प्रश्न - मुझे मात्र 7 दिन का आध्यात्मिक कोर्स बताएं, जिसे करने से मेरा नजरिया संसार व अन्य व्यक्तियों को देखने का बदल जाये?
उत्तर - जीवन को देखने की तीसरी दृष्टि ज्ञान दृष्टि विकसित करो। मुझे इससे बहुत लाभ हुआ है, तुम्हे भी होगा।
सात दिन तत्व दृष्टि साधना कीजिये। निर्देशित कल्पना के आधार ध्यान कीजिये और गहराई से इसी पर चिंतन करके अपना दृष्टिकोण/नज़रिया उस दिन का तय कीजिये। एक तरह का निर्देशित विचारो का चश्मा लगाइए।
रंगीन चश्मे से दुनियाँ रंगीन दिखती है, जैसा नज़रिया तय करेंगे वैसे नज़ारे दिखने लगेंगे।
"नूतन दृष्टि-योग दृष्टि-तत्व दृष्टि साधना - 7 दिन"
जैसा नज़रिया वैसे नज़ारे, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि, तत्वदृष्टि के लिए दृष्टिकोण और विचारों के सोचने के स्तर पर निर्भर करेगी। उथले विचार व चिंतन होंगे तो उथले दृश्य होंगे। गहन विचार व चिंतन होंगे तो गहराई से विवेचन करते दृश्य होंगे।
चिंता न करें कोई व्रत वगैरह नहीं रहना है। केवल 7 दिन लगातार निर्देशित दृष्टि साधना करनी है वो भी भावात्मक और विचारों से युक्त। रविवार से रविवार तक यह साधना चलेगी। आठवें दिन प्रथम दिन वाला ध्यान केवल दोपहर 12 बजे तक दोहराना होगा।
बिस्तर से उठते ही नेत्र को सबसे पहले अपने हाथ पर केंद्रित कीजिये। भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद दीजिये। फिंर धरती माता को प्रणाम करके ...
जिस प्रकार भवन छोटा हो या बड़ा वह तत्वदृष्टि से देखो तो पता चलता है ईंट, सीमेंट, बालू, जल और लोहे की सरिया इन पाँच से निर्मित है। इसी तरह तत्वदृष्टि से देखो तो यह शरीर कोशिकाओं ( Cells) से बना है। प्रत्येक कोशिका पँच तत्व से बनी है जो क्रमशः धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि से बना है। तत्व दृष्टि में हम भवन किससे बना उसे गहरे विचारों की तत्वदृष्टि से देखेंगे, इसी तरह प्रत्येक जीव जिससे बना है उस तत्वदृष्टि से उसे व स्वयं को देखेंगे।
"प्रथम दिन" - ईश्वर का पृथ्वी रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और मिट्टी के कण को दोनों भौं के बीच बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही मिट्टी तत्व की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा के मिट्टी तत्व का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को मिट्टी से बना पुतला महसूस कीजिये, स्वयं के माटी के शरीर का ध्यान कीजिए।
"द्वितीय दिन" - ईश्वर का समुद्र रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद जल(आत्मा) का दोनों भौं के बीच जल की बूँद की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही जल की बूँद की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की बूँद का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।स्वयं को जल सा तरल महसूस कीजिये, स्वयं के जल शरीर का ध्यान कीजिए।
"तृतीय दिन" - ईश्वर का हवा रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस हवा के प्रवाह को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही हवा(आत्मा) की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा का हवा के प्रवाह का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को वायु सा हल्का व वेगवान महसूस कीजिये, स्वयं के वायु शरीर का ध्यान कीजिए।
"चतुर्थ दिन" - ईश्वर का अग्नि रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी अग्नि की एक ज्योति(आत्मा) का दोनों भौं के बीच अग्निवत बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक प्रत्येक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही अग्निवत ज्योति की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की अग्निवत कण का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये। स्वयं को अग्नि सा प्रकाशित महसूस कीजिये, स्वयं के अग्नि रूपी प्रकाश शरीर का ध्यान कीजिए।
"पांचवा दिन" - ईश्वर का आकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिये और अपने मष्तिष्क के भीतर झाँकने का प्रयास कीजिये, विचारो का प्रवाह आकाश तत्व है एसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबके बीच आकाश तत्व को महसूस कीजिये। स्वयं को आकाश सा महसूस कीजिये, स्वयं के आकाश शरीर का ध्यान कीजिए।
"छठा दिन" - ईश्वर का तेजस्वी किरणों के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए, अपनी आँखों को देखिए और दोनों भौं के बीच तृतीय नेत्र के खुलने का ध्यान/कल्पना कीजिये। स्वयं के चेहरे को देखिए, फ़िर बिना मांस के हड्डियों की खोपड़ी के स्ट्रक्चर को देखिए। फ़िर उन हड्डियों को कैल्शियम के कणों से बना महसूस कीजिये। कल्पना कीजिये कि आपका तृतीय नेत्र X-ray मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है और भीतर के हड्डियों के ढाँचे दिखा रहा है। सबके भीतर के कंकाल देखिये।
सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबको X-ray की दृष्टि से देखिए। आज के दिन आपको किसी के वस्त्र, आभूषण, सुंदरता कुछ नहीं देख पाएंगे। सर्वत्र चलते फिरते कंकाल आपके अंदर वैराग्य जगायेंगे।
"सातवां दिन' - ईश्वर को एक प्रकाशित कण/परमाणु(एटम) के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए। अरे यह क्या जिस परमाणु से मैं बना हूँ उसी से यह दर्पण बना है। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सभी उसी एटम से बने हैं। सजीव तो सजीव और सभी निर्जीव भी तो उसी एटम से बनी है। हम सब तो एक ही तत्व हैं। सबको अणुवत देखिये।
🙏🏻 परिणामस्वरूप, सात दिनों में आपको यह अनुभूति होगी कि कण कण में परमात्मा है। हम सब एक हैं। इन 7 दिनों तक चिंता, वासना और कामना समाधि ले लेंगी, वैराग्य जग जाएगा और 7 दिन तक तत्व दृष्टि से जगत देखने का आनन्द मिलेगा। जितना विश्वास पूर्वक गहन गहराई से विचार पूर्वक प्रयास करेंगे, उतनी शीघ्रता से सफ़लता मिलेगी।🙏🏻
सकल पदारथ हैं जग माहीं,
करम हीन नर पावत नाहिं।
आध्यात्मिक तत्वदृष्टि के उपाय उपलब्ध हैं, वही तत्वदृष्टि विकसित करेगा जो इसे विकसित करने का कर्म करेगा।
संसार हो या अध्यात्म सर्वत्र जिस क्षेत्र में पुरुषार्थ करेंगे सफलता निश्चित: मिलेगी। हर घटना का तीसरा आयाम देखोगी तो कभी जीवन में भूल नहीं करोगी।