा को मन ने पकड़ा है इसलिए दुःख है, वासना-इच्छा मन से  त्याग  दो तो इस धरती पर कहीं कोई दुःख नहीं, कहीं कोई सुख नहीं। सर्वत्र सृष्टि के कण कण में आनन्दानुभव में मग्न हो सकते हैं। जो परमात्मा सोते हुए पक्षी को कभी पेड़ से गिरने नहीं देता, गर्भ में भी पोषण देता है। उसकी सृष्टि में कहीं कोई दुःख नहीं है, सर्वत्र आनन्द है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Monday, 19 February 2018

क्या आराधना(समाजसेवा) के साथ साधना जरूरी है

*प्रश्न:*- आज के युवाओं में दो तरह का ग्रुप नज़र आता है, एक जो पूरी तरह मौज मस्ती में लगे है और स्वार्थपरक जिंदगी जी रहे है। दूसरा ग्रुप है जो कुछ अच्छा करना चाहते है, अपने लिए भी और समाज के लिए भी। (जैसे DIYA से जुड़े युवा जो स्लम एरिया के बच्चों को पढ़ा रहे है, कोलकाता में वृक्ष लगा रहे है। और मै जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर हूँ वहां के युवा भी  कुछ ऐसा ही कार्य कर रहे है।) ये युवा भले ही साधना-उपासना नहीं कर रहे पर आराधना में लगे हुए है। *ये आध्यात्मिक कहलायेंगे या नहीं?*

उत्तर - *ये बच्चे जो आराधना-समाज सेवा कर रहे हैं 100% आध्यात्मिक कहलायेंगे*, इसे इस कहानी से समझते हैं:-

एक राजा ने दो सेवक रखे, दो अलग अलग अपने राज उद्यान और बाग बगीचों की देखरेख के लिए,-

एक सेवक ने राजा की तस्वीर बनाई, उसका सुंदर सा मन्दिर बनवाया और रोज पूजन अर्चन करता। लेकिन बाग बगीचे के रख रखाव पर ध्यान न देता। तीन वर्ष में हरा भरा बगीचा उजाड़ लगने लगा।

दूसरे सेवक ने राजा की तस्वीर भी नहीं बनाई, न ही उसकी पूजा अर्चना की। लेकिन पूरे मनोयोग से बाग बगीचे का रख रखाव करता। तीन वर्ष में बगीचा पहले से ज्यादा हरा भरा और सुंदर बन गया।

तीन वर्ष बाद जब राजा ने सर्वेक्षण किया तो पहले पर क्रोधित और दूसरे पर प्रशन्न हुआ। इसी तरह यह विश्व उद्यान उस परमेश्वर का बाग बगीचा है। जो गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं, या वृक्ष गंगा अभियान में लग कर वृक्षारोपण और गंगा सफ़ाई अभियान कर रहे है उनको घर या जंगल मे तप कर रहे व्यक्तियों से ज्यादा पुण्य परमार्थ मिलेगा।
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लेकिन ये बच्चे यदि दैनिक कम से कम आधे घण्टे की भी उपासना नियमित कर लेंगे तो इनके अन्तः की भी सफाई होगी, सद्गुणों का वृक्षारोपण अंतर्जगत में होगा। अन्तः मन का बगीचा इन्हें आनन्दमय अवस्था मे रखेगा और ये कभी भी सन्मार्ग से नहीं भटकेंगे। आराधना की कठिनाइयों को झेल सकेंगे।

*इसलिए त्रिपदा गायत्री साधना - उपासना-साधना-अराधना अनिवार्य है। कोई कम ज्यादा चलेगा, लेकिन किसी पक्ष की अनुपस्थिति संतुलन नहीं देती। अध्यात्म संतुलन का नाम है।*

अभ्यस्त होने पर जप और ध्यान चलते फिरते भी किया जा सकता है। स्वयं को साधने के लिए कुछ क्षण तो पहले शरीर को फिर मन को ठहराना ही पड़ेगा। जप-ध्यान कुछ क्षण तो बैठकर ही करना होगा।स्वाध्याय चित्त की सफाई के लिए अति अनिवार्य है।

*आराधना -अर्थात सेवा का पथ कठिन है, इसमें निरन्तरता के लिए साधक बनना जरूरी है।* नहीं तो आराधना पथ पर बिना साधना रोज चलना सम्भव नहीं। 🙏🏻   *आदरणीय रवि भाई कोलकाता यदि साधक नहीं होते तो  लोगों को साथ लेकर इस वृक्षारोपण अभियान में निरन्तरता न ला पाते। क्यूंकि प्रत्येक रविवार उन्हें पहले स्वयं पर विजय प्राप्त करना होता है, फिर वृक्षारोपण हो पाता है। लीडर को सबसे ज्यादा कठिनाई झेलनी पड़ती है, सहयोगी साधक हों या न हों, लेकिन लीडर का साधक होना 100% अनिवार्य है। क्योंकि इंजन(लीडर) में तेल(साधके) होना जरूरी है।*

आराधना की प्रसिद्धि को पचाने हेतु भी साधना जरूरी है, अन्यथा भटकने में वक्त नहीं लगता है। आराधना की जड़ साधना से ही फलवती होती है। आदरणीय रवि भाई की तरह जो भी भाई या बहन साधक होगा वो आराधना की कोई भी गतिविधि शुरू करे सफलता निश्चित है। निरन्तरता निश्चित है। साधक स्तर के व्यक्ति की निर्मल हृदय से लिया संकल्प स्वयं महाकाल विविध रूप लेकर उसकी मदद करने आते है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

प्रश्न:- अध्यमिकता को तथ्य-प्रमाण (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) से कैसे समझे कि यह जीवन के लिए अनिवार्य है, विकल्प नही?

*प्रश्न:- अध्यमिकता को तथ्य-प्रमाण (वैज्ञानिक दृष्टिकोण) से कैसे समझे कि यह जीवन के लिए अनिवार्य है, विकल्प नही?*

उत्तर:-  *आध्यात्मिकता(Spirituality)* एक आत्म अध्ययन की प्रक्रिया है, कर्मकांड, जप-तप, पूजन-पाठ, तर्क-वितर्क, योग-ध्यान इत्यादि इसमें सहायक तत्व है, लेकिन केवल इससे ही इसका अध्ययन पूर्ण हो जाता है ऐसा बिल्कुल नहीं है।

अब यहां हमने *आत्मा अर्थात प्राण* की बात की, तो प्रश्न उठता है जो दिखाई नहीं देता उसे माने क्यूँ? जिसे मानते नहीं उसे जानने का प्रयास भी भला क्यूँ करें? और यह तो वैकल्पिक होना चाहिए मन करे तो आत्म अध्ययन करे और मन करे तो न करें, ऐसा कुछ ही जो सोच रहे हैं... उनके लिए कुछ कबीरदास जी की पंक्तियाँ अर्ज हैं:-

ज्यों तिल माँहि तेल है, ज्यों चकमक  में आग,
तेरा साईं तुझमें है, जाग सके तो जाग।

(तिल के भीतर का तेल नहीं दिखता, इसी तरह हमारे भीतर का प्राण(आत्मा) नहीं दिखता, पानी के अंदर बिजली नहीं दिखता, लेकिन अस्तित्व सबका है। प्रोसेस को पढ़ो, समझो और समुचित विधि का पालन करो तो सब प्राप्त किया जा सकता है)

ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि,
मूरख उनको जानिए , जो बाहर ढूँढत जाहिं।

(भीतर अकूत आत्मशक्ति सम्पदा भरी पड़ी है, आनन्द का श्रोत भरा पड़ा है, यदि इनकी उपेक्षा कर बाहर सुख ढूढोगे तो क्या मिलेगा? ज्ञान का समस्त श्रोत भीतर ही है।)

*भारतीय संस्कृति की गुरुकुल व्यवस्था का अनिवार्य अंग आध्यात्म था। बच्चों की शिक्षा पहले स्वयं को जानो फिर बाहरी ज्ञान को जानो पर आधारित था। उस वक्त हम सुविधा सम्पन्न थे, व्यापार हो या धन संपदा, सांसारिक ज्ञान हो अध्यात्म सम्पदा सबसे श्रेष्ठ भारत था। एक तरफ सोने की चिड़िया था तो दूसरी तरफ विश्व गुरु था। शून्य(0) और दशमलव(.) भारत की देन है तो शल्य चिकित्सा का प्रथम गुरु भारत है। ग्रह नक्षत्र की सटीक गणना आज भी अंक ज्योतिष एक वर्ष पूर्व ही बिना बड़ी सांसारिक मशीनों के बता देता है कि कब किस क्षण चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण और नक्षत्रों की सौर मंडल में स्थिति क्या होगी। हमारे देश मे नौ ग्रह पूजन और पृथ्वी गोल का सिद्धांत शुरू से ही था। वराह अवतार की तस्वीरों में गोल पृथ्वी, सब्जेक्ट में भूगोल(भू अर्थात पृथ्वी गोल), जगत अर्थात जो गतिमान है पहले से ही प्रचलित है।अनुसन्धान और अविष्कारों में भारत तब विश्व का प्रतिनिधित्व करता था।*

माना कि कुछ स्वार्थी और कायर लोगों की मूर्खता की वज़ह से देश गुलाम हुआ, जिन्होंने देश को बेंच खाया(क्यूंकि अपने लोग साथ न देते तो अंग्रेज कभी सफल न होते)।फिर देशभक्तो ने मिलकर  देश आजाद करवाया। फ़िर गुलाम देश मे जन्मे और विदेशों में पढ़े युवाओं ने देश की आज़ादी के बाद संविधान लिखा और शिक्षा पद्धति का निर्माण किया(जो की पाश्चत्य शिक्षा पद्धति का पूरा नकल था), क्योंकि ये  भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा से अनभिज्ञ थे। इसलिए इनके द्वारा थोपी पाश्चात्य शिक्षा पद्धति ने इनोवेशन समाप्त कर क्लर्क ग्रेड के सेवक(नौकरी करके खुश रहने वाले) बहुतायत मात्रा में पैदा किये जो शरीर से भारतीय और दिमाग से अंग्रेज है। जो अपने ही देश को लूटने खसोटने में लगे हैं। वर्तमान समय मे भारत इजरायल और जापान जैसे छोटे से देशों से भी इनोवेशन-अविष्कारों में पीछे चल रहा है।

लेकिन भारत में 🙏🏻 *युगऋषि श्रीराम आचार्य जी* और अन्य आध्यात्मिक सत्ताओं ने पुनः भारतीय गौरव की वापसी का संकल्प लिया है। अध्यात्म को जीवन का अनिवार्य अंग बनाया है। पुनः हिंदुस्तानी नई पीढ़ी को सुपर ब्रेन के साथ साथ स्वस्थ मानसिकता के राष्ट्र भक्त युवक युवतियों को गढ़ने का कार्य द्रुत गति से शुरू किया है। बाल सँस्कार शाला और विभिन्न सँस्कार के माध्यम से अध्यात्म नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं।

🙏🏻👉🏽 *निष्कर्ष* - चलने को तो लोग एक पैर से भी बैसाखी के सहारे चलते हैं लेकिन यदि दूसरा पैर भी साथ दे तो बैसाखी की जरूरत नहीं रहती। आज की शिक्षा व्यवस्था पाश्चत्य की बैसाखी के सहारे चल रही है, लेकिन *यदि अध्यात्म को पुनः शिक्षा में गुरुकुल की तरह प्रवेश दे दिया जाय तो शिक्षा व्यवस्था भारतीय गौरव के साथ उठ खड़ी होगी। पुनः भारत विश्व गुरु होगा और रिसर्च- अनुसन्धानों से विश्व वसुधा को तृप्त कर देगा*। स्वयं की आत्मा का अध्ययन करके ही आत्मशक्ति और आत्मबल को प्राप्त किया जा सकता है और गहन ज्ञान तक पहुंचा जा सकता है। *सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन भी एक अध्यात्मिक व्यक्ति थे इसलिए वो पुस्तको से परे जाकर नया ज्ञान ला सके*। वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रयोग से विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय से वर्तमान समस्याओं को हल करके,स्वयं को भी सुखी -समृद्ध बनाया जा सकता है और राष्ट्र को भी सुखी समृद्ध बनाया जा सकता है। इसलिए अध्यात्म अनिवार्य है, वैकल्पिक नहीं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

अध्यात्म-क्षेत्र का सूक्ष्म अदृश्य जगत - चन्द्रायण साधना 2

अध्यात्म-क्षेत्र सूक्ष्म अदृश्य अविज्ञात जैसा लगता भर है, वस्तुतः वह भी अपने स्थान पर भौतिक जगत की तरह सुस्थिर और सुव्यवस्थित है| आंखों से न देख पड़ने पर भी, उसकी सत्ता  संदेह से परे है| शरीर दिखता है प्राण नहीं, परंतु प्राण की नाप तोल ना तो इन्द्रिय शक्ति से हो सकती है और ना ही किसी यंत्र- उपकरण से, फिर भी उसकी सत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता |मरणोत्तर जीवन का अस्तित्व भी ऐसा ही है जिसका यांत्रिक पर्यवेक्षण नहीं हो सकता| इतने पर भी वह पुरातन की तरह आधुनिक निर्धारण से ही अपने अस्तित्व का परिचय देता है| विचारों की इच्छा शक्ति साहस आदि अदृश्य प्रसंगों की विशिष्टता एवं परिणति से कोई इनकार नहीं कर सकता| यह दृश्य जगत के अनेकानेक प्रमाणों में से कुछ है| यह सूक्ष्म क्षेत्र अव्यवस्थित नहीं है, तरंगों से निर्मित पदार्थ जगत की तरह ही उसका भी सुनिश्चित और व्यापक अस्तित्व है| उसकी भी गतिविधियां चलती और प्रतिक्रियाएं होती हैं| अस्तु उसके भी अपने सुनिश्चित नियम विधान और अनुशासन होने का तथ्य भी स्वीकारना होगा| अंधेरगर्दी अराजकता मनमानी अदृश्य जगत में भी नहीं चलती है| अतः अदृश्य जगत के संबंध में भी यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि वहां किसी नियम अनुबंध नहीं है| *अंधेर नगरी अनबूझ राजा की युक्ति* सुनी तो जाती है पर देखी कहीं नहीं जाती| हर क्षेत्र के अपने-अपने नियम विधान अनुशासन है| अध्यात्म क्षेत्र भी उसका अपवाद नहीं हो सकता| ईश्वर की इस समूची कृति में कहीं भी अव्यवस्था नहीं है| यहां तक कि भूकंप तूफान जैसी अप्रत्याशित यदाकदा होने वाली घटनाएं भी प्रकृति के सुनिश्चित नियमों के अंतर्गत ही होती हैं, भले ही उन्हें हम अभी पूरा ना समझ पाए हूं| अतः अध्यात्म के सुनिश्चित विधान को समझकर ही हमें साधना पद्धति का चयन करना चाहिए |

ब्रह्मवर्चस की अति फलदाई चांद्रायण साधना -1


*ब्रह्मवर्चस की अति फलदाई चांद्रायण साधना*
अध्यात्म क्षेत्र की उच्चस्तरीय सफलताओं का सुनिश्चित
राजमार्ग

भौतिक क्षेत्र की सफलताएं योग्यता, पुरुषार्थ एवं साधनाओं पर निर्भर है। आमतौर से परिस्थितियां पद अनुरूप ही बनती हैं ।अपवाद तो कभी-कभी ही होते हैं। बिना योग्यता बिना पुरुषार्थ एवं बिना साधनों के भी किसी को खजाना गड़ा हाथ लग जाए या छप्पर फाड़ कर नरसी के आंगन में सोने की हुंडी बरसने लगे तो इसे कोई नियम नहीं माना जायेगा, इसे चमत्कार ही कहा जाएगा। वैसे आशा लगाकर बैठे रहने वाले, सफलताओं का मूल्य चुकाने की आवश्यकता ना समझने वाले, व्यवहार जगत में सनकी माने और उपहास पद समझे जाते हैं। नियति विधान का उल्लंघन करके उचित मूल्य पर उचित वस्तुएं खरीदने की परंपरा को झुठलाने वाली पगडंडियां ढूंढने वाले पाने के स्थान पर खोते ही होते रहते हैं। लंबा मार्ग चलकर लक्ष्य तक पहुंचने की तैयारी करना ही बुद्धिमत्ता है, यथार्थवादीता इसी में है। बिना पंखों के कल्पना लोक में उड़ान उड़ने वाले बहिरंग जीवन में व्यवहार क्षेत्र में कदाचित कभी कोई सफल हुए हो |

अध्यात्म क्षेत्र की सफलता का शॉर्टकट बताने वाले धर्म व्यापरियों से सावधान रहें। अध्यात्म में चमत्कार स्वतः होते नहीं करने पड़ते हैं। अध्यात्म की सफ़लता का सुनिश्चित विधान क्रमशः....

