प्रश्न - *दी, मुझे युग निर्माण सत्संकल्प 17 वे सूत्र की व्याख्या बता दीजिए।*
उत्तर-
युग निर्माण सत्संकल्प 17 वे सूत्र की व्याख्या:-
17- *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा।*
युगऋषि कहते हैं कि मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा। मनुष्य बुद्धिकुशलता से कर्म द्वारा टेक्नोलॉजी उपयोग से पक्षियों की तरह उड़ सकता है, मछलियों की तरह तैर सकता है, कुछ भी सम्भव हैं। वह भोगी, रोगी व योगी जो चाहे बन सकता है। वो स्वयं के लिए योग व अध्यात्म से आनन्दित वातावरण या भोग व नशे के उपभोग से स्वयं के लिए असह्य पीड़ा व रोग जो चाहे उसका सृजन कर सकता है। इस तरह से यह कहा जा सकता है की *मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है*।दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है। आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं।
व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है लेकिन उसका परिणाम कर्म अनुसार होगा व्यक्ति की इच्छानुसार नहीं। स्वतंत्र किसको कहते हैं, जो अपनी इच्छा से काम करे या दूसरे के दबाव से काम करे? जो अपनी इच्छा से काम करे, वह स्वतंत्र है। तो आपका भविष्य पहले से कोई कैसे लिख देगा? अगर पहले से लिखा है, और वही होना है, तो आप परतंत्र हो गए। सच तो यह है कि आप जब चाहे, अपनी योजना बदल सकते हैं, जब चाहे बना सकते हैं। हमारी मर्जी है। हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं। अपने भविष्य के निर्माता हम स्वयं हैं। एक-एक मिनट में हम अपना भविष्य बनाते हैं। ज्योतिष ने आपकी जो भी उम्र बताई हो आप कर्म द्वारा ज़हर खाइए तुरंत मरेंगे, मृत्यु कर्मफ़ल बनेगा। ज्योतिष ने अल्पायु बताया है कोई बात नहीं आप योगियों सा परोपकारी जीवन जीना शुरू कर दीजिए, दीर्घायु होने से कोई रोक नहीं सकता। डॉक्टर इंजीनियर वक़ील पढ़कर बन जाइये, नर से नारायण या नर से पशु जो चाहें कर्म से बन जाइये। आपकी क्रिया ठीक-ठीक चल रही है, आपका भविष्य अच्छा है। आप गलत क्रिया शुरु करो, देखो आपका भविष्य तुरंत बिगड़ जाएगा। इस प्रकार अपना भविष्य बनाना-बिगाड़ना हमारे हाथ में है। एक-दो मिनट में हम अपना भविष्य बना सकते हैं या बिगाड़ सकते हैं।आपको एक कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास करती हूँ –
एक राजा बड़ा न्यायप्रिय था, अपनी प्रजा का बड़ा ध्यान रखता था।
उसकी तीन पुत्रियां थी, वो जो देखता, जो सोचता उसको सच मानता उसको लगता था,
अपने राज्य के लिए वो जो नियम बनाता वही उस राज्य का नियति होता।
वह अपने आप को प्रजा के भाग्य का निर्माता समझता था।
जब उसकी पुत्रियां विवाह योग्य हुई
तो तीनों को बुला उसने कहा -मुझसे ही तुम्हे जीवन मिला है,
तुम तीनो को ही मेरी सम्पति मिलेगी और तुम्हारा विवाह, भविष्य के सारे निर्णय मेरी मर्जी से होंगे ,
दो पुत्रियो ने उसकी मर्जी मान ली , पर तीसरी पुत्री ने कहा-आप राजा है
मेरे पिता है, आप की आज्ञा मानना मेरा फर्ज है और कानून भी है।
*पर आप मेरे भविष्य निर्माता नही हो सकते। प्रत्येक मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।*
एक पिता को अपने पुत्री से और एक राजा को अपनी प्रजा से ये उम्मीद नही थी। उसके इस जवाब से क्रोधित पिता ने उसे करागार में डलवा दिया।
इस उम्मीद से की जेल की ज़िन्दगी उसे तोड़ देगी। पर ऐसा नही हुआ ।पुत्री अपनी बात पर अडिक रही।