Sunday, 18 February 2018

*प्रश्न:- आनन्द प्राप्ति के वैज्ञानिक आधार तथ्य तर्क या प्रमाण देकर बताइये? जीवन आनंद के स्रोत की प्राप्ति का मार्ग बताइये*।

*प्रश्न:- आनन्द प्राप्ति के वैज्ञानिक आधार तथ्य तर्क या प्रमाण देकर बताइये? जीवन आनंद के स्रोत की प्राप्ति का मार्ग बताइये*।

उत्तर- इस प्रश्न के उत्तर को कुछ प्रश्नोत्तरी से समझते हैं:-

👉🏽*जीवन में हम क्या चाहते हैं?*
 🙏🏻आनन्द - परमानन्द।

👉🏽 *आनन्द का स्रोत कहाँ है?भीतर या बाहर?*
🙏🏻भीतर, क्यूंकि आनन्द की अनुभूति शरीर के बाहर नहीं बल्कि हृदय के भीतर होती है। कोई ऐसा नहीं कहता कि मेरे शरीर के बाह्य इस जगह में आनंद हो रहा है😊 चमड़ी में दर्द या खुजली हो सकती है लेकिन सुख-दुःख अनुभव नहीं होता।

👉🏽 *क्या आनन्द के परिमाण को किसी स्थूल वैज्ञानिक मशीन से मापा या परीक्षण जा सकता है?*
🙏🏻नहीं माप बिल्कुल नहीं सकते, हम सिर्फ़ हृदय के शांत होने पर मष्तिष्क की wave को कुछ हद तक ही read कर सकते हैं, इसी के आधार mental state बता सकते है।

👉🏽 *एक बच्चा गिर गया, लोग उठाये दवा लगाए, बच्चा फिर भी रोता रहा। मां आयी थोड़ा प्यार किया आँचल से मुंह पोछा और सीने से लगा लिया। बच्चा चुप हो गया। तो क्या मां के आंचल और गोदी की वैल्यू का वैज्ञानिक परीक्षण सम्भव है।*
🙏🏻नहीं वैज्ञानिक परीक्षण सम्भव नहीं, लेकिन ये समझा जा सकता है कि मां के हृदय की भाव सम्वेदना और प्रेम ने इलाज़ किया और बच्चे के हृदय में आनन्द पहुंचा, बच्चा चुप हो गया।

👉🏽 *एक प्रेमी ने प्रेमिका को पुष्प दिया, उसे पाकर वह आनंदित हुई, क्या उस पुष्प के वैज्ञानिक परीक्षण से कुछ पता चलेगा कि उस पुष्प में ऐसा क्या था जो प्रेमिका को खुशी मिली।*
🙏🏻नहीं वैज्ञानिक परीक्षण से कुछ हांसिल न होगा। पुष्प साधारण है एक जरिया मात्र है, वास्तव में प्रेम भाव ही प्रधान था जो उस पुष्प के माध्यम से आदान -प्रदान किया गया।

👉🏽 *क्या बाहर की कोई वस्तु को खाकर या पीकर या पाकर आनंद प्राप्त नहीं किया जा सकता*?
🙏🏻आनंद बाहर की वस्तु से नहीं मिलता। कुछ क्षणिक खुशी मिलती है, लेकिन जो वस्तु खाकर या पीकर ख़ुशी मिल रही है वो ज्यादा मिल जाये तो वही दुःख का कारण बन जाती है। जैसे रसगुल्ला पसन्द है एक दो खाया तो आनन्द मिला , लेकिन 20 से 50 खाने पर सज़ा बन जायेगा। इसी तरह कुछ चीज़ें थोड़ी तृप्ति नहीं देती, मिलते ही उससे ज्यादा पाने की लालच बढ़ती है जो वास्तव में दुःख का कारण बनता है, जैसे शराब, पदोन्नति, गाड़ी, बंगला, वैवाहिक रिश्ते की खुशी  इत्यादि।

👉🏽 *भक्त को स्थूल में देखो तो भगवान से कुछ ख़ास नहीं मिलता, लेकिन फ़िर भी भौतिक साधन संपन्न व्यक्ति से वो ज्यादा खुश और आनन्दित दिखता है? क्या इस आनन्द का वैज्ञानिक परीक्षण सम्भव है*?
🙏🏻नहीं वैज्ञानिक परीक्षण स्थूल वस्तु का हो सकता है, लेकिन भावना और आनन्द तो अनुभूति जन्य है इसे कैसे माप या परीक्षण कर सकते है? माना जाता है कि भक्त की भक्ति से भीतर का आनन्द श्रोत खुल जाता है, जो बाहर से न दिखे लेकिन जिसको पान करके वो आनन्दमग्न रहता है।

👉🏽 *आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ जीवन जीने और सांसारिक भौतिकवादी दृष्टिकोण से जीने में क्या फर्क है*?
🙏🏻 सांसारिक दृष्टिकोण स्वयं का भी भला नहीं करता, वो जिस डाली पर बैठा है उस को ही काटता रहता है। एक सेंटीमीटर की जीभ की तृप्ति हेतु पूरे शरीर को रोग का घर बनाकर नाना प्रकार की बीमारियों से ग्रसित रहता है। मन की तृप्ति में गुलामों की तरह लग रहता है, अशांत प्रेतात्मा की तरह भटकता रहता है। गाड़ी और घर मे एयरकंडीशनर होता है और दिलोदिमाग में वैचारिक प्रदूषण और गर्मी चढ़ी रहती है। बाहरी वैभव देखते बनता है लेकिन अन्तः कंगाली से ग्रसित रहते हैं । प्रकृति का दोहन तो करते हैं लेकिन प्रकृति संरक्षण की उपेक्षा करते हैं। जिससे अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए दुःख और रोग का साम्राज्य खड़ा करके जा रहे हैं, नई पीढ़ी को विरासत में दे रहे हैं श्वांस लेने को प्रदूषित वायु, प्रदूषित जल पीने को, जहरीला केमिकल मिला अन्न खाने को। धरती को कूड़े में तब्दील कर रहे हैं।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण कहता है जीव मात्र से प्रेम करो, स्वयं का भी भला करो और दूसरों का भी। प्रकृति से जितना लेते हो उतना लौटाओ। प्रकृति संरक्षण करो। आने वाली पीढ़ी को विरासत में अच्छा संसार दो रहने के लिए। क्योंकि लोककल्यानकी भावना सोचते हैं तो इनके भीतर का आनंद श्रोत खुल जाता है।प्रत्येक कर्म को ईश्वर प्रतिनिधि बनकर करते हुए आनन्दमग्न रहते है। ये उपासना-साधना-आराधना के त्रिशूल से अपने  समस्त दुःखों को नष्ट करते रहते हैं।

*निष्कर्ष* -आनंद की खोज बाहर नहीं भीतर अंतर्जगत में करनी होती है। परमानन्द को मूल्य देकर न ख़रीदा जा सकता  है न ही कोई दान दे सकता है। इसे मात्र स्वयं साधना करके  अंतर्जगत में प्रवेश करके अर्जित किया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

आध्यात्मिकता के विद्यार्थी जीवन में क्या लाभ है?लक्ष्य प्राप्ति में अध्यात्म कितना जरुरी है?

प्रश्न - *आध्यात्मिकता के विद्यार्थी जीवन में क्या लाभ है?लक्ष्य प्राप्ति में अध्यात्म कितना जरुरी है?*

(धन्यवाद भाई, आपके प्रश्न सटीक और समसामयिक हैं, युगऋषि के साहित्य अध्ययन अनुसार उत्तर देने में आनन्द अनुभूति हो रही है।)

*उत्तर* - *अध्यात्मिकता* - प्रतिभा परिष्कार(Skill/Telent Refinement) करती है, और अंतर्दृष्टि विकसित करके निज सामर्थ्य को आंककर उसी दिशा में बुद्धिबल का सही प्रयोग सुनिश्चित करती है।

*पाश्चात्य प्रभावित लक्ष्य(Goal)* - दो प्रकार का आजकल प्रचलित है, कैरियर के साथ सुख सुविधा और विवाह के साथ बच्चे।

वास्तव में ये शार्ट टर्म लक्ष्य है जो क्षणिक सुख दे सकते हैं, क्षणिक मोटिवेशन दे सकते हैं। ये लक्ष्य पशुवत जीवन पेट-प्रजनन निमित्त जीवन खपाने का है। वासनाएं-कामनाये दुष्पूर है बिन पेंदी का बर्तन है जो कभी भरेगा ही नहीं। अतः और ज़्यादा पाने का लालच/तृष्णा का प्रेत कभी चैन से नहीं बैठने देगा, तनावपूर्ण जीवन नशे की ओर धकेलेगा और पथ भ्रष्ट होने की संभावना बनी रहेगी। ऐसी स्थिति में संकुचित स्वार्थी दृष्टिकोण विकसित होता है।

पाश्चात्य प्रभावित लोग पढ़ाई मात्र क्लर्क/सेवक की सोच से करते हैं, नौकरी और सैलरी इससे ज्यादा कुछ नहीं।

यहां पशुवत जीवन जियेगा बालक। ईश्वर पर अविश्वास और आत्म सत्ता पर अविश्वास इन्हें चार दिन की जिंदगी खाओ पियो ऐश करो के सिद्धांत पर चलाएगी। ये मन के गुलाम बनेंगे।  इंद्रियों की गुलामी इनके शरीर को रोग से भर देगी। स्वाद के पीछे पागल होंगे और खाने के लिये जियेंगे।

शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच कस्टमर वेंडर का रिश्ता होगा, माता -पिता के साथ काम निकालो और आगे बढ़ो वाला रिश्ता होगा। समाज का दोहन  होगा। इनका वैवाहिक जीवन भी कलहपूर्ण होता है क्यूंकि अधिकार इन्हें याद होता है कर्तव्य भूल जाते है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*अध्यात्म प्रभावित जीवन लक्ष्य(Life Goal)* - अध्यात्म पूरे जीवन को एक प्रोजेक्ट की तरह लेने को कहता है। मनुष्य जीवन की गरिमा समझते हुए, स्व कल्याण के साथ साथ- मनुष्य के सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के प्रति उत्तरदायित्व के निर्वहन को प्रेरित करता है।

ऐसी स्थिति में एक वृहद दृष्टिकोण विकसित होता है, मनःस्थिति प्रबंधन का गुण विकसित होने से कैरियर प्राप्ति भी आसान हो जाती है। क्योंकि सामर्थ्य और समझदारी दोनो साथ साथ चलता है। भटकने की संभावना कम हो जाती है क्यूंकि तनाव प्रबन्धन और जीवन जीने की कला विद्यार्थी को आ जाती है। जॉब के वक्त भी वो बेहतर आउटपुट देते हैं, घर गृहस्थी आनन्दमय होती है और परिवार निर्माण पर ध्यान देते हैं।

अध्यात्म प्रभावित लोग पढ़ाई करके कुछ डिफरेंट करना चाहते है, जो भी करेंगे बेस्ट करेंगे। देश समाज की उन्नति भी उनके दिमाग में लक्ष्य निर्धारण के वक्त रहती है। सैलरी और नौकरी दोनों ही केस में रहेगी।

यहां देवमानव बन जीवन जियेगा बालक। शरीर को भगवान का मन्दिर मानकर आरोग्य की रक्षा करेगा, योग-प्राणायाम-जप-ध्यान-स्वाध्याय से शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का सम्वर्धन करेगा।ये मन के स्वामी बनेंगे। इंद्रियां वश में रखेंगे। स्वाद से ज्यादा स्वास्थ्यपरक चीज़े खाएंगे और स्वस्थ रहेंगे। जीने के लिए खाएंगे।

शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच गुरु- शिष्य का रिश्ता होगा, माता -पिता देवतुल्य पूजनीय होंगे , उनकी सेवा करेंगे बालक। समाज के कल्याण के लिए समयदान और अंशदान  होगा। इनका वैवाहिक जीवन आनन्दमय रहेगा क्यूंकि ये कर्तव्य याद रखेंगे और अधिकारों की उपेक्षा कर प्रेम-सहकार से जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखेंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday, 17 February 2018

मीनोपॉज के दौरान बरतें ये खास सावधानियां

*मीनोपॉज के दौरान बरतें ये खास सावधानियां!*

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने इस बारे में कहा कि पेरीमीनोपॉज के लक्षण हर किसी में अलग होते हैं, जिनमें अनियिमित अत्यधिक रक्तस्राव, अनिद्रा, रात को पसीना आना, खराब पीएमएस, माइग्रेन, वेजीनल ड्राइनेस और पेट का मोटापा बढ़ना आदि समस्याएं होती हैं. इसके अलावा महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य में भी बदलाव आते हैं."

उन्होंने कहा कि हार्मोन में बदलाव से बेचैनी, अवसाद, चिड़चिड़ापन और तेजी से मूड बदलने जैसे लक्षण हो सकते हैं. कई महिलाओं को सीने में दर्द या धुड़की लगना आदि समस्याएं होती हैं. ऐसा लगातार होने पर डॉक्टर से राय लेना आवश्यक होता है."

डॉ. अग्रवाल कहते हैं, "सेहतमंद खानपान और अच्छी नींद इसका सबसे बेहतर हल है. गंभीर मामलों में गोली, स्किन पैच, जैल या क्रीम के रूप में एस्ट्रोजिन थैरेपी से इलाज किया जाता है. आम तौर पर पेरीमेनोपॉजल और मेनूपॉजल हॉट फ्लैशेस और रात को आने वाले पसीने के इलाज के लिए इनका प्रयोग किया जाता है. उचित तरीके से हड्डियों के नुकसान को रोकने में एस्ट्रोजन मदद करता है."

उन्होंने बताया कि योग और सांस की क्रियाएं कम खतरे वाले इलाज हैं, जो इन स्थितियों में तनाव घटाते हैं और इस बीमारी को रोकने में मदद करते हैं. इन स्थितियों में हर्बल और डाईट्री सप्लीमेंट लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए."

इन बातों पर करें गौर  और  अपनाएं:

*पूर्णिमा के चांद का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र का जप करें, चन्द्र गायत्री मंत्र की एक माला नित्य पूजन में सम्मिलित कर लें ।*

 *रोज नादयोग अवश्य सुने शीतल चन्द्रमा की किरणों से स्वयं को स्नान करते हुए महसूस करें।हार्मोन असंतुलन में यह अवसाद से राहत देने में मददगार होगा*

*हर रोज 10 मिनट प्राणायाम और 20 मिनट तक व्यायाम करें. हार्मोन असंतुलन में यह अवसाद से राहत देने में मददगार होगा*

*20 मिनट अच्छी पुस्तको का स्वाध्याय करें*

*अगर धूम्रपान करते हैं तो छोड़ दें, क्योंकि इससे रक्तचाप बढ़ता है और दिल की समस्याओं को प्रोत्साहित करता है*

*हर रोज अच्छी नींद लें, योगनिद्रा का अभ्यास करें*

*संतुलित वजन बनाए रखें*

*आहार में कैल्शियम की उचित मात्रा लें. केला, पालक और नट्स काफी अच्छे विकल्प हैं, नित्य दूध अवश्य पियें*

*कोई भी सप्लीमेंट या मल्टीविटामिन लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लें*

🙏🏻 परिवार के अन्य सदस्यों को इस समय स्त्री का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस समय  बदलते हार्मोन्स और बदलती शारीरिक स्थिति  उस स्त्री उग्र, अशांत और व्यग्र कर देती है, जिसके  कारण चिड़चिड़ापन  होता है,  इस कारण स्वयं को सम्हालने में कभी कभी असमर्थ हो जाती है। अतः धैर्य के साथ स्त्री को सम्हाले।  स्त्री अपने पति के सहयोग से ही इस अवस्था में सम्हलना सम्भव हो पाता है।🙏🏻

प्रश्न:- धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं या विरोधी?

*प्रश्न:-  धर्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं या विरोधी?*

धन्यवाद भैया, आपने मुझे इस प्रश्न के योग्य समझा।

उत्तर - शक्ति के बिना शिव शव है, धर्म के बिना विज्ञान शव है।

🙏🏻🙏🏻 *धर्म*- अर्थात कर्तव्यों की लिस्ट सूची जो आत्मकल्याण के साथ साथ लोकल्याण के लिए विश्व कल्याण के लिए करना चाहिए। a complete do & don't list for human being... सही दिशा, सही दृष्टिकोण देने वाली व्यवस्था, भटकाव से बचाने वाली व्यवस्था। उदाहरण स्व धर्म, राष्ट्र धर्म, परिवार धर्म इत्यादि।

🙏🏻 *अध्यात्म* - अर्थात आत्मा का अध्ययन करने वाली ऋषि परम्परा व्यवस्था। आत्मउत्कर्ष हेतु विभिन्न साधनाएं, आत्म बल - ब्रह्म बल प्राप्ति के उपाय , सूत्र, आध्यात्मिक वैज्ञानिक तात्विक विवेचन। स्वयं को जानने का पूर्ण विज्ञान और साथ ही पूर्ण समाज के उपचार और सम्वर्धन की प्रक्रिया।आध्यात्मिक शशक्त यन्त्र-उपयंत्र तकनीक के उदाहरण - गायत्री मन्त्र जप, महामृत्युंजय जप, यज्ञ, वेदमन्त्रों के विभिन्न प्रयोग, बीज मंत्र,विभिन्न ध्यान, योग, श्वांस के विभिन्न प्राणायाम, चन्द्रायण कल्प साधना,पँचकोशिय साधना,षठ चक्र बेधन, ब्रह्म ग्रन्थि बेधन, यज्ञ एक समग्र उपचार इत्यादि।

धर्म दर्शन है और अध्यात्म एक पूर्ण विज्ञान है। अध्यात्म की कोई भी प्रक्रिया अपनाएंगे त्वरित या कुछ समय बाद परिणाम आकर रहेगा।

🙏🏻 *विज्ञान* - (विज्ञ अर्थात बुद्धिमान) व्यक्ति अपने ज्ञान को परीक्षण तथ्य तर्क प्रमाण के आधार पर अनुसन्धान करके जन सामान्य के लिए प्रस्तुत कर उसे विज्ञान कहते हैं। विज्ञान के दो भाग हैं - एक मूल्य द्वारा खरीदकर विज्ञान का उपभोग करना और दूसरा उन प्रोसेस को follow करके, उसमें समय श्रम लगा के उसका अर्जन करना।

उदाहरण - टीवी आप खरीद सकते हो, लेकिन टीवी के सिस्टम को रिपेयर करने हेतु ज्ञान अर्जन करना  पड़ेगा। यही बात कार खरीदने और उसके निर्माण के ज्ञान और उसके चलाने के ज्ञान के सम्बन्ध में भी है।

विज्ञान का प्रोडक्ट शव है, यानि निर्जीव है। उसे एक जीवित विज्ञ(बुद्धिमान) चेतना अपने ज्ञान से बनाती है, और दूसरी चेतना उसका उपयोग करती है।

😇😇अब निर्माण करने वाली और उपभोग करने वाली चेतना को सद्बुद्धि युक्त आध्यात्मिक हुई और ईश्वरीय सृष्टि के सृजन में सहयोगी हुई तो यह विज्ञान प्राणिमात्र के लिए लाभकारी होगा। उदाहरण चिकित्सा के क्षेत्र की मशीनें और ज्ञान जिनसे जीवन बचता है सृजन होता है। बारूद जो पहाड़ को तोड़कर राश्ता बनाता है,मानव श्रम बचाएगा। वैदिक यज्ञ प्राण प्रजन्य की वर्षा करता है, सृष्टि का समग्र उपचार होगा, समस्त सृष्टि का कल्याण होगा। गायत्री मन्त्र और महामृत्युंजय मन्त्र के प्रयोग से लोगों की चेतना में ऊर्जा उतपन्न किया जाएगा। सद्बुद्धि और लोककल्याणार्थ काम करने वाली चेतना विज्ञान को धर्म का सहयोगी बना देगी। धर्म के उपदेशक जनजागृति करके युगनिर्माण करेंगे।

😈👹अब निर्माण करने वाली और उपभोग करने वाली चेतना को दुर्बुद्धी युक्त विकृत चिंतन युक्त स्वार्थी हुई और ईश्वरीय सृष्टि के विध्वंस में स्वार्थ प्रेरित हो लगी तो यह विज्ञान प्राणिमात्र के लिए विनाशकारी होगा। उदाहरण चिकित्सा के क्षेत्र की मशीनें और ज्ञान मानव अंग का व्यापार कर पैसा कमाने में लगेगा। बारूद से आतंकवाद फैलाकर मानव हत्या होगी है।यज्ञ के तांत्रिक प्रयोग से मारण उच्चाटन होगा है समस्त सृष्टि का विनाशकारी उपक्रम होगा ।मन्त्र विनाशकारी शामक डाबर मारण मोहन उच्चाटन से आतंकी निर्माण में लगेंगें। अधर्म और दुर्बुद्धी विनाशकारी परिणाम हेतु उसी विज्ञान को धर्म का विरोधी बना देगा। अधर्मी धर्म के व्यापारी खड़े कर देगा।

*निष्कर्ष* - विज्ञान एक शशक्त टूल चाकू की तरह है, यह निर्भर करता है कि इसके उपयोग करने वाले लोगों पर...
😇
यदि धार्मिक होंगे तो फल काटकर खाएंगे, चिकित्सक है तो रोग उपचार हेतु ऑपेरशन में लेंगे।
😈
यदि अधार्मिक हुए तो चाकू से जीव हत्या कर मांस भक्षण करेंगे, चाकू दिखाकर लूटपाट करेंगे, अंगव्यापर के लिए चाकू उठाएंगे।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
चाकू और विज्ञान दोनों निर्दोष, पापमुक्त और उपयोगी हैं। इसके उपयोग करने वाले कि मानसिकता और भाव इसे धर्म का सहयोगी या विरोधी बनाते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Friday, 16 February 2018

अध्यात्म प्रश्नोत्तरी

*दी, कुछ ढेर सारे प्रश्न हैं लेकिन सबका कृपया समाधान दें..*

भाई प्रश्न के उत्तर मैं अपने अनुभव के अनुसार दे रही हूँ, यही 100% सत्य है इसे मैं नहीं कह सकती। गुरुदेव के साहित्य का अध्ययन करती हूँ , उसी से जो मैंने समझा उसी के अनुसार उदाहरण सहित उत्तर दे रही हूँ।आपके प्रश्न गूढ़ हैं फिर भी उत्तर देने का प्रयास कर रही हूँ।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
प्रश्न - *उच्चस्तरीय साधनाओं के लिए क्या जंगल जा कर एकांत में तपस्या ज्यादा फलवती होती है या संसार मे गृहस्थ में रहकर?*

उत्तर - *गृहस्थ भक्त सन्यासी से ज्यादा श्रेष्ठ बताया गया है, यदि वो जनक की तरह राज्य होते हुए विरक्त है तो वह सन्यासियों से श्रेष्ठ है। युगऋषि की तरह लोककल्याणार्थ तप कर रहा है तो वो सन्यासियों से श्रेष्ठ लाभ प्राप्त करेगा..*

नारद और विष्णु भगवान का संवाद प्रसिद्ध है, जिसमें नारद जी और अन्य सन्यासियों को विष्णु भगवान ने जनक के पास भेजा था। जनक ने तेल का कटोरा देकर राज्य घुमाया और कहा एक बूंद गिरी तो सर धड़ से अलग कर देना। कोई भय वश कुछ देख ही नहीं पाया। तब जनक ने कहा मैं आत्म तत्व पर अंतदृष्टि केंद्रित करके राज्य करता हूँ। इसलिये देह रहते हुए भी विदेह हूँ, राज्य रहते हुये भी सन्यासी।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
प्रश्न - *उच्चस्तरीय योग साधना में शरीर के स्वास्थ्य और रखरखाव का कितना महत्त्व है? विभिन्न शारीरिक योग या अष्टांग योग का कितना महत्त्व है?*

उत्तर- *शरीर का स्वास्थ्य उच्चस्तरीय साधना में सहायक है, लेकिन जरूरी नहीं है। बिना शारीरिक योग साधना के भी गुरुभक्ति के सहारे उच्च स्तरीय साधना सम्भव है। चेतना के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सकता है।*

जनक के गुरु अष्टावक्र के पिता ने उन्हें आठ जगह से टेढ़े होने का श्राप दिया जिसके कारण वो अष्टांग  योग न कर पाएं। लेकिन भला आंगन के टेढ़े होने से आकाश टेढ़ा होता है। साधना तो वास्तव में मन का सूक्ष्म भाग करता है जो स्थूल से जुड़ा नहीं। आत्म तत्व दर्शन हेतु अंतर्जगत में प्रवेश कर उच्च स्तरीय साधना हेतु शारीरिक क्षमता की भला क्या आवश्यकता ? अंतर्जगत में वाहन और शारीरिक पैरों की क्या आवश्यकता? अष्टावक्र और विवेकानंद की तरह उच्च स्तरीय साधनाएं सूक्ष्म स्तर पर सम्भव है😇। अष्टवक्र आठ जगह से टेढ़े थे , विवेकानंद और ठाकुर रामकृष्ण विभिन्न रोगों से ग्रसित थे। लेकिन उनके आत्मचेतना शिखर पर थी।

प्रश्न- *गुरुभक्ति बड़ी है या उच्चस्तरीय साधना*?

उत्तर - *गुरुभक्ति बड़ी है, जब भी कोई अवतारी चेतना भी जन्म लेती है तो गुरु वरण करती है। संदीपन जी कृष्ण जी के गुरु थे और वशिष्ठ जी श्रीराम चन्द्र जी के गुरु थे। गुरुदीक्षा में एकमात्र मन्त्र गायत्री मंत्र ही दिया जाता था। उच्चस्तरीय साधना में अतिमानसिक अंतर्जगत की यात्रा में सद्गुरु ही मदद कर सकता है, जिसने स्वयं सवा करोड़ गायत्री जप करके तुम्हारे साथ तुम्हारे अंतर्जगत में प्रवेश कर तुम्हारी चेतना को ऊपर उठा सके।*

अनाथ भी जीते है और एक समर्थ पिता के संरक्षण में एक पुत्र भी। जी तो दोनों रहे हैं,बस यही फर्क है बिना सदगुरु की साधना अर्थात साधना क्षेत्र में अनाथ की भांति प्रवेश करना। समर्थ सद्गुरु के साथ साधना क्षेत्र में प्रवेश करना अर्थात समर्थ पिता की जायज़ उत्तराधिकार के साथ शान से साधना क्षेत्र में प्रवेश करना।
🙏🏻🙏🏻
प्रश्न - *कोष क्या है? पँचकोशिय क्या है?*

उत्तर - *कोष अर्थात खज़ाना, पांच ख़ज़ानों की चाबी मिल जाना और उन्हें प्राप्त करने का अधिकार मिलना। क्रमशः अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्द मय कोष। ख़ज़ाने की खोज कभी आसान नहीं होती ये ध्यान रखें।*

आपने बहुत सारे प्रश्न भेजे हैं, इनके उत्तर कल दूंगी। आज के लिए इतना ही।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
*अध्यात्म में और धार्मिकता में यही अंतर है कि-*

धार्मिक व्यक्ति स्वयं के मार्ग को श्रेष्ठ दूसरे को गौंड़ बताता है।

अध्यात्म कहता है सब मार्ग उस तक पहुंचेंगे बस भाव सही रखके श्रद्धा विश्वास से प्रयत्नशील रहें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Thursday, 15 February 2018

धार्मिक कर्मकांड की जरूरत क्यों?