पिता ने हार न मानी और अपनी पुत्री को राज्य के बाहर डरावने जंगल में डलवा दिया, जहाँ जंगली जानवर के साथ-साथ, राज्य से निकाले लोग रहते थे।
पर जंगल की वो आज़ादी राजकुमारी को बहुत पसंद आयी, युद्ध कला व बुद्धिबल में वो निष्णात थी। वो पेड़ के ताजे फल ,सोने के थाल के भोजन से बहुत अच्छे थे। आदिवासी व निष्काषित लोगों की निष्काम भाव से सेवा व मदद करती। सबने उसे अपनी रानी स्वीकार लिया। उसने सबको शिकार हेतु विभिन्न युद्ध कलाएं सिखाई, तथा व्यापार हेतु जंगल की सम्पदा को बाहरी राज्यों में बेंचना सिखाया। चन्दन व जंगल की औषधियों से खूब आमदनी हुई। जंगल की महारानी बनकर राज्य सुख से रहने लगी।
और एक दिन समुद्री मार्ग से भटकता हुआ घायल एक युवक उसी जंगल में आ पंहुचा। शेर से राजकुमारी ने उसे बचाया व उसका उपचार किया।
फिर वह युवक उस राज कुमारी की सुंदरता, वीरता व बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम में पड़ गया और विवाह कर राजकुमारी को अपने देश ले गया।
वह युवक अपने देश का राजकुमार था ,अपने साम्राज्य को फैलाने के उद्देश्य से अपने पड़ोस के राज्यो पर आक्रमण करता
वो उसी राज्य पर आक्रमण करने पंहुचा (जो उसकी पत्नी के पिता का राज्य था) राजकुमार ने राजा से कहा-
तुम अपनी मर्ज़ी से अपना राज्य मुझे दे दो या मुझसे युद्ध कर मुझे पराजित करो।
राजा अब शक्तिहीन हो चूका था
उसकी आहंकारिता और भाग्य निर्माता ही उसकी प्रजा और उसके बीच असंतोष का कारण था।
और प्रजा नए राजा की तलाश में थी। अंततः राजा ने हथियार डाल दिया।
तभी राजा के कानों में एक ध्वनि सुनाई पड़ती है, जो उसकी पुत्री का होता है। “पिताजी अब तो आप मानेंगे, प्रत्येक मनुष्य की अपनी नियति होती है, वो स्वयं अपने भाग्य का निर्माता होता है।”
हर मनुष्य की अपनी नियति है, अपना चुनाव है। कल जो भी होगा वो हमारे आज के निर्णय पर निर्भर करता है।हम अपना कल(अतीत) तो नही बदल सकते है, पर अपने आज के निर्णय से अपना कल बेहतर कर सकते है।आप मूल्यवान है
एक दार्शनिक का मत है कि संसार एक निष्प्राण वस्तु है। इसे हम जैसा बनाना चाहते हैं, यह वैसा ही बन जाता है। जीव चैतन्य है और कर्त्ता है। संसार पदार्थ है और जड़ है। चैतन्य कर्ता में यह योग्यता होती है कि वह जड़ पदार्थ की इच्छा और आवश्यकता का उपयोग कर सके। कुम्हार के सामने मिट्टी रखी हुई है, वह उससे घड़ा भी बना सकता है और दीपक भी। सुनार के सामने सोना रखा हुआ है, वह उससे मनचाहा आभूषण बना सकता है। दर्जी के हाथ में सुई है और कपड़ा भी। वह चाहे तो कुर्ता सी सकता है।
हम सभी को यह जानने की उत्सुकता बराबर रहती है कि आखिर मनुष्य के भाग्य का फैसला कौन करता है?
अगर भगवान किस्मत/भाग्य बनाता तो सबको एक जैसी किस्मत देता। जैसे पिता यदि बच्चों का भविष्य लिखता तो सबको एक जैसा अच्छा सुंदर भाग्य देता।
क्योंकि मनुष्य जन्मजन्मांतर से अपने कर्मो से अपनी किस्मत लिख रहा है, इसलिए सबकी क़िस्मत अलग अलग है। भगवान बस यह तय करता है जो कर्म मार्ग आपने चुना है वही कर्मफ़ल आपको मिले। जिस प्रकार अध्यापक यह तय करता है कि उत्तरपुस्तिका में परीक्षा के वक्त जो आपने उत्तर लिखे हैं वैसे ही आपको मार्क्स मिलें।
अतः यह कर्मफ़ल का सिद्धांत - *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है, हम स्वयं अपने कर्मों से अपनी किस्मत लिख रहे हैं।* इस पर स्वयं भरोसा करें व दुसरो को भी समझाएं। उज्ज्वल भविष्य और अच्छे युग के निर्माण के लिए हम सबको उत्कृष्ट बनना होगा। देवता जैसा बनना होगा। तभी स्वर्ग सा सुंदर जहान हमें रहने को मिलेगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर-