*प्रश्न - दीदी, एक जगह धार्मिक प्रवचन में गया था तो प्रवचन देने वाले वक्ता ने कहा - यदि मन पूर्णतया पवित्र हो जाए तो जीवन मे गुरु की कोई आवश्यकता नहीं। गुरु के चरण और कुत्ते के चरण में कोई फ़र्क नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि मन पवित्र हो तो हिन्दू धर्म प्रतीक चिन्हों तिलक, जनेऊ और शिखा का कोई महत्त्व नहीं। उनका आकर्षक व्यक्तित्व था, टेक्निकल example दे रहे थे। मुझे बहुत गुस्सा आ गया इस बात पर और लग रहा था कुछ बोल दूं। मैं एक बी ए फाइनल ईयर कॉलेज स्टूडेंट हूँ, कृपया मेरी शंका का समाधान करें...*

उत्तर - आत्मीय भैया, मुझे खुशी है कि इस प्रश्न के उत्तर देने योग्य आपने मुझे समझा।

धार्मिक प्रवचन का जनरल वाक्य एक ऑपरेशन के लिए पेट को खोलने जैसा है,यदि समय पर घाव की सिलाई उचित मार्गदर्शन देकर न हुई तो सेप्टिक हो सकता है,मरीज अर्थात श्रोता को जान का ख़तरा भी हो सकता है।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव ने अशरीरी सदगुरु का मार्गदर्शन लिया। सद्गुरु के शरीर रहने न रहने से फर्क नहीं पड़ता। उनकी चेतना से ईश्वर की तरह ही जुड़कर मार्गदर्शन मिलता है। सद्गुरु बहुत जरूरी है जीवन के लिये अब वो शरीरी हों या अशरीरी। गुरु के बिना अन्तः ज्ञान तक स्वयं पहुंचना दुष्कर है।

प्रवचन कर्ता ने बुद्ध का उदाहरण दिया- तो क्या हम और आप घर गृहस्थी पढ़ाई जॉब सब कुछ छोड़कर, अन्न जल त्याग कर, नींद छोड़कर जंगल मे कई वर्षों तक एक आसन एक मुद्रा में तपस्या कर सकते हैं क्या? यदि उत्तर नहीं है तो सद्गुरु जीवन में चाहिए।

कोई साधना जंगल के फल और हिमालय का जल पीकर प्रदूषण रहित वायु द्वारा श्वांस लेकर करने में और घर गृहस्थी के झंझट में, जॉब पढ़ाई के बीच टेंशन में, प्रदूषित वायु श्वांस लेकर, प्रदूषित जल पीकर, केमिकल लगा फल खाकर ध्वनि प्रदूषण के बीच क्या एक जैसा परिणाम देगी?

प्रवचनकर्ता अपने गुरु के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में स्वस्थ शुद्ध आश्रम व्यवस्था में हिमालय में की एकांत साधनाओ को घर गृहस्थी जॉब पढ़ाई वालों को सिखाकर एक जैसे परिणाम की गारंटी कैसे दे सकते है?

जो रात दिन सोता ही न हो उसे घड़ी में अलार्म लगा के उठने की आवश्यकता नहीं,लेकिन जो व्यक्ति सोता है उसे अलार्म की जरूरत पड़ेगी।

प्रवचनकर्ता सिर्फ साधना में रत हैं, उन्हें ऑफिस नहीं जाना होता, पढ़ाई नहीं करनी होती, रोज सुबह नाश्ते में क्या बनेगा इसकी टेंशन नहीं है,और रिश्तेदारों की शादी में गिफ्ट क्या देना है ये भी टेंशन नहीं। कुँवारी बहन के विवाह की चिंता नहीं तो वो मन पवित्र (अर्थात विकार मुक्त ) कर सकते है। अतः  उन्हें हिंदुओ के पवित्र चिन्हों की भी आवश्यकता न हो।

🙏🏻तिलक (अर्थात बुद्धि रथ पर गुरुदेव को बिठाना) ऐसे काम करना जिससे सर्वत्र सम्मान मिले। शिखा - में मां गायत्री की स्थापना करना अर्थात मन में सद्विचारों-सकारात्मक एनर्जी की एंट्री करना और कुविचारों और नकारात्मक को बाहर कर देना। जनेऊ के तीन धागे में माँ गायत्री की त्रिपदा शक्ति को धारण करना। ये सब अलार्म घड़ी की तरह रिमाइंडर है जो सद्गृहस्थ का मार्गदर्शन करते है उन्हें अध्यात्म पथ से भटकने से बचाते हैं। राह के मार्ग बताने वाले सूचक की उसको अत्यंत आवश्यकता है जो सफर कर रहा है। हम सब अध्यात्म पथ के पथिको को इसकी आवश्यकता है।

जो हिमालय के शिखर पर बैठा  हो, जिसे कहीं जाना नहीं उन्हें किसी मार्ग सूचक की आवश्यकता नहीं है। अतः हो सकता है इन धार्मिक चिन्हों की उन्हें आवश्यकता न हो।

अब समझते हैं कि मन पवित्र हो तो कुत्ते के चरण और गुरु के चरण में कोई फर्क नहीं। सबसे पहले समझो मन पवित्र अर्थात विकारों से मुक्त, कण कण में परमात्म बोध हो, उदाहरण भक्त नामदेव की तरह, जो ब्रह्म राक्षस और कुत्ते के अंदर भी ब्रह्म देख सकते हैं। रोटी कुत्ता ले गया तो बोले प्रभु घी तो लगा लो, कुत्ते में परब्रह्म मिल गया।

तो मन की स्वयं की पवित्रता चेक कैसे करोगे? क्या कुत्ते में परब्रह्म दिखता है? रोड के चलते किसी गन्दे कुत्ते के साथ भोजन कर सकते हो? यदि भेद बुद्धि है तो मन पवित्र नहीं । यदि मन पवित्र नहीं हुआ। अर्थात चेतना  के शिखर पर नहीं हो। यदि चेतना के शिखर पर नहीं हो तो अर्थात अध्यात्म के पथिक हो और सफर कर रहे हो। यदि सफर में हो तो मार्ग सूचक चाहिए , कर्मकांड चाहिए और उससे जुड़ी प्रेरणाएं भी ग्रहण करना चाहिए।

😇युगऋषि गृहस्थ की समस्या को समझते थे, इसलिए उन्होंने ने सहज गायत्री उपासना पद्धति (जप और ध्यान) बताया। साथ ही आत्म सुधार साधना हेतु स्वाध्याय-आत्म बोध-तत्व बोध की साधना बताई। क्योंकि समाज का प्रभाव तुम पर है और तुम्हारा प्रभाव समाज पर है तो आराधना बताई- यज्ञ एक समग्र उपचार सरल हवन विधि बताई। सप्त आंदोलन से जोड़कर युगनिर्माण योजना दी, जिस समाज मे रह रहे हो उसे सुधारो और आनन्दमय जीवन यहां भी उपभोग करो और गायत्री साधना से ब्रह्मलोक भी प्राप्त करो। गुह्य साधनाएं भी बताई - प्रसुप्ति से जागृति की ओर भी। लेकिन सब क्रमबद्ध तरीके से।

अतः वक्ता अपनी योग्यता के अनुसार भाषण दे रहा है लेकिन श्रोता की अपनी लिमिटेशन हैं यहभी समझना जरूरी है।

👉🏽एक सांसारिक उदाहरण जिसमें चमत्कार जैसा कुछ नहीं लेकिन फिर भी चमत्कार जैसा लगता है:-
अरुणिमा एवरेस्ट नकली पैर से चढ़ गई आत्मबल से वो कोई साधक नहीं है। सांसारिक सफलता पुरूषार्थ से प्राप्त की।

जीने की चाहत ने उसे बिना बेहोशी के दवा और ब्लड के अपनी आंखों के सामने पैर काटने और ऑपरेशन देखने की परिस्थिति जैसे कठिन संकट को सहने की हिम्मत दी। ईश्वर उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है।

लेकिन यदि सुखमय परिस्थिति में हॉस्पिटल में सब सुविधा होते हुए, क्या वो इस दर्द के मंजर को होश में देखना चाहती? मजबूरी में मजदूर जितनी मेहनत करता है यदि वो बड़ा आदमी बन जाये और सुखमय परिस्थिति में वो क्या वैसी मेहनत करेगा?

मजबूरी और बिना मजबूरी में फर्क है। यह अध्यात्म और संसार दोनो पर लागू होता है। जंगल और आश्रम मे जहाँ कोई स्वाद् के ऑप्शन मौजूद नहीं वहां मन को नियन्त्रण में करने, और घर गृहस्थी मे सर्व सुख साधन स्वाद् के बीच करने में फर्क है। ये समझिए, सद्गृहस्थ का सहज तप और भक्तियोग जंगल मे रहने वाले योगी के कठिन तप के समान फलीभूत होता है।

अतः विवेक से काम लेते हुए साधना करें, संगीत के वाद्य यंत्र की तरह जीवन है, न इसे इतना कसो की तार टूट जाये और न इतना ढीला छोड़ो की बेसुरा हो जाये। सही मायने में गुरुदेव कहते हैं संसार और अध्यात्म में संतुलन ही अध्यात्म है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यदि और कोई जिज्ञासा हो तो अवश्य पूंछे..

Wednesday, 14 February 2018

भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा

*भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा*

(कॉलेज में गपशप चल रही होती है, सब मूवी देखने का प्लान बनाते हैं)

*रवि* - प्लीज़ सब अपना नाम कन्फर्म करो, जिससे टिकट बना लूँ। फिरोज, गिरी और कोमल ने कल ही कन्फर्म कर दिया था।

*तृप्ति* - हांजी मेरी और रानी का तो कन्फर्म है।

*महेश* - मेरा भी..

*ईषना* - सॉरी, मैं कल नहीं आ पाऊंगी, कल मुझे एक स्कूल जाना है मासी के साथ ।

*तृप्ति* - किसका एडमिशन करवाने? मासी के बेटे का?

*महेश* - लेकिन वो ऑलरेडी शेलोम में पढ़ रहा है? क्या स्कूल चेंज करवा रहे हो?

*ईषना* - अरे नहीं बाबा, एडमिशन के लिए नहीं जा रहे। हम लोग अखिल विश्व गायत्री परिवार के सदस्य हैं, स्कूलों में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के आयोजन हेतु बात करने जारहे हैं।

*तृप्ति* - अरे, ये कौन सी परीक्षा है? और इसे कौन ऑर्गनाइज करवाता है और क्यूँ? इसका फायदा क्या है?

*ईषना* - इसे अखिलविश्व गायत्री परिवार पूरे भारत मे ऑर्गनाइज करवाता है। हमारे जैसे कार्यकर्ता इसमे सहयोग करते हैं और प्रतिवर्ष लाखों बच्चे इसमें भागीदारी करते हैं।

*रवि* - वो तो ठीक है, लेकिन कोई स्कूल अपने यहां यह परीक्षा क्यूँ करवाएगा?

*ईषना* - देखो, यदि तुम फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान इत्यादि देशों में जाकर -उनके स्कूली पाठ्यक्रम को देखोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि सभी देश में अपने बच्चों में राष्ट्रीयता का भाव जगाने के लिए और उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए बचपन से ही अपनी संस्कृति पढ़ाते है। सभी बच्चों को अपने देश के हीरो, कवि, वैज्ञानिक, अविष्कार इत्यादि के साथ सभ्यता संस्कृति पता है। लेकिन हमारे देश के बच्चों को नहीं पता...

क्यूंकि दुर्भाग्यवश, हमारे देश पर अंग्रेजों ने शासन किया। गुलाम देश मे जन्मे लोग देश की आज़ादी के लिए लड़े। विदेशों में जाकर पढ़ के आये। क्यूंकि ये विदेशों में पढ़े तो इन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान ही नहीं था और इन्होंने ने ही संविधान के साथ स्कूली पाठ्यक्रम बनाया, वक्त इनके पास ज्यादा था नहीँ और देश तुरन्त आज़ाद हुआ था तो पाश्चत्य को पूरा का पूरा कॉपी पेस्ट करके स्कूली पाठ्यक्रम बना दिया।

इसके कारण क्या हुआ कि बच्चे साक्षर तो हुए लेकिन सार्थक नहीं बने। ज्ञानवान हुए लेकिन गुणवान नहीं हुए। अंग्रेजी शिक्षा ने बच्चों की देश के प्रति जिम्मेदारी का भाव और आत्मीयता का भाव ही खत्म कर दी, माता पिता के प्रति सम्मान खत्म कर दिया और भरतीय संस्कृति के ज्ञान को भुला कर, उनके अंदर से राष्ट्र भक्ति खत्म कर दी, और उनमें कायरता गढ़ दी। पेट प्रजनन के लिए नौकरी की मानसिकता गढ़ दी। आज हम सर्विस इंडस्ट्री में आगे हैं, हम फ़िल्म, टीवी सीरियल, विज्ञापन में हॉलीवुड की कॉपी कर रहे हैं, टेक्नोलॉजी में भी कॉपी कर रहे हैं, प्रत्येक क्षेत्र में कॉपी चल रहा है, नकल में बेस्ट हो गए हैं।

*ऋत्विज* सहमत हूँ, जो भारत देश विज्ञान और धर्म के इनोवेशन से दुनियां पर राज्य कर रहा था, आज उसी देश मे इनोवेशन कहीं नहीं दिखता। इजरायल और जापान जैसा छोटा सा देश भी इनोवेशन में भारत से आगे है।

हमारे पास दुनियां के सर्वश्रेष्ठ ब्रेन है, लेकिन घर से लेकर, स्कूल, कॉलेज, राजनीति, फ़िल्म इंडस्ट्री और  कॉरपोरेट तक सर्वत्र कॉपी पेस्ट पाश्चात्य का चल रहा है।

कुछ देशभक्त लोग जुट गए हैं इसे बदलने में...

*ईषना* -इसका कारण है, यदि बच्चा स्कूल में सुभाषचंद्र बोष, भगत सिंह, महाराणा प्रताप, विवेकानंद, महर्षि अरविंद और शिवाजी को पढ़ेगा तब तो देश भक्ति जगेगी। पाश्चात्य वीरों को पढ़कर वो अपने देश की संस्कृति न समझ सकेगा।

*महेश* - यह बात तो सत्य है, इतने इतने महान कवि, वैज्ञानिक, दार्शनिक, वीर योद्धा, योग गुरु अपने देश मे हुए लेकिन इस देश के पाठ्यक्रम में उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाता।

*महेश* - उस दिन भगत सिंह की फ़िल्म देखा तो सचमुच जोश आ गया देश के लिए कुछ कर गुजरने का।

*रवि* - हां एक दिन मैंने गूगल किया तो पता चला कि कितनी सारी चींजे भारत की देन है लेकिन हम लोगों को कभी न पढ़ाया गया और न ही बताया गया।

*महेश* - अगर हमारे देश ने ज़ीरो (0) और दशमलव (.) न दिया होता तो सोचो क्या वर्तमान गणित कोई अस्तित्व रहता। विवेकानन्द के ज्ञान का तो विश्व मे कोई समानता नहीं कर सकता।

*तृप्ति* - हां, देखो न प्राचीन ऋषि पूरे के पूरे रिसर्चर वैज्ञानिक थे। एक दिन डिस्कवरी चैनल में देख रही थी कि शल्य चिकित्सा का उद्गम भारत से ही हुआ है। सचमुच गर्व होता है जब ये सब पता चलता है।

*ईषना* - लेकिन यह सब देश के बारे में पता ही न चले तब, क्या गर्व करोगे? रवि ने अगर गूगल न किया होता और तुमने यदि तुमने डिस्कवरी न देखी होती और महेश ने भगतसिंह की फ़िल्म न देखी होती तो क्या देश पर गर्व होता? क्या ये सब बच्चो को बचपन से नहीं पढ़ाया जाना चाहिए?

ख़ुद ही सोचो, हमारे देश का वो युवा जो नशे में चार बोतल वोद्का का गाना गाता हो,लड़कियों को देख  के सिटी बजाता हो उससे देश भक्ति या राष्ट्र निर्माण की उम्मीद की जा सकती है?

देश की वो लड़कियां जो सजने संवरने के पीछे पागल है, अंग प्रदर्शन में व्यस्त है, पार्टी क्लब और फैशन जिनके लिए सब कुछ है इनसे देश का भविष्य संवारने की उम्मीद क्या की जा सकती है?

ये सब कुकर्म पाश्चत्य की ही देन है, पशुवत जीवन की खुली छूट ही आधुनिकता का पर्याय बन गया है। इस आधुनिकता ने देशभक्ति को निगल लिया है।

*ऋत्विज* - बात तो सही है सब एक अच्छी जॉब, एक घर, शादी, बच्चे और खुद की मौज मस्ती के अतिरिक्त कुछ नहीं सोच रहे। मां-बाप की ही परवाह नहीं, तो देश भक्ति क्या होगी?

*महेश* - वो सब तो ठीक है लेकिन हम सरकार में नहीं है न ही हमारे पास स्कूली पाठ्यक्रम बदलने का अधिकार है।

*ईषना* - हम शिक्षा व्यवस्था तो नहीं बदल सकते, लेकिन कुछ तो जरूर कर सकते हैं। हम स्वयं भारतीय संस्कृति के मूलभूत सिद्धांत और भारत द्वारा दिये विश्व को अजस्र अनुदान पढ़के कुछ बच्चो को तो पढ़ा ही सकते हैं बाल सँस्कार शाला चला कर, भारतीय संस्कृति परीक्षा स्कूलों में आयोजित करवा के थोड़ा बहुत तो बच्चो के अंदर राष्ट्र के प्रति गौरव भर ही सकते हैं। युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, और भारतीय संस्कृति के प्रकाण्ड विद्वान। उन्होंने भारतीय संस्कृति के ज्ञान-विज्ञान को 3200 पुस्तकों में लिखकर हम सबको फ्री ऑनलाइन उपलब्ध करवाया है। प्रिंटिंग मूल्य पर खरीद भी सकते हो। उन्हीं की युगनिर्माण योजना का एक अंश भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा है।

*रवि* - ईषना मैं भी कल फ़िल्म देखने नहीं जाऊंगा। तुम्हारे साथ भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा को समझूंगा और कम से कम एक स्कूल में तो भारतीय संस्कृति परीक्षा जरूर करवाऊंगा।

(सब रवि के लिए ताली बजाते है, और सभी एक एक  स्कूल में भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा करवाने का संकल्प लेते हैं। सब एक साथ बोल पड़ते हैं- अब इस देश मे पुनः इनोवेशन शुरू होगा। देखो नौकरी हम सब तो करेंगे ही गुजारे के लिए, लेकिन कुछ न कुछ देश के लिए इनोवेटिव भी जरूर करेंगे। इस गर्मी की छुट्टी में बाल सँस्कार शाला भी चलाएंगे। खुद भी भारतीय संस्कृति को समझेंगे और कुछ बच्चो को भी समझाएंगे।)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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http://www.balsanskarshala.com

Tuesday, 13 February 2018

धरती के अन्नदाता किसान की जय

*धरती के अन्नदाता किसान की जय!*

(एक कम्पनी के कुछ एम्प्लोयी का ग्रुप शहर की भाग दौड़ से ऊबकर पिकनिक मनाना तय करता है, सभी अपने जीवन साथी और बच्चों के साथ एक फार्म हाउस आते है। दूसरे दिन सब बैठकर खेल करते हैं उसी वक़्त चर्चा होती है कि कौन सा कार्य सबसे बड़ा है?)

*रवि* - मेरे हिसाब से चिकित्सक  सबसे ज्यादा सम्माननीय है क्योंकि मानव जीवन बचाता है।

*मोहन* - इंजीनियर, क्यूंकि जीवन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस देकर आसान बनाता है।

*मैत्री* - अध्यापक, क्योंकि मानव गढ़ने की टकसाल है। इनके हाथों में देश का भविष्य है।

*तृप्ति* - वैसे वकील भी सम्मानीय हैं, क्योंकि कानून व्यवस्था और न्याय में यही मदद करते हैं।

*मोहित* - यह सब तो ठीक है, कि सबकी अपनी अपनी अहमियत है लेकिन इन सबमें सर्वश्रेष्ठ और सम्माननीय कौन हुआ?

*ईषना* - मैं अपना मत बताने से पहले कुछ प्रश्न पूंछना चाहती हूँ? कि आप सब अपने बच्चों को क्या बनाना चाहते हो?

(कोई MBA कराके मैनेजमेंट में बच्चों के कैरियर बनाने की बात करता है, कोई डॉक्टर, कोई इंजीनियर, कोई बिज़नेस मैन, कोई अध्यापक इत्यादि की बात करता है)

*ईषना* - इन सभी के लिए क्या जरूरी है?

(सब एक साथ बोलते हैं कुशाग्र बुद्धि, कड़ी मेहनत और सही इंस्टिट्यूट और टीचर पढ़ाने वाले)

*ईषना* - यदि मान लो उपरोक्त सब उपलब्ध हो, लेकिन विद्यार्थी और अध्यापक दोनों भूखे हों तो क्या दिमाग़ चलेगा।

(😂😂सब हंस पड़ते है, ये क्या बोल रही हो, भूखे भजन न होइँ गोपाला। अत्यंत भूख लगी हो तो जब भजन नहीं हो पाता तो भला पढ़ाई कैसे होगी? जीवन ही सम्भव नहीं यदि अन्न न मिले तो...😊😊😊)

*ईषना* - यदि आपके पास बहुत पैसा हो, लेकिन आसपास कहीं किसी दुकान पर अन्न ही न मिले तो क्या करोगे?

(अरे कुछ और खा लेंगे पिज़्ज़ा बर्गर बिस्किट नमकीन)

*ईषना* - ये सब अन्न से ही निर्मित है। अगर अन्न कोई पैदा ही न करे, कोई किसान ही न बने, कृषि ही न करे तो... फिर क्या होगा?

(अरे सब भूखे मर जायेंगे, सब एक साथ बोले... एक मुट्ठी अन्न के लिए महाभारत हो जाएगी...)

*ईषना* - तो सभी सहमत हो कि डॉक्टर इंजीनियर वकील नेता व्यवसायी देश में हों न हों किसान होना जरूरी है। अन्न उपजाना जरूरी है। नहीं तो देश की जिंदगी और अर्थव्यवस्था ठप्प पड़ जाएगी।

(हां सहमत हैं)

*ईषना* - क्रिकेट वर्ल्डकप चल रहा हो या पसंदीदा फ़िल्म क्या भूखे हो तो एन्जॉय कर पाओगे? या जॉब हो या व्यवसाय कर पाओगे?

*रवि* - बिल्कुल नहीं,ईषना ये बताओ कि तुम साबित क्या करना चाहती हो? कहना क्या चाहती हो?

*ईषना* - यही कि दुनियां की सर्वश्रेष्ठ जॉब - किसान बनना है। सर्वश्रेष्ठ सम्मान किसान को मिलना चाहिए....अन्नदाता किसान से बड़ा कोई नहीं...

लेकिन दुर्भाग्यवश... लोग अन्न से जुड़े कर्म करने वाले किसान का महत्त्व समझते ही नहीं. .

मॉल में होटल में पिज़्ज़ा बर्गर पॉपकॉर्न चाकलेट खाओगे साथ मे वेटर को टिप भी देते हो.... कभी सब्जी वाले को टिप दी...कभी किसी किसान को टिप दी...उन्हें कोई उपहार दिया...उनका सम्मान किया.... उल्टा उनसे मोलभाव करते हो...शर्म आती है जब हाई फाई लोग गाड़ी से उतरकर पार्टी में खर्च तो कर सकते है...लेकिन सब्जी में दो रुपये छोड़ने को राज़ी नहीं होते....

🙏🏻🇮🇳 *सिर्फ़ दो की इज़्ज़त सबसे ऊपर है, पहले नम्बर पर किसान की और दूसरे नम्बर पर देश की सीमा पर रक्षा कर सैनिक जवान की।* 🇮🇳

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻 सब खड़े होकर ईषना के लिए ताली बजाते हैं, और पूंछते हैं कि क्या हम इन किसानों के लिए कुछ कर सकते हैं?

*ईषना* - हम कम से कम एक गांव गोद ले सकते हैं, उसे आदर्श ग्राम बना सकते हैं। उन्हें गांव में ही पशु खरीद के दे सकते हैं, उनके बच्चों को पढ़ा सकते हैं, वहां तालाब जल संरक्षण के लिए खुदवा सकते हैं। किसान आत्महत्या न करे इसके लिए व्यवस्था बना सकते हैं।

*रवि* - लेकिन इसके लिए मार्गदर्शन कहां से मिलेगा? हम ज्यादा खर्च भी नहीं कर सकते?

*ईषना* - अखिलविश्व गायत्री परिवार , शान्तिकुंज, हरिद्वार में इसकी ट्रेनिंग मुफ्त मिलती है। थोड़े थोडे अंशदान से किसान कल्याण के प्रोजेक्ट हम लोग कर सकते हैं।

(सब मिलकर कहते हैं, ईषना नेक्स्ट टाइम हम लोग छूट्टी में शान्तिकुंज चलेंगे। हमारे लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था करवाओ प्लीज़। हम भी राष्ट्र निर्माण में और किसान कल्याण में योगदान देना चाहते है। सब ईषना के लिए पुनः ताली बजाते हैं)

गायत्री मंत्र बोलकर अन्न को प्रणाम कर भोजन करते हैं, और सब एक दूसरे को झूठन न छोड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। आज सबको अन्न की कीमत समझ आयी। और अन्नदाता किसान को हृदय से धन्यवाद देकर, उसकी जयकार लगाई।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

यज्ञ में *स्वाहा* क्यूँ बोलते हैं मन्त्र के अंत में?

यज्ञ में *स्वाहा* क्यूँ बोलते हैं मन्त्र के अंत में?

'स्वाहा' का अर्थ है- आत्म- त्याग और अपने से लड़ने की क्षमता


यज्ञ का अर्थ मात्र अग्निहोत्र नहीं, शास्त्रों में जीवन अग्नि की दो शक्तियाँ मानी गई है - एक 'स्वाहा' दूसरी 'स्वधा'। 'स्वाहा' का अर्थ है- आत्म- त्याग और अपने से लड़ने की क्षमता। 'स्वधा' का अर्थ है- जीवन व्यवस्था में 'आत्म- ज्ञान' को धारण करने का साहस।


लौकिक अग्नि में ज्वलन और प्रकाश यह दो गुण पाये जाते हैं। इसी तरह जीवन अग्नि में उत्कर्ष की उपयोगिता सर्वविदित है। आत्मिक जीवन को प्रखर बनाने के लिए उस जीवन अग्नि की आवश्यकता है। जत 'स्वाहा' और 'स्वधा' के नाम से, प्रगति के लिए संघर्ष और आत्मनिर्माण के नाम से पुकारा जाता है।

http://literature.awgp.org/book/pragya_puran/v5.8

दो पौराणिक कथाएं :-

1- पौराणिक कथाओं के अनुसार, 'स्वाहा' दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था. अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है. ये भी एक रोचक तथ्य है कि अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम यही हवन आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है.

2- इसके अलावा भी एक अन्य रोचक कहानी भी स्वाहा की उत्पत्ति से जुड़ी हुई है. इसके अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हवन सामग्री को ग्रहण कर पाएंगे.

Monday, 12 February 2018

वह शिव मैं ही हूँ - शिवो$हम

🙏🏻महाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं🙏🏻
(नाश्ते की टेबल पर अध्यात्म चर्चा)

(मां सुबह से शिवपूजन की तैयारी में व्यस्त है, बेटा कॉलेज और पिता ऑफिस जा रहा है। मां मेरा नाश्ता दे दीजिए और आपको भी तो हमारे साथ ही ऑफिस निकलना है फिर देर क्यों कर रही हो।)

*मां* - ये लो तुम दोनों का फलाहार।

*बेटा* - पापा, एक बात समझ नहीं आयी, एक तरफ़ तो माँ को 20 साल हो गए आई टी फील्ड में जॉब करते हुए और दूसरी तरफ़ पूर्ण पुराने ज़माने की मां ओ की तरह पूजा पाठ।

*पापा* -आधुनिकता और भारतीय संस्कृति का जबरदस्त मिक्सर है तुम्हारी मां। सब जल्दी आ जाना शाम को शिवरात्रि के पूजन की तैयारी करना है।

(दोनों हँसते हैं)

*मां* - फलाहार करो और जूस पियो। दोनो याद रखना आज हमें कुछ भी बाहर का तलभुना नहीं खाना है। आती जाती श्वांस में श्वांस में *शिवो$हम* जपना मत भूलना। श्वांस लेते समय *शिवो$* और छोड़ते समय *हम*। ओके।

*बेटा और पापा* - ओके

*बेटा* - मां शिवो$हम का मतलब तो शिव ही मैं ही हूँ हुआ, लेकिन हम तो इंसान है तो शिव कैसे हुए?

*मां* - बेटे यह बताओ इस ग्लास में क्या है?

*बेटा* - जल (पानी)

*मां* - नदी और समुद्र में क्या है?

*बेटा* - जल

*मां* - बादलों में क्या है? और तुम्हारे भीतर भी क्या है?

*बेटा* - बादल में भी जल है और मुझमें भी जल है।

*मां* - क्या इस रूम में हवा में जल है?

*बेटा* - हां है, वाष्प रूप में जल है। जब ठंडी फ्रीज़ का पानी ग्लास में डालो तो आसपास की हवा ठंडी होकर ग्लास में जल की बूंद रूप में चिपक जाती है।

*मां* - बेटा यह शरीर ही शव है और इसके भीतर शिवतत्त्व ही भरा हुआ है। संसार ही श्मशान है क्योंकि यहां सब का मरना निश्चित है। पुर्वजों की फ़ोटो अल्बम में देखो सब थे लेकिन अब नहीं है। हम भी एक दिन नहीं रहेंगे। तो हम शिवतत्व रूपी सागर की एक बूंद मात्र हैं।

इस श्मशान रूपी संसार में स्वयं के शरीर को शव समझ के आज साधना की जाती है। इसके भीतर जो अमर आत्मा है वो अमर शिव का ही एक अंश है। जैसे ग्लास में पानी है वैसे ही इस शरीर रूपी ग्लास में आत्मजल है। जिस दिन यह टूटा जल जल मे मिल जाएगा।इस आत्मबोध को स्थिर करने केलिए हम लोग *शिवो$हम* जपेंगे।

*बेटा* - मां शिव के त्रिशूल का क्या मतलब है।

*मां* - संसार के शूल(कष्टों) को दूर हम स्वयं कर सकते हैं, यदि शिव की तरह हम भी त्रिशूल(उपासना, साधना, आराधना) नियमित करें। जीवन मे धारण करें तो हम सच्चिदानंद स्वरूप आनन्दमय रहेंगे।

*बेटा* - और गंगा और चन्द्रमा को कैसे धारण करें?

*मां* - अच्छी पुस्तकों के स्वाध्याय से ज्ञान गंगा सदैव सिर पर विराज मान रहेंगी। जटाओं अर्थात संसार की उलझन में भी स्थिर रखेंगी। चन्द्रमा मन का प्रतीक है, स्वाध्याय का निरन्तर चिंतन मनन अर्थात स्वाध्याय का पाचन हमारा मन शीतल और स्थिर रखेगा। नियमित ध्यान से तृतीय नेत्र - विवेक दृष्टि मिलेगी।

*पापा* - अच्छा ये बताओ गले में सर्प धारण क्यूँ?

*मां* - सांसारिक परिस्थितियों से यदि क्रोध रूपी सर्प भीतर फुंकारे तो उसे विवेकपूर्वक वश में कर लें। उसकी गहराई समझ उसका बाद के शमन कर दो।

*बेटा* - हम जब स्वयं शिव है तो डमरू हमारे सन्दर्भ में क्या होगा?

*मां* - वैज्ञानिक सिद्ध कर चुके हैं कि यह संसार एक कम्पन और एक ध्वनि मात्र है। पूरे ब्रह्मांड में जो नाद गूंज रहा है वो भीतर भी है। भीतर के नाद से शक्ति श्रोत से जुड़ना ही डमरू धारण है।

*बेटा* - रुद्राक्ष का क्या अर्थ है हमारे सन्दर्भ में?

*मां* - रुद्राक्ष की खासियत यह है कि यह ख़ास तरह का स्पंदन करता है और बाह्य परिस्थितियों की ऊर्जा से प्रभावित नहीं होने देता। अतः स्वयं को रुद्राक्ष बनाओ, बाह्य कुरीतियों और Peer pressure से प्रभावित न हो। साथ मे दूसरों को सन्मार्ग दिखाओ।

शिवलिंग का पूजन अर्थात स्वयं हम जिसका अंश है उनके निराकार शिव का पूजन। जल निराकार है वैसे ही शिव निराकार है।

विभिन्न प्रोसेस से जल से विद्युत पैदा कर सकते हो। इसी तरह विभिन्न साधनाओं से स्वयं के भीतर शिवतत्त्व जो प्रसुप्त अवस्था मे है उसे जागृत कर शक्तिसम्पन्न बन सकते हो।

*पापा* - अरे बाते करने में वक्त का ध्यान नहीं रहा, पहले मुझे ऑफिस छोड़ना, फिर आदित्य को कॉलेज फिर तुम ऑफिस जाना। हां लौटते वक्त बेलपत्र और फूल ले लेंगे। शाम को रुद्राभिषेक भी तो करना है।

(अरे जल्दी करो,मेड को आवाज देते हैं सेरेना दरवाजा बंद करो। हम तीनों जा रहे हैं।)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

तीनों साथ साथ भजन गुनगुनाते हैं

 अमर आत्मा सच्चिदानद मैं हूँ,
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं।

अखिल विश्व का जो परमात्मा है,
सभी प्राणियो का वो ही आत्मा है,
वही आत्मा सचिदानंद मैं हूँ।
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं॥

जिसे शस्त्र ना काटे ना अग्नि जलावे,
गलावे ना पानी, ना मृत्यु मिटावे,
वही आत्मा सचिदानंद मैं हूँ।
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं॥

अजर और अमर जिसको वेदों ने गाया,
यही ज्ञान अर्जुन को हरी ने सुनाया,
वही आत्मा सचिदानंद मैं हूँ।
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं॥

अमर आत्मा है, मरण शील काया,
सभी प्राणियो के भीतर जो समाया,
वही आत्मा सचिदानंद मैं हूँ।
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं॥

है तारो सितारों में प्रकाश जिसका,
जो चाँद और सूरज में आभास जिसका,
वही आत्मा सचिदानंद मैं हूँ।
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं॥

जो व्यापक है जन जन में है वास जिसका,
नहीं तीन कालो में हो नाश जिसका,
वही आत्मा सचिदानंद मैं हूँ,
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं॥

अस्वच्छ मन के उपद्रव शांत करो, स्वच्छ मन और सुकून प्राप्त करो, स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो।

अस्वच्छ मन के उपद्रव शांत करो,
स्वच्छ मन और सुकून प्राप्त करो,
स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो।

आतंकवाद क्या है?
अस्वच्छ मन का उपद्रव है,
भ्रष्टाचार क्या है?
अस्वच्छ मन का उपद्रव है,
अश्लीलता क्या है?
अस्वच्छ मन का उपद्रव है
व्यसन का कारण क्या है?
अस्वच्छ मन का उपद्रव है,
भ्रष्ट समाज का कारण क्या है?
अस्वच्छ मन का उपद्रव है,
टूटते मन और बिखरते रिश्तों का कारण क्या है?
अस्वच्छ मन का उपद्रव है।

तो समाधान क्या है?
स्वच्छ मन से विचार,
सभ्य समाज का आधार क्या है?
स्वच्छ मन से कार्य,
स्वच्छ मन का आधार क्या है?
नियमित स्वाध्याय और आत्मसुधार,
सद्बुद्धि का आधार क्या है?
नियमित स्वाध्याय और सद्विचार,
अच्छे संस्कारो का आधार क्या है?
नियमित स्वाध्याय और सद्विचार।

अस्वच्छ मन के उपद्रव शांत करो,
स्वच्छ मन और सुकून प्राप्त करो,
स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो।

स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन प्राप्त करो,
सभ्य समाज का निर्माण करो,
स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Sunday, 11 February 2018

फ़रवरी में हमारा आदर्श पर्व कौन सा होगा? शिवरात्रि या वेलेन्टाइन?दिव्य यज्ञ होगा या डांस मस्ती?

*नुक्कड़ नाटक - फ़रवरी में हमारा आदर्श पर्व कौन सा होगा? शिवरात्रि या वेलेन्टाइन?दिव्य यज्ञ होगा या डांस मस्ती?*
(सभी बच्चे हंस रहे हैं, एक बच्चा बोला मेरी फूल की दुकान है देखना है कि इस बार गुलाब ज्यादा बिकेगा या गेंदा। पूजन-भजन होगा या डांस पार्टी। सब पुनः हंस पड़ते हैं)

(टेक्निकल कॉलेज में सभी डिपार्टमेंट के बच्चे एकत्रित होते हैं, यह तय नहीं कर पा रहे कि इस वर्ष 14 फरवरी को क्या और कैसे मनाएं? परस्पर विरोधाभास दो गुटों का चल रहा है? एक ग्रुप वेलेन्टाइन की ढिंगचैक डांस पार्टी और बीयर का समर्थन कर रहा है, तो दूसरा ग्रुप शिवरात्रि पर कॉलेज में पंचकुंडीय यज्ञ और नशामुक्ति अभियान का। दोनो ग्रुप अपने प्रस्ताव लेकर कॉलेज मैनेजमेंट के पास जाते हैं।)

👉🏽 शिवभक्त ग्रुप 👉🏽 सर, शिवरात्रि के शुभ पर्व पर हम सब पंचकुंडीय यज्ञ द्वारा पर्यावरण संशोधित करना चाहते हैं। तथा के शिव के समक्ष यज्ञ के पश्चात अशिव (व्यसन-नशे-बुरी आदत) के त्याग का वचन/संकल्प लेंगे।

👉🏽वेलेंटाइन ग्रुप👉🏽 सर कल वेलेंटाइन सेलेब्रेट करना है, लड़कियां पिंक पहनेंगी और लड़के ब्लू, और शानदार डांस पार्टी कल रंगारंग प्रोग्राम के माध्यम से करना चाहते हैं।

👉🏽प्राचार्य👉🏽 दोनों ग्रुप, जो करना चाहते हो उसका लॉजिक दो और फ़ायदे बताओ, उसके बाद वोटिंग होगी, जो ग्रुप जीतेगा उसकी बात मानी जायेगी।

👉🏽वेलेंटाइन ग्रुप👉🏽 हमारी उम्र इस समय एन्जॉय करने की है, बड़े बूढ़ों की तरह पूजा करने की नहीं। जब हम रिटायर होंगे हम भी माला जपेंगे और स्वाहा स्वाहा यज्ञ करेंगे😂😂😂😂😂 (सब ठहाके मार के हंसते हैं) यज्ञ एक बोरिंग प्रोसेस है और डांस में अतिशय मस्ती है। हम DJ भी बुलाएंगे।

👉🏽शिवभक्त ग्रुप👉🏽 
सर इस ग्रुप ने हमारा मज़ाक उड़ाया तो कुछ कड़वे सत्य आपके सामने लाना चाहता हूँ।
1- वेलेंटाइन महाशय को 14 फरवरी 498 को फांसी वहां के तत्कालीन राजा क्लॉडियस ने दिया था,क्योंकि खुलेआम सेक्स और रखैल प्रथा(Kept) का विरोध वेलेन्टाइन्ट करता था। वो पादरी लोगों को *भारतीय संस्कृति और तत्वदशर्न* के प्रभाव में एक पत्नी प्रथा को कायम करते हुए विधिवत विवाह करवा रहा था।

2- वेलेन्टाइन्ट की फांसी के बाद उसके अनुयायी लोगों ने इस दुःख में और उसकी याद में *वेलेन्टाइन्ट डे* मनाना शुरू किया। और विवाह के लिए प्रपोज उसी का नाम लेकर करने लगे - *will you be my valentine* अर्थात *क्या आप मुझसे विवाह करेंगे, वेलेन्टाइन के शिक्षण अनुसार मेरे साथ जीवन निर्वहन करेंगे?*।

3- सर यह प्रथा और दिन यूरोपीय लोगों के लिए जरूरी है जहाँ कुँवारी मां और नाज़ायज बच्चो की फौज से सरकार दुखी है। माँ-बाप कई रिश्ते बनाते है और बच्चे की परवरिश तकरार- ठोकरों के बीच होती है।

4- लेकिन सर हमारे भारत देश मे तो यह प्रथा पहले से है,विवाह के बिना सम्बन्ध अमान्य है। तो फ़िर हमारे देश मे इसे बिन समझे विकृत तरीके से मनाने की क्या जरूरत? जो महापुरुष स्त्री -पुरूष को विवाह की सीख देते देते शहीद हो गया, उसी के नाम पर रखैल प्रथा(live in relationship) पनप रही है। बड़ी दुःखद बात है।

👉🏽 प्राचार्य (वेलेन्टाइन ग्रुप से) 👉🏽 क्या तुम्हे यह सत्य पता था? या टीवी सीरियल देख के इसे मनाने जा रहे थे? क्या तुम्हारी जनरेशन मौज मस्ती के लिए इसे मनाती है?

👉🏽वेलेन्टाइन ग्रुप👉🏽 सॉरी सर हमें पता नहीं था।

👉🏽शिवभक्त ग्रुप👉🏽

1- शिवपरिवार भारतीय संस्कृति में एक आदर्श परिवार का प्रतिनिधित्व करता है।

2- शिव जी के परिवार में सभी अपने अपने व्यक्तित्व के धनी और स्वतंत्र रूप से उपयोगी हैं। नर नारी का भेद नहीं यहां, शिव स्वयं अर्धनारीश्वर हुए। सब शक्ति सम्पन्न, दुष्टता के विनाश और सद्बुद्धि-सौम्यता के अभिवर्धन के लिए एक दूसरे के सहयोगी हैं।

3- इनके वाहन भी शिक्षण देते हैं तथा विभिन्न भिन्नता लेते हुए भी साथ रहते है (बैल-सिंह, सर्प-मोर, चूहा)

4- शिवभक्त आत्मकल्याण के साथ लोककल्याण की भावना ऱखते हुए श्रेष्ठ सुसंस्कारी परिवार निर्माण करता है। जिससे स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन और सभ्य समाज विनिर्मित हो।

👉🏽वेलेन्टाइन ग्रुप👉🏽 शिक्षण तो समझ आ गया, अब यह बताओ इसे मनाने के लिए यज्ञ करेंगे तो लकड़ी जलेगी और प्रदूषण फैलेगा? घी बर्बाद होगा। इससे अच्छा यह गरीबों को बाँट दो। पुण्य मिलेगा।

👉🏽शिवभक्त ग्रुप👉🏽 युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने एक शान्तिकुंज मे ब्रह्मवर्चस एकशोध संस्थाबनाई है। जो यज्ञ पर ही रिसर्च करती है। यज्ञ एक पुर्णतः वैज्ञानिक और एक समग्र उपचार पद्धति है:-

1- यग्योपैथी पर देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार से *PHD* भी की जा सकती है।

2- ब्रह्मवर्चस और देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन में हमारी दिल्ली में भी यज्ञ पर रिसर्च हो रहा है, यज्ञ से पूर्व और बाद Air veda air index मीटर से pollution को चेक किया गया। PM2.5 जो कि 281 था वो दूसरे दिन घटकर 66 रह गया। तो यह सिद्ध हुआ कि यज्ञ पॉल्युशन दूर होताहै। सर मेडिसिन , साउंड एनर्जी और हीट एनर्जी के सिस्टेमेटिक प्रोसेस से यह सम्भव होता है।

2- डॉक्टर ममता सक्सेना ने दिल्ली पॉल्युशन बोर्ड के साथ किए विभिन्न टेस्ट में सिद्ध किया कि रोगाणुओं को यज्ञ नष्ट करता है।

👉🏽वेलेन्टाइन ग्रुप👉🏽 यज्ञ में ये सब कैसे सम्भव होता है?

👉🏽शिवभक्त ग्रुप👉🏽 यज्ञ हम लोग हवन सामग्री में औषधि, गाय का घी और आम की लकड़ी से करते हैं, साथ मे मन्त्र शक्ति का प्रयोग होता है। जो पॉल्युशन दूर करता है, वायुमंडल शुद्ध करता है। साथ ही मानसिक पॉल्युशन दूर होता है। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में तो विभिन्न रोगों के उपचार हेतु यग्योपैथी OPD भी है।

👉🏽वेलेन्टाइन ग्रुप👉🏽 सॉरी शिवभक्तो, क्षमा कर दो। बिना जानकारी के हमने तुम्हारा मज़ाक उड़ाया।बताओ हम क्या सहयोग तुम्हारा कर सकते है? हम भी यज्ञ में सहयोगी बनकर पर्यावरण की हीलिंग प्रोसेस में मदद करेंगे।

👉🏽प्राचार्य👉🏽 एक बात बताओ इतनी छोटी उम्र में तुम्हे इतना ज्ञान कहाँ से आया?