युग निर्माण सत्संकल्प 17 वे सूत्र की व्याख्या:-
17- *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा।*
युगऋषि कहते हैं कि मनुष्य कुछ इस तरह की धातु का बना होता है जिसकी संकल्प भरी शक्ति और साहसिकता के आगे कोई भी अवरोध टिक नहीं पाता है और न भविष्य में टिक पायेगा। मनुष्य बुद्धिकुशलता से कर्म द्वारा टेक्नोलॉजी उपयोग से पक्षियों की तरह उड़ सकता है, मछलियों की तरह तैर सकता है, कुछ भी सम्भव हैं। वह भोगी, रोगी व योगी जो चाहे बन सकता है। वो स्वयं के लिए योग व अध्यात्म से आनन्दित वातावरण या भोग व नशे के उपभोग से स्वयं के लिए असह्य पीड़ा व रोग जो चाहे उसका सृजन कर सकता है। इस तरह से यह कहा जा सकता है की *मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है*।दुनिया में मनुष्य के आगे असंभव कुछ भी नहीं है। आदमी के अच्छे या बुरे होने का निर्धारण स्वयं उसके कर्म करते हैं।
व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है लेकिन उसका परिणाम कर्म अनुसार होगा व्यक्ति की इच्छानुसार नहीं। स्वतंत्र किसको कहते हैं, जो अपनी इच्छा से काम करे या दूसरे के दबाव से काम करे? जो अपनी इच्छा से काम करे, वह स्वतंत्र है। तो आपका भविष्य पहले से कोई कैसे लिख देगा? अगर पहले से लिखा है, और वही होना है, तो आप परतंत्र हो गए। सच तो यह है कि आप जब चाहे, अपनी योजना बदल सकते हैं, जब चाहे बना सकते हैं। हमारी मर्जी है। हम कर्म करने में स्वतंत्र हैं। अपने भविष्य के निर्माता हम स्वयं हैं। एक-एक मिनट में हम अपना भविष्य बनाते हैं। ज्योतिष ने आपकी जो भी उम्र बताई हो आप कर्म द्वारा ज़हर खाइए तुरंत मरेंगे, मृत्यु कर्मफ़ल बनेगा। ज्योतिष ने अल्पायु बताया है कोई बात नहीं आप योगियों सा परोपकारी जीवन जीना शुरू कर दीजिए, दीर्घायु होने से कोई रोक नहीं सकता। डॉक्टर इंजीनियर वक़ील पढ़कर बन जाइये, नर से नारायण या नर से पशु जो चाहें कर्म से बन जाइये। आपकी क्रिया ठीक-ठीक चल रही है, आपका भविष्य अच्छा है। आप गलत क्रिया शुरु करो, देखो आपका भविष्य तुरंत बिगड़ जाएगा। इस प्रकार अपना भविष्य बनाना-बिगाड़ना हमारे हाथ में है। एक-दो मिनट में हम अपना भविष्य बना सकते हैं या बिगाड़ सकते हैं।आपको एक कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास करती हूँ –
एक राजा बड़ा न्यायप्रिय था, अपनी प्रजा का बड़ा ध्यान रखता था।
उसकी तीन पुत्रियां थी, वो जो देखता, जो सोचता उसको सच मानता उसको लगता था,
अपने राज्य के लिए वो जो नियम बनाता वही उस राज्य का नियति होता।
वह अपने आप को प्रजा के भाग्य का निर्माता समझता था।
जब उसकी पुत्रियां विवाह योग्य हुई
तो तीनों को बुला उसने कहा -मुझसे ही तुम्हे जीवन मिला है,
तुम तीनो को ही मेरी सम्पति मिलेगी और तुम्हारा विवाह, भविष्य के सारे निर्णय मेरी मर्जी से होंगे ,
दो पुत्रियो ने उसकी मर्जी मान ली , पर तीसरी पुत्री ने कहा-आप राजा है
मेरे पिता है, आप की आज्ञा मानना मेरा फर्ज है और कानून भी है।
*पर आप मेरे भविष्य निर्माता नही हो सकते। प्रत्येक मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।*
एक पिता को अपने पुत्री से और एक राजा को अपनी प्रजा से ये उम्मीद नही थी। उसके इस जवाब से क्रोधित पिता ने उसे करागार में डलवा दिया।
इस उम्मीद से की जेल की ज़िन्दगी उसे तोड़ देगी। पर ऐसा नही हुआ ।पुत्री अपनी बात पर अडिक रही।
पिता ने हार न मानी और अपनी पुत्री को राज्य के बाहर डरावने जंगल में डलवा दिया, जहाँ जंगली जानवर के साथ-साथ, राज्य से निकाले लोग रहते थे।
पर जंगल की वो आज़ादी राजकुमारी को बहुत पसंद आयी, युद्ध कला व बुद्धिबल में वो निष्णात थी। वो पेड़ के ताजे फल ,सोने के थाल के भोजन से बहुत अच्छे थे। आदिवासी व निष्काषित लोगों की निष्काम भाव से सेवा व मदद करती। सबने उसे अपनी रानी स्वीकार लिया। उसने सबको शिकार हेतु विभिन्न युद्ध कलाएं सिखाई, तथा व्यापार हेतु जंगल की सम्पदा को बाहरी राज्यों में बेंचना सिखाया। चन्दन व जंगल की औषधियों से खूब आमदनी हुई। जंगल की महारानी बनकर राज्य सुख से रहने लगी।
और एक दिन समुद्री मार्ग से भटकता हुआ घायल एक युवक उसी जंगल में आ पंहुचा। शेर से राजकुमारी ने उसे बचाया व उसका उपचार किया।
फिर वह युवक उस राज कुमारी की सुंदरता, वीरता व बुद्धिमत्ता के कारण प्रेम में पड़ गया और विवाह कर राजकुमारी को अपने देश ले गया।
वह युवक अपने देश का राजकुमार था ,अपने साम्राज्य को फैलाने के उद्देश्य से अपने पड़ोस के राज्यो पर आक्रमण करता
वो उसी राज्य पर आक्रमण करने पंहुचा (जो उसकी पत्नी के पिता का राज्य था) राजकुमार ने राजा से कहा-
तुम अपनी मर्ज़ी से अपना राज्य मुझे दे दो या मुझसे युद्ध कर मुझे पराजित करो।
राजा अब शक्तिहीन हो चूका था
उसकी आहंकारिता और भाग्य निर्माता ही उसकी प्रजा और उसके बीच असंतोष का कारण था।
और प्रजा नए राजा की तलाश में थी। अंततः राजा ने हथियार डाल दिया।
तभी राजा के कानों में एक ध्वनि सुनाई पड़ती है, जो उसकी पुत्री का होता है। “पिताजी अब तो आप मानेंगे, प्रत्येक मनुष्य की अपनी नियति होती है, वो स्वयं अपने भाग्य का निर्माता होता है।”
हर मनुष्य की अपनी नियति है, अपना चुनाव है। कल जो भी होगा वो हमारे आज के निर्णय पर निर्भर करता है।हम अपना कल(अतीत) तो नही बदल सकते है, पर अपने आज के निर्णय से अपना कल बेहतर कर सकते है।आप मूल्यवान है
एक दार्शनिक का मत है कि संसार एक निष्प्राण वस्तु है। इसे हम जैसा बनाना चाहते हैं, यह वैसा ही बन जाता है। जीव चैतन्य है और कर्त्ता है। संसार पदार्थ है और जड़ है। चैतन्य कर्ता में यह योग्यता होती है कि वह जड़ पदार्थ की इच्छा और आवश्यकता का उपयोग कर सके। कुम्हार के सामने मिट्टी रखी हुई है, वह उससे घड़ा भी बना सकता है और दीपक भी। सुनार के सामने सोना रखा हुआ है, वह उससे मनचाहा आभूषण बना सकता है। दर्जी के हाथ में सुई है और कपड़ा भी। वह चाहे तो कुर्ता सी सकता है।
हम सभी को यह जानने की उत्सुकता बराबर रहती है कि आखिर मनुष्य के भाग्य का फैसला कौन करता है?
अगर भगवान किस्मत/भाग्य बनाता तो सबको एक जैसी किस्मत देता। जैसे पिता यदि बच्चों का भविष्य लिखता तो सबको एक जैसा अच्छा सुंदर भाग्य देता।
क्योंकि मनुष्य जन्मजन्मांतर से अपने कर्मो से अपनी किस्मत लिख रहा है, इसलिए सबकी क़िस्मत अलग अलग है। भगवान बस यह तय करता है जो कर्म मार्ग आपने चुना है वही कर्मफ़ल आपको मिले। जिस प्रकार अध्यापक यह तय करता है कि उत्तरपुस्तिका में परीक्षा के वक्त जो आपने उत्तर लिखे हैं वैसे ही आपको मार्क्स मिलें।
अतः यह कर्मफ़ल का सिद्धांत - *मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता है, हम स्वयं अपने कर्मों से अपनी किस्मत लिख रहे हैं।* इस पर स्वयं भरोसा करें व दुसरो को भी समझाएं। उज्ज्वल भविष्य और अच्छे युग के निर्माण के लिए हम सबको उत्कृष्ट बनना होगा। देवता जैसा बनना होगा। तभी स्वर्ग सा सुंदर जहान हमें रहने को मिलेगा।
🙏🏻श्वेता, DIYA