👉🏽शिवभक्त ग्रुप👉🏽 सर हम लोग डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन ग्रुप से हैं। हमें विभिन्न सेमिनार और बाल सँस्कार शाला के माध्यम से बचपन से ही वैज्ञानिक अध्यात्म पढ़ाया जाता है। आप सब भी इससे जुड़ सकते हैं। वैसे भी सर इष्ट का आर्थ होता है जीवन के आदर्श का चयन, दुर्भाग्यवश हम लोगों ने पाश्चात्य का अंधानुकरण करने के कारण शिव-शक्ति के आदर्श को भुला दिया। प्रकृति संरक्षण भूला दिया। सद्विचार और सत्कर्म को भूला दिया, इसलिए समाज आज अव्यवस्थित है।

👉🏽आचार्य👉🏽 नहीं बच्चों अब कोई नहीं भूलेगा इन आदर्शो को क्योंकि *बालसंस्कार* के माध्यम से युगऋषी आचार्य श्रीराम तुम जैसे बच्चो को भूली भारतीय संस्कृति पुनः न सिर्फ़ याद दिलाने के लिए अपितु पुनर्स्थापित करने केलिए सृजन सैनिक जो तैयार कर रहे हैं। देखों न मुझे भी भूला ज्ञान याद करवा दिया तुम सबने😇

😇 सभी मुसकुरा कर ताली बजाते हैं👏🏻👏🏻👏🏻 और बम भोले बोलते हुए निकल पड़ते हैं *अग्निवत शिवतत्त्व में सत्कर्मो की आहुति देने के लिए*😊

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

Saturday, 10 February 2018

चिता एक यज्ञ कुंड है

एक दिन एक बड़ा यज्ञ होगा,
अग्नि प्रज्वल्लित होगी,
अग्नि या समिधा से जलेगी,
या अग्नि विद्युत शवदाह में होगी।

हवन सामग्री स्वरूप,
मेरा मृत शरीर होगा,
और मां गायत्री के मंत्रोच्चार से,
मेरा शरीर आहूत होगा।

एक एक शरीर का कण जलेगा,
पुनः पंचतत्वों में,
सब कुछ विलीन होगा,
शरीर जलेगा,
रिश्ते जलेंगे,
पहचान जलेगा,
एक मुट्ठी राख में सबकुछ,
परिणित होगा।

परिजनों की श्रद्धा रही तो,
श्राद्ध मिलेगा,
अच्छे कर्म किये तो,
लाखों की श्रद्धा का भाव मिलेगा।

पुण्य और पाप की दो गठरी,
बस मेरे साथ चलेगी,
इनके आधार पर ही,
परमात्म सत्ता मेरा हिसाब करेगी।

पुनः जन्म मिलेगा या नहीं,
नर्क की आग में जलूँगा या नहीं,
स्वर्ग के सुख का साम्राज्य मिलेगा या नहीं,
इन सबका पहले हिसाब होगा,
तब जाके मेरा चिता यज्ञ स्वीकार्य होगा,
अनन्त जन्मों से यही क्रम चल रहा है,
वो न्यायकारी सबके,
कर्मो का बराबर हिसाब रख रहा है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

मेरा काव्य मेरी पहचान बने

मेरी कविता मेरी पहचान बने,
क्यूंकि काव्य अमर है,
मेरी ज़िंदगी के आदर्श मेरी पहचान बने,
क्यूंकि आदर्श भी अमर है।

मेरा काम मेरी पहचान बने,
क्योंकि कार्य भी अमर है,
मेरे लिए किसी के हृदय में,
एक अच्छी सी याद बसे,
क्यूंकि ये यादें भी अमर है।

क्योंकि...
मेरे चेहरे से जुड़ी पहचान का क्या,
वो तो चिता में जल ही जाएगा,
मेरी नौकरी रुतबा पैसा घर,
सब दूसरे के नाम हो जायेगा।

मेरे सत्कर्म अमर रहेंगे,
मेरे काव्य अमर रहेंगे
मेरे लफ्ज़ अमर रहेंगे,
इनसे मेरा वजूद,
मरने के बाद भी,
इस धरा पर,
अमर रहेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शरीरबल, मनोबल, आत्मबल, ब्रह्मबल

*शरीर बल* - स्वास्थ्य के संरक्षण और योग व्यायाम से प्राप्त किया जाता है, लेकिन मात्र एक बीमारी इसे नष्ट कर सकती है।

*मनोबल* - अच्छे विचारों, स्वाध्याय और ध्यान योग द्वारा मनः संस्थान परिष्कृत कर मनोबल प्राप्त किया जासकता है। लेकिन कोई भीषण घटना या प्रिय का बिछोह मनोबल तोड़ सकता है। या किसी विशेष व्यक्ति के प्रभाव मे मनोबल बढ़ या घट सकता है।

*आत्मबल* - गहन तप और विभिन्न साधनाओं से स्वयं को साधकर प्राप्त किया जाता है। शरीर भाव से ऊपर जाकर स्वयं की चेतना से जुड़कर प्राप्त किया जा सकता है। तप मार्ग की भटकन और   अहंकार आत्मबल को दीमक की तरह नष्ट कर सकते हैं।

*ब्रह्मबल* - जब चेतना के स्तर पर नर और नारायण एक हो जाते हैं, शिष्य और गुरु एक हो जाते है, जब जीव और ब्रह्म एक हो जाते हैं तो ब्रह्मबल असीमित प्राप्त होता है। इसमें जीव एक नल की टोटी समान होता है जिसका कनेक्शन परब्रह्म से होता है। अतः साधक का सविता में विलय, समिधा का यज्ञ में विलय, जीव का ब्रह्म में आहूत होने पर ब्रह्मबल मिलता है। ब्रह्मबल कोई क्षीण नहीं कर सकता,जब मैं होगा ही नहीं तो अहंकार का प्रश्न ही नहीं बचेगा। शरीर एक ग्लास होगा और ब्रह्मतत्व जब भरा होगा इसे ब्रह्मबल प्राप्ति कहते हैं।

Friday, 9 February 2018

स्वयं बुद्ध बनके ही,
अंगुलीमाल को,
अहिंसक में बदला जाएगा,
भीतर ठहर के ही,
दूसरे को अनाचार करने से,
कोई रोक पायेगा।

कानून परशुराम की तरह,
अपराधी मिटाएगा,
बुद्ध की तरह,
केवल अपराध मिटा न पाएगा।

युगऋषि बुद्ध की राह पर चलके,
अनेकों सद्गृहस्थ भिक्षुक,
तैयार कर रहे हैं,
विचारक्रांति की तलवार थामने को,
सबल साधक कलाई,
नित्य गढ़ रहे रहे हैं।

अनेकों अंगुलिमालों को अहिंसक बनाना है,
हर भूले भटके को सही राह दिखाना है,
पापवृत्ति को जड़ से मिटाना है,
गायत्री परिवार को यह कार्य करके दिखाना है,
स्थूल में हम सबको प्रयास करना है,
सूक्ष्म में तो गुरुचेतना को ही विचार बदलना है।

Wednesday, 7 February 2018

अच्छे कर्म करो....तारीफ़ मिले या न मिले परवाह मत करो

*अच्छे कर्म करो....तारीफ़ मिले या न मिले परवाह मत करो*

सूरज-चांद कभी निकलता नहीं,
किसी की तारीफ़ सुनने के लिए,
कोई सोए या कोई जागे,
कोई उन्हें देखे या न देखे
सूरज-चांद तो निकलते हैं,
जहान रौशन करने के लिए।

इसीतरह...
जब भी कुछ करो,
किसी की तारीफ़ के चक्कर में मत पड़ो,
रोज़ कुछ बेहतर करो,
स्वयं को रोज उत्साह से भरो।

पुष्प की तरह कर्मों की सुगंध फैलने दो,
तुम तो सिर्फ़ कर्म करने में व्यस्त रहो,
दिए की तरह कर्म के प्रकाश को बोलने दो,
तुम तो सिर्फ़ अनवरत कर्म करते रहो।

वो करो जिससे तुम प्रेम करते हो,
या जो कर रहे हो उससे ही प्रेम करो,
जो भी करो शानदार मन लगाके करो,
रोज सफ़लता के नित नए मुक़ाम गढ़ो।

ख़ुद से ही रेस लगाओ,
ख़ुद से ही तुलना करो,
कल जितना बेहतर थे,
उससे कुछ और ज्यादा,
आज बेहतर बनो।

सफ़लता - असफ़लता की परवाह मत करो,
तुम तो बस अनवरत चलो,
कुछ न कुछ बेहतर जिंदगी में कर ही लोगे,
बस इस आत्मविश्वास से अनवरत कर्म करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ एसोसिएशन

Tuesday, 6 February 2018

नशाउन्मूलन - नुक्कड़ नाटक

*नशाउन्मूलन - नुक्कड़ नाटक*

अट्टहास गूंजता है, नषासुर दैत्य अपनी सभा में अट्टहास करता है।

*नषासुर* - कहो, मेरे सैनिकों अपना साम्राज्य धरती में कहां कहां तक फ़ैल गया।

(एक कुरूप राक्षस)
*तम्बाकूसुर* - महाराज, आपकी जय हो। आज तक जितने असुर इस दुनियां में हुए हैं उदाहरण रावण,कंस,महिषासुर इत्यादि उन्होंने जितनी तबाही नहीं मचाई उससे ज्यादा तबाही और राज्य विस्तार हमने किया है महाराज। तम्बाकू प्रोडक्ट ने अधिकांश मानवों के मन मष्तिष्क पर कब्ज़ा करने उनके भले-बुरे की सोचने शक्ति नष्ट कर दी है। स्वयं के ही दुश्मन बनकर कैंसर जैसी अनेक प्रकार की महामारियों में सड़ सड़ कर मर रहे हैं।

(एक कुरूप राक्षसी बीड़ी)
*बीड़ी* - महाराज मेरा सम्राज्य गांवों कस्बों में है। लेकिन मेरी खूबसूरत स्मार्ट ज़हरीले भाई सिगरेट ने शहरों में कॉरपोरेट और अमीरों के शरीरों को बर्बाद करने में सफलता पाई है।

(स्मार्ट राक्षस - सिगरेट)
*सिगरेट* - जी सरकार मैंने युवाओं को दिग्भर्मित करने में बड़ी सफलता पाई है। उनके फेफड़ो को सड़ाने में तम्बाकू के साथ बहन ड्रग्स भी मेरा सहयोग कर रही हैं। बहन ड्रग्स की खूबसूरती और विष का प्रभाव मुझसे ज्यादा असरकारक है।

(ड्रग्स कन्या एटीट्यूड दिखाते हुए व्यग्य केसाथ, नागिन की वेशभूषा में)

*ड्रग्स* - महाराज नशासुर की जय हो, मैंने मानवसमाज की नई पीढ़ी कुंठित और बर्बाद करने में सबसे ज़्यादा सफलता पाई है।मेरी लत इतनी भयानक है और साथ ही मैं बहुत महंगी हूँ। अतः शरीर और मन सड़ाने के साथ साथ उनके चरित्र को भी सड़ा देती हूँ। उन्हें चोर-व्यभिचारी बना के अन्य कुकर्मो में लिप्त कर देती हूँ। उनका परिवार नष्ट कर उन्हें पूर्ण तबाह कर अपाहिज़ बना देती हूँ। दो ही मार्ग उनके पास बचते है आत्महत्या या पागल बन भटकना। अट्टहास
ड्रग्स करती है। मुझसे श्रेष्ठ कोई नहीं।

(सभी राक्षस अट्टहास करते हैं)

(तभी शराब का प्रवेश बोतल की वेशभूषा में होता है, अट्टहास करते हुए, सभी उसके सम्मान में खड़े होते हैं,महारानी शराब की जय हो, और वो नरकासुर के बगल में एटीट्यूड दिखाते हुए बैठती है)

*शराब* - मुझसे ज़्यादा साम्राज्य और मुझसे ज़्यादा बर्बादी कोई नहीं फैला सकता।

सड़े पदार्थो से मैं बनती हूँ,
गांव हो या शहर,
हर जगह बिकती हूँ,
मुझसे ज़्यादा तबाही,
और कोई कर सकता नहीं,
में तो फ़िल्मों के माध्यम से,
अपना विज्ञापन करती हूँ।
फ़िल्म और टीवी इंडस्ट्री मेरी है ग़ुलाम,
जो मुझे पीता वो हो जाता है बदनाम।
कोई फ़िल्म मेरे बिना नहीं बनती,
पढ़े लिखे मूर्खो के हाथों में मैं सजती,
मैं भीतर ही भीतर,
 इंसान को खोखला बनाती हूँ,
पीने वालों से गाड़ी चलवा के,
 बेगुनाहों को मरवाती हूँ,
तबाही तबाही तबाही,
सर्वत्र है तबाही।
अट्टहास अट्टहास

(सब शराब महारानी की जय बोलते हैं, इतने में मंत्री को चिंतित होते देख नषासुर पूंछता है। मंत्री जी क्या हुआ?)

*मंत्री* - महाराज सर्वत्र हमारा साम्राज्य है। लेकिन खबर पक्की है कि प्रज्ञावतार ने जन्मलिया और हमारे विरुद्ध युग सृजन सैनिक खड़े कर दिए हैं। चलिए आपको दिखाता हूँ कि कैसे ये सर्वत्र हमारा साम्राज्य तबाह कर रहे हैं।
(वो आकाश मार्ग से सबको धरती का दृश्य दिखाता है, सब चिंतित हो देखते हैं)

देखिए महाराज, सृजन सैनिक जगह जगह विचारक्रांति कर रहे हैं, सत्साहित्य पढ़वा के लोगों की बुद्धि शुद्ध कर रहे हैं।
जगह जगह नशामुक्ति अभियान चला रहे हैं, लोगों को साधक बना रहे हैं। घर में बलिवैश्व यज्ञ करवा रहे हैं।सामूहिक यज्ञ परम्परा चलाकर दूषित वातावरण शुद्ध कर रहे हैं। समूह साधनाएं कर रह हैं।

देखिए नशामुक्त भारत अभियान चला रहे हैं, यह हमें जल्द ही समाप्त कर देंगें। अगर जनता प्रसाशन इनका सहयोग करेंगे तो हम समाप्त हो जाएंगे महाराज।

*शराब* - चिंता मत करो, आधुनिकता का अंधानुकरण और फ़िल्म इंडस्ट्री जब तक हमारे साथ है, कॉरपोरेट पार्टी, हाई फाई सोसायटी, ठेकेदार और लोभी नेतागण हमारे साथ है यह तबाही का मंजर चालू रहेगा।

*मंत्री* - वो तो ठीक है, लेकिन हमें कुछ और ठोस कदम उठाने होंगे।

यदि यज्ञ और गायत्री पर रोक नहीं लगा , तो ये प्रज्ञावतार युगऋशि सृजन सैनिक सूक्ष्म संषोधित करके हमें, जड़ से समाप्त कर देंगे। लोग यदि साधक बन गए, स्वाध्याय करने लगे तो फ़िल्म के विज्ञापन उनपर असर नहीं करेंगे। ऋषि परम्परा स्थापित हुई तो पाश्चत्य का अंधानुकरण बन्द हो जाएगा। घर में अच्छे संस्कारो की पुनः स्थापना हुई तो चारित्रिक दृढ़ता वाले श्रेष्ठ नागरिक जन्मेंगे, तो इन्हें पथ भ्रष्ट करना मुश्किल हो जाएगा।

(सबकी हंसी गायब हो जाती है, और वो विचार विमर्श में डूब जाते हैं)


(कुछ दृश्य - गायत्री परिवार सृजन सैनिक द्वारा ऋषि परम्परा के पुनर्जागरण का)

*यज्ञ में औषधियों और देशी घी की आहुति, मंत्रोच्चार के साथ* युगसृजन सैनिक करते हैं जिससे नशे के धुएं पर्यावरण के नष्ट हो रहे हैं।बच्चो का गर्भ से सँस्कार हो रहा है। विभिन्न सँस्कार के दृश्य। विभिन्न आंदोलन के दृश्य। स्वाध्याय के दृश्य।

इधर *हम सुधरेंगे युग सुधरेगा के नारों* और *गायत्री मंत्र* ध्वनि से पृथ्वी माता ख़ुश हो जाती हैं।

🙏🏻गायत्री परिवार नशाउन्मूलन - व्यसनमुक्ति आंदोलन में जुड़ने केलिए आपका आह्वाहन करता है🙏🏻

Sunday, 4 February 2018

मन को जागरूक कैसे बनाएं, भूलने की आदत कैसे बदलें?

*मन को जागरूक कैसे बनाएं, भूलने की आदत कैसे बदलें?*

स्वयं के प्रति स्वयं की चेतना के प्रति जागृति का भाव लाना होगा। एक कुशल चौकीदार की तरह मन पर नज़र रखें। कम से कम 15 मिनट ध्यान द्वारा मन की नित्य सफ़ाई करें, इस ध्यान में मात्र आती जाती श्वांस में बिना कुछ सोचते हुए श्वांस को अनुभूत करिए। स्वयं के भीतर क्या चल रहा है यह जानने का अभ्यास करना होगा।

कम से कम 15 मिनट गायत्री मंत्र जप द्वारा मन को माँजिये, मन की सफाई कीजिये।

कितना भी सुंदर घर हो यदि उसमें साफ-सफाई न की जाए और समान व्यवस्थित न रखें। तो घर अस्तव्यस्त और अस्वच्छ हो जाएगा। यह नियम मन पर भी लागू है। झाड़ू-पोछा-डस्टिंग जितनी घर की जरूरत है उतना ही मन की जरूरत है।

मन भूलता क्योंकि मन अस्त व्यस्त है, अनावश्यक विचारों का कचरा फैला हुआ है। अतः विचारों को व्यवस्थित करने हेतु मन में डस्टबिन का प्रयोग करें। अच्छे विचारों को व्यवस्थित करके मन की आलमारी में रखें।

उदाहरण गन्दा विचार आया उसे कल्पना करें कि डस्टबिन में डाल दिया। जो याद रखना है हमेशा के लिए उसे क्रमशः दोहराएं, उसके प्रति चैतन्य जागरूक रहें:-

1- पहली बार पढ़े गए सब्जेक्ट/विचार/आर्टिकल को नोट कर लें

2- नेक्स्ट दिन उसे पुनः पढ़ लें

3- फ़िर तीन दिन बाद उसे पढ़ लें

4- फ़िर एक सप्ताह बाद पुनः पढ़ें

5- फिर एक महीने बाद उसे पुनः पढ़ लें।

मन का दूकानदार उन चीज़ों/विचार/आर्टिकल/सब्जेक्ट को याद रख लेता है, जिनकी डिमांड आप बार बार करते हैं।

या जिन बातों को रुचिकर तरीके से पढ़ते है वो याद हो जाता है।

या किसी चीज़ को किसी चित्र से जोड़कर पढ़ते है तो याद रहता है।

या किसी के प्रति गहन नफरत हो तो वो याद रहता है।

या किसी के प्रति गहन प्रेम हो तो वो याद रहता है।

युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी कहते हैं कि भूलना भी एक अच्छी प्रक्रिया है, अन्यथा अनावश्यक बातों के बोझ से मन हैंग/नॉट रेस्पॉन्सिव हो जाएगा। हमें मात्र यह अभ्यास करना क़ि मन को क्या याद रखना है और क्या नहीं। नित्य अभ्यास से इसमें दक्षता मिल जाती है।

गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि- *अभ्यास और वैराग्य से मन को व्यवस्थित किया जा सकता है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

शुभ जन्मदिवस पर युगनिर्माण और आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए 18 सत्संकल्प सूत्र

*शुभ जन्मदिवस पर युगनिर्माण और आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए 18 सत्संकल्प सूत्र।*

स्कूल और हम सभी आपके जन्मदिन पर आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकानाएं देते हैं । आप इन सत्संकल्पों  को नित्य पढ़ें। ऐसा करने से आपको न केवल श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा मिलती रहेगी, वरन् आपके उज्ज्वल भविष्य की ओर सतत कदम भी बढेंगे।

1. हम ईश्वर को/ सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर/ उसके अनुशासन को/ अपने जीवन में उतारेंगे।

2. शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर/ आत्म संयम और नियमितता द्वारा/ आरोग्य की रक्षा करेंगे।

3. मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से/ बचाये रखने के लिए/ स्वाध्याय एवं सत्संग की/ व्यवस्था रखे रहेंगे।

4. इन्द्रिय-संयम/ अर्थ-संयम/ समय-संयम/ और विचार-संयम का/ सतत अभ्यास करेंगे।

5. अपने आपको/ समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे/ और सबके हित में/ अपना हित समझेंगे।

6. मर्यादाओं को पालेंगे/ वर्जनाओं से बचेंगे/ नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे/ और समाजनिष्ठ बने रहेंगे।

7. समझदारी, ईमानदारी/ जिम्मेदारी और बहादुरी को/ जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।

8. चारों ओर/ मधुरता, स्वच्छता,/ सादगी एवं सज्जनता का/ वातावरण उत्पन्न करेंगे।

9. अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा/ नीति पर चलते हुए/ असफलता को शिरोधार्य करेंगे।

10. मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी/ उसकी सफलताओं/ योग्यताओं/ एवं विभूतियों को नहीं/ उसके सद्विचारों और/ सत्कर्मों को मानेंगे।

11. दूसरों के साथ/ वह व्यवहार नहीं करेंगे/ जो हमें अपने लिए पसंद नहीं।

12. नर-नारी परस्पर/ पवित्र दृष्टि रखेंगे।

13. संसार में सत्प्रवृत्तियों के/ पुण्य-प्रसार के लिए/ अपने समय/ प्रभाव, ज्ञान/ पुरुषार्थ एवं धन का/ एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे।

 14. परम्पराओं की तुलना में/ विवेक को महत्त्व देंगे।


15. सज्जनों को संगठित करने/ अनीति से लोहा लेने/ और नवसृजन की गतिविधियों में/ पूरी रुचि लेंगे।

16. राष्ट्रीय एकता/ एवं समता के प्रति/ निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग/ भाषा, प्रान्त/ सम्प्रदाय आदि के कारण/ परस्पर कोई भेद-भाव न बरतेंगे।

17. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है/ इस विश्वास के आधार पर/ हमारी मान्यता है कि/ हम उत्कृष्ट बनेंगे/ और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे/ तो युग अवश्य बदलेगा।

18. ‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा’/‘हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा’/ इस तथ्य पर/ हमारा परिपूर्ण विश्वास है।


 

स्कूल में सामूहिक जन्मदिन मनाने का तरीका

*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

आरती एवं  शांतिपाठ

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भवि*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |*स्कूल के लिए जन्मदिन मनाने की योजना प्रारूप एवं कार्यक्रम*

*पूर्व व्यवस्था* - महीने में एक दिन उस स्कूल उस महीने जन्मदिन जिन बच्चों का है उनका सामूहिक जन्मदिन मनाना है।

*जन्मदिन कार्ड* - जन्मदिन के दिन उन बच्चों की पासपोर्ट साईज़ ले लें। जन्मदिन कार्ड में एक तरफ़ शीर्षक - *नवयुग का संविधान एवं सत्संकल्प* - उज्ज्वल भविष्य के लिए। उसी कार्ड में बच्चे की फ़ोटो वाली जगह में फ़ोटो लगा दें। साथ ही समस्त स्कूल *बच्चे के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करता है* ये भी लिखा होगा। ये युगपद्धति के पीछे छपे 18 सत्संकल्प होंगे जिन्हें जन्मदिन के दिन भी बच्चे दोहराएंगे साथ ही यही जन्मदिन कार्ड में भी प्रिंट होगा। जिसे बच्चे घर ले जाएंगे और टीचर इसे रोज सपरिवार पढ़ने हेतु प्रेरित करेगी।

*जन्मदिन कार्ड के पीछे निम्नलिखित जन्मदिन मनाने की संक्षिप्त विधि होगी*

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

*पवित्रीकरण* - *प्रेरणा*– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।

*क्रिया और भावना* – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें। - अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है। - हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है। - हमारा मन धुल रहा है  विचार पवित्र हो रहे हैं।  हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।

सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।

 *ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।*


सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें


भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,

पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
*ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् । *

 पवित्रता हमें महान् बनाये
*ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।*

पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
*ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।*

*क्रिया और भावना*-  कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।

अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।

 *ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।*

 *क्रिया* - धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।

भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें- - हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है।  हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।

👉🏽 *अध्यापिका उन बच्चों को तिलक लगाएंगी जिनका जन्मदिन है। बाकी बच्चे एक दूसरे को लगाएंगे*

 प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।


क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं। प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-


-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे

 ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्


 इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें

*ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।*


हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे

 *ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।*


इसमें विवेक सदैव बना रहे

*ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्*

👉🏽 *रक्षासूत्र विधान*
क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।


                                                संकल्प करें

हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं

*ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि।*

मर्यादाओं का पालन करेंगे

*ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।*

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे

*ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि।*

प्रेरणा- नमन का अर्थ है—अभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों काअभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्वकी ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जोविनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन कोसब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौस्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वहीझुकना कल्याणकारी है।


क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहाजाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमेंसही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।


(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)


जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं,उन देव शक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः ।

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्यवातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः ।

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन मेंप्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः ।

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं,उन महारुद्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः ।

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः ।

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारनेवाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

ॐ सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः ।

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आनेवाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

ॐ सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः ।

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रहजाता है, उस महाविद्या को नमन।

ॐ महाविद्यायै नमः ।

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहींकरता, उस महाकाल को नमन।

ॐ एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

👉🏽 *गुरुवंदना*
 क्रिया और भावना – प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक कापूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हेपरम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थितिका बोध बराबर कराते रहें—हमें भटकने न दें, जगाते रहें—बढ़ाते रहें।

ॐ अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम्

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या ।

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

👉🏽 *पांच रंग के कागज़ में पंच तत्वों के प्रतीक बना लें, उनका पूजन करवा दें*

क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें। - हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें। - हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है। - हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें। - हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।

मन्त्र दुहरवायें— *ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।*
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
*ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।*

👉🏽  *जिन बच्चों का जन्मदिन है केवल उनसे घी के दिये अगरबत्ती या मोमबत्ती की सहायता से जलवाए*

क्रिया और भावना- मंत्रोच्चार के साथ दीपक-अगरबत्ती जलायें। मंच पर स्वयं सेवक अगरबत्तियों को क्रमशः जलायें, ताकि अंत तक क्रम चलता रहे। यदि याजकों के पास थाली में दीपक-अगरबत्ती हैं, तो वे भी दीपक और अगरबत्ती जलायें। दीपक में घृत डालते रहने का क्रम बनाये रखें। अग्नि स्थापना के समय भावना करें- - हे अग्नि देव! हमें ऊपर उठाना सिखायें। - हमें प्रकाश से भर दें। - हमें शक्ति सम्पन्न बनायें। - हमें आपके अनुरूप बनने तथा दूसरों को अपने अनुरूप बनाने की क्षमता प्रदान करें। - हम भी अपनी तरह सुगन्धि और प्रकाश बांटने लगें।

*ॐ अग्ने नय सुपथा राये, अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् । युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो, भूयिष्ठां ते नमऽउक्तिं विधेम।*

*7 गायत्री मंत्र आहुति* और *3 महामृत्युंजय*, *एक गणेश और एक सरस्वती* की आहुति मन्त्र बुलवाएं।

👉🏽 पूर्णाहूति मन्त्र

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते स्वाहा ।
। ॐ सर्वं वै पूर्ण स्वाहा ।।
 (अक्षत-पुष्प दीपयज्ञ की थाली में छोड़ दें अथवा स्वयंसेवक उन्हें एकत्रित करके देवमंच पर अर्पित करें
👉🏽
*इसके बाद 18 सत्संकल्प दुहरवाये*

*बच्चे टीचर के चरण स्पर्श करें*
👉🏽 *पुष्पवर्षा*
टीचर और अन्य बच्चे जन्मदिन वाले बच्चों पर निम्नलिखित मन्त्र बोलते हुए पुष्प वर्षा करें। और  बाद में बच्चों का मुंह मीठा प्रसाद से करें।

*मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ ध्वज। मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि:।।*

(अन्त में बच्चों की फोटो लगी और 18 सत्संकल्पो के साथ स्कूल की शुभकामनक कार्ड बच्चे को दे दें)

आरती एवं  शांतिपाठ

और निम्नलिखित जयकारा भी लगवा दें:-

भारतीय संस्कृति की- जय।
भारत माता की- जय।
गायत्री माता की - जय।
एक बनेंगे-नेक बनेंगे।
हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा। हम बदलेंगे-युग बदलेगा।
ज्ञान-यज्ञ की ज्योति जलाने- हम घर-घर में जायेंगे।
नया समाज बनायेंगे- नया जमाना लायेंगे।
जन्म जहां पर-हमने पाया अन्न जहां का-हमने खाया।
वस्त्र जहां के-हमने पहने ज्ञान जहां से-हमने पाया।
वह है प्यारा- देश हमारा।
देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेंगे-हम करेंगे।
मानव मात्र-एक समान नर और नारी-एक समान।
जाति वंश सब-एक समान                             
धर्म की-जय हो।
 धर्म का-नाश हो।
 प्राणियों में-सद्भावना हो
 विश्व का-कल्याण हो।
 सावधान! युग बदल रहा है
।सावधान। नया युग आ रहा है।
 हमारी युग निर्माण योजना- सफल हो, सफल हो, सफल हो।
हमारा युग निर्माण सत्संकल्प- पूर्ण हो, पूर्ण हो, पूर्ण हो।
इक्कीसवीं सदी- उज्ज्वल भविष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |ष्य।
 वन्दे- वेद मातरम्।

   |     |

डायबिटीज घरेलू उपाय से 6 महीने में ठीक करें - पनीर फूल(पनीर डोडा)

 सभी चिकित्सक, योग करवाने वाले भाइयों बहनों, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे डायबटीज और ब्लडप्रेशर ठीक करने वाले रिसर्च में सहयोग करें। निम्नलिखित